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\v 15 तुम न तो संसार से और न संसार की वस्तुओं से प्रेम रखो यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है। \p \v 16 क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आँखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। (रोम. 13:14, नीति. 27:20) \v 17 संसार और उसकी अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।
\v 15 तुम न तो संसार से और न संसार की वस्तुओं से प्रेम रखो यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है। \v 16 क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आँखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। (रोम. 13:14, नीति. 27:20) \v 17 संसार और उसकी अभिलाषाएँ दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्‍वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।
अन्तिम समय के धोखे

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\v 18 हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आनेवाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इससे हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है। \p \v 19 वे निकले तो हम में से ही, परन्तु हम में से न थे; क्योंकि यदि वे हम में से होते, तो हमारे साथ रहते, पर निकल इसलिए गए ताकि यह प्रगट हो कि वे सब हम में से नहीं हैं।
\v 18 हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आनेवाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इससे हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है। \v 19 वे निकले तो हम में से ही, परन्तु हम में से न थे; क्योंकि यदि वे हम में से होते, तो हमारे साथ रहते, पर निकल इसलिए गए ताकि यह प्रगट हो कि वे सब हम में से नहीं हैं।

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\v 20 और तुम्हारा तो उस पवित्र से अभिषेक हुआ है, और तुम सब जानते हो। \p \v 21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा, कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिए, कि तुम उसे जानते हो, और इसलिए कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं।
\v 20 और तुम्हारा तो उस पवित्र से अभिषेक हुआ है, और तुम सब जानते हो। \v 21 मैंने तुम्हें इसलिए नहीं लिखा, कि तुम सत्य को नहीं जानते, पर इसलिए, कि तुम उसे जानते हो, और इसलिए कि कोई झूठ, सत्य की ओर से नहीं।

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\v 22 झूठा कौन है? वह, जो यीशु के मसीह होने का इन्कार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है। \p \v 23 जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है।
\v 22 झूठा कौन है? वह, जो यीशु के मसीह होने का इन्कार करता है; और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है। \v 23 जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं जो पुत्र को मान लेता है, उसके पास पिता भी है।

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\v 24 जो कुछ तुम ने आरम्भ से सुना है वही तुम में बना रहे; जो तुम ने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे। \p \v 25 और जिसकी उसने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है। \p \v 26 मैंने ये बातें तुम्हें उनके विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं।
\v 24 जो कुछ तुम ने आरम्भ से सुना है वही तुम में बना रहे; जो तुम ने आरम्भ से सुना है, यदि वह तुम में बना रहे, तो तुम भी पुत्र में, और पिता में बने रहोगे। \v 25 और जिसकी उसने हम से प्रतिज्ञा की वह अनन्त जीवन है। \v 26 मैंने ये बातें तुम्हें उनके विषय में लिखी हैं, जो तुम्हें भरमाते हैं।

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\v 27 और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इसका प्रयोजन नहीं, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन् जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो। (यूह. 14:26) \p \v 28 और अब, हे बालकों, उसमें बने रहो*; कि जब वह प्रगट हो, तो हमें साहस हो, और हम उसके आने पर उसके सामने लज्जित न हों। \v 29 यदि तुम जानते हो, कि वह धर्मी है, तो यह भी जानते हो, कि जो कोई धार्मिकता का काम करता है, वह उससे जन्मा है।
\v 27 और तुम्हारा वह अभिषेक, जो उसकी ओर से किया गया, तुम में बना रहता है; और तुम्हें इसका प्रयोजन नहीं, कि कोई तुम्हें सिखाए, वरन् जैसे वह अभिषेक जो उसकी ओर से किया गया तुम्हें सब बातें सिखाता है, और यह सच्चा है, और झूठा नहीं और जैसा उसने तुम्हें सिखाया है वैसे ही तुम उसमें बने रहते हो। (यूह. 14:26) \v 28 और अब, हे बालकों, उसमें बने रहो*; कि जब वह प्रगट हो, तो हमें साहस हो, और हम उसके आने पर उसके सामने लज्जित न हों। \v 29 यदि तुम जानते हो, कि वह धर्मी है, तो यह भी जानते हो, कि जो कोई धार्मिकता का काम करता है, वह उससे जन्मा है।

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\c 3 \v 1 देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँ; इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उसने उसे भी नहीं जाना। \p \v 2 हे प्रियों, अब हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब यीशु मसीह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि हम उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। \p \v 3 और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है*, जैसा वह पवित्र है।
\c 3 \v 1 देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्‍वर की सन्तान कहलाएँ; इस कारण संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उसने उसे भी नहीं जाना। \v 2 हे प्रियों, अब हम परमेश्‍वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब यीशु मसीह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि हम उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। \v 3 और जो कोई उस पर यह आशा रखता है, वह अपने आप को वैसा ही पवित्र करता है*, जैसा वह पवित्र है।
पाप और परमेश्‍वर की संतान

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\v 4 जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; और पाप तो व्यवस्था का विरोध है। \p \v 5 और तुम जानते हो, कि यीशु मसीह इसलिए प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसमें कोई पाप नहीं। (यूह. 1:29) \p \v 6 जो कोई उसमें बना रहता है, वह पाप नहीं करता: जो कोई पाप करता है, उसने न तो उसे देखा है, और न उसको जाना है।
\v 4 जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; और पाप तो व्यवस्था का विरोध है। \v 5 और तुम जानते हो, कि यीशु मसीह इसलिए प्रगट हुआ, कि पापों को हर ले जाए; और उसमें कोई पाप नहीं। (यूह. 1:29) \v 6 जो कोई उसमें बना रहता है, वह पाप नहीं करता: जो कोई पाप करता है, उसने न तो उसे देखा है, और न उसको जाना है।

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\v 7 प्रिय बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धार्मिकता का काम करता है, वही उसके समान धर्मी है। \p \v 8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि
\v 7 प्रिय बालकों, किसी के भरमाने में न आना; जो धार्मिकता का काम करता है, वही उसके समान धर्मी है। \v 8 जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि

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