\v 5 यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में अबिय्याह के फ़रीक़ में से ज़करियाह नाम एक काहिन था और उसकी बीवी हारून की औलाद में से थी और उसका नाम इलीशिबा 'था ।
\v 6 और वो दोनों ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ और ख़ुदावन्द के सब अहकाम-ओ-क़वानीन पर बे- 'ऐब चलने वाले थे .
\v 7 और उनके औलाद न थी क्यूँकि इलीशिबा ' बाँझ थी और दोनों 'उम्र रसीदा थे।
\v 8 जब वो ख़ुदा के हुज़ूर अपने फ़रीक़ की बारी पर इमामत का काम अन्जाम देता था तो ऐसा हुआ , ।
\v 9 कि इमामत के दस्तूर के मुवाफिक उसके नाम की पर्ची निकली कि ख़ुदावन्द के हुज़ूरी में जाकर ख़ुशबू जलाए ।
\v 10 और लोगों की सारी जमा 'अत ख़ुशबू जलाते वक़्त बाहर दुआ कर रही थी ।
\s5
\v 11 अचानक ख़ुदा का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया ।
\v 12 उसे देख कर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया।
\v 13 लेकिन फ़रिश्ते ने उस से कहा, “ज़करियाह, मत डर! ख़ुदा ने तेरी दुआ सुन ली है। तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा। उस का नाम युहन्ना रखना।
\s5
\v 14 वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा, बल्कि बहुत से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे।
\v 15 क्यूँकि वह ख़ुदा के नज़्दीक अज़ीम होगा। ज़रूरी है कि वह मय और शराब से परहेज़ करे। वह पैदा होने से पहले ही रूह-उल-क़ुद्दूस से भरपूर होगा|
\s5
\v 16 और इस्राईली क़ौम में से बहुतों को ख़ुदा उन के ख़ुदा के पास वापस लाएगा।
\v 17 वह एलियाह की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावन्द के आगे आगे चलेगा। उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ माइल हो जाएँगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की अक़्लमंदी की तरफ़ फिरेंगे | यूँ वह इस क़ौम को ख़ुदा के लिए तय्यार करेगा।”
\v 18 ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा, “मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच् है? मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्र रसीदा है।”
\v 19 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “मैं जिब्राईल हूँ जो ख़ुदावंद के सामने खड़ा रहता हूँ। मुझे इसी मक़्सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ।
\v 20 लेकिन तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इस लिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो। मेरी यह बातें अपने वक़्त पर ही पूरी होंगी।”
\s5
\v 21 इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इन्तिज़ार में थे। वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यूँ इतनी देर हो रही है।
\v 22 आख़िरकार वह बाहर आया, लेकिन वह उन से बात न कर सका। तब उन्हों ने जान लिया कि उस ने ख़ुदा के घर में ख़्वाब देखा है। उस ने हाथों से इशारे तो किए, लेकिन ख़ामोश रहा।
\v 23 ज़करियाह अपने वक़्त तक ख़ुदा के घर में अपनी ख़िदमत अन्जाम देता रहा, फिर अपने घर वापस चला गया।
\v 26 इलीशिबा छः माह से हामिला थी जब ख़ुदा ने जिब्राईल फ़रिश्ते को एक कुंवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी। नासरत गलील का एक शहर है और कुंवारी का नाम मरियम था।
\v 27 उस की मंगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिस का नाम यूसुफ़ था।
\v 28 फ़रिश्ते ने उस के पास आ कर कहा, “ऐ ख़ातून जिस पर ख़ुदा का ख़ास फ़ज़्ल हुआ है, सलाम! ख़ुदा तेरे साथ है।”
\v 29 मरियम यह सुन कर घबरा गई और सोचा, “यह किस तरह का सलाम है?”
\s5
\v 30 लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा, “ऐ मरियम, मत डर, क्यूँकि तुझ पर ख़ुदा का फ़ज़ल हुआ है।
\v 31 तू हमिला हो कर एक बेटे को पैदा करेगी । तू उस का नाम ईसा (नजात देने वाला) रखना।
\v 32 वह बड़ा होगा और ख़ुदावंद का बेटा कहलाएगा। ख़ुदा हमारा ख़ुदा उसे उस के बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा
\v 33 और वह हमेशा तक इस्राईल पर हुकूमत करेगा। उस की सल्तनत कभी ख़त्म न होगी।”
\v 35 फ़रिश्ते ने जवाब दिया, “रूह-उल-क़ुद्दूस तुझ पर नाज़िल होगा, ख़ुदावंद की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा। इस लिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और ख़ुदा का बेटा कहलाएगा।
\s5
\v 36 और देख, तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है। गरचे उसे बाँझ क़रार दिया गया था, लेकिन वह छः माह से हामिला है।
\v 37 क्यूँकि ख़ुदा के नज़्दीक कोई काम नामुम्किन नहीं है।”
\v 15 जब फ़रिश्ते उनके पास से आसमान पर चले गए तो ऐसा हुआ कि चरवाहों ने आपस में कहा, "आओ, बैतलहम तक चलें और ये बात जो हुई है और जिसकी ख़ुदावन्द ने हम को ख़बर दी है देखें |"
\v 16 पस उन्होंने जल्दी से जाकर मरियम और यूसुफ़ को देखा और इस बच्चे को चरनी में पड़ा पाया |
\s5
\v 17 उन्हें देखकर वो बात जो उस लड़के के हक़ में उनसे कही गई थी मशहूर की,
\v 18 और सब सुनने वालों ने इन बातों पर जो चरवाहों ने उनसे कहीं ता'ज्जुब किया |
\v 19 मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में रखकर ग़ौर करती रही |
\v 20 और चरवाहे, जैसा उनसे कहा गया था वैसा ही सब कुछ सुन कर और देखकर ख़ुदा की तम्जीद और हम्द करते हुए लौट गए |
\v 33 और उसका बाप और उसकी माँ इन बातों पर जो उसके हक़ में कही जाती थीं, ता'ज्जुब करते थे |
\v 34 और शमा'ऊन ने उनके लिए दु'आ-ए-ख़ैर की और उसकी माँ मरियम से कहा, "देख, ये इस्राईल में बहुतों के गिरने और उठने के लिए मुक़र्रर हुआ है, जिसकी मुख़ालिफ़त की जाएगी |
\v 35 बल्कि तेरी जान भी तलवार से छिद जाएगी, ताकि बहुत लोगों के दिली ख़याल खुल जाएँ |"
\s5
\v 36 और आशर के क़बीले में से हन्ना नाम फ़नूएल की बेटी एक नबीया थी - वो बहुत 'बूढी थी - और उसने अपने कूँवारेपन के बा'द सात बरस एक शौहर के साथ गुज़ारे थे |
\v 37 वो चौरासी बरस से बेवा थी, और हैकल से जुदा न होती थी बल्कि रात दिन रोज़ों और दु'आओं के साथ 'इबादत किया करती थी |
\v 38 और वो उसी घड़ी वहाँ आकर ख़ुदा का शुक्र करने लगी और उन सब से जो यरूशलीम के छुटकारे के मुन्तज़िर थे उसके बारे मे बातें करने लगी |
\s5
\v 39 और जब वो ख़ुदावन्द की शरी'अत के मुवाफ़िक़ सब कुछ कर चुके तो गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए |
\v 1 तिब्रियुस क़ैसर की हुकूमत के पंद्रहवें बरस पुनित्युस पिलातुस यहूदिया का हाकिम था, हेरोदेस गलील का और उसका भाई फिलिप्पुस इतुरिय्या और त्र्खोनीतिस का और लिसानियास अबलेने का हाकिम था |
\v 2 और हन्ना और काइफ़ा सरदार काहिन थे, उस वक़्त ख़ुदा का कलाम वीराने में ज़क्ररियाह के बेटे युहन्ना पर नाज़िल हुआ |
\s5
\v 3 और वो यरदन के आस पास में जाकर गुनाहों की मु'आफ़ी के लिए तौबा के बपतिस्मे का एलान करने लगा |
\s5
\v 4 जैसा यसा'याह नबी के कलाम की किताब में लिखा है : "वीराने में पुकारने वाले की आवाज़ आती है, 'ख़ुदावन्द की राह तैयार करो, उसके रास्ते सीधे बनाओ |
\v 7 पस जो लोग उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आते थे वो उनसे कहता था, "ऐ साँप के बच्चो ! तुम्हें किसने जताया कि आने वाले ग़ज़ब से भागो?"
\s5
\v 8 पस तौबा के मुवाफ़िक़ फल लाओ- और अपने दिलों में ये कहना शुरू' न करो कि अब्राहाम हमारा बाप है क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि ख़ुदा इन पत्थरों से अब्राहाम के लिए औलाद पैदा कर सकता है |
\s5
\v 9 और अब तो दरख़्तों की जड़ पर कुल्हाड़ा रख्खा है पस जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काटा और आग में डाला जाता है |"
\v 15 जब लोग इन्तिज़ार मे थे और सब अपने अपने दिल में युहन्ना के बारे में सोच रहे थे कि आया वो मसीह है या नहीं |
\v 16 तो युहन्ना ने उन से जवाब में कहा, "मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ, मगर जो मुझ से ताक़तवर है वो आनेवाला है, मैं उसकी जूती का फ़ीता खोलने के लायक़ नहीं; वो तुम्हें रूह-उल-क़ुद्दूस और आग से बपतिस्मा देगा | "
\s5
\v 17 उसका सूप उसके हाथ में है; ताकि वो अपने खलिहान को ख़ूब साफ़ करे और गेहूँ को अपने खत्ते में जमा' करे, मगर भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं |"
\v 18 पस वो और बहुत सी नसीहत करके लोगों को ख़ुशख़बरी सूनाता रहा |
\v 19 लेकिन चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की बीवी हेरोदियास की वजह से और उन सब बुराईयों के बा'इस जो हेरोदेस ने की थी, युहन्ना से मलामत उठाकर,
\v 20 इन सब से बढ़कर ये भी किया कि उसको क़ैद में डाला |
\v 18 "ख़ुदावन्द का रूह मुझ पर है, इसलिए कि उसने मुझे ग़रीबों को ख़ुशख़बरी देने के लिए मसह किया; उसने मुझे भेजा है क़ैदियों को रिहाई और अन्धों को बीनाई पाने की ख़बर सूनाऊँ, कुचले हुओं को आज़ाद करूँ |
\v 23 उसने उनसे कहा "तुम अलबता ये मसल मुझ पर कहोगे कि, 'ऐ हकीम, अपने आप को तो अच्छा कर ! जो कुछ हम ने सुना है कि कफ़रनहुम में किया गया, यहाँ अपने वतन में भी कर'|"
\v 24 और उसने कहा, "मैं तुम से सच कहता हूँ, कि कोई नबी अपने वतन में मक़बूल नहीं होत्ता |"
\s5
\v 25 और मैं तुम से कहता हूँ, कि एलियाह के दिनों में जब साढ़े तीन बरस आसमान बन्द रहा, यहाँ तक कि सारे मुल्क में सख़्त काल पड़ा, बहुत सी बेवायें इस्राईल में थीं |
\v 26 लेकिन एलियाह उनमें से किसी के पास न भेजा गया, मगर मुल्क-ए-सैदा के शहर सारपत में एक बेवा के पास
\v 27 और इलिशा नबी के वक़्त में इस्राईल के बीच बहुत से कोढ़ी थे, लेकिन उनमे से कोई पाक साफ़ न किया गया मगर ना'मान सूरयानी |"
\s5
\v 28 जितने 'इबादतख़ाने में थे, इन बातों को सुनते ही ग़ुस्से से भर गए,
\v 29 और उठकर उस को बाहर निकाले और उस पहाड़ की चोटी पर ले गए जिस पर उनका शहर आबाद था, ताकि उसको सिर के बल गिरा दें |
\v 40 और सूरज के डूबते वक़्त वो सब लोग जिनके यहाँ तरह-तरह की बीमारियों के मरीज़ थे, उन्हें उसके पास लाए और उसने उनमें से हर एक पर हाथ रख कर उन्हें अच्छा किया |
\v 41 और बदरूहें भी चिल्लाकर और ये कहकर कि, "तू ख़ुदा का बेटा है" बहुतों में से निकल गई, और वो उन्हें झिड़कता और बोलने न देता था, क्यूँकि वो जानती थीं के ये मसीह है |
\v 5 शमा'ऊन ने जवाब में कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! हम ने रात भर मेहनत की और कुछ हाथ न आया, मगर तेरे कहने से जाल डालता हूँ |"
\v 6 ये किया और वो मछलियों का बड़ा घेर लाए, और उनके जाल फ़टने लगे |
\v 7 और उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे इशारा किया कि आओ हमारी मदद करो | पस उन्होंने आकर दोनों नावे यहाँ तक भर दीं कि डूबने लगीं |
\s5
\v 8 शमा'ऊन पतरस ये देखकर ईसा' के पांव में गिरा और कहा, "ऐ ख़ुदावन्द ! मेरे पास से चला जा, क्यूँकि मैं गुनहगार आदमी हूँ |"
\v 9 क्यूँकि मछलियों के इस शिकार से जो उन्होंने किया, वो और उसके सब साथी बहुत हैरान हुए |
\v 10 और वैसे ही ज़ब्दी के बेटे या'क़ूब और युहन्ना भी जो शमा'ऊन के साथी थे, हैरान हुए | ईसा' ने शमा'ऊन से कहा, " ख़ौफ़ न कर, अब से तू आदमियों का शिकार करेगा |"
\v 11 वो नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए |
\v 12 जब वो एक शहर में था, तो देखो, कोढ़ से भरा हुआ एक आदमी ईसा' को देखकर मुँह के बल गिरा और उसकी मिन्नत करके कहने लगा, "ऐ ख़ुदावन्द, अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है |"
\v 14 और उसने उसे ताकीद की, "किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आपको काहिन को दिखा | और जैसा मूसा ने मुक़र्रर किया है अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे मे गुज़रान ताकि उनके लिए गवाही हो |"
\s5
\v 15 लेकिन उसकी चर्चा ज़्यादा फ़ैली और बहुत से लोग जमा' हुए कि उसकी सुनें और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाएँ
\v 16 मगर वो जंगलों में अलग जाकर दु'आ किया करता था |
\v 17 और एक दिन ऐसा हुआ कि वो ता'लीम दे रहा था और फ़रीसी और शरा' के मु'अल्लिम वहाँ बैठे हुए थे जो गलील के हर गावँ और यहूदिया और यरूशलीम से आए थे | और ख़ुदावन्द की क़ुदरत शिफ़ा बख़्शने को उसके साथ थी |
\s5
\v 18 और देखो, कोई मर्द एक आदमी को जो फ़ालिज का मारा था चारपाई पर लाए और कोशिश की कि उसे अन्दर लाकर उसके आगे रख्खें |
\v 19 और जब भीड़ की वजह से उसको अन्दर ले जाने की राह न पाई तो छत पर चढ़ कर खपरैल में से उसको खटोले समेत बीच में ईसा' के सामने उतार दिया |
\s5
\v 20 उसने उनका ईमान देखकर कहा, "ऐ आदमी ! तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए !"
\v 22 ईसा' ने उनके ख़यालों को मा'लूम करके जवाब में उनसे कहा, "तुम अपने दिलों में क्या सोचते हो?"
\v 23 आसान क्या है? ये कहना कि 'तेरे गुनाह मु'आफ़ हुए' या ये कहना कि 'उठ और चल फिर'?
\v 24 लेकिन इसलिए कि तुम जानो कि इब्न-ए-आदम को ज़मीन पर गुनाह मु'आफ़ करने का इख़्तियार है; (उसने मफ़्लूज से कहा) मैं तुझ से कहता हूँ, उठ और अपनी चारपाई उठाकर अपने घर जा |"
\s5
\v 25 वो उसी दम उनके सामने उठा और जिस पर पड़ा था उसे उठाकर ख़ुदा की तम्जीद करता हुआ अपने घर चला गया |
\v 34 ईसा' ने उनसे कहा, "क्या तुम बरातियों से, जब तक दूल्हा उनके साथ है, रोज़ा रखवा सकते हो?
\v 35 मगर वो दिन आएँगे; और जब दूल्हा उनसे जुदा किया जाएगा तब उन दिनों में वो रोज़ा रख्खेंगे |"
\s5
\v 36 और उसने उनसे एक मिसाल भी कही: "कोई आदमी नई पोशाक में से फाड़कर पुरानी में पैवन्द नहीं लगाता,वरना नई भी फटेगी और उसका पैवन्द पुरानी में मेल भी न खाएगा |"
\s5
\v 37 और कोई शख़्स नई मय पूरानी मशकों में नहीं भरता, नहीं तो नई मय मशकों को फाड़ कर ख़ुद भी बह जाएगी और मशकें भी बर्बाद हो जाएँगी |
\v 38 बल्कि नई मय नयी मशकों में भरना चाहिए |
\v 39 और कोई आदमी पुरानी मय पीकर नई की ख़्वाहिश नहीं करता, क्यूँकि कहता है कि पुरानी ही अच्छी है |"
\v 12 और उन दिनों में ऐसा हुआ कि वो पहाड़ पर दु'आ करने को निकला और ख़ुदा से दु'आ करने में सारी रात गुज़ारी |
\v 13 जब दिन हुआ तो उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनमे से बारह चुन लिए और उनको रसूल का लक़ब दिया :
\s5
\v 14 या'नी शमा'ऊन जिसका नाम उसने पतरस भी रख्खा, और अन्द्रियास, और या'क़ूब, और युहन्ना, और फ़िलिप्पुस, और बरतुल्माई,
\v 15 और मत्ती, और तोमा, और हलफ़ई का बेटा या'क़ूब, और शमा'ऊन जो ज़ेलोतेस कहलाता था,
\v 16 और या'क़ूब का बेटा यहुदाह, और यहुदाह इस्करियोती जो उसका पकड़वाने वाला हुआ |
\s5
\v 17 और वो उनके साथ उतर कर हमवार जगह पर खड़ा हुआ, और उसके शागिर्दों की बड़ी जमा'अत और लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ थी, जो सारे यहुदिया और यरूशलीम और सूर और सैदा के बहरी किनारे से उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाने के लिए उसके पास आई थी |
\v 18 और जो बदरूहों से दुख पाते थे वो अच्छे किए गए |
\v 19 और सब लोग उसे छूने की कोशिश करते थे, क्यूँकि क़ूव्वत उससे निकलती और सब को शिफ़ा बख़्शती थी |
\v 23 "उस दिन ख़ुश होना और ख़ुशी के मारे उछलना, इसलिए कि देखो आसमान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है; क्यूँकि उनके बाप-दादा नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे |
\v 27 "लेकिन मैं सुनने वालों से कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, जो तुम से 'दुश्मनी रख्खें उसके साथ नेकी करो |
\v 28 जो तुम पर ला'नत करें उनके लिए बरकत चाहो, जो तुमसे नफरत करें उनके लिए दु'आ करो |
\s5
\v 29 जो तेरे एक गाल पर तमाँचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे, और जो तेरा चोग़ा ले उसको कुर्ता लेने से भी मना' न कर |
\v 30 जो कोई तुझ से माँगे उसे दे, और जो तेरा माल ले ले उससे तलब न कर |
\s5
\v 31 और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उनके साथ वैसा ही करो |
\v 32 "अगर तुम अपने मुहब्बत रखनेवालों ही से मुहब्बत रख्खो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनाहगार भी अपने मुहब्बत रखनेवालों से मुहब्बत रखते हैं |
\v 33 और अगर तुम उन ही का भला करो जो तुम्हारा भला करें, तो तुम्हारा क्या अहसान है? क्यूँकि गुनहगार भी ऐसा ही करते हैं |
\v 34 और अगर तुम उन्हीं को क़र्ज़ दो जिनसे वसूल होने की उम्मीद रखते हो, तो तुम्हारा क्या अहसान है? गुनहगार भी गुनहगारों को क़र्ज़ देते हैं ताकि पूरा वसूल कर लें
\s5
\v 35 मगर तुम अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो, और नेकी करो, और बग़ैर न उम्मीद हुए क़र्ज़ दो तो तुम्हारा अज्र बड़ा होगा और तुम ख़ुदा के बेटे ठहरोगे, क्यूँकि वो न-शुक्रों और बदों पर भी महरबान है |
\v 36 जैसा तुम्हारा आसमानी बाप रहीम है तुम भी रहम दिल हो |
\s5
\v 37 'ऐबजोई ना करो, तुम्हारी भी 'ऐबजोई न की जाएगी | मुजरिम न ठहराओ,तुम भी मुजरिम ना ठहराये जाओगे | इज्ज़त दो, तुम भी इज्ज़त पाओगे |
\s5
\v 38 दिया करो, तुम्हें भी दिया जाएगा | अच्छा पैमाना दाब-दाब कर और हिला-हिला कर और लबरेज़ करके तुम्हारे पल्ले में डालेंगे, क्यूँकि जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा |"
\v 39 और उसने उनसे एक मिसाल भी दी" क्या अंधे को अँधा राह दिखा सकता है ? क्या दोनों गड्ढे में न गिरेंगे?"
\v 40 शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं, बल्कि हर एक जब कामिल हुआ तो अपने उस्ताद जैसा होगा |
\s5
\v 41 तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है, और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता?
\v 42 और जब तू अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखता तो अपने भाई से क्यूँकर कह सकता है, कि भाई ला उस तिनके को जो तेरी आँख में है निकाल दूँ? ऐ रियाकार | पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल, फिर उस तिनके को जो तेरे भाई की आँख में है अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा |
\s5
\v 43 "क्यूँकि कोई अच्छा दरख्त नहीं जो बुरा फल लाए, और न कोई बुरा दरख़्त है जो अच्छा फल लाए |
\v 44 हर दरख़्त अपने फल से पहचाना जाता है, क्यूँकि झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते और न झड़बेरी से अंगूर |
\s5
\v 45 "अच्छा आदमी अपने दिल के अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है, और बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है; क्यूँकि जो दिल में भरा है वही उसके मुँह पर आता है |"
\v 46 जब तुम मेरे कहने पर 'अमल नहीं करते तो क्यूँ मुझे 'ख़ुदावन्द, ख़ुदावन्द' कहते हो |
\v 47 जो कोई मेरे पास आता और मेरी बातें सुनकर उन पर 'अमल करता है, मैं तुम्हें बताता हूँ कि वो किसकी तरह है |
\v 48 वो उस आदमी की तरह है जिसने घर बनाते वक़्त ज़मीन गहरी खोदकर चट्टान पर बुनियाद डाली, जब तूफ़ान आया और सैलाब उस घर से टकराया, तो उसे हिला न सका क्यूँकि वो मज़बूत बना हुआ था ||
\s5
\v 49 लेकिन जो सुनकर 'अमल में नहीं लाता वो उस आदमी की तरह है जिसने ज़मीन पर घर को बे-बुनियाद बनाया, जब सैलाब उस पर ज़ोर से आया तो वो फ़ौरन गिर पड़ा और वो घर बिलकुल बर्बाद हुआ |"
\v 6 ईसा' उनके साथ चला मगर जब वो घर के क़रीब पहुँचा तो सूबेदार ने कुछ दोस्तों के ज़रिये उसे ये कहला भेजा, "ऐ ख़ुदावन्द तक्लीफ़ न कर, क्यूँकि मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए |"
\v 7 इसी वजह से मैंने अपने आप को भी तेरे पास आने के लायक़ न समझा, बलकि ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा |
\v 8 क्यूँकि मैं भी दूसरे के ताबे में हूँ, और सिपाही मेरे मातहत हैं; जब एक से कहता हूँ कि 'जा' वो जाता है, और दूसरे से कहता हूं 'आ' तो वो आता है; और अपने नौकर से कि 'ये कर' तो वो करता है |"
\v 9 ईसा' ने ये सुनकर उस पर ता'ज्जुब किया, और मुड़ कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आती थी कहा, "मैं तुम से कहता हूँ कि मैंने ऐसा ईमान इस्राईल में भी नहीं पाया |"
\v 10 और भेजे हुए लोगों ने घर में वापस आकर उस नौकर को तन्दुरुस्त पाया |
\v 11 थोड़े 'अरसे के बा'द ऐसा हुआ कि वो नाईंन नाम एक शहर को गया | उसके शागिर्द और बहुत से लोग उसके हमराह थे |
\v 12 जब वो शहर के फाटक के नज़दीक पहुँचा तो देखो, एक मुर्दे को बाहर लिए जाते थे | वो अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वो बेवा थी, और शहर के बहुतरे लोग उसके साथ थे |
\v 13 उसे देखकर ख़ुदावन्द को तरस आया और उससे कहा, "मत रो !"
\v 14 फिर उसने पास आकर जनाज़े को छुआ और उठाने वाले खड़े हो गए | और उसने कहा, ऐ जवान, मैं तुझ से कहता हूँ, उठ !"
\v 15 वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा |और उसने उसे उसकी माँ को सुपुर्द किया |
\v 21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और आफ़तों और बदरूहों से नजात बख़्शी और बहुत से अन्धों को बीनाई 'अता की |
\v 22 उसने जवाब में उनसे कहा, "जो कुछ तुम ने देखा और सुना है जाकर युहन्ना से बयान कर दो कि अन्धे देखते, लंगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं, बहरे सुनते हैं मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं, ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है |
\v 24 जब युहन्ना के क़ासिद चले गए तो ईसा' युहन्ना' के हक़ में कहने लगा, "तुम वीराने में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को?"
\v 25 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को? देखो, जो चमकदार पोशाक पहनते और 'ऐश-ओ-'इशरत में रहते हैं, वो बादशाही महलों में होते हैं|
\v 26 तो फिर तुम क्या देखने गए थे? क्या एक नबी? हाँ, मैं तुम से कहता हूँ, बल्कि नबी से बड़े को |
\s5
\v 27 ये वही है जिसके बारे मे लिखा है : 'देख, मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ, जो तेरी राह तेरे आगे तैयार करेगा |'
\v 28 मैं तुम से कहता हूँ कि जो 'औरतों से पैदा हुए है, उनमें युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं लेकिन जो ख़ुदा की बादशाही में छोटा है वो उससे बड़ा है |"
\s5
\v 29 और सब 'आम लोगों ने जब सुना, तो उन्होंने और महसूल लेने वालों ने भी युहन्ना का बपतिस्मा लेकर ख़ुदा को रास्तबाज़ मान लिया |
\v 30 मगर फरीसियों और शरा' के 'आलिमों ने उससे बपतिस्मा न लेकर ख़ुदा के इरादे को अपनी निस्बत बातिल कर दिया |
\s5
\v 31 "पस इस ज़माने के आदमियों को मैं किससे मिसाल दूँ, वो किसकी तरह हैं?"
\v 32 उन लड़कों की तरह हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं कि हम ने तुम्हारे लिए बांसली बजाई और तुम न नाचे, हम ने मातम किया और तुम न रोए |
\s5
\v 33 क्यूँकि युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न तो रोटी खाता हुआ आया न मय पीता हुआ और तुम कहते हो कि उसमें बदरूह है |
\v 34 इब्न-ए-आदम खाता पीता आया और तुम कहते हो कि देखो, खाऊ और शराबी आदमी, महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार |
\v 35 लेकिन हिक्मत अपने सब लड़कों की तरफ़ से रास्त साबित हुई |"
\v 36 फिर किसी फ़रीसी ने उससे दरख़्वास्त की कि मेरे साथ खाना खा, पस वो उस फ़रीसी के घर जाकर खाना खाने बैठा |
\v 37 तो देखो, एक बदचलन 'औरत जो उस शहर की थी, ये जानकर कि वो उस फ़रीसी के घर में खाना खाने बैठा है, संग-ए-मरमर के 'इत्रदान में 'इत्र लाई;
\v 38 और उसके पाँव के पास रोती हुई पीछे खड़े होकर, उसके पाँव आँसुओं से भिगोने लगी और अपने सिर के बालों से उनको पोंछा, और उसके पाँव बहुत चूमे और उन पर इत्र डाला |
\s5
\v 39 उसकी दा'वत करने वाला फ़रीसी ये देख कर अपने जी में कहने लगा, "अगर ये शख़्स नबी "होता तो जानता कि जो उसे छूती है वो कौन और कैसी 'औरत है, क्यूँकि बदचलन है |"
\v 43 शमा'ऊन ने जवाब में कहा, "मेरी समझ में वो जिसे उसने ज़्यादा बख़्शा |" उसने उससे कहा, "तू ने ठीक फ़ैसला किया है |"
\s5
\v 44 और उस 'औरत की तरफ़ फिर कर उसने शमा'ऊन से कहा, "क्या तू इस 'औरत को देखता है? मैं तेरे घर में आया, तू ने मेरे पाँव धोने को पानी न दिया; मगर इसने मेरे पावँ आँसुओं से भिगो दिए, और अपने बालों से पोंछे |"
\v 45 तू ने मुझ को बोसा न दिया, मगर इसने जब से मैं आया हूँ मेरे पावँ चूमना न छोड़ा |
\s5
\v 46 तू ने मेरे सिर में तेल न डाला, मगर इसने मेरे पाँव पर 'इत्र डाला है |
\v 47 इसी लिए मैं तुझ से कहता हूँ कि इसके गुनाह जो बहुत थे मु'आफ़ हुए क्यूँकि इसने बहुत मुहब्बत की, मगर जिसके थोड़े गुनाह मु'आफ़ हुए वो थोड़ी मुहब्बत करता है |"
\v 9 उसके शागिर्दों ने उससे पूछा कि ये मिसाल क्या है |
\v 10 उसने कहा, "तुम को ख़ुदा की बादशाही के राज़ों की समझ दी गई है, मगर औरों को मिसाल में सुनाया जाता है, ताकि 'देखते हुए न देखें, और सुनते हुए न समझें|'
\s5
\v 11 वो मिसाल ये है, कि बीज ख़ुदा का कलाम है|
\v 12 राह के किनारे के वो हैं, जिन्होंने सुना फिर शैतान आकर कलाम को उनके दिल से छीन ले जाता है ऐसा न हो कि वो ईमान लाकर नजात पाएँ |
\v 13 और चट्टान पर वो हैं जो सुनकर कलाम को ख़ुशी से क़ुबूल कर लेते हैं, लेकिन जड़ नहीं पकड़ते मगर कुछ 'अरसे तक ईमान रख कर आज़माइश के वक़्त मुड़ जाते हैं |
\s5
\v 14 और जो झाड़ियों में पड़ा उससे वो लोग मुराद हैं, जिन्होंने सुना लेकिन होते होते इस ज़िन्दगी की फ़िक्रों और दौलत और 'ऐश-ओ-'इशरत में फँस जाते हैं और उनका फल पकता नहीं |
\v 15 मगर अच्छी ज़मीन के वो हैं, जो कलाम को सुनकर 'उम्दा और नेक दिल में सम्भाले रहते है और सब्र से फल लाते हैं |
\v 22 फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वो और उसके शागिर्द नाव में सवार हुए | उसने उनसे कहा, "आओ, झील के पार चलें वो सब रवाना हुए |"
\v 23 मगर जब नाव चली जाती थी तो वो सो गया | और झील पर बड़ी आँधी आई और नाव पानी से भरी जाती थी और वो ख़तरे में थे |
\s5
\v 24 उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा, "साहेब ! साहेब ! हम हलाक हुए जाते हैं !" उसने उठकर हवा को और पानी के ज़ोर-शोर को झिड़का और दोनों थम गए और अम्न हो गया |
\v 25 उसने उनसे कहा, "तुम्हारा ईमान कहाँ गया? वो डर गए और ता'अज्जुब करके आपस में कहने लगे, "ये कौन है? ये तो हवा और पानी को हुक्म देता है और वो उसकी मानते हैं !"
\v 26 फिर वो गिरासीनियों के 'इलाक़े में जा पहुँचे जो उस पार गलील के सामने है |
\v 27 जब वो किनारे पर उतरा तो शहर का एक मर्द उसे मिला जिसमें बदरूहें थीं, और उसने बड़ी मुद्दत से कपड़े न पहने थे और वो घर में नहीं बल्कि क़ब्रों में रहा करता था |
\s5
\v 28 वो ईसा' को देख कर चिल्लाया और उसके आगे गिर कर बुलन्द आवाज़ से कहने लगा, "ऐ ईसा' ! ख़ुदा के बेटे, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे 'अजाब में न डाल |"
\v 29 क्यूँकि वो उस बदरूह को हुक्म देता था कि इस आदमी में से निकल जा, इसलिए कि उसने उसको अक्सर पकड़ा था; और हर चन्द लोग उसे ज़ंजीरो और बेड़ियों से जकड़ कर क़ाबू में रखते थे, तो भी वो जंजीरों को तोड़ डालता था और बदरुह उसको वीरानों में भगाए फिरती थी |
\v 30 ईसा' ने उससे पूछा, "तेरा क्या नाम है ? उसने कहा, "लश्कर !" क्यूँकि उसमें बहुत सी बदरुहें थीं |
\v 31 और वो उसकी मिन्नत करने लगीं कि हमें गहरे गड्ढे में जाने का हुक्म न दे |
\s5
\v 32 वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा ग़ोल चर रहा था | उन्होंने उसकी मिन्नत की कि हमें उनके अन्दर जाने दे; उसने उन्हें जाने दिया |
\v 33 और बदरुहें उस आदमी में से निकल कर सूअरों के अन्दर गईं और ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और डूब मरा |
\s5
\v 34 ये माजरा देख कर चराने वाले भागे और जाकर शहर और गांव में ख़बर दी |
\v 35 लोग उस माजरे को देखने को निकले, और ईसा' के पास आकर उस आदमी को जिसमें से बदरुहें निकली थीं, कपड़े पहने और होश में ईसा' के पाँव के पास बैठे पाया और डर गए |
\s5
\v 36 और देखने वालों ने उनको ख़बर दी कि जिसमें बदरुहें थीं वो किस तरह अच्छा हुआ |
\v 37 गिरासीनियों के आस पास के सब लोगों ने उससे दरख़्वास्त की कि हमारे पास से चला जा; क्यूँकि उन पर बड़ी दहशत छा गई थी | पस वो नाव में बैठकर वापस गया |
\v 38 लेकिन जिस शख़्स में से बदरुहें निकल गई थीं, वो उसकी मिन्नत करके कहने लगा कि मुझे अपने साथ रहने दे, मगर ईसा' ने उसे रुख़्सत करके कहा,
\v 39 "अपने घर को लौट कर लोगों से बयान कर, कि ख़ुदा ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए हैं |" वो रवाना होकर तमाम शहर में चर्चा करने लगा कि ईसा' ने मेरे लिए कैसे बड़े काम किए |
\v 43 और एक 'औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था, और अपना सारा माल हकीमों पर ख़र्च कर चुकी थी, और किसी के हाथ से अच्छी न हो सकी थी;
\v 44 उसके पीछे आकर उसकी पोशाक का किनारा हुआ, और उसी दम उसका ख़ून बहना बन्द हो गया |
\s5
\v 45 इस पर ईसा' ने कहा, "वो कौन है जिसने मुझे छुआ?" जब सब इन्कार करने लगे तो पतरस और उसके साथियों ने कहा, "ऐ साहेब ! लोग तुझे दबाते और तुझ पर गिरे पड़ते हैं |"
\v 46 मगर ईसा' ने कहा, "किसी ने मुझे छुआ तो है, क्यूँकि मैंने मा'लूम किया कि क़ुव्वत मुझ से निकली है |"
\s5
\v 47 जब उस 'औरत ने देखा कि मैं छिप नहीं सकती, तो वो काँपती हुई आई और उसके आगे गिरकर सब लोगों के सामने बयान किया कि मैंने किस वजह से तुझे छुआ, और किस तरह उसी दम शिफ़ा पा गई |
\v 48 उसने उससे कहा, "बेटी ! तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है, सलामत चली जा |"
\v 10 फिर रसूलों ने जो कुछ किया था लौटकर उससे बयान किया; और वो उनको अलग लेकर बैतसैदा नाम एक शहर को चला गया |
\v 11 ये जानकर भीड़ उसके पीछे गई और वो ख़ुशी के साथ उनसे मिला और उनसे ख़ुदा की बादशाही की बातें करने लगा, और जो शिफ़ा पाने के मुहताज थे उन्हें शिफ़ा बख़्शी |
\s5
\v 12 जब दिन ढलने लगा तो उन बारह ने आकर उससे कहा, "भीड़ को रुख़्सत कर के चारों तरफ़ के गावँ और बस्तियों में जा टिकें और खाने का इन्तिज़ाम करें |"क्यूँकि हम यहाँ वीरान जगह में हैं |
\v 13 उसने उनसे कहा, "तुम ही उन्हें खाने को दो "उन्होंने कहा,“ हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है, मगर हाँ हम जा जाकर इन सब लोगों के लिए खाना मोल ले आएँ |”
\v 14 क्यूँकि वो पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे | उसने अपने शागिर्दों से कहा, "उनको तक़रीबन पचास-पचास की क़तारों में बिठाओ |"
\s5
\v 15 उन्होंने उसी तरह किया और सब को बिठाया |
\v 16 फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर उन पर बरकत बख़्शी, और तोड़कर अपने शागिर्दों को देता गया कि लोगों के आगे रख्खें |
\v 17 उन्होंने खाया और सब सेर हो गए, और उनके बचे हुए बे इस्तेमाल खाने की बारह टोकरियाँ उठाई गईं |
\v 28 फिर इन बातों के कोई आठ रोज़ बा'द ऐसा हुआ, कि वो पतरस और युहन्ना और या'क़ूब को साथ लेकर पहाड़ पर दु'आ करने गया |`
\v 29 जब वो दु'आ कर रहा था, तो ऐसा हुआ कि उसके चेहरे की सूरत बदल गई, और उसकी पोशाक सफ़ेद बर्राक़ हो गई |
\s5
\v 30 और देखो, दो शख़्स या'नी मूसा और एलियाह उससे बातें कर रहे थे |
\v 31 ये जलाल में दिखाई दिए और उसके इन्तक़ाल का ज़िक्र करते थे, जो यरूशीलम में वाक़े' होने को था |
\s5
\v 32 मगर पतरस और उसके साथी नींद में पड़े थे और जब अच्छी तरह जागे, तो उसके जलाल को और उन दो शख़्शों को देखा जो उसके साथ खड़े थे |
\v 33 जब वो उससे जुदा होने लगे तो ऐसा हुआ कि पतरस ने ईसा ' से कहा, “ऐ उस्ताद ! हमारा यहाँ रहना अच्छा है : पस हम तीन डेरे बनाएँ, एक तेरे लिए एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए।” लेकिन वो जानता न था कि क्या कहता है।
\s5
\v 34 वो ये कहता ही था कि बादल ने आकर उन पर साया कर लिया, और जब वो बादल में घिरने लगे तो डर गए |
\v 35 और बादल में से एक आवाज़ आई, "ये मेरा चुना हुआ बेटा है, इसकी सुनो |"|
\v 36 ये आवाज़ आते ही ईसा' अकेला दिखाई दिया; और वो चुप रहे, और जो बातें देखी थीं उन दिनों में किसी को उनकी कुछ ख़बर न दी |
\v 46 फिर उनमें ये बहस शुरू' हुई, कि हम में से बड़ा कौन है?
\v 47 लेकिन ईसा' ने उनके दिलों का ख़याल मा'लूम करके एक बच्चे को लिया, और अपने पास खड़ा करके उनसे कहा,
\v 48 “जो कोई इस बच्चे को मेरे नाम से क़ुबूल करता है, वो मुझे क़ुबूल करता है; और जो मुझे क़ुबूल करता है, वो मेरे भेजनेवाले को क़ुबूल करता है; क्यूँकि जो तुम में सब से छोटा है वही बड़ा है”
\v 49 युहन्ना ने जवाब में कहा, "ऐ उस्ताद ! हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूह निकालते देखा, और उसको मना' करने लगे, क्यूँकि वो हमारे साथ तेरी पैरवी नही करता |"
\v 50 लेकिन ईसा ' ने उससे कहा, “उसे मना' न करना, क्यूँकि जो तुम्हारे खिलाफ़ नहीं वो तुम्हारी तरफ़ है |”
\v 51 जब वो दिन नज़दीक आए कि वो ऊपर उठाया जाए, तो ऐसा हुआ कि उसने यरूशलीम जाने को कमर बाँधी |
\v 52 और आगे क़ासिद भेजे, वो जाकर सामरियों के एक गावँ में दाख़िल हुए ताकि उसके लिए तैयारी करें
\v 53 लेकिन उन्होंने उसको टिकने न दिया, क्यूँकि उसका रुख यरूशलीम की तरफ़ था |
\s5
\v 54 ये देखकर उसके शागिर्द या'क़ूब और युहन्ना ने कहा, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू चाहता है कि हम हुक्म दें कि आसमान से आग नाज़िल होकर उन्हें भस्म कर दे [जैसा एलियाह ने किया?"]
\v 55 मगर उसने फिरकर उन्हें झिड़का [और कहा, "तुम नहीं जानते कि तुम कैसी रूह के हो |क्यूँकि इब्न-ए-आदम लोगों की जान बर्बाद करने नहीं बल्कि बचाने आया है |"]
\v 1 इन बातों के बा'द ख़ुदावन्द ने सत्तर आदमी और मुक़र्रर किए, और जिस जिस शहर और जगह को ख़ुद जाने वाला था वहाँ उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा |
\v 2 और वो उनसे कहने लगा, " फ़सल तो बहुत है, लेकिन मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के मालिक की मिन्नत करो कि अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूर भेजे |"
\s5
\v 3 जाओ; देखो, मैं तुम को गोया बर्रों को भेड़ियों के बीच मैं भेजता हूँ |
\v 4 न बटुवा ले जाओ न झोली, न जूतियाँ और न राह में किसी को सलाम करो |
\s5
\v 5 और जिस घर में दाखिल हो पहले कहो,'इस घर की सलामती हो।'
\v 6 अगर वहाँ कोई सलामती का फ़र्ज़न्द होगा तो तुम्हारा सलाम उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम पर लौट आएगा |
\v 7 उसी घर में रहो और जो कुछ उनसे मिले खाओ-पीओ, क्यूँकि मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है, घर घर न फिरो |
\s5
\v 8 जिस शहर में दाख़िल हो वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल करें, तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए खाओ;
\v 9 और वहाँ के बीमारों को अच्छा करो और उनसे कहो, 'ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे नज़दीक आ पहुँची है |'
\s5
\v 10 लेकिन जिस शहर में तुम दाख़िल हो और वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल न करें, तो उनके बाज़ारों में जाकर कहो कि,
\v 11 'हम इस गर्द को भी जो तुम्हारे शहर से हमारे पैरों में लगी है तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं, मगर ये जान लो कि ख़ुदा की बादशाही नज़दीक आ पहुँची है |'
\v 12 मैं तुम से कहता हूँ कि उस दिन सदोम का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा |
\s5
\v 13 "ऐ ख़ुराज़ीन शहर , तुझ पर अफ़सोस ! ऐ बैतसैदा शहर , तुझ पर अफ़सोस ! क्यूँकि जो मो'जिज़े तुम में ज़ाहिर हुए अगर सूर और सैदा शहर में ज़ाहिर होते , तो वो टाट ओढ़कर और ख़ाक में बैठकर कब के तौबा कर लेते |"
\v 14 मगर 'अदालत में सूर और सैदा शहर का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा |
\v 15 और तू ऐ कफ़र्नहूम, क्या तू आसमान तक बुलन्द किया जाएगा? नहीं, बल्कि तू 'आलम-ए-अर्वाह में उतारा जाएगा |
\s5
\v 16 "जो तुम्हारी सुनता है वो मेरी सुनता है, और जो तुम्हें नहीं मानता वो मुझे नहीं मानता, और जो मुझे नहीं मानता वो मेरे भेजनेवाले को नहीं मानता |"
\v 18 उसने उनसे कहा, "मैं शैतान को बिजली की तरह आसमान से गिरा हुआ देख रहा था |"
\v 19 देखो, मैंने तुम को इख़्तियार दिया कि साँपों और बिच्छुओं को कुचलो और दुश्मन की सारी क़ुदरत पर ग़ालिब आओ, और तुम को हरगिज़ किसी चीज़ से नुक़सान न पहुंचेगा |
\v 20 तोभी इससे ख़ुश न हो कि रूहें तुम्हारे ताबे' हैं बल्कि इससे ख़ुश हो कि तुम्हारे नाम आसमान पर लिखे हुए है |"
\v 21 उसी घड़ी वो रु-उल-क़ुद्दूस से ख़ुशी में भर गया और कहने लगा, "ऐ बाप ! आसमान और ज़मीन के ख़ुदावन्द, में तेरी हम्द करता हूँ कि तूने ये बातें होशियारों और 'अक़्लमन्दों से छिपाई और बच्चों पर ज़ाहिर कीं हाँ, ऐ, बाप क्यूँकि ऐसा ही तुझे पसंद आया |"
\s5
\v 22 मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया; और कोई नहीं जानता कि बेटा कौन है सिवा बाप के, और कोई नहीं जानता कि बाप कौन है सिवा बेटे के और उस शख़्स के जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे |"
\s5
\v 23 और शागिर्दों की तरफ़ मूख़ातिब होकर ख़ास उन्हीं से कहा, "मुबारक है वो आँखें जो ये बातें देखती हैं जिन्हें तुम देखते हो |"
\v 24 क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से नबियों और बादशाहों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो देखें मगर न देखी, और जो बातें तुम सुनते हो सुनें मगर न सुनीं |"
\v 27 उसने जवाब में कहा, "ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपनी सारी ताक़त और अपनी सारी 'अक़्ल से मुहब्बत रख और अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख |"
\v 30 ईसा' ने जवाब में कहा, “ एक आदमी यरूशलीम से यरीहू की तरफ़ जा रहा था कि डाकुओं में घिर गया| उन्होंने उसके कपड़े उतार लिए और मारा भी और अधमरा छोड़कर चले गए|
\s5
\v 31 इत्तफ़ाक़न एक काहिन उसी राह से जा रहा था, और उसे देखकर कतरा कर चला चला गया |
\v 32 इसी तरह एक लावी उस जगह आया, वो भी उसे देखकर कतरा कर चला गया |
\s5
\v 33 लेकिन एक सामरी सफ़र करते करते वहाँ आ निकला, और उसे देखकर उसने तरस खाया |
\v 34 और उसके पास आकर उसके ज़ख़्मों को तेल और मय लगा कर बाँधा, और अपने जानवर पर सवार करके सराय में ले गया और उसकी देखरेख की |
\v 35 दूसरे दिन दो दीनार निकालकर भटयारे को दिए और कहा, 'इसकी देख भाल करना और जो कुछ इससे ज़्यादा ख़र्च होगा मैं फिर आकर तुझे अदा कर दूँगा |
\s5
\v 36 इन तीनों में से उस शख़्स का जो डाकुओं में घिर गया था तेरी नज़र में कौन पड़ोसी ठहरा?”
\v 38 फिर जब जा रहे थे तो वो एक गाँव में दाख़िल हुआ और मर्था नाम 'औरत ने उसे अपने घर में उतारा |
\v 39 और मरियम नाम उसकी एक बहन थी, वो ईसा' के पाँव के पास बैठकर उसका कलाम सुन रही थी |
\s5
\v 40 लेकिन मर्था ख़िदमत करते करते घबरा गई, पस उसके पास आकर कहने लगी, "ऐ ख़ुदावन्द, क्या तुझे ख़याल नहीं कि मेरी बहन ने ख़िदमत करने को मुझे अकेला छोड़ दिया है, पस उसे कह कि मेरी मदद करे |"
\v 1 फिर ऐसा हुआ कि वो किसी जगह दु'आ कर रहा था; जब कर चुका तो उसके शागिर्दों में से एक ने उससे कहा, "ऐ ख़ुदावन्द! जैसा युहन्ना ने अपने शागिर्दों को दु'आ करना सिखाया, तू भी हमें सिखा |"
\v 17 मगर उसने उनके ख़यालात को जानकर उनसे कहा, "जिस सल्तनत में फूट पड़े, वो वीरान हो जाती है; और जिस घर में फूट पड़े, वो बर्बाद हो जाता है |
\s5
\v 18 और अगर शैतान भी अपना मुख़ालिफ़ हो जाए, तो उसकी सल्तनत किस तरह क़ायम रहेगी? क्यूँकि तुम मेरे बारे मे कहते हो, कि ये बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकालता है |
\v 19 और अगर में बदरूहों को बा'लज़बूल की मदद से निकलता हूँ, तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से निकालते हैं? पस वही तुम्हारा फ़ैसला करेंगे |
\v 20 लेकिन अगर मैं बदरूहों को ख़ुदा की क़ुदरत से निकालता हूँ, तो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची |
\s5
\v 21 जब ताक़तवर आदमी हथियार बाँधे हुए अपनी हवेली की रखवाली करता है, तो उसका माल महफ़ूज़ रहता है |
\v 22 लेकिन जब उससे कोई ताक़तवर हमला करके उस पर ग़ालिब आता है, तो उसके सब हथियार जिन पर उसका भरोसा था छीन लेता और उसका माल लूट कर बाँट देता है |
\v 23 जो मेरी तरफ़ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है, और जो मेरे साथ जमा' नहीं करता वो बिखेरता है |
\s5
\v 24 “जब नापाक रूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मुक़ामों में आराम ढूँढती फिरती है, और जब नहीं पाती तो कहती है, 'मैं अपने उसी घर में लौट जाऊँगी जिससे निकली हूँ |”
\v 25 और आकर उसे झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है |
\v 26 फिर जाकर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो उसमें दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं, और उस आदमी का पिछला हाल पहले से भी ख़राब हो जाता है |
\v 29 जब बड़ी भीड़ जमा' होती जाती थी तो वो कहने लगा, "इस ज़माने के लोग बुरे हैं, वो निशान तलब करते हैं; मगर युनाह के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा |"
\v 30 क्यूँकि जिस तरह युनाह नीनवे के लोगों के लिए निशान ठहरा, उसी तरह इब्न-ए-आदम भी इस ज़माने के लोगों के लिए ठहरेगा |
\s5
\v 31 दक्खिन की मलिका इस ज़माने के आदमियों के साथ 'अदालत के दिन उठकर उनको मुजरिम ठहराएगी, क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलेमान की हिकमत सुनने को आई, और देखो, यहाँ वो है जो सुलेमान से भी बड़ा है |
\s5
\v 32 नीनवे के लोग इस ज़माने के लोगों के साथ, 'अदालत के दिन खड़े होकर उनको मुजरिम ठहराएँगे; क्यूँकि उन्होंने युनाह के एलान पर तौबा कर ली, और देखो, यहाँ वो है जो युनाह से भी बड़ा है |
\v 42 "लेकिन ऐ फ़रीसियों ! तुम पर अफ़सोस, कि पुदीने और सुदाब और हर एक तरकारी पर दसवां हिस्सा देते हो, और इन्साफ़ और ख़ुदा की मुहब्बत से ग़ाफ़िल रहते हो; लाज़िम था कि ये भी करते और वो भी न छोड़ते |"
\s5
\v 43 ऐ फ़रीसियों ! तुम पर अफ़सोस, कि तुम 'इबादतख़ानों में आ'ला दर्जे की कुर्सियाँ और और बाज़ारों में सलाम चाहते हो |
\v 44 तुम पर अफ़सोस ! क्यूँकि तुम उन छिपी हुई क़ब्रों की तरह हो जिन पर आदमी चलते है, और उनको इस बात की ख़बर नहीं |
\v 45 फिर शरा' के 'आलिमों में से एक ने जवाब में उससे कहा, "ऐ उस्ताद ! इन बातों के कहने से तू हमें भी बे'इज़्ज़त करता है |"
\v 46 उसने कहा, "ऐ शरा' के 'आलिमो ! तुम पर भी अफ़सोस, कि तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना मुश्किल है,आदमियों पर लादते हो और तुम एक उंगली भी उन बोझों को नहीं लगाते |"
\s5
\v 47 तुम पर अफ़सोस, कि तुम तो नबियों की क़ब्रों को बनाते हो और तुम्हारे बाप-दादा ने उनको क़त्ल किया था |
\v 48 पस तुम गवाह हो और अपने बाप-दादा के कामों को पसन्द करते हो, क्यूँकि उन्होंने तो उनको क़त्ल किया था और तुम उनकी क़ब्रें बनाते हो |
\s5
\v 49 इसी लिए ख़ुदा की हिक्मत ने कहा है, "मैं नबियों और रसूलों को उनके पास भेजूँगी, वो उनमें से कुछ को क़त्ल करेंगे और कुछ को सताएँगे |'
\v 50 ताकि सब नबियों के ख़ून का जो बिना-ए-'आलम से बहाया गया, इस ज़माने के लोगों से हिसाब किताब लिया जाए|
\v 51 हाबिल के ख़ून से लेकर उस ज़करियाह के ख़ून तक, जो क़ुर्बानगाह और मक़्दिस के बीच में हलाक हुआ |मैं तुम से सच कहता हूँ कि इसी ज़माने के लोगों से सब का हिसाब किताब लिया जाएगा |
\s5
\v 52 ऐ शरा' के 'आलिमो ! तुम पर अफ़सोस, कि तुम ने मा'रिफ़त की कुंजी छीन ली, तुम ख़ुद भी दाख़िल न हुए और दाख़िल होने वालों को भी रोका |"
\v 1 इतने में जब हज़ारों आदमियों की भीड़ लग गई, यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरा पड़ता था, तो उसने सबसे पहले अपने शागिर्दों से ये कहना शुरू' किया, “उस ख़मीर से होशियार रहना जो फ़रीसियों की रियाकारी है |
\s5
\v 2 क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी, और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी |
\v 3 इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है वो उजाले में सुना जाएगा; और जो कुछ तुम ने कोठरियों के अन्दर कान में कहा है, छतों पर उसका एलान किया जाएगा |”
\s5
\v 4 "मगर तुम दोस्तों से मैं कहता हूँ कि उनसे न डरो जो बदन को क़त्ल करते हैं, और उसके बा'द और कुछ नहीं कर सकते "
\v 5 लेकिन मैं तुम्हें जताता हूँ कि किससे डरना चाहिए, उससे डरो जिसे इख़्तियार है कि क़त्ल करने के बा'द जहन्नुम में डाले; हाँ, मैं तुम से कहता हूँ कि उसी से डरो |
\s5
\v 6 क्या दो पैसे की पाँच चिड़िया नहीं बिकती? तो भी ख़ुदा के सामने उनमें से एक भी फ़रामोश नहीं होती |
\v 7 बल्कि तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए है; डरो, मत तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है |
\s5
\v 8 "और मैं तुम से कहता हूँ कि जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करे, इब्न-ए-आदम भी ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इक़रार करेगा |"
\v 9 मगर जो आदमियों के सामने मेरा इन्कार करे, ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इन्कार किया जाएगा |
\v 10 "और जो कोई इब्न-ए-आदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहे, उसको मु'आफ़ किया जाएगा; लेकिन जो रूह-उल-कुद्दूसके हक में कुफ़्र बके, उसको मु'आफ़ न किया जाएगा |"
\s5
\v 11 "और जब वो तुम को 'इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियार वालों के पास ले जाएँ, तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह या क्या जवाब दें या क्या कहें |"
\v 12 क्यूँकि रूह-उल-कुद्दूस उसी वक़्त तुम्हें सिखा देगा कि क्या कहना चाहिए |"
\v 14 उसने उससे कहा, "मियाँ ! किसने मुझे तुम्हारा मुन्सिफ़ या बाँटने वाला मुक़र्रर किया है?"
\v 15 और उसने उनसे कहा, "ख़बरदार ! अपने आप को हर तरह के लालच से बचाए रख्खो, क्यूँकि किसी की ज़िन्दगी उसके माल की ज़्यादती पर मौक़ूफ़ नहीं |"
\s5
\v 16 और उसने उनसे एक मिसाल कही, "किसी दौलतमन्द की ज़मीन में बड़ी फ़सल हुई |"
\v 17 पस वो अपने दिल में सोचकर कहने लगा, 'मैं क्या करूँ?क्यूँकि मेरे यहाँ जगह नहीं जहाँ अपनी पैदावार भर रख्खूँ?'
\v 18 उसने कहा, 'मैं यूँ करूँगा कि अपनी कोठियाँ ढा कर उनसे बड़ी बनाऊँगा;
\v 19 और उनमें अपना सारा अनाज और माल भर दूंगा और अपनी जान से कहूँगा, कि ऐ जान ! तेरे पास बहुत बरसों के लिए बहुत सा माल जमा' है; चैन कर, खा पी ख़ुश रह |'
\s5
\v 20 मगर ख़ुदा ने उससे कहा, 'ऐ नादान ! इसी रात तेरी जान तुझ से तलब कर ली जाएगी, पस जो कुछ तू ने तैयार किया है वो किसका होगा?'
\v 21 ऐसा ही वो शख़्स है जो अपने लिए ख़ज़ाना जमा' करता है, और ख़ुदा के नज़दीक दौलतमन्द नहीं
\v 22 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, "इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि अपनी जान की फ़िक्र न करो कि हम क्या खाएँगे, और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे |"
\v 23 क्यूँकि जान ख़ुराक से बढ़ कर है और बदन पोशाक से |
\s5
\v 24 परिंदों पर ग़ौर करो कि न बोते हैं और न काटते, न उनके खत्ता होता है न कोठी; तोभी ख़ुदा उन्हें खिलाता है | तुम्हारी क़द्र तो परिन्दों से कहीं ज़्यादा है |
\v 25 तुम में ऐसा कोन है जो फ़िक्र करके अपनी 'उम्र में एक घड़ी बढ़ा सके?
\v 26 पस जब सबसे छोटी बात भी नहीं कर सकते, तो बाक़ी चीज़ों की फ़िक्र क्यूँ करते हो?
\s5
\v 27 सोसन के दरख़्तों पर ग़ौर करो कि किस तरह बढ़ते है; वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं, तोभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलेमान भी बावजूद अपनी सारी शान-ओ-शौकत के उनमें से किसी की तरह मुलब्बस न था |
\v 28 पस जब ख़ुदा मैदान की घास को जो आज है कल तन्दूर में झोंकी जाएगी, ऐसी पोशाक पहनाता है; तो ऐ कम ईमान वालो ! तुम को क्यूँ न पहनाएगा?
\s5
\v 29 और तुम इसकी तलाश में न रहो कि क्या खाएँगे या क्या पीएँगे, और न शक्की बनो |
\v 30 क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में दुनिया की क़ौमें रहती हैं, लेकिन तुम्हारा आसमानी बाप जानता है कि तुम इन चीज़ों के मुहताज हो |
\s5
\v 31 हाँ, उसकी बादशाही की तलाश में रहो तो ये चीज़ें भी तुम्हें मिल जाएँगी |
\v 32 "ऐ छोटे गल्ले, न डर; क्यूँकि तुम्हारे आसमानी बाप को पसन्द आया कि तुम्हें बादशाही दे |
\s5
\v 33 अपना माल अस्बाब बेचकर ख़ैरात कर दो, और अपने लिए ऐसे बटवे बनाओ जो पुराने नहीं होते; या'नि आसमान पर ऐसा ख़ज़ाना जो ख़ाली नही होता, जहाँ चोर नज़दीक नहीं जाता, और कीड़ा ख़राब नहीं करता |
\v 34 क्यूँकि जहाँ तुम्हारा ख़ज़ाना है, वहीं तुम्हारा दिल भी रहेगा |
\v 36 और तुम उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक की राह देखते हों कि वो शादी में से कब लौटेगा, ताकि जब वो आकर दरवाज़ा खटखटाए तो फ़ौरन उसके लिए खोल दें |
\s5
\v 37 मुबारक है वो नौकर जिनका मालिक आकर उन्हें जागता पाए; मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो कमर बाँध कर उन्हें खाना खाने को बिठाएगा, और पास आकर उनकी ख़िदमत करेगा |
\v 38 अगर वो रात के दूसरे पहर में या तीसरे पहर में आकर उनको ऐसे हाल में पाए, तो वो नौकर मुबारक हैं |
\s5
\v 39 लेकिन ये जान रखो कि अगर घर के मालिक को मा'लूम होता कि चोर किस घड़ी आएगा तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब लगने न देता |
\v 40 तुम भी तैयार रहो; क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा, इब्ने-ए-आदम आ जाएगा |"
\v 42 ख़ुदावन्द ने कहा, "कौन है वो ईमानदार और 'अक़्लमन्द, जिसका मालिक उसे अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर करे हर एक की ख़ुराक वक़्त पर बाँट दिया करे |
\v 43 मुबारक है वो नौकर जिसका मालिक आकर उसको ऐसा ही करते पाए |
\v 44 मैं तुम से सच कहता हूँ ,कि वो उसे अपने सारे माल पर मुख़्तार कर देगा |
\s5
\v 45 लेकिन अगर वो नौकर अपने दिल में ये कहकर मेरे मालिक के आने में देर है, ग़ुलामों और लौंडियों को मारना और खा पी कर मतवाला होना शुरू' करे |
\v 46 तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन, कि वो उसकी राह न देखता हो, आ मौजूद होगा और ख़ूब कोड़े लगाकर उसे बेईमानों में शामिल करेगा |
\s5
\v 47 और वो नौकर जिसने अपने मालिक की मर्ज़ी जान ली, और तैयारी न की और न उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ 'अमल किया, बहुत मार खाएगा |
\v 48 मगर जिसने न जानकर मार खाने के काम किए वो थोड़ी मार खाएगा; और जिसे बहुत दिया गया उससे बहुत तलब किया जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया उससे ज़्यादा तलब करेंगे |
\v 54 फिर उसने लोगों से भी कहा, "जब बादल को पच्छिम से उठते देखते हो तो फ़ौरन कहते हो कि पानी बरसेगा, और ऐसा ही होता है;
\v 55 और जब तुम मा'लूम करते हो कि दख्खिना चल रही है तो कहते हो कि लू चलेगी, और ऐसा ही होता है |
\v 56 ऐ रियाकारो ! ज़मीन और आसमान की सूरत में फ़र्क़ करना तुम्हें आता है, लेकिन इस ज़माने के बारे मे फ़र्क़ करना क्यूँ नहीं आता?
\s5
\v 57 "और तुम अपने आप ही क्यूँ फ़ैसला नहीं कर लेते कि ठीक क्या है?"
\v 58 जब तू अपने दुशमन के साथ हाकिम के पास जा रहा है तो रास्ते में कोशिस करके उससे छूट जाए, ऐसा न हो कि वो तुझको फैसला करने वाले के पास खींच ले जाए, और फ़ैसला करने वाला तुझे सिपाही के हवाले करे और सिपाही तुझे क़ैद में डाले |
\v 59 मैं तुझ से कहता हूँ कि जब तक तू दमड़ी-दमड़ी अदा न कर देगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा |"
\v 14 'इबादतख़ाने का सरदार, इसलिए कि ईसा' ने सबत के दिन शिफ़ा बख़्शी, ख़फ़ा होकर लोगों से कहने लगा, "छ: दिन हैं जिनमें काम करना चाहिए, पस उन्हीं में आकर शिफ़ा पाओ न कि सबत के दिन |"
\v 18 पस वो कहने लगा, "ख़ुदा की बादशाही किसकी तरह है ? मैं उसको किससे मिसाल दूँ ?"
\v 19 वो राई के दाने की तरह है, जिसको एक आदमी ने लेकर अपने बाग़ में डाल दिया : वो उगकर बड़ा दरख़्त हो गया, और हवा के परिन्दों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया |"
\v 22 वो शहर-शहर और गाँव-गाँव ता'लीम देता हुआ यरूशलीम का सफ़र कर रहा था |
\v 23 किसी शख़्स ने उससे पुछा, "ऐ ख़ुदावन्द ! क्या नजात पाने वाले थोड़े हैं ?"
\v 24 उसने उनसे कहा, "मेहनत करो कि तंग दरवाज़े से दाख़िल हो, क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से दाख़िल होने की कोशिश करेंगे और न हो सकेंगे |"
\s5
\v 25 जब घर का मालिक उठ कर दरावाज़ा बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े दरवाज़ा खटखटाकर ये कहना शुरू' करो, 'ऐ ख़ुदावन्द ! हमारे लिए खोल दे, और वो जवाब दे, 'मैं तुम को नहीं जानता कि कहाँ के हो |'
\v 32 उसने उनसे कहा, "जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख, मैं आज और कल बदरूहों को निकालता और शिफ़ा का काम अन्जाम देता रहूँगा, और तीसरे दिन पूरा करूँगा |
\v 33 मगर मुझे आज और कल और परसों अपनी राह पर चलना ज़रूर है, क्यूँकि मुमकिन नहीं कि नबी यरूशलीम से बाहर हलाक हो |
\s5
\v 34 "ऐ यरूशलीम ! ऐ यरूशलीम ! तू जो नबियों को क़त्ल करती है, और जो तेरे पास भेजे गए उन पर पथराव करती है | कितनी ही बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा' कर लेती है, उसी तरह मैं भी तेरे बच्चों को जमा' कर लूँ, मगर तुम ने न चाहा |"
\v 35 देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे ही लिए छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूँ, कि मुझ को उस वक़्त तक हरगिज़ न देखोगे जब तक न कहोगे, 'मुबारक है वो, जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है' |"
\v 7 जब उसने देखा कि मेहमान सद्र जगह किस तरह पसन्द करते हैं तो उनसे एक मिसाल कही,
\v 8 “जब कोई तुझे शादी में बुलाए तो सद्र जगह पर न बैठ, कि शायद उसने तुझ से भी किसी ज़्यादा 'इज़्ज़तदार को बुलाया हो;
\v 9 और जिसने तुझे और उसे दोनों को बुलाया है, आकर तुझ से कहे, 'इसको जगह दे, 'फिर तुझे शर्मिन्दा होकर सबसे नीचे बैठना पड़े |
\s5
\v 10 बल्कि जब तू बुलाया जाए तो सबसे नीची जगह जा बैठ, ताकि जब तेरा बुलाने वाला आए तो तुझ देखे, 'ऐ दोस्त, आगे बढ़कर बैठ, 'तब उन सब की नज़र में जो तेरे साथ खाने बैठे हैं तेरी इज़्ज़त होगी |
\v 11 क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वो छोटा किया जाएगा; और जो अपने आप को छोटा बनाएगा,वो बड़ा किया जाएगा।”
\v 12 फिर उसने अपने बुलानेवाले से कहा, "जब तू दिन का या रात का खाना तैयार करे, तो अपने दोस्तों या भाइयों या रिश्तेदारों या दौलतमन्द पड़ोसियों को न बुला; ताकि ऐसा न हो कि वो भी तुझे बुलाएँ और तेरा बदला हो जाए |"
\s5
\v 13 बल्कि जब तू दावत करे तो ग़रीबों, लुन्जों, लंगड़ों,अन्धों को बुला |
\v 14 और तुझ पर बरकत होगी, क्यूँकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, और तुझे रास्त्बाज़ों की क़यामत में बदला मिलेगा |"
\v 18 इस पर सब ने मिलकर मु'आफ़ी मांगना शुरू किया | पहले ने उससे कहा, 'मैंने खेत ख़रीदा है, मुझे ज़रूर है कि जाकर उसे देखूँ; मैं तेरी ख़ुशामद करता हूँ, मुझे मु'आफ़ कर |'
\v 21 पस उस नौकर ने आकर अपने मालिक को इन बातों की ख़बर दी | इस पर घर के मालिक ने ग़ुस्सा होकर अपने नौकर से कहा, 'जल्द शहर के बाज़ारों और कूचों में जाकर ग़रीबों, लुन्जों, और लंगड़ों को यहाँ ले आओ |
\v 25 जब बहुत से लोग उसके साथ जा रहे थे, तो उसने पीछे मुड़कर उनसे कहा,
\v 26 “अगर कोई मेरे पास आए, और बच्चों और भाइयों और बहनों बल्कि अपनी जान से भी दुश्मनी न करे तो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता|
\v 27 जो कोई अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे न आए, वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता|
\s5
\v 28 क्यूँकि तुम में ऐसा कौन है कि जब वो एक गुम्बद बनाना चाहे, तो पहले बैठकर लागत का हिसाब न कर ले कि आया मेरे पास उसके तैयार करने का सामान है या नहीं ?
\v 29 ऐसा न हो कि जब नीव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखने वाले ये कहकर उस पर हँसना शुरू' करें कि,
\v 30 ' इस शख़्स ने 'इमारत शुरू तो की मगर मुकम्मल न कर सका|'
\s5
\v 31 या कौन सा बादशाह है जो दूसरे बादशाह से लड़ने जाता हो और पहले बैठकर मशवरा न कर ले कि आया मैं दस हज़ार से उसका मुक़ाबला कर सकता हूँ या नहीं जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ आता है ?
\v 32 नहीं तो उसके दूर रहते ही एल्ची भेजकर सुलह की गुज़ारिश करेगा |
\v 33 पस इसी तरह तुम में से जो कोई अपना सब कुछ छोड़ न दे, वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता |
\s5
\v 34 नमक अच्छा तो है, लेकिन अगर नमक का मज़ा जाता रहे तो वो किस चीज़ से मज़ेदार किया जाएगा |
\v 35 न वो ज़मीन के काम का रहा न खाद के, लोग उसे बाहर फेंक देते हैं | जिसके कान सुनने के हों वो सुन ले|”
\v 4 " तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक गुम हो जाये तो निन्नानवे को जंगल मे छोड़कर उस खोई हुई को जब तक मिल न जाये ढूंढता न रहेगा?
\v 5 फिर मिल जाती है तो वो ख़ुश होकर उसे कन्धे पर उठा लेता है,
\s5
\v 6 और घर पहुँचकर दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाता और कहता है, 'मेरे साथ ख़ुशी करो, क्यूँकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई |'
\v 7 मैं तुम से कहता हूँ कि इसी तरह निन्नानवे, रास्तबाज़ों की निस्बत जो तौबा की हाजत नहीं रखते, एक तौबा करने वाले गुनहगार के बा'इस आसमान पर ज़्यादा ख़ुशी होगी |
\v 28 वो ग़ुस्सा हुआ और अन्दर जाना न चाहा, मगर उसका बाप बाहर जाकर उसे मनाने लगा |
\v 29 उसने अपने बाप से जवाब में कहा, 'देख, इतने बरसों से मैं तेरी ख़िदमत करता हूँ और कभी तेरी नाफ़रमानी नहीं की, मगर मुझे तूने कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया कि अपने दोस्तों के साथ ख़ुशी मनाता |
\v 30 लेकिन जब तेरा ये बेटा आया जिसने तेरा माल-ओ-अस्बाब कस्बियों में उड़ा दिया, तो उसके लिए तूने तैयार किया हुआ जानवर ज़बह कराया है' |
\v 3 उस मुख़्तार ने अपने जी में कहा, 'क्या करूँ? क्यूँकि मेरा मालिक मुझ से ज़िम्मेदारी छीन लेता है | मिट्टी तो मुझ से खोदी नहीं जाती और भीख माँगने से शर्म आती है |
\v 4 मैं समझ गया कि क्या करूँ, ताकि जब ज़िम्मेदारी से निकाला जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में जगह दें |'
\v 8 "और मालिक ने बेईमान मुख़्तार की ता'रीफ़ की, इसलिए कि उसने होशियारी की थी |क्यूँकि इस जहान के फ़र्ज़न्द अपने हमवक़्तों के साथ मु'आमिलात में नूर के फ़र्ज़न्द से ज़्यादा होशियार हैं |
\v 9 और मैं तुम से कहता हूँ कि नारास्ती की दौलत से अपने लिए दोस्त पैदा करो, ताकि जब वो जाती रहे तो ये तुम को हमेशा के मुक़ामों में जगह दें |
\v 13 कोई नौकर दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता: क्यूंकि या तो एक से 'दुश्मनी रख्खेगा और दूसरे से मुहब्बत, या एक से मिला रहेगा और दूसरे को नाचीज़ जानेगा | तुम ख़ुदा और दौलत दोनों की ख़िदमत नहीं कर सकते|
\v 14 फ़रीसी जो दौलत दोस्त थे, इन सब बातों को सुनकर उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे |
\v 15 उसने उनसे कहा, "तुम वो हो कि आदमियों के सामने अपने आपको रास्तबाज़ ठहराते हो, लेकिन ख़ुदा तुम्हारे दिलों को जानता है; क्यूँकि जो चीज़ आदमियों की नज़र में 'आला कद्र है, वो ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है |
\s5
\v 16 "शरी'अत और अम्बिया युहन्ना तक रहे; उस वक़्त से ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी दी जाती है, और हर एक ज़ोर मारकर उसमें दाख़िल होता है |
\v 17 लेकिन आसमान और ज़मीन का टल जाना, शरी'अत के एक नुक्ते के मिट जाने से आसान है |
\v 19 "एक दौलतमन्द था, जो इर्ग़वानी और महीन कपड़े पहनता और हर रोज़ ख़ुशी मनाता और शान-ओ-शौकत से रहता था |
\v 20 और ला'ज़र नाम एक ग़रीब नासूरों से भरा हुआ उसके दरवाज़े पर डाला गया था |
\v 21 उसे आरज़ू थी कि दौलतमन्द की मेज़ से गिरे हुए टुकड़ों से अपना पेट भरे; बल्कि कुत्ते भी आकर उसके नासूर को चाटते थे |
\s5
\v 22 और ऐसा हुआ कि वो ग़रीब मर गया, और फ़रिश्तों ने उसे ले जाकर अब्राहाम की गोद में पहुँचा दिया | और दौलतमन्द भी मरा और दफ्न हुआ;
\v 23 उसने 'आलम-ए-अर्वाह के दरमियान 'अज़ाब में मुब्तिला होकर अपनी आँखें उठाई, और अब्राहम को दूर से देखा और उसकी गोद में ला'ज़र को |
\s5
\v 24 और उसने पुकार कर कहा, 'ऐ बाप अब्राहम !मुझ पर रहम करके ला'ज़र को भेज, कि अपनी ऊँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी ज़बान तर करे; क्यूँकि मैं इस आग में तड़पता हूँ |'
\v 25 अब्राहम ने कहा, 'बेटा ! याद कर ले तू अपनी ज़िन्दगी में अपनी अच्छी चीज़ें ले चुका, और उसी तरह ला'ज़र बुरी चीज़ें ले चुका; लेकिन अब वो यहाँ तसल्ली पाता है, और तू तड़पता है |
\v 26 और इन सब बातों के सिवा हमारे तुम्हारे दरमियान एक बड़ा गड्ढा बनाया गया' है, कि जो यहाँ से तुम्हारी तरफ़ पार जाना चाहें न जा सकें और न कोई उधर से हमारी तरफ़ आ सके |'
\v 1 फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा, "ये नहीं हो सकता कि ठोकरें न लगें, लेकिन उस पर अफ़सोस है कि जिसकी वजह से लगें |
\v 2 इन छोटों में से एक को ठोकर खिलाने की बनिस्बत, उस शख़्स के लिए ये बेहतर होता है कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता और वो समुन्द्र में फेंका जाता |
\s5
\v 3 ख़बरदार रहो ! अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे डांट दे, अगर वो तौबा करे तो उसे मु'आफ़ कर |
\v 4 और वो एक दिन में सात दफ़ा'' तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ा' तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ, तो उसे मु'आफ़ कर |"
\v 6 ख़ुदावन्द ने कहा, "अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होता और तुम इस तूत के दरख़्त से कहते, कि जड़ से उखड़ कर समुन्द्र में जा लग, तो तुम्हारी मानता |
\s5
\v 7 "मगर तुम में ऐसा कौन है, जिसका नौकर हल जोतता या भेड़ें चराता हो, और जब वो खेत से आए तो उससे कहे, जल्द आकर खाना खाने बैठ !'
\v 8 और ये न कहे, 'मेरा खाना तैयार कर, और जब तक मैं खाऊँ-पियूँ कमर बाँध कर मेरी ख़िदमत कर; उसके बा'द तू भी खा पी लेना'?
\s5
\v 9 क्या वो इसलिए उस नौकर का एहसान मानेगा कि उसने उन बातों को जिनका हुक्म हुआ ता'मील की?
\v 10 इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की, जिनका तुम को हुक्म हुआ ता'मील कर चुको, तो कहो, 'हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है' |"
\v 9 फिर उसने कुछ लोगों से जो अपने पर भरोसा रखते थे, कि हम रास्तबाज़ हैं और बाक़ी आदमियों को नाचीज़ जानते थे, ये मिसाल कही,
\v 10 "दो शख़्स हैकल में दू'आ करने गए: एक फ़रीसी, दूसरा महसूल लेनेवाला |
\s5
\v 11 फ़रीसी खड़ा होकर अपने जी में यूँ दु'आ करने लगा, 'ऐ ख़ुदा मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि बाक़ी आदमियों की तरह ज़ालिम, बेइन्साफ़, ज़िनाकार या इस महसूल लेनेवाले की तरह नहीं हूँ |
\v 12 मैं हफ़्ते में दो बार रोज़ा रखता, और अपनी सारी आमदनी पर दसवां हिस्सा देता हूँ |'
\v 13 “लेकिन महसूल लेने वाले ने दूर खड़े होकर इतना भी न चाहा कि आसमान की तरफ़ आँख उठाए, बल्कि छाती पीट पीट कर कहा ऐ ख़ुदा|,मुझ गुनहगार पर रहम कर |”
\v 14 मैं तुम से कहता हूँ कि ये शख़्स दूसरे की निस्बत रास्तबाज़ ठहरकर अपने घर गया, क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वो छोटा किया जाएगा और जो अपने आपको छोटा बनाएगा वो बड़ा किया जाएगा |"
\v 22 ईसा' ने ये सुनकर उससे कहा, "अभी तक तुझ में एक बात की कमी है, अपना सब कुछ बेचकर ग़रीबों को बाँट दे; तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले |"
\v 31 फिर उसने उन बारह को साथ लेकर उनसे कहा, "देखो, हम यरूशलीम को जाते हैं, और जितनी बातें नबियों के ज़रिये लिखी गईं हैं, इब्न-ए-आदम के हक़ में पूरी होंगी |
\v 32 क्यूँकि वो ग़ैर क़ौम वालों के हवाले किया जाएगा; और लोग उसको ठटठों में उड़ाएँगे और बे'इज़्ज़त करेंगे, और उस पर थूकेगे,
\v 33 और उसको कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीसरे दिन जी उठेगा |
\s5
\v 34 लेकिन उन्होंने इनमें से कोई बात न समझी, और ये कलाम उन पर छिपा रहा और इन बातों का मतलब उनकी समझ में न आया |
\v 1 फिर ईसा' यरीहू में दाख़िल हुआ और उस में से होकर गुज़रने लगा।
\v 2 उस शहर में एक अमीर आदमी ज़क्काई नाम का रहता था जो महसूल लेने वालों का अफ़्सर था।
\s5
\v 3 वह जानना चाहता था कि यह ईसा' कौन है, लेकिन पूरी कोशिश करने के बावुजूद उसे देख न सका, क्यूँकि ईसा' के आस पास बड़ा हुजूम था और ज़क्काई का क़द छोटा था।
\v 4 इस लिए वह दौड़ कर आगे निकला और उसे देखने के लिए गूलर के दरख़्त पर चढ़ गया जो रास्ते में था।
\s5
\v 5 जब ईसा' वहाँ पहुँचा तो उस ने नज़र उठा कर कहा, “ज़क्काई, जल्दी से उतर आ, क्यूँकि आज मुझे तेरे घर में ठहरना है।”
\v 6 ज़क्काई फ़ौरन उतर आया और ख़ुशी से उस की मेहमान-नवाज़ी की।
\v 7 जब लोगों ने ये देखा तो सब बुदबुदाने लगे, “कि वह एक गुनाहगार के यहाँ मेहमान बन गया है ।”
\s5
\v 8 लेकिन ज़क्काई ने ख़ुदावन्द के सामने खड़े हो कर कहा, “ख़ुदावन्द, मैं अपने माल का आधा हिस्सा ग़रीबों को दे देता हूँ। और जिससे मैं ने नाजायज़ तौर से कुछ लिया है उसे चार गुना वापस करता हूँ।”
\v 11 अब ईसा' यरूशलम के क़रीब आ चुका था, इस लिए लोग अन्दाज़ा लगाने लगे कि ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिर होने वाली है। इस के पेश-ए-नज़र ईसा' ने अपनी यह बातें सुनने वालों को एक मिसाल सुनाई।
\v 12 उस ने कहा, “एक जागीरदार किसी दूरदराज़ मुल्क को चला गया ताकि उसे बादशाह मुक़र्रर किया जाए। फिर उसे वापस आना था।
\s5
\v 13 रवाना होने से पहले उस ने अपने नौकरों में से दस को बुला कर उन्हें सोने का एक एक सिक्का दिया। साथ साथ उस ने कहा, ‘यह पैसे ले कर उस वक़्त तक कारोबार में लगाओ जब तक मैं वापस न आऊँ।’
\v 14 लेकिन उस की रिआया उस से नफ़रत रखती थी, इस लिए उस ने उस के पीछे एलची भेज कर इत्तिला दी, ‘हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा बादशाह बने।’
\v 15 तो भी उसे बादशाह मुक़र्रर किया गया। इस के बाद जब वापस आया तो उस ने उन नौकरों को बुलाया जिन्हें उस ने पैसे दिए थे ताकि मालूम करे कि उन्हों ने यह पैसे कारोबार में लगा कर कितना मुनाफ़ा किया है।
\v 20 फिर एक और नौकर आ कर कहने लगा, ‘जनाब, यह आप का सिक्का है। मैं ने इसे कपड़े में लपेट कर मह्फ़ूज़ रखा,
\v 21 क्यूँकि मैं आप से डरता था, इस लिए कि आप सख़्त आदमी हैं। जो पैसे आप ने नहीं लगाए उन्हें ले लेते हैं और जो बीज आप ने नहीं बोया उस की फ़सल काटते हैं।’
\v 22 मालिक ने कहा, ‘शरीर नौकर! मैं तेरे अपने अल्फ़ाज़ के मुताबिक़ तेरा फ़ैसला करूँगा। जब तू जानता था कि मैं सख़्त आदमी हूँ, कि वह पैसे ले लेता हूँ जो ख़ुद नहीं लगाए और वह फ़सल काटता हूँ जिस का बीज नहीं बोया,
\v 23 तो फिर तूने मेरे पैसे साहूकार के यहाँ क्यों न जमा कराए? अगर तू ऐसा करता तो वापसी पर मुझे कम अज़ कम वह पैसे सूद समेत मिल जाते।’
\s5
\v 24 और उसने उनसे कहा, "यह सिक्का इससे ले कर उस नौकर को दे दो जिस के पास दस सिक्के हैं।"
\v 26 उस ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हें बताता हूँ कि हर शख़्स जिस के पास कुछ है उसे और दिया जाएगा, लेकिन जिस के पास कुछ नहीं है उस से वह भी छीन लिया जाएगा जो उस के पास है।
\v 27 अब उन दुश्मनों को ले आओ जो नहीं चाहते थे कि मैं उन का बादशाह बनूँ। उन्हें मेरे सामने फाँसी दे दो’।”
\v 37 चलते चलते वह उस जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ रास्ता ज़ैतून के पहाड़ पर से उतरने लगता है। इस पर शागिर्दों का पूरा हुजूम ख़ुशी के मारे ऊँची आवाज़ से उन मोजिज़ों के लिए ख़ुदा की बड़ाई करने लगा जो उन्होंने देखे थे,
\v 41 जब वह यरूशलीम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देख कर रो पड़ा
\v 42 और कहा, “काश तू भी उस दिन पहचान लेती कि तेरी सलामती किस में है। लेकिन अब यह बात तेरी आँखों से छुपी हुई है।
\s5
\v 43 क्यूँकि तुझ पर ऐसा वक़्त आएगा कि तेरे दुश्मन तेरे चारों तरफ बन्द बाँध कर तेरा घेरा करेंगे और यूँ तुझे तंग करेंगे।
\v 44 वह तुझे तेरे बच्चों समेत ज़मीन पर पटकेंगे और तेरे अन्दर एक भी पत्थर दूसरे पर नहीं छोड़ेंगे। और वजह यही होगी कि तू ने वह वक़्त नहीं पहचाना जब ख़ुदावंद ने तेरी नजात के लिए तुझ पर नज़र की।”
\v 47 और वह रोज़ाना बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा। लेकिन बैत-उल-मुक़द्दस के रहनुमा इमाम, शरीअत के आलिम और अवामी रहनुमा उसे क़त्ल करने की कोशिश में थे|
\v 48 अलबत्ता उन्हें कोई मौक़ा न मिला, क्यूँकि तमाम लोग ईसा' की हर बात सुन सुन कर उस से लिपटे रहते थे।
\v 1 एक दिन जब वह बैत-उल-मुक़द्दस में लोगों को तालीम दे रहा और ख़ुदावंद की ख़ुशख़बरी सुना रहा था तो रहनुमा इमाम, शरीअत के उलमा और बुज़ुर्ग उस के पास आए।
\v 2 उन्हों ने कहा, “हमें बताएँ, आप यह किस इख़्तियार से कर रहे हैं? किस ने आप को यह इख़्तियार दिया है?”
\v 9 फिर ईसा' लोगों को यह मिसाल सुनाने लगा, “किसी आदमी ने अंगूर का एक बाग़ लगाया। फिर वह उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर बहुत दिनों के लिए बाहरी मुल्क चला गया।
\v 10 जब अंगूर पक गए तो उस ने अपने नौकर को उन के पास भेज दिया ताकि वह मालिक का हिस्सा वसूल करे। लेकिन बाग़बानों ने उस की पिटाई करके उसे ख़ाली हाथ लौटा दिया।
\s5
\v 11 इस पर मालिक ने एक और नौकर को उन के पास भेजा। लेकिन बागबानों ने उसे भी मार मार कर उस की बे'इज़्ज़ती की और ख़ाली हाथ निकाल दिया।
\v 12 फिर मालिक ने तीसरे नौकर को भेज दिया। उसे भी उन्होंने मार कर ज़ख़्मी कर दिया और निकाल दिया।
\s5
\v 13 बाग़ के मालिक ने कहा, ‘अब मैं क्या करूँ? मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा, शायद वह उस का लिहाज़ करें।’
\v 14 लेकिन मालिक के बेटे को देख कर बाग़बानों ने आपस में मशवरा किया और कहा , ‘यह ज़मीन का वारिस है। आओ, हम इसे मार डालें। फिर इस की मीरास हमारी ही होगी।’”
\s5
\v 15 उन्होंने उसे बाग़ से बाहर फैंक कर क़त्ल किया। ईसा' ने पूछा, “अब बताओ, बाग़ का मालिक क्या करेगा?
\v 16 वह वहाँ जा कर बाग़बानों को हलाक करेगा और बाग़ को दूसरों के हवाले कर देगा।” यह सुन कर लोगों ने कहा, “ख़ुदा ऐसा कभी न करे।”
\v 17 ईसा' ने उन पर नज़र डाल कर पूछा, “तो फिर कलाम-ए-मुक़द्दस के इस हवाले का क्या मतलब है कि ‘जिस पत्थर को राजगीरों ने रद्द किया, वह कोने का बुन्यादी पत्थर बन गया’?
\v 18 जो इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा, जबकि जिस पर वह ख़ुद गिरेगा उसे पीस डालेगा।”
\v 19 शरीअत के उलमा और राहनुमा इमामों ने उसी वक़्त उसे पकड़ने की कोशिश की, क्यूँकि वह समझ गए थे कि मिसाल में बयान होने वाले हम ही हैं। लेकिन वह अवाम से डरते थे।
\v 20 चुनाँचे वह उसे पकड़ने का मौक़ा ढूँडते रहे। इस मक़्सद के तहत उन्होंने उस के पास जासूस भेज दिए। यह लोग अपने आप को ईमानदार ज़ाहिर करके ईसा' के पास आए ताकि उस की कोई बात पकड़ कर उसे रोमी हाकिम के हवाले कर सकें।
\s5
\v 21 इन जासूसों ने उस से पूछा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप वही कुछ बयान करते और सिखाते हैं जो सहीह है। आप तरफ़दारी नहीं करते बल्कि दियानतदारी से ख़ुदा की राह की तालीम देते हैं।
\v 22 अब हमें बताएँ कि क्या रोमी हाकिम को महसूल देना जायज़ है या नाजायज़?”
\v 27 फिर कुछ सदूक़ी उस के पास आए। सदूक़ी नहीं मानते थे कि रोज़-ए-क़यामत में मुर्दे जी उठेंगे। उन्हों ने ईसा' से एक सवाल किया,
\v 28 “उस्ताद, मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उस का भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।
\s5
\v 29 अब फ़र्ज़ करें कि सात भाई थे। पहले ने शादी की, लेकिन बेऔलाद मर गया।
\v 30 इस पर दूसरे ने उस से शादी की, लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया।
\v 31 फिर तीसरे ने उस से शादी की। यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा। इसके बाद हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया।
\v 32 आख़िर में बेवा की भी मौत हो गई।
\v 33 अब बताएँ कि क़यामत के दिन वह किस की बीवी होगी? क्यूँकि सात के सात भाइयों ने उस से शादी की थी।”
\v 34 ईसा' ने जवाब दिया, “इस ज़माने में लोग ब्याह-शादी करते और कराते हैं।
\v 35 लेकिन जिन्हें ख़ुदा आने वाले ज़माने में शरीक होने और मुर्दों में से जी उठने के लायक़ समझता है वह उस वक़्त शादी नहीं करेंगे, न उन की शादी किसी से कराई जाएगी।
\v 36 वह मर भी नहीं सकेंगे, क्यूँकि वह फ़रिश्तों की तरह होंगे और क़यामत के फ़र्ज़न्द होने के बाइस ख़ुदा के फ़र्ज़न्द होंगे।
\s5
\v 37 और यह बात कि मुर्दे जी उठेंगे मूसा से भी ज़ाहिर की गई है। क्यूँकि जब वह काँटेदार झाड़ी के पास आया तो उस ने ख़ुदा को यह नाम दिया, ‘अब्राहम का ख़ुदा, इस्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा,’ हालाँकि उस वक़्त तीनों बहुत पहले मर चुके थे। इस का मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िन्दा हैं।
\v 38 क्यूँकि ख़ुदा मुर्दों का नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है। उस के नज़्दीक यह सब ज़िन्दा हैं।”
\v 45 जब लोग सुन रहे थे तो उस ने अपने शागिर्दों से कहा,
\v 46 “शरीअत के उलमा से ख़बरदार रहो! क्यूँकि वह शानदार चोग़े पहन कर इधर उधर फिरना पसन्द करते हैं। जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उन की इज़्ज़त करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं। उन की बस एक ही ख़्वाहिश होती है कि इबादतख़ानों और दावतों में इज़्ज़त की कुर्सियों पर बैठ जाएँ।
\v 47 यह लोग बेवाओं के घर हड़प कर जाते और साथ साथ दिखावे के लिए लम्बी लम्बी दुआएँ माँगते हैं। ऐसे लोगों को निहायत सख़्त सज़ा मिलेगी।”
\v 5 उस वक़्त कुछ लोग हैकल की तारीफ़ में कहने लगे कि वह कितने ख़ूबसूरत पत्थरों और मिन्नत के तोह्फ़ों से सजा हुआ है। यह सुन कर ईसा' ने कहा,
\v 6 “जो कुछ तुम को यहाँ नज़र आता है उस का पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा। आने वाले दिनों में सब कुछ ढा दिया जाएगा।”
\s5
\v 7 उन्हों ने पूछा, “उस्ताद, यह कब होगा? क्या क्या नज़र आएगा जिस से मालूम हो कि यह अब होने को है?”
\v 8 ईसा' ने जवाब दिया, “ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे। क्यूँकि बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे, ‘मैं ही मसीह हूँ’ और कि ‘वक़्त क़रीब आ चुका है।’ लेकिन उन के पीछे न लगना।
\v 9 और जब जंगों और फ़ितनों की ख़बरें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना। क्यूँकि ज़रूरी है कि यह सब कुछ पहले पेश आए। तो भी अभी आख़िरत न होगी।”
\v 10 उस ने अपनी बात जारी रखी, “एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी, और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़।
\v 11 बहुत ज़ल्ज़ले आएँगे, जगह जगह काल पड़ेंगे और वबाई बीमारियाँ फैल जाएँगी। हैबतनाक वाक़िआत और आस्मान पर बड़े निशान देखने में आएँगे।
\s5
\v 12 लेकिन इन तमाम वाक़िआत से पहले लोग तुम को पकड़ कर सताएँगे। वह तुम को यहूदी इबादतख़ानों के हवाले करेंगे, क़ैदख़ानों में डलवाएँगे और बादशाहों और हुक्मरानों के सामने पेश करेंगे। और यह इस लिए होगा कि तुम मेरे पैरोकार हो।
\v 13 नतीजे में तुम्हें मेरी गवाही देने का मौक़ा मिलेगा।
\s5
\v 14 लेकिन ठान लो, कि तुम पहले से अपनी फ़िक्र करने की तैय्यारी न करो,
\v 15 क्यूँकि मैं तुम को ऐसे अल्फ़ाज़ और हिक्मत अता करूँगा, कि तुम्हारे तमाम मुख़ालिफ़ न उस का मुक़ाबला और न उस का जवाब दे सकेंगे।
\s5
\v 16 तुम्हारे वालिदैन, भाई, रिश्तेदार और दोस्त भी तुम को दुश्मन के हवाले कर देंगे, बल्कि तुम में से कुछ को क़त्ल किया जाएगा।
\v 17 सब तुम से नफ़रत करेंगे, इस लिए कि तुम मेरे मानने वाले हो।
\v 20 जब तुम यरूशलीम को फ़ौजों से घिरा हुआ देखो तो जान लो, कि उस की तबाही क़रीब आ चुकी है।
\v 21 उस वक़्त यहूदिया के रहनेवाले भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें। शहर के रहने वाले उस से निकल जाएँ और दिहात में आबाद लोग शहर में दाख़िल न हों।
\v 22 क्यूँकि यह इलाही ग़ज़ब के दिन होंगे जिन में वह सब कुछ पूरा हो जाएगा जो कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है।
\s5
\v 23 उन औरतों पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों, क्यूँकि मुल्क में बहुत मुसीबत होगी और इस क़ौम पर ख़ुदा का ग़ज़ब नाज़िल होगा।
\v 24 लोग उन्हें तल्वार से क़त्ल करेंगे और क़ैद करके तमाम ग़ैरयहूदी ममालिक में ले जाएँगे। ग़ैरयहूदी यरूशलीम को पाँवों तले कुचल डालेंगे। यह सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक ग़ैरयहूदियों का दौर पूरा न हो जाए।
\v 10 उस ने जवाब दिया, “जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा। उस के पीछे चल कर उस घर में दाख़िल हो जाओ जिस में वह जाएगा।
\v 11 वहाँ के मालिक से कहना, ‘उस्ताद आप से पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ?’
\s5
\v 12 वह तुम को दूसरी मन्ज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा। फ़सह का खाना वहीं तैय्यार करना।”
\v 13 दोनों चले गए तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा' ने उन्हें बताया था। फिर उन्हों ने फ़सह का खाना तैयार किया।
\v 14 मुक़र्ररा वक़्त पर ईसा' अपने शागिर्दों के साथ खाने के लिए बैठ गया।
\v 15 उस ने उन से कहा, “मेरी बहुत आरजू थी कि दुख उठाने से पहले तुम्हारे साथ मिल कर फ़सह का यह खाना खाऊँ।”
\v 16 “ क्यूँकि मैं तुम को बताता हूँ कि उस वक़्त तक इस खाने में शरीक नहीं हूँगा जब तक इस का मक़्सद ख़ुदा की बादशाही में पूरा न हो गया हो।”
\s5
\v 17 फिर उस ने मय का प्याला ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और कहा, “इस को ले कर आपस में बाँट लो।
\v 18 मैं तुम को बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा, क्यूँकि अगली दफ़ा इसे ख़ुदा की बादशाही के आने पर पियूँगा।”
\s5
\v 19 फिर उस ने रोटी ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके उन्हें दे दिया। उस ने कहा, “यह मेरा बदन है, जो तुम्हारे लिए दिया जाता है। मुझे याद करने के लिए यही किया करो।”
\v 20 इसी तरह उस ने खाने के बाद प्याला ले कर कहा, “मय का यह प्याला वह नया अह्द है जो मेरे ख़ून के ज़रिए क़ाइम किया जाता है, वह ख़ून जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है।
\s5
\v 21 लेकिन जिस शख़्स का हाथ मेरे साथ खाना खाने में शरीक है वह मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।
\v 22 इब्न-ए-आदम तो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ कूच कर जाएगा, लेकिन उस शख़्स पर अफ़्सोस जिस के वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा।”
\v 23 यह सुन कर शागिर्द एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से यह कौन हो सकता है जो इस क़िस्म की हरकत करेगा।
\v 24 फिर एक और बात भी छिड़ गई। वह एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से कौन सब से बड़ा समझा जाए।
\v 25 लेकिन ईसा' ने उन से कहा, “ग़ैरयहूदी क़ौमों में बादशाह वही हैं जो दूसरों पर हुकूमत करते हैं, और इख़्तियार वाले वही हैं जिन्हें ‘मोहसिन’ का लक़ब दिया जाता है।
\s5
\v 26 लेकिन तुम को ऐसा नहीं होना चाहिए। इस के बजाय जो सब से बड़ा है वह सब से छोटे लड़के की तरह हो और जो रेहनुमाई करता है वह नौकर जैसा हो।
\v 27 क्यूँकि आम तौर पर कौन ज़्यादा बड़ा होता है, वह जो खाने के लिए बैठा है या वह जो लोगों की ख़िदमत के लिए हाज़िर होता है? क्या वह नहीं जो खाने के लिए बैठा है? बेशक। लेकिन मैं ख़िदमत करने वाले की हैसियत से ही तुम्हारे बीच हूँ।
\s5
\v 28 देखो, तुम वही हो जो मेरी तमाम आज़्माइशों के दौरान मेरे साथ रहे हो।
\v 29 चुनाँचे मैं तुम को बादशाही अता करता हूँ जिस तरह बाप ने मुझे बादशाही अता की है।
\v 30 तुम मेरी बादशाही में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ खाओ और पियोगे, और तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे।
\v 36 उस ने कहा, “लेकिन अब जिस के पास बटूवा या थैला हो वह उसे साथ ले जाए, बल्कि जिस के पास तलवार न हो वह अपनी चादर बेच कर तलवार ख़रीद ले।
\s5
\v 37 कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘उसे मुल्ज़िमों में शुमार किया गया’ और मैं तुम को बताता हूँ, ज़रूरी है कि यह बात मुझ में पूरी हो जाए। क्यूँकि जो कुछ मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा ही होना है।”
\v 51 लेकिन ईसा' ने कहा, “बस कर!” उस ने ग़ुलाम का कान छू कर उसे शिफ़ा दी।
\s5
\v 52 फिर वह उन रेहनुमा इमामों, बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़्सरों और बुज़ुर्गों से मुख़ातिब हुआ जो उस के पास आए थे, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मेरे ख़िलाफ़ निकले हो?
\v 53 मैं तो रोज़ाना बैत-उल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था, मगर तुम ने वहाँ मुझे हाथ नहीं लगाया। लेकिन अब यह तुम्हारा वक़्त है, वह वक़्त जब तारीकी हुकूमत करती है।”
\v 60 लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “यार, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!” वह अभी बात कर ही रहा था कि अचानक मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी।
\s5
\v 61 ख़ुदावन्द ने मुड़ कर पतरस पर नज़र डाली। फिर पतरस को ख़ुदावन्द की वह बात याद आई जो उस ने उस से कही थी कि “कल सुबह मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।”
\v 1 फिर पूरी मज्लिस उठी और 'ईसा को पीलातुस के पास ले आई।
\v 2 और उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगा कर कहने लगे, “हम ने मालूम किया है कि यह आदमी हमारी क़ौम को गुमराह कर रहा है। यह क़ैसर को ख़िराज देने से मना करता और दा'वा करता है कि मैं मसीह और बादशाह हूँ।”
\v 5 मगर वो और भी ज़ोर देकर कहने लगे कि ये तमाम यहूदिया में बल्कि गलील से लेकर यहाँ तक लोगो को सिखा सिखा कर उभारता है
\s5
\v 6 यह सुन कर पीलातुस ने पूछा, “क्या यह शख़्स गलील का है?”
\v 7 जब उसे मालूम हुआ कि ईसा' गलील यानी उस इलाक़े से है, जिस पर हेरोदेस अनतिपास की हुकूमत है तो उस ने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्यूँकि वह भी उस वक़्त यरूशलीम में था।
\v 8 हेरोदेस ईसा' को देख कर बहुत ख़ुश हुआ, क्यूँकि उस ने उस के बारे में बहुत कुछ सुना था, और इस लिए काफ़ी दिनों से उस से मिलना चाहता था। अब उस की बड़ी ख़्वाहिश थी, कि ईसा' को कोई मोजिज़ा करते हुए देख सके।
\v 9 उस ने उस से बहुत सारे सवाल किए, लेकिन ईसा' ने एक का भी जवाब न दिया।
\v 10 रहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा साथ खड़े बड़े जोश से उस पर इल्ज़ाम लगाते रहे।
\s5
\v 11 फिर हेरोदेस और उस के फ़ौजियों ने उसको ज़लील करते हुए उस का मज़ाक़ उड़ाया और उसे चमकदार लिबास पहना कर पीलातुस के पास वापस भेज दिया।
\v 12 उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस दोस्त बन गए, क्यूँकि इस से पहले उन की दुश्मनी चल रही थी।
\v 13 फिर पीलातुस ने रहनुमा इमामों, सरदारों और अवाम को जमा करके;
\v 14 उन से कहा, “तुम ने इस शख़्स को मेरे पास ला कर इस पर इल्ज़ाम लगाया है कि यह क़ौम को उकसा रहा है। मैं ने तुम्हारी मौजूदगी में इस का जायज़ा ले कर ऐसा कुछ नहीं पाया जो तुम्हारे इल्ज़ामात की तस्दीक़ करे।
\s5
\v 15 हेरोदेस भी कुछ नहीं मालूम कर सका, इस लिए उस ने इसे हमारे पास वापस भेज दिया है। इस आदमी से कोई भी ऐसा गुनाह नहीं हुआ कि यह सज़ा-ए-मौत के लायक़ है।
\v 16 इस लिए मैं इसे कोड़ों की सज़ा दे कर रिहा कर देता हूँ।”
\v 17 [अस्ल में यह उस का फ़र्ज़ था कि वह ईद के मौक़े पर उन की ख़ातिर एक क़ैदी को रिहा कर दे।]
\s5
\v 18 लेकिन सब मिल कर शोर मचा कर कहने लगे, “इसे ले जाएँ! इसे नहीं बल्कि बर-अब्बा को रिहा करके हमें दें।”
\v 19 (बर-अब्बा को इस लिए जेल में डाला गया था कि वह क़ातिल था और उस ने शहर में हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।)
\s5
\v 20 पीलातुस ईसा' को रिहा करना चाहता था, इस लिए वह दुबारा उन से मुख़ातिब हुआ।
\v 21 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें।”
\v 22 फिर पीलातुस ने तीसरी दफ़ा उन से कहा, “क्यूँ? उस ने क्या जुर्म किया है? मुझे इसे सज़ा-ए-मौत देने की कोई वजह नज़र नहीं आती। इस लिए मैं इसे कोड़े लगवा कर रिहा कर देता हूँ।”
\s5
\v 23 लेकिन वह बड़ा शोर मचा कर उसे मस्लूब करने का तक़ाज़ा करते रहे, और आख़िरकार उन की आवाज़ें ग़ालिब आ गईं।
\v 24 फिर पीलातुस ने फ़ैसला किया कि उन का मुतालबा पूरा किया जाए।
\v 25 उस ने उस आदमी को रिहा कर दिया जो अपनी हुकूमत के ख़िलाफ़ हरकतों और क़त्ल की वजह से जेल में डाल दिया गया था जबकि ईसा' को उस ने उन की मर्ज़ी के मुताबिक़ उन के हवाले कर दिया।
\v 26 जब फ़ौजी ईसा को ले जा रहे थे तो उन्हों ने एक आदमी को पकड़ लिया जो लिबिया के शहर कुरेन का रहने वाला था। उस का नाम शमाऊन था। उस वक़्त वह देहात से शहर में दाख़िल हो रहा था। उन्हों ने सलीब को उस के कंधों पर रख कर उसे ईसा' के पीछे चलने का हुक्म दिया।
\v 33 चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिस का नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्हों ने ईसा' को दोनों मुजरिमों समेत मस्लूब किया। एक मुजरिम को उस के दाएँ हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ लटका दिया गया।
\v 34 ईसा' ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्यूँकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” उन्हों ने पर्ची डाल कर उस के कपड़े आपस में बाँट लिए।
\v 35 हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उस का मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्हों ने कहा, “उस ने औरों को बचाया है। अगर यह ख़ुदा का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आप को बचाए।”
\v 50 वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था
\v 51 लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हरकतो पर रज़ामन्द नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहने वाला था और इस इन्तिज़ार में था कि ख़ुदा की बादशाही आए।
\s5
\v 52 अब उस ने पिलातुस के पास जा कर उस से ईसा' की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी।
\v 53 फिर लाश को उतार कर उस ने उसे कतान के कफ़न में लपेट कर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिस में अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था।
\s5
\v 54 यह तैयारी का दिन यानी जुमआ था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था ।
\v 55 जो औरतें ईसा' के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्हों ने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा' की लाश किस तरह उस में रखी गई है।
\v 56 फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुश्बूदार मसाले तैयार करने लगीं।
\v 1 सबत का दिन शुरू हुआ, इस लिए उन्हों ने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया। इतवार के दिन यह औरतें अपने तैयारशुदा मसाले ले कर सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं।
\v 2 वहाँ पहुँच कर उन्हों ने देखा कि क़ब्र पर का पत्थर एक तरफ़ लुढ़का हुआ है।
\v 3 लेकिन जब वह क़ब्र में गईं तो वहाँ ख़ुदावन्द ईसा' की लाश न पाई।
\s5
\v 4 वह अभी उलझन में वहाँ खड़ी थीं कि अचानक दो मर्द उन के पास आ खड़े हुए जिन के लिबास बिजली की तरह चमक रहे थे।
\v 5 औरतें ख़ौफ़ खा कर मुँह के बल झुक गईं, लेकिन उन मर्दों ने कहा, “तुम क्यूँ ज़िन्दा को मुर्दों में ढूँड रही हो?
\s5
\v 6 वह यहाँ नहीं है, वह तो जी उठा है। वह बात याद करो जो उस ने तुम से उस वक़्त कही जब वह गलील में था।
\v 7 ‘जरूरी है कि इब्न-ए-आदम को गुनाहगारों के हवाले कर के, मस्लूब किया जाए और कि वह तीसरे दिन जी उठे’।”
\s5
\v 8 फिर उन्हें यह बात याद आई।
\v 9 और क़ब्र से वापस आ कर उन्हों ने यह सब कुछ ग्यारह रसूलों और बाक़ी शागिर्दों को सुना दिया।
\v 10 मरियम मग्दलीनी, यूना, याक़ूब की माँ मरियम और चन्द एक और औरतें उन में शामिल थीं जिन्हों ने यह बातें रसूलों को बताईं।
\s5
\v 11 लेकिन उन को यह बातें बेतुकी सी लग रही थीं, इस लिए उन्हें यक़ीन न आया।
\v 12 तो भी पतरस उठा और भाग कर क़ब्र के पास आया। जब पहुँचा तो झुक कर अन्दर झाँका, लेकिन सिर्फ़ कफ़न ही नज़र आया। यह हालात देख कर वह हैरान हुआ और चला गया।
\v 19 उस ने कहा, “क्या हुआ है?” उन्हों ने जवाब दिया, “वह जो ईसा' नासरी के साथ हुआ है। वह नबी था जिसे कलाम और काम में ख़ुदा और तमाम क़ौम के सामने ज़बरदस्त ताक़त हासिल थी।
\v 44 फिर उस ने उन से कहा, “यही है जो मैं ने तुम को उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।”
\s5
\v 45 फिर उस ने उन के ज़हन को खोल दिया ताकि वह ख़ुदा का कलाम समझ सकें।
\v 46 उस ने उन से कहा, “कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, मसीह दुख उठा कर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा।
\v 47 फिर यरूशलम से शुरू करके उस के नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ।
\s5
\v 48 तुम इन बातों के गवाह हो।
\v 49 और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिस का वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुम को आस्मान की ताक़त से भर दिया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।”