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\v 17 और उसने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दोनों को शान्ति का सुसमाचार सुनाया। \v 18 क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पहुँच होती है।
\v 17 और उसने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दोनों को शान्ति का सुसमाचार सुनाया। (इफि. 2:13, प्रेरि. 2:39) \v 18 क्योंकि उस ही के द्वारा हम दोनों की एक आत्मा में पिता के पास पहुँच होती है।

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\v 19 इसलिए तुम अब परदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्‍वर के घराने के हो गए, \v 20 और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही मुख्य है, बनाए गए हो, \v 21 जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है, \v 22 जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्‍वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो।
\v 19 इसलिए तुम अब परदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्‍वर के घराने के हो गए, \v 20 और प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की नींव पर जिसके कोने का पत्थर मसीह यीशु आप ही मुख्य है, बनाए गए हो \v 21 जिसमें सारी रचना एक साथ मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है, \v 22 जिसमें तुम भी आत्मा के द्वारा परमेश्‍वर का निवास स्थान होने के लिये एक साथ बनाए जाते हो।

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