\v 4 यूहन्ना आया और वीरानों में बपितस्मा देता और गुनाहों की मुआफ़ी। के लिए तौबा के बपितस्मे का ऐलान करता था
\v 5 और यहूदिया के मुल्क के सब लोग, और यरूशलीम के सब रहनेवाले निकल कर उस के पास गए, और उन्होंने अपने गुनाहों को कुबूल करके दरिया-ए-यर्दन में उससे बपतिस्मा लिया ।
\v 6 ये यूहन्ना ऊँटों के बालों से बनी पोशाक पहनता और चमड़े का पटटा अपनी कमर से बाँधे रहता था। और वो टिड्डियाँ और जंगली शहद खाता था।
\v 25 ईसा' ने उसे झिड़क कर कहा, “चुप रह , और इस में से निकल जा!।”
\v 26 तब वो बदरूह उसे मरोड़ कर बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर उस में से निकल गई।
\s5
\v 27 और सब लोग हैरान हुए “और आपस में ये कह कर बहस करने लगे " ये कौन है । ये तो नई ता'लीम है? वो बदरूहों को भी इख़्तियार के साथ हुक्म देता है, और वो उसका हुक्म मानती हैं।”
\v 28 और फ़ौरन उसकी शोहरत गलील के आस पास में हर जगह फैल गई।
\v 32 शाम को सूरज डूबने के बाद लोग बहुत से बीमारों को उसके पास लाए।
\v 33 और सारे शहर के लोग दरवाज़े पर जमा हो गए ।
\v 34 और उसने बहुतों को जो तरह तरह की बीमारियों में गिरफ़्तार थे, अच्छा किया और बहुत सी बदरूहों को निकाला और बदरूहों को बोलने न दिया, क्यूंकि वो उसे पहचानती थीं।
\v 41 उसने उसपर तरस खाकर हाथ बढ़ाया और उसे छूकर उस से कहा।“मैं चाहता हूँ, तू पाक साफ हो जा।”
\v 42 और फ़ौरन उसका कोढ़ जाता रहा और वो पाक साफ हो गया।
\s5
\v 43 और उसने उसे हिदायत कर के फ़ौरन रुख़्सत किया।
\v 44 और उससे कहा “ख़बरदार! किसी से कुछ न कहना जाकर अपने आप को इमामों को दिखा, और अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे में उन चीज़ो को जो मूसा ने मुक़रर्र की हैं नज़्र गुजार ताकि उनके लिए गवाही हो।”
\s5
\v 45 लेकिन वो बाहर जाकर बहुत चर्चा करने लगा, और इस बात को इस क़दर मशहूर किया कि ईसा शहर में फिर खुलेआम दाख़िल न हो सका; बल्कि बाहर वीरान मुक़ामों में रहा, और लोग चारों तरफ़ से उसके पास आते थे।
\v 1 कई दिन बा'द जब 'ईसा कफ़रनहूम में फिर दाख़िल हुआ तो सुना गया कि वो घर में है।
\v 2 फिर इतने आदमी जमा हो गए, कि दरवाज़े के पास भी जगह न रही और वो उनको कलाम सुना रहा था।
\s5
\v 3 और लोग एक फ़ालिज मारे हुए को चार आदमियों से उठवा कर उस के पास लाए।
\v 4 मगर जब वो भीड़ की वजह से उसके नज़दीक न आ सके तो उन्होने उस छत को जहाँ वो था, खोल दिया और उसे उधेड़ कर उस चारपाई को जिस पर फ़ालिज का मारा हुआ लेटा था, लटका दिया।
\s5
\v 5 ईसा' ने उन लोंगो का ईमान देख कर फ़ालिज मारे हुए से कहा,“बेटा, तेरे गुनाह मुआफ़ हुए।”
\v 12 और वो उठा; फ़ौरन अपनी चारपाई उठाकर उन सब के सामने बाहर चला गया, चुनाँचे वो सब हैरान हो गए, और ख़ुदा की तम्जीद करके कहने लगे “हम ने ऐसा कभी नहीं देखा था!”
\v 15 और यूँ हुआ कि वो उस के घर में खाना खाने बैठा | बहुत से महसूल लेने वाले और गुनाहगार लोग ईसा' और उसके शागिर्दों के साथ खाने बैठे,क्यूंकि वो बहुत थे, और उसके पीछे हो लिए थे।
\v 16 फ़रीसियों ने फ़क़ीहों ने उसे गुनाहगारों और महसूल लेने वालों के साथ खाते देखकर उसके शागिर्दों से कहा, “ये तो महसूल लेने वालों और गुनाहगारों के साथ खाता पीता है।”
\v 18 और यूहन्ना के शागिर्द और फ़रीसी रोज़े से थे, उन्होंने आकर उस से कहा, “यूहन्ना के शागिर्द और फ़रीसियों के शागिर्द तो रोज़ा रखते हैं? लेकिन तेरे शागिर्द क्यूँ रोज़ा नहीं रखते।”
\v 19 ईसा' ने उनसे कहा “क्या बाराती जब तक दुल्हा उनके साथ है रोज़ा रख सकते हैं? जिस वक़्त तक दुल्हा उनके साथ है वो रोज़ा नहीं रख सकते।
\s5
\v 20 मगर वो दिन आएँगे कि दुल्हा उनसे जुदा किया जाएगा, उस वक़्त वो रोज़ा रखेंगे।
\v 21 कोरे कपड़े का पैवन्द पुरानी पोशाक पर कोई नहीं लगाता नहीं तो वो पैवन्द उस पोशाक में से कुछ खींच लेगा, या'नी नया पुरानी से और वो ज़ियादा फट जाएगी।
\s5
\v 22 और नई मय को पुरानी मश्कों में कोई नहीं भरता नहीं तो मश्कें मय से फ़ट जाएँगी और मय और मश्कें दोनों बरबाद हो जाएँगी बल्कि नई मय को नई मश्कों मे भरते हैं।”
\v 25 उसने उनसे कहा,“क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा कि दाऊद ने क्या किया जब उस को और उस के साथियों को ज़रूरत हुई और वो भूखे हुए ?
\v 26 वो क्यूँकर अबियातर सरदार काहिन के दिनों में ख़ुदा के घर में गया, और उस ने नज़्र की रोटियाँ खाईं जिनको खाना काहिनों के सिवा और किसी को जाएज़ नहीं था और अपने साथियों को भी दीं”|?
\s5
\v 27 और उसने उनसे कहा “सबत आदमी के लिए बना है न आदमी सब्त के लिए।
\v 1 और वो इबादतख़ाने में फिर दाख़िल हुआ और वहाँ एक आदमी था, जिसका हाथ सूखा हुआ थ।
\v 2 और वो उसके इंतिज़ार में रहे, कि अगर वो उसे सब्त के दिन अच्छा करे तो उस पर इल्ज़ाम लगाएँ।
\s5
\v 3 उसने उस आदमी से जिसका हाथ सूखा हुआ था कहा “बीच में खड़ा हो।”
\v 4 और उसने कहा“सब्त के दिन नेकी करना जाएज़ है या बदी करना?जान बचाना या क़त्ल करना”वो चुप रह गए।
\s5
\v 5 उसने उनकी सख़्त दिली की वजह से ग़मगीन होकर और चारों तरफ़ उन पर ग़ुस्से से नज़र करके उस आदमी से कहा, “अपना हाथ बढ़ा।”उस ने बढ़ा दिया, और उसका हाथ दुरुस्त हो गया।
\v 6 फिर फ़रीसी फ़ौरन बाहर जाकर हेरोदियों के साथ उसके ख़िलाफ़ मशवरा करने लगे।कि उसे किस तरह हलाक करें |
\v 1 वो फिर झील के किनारे ता'लीम देने लगा ; और उसके पास ऐसी बड़ी भीड़ जमा हो गई, वो झील में एक नाव में जा बैठा और सारी भीड़ ख़ुश्की पर झील के किनारे रही।
\v 2 और वो उनको मिसालों में बहुत सी बातें सिखाने लगा,और अपनी ता'लीम में उनसे कहा।
\s5
\v 3 “सुनो! देखो; एक बोने वाला बीज बोने निकला।
\v 4 और बोते वक़्त यूँ हुआ कि कुछ राह के किनारे गिरा और परिन्दों ने आकर उसे चुग लिया।
\v 5 ओर कुछ पत्थरीली ज़मीन पर गिरा, जहाँ उसे बहुत मिट्टी न मिली और गहरी मिट्टी न मिलने की वजह से जल्द उग आया।
\s5
\v 6 और जब सुरज निकला तो जल गया और जड़ न होने की वजह से सूख गया।
\v 7 और कुछ झाड़ियों में गिरा और झाड़ियों ने बढ़कर दबा लिया, और वो फल न लाया।
\s5
\v 8 और कुछ अच्छी ज़मीन पर गिरा और वो उगा और बढ़कर फला; और कोई तीस गुना कोई साठ गुना कोई सौ गुना फल लाया।”
\v 9 “फिर उसने कहा! जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले।”
\v 1 और वो झील के पार गिरासीनियों के इलाक़े में पहुँचे।
\v 2 जब वो नाव से उतरा तो फ़ौरन एक आदमी जिस में बदरूह थी, क़ब्रों से निकल कर उससे मिला।
\s5
\v 3 वो क़ब्रों में रहा करता था और अब कोई उसे ज़ंजीरो से भी न बाँध सकता था।
\v 4 क्यूंकि वो बार बार बेड़ियों और जंजीरों से बाँधा गया था, लेकिन उसने जंजीरों को तोड़ा और बेड़ियों के टुकड़े टुकड़े किया था, और कोई उसे क़ाबू में न ला सकता था।
\s5
\v 5 वो हमेशा रात दिन क़ब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता और अपने आपको पत्थरों से ज़ख़्मी करता था।
\v 6 वो ईसा' को दूर से देखकर दौड़ा और उसे सजदा किया।
\s5
\v 7 और बड़ी आवाज़ से चिल्ला कर कहा“ऐ ईसा' ख़ुदा ता'ला के फ़र्ज़न्द मुझे तुझ से क्या काम? तुझे ख़ुदा की क़सम देता हूँ, मुझे अज़ाब में न डाल।”
\v 8 क्यूंकि उसने उससे कहा था,“ऐ बदरूह! इस आदमी में से निकल आ।”
\v 9 फिर उसने उससे पूछा “तेरा नाम क्या है?”उस ने उससे कहा “मेरा नाम लश्कर, है क्यूंकि हम बहुत हैं।”
\v 10 फिर उसने उसकी बहुत मिन्नत की, कि हमें इस इलाक़े से बाहर न भेज।
\s5
\v 11 और वहाँ पहाड़ पर ख़िन्जीरों का एक बड़ा ग़ोल चर रहा था।
\v 12 पस उन्होंने उसकी मिन्नत करके कहा, “हम को उन ख़िन्जीरों में भेज दे,ताकि हम इन में दाख़िल हों।”
\v 13 पस उसने उनको इजाज़त दी और बदरूहें निकल कर ख़िन्जीरों में दाख़िल हो गईं, और वो ग़ोल जो कोई दो हज़ार का था किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और झील में डूब मरा।
\s5
\v 14 और उनके चराने वालों ने भागकर शहर और देहात में ख़बर पहुँचाई।
\v 15 पस लोग ये माजरा देखने को निकलकर ईसा' के पास आए, और जिस में बदरूहें या'नी बदरूहों का लश्कर था, उसको बैठे और कपड़े पहने और होश में देख कर डर गए।
\s5
\v 16 देखने वालों ने उसका हाल जिस में बदरुहें थीं और ख़िन्जीरों का माजरा उनसे बयान किया।
\v 17 वो उसकी मिन्नत करने लगे कि हमारी सरहद से चला जा।
\v 18 जब वो नाव में दाख़िल होने लगा तो जिस में बदरूहें थीं उसने उसकी मिन्नत की“ मै तेरे साथ रहूँ।”
\v 19 लेकिन उसने उसे इजाज़त न दी बल्कि उस से कहा“अपने लोगों के पास अपने घर जा और उनको ख़बर दे कि ख़ुदावन्द ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए, और तुझ पर रहम किया।”
\v 20 वो गया और दिकापुलिस में इस बात की चर्चा करने लगा, कि ईसा' ने उसके लिए कैसे बड़े काम किए,और सब लोग ताअ'ज्जुब करते थे।
\v 1 फिर वहाँ से निकल कर 'ईसा अपने शहर में आया और उसके शागिर्द उसके पीछे हो लिए।
\v 2 जब सब्त का दिन आया “तो वो इबादतख़ाने में ता'लीम देने लगा और बहुत लोग सुन कर हैरान हुए और कहने लगे, "ये बातें इस में कहाँ से आ गईं? और ये क्या हिकमत है जो इसे बख़्शी गई और कैसे मो'जिज़े इसके हाथ से ज़ाहिर होते हैं।?
\v 3 क्या ये वही बढ़ई नहीं जो मरियम का बेटा और या'क़ूब और योसेस और यहूदाह और शमा'ऊन का भाई है और क्या इसकी बहनें यहाँ हमारे हाँ नहीं?” पस उन्होंने उसकी वजह से ठोकर खाई।
\v 14 और हेरोदेस बादशाह ने उसका ज़िक्र सुना“क्यूँकि उसका नाम मशहूर होगया था और उसने कहा, "यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला मुर्दों में से जी उठा है, क्यूँकि उससे मो'जिज़े ज़ाहिर होते हैं।”
\v 15 मगर बा'ज़ कहते थे, एलियाह है और बा'ज़ ये नबियों में से किसी की मानिन्द एक नबी है।
\v 17 क्यूंकि हेरोदेस ने अपने आदमी भेजकर यूहन्ना को पकड़वाया और अपने भाई फ़िलिपुस की बीवी हेरोदियास की वजह से उसे क़ैदख़ाने में बाँध रखा था, क्यूंकि हेरोदेस ने उससे शादी कर ली थी।
\s5
\v 18 और यूहन्ना ने उससे कहा था, “अपने भाई की बीवी को रखना तुझे जाएज नहीं।”
\v 19 पस हेरोदियास उस से दुश्मनी रखती और चाहती थी कि उसे क़त्ल कराए, मगर न हो सका।
\v 20 क्यूंकि हेरोदेस यूहन्ना को रास्तबाज़ और मुक़द्दस आदमी जान कर उससे डरता और उसे बचाए रखता था और उसकी बातें सुन कर बहुत हैरान हो जाता था, मगर सुनता ख़ुशी से था।
\v 21 और मौक़े के दिन जब हेरोदेस ने अपनी सालगिराह में अमीरों और फ़ौजी सरदारों और गलील के रईसों की दावत की ।
\v 22 और उसी हेरोदियास की बेटी अन्दर आई और नाच कर हेरोदेस और उसके मेहमानो को ख़ुश किया तो बादशाह ने उस लड़की से कहा, “जो चाहे मुझ से माँग मैं तुझे दूँगा।”
\s5
\v 23 और उससे क़सम खाई “जो कुछ तू मुझ से माँगेगी अपनी आधी सल्तन्त तक तुझे दूँगा।”
\v 25 वो फ़ौरन बादशाह के पास जल्दी से अन्दर आई और उस से अर्ज़ किया, “मैं चाहती हूँ कि तू यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले का सिर एक थाल में अभी मुझे मंगवा दें।”
\s5
\v 26 बादशाह बहुत ग़मगीन हुआ मगर अपनी क़समों और मेहमानों की वजह से उसे इन्कार करना न चाहा।
\v 27 पस बादशाह ने फ़ौरन एक सिपाही को हुक्म देकर भेजा कि उसका सिर लाए, उसने जाकर क़ैद ख़ाने में उस का सिर काटा।
\v 28 और एक थाल में लाकर लड़की को दिया और लड़की ने माँ को दिया।
\v 29 फिर उसके शागिर्द सुन कर आए, उस की लाश उठा कर क़ब्र में रख्खी।
\v 30 और रसूल ईसा' के पास जमा हुए और जो कुछ उन्होंने किया और सिखाया था, सब उससे बयान किया।
\v 31 उसने उनसे कहा, “तुम आप अलग वीरान जगह में चले आओ और ज़रा आराम करो इसलिए कि बहुत लोग आते जाते थे और उनको खाना खाने को भी फुर्सत न मिलती थी।”
\v 32 पस वो नाव में बैठ कर अलग एक वीरान जगह में चले आए।
\s5
\v 33 लोगों ने उनको जाते देखा और बहुतेरों ने पहचान लिया और सब शहरों से इकट्ठे हो कर पैदल उधर दौड़े और उन से पहले जा पहुँचे।
\v 34 और उसने उतर कर बड़ी भीड़ देखी और उसे उनपर तरस आया क्यूँकि वो उन भेड़ों की मानिन्द थे, जिनका चरवाहा न हो; और वो उनको बहुत सी बातों की ता'लीम देने लगा।
\v 38 उसने उनसे पूछा, “ तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने दरियाफ़्त करके कहा, “ पाँच और दो मछलियाँ ।”
\s5
\v 39 उसने उन्हें हुक्म दिया कि, “ सब हरी घास पर कतार में होकर बैठ जाएँ|”
\v 40 पस वो सौ सौ और पचास पचास की कतारें बाँध कर बैठ गए।
\v 41 फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देखकर बरकत दी; और रोटियाँ तोड़ कर शागिर्दों को देता गया कि उनके आगे रख्खें, और वो दो मछलियाँ भी उन सब में बाँट दीं।
\s5
\v 42 पस वो सब खाकर सेर हो गए।
\v 43 और उन्होंने बे इस्तेमाल खाने और मछलियों से बारह टोकरियाँ भरकर उठाईं।
\v 45 और फ़ौरन उसने अपने शागिर्दों को मजबूर किया कि नाव पर बैठ कर उस से पहले उस पार बैत सैदा को चले जाएँ जब तक वो लोगों को रुख़्सत करे।
\v 46 उनको रुख़्सत करके पहाड़ पर दुआ करने चला गया।
\v 47 जब शाम हुई तो नाव झील के बीच में थी और वो अकेला ख़ुश्की पर था।
\s5
\v 48 जब उसने देखा कि वो खेने से बहुत तंग हैं क्यूंकि हवा उनके मुख़ालिफ़ थी तो रात के पिछले पहर के क़रीब वो झील पर चलता हुआ उनके पास आया और उनसे आगे निकल जाना चाहता था।
\v 49 लेकिन उन्होंने उसे झील पर चलते देखकर ख़याल किया कि “भूत है” और चिल्ला उठे।
\v 50 क्यूँकि सब उसे देख कर घबरा गए थे ,मगर उसने फ़ौरन उनसे बातें कीं और कहा, “मुतमईन रहो ! मैं हूँ डरो मत।”
\s5
\v 51 फिर वो नाव पर उनके पास आया और हवा थम गई। और वो अपने दिल में निहायत हैरान हुए।
\v 52 इसलिए कि वो रोटियों के बारे में न समझे थे, बल्कि उनके दिल सख़्त हो गए थे।
\v 53 और वो पार जाकर गनेसरत के इलाक़े में पहुँचे और नाव किनारे पर लगाई।
\v 54 और जब नाव पर से उतरे तो फ़ौरन लोग उसे पहचान कर।
\v 55 उस सारे इलाक़े में चारों तरफ़ दौड़े और बीमारों को चारपाइयों पर डाल कर जहाँ कहीं सुना कि वो है वहाँ लिए फिरे।
\s5
\v 56 और वो गावँ शहरों और बस्तियों में जहाँ कहीं जाता था लोग बीमारों को राहों में रख कर उसकी मिन्नत करते थे कि वो सिर्फ़ उसकी पोशाक का किनारा छू लें और जितने उसे छूते थे शिफ़ा पाते थे।
\v 1 फिर फ़रीसी और कुछ आलिम उसके पास जमा हुए, वो यरूशलीम से आए थे।
\s5
\v 2 और उन्होंने देखा कि उसके कुछ शागिर्द नापाक या'नी बिना धोए हाथो से खाना खाते हैं
\v 3 क्यूकि फ़रीसी और सब यहूदी बुज़ुर्गों की रिवायत के मुताबिक़ जब तक अपने हाथ ख़ूब न धोलें नहीं खाते।
\v 4 और बाज़ार से आकर जब तक ग़ुस्ल न कर लें नहीं खाते, और बहुत सी और बातों के जो उनको पहुँची हैं पाबन्द हैं, जैसे प्यालों और लोटों और ताँबे के बर्तनों को धोना।
\s5
\v 5 पस फ़रीसियों और आलिमों ने उस से पूछा, “क्या वजह है कि तेरे शागिर्द बुज़ुर्गों की रिवायत पर नहीं चलते बल्कि नापाक हाथों से खाना खाते हैं?”
\v 6 उसने उनसे कहा, “ यसा'याह ने तुम रियाकारों के हक़ में क्या ख़ूब नबुव्वत की; जैसे लिखा है कि: ‘ ये लोग होंटों से तो मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझ से दूर है।
\v 5 उसने उनसे पूछा, “ तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।”
\v 6 फिर उसने लोगों को हुक्म दिया कि ज़मीन पर बैठ जाएँ| उसने वो सात रोटियाँ लीं और शुक्र करके तोड़ीं, और अपने शागिर्दों को देता गया कि उनके आगे रख्खें, और उन्होंने लोगों के आगे रख दीं।
\s5
\v 7 उनके पास थोड़ी सी छोटी मछलियाँ भी थीं उसने उन पर बरकत देकर कहा कि ये भी उनके आगे रख दो।
\v 8 पस वो खा कर सेर हुए और बचे हुए बे इस्तेमाल खाने के सात टोकरे उठाए।
\v 9 और वो लोग चार हज़ार के क़रीब थे, फिर उसने उनको रुख़्सत किया।
\v 10 वो फ़ौरन अपने शागिर्दों के साथ नाव में बैठ कर दलमनूता के सूबा में गया।
\v 11 फिर फ़रीसी निकल कर उस से बहस करने लगे, और उसे आज़माने के लिए उससे कोई आसमानी निशान तलब किया।
\v 12 उसने अपनी रूह में आह खीच कर कहा,“ इस ज़माने के लोग क्यूँ निशान तलब करते हैं? मै तुम से सच कहता हूँ, कि इस ज़माने के लोगों को कोई निशान न दिया जाएगा|”
\v 13 और वो उनको छोड़ कर फिर नाव में बैठा और पार चला गया।
\v 17 मगर ईसा' ने ये मा'लूम करके कहा,“तुम क्यूँ ये चर्चा करते हो कि हमारे पास रोटी नहीं? क्या अब तक नहीं जानते, और नहीं समझते हो? क्या तुम्हारा दिल सख़्त हो गया है?
\s5
\v 18 आखें हैं और तुम देखते नहीं कान हैं और सुनते नहीं और क्या तुम को याद नहीं।
\v 19 जिस वक़्त मैने वो पाँच रोटियाँ पाँच हज़ार के लिए तोड़ीं तो तुम ने कितनी टोकरियाँ बे इस्तेमाल खाने से भरी हुई उठाईं?” उन्हों ने उस से कहा “बारह”।
\v 31 फिर वो उनको ता'लीम देने लगा, कि ज़रूर है कि इबने आदम बहुत दु:ख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें, और वो क़त्ल किया जाए, और तीन दिन के बा'द जी उठे।
\v 32 उसने ये बात साफ़ साफ़ कही पतरस उसे अलग ले जाकर उसे मलामत करने लगा।
\s5
\v 33 मगर उसने मुड़ कर अपने शागिर्दों पर निगाह करके पतरस को मलामत की और कहा“,"ऐ शैतान मेरे सामने से दूर हो; क्यूँकि तू ख़ुदा की बातों का नहीं बल्कि आदमियों की बातों का ख़याल रखता है। ।”
\v 34 फिर उसने भीड़ को अपने शागिर्दों समेत पास बुला कर उनसे कहा,“अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इन्कार करे और अपनी सलीब उठाए, और मेरे पीछे हो ले।
\s5
\v 35 क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे वो उसे खोएगा, और जो कोई मेरी और इन्जील की ख़ातिर अपनी जान खोएगा, वो उसे बचाएगा।
\v 36 आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान का नुक़्सान उठाए, तो उसे क्या फ़ाइदा होगा?
\v 37 और आदमी अपनी जान के बदले क्या दे?
\s5
\v 38 क्यूँकि जो कोई इस बे ईमान और बुरी क़ौम में मुझ से और मेरी बातों से शरमाए गा, इबने आदम भी अपने बाप के जलाल में पाक फ़रिश्तों के साथ आएगा तो उस से शरमाएगा।”
\v 1 और उसने उनसे कहा' मै तुम से सच कहता हूँ “जो यहाँ खड़े हैं उन में से कुछ ऐसे हैं जब तक ख़ुदा की बादशाही को क़ुदरत के साथ आया हुआ देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगे। ”
\v 12 उसने उनसे कहा,“एलियाह अलबत्ता पहले आकर सब कुछ बहाल करेगा मगर क्या वजह है कि इबने आदम के हक़ में लिखा है कि वो बहुत से दु:ख उठाएगा और ज़लील किया जाएगा?
\v 13 लेकिन मै तुम से कहता हूँ, कि एलियाह तो आ चुका”और जैसा उसके हक़ में लिखा है उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साथ किया।
\v 17 और भीड़ में से एक ने उसे जवाब दिया,“ऐ उस्ताद! मै अपने बेटे को जिसमे गूंगी रूह है तेरे पास लाया था |
\v 18 वो जहाँ उसे पकड़ती है, पटक देती है; और वो क़फ़ भर लाता और दाँत पीसता और सूखता जाता है| मैने तेरे शागिर्दों से कहा था, वो उसे निकाल दें मगर वो न निकाल सके|”
\v 30 फिर वहाँ से रवाना हुए और गलील से हो कर गुज़रे और वो न चाहता था कि कोई जाने।
\v 31 इसलिए कि वो अपने शागिर्दों को ता'लीम देता और उनसे कहता था, “इब्ने आदम आदमियों के हवाले किया जाएगा और वो उसे क़त्ल करेंगे और वो क़त्ल होने के तीन दिन बा'द जी उठेगा।”
\v 32 लेकिन वो इस बात को समझते न थे, और उस से पूछते हुए डरते थे।
\v 33 फिर वो कफ़रनहूम में आए और जब वो घर में था तो उसने उनसे पूछा, “तुम रास्ते में क्या बहस करते थे?”
\v 34 वो चुप रहे क्यूँकि उन्होंने रास्ते में एक दूसरे से ये बहस की थी कि बड़ा कौन है?
\v 35 फिर उसने बैठ कर उन बारह को बुलाया और उनसे कहा“अगर कोई अव्वल होना चाहे तो वो सब से पिछला और सब का ख़ादिम बने।”
\s5
\v 36 और एक बच्चे को लेकर उन के बीच में खड़ा किया फिर उसे गोद में लेकर उनसे कहा।
\v 37 “जो कोई मेरे नाम पर ऐसे बच्चों में से एक को क़बूल करता है वो मुझे क़बूल करता है और जो कोई मुझे क़बूल करता है वो मुझे नहीं बल्कि उसे जिस ने मुझे भेजा है क़बूल करता है।”
\v 38 यूहन्ना ने उस से कहा “ऐ उस्ताद हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूहों को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे ”क्यूँकि वो हमारी पैरवी नहीं करता था।
\v 39 लेकिन ईसा' ने कहा“उसे मना न करना क्यूँकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से मो'जिज़े दिखाए और मुझे जल्द बुरा कह सके।
\s5
\v 40 क्यूँकि जो हमारे ख़िलाफ़ नहीं वो हमारी तरफ़ है।
\v 41 जो कोई एक प्याला पानी तुम को इसलिए पिलाए कि तुम मसीह के हो मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो अपना अज्र हरगिज़ न खोएगा।
\s5
\v 42 और जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर ईमान लाए हैं किसी को ठोकर खिलाए, उसके लिए ये बेहतर है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वो समुन्दर में फेंक दिया जाए।
\v 43 अगर तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल टुंडा हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो हाथ होते जहन्नुम के बीच उस आग में जाए जो कभी बुझने की नहीं।।
\v 44 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 45 और अगर तेरा पावँ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल लंगड़ा हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो पावँ होते जहन्नुम में डाला जाए।
\v 46 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 47 और अगर तेरी आँख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल काना हो कर ज़िन्दगी में दाख़िल होना तेरे लिए इससे बेहतर है कि दो आँखें होते जहन्नुम में डाला जाए।
\v 48 जहाँ उनका कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
\s5
\v 49 क्यूँकि हर शख़्स आग से नमकीन किया जाएगा [और हर एक क़ुर्बानी नमक से नमकीन की जाएगी]।
\v 50 नमक अच्छा है लेकिन अगर नमक की नमकीनी जाती रहे तो उसको किस चीज़ से मज़ेदार करोगे? अपने में नमक रख्खो और एक दूसरे के साथ मेल मिलाप से रहो।”
\v 1 फिर वो वहाँ से उठ कर यहूदिया की सरहदों में और यरदन के पार आया और भीड़ उसके पास फिर जमा हो गई और वो अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ फिर उनको ता'लीम देने लगा।
\v 2 और फ़रीसियों ने पास आकर उसे आज़माने के लिए उससे पूछा,“क्या ये जायज़ है कि मर्द अपनी बीवी को छोड़ दे?”
\v 17 जब वो बाहर निकल कर रास्ते में जा रहा था तो एक शख़्स दौड़ता हुआ उसके पास आया और उसके आगे घुटने टेक कर उससे पूछने लगा“ऐ नेक उस्ताद; में क्या करूँ कि हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस बनूँ?”
\v 21 ईसा' ने उसको देखा और उसे उस पर प्यार आया, और उससे कहा, “एक बात की तुझ में कमी है; जा, जो कुछ तेरा है बेच कर ग़रीबों को दे, तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा और आकर मेरे पीछे हो ले।”
\v 22 इस बात से उसके चहरे पर उदासी छा गई, और वो ग़मगीन हो कर चला गया; क्यूँकि बड़ा मालदार था।
\v 23 फिर ईसा' ने चारों तरफ़ नज़र करके अपने शागिर्दों से कहा, “दौलतमन्द का ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना कैसा मुश्किल है|”
\v 24 शागिर्द उस की बातों से हैरान हुए ईसा' ने फिर जवाब में उनसे कहा,“बच्चो जो लोग दौलत पर भरोसा रखते हैं उन के लिए ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना क्या ही मुश्किल है।
\v 25 ऊँट का सूई के नाके में से गुज़र जाना इस से आसान है कि दौलतमन्द ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हो ।”
\v 29 ईसा' ने कहा,“मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने घर या भाइयों या बहनों या माँ बाप या बच्चों या खेतों को मेरी ख़ातिर और इन्जील की ख़ातिर छोड़ दिया हो।
\v 30 और अब इस ज़माने में सौ गुना न पाए घर और भाई और बहनें और माएँ और बच्चे और खेत मगर ज़ुल्म के साथ और आने वाले आलम में हमेशा की ज़िन्दगी।
\v 31 ”लेकिन बहुत से अव्वल आख़िर हो जाएँगे और आख़िर अव्वल।
\v 32 और वो यरूशलीम को जाते हुए रास्ते में थे और ईसा' उनके आगे जा रहा था वो हैरान होने लगे और जो पीछे पीछे चलते थे डरने लगे पस वो फिर उन बारह को साथ लेकर उनको वो बातें बताने लगा जो उस पर आने वाली थीं,
\v 33 “देखो हम यरूशलीम को जाते हैं और इब्ने आदम सरदार काहिनों फ़क़ीहों के हवाले किया जाएगा, और वो उसके क़त्ल का हुक्म देंगे और उसे ग़ैर क़ौमों के हवाले करेंगे।
\v 34 और वो उसे ठटठों में उड़ाएँगे और उस पर थूकेंगे और उसे कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीन दिन के बा'द जी उठेगा|”
\v 38 ईसा' ने उनसे कहा “तुम नहीं जानते कि क्या माँगते हो? जो प्याला में पीने को हूँ क्या तुम पी सकते हो? और जो बपतिस्मा में लेने को हूँ तुम ले सकते हो?”
\v 39 उन्होंने उससे कहा,“हम से हो सकता है|” ईसा' ने उनसे कहा, “जो प्याला मैं पीने को हूँ तुम पियोगे? और जो बपतिस्मा मैं लेने को हूँ तुम लोगे।
\v 40 लेकिन अपनी दाहिनी या बाईं तरफ़ किसी को बिठा देना मेरा काम नहीं मगर जिन के लिए तैयार किया गया उन्ही के लिए है।”
\s5
\v 41 जब उन दसों ने ये सुना तो या'क़ूब और यूहन्ना से ख़फ़ा होने लगे।
\v 42 ईसा' ने उन्हें पास बुलाकर उनसे कहा, “तुम जानते हो कि जो ग़ैर क़ौमों के सरदार समझे जाते हैं वो उन पर हुकूमत चलाते है और उनके अमीर उन पर इख़्तियार जताते हैं।
\s5
\v 43 मगर तुम में ऐसा कौन है बल्कि जो तुम में बड़ा होना चाहता है वो तुम्हारा ख़ादिम बने।
\v 44 और जो तुम में अव्वल होना चाहता है वो सब का ग़ुलाम बने।
\v 45 क्यूँकि इब्ने आदम भी इसलिए नहीं आया कि ख़िदमत ले बल्कि इसलिए कि ख़िदमत करे और अपनी जान बहुतेरों के बदले फ़िदिये में दे।”
\v 46 और वो यरीहू में आए और जब वो और उसके शागिर्द और एक बड़ी भीड़ यरीहू से निकलती थी तो तिमाई का बेटा बरतिमाई अँधा फ़क़ीर रास्ते के किनारे बैठा हुआ था।
\v 47 और ये सुनकर कि ईसा' नासरी है चिल्ला चिल्लाकर कहने लगा, “ ऐ इब्ने दाऊद ऐ ईसा' मुझ पर रहम कर!”
\v 1 जब वो यरूशलीम के नज़दीक ज़ैतून के पहाड़ पर बैतफ़िगे और बैत अन्नियाह के पास आए तो उसने अपने शागिर्दों में से दो को भेजा।
\v 2 और उनसे कहा,“अपने सामने के गावँ में जाओ और उस में दाख़िल होते ही एक गधी का जवान बच्चा बँधा हुआ तुम्हें मिलेगा, जिस पर कोई आदमी अब तक सवार नही हुआ; उसे खोल लाओ।
\v 3 और अगर कोई तुम से कहे, ‘तुम ये क्यूँ करते हो?’ तो कहना,‘ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है|’ वो फ़ौरन उसे यहाँ भेजेगा।”
\v 11 और वो यरूशलीम में दाख़िल होकर हैकल में आया और चारों तरफ़ सब चीज़ों का मुआइना करके उन बारह के साथ बैत'अन्नियाह को गया क्यूँकि शाम हो गई थी।
\v 12 दूसरे दिन जब वो बैत'अन्नियाह से निकले तो उसे भूख लगी।
\s5
\v 13 और वो दूर से अंजीर का एक दरख़्त जिस में पत्ते थे देख कर गया कि शायद उस में कुछ पाए मगर जब उसके पास पहुँचा तो पत्तों के सिवा कुछ न पाया क्यूँकि अंजीर का मोसम न था।
\v 14 उसने उस से कहा“आइन्दा कोई तुझ से कभी फ़ल न खाए!”और उसके शागिर्दों ने सुना।
\v 15 फिर वो यरूशलीम में आए, और ईसा' हैकल में दाख़िल होकर उन को जो हैकल में ख़रीदो फ़रोख़्त कर रहे थे बाहर निकालने लगा और सराफ़ों के तख़्त और कबूतर फ़रोंशों की चौकियों को उलट दिया।
\v 16 और उसने किसी को हैकल में से होकर कोई बर्तन ले जाने न दिया।
\s5
\v 17 और अपनी ता'लीम में उनसे कहा, “क्या ये नहीं लिखा कि मेरा घर सब क़ौमों के लिए दुआ का घर कहलाएगा? मगर तुम ने उसे डाकूओं की खोह बना दिया है|”
\v 22 ईसा' ने जवाब में उनसे कहा,“ख़ुदा पर ईमान रखो।
\v 23 मैं तुम से सच कहता हूँ‘ कि जो कोई इस पहाड़ से कहे उखड़ जा और समुन्दर में जा पड़’और अपने दिल में शक न करे बल्कि यक़ीन करे कि जो कहता है वो हो जाएगा तो उसके लिए वही होगा।
\s5
\v 24 इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि जो कुछ तुम दु'आ में माँगते हो यक़ीन करो कि तुम को मिल गया और वो तुम को मिल जाएगा।
\v 25 और जब कभी तुम खड़े हुए दु'आ करते हो, अगर तुम्हें किसी से कुछ शिकायत हो तो उसे मु'आफ़ करो ताकि तुम्हारा बाप भी जो आसमान पर है तुम्हारे गुनाह मु'आफ़ करे।
\v 26 [अगर तुम मु'आफ़ न करोगे तो तुम्हारा बाप जो आसमान पर है तुम्हारे गुनाह भी मु'आफ़ न करेगा ]”
\v 1 फिर वो उनसे मिसालों में बातें करने लगा“एक शख़्स ने बाग़ लगाया और उसके चारों तरफ़ अहाता घेरा और हौज़ खोदा और बुर्ज बनाया और उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।
\v 2 फिर फल के मोसम में उसने एक नौकर को बाग़बानों के पास भेजा ताकि बाग़बानों से बाग़ के फलों का हिसाब ले ले।
\v 3 लेकिन उन्होने उसे पकड़ कर पीटा और ख़ाली हाथ लौटा दिया।
\s5
\v 4 उसने फिर एक और नौकर को उनके पास भेजा मगर उन्होंने उसका सिर फोड़ दिया और बे'इज़्ज़त किया।
\v 5 फिर उसने एक और को भेजा उन्होंने उसे क़त्ल किया फिर और बहुतेरों को भेजा उन्होंने उन में से कुछ को पीटा और कुछ को क़त्ल किया।
\s5
\v 6 अब एक बाकी था जो उसका प्यारा बेटा था‘उसने आख़िर उसे उनके पास ये कह कर भेजा कि वो मेरे बेटे का तो लिहाज़ करेंगे।’
\v 13 फिर उन्होंने कुछ फ़रीसियों और सदूक़ियों ने हेरोदेस को उसके पास भेजा ताकि बातों में उसको फँसाएँ।
\v 14 और उन्होंने आकर उससे कहा,“ऐ उस्ताद हम जानते हैं कि तू सच्चा है और किसी की परवाह नहीं करता क्यूँकि तू किसी आदमी का तरफ़दार नहीं बल्कि सच्चाई से ख़ुदा के रास्ते की ता'लीम देता है?
\v 15 पस क़ैसर को जिज़या देना जायज़ है या नहीं? हम दें या न दें?” उसने उनकी मक्कारी मा'लूम करके उनसे कहा, “तुम मुझे क्यूँ आज़माते हो? मेरे पास एक दीनार लाओ कि मैं देखूँ|”
\s5
\v 16 वो ले आए उसने उनसे कहा “ये सूरत और नाम किसका है?”उन्होंने उससे कहा “क़ैसर का।”
\v 18 फिर सदूक़ियों ने जो कहते थे कि क़यामत नहीं होगी, उसके पास आकर उससे ये सवाल किया।
\v 19 ऐ उस्ताद “हमारे लिए मूसा ने लिखा है कि अगर किसी का भाई बे-औलाद मर जाए और उसकी बीवी रह जाए तो उस का भाई उसकी बीवी को लेले ताकि अपने भाई के लिए नस्ल पैदा करे।
\s5
\v 20 सात भाई थे पहले ने बीवी की और बे-औलाद मर गया।
\v 21 दूसरे ने उसे लिया और बे-औलाद मर गया इसी तरह तीसरे ने।
\v 22 यहाँ तक कि सातों बे-औलाद मर गए,सब के बाद वह औरत भी मर गई |
\v 23 क़यामत मे ये उन में से किसकी बीवी होगी? क्यूँकि वो सातो की बीवी बनी थी।”
\v 24 ईसा' ने उनसे कहा,“क्या तुम इस वजह से गुमराह नहीं हो कि न किताब -ए-मुक़द्दस को जानते हो और न ख़ुदा की क़ुदरत को।
\v 25 क्यूँकि जब लोगों में से मुर्दे जी उठेंगे तो उन में ब्याह शादी न होगी बल्कि आसमान पर फ़रिश्तों की तरह होंगे।
\s5
\v 26 मगर इस बारे में कि मुर्दे जी उठते हैं‘क्या तुम ने मूसा की किताब में झाड़ी के ज़िक्र में नहीं पढ़ा’कि ख़ुदा ने उससे कहा मै अब्रहाम का ख़ुदा और इज़्हाक़ का ख़ुदा और या'क़ूब का ख़ुदा हूँ।
\v 27 वो तो मुर्दों का खु़दा नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है, पस तुम बहुत ही गुमराह हो। ”
\v 32 आलिम ने उससे कहा ऐ उस्ताद“बहुत ख़ूब; तू ने सच् कहा कि वो एक ही है और उसके सिवा कोई नहीं
\v 33 और उसे सारे दिल और सारी अक़्ल और सारी ताक़त से मुहब्बत रखना और अपने पड़ौसी से अपने बराबर मुहब्बत रखना सब सोख़्तनी क़ुर्बानियों और ज़बीहों से बढ़ कर है।”
\v 35 फिर ईसा' ने हैकल में तालीम देते वक़्त ये कहा, “फ़क़ीह क्यूँकर कहते हैं कि मसीह दाऊद का बेटा है ?
\v 36 दाऊद ने ख़ुद रूह -उल -क़ुद्दूस की हिदायत से कहा है‘ख़ुदावन्द ने मेरे ख़ुदावन्द से कहा; मेरी दाहिनी तरफ़ बैठ जब तक में तेरे दुश्मनों को तेरे पावँ के नीचे की चौकी न कर दूँ।’
\v 37 दाऊद तो आप से ख़ुदावन्द कहता है, फिर वो उसका बेटा कहाँ से ठहरा? आम लोग ख़ुशी से उसकी सुनते थे।”
\v 9 लेकिन तुम ख़बरदार रहो क्यूँकि लोग तुम को अदालतों के हवाले करेंगे और तुम इबादतख़ानों में पीटे जाओगे; और हाकिमों और बादशाहों के सामने मेरी ख़ातिर हाज़िर किए जाओगे ताकि उनके लिए गवाही हो।
\v 10 और ज़रूर है कि पहले सब क़ौमों में इन्जील की मनादी की जाए।
\s5
\v 11 लेकिन जब तुम्हें ले जा कर हवाले करें तो पहले से फ़िक्र न करना कि हम क्या कहें बल्कि जो कुछ उस घड़ी तुम्हें बताया जाए वही करना क्यूँकि कहने वाले तुम नहीं हो बल्कि रूह- उल क़ुद्दूस है।
\v 12 भाई को भाई और बेटे को बाप क़त्ल के लिए हवाले करेगा और बेटे माँ बाप के बरख़िलाफ़ ख़ड़े हो कर उन्हें मरवा डालेंगे।
\v 13 और मेरे नाम की वजह से सब लोग तुम से अदावत रखेंगे मगर जो आख़िर तक बर्दाशत करेगा वो नजात पाएगा।
\v 14 पस जब तुम उस उजाड़ने वाली नापसन्द चीज़ को उस जगह खड़ी हुई देखो जहाँ उसका खडा होना जायज़ नहीं पढ़ने वाला समझ ले उस वक़्त जो यहूदिया में हों वो पहाड़ों पर भाग जाएँ।
\v 15 जो छत पर हो वो अपने घर से कुछ लेने को न नीचे उतरे न अन्दर जाए।
\v 16 और जो खेत में हो वो आपना कपड़ा लेने को पीछे न लोटे।
\s5
\v 17 मगर उन पर अफ़सोस जो उन दिनों में हामिला हों और जो दूध पिलाती हों।
\v 18 और दुआ करो कि ये जाड़ों में न हो।
\v 19 क्यूँकि वो दिन एसी मुसीबत के होंगे कि पैदाइश के शुरू से जिसे ख़ुदा ने पैदा किया न अब तक हुई है न कभी होगी।
\v 20 अगर ख़ुदावन्द उन दिनों को न घटाता तो कोई इन्सान न बचता मगर उन चुने हुवों की ख़ातिर जिनको उसने चुना है उन दिनों को घटाया।
\s5
\v 21 और उस वक़्त अगर कोई तुम से कहे‘देखो, मसीह यहाँ है,’या ‘देखो वहाँ है’तो यक़ीन न करना।
\v 22 क्यूँकि झूठे मसीह और झूठे नबी उठ खड़े होंगे और निशान और अजीब काम दिखाएँगे ताकि अगर मुमकिन हो तो चुने हुवों को भी गुमराह कर दें।
\v 23 लेकिन तुम ख़बरदार रहो; देखो मैंने तुम से सब कुछ पहले ही कह दिया है।
\v 33 ख़बरदार; जागते और दुआ करते रहो, क्यूँकि तुम नहीं जानते कि वो वक़्त कब आएगा।
\v 34 ये उस आदमी का सा हाल है जो परदेस गया और उस ने घर से रुख़्सत होते वक़्त अपने नौकरों को इख़्तियार दिया या'नी हर एक को उस का काम बता दिया और दरबान को हुक्म दिया कि जागता रहे।
\s5
\v 35 पस जागते रहो क्यूँकि तुम नहीं जानते कि घर का मालिक कब आएगा शाम को या आधी रात को या मुर्ग़ के बाँग देते वक़्त या सुबह को ।
\v 36 ऐसा न हो कि अचानक आकर वो तुम को सोते पाए।
\v 37 और जो कुछ मैं तुम से कहता हूँ, वही सब से कहता हूँ जागते रहो!”
\v 3 जब वो बैत अन्नियाह में शमा'ऊन जो पहले कोढ़ी था उसके घर में खाना खाने बैठा तो एक औरत जटामासी का बेशक़ीमती इत्र संगे मरमर के इत्र दान में लाई और इत्र दान तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर डाला।
\v 4 मगर कुछ अपने दिल में ख़फ़ा हो कर कहने लगे“ये इत्र किस लिए ज़ाया किया गया|
\v 5 क्यूँकि”ये इत्र तक़रीबन तीन सौ दिन की मज़दूरी से ज़्यादा की क़ीमत में बिक कर ग़रीबों को दिया जा सकता था; और वो उसे मलामत करने लगे।
\v 12 ई'द 'ए फ़ितर के पहले दिन या'नी जिस रोज़ फ़सह को ज़बह किया करते थे“उसके शागिर्दों ने उससे कहा? तू कहाँ चाहता है कि हम जाकर तेरे लिए फ़सह खाने की तैयारी करें।”
\v 20 उसने उनसे कहा, “वो बारह में से एक है जो मेरे साथ थाल में हाथ डालता है।
\v 21 क्यूँकि इब्ने आदम तो जैसा उसके हक़ में लिखा है जाता ही है लेकिन उस आदमी पर अफ़सोस जिसके वसीले से इब्ने आदम पकड़वाया जाता है,अगर वो आदमी पैदा ही न होता तो उसके लिए अछा था|”
\v 43 वो ये कह ही रहा था कि फ़ौरन यहूदाह जो उन बारह में से था और उसके साथ एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियाँ लिए हुए सरदार काहिनों और फ़क़ीहों की तरफ़ से आ पहुँची।
\v 44 और उसके पकड़वाने वाले ने उन्हें ये निशान दिया था जिसका मैं बोसा लूँ वही है उसे पकड़ कर हिफ़ाज़त से ले जाना।
\v 45 वो आकर फ़ौरन उसके पास गया और कहा,“ऐ रब्बी!” और उसके बोसे लिए।
\v 46 उन्होंने उस पर हाथ डाल कर उसे पकड़ लिया।
\s5
\v 47 उन में से जो पास खड़े थे एक ने तलवार खींचकर सरदार काहिन के नौकर पर चलाई और उसका कान उड़ा दिया।
\v 65 तब कुछ उस पर थूकने और उसका मुँह ढाँपने और उसके मुक्के मारने और उससे कहने लगे “नबुव्वत की बातें सुना !और सिपाहियों ने उसे तमाँचे मार मार कर अपने क़ब्ज़े में लिया।”
\v 72 और फ़ौरन मुर्ग़ ने दूसरी बार बाँग दी पतरस को वो बात जो ईसा' ने उससे कही थी याद आई मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले “तू तीन बार इन्कार करेगा और उस पर ग़ौर करके रो पड़ा।”
\v 1 और फ़ौरन सुब्ह होते ही सरदार काहिनों ने और बुज़ुर्गों और फ़क़ीहों और सब सद्र 'ए अदालत वालों समेत सलाह करके ईसा' को बन्धवाया और ले जा कर पीलातुस के हवाले किया।
\v 2 और पीलातुस ने उससे पूछा, “क्या तू यहूदियों का बादशाह है?” उसने जवाब में उस से कहा,“तू ख़ुद कहता है|”
\v 3 और सरदार काहिन उस पर बहुत सी बातों का इल्ज़ाम लगाते रहे|
\v 42 जब शाम हो गई तो इसलिए कि तैयारी का दिन था जो सब्त से एक दिन पहले होता है।
\v 43 अरिमतियाह का रहने वाला यूसुफ़ आया जो इज़्ज़तदार मुशीर और ख़ुद भी ख़ुदा की बादशाही का मुन्तज़िर था और उसने हिम्मत से पीलातुस के पास जाकर ईसा' की लाश माँगी
\v 44 और पीलातुस ने ता'अज्जुब किया कि वो ऐसे जल्द मर गया?और सिपाही को बुला कर उस से पूछा उसको मरे देर हो गई?
\s5
\v 45 जब सिपाही से हाल मा'लूम कर लिया तो लाश यूसुफ़ को दिला दी।
\v 46 उसने एक महीन चादर मोल ली और लाश को उतार कर उस चादर में कफ़्नाया और एक क़ब्र के अन्दर जो चट्टान में खोदी गई थी रख्खा और क़ब्र के मुँह पर एक पत्थर लुढका दिया।
\v 47 और मरियम मग़दलिनी और योसेस की माँ मरियम देख रही थी कि वो कहाँ रख्खा गया है।
\v 6 उसने उनसे कहा ऐसी हैरान न हो तुम ईसा' नासरी को“जो मस्लूब हुआ था तलाश रही हो; जी उठा है वो यहाँ नहीं है देखो ये वो जगह है जहाँ उन्होने उसे रख्खा था।
\v 7 लेकिन तुम जाकर उसके शागिर्दों और पतरस से कहो कि वो तुम से पहले गलील को जाएगा तुम वहीं उसको देखोगे जैसा उसने तुम से कहा।”
\v 14 फिर वो उन गयारह शागिर्दों को भी जब खाना खाने बैठे थे दिखाई दिया और उसने उनकी बे'ऐ'तिक़ादी और सख़्त दिली पर उनको मलामत की क्यूँकि जिन्हों ने उसके जी उठने के बा'द उसे देखा था उन्होंने उसका यक़ीन न किया था।
\v 15 और उसने उनसे कहा, “तुम सारी दुनियाँ में जाकर सारी मख़लूक़ के सामने इन्जील की मनादी करो।
\v 16 जो ईमान लाए और बपतिसमा ले वो नजात पाएगा और जो ईमान न लाए वो मुजरिम ठहराया जाएगा।
\s5
\v 17 और ईमान लाने वालों के दर्मियान ये मोजिज़े होंगे वो मेरे नाम से बदरूहों को निकालेंगे; नई नई ज़बाने बोलेंगे।
\v 18 साँपों को उठा लेंगे और अगर कोई हलाक करने वाली चीज़ पीएँगे तो उन्हें कुछ तकलीफ़ न पहुँचेगी वो बीमारों पर हाथ रखेंगे तो अच्छे हो जाएँगे।”
\v 20 फिर उन्होंने निकल कर हर जगह मनादी की और ख़ुदावन्द उनके साथ काम करता रहा और कलाम को उन मोजिज़ों के वसीले से जो साथ साथ होते थे साबित करता रहा; आमीन।