Wed Nov 06 2024 20:45:40 GMT+0530 (India Standard Time)
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\c 4 \v 1 \v 2 \v 3 1 इसलिए मैं जो प्रभु में बन्दी हूँ तुम से विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो, 2 अर्थात् सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो, 3 और शान्ति के बन्धन में आत्मा की एकता रखने का यत्न करो।
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