From 3e83e620f81046c00c967831dc182e8f65fe35be Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Vachaa Date: Mon, 21 Oct 2024 17:49:06 +0530 Subject: [PATCH] Mon Oct 21 2024 17:49:06 GMT+0530 (India Standard Time) --- 04/11.txt | 5 +---- 04/15.txt | 1 + 04/17.txt | 1 + 04/19.txt | 1 + manifest.json | 6 +++++- 5 files changed, 9 insertions(+), 5 deletions(-) create mode 100644 04/15.txt create mode 100644 04/17.txt create mode 100644 04/19.txt diff --git a/04/11.txt b/04/11.txt index cb3ea81..a26afab 100644 --- a/04/11.txt +++ b/04/11.txt @@ -1,4 +1 @@ -\v 11 \v 12 \v 13 \v 14 हे प्रियों, जब परमेश्‍वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हमको भी आपस में प्रेम रखना चाहिए। -परमेश्‍वर को कभी किसी ने नहीं देखा*; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्‍वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध होता है। -इसी से हम जानते हैं, कि हम उसमें बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उसने अपनी आत्मा में से हमें दिया है। -और हमने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता होने के लिए भेजा है। \ No newline at end of file +\v 11 हे प्रियों, जब परमेश्‍वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हमको भी आपस में प्रेम रखना चाहिए। \p \v 12 परमेश्‍वर को कभी किसी ने नहीं देखा*; यदि हम आपस में प्रेम रखें, तो परमेश्‍वर हम में बना रहता है; और उसका प्रेम हम में सिद्ध होता है। \p \v 13 इसी से हम जानते हैं, कि हम उसमें बने रहते हैं, और वह हम में; क्योंकि उसने अपनी आत्मा में से हमें दिया है। \p \v 14 और हमने देख भी लिया और गवाही देते हैं कि पिता ने पुत्र को जगत का उद्धारकर्ता होने के लिए भेजा है। \ No newline at end of file diff --git a/04/15.txt b/04/15.txt new file mode 100644 index 0000000..ded3e9e --- /dev/null +++ b/04/15.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 15 जो कोई यह मान लेता है, कि यीशु परमेश्‍वर का पुत्र है परमेश्‍वर उसमें बना रहता है, और वह परमेश्‍वर में। \p \v 16 और जो प्रेम परमेश्‍वर हम से रखता है, उसको हम जान गए, और हमें उस पर विश्वास है। परमेश्‍वर प्रेम है; जो प्रेम में बना रहता है वह परमेश्‍वर में बना रहता है; और परमेश्‍वर उसमें बना रहता है। \ No newline at end of file diff --git a/04/17.txt b/04/17.txt new file mode 100644 index 0000000..9453ba0 --- /dev/null +++ b/04/17.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 17 इसी से प्रेम हम में सिद्ध हुआ, कि हमें न्याय के दिन साहस हो; क्योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं। \p \v 18 प्रेम में भय नहीं होता*, वरन् सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय का सम्बन्ध दण्ड से होता है, और जो भय करता है, वह प्रेम में सिद्ध नहीं हुआ। \ No newline at end of file diff --git a/04/19.txt b/04/19.txt new file mode 100644 index 0000000..4141f2e --- /dev/null +++ b/04/19.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 19 हम इसलिए प्रेम करते हैं, क्योंकि पहले उसने हम से प्रेम किया। \p \v 20 यदि कोई कहे, “मैं परमेश्‍वर से प्रेम रखता हूँ,” और अपने भाई से बैर रखे; तो वह झूठा है; क्योंकि जो अपने भाई से, जिसे उसने देखा है, प्रेम नहीं रखता, तो वह परमेश्‍वर से भी जिसे उसने नहीं देखा, प्रेम नहीं रख सकता। \p \v 21 और उससे हमें यह आज्ञा मिली है, कि जो कोई अपने परमेश्‍वर से प्रेम रखता है, वह अपने भाई से भी प्रेम रखे। \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index bc4c200..524afa5 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -62,6 +62,10 @@ "04-01", "04-04", "04-07", - "04-09" + "04-09", + "04-11", + "04-15", + "04-17", + "04-19" ] } \ No newline at end of file