\v 4 आह,~ख़ताकार गिरोह,~बदकिरदारी से लदी हुई क़ौम बदकिरदारों की नसल मक्कार औलाद;~जिन्होंने ख़ुदावन्द को छोड़ दिया,~इस्राईल के क़ुददूस को हक़ीर जाना,~और गुमराह-ओ-बरगश्ता हो गए~!'
\v 7 ~ तुम्हारा मुल्क उजाड़ है, तुम्हारी बस्तियाँ जल गईं; लेकिन परदेसी तुम्हारी ज़मीन को तुम्हारे सामने निगलते हैं, वह वीरान है, जैसे उसे अजनबी लोगों ने उजाड़ा है।
\v 11 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम्हारे ज़बीहों की कसरत से मुझे क्या काम? मैं मेण्ढों की सोख़्तनी कु़र्बानियों से और फ़र्बा बछड़ों की चर्बी से बेज़ार हूँ; और बैलों और भेड़ों और बकरों के ख़ून में मेरी ख़ुशनूदी नहीं।
\v 13 आइन्दा को बातिल हदिये न लाना, ख़ुशबू से मुझे नफ़रत है, नये चाँद और सबत और 'ईदी जमा'अत से भी; क्यूँकि मुझ में बदकिरदारी के साथ 'ईद की बर्दाश्त नहीं।
\v 18 अब ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "आओ, हम मिलकर हुज्जत करें; अगरचे तुम्हारे गुनाह क़िर्मिज़ी हों, वह बर्फ़ की तरह सफ़ेद हो जाएँगे; और हर चन्द वह अर्ग़़वानी हों, तोभी ऊन की तरह उजले होंगे।
\v 23 तेरे सरदार गर्दनकश और चोरों के साथी हैं। उनमें से हर एक रिश्वत दोस्त और इन'आम का तालिब है। वह यतीमों का इन्साफ़ नहीं करते और बेवाओं की फ़रियाद उन तक नहीं पहुँचती।
\v 24 ~इसलिए ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल का क़ादिर, यूँ फ़रमाता है : कि "आह मैं ज़रूर अपने मुख़ालिफ़ों से आराम पाऊँगा, और अपने दुश्मनों से इन्तक़ाम लूँगा।
\v 3 बल्कि बहुत सी उम्मतें आयेंगी और कहेंगी आओ~ख़ुदावन्द~के पहाड़ पर चढ़ें, या'नी या'क़ूब के ख़ुदा के घर में दाख़िल हों और वह अपनी राहें हम को बताएगा, और हम उसके रास्तों पर चलेंगे।" क्यूँकि शरी'अत सिय्यून से, और ख़ुदावन्द का कलाम यरुशलीम से सादिर होगा।
\v 4 ~और वह क़ौमों के बीच 'अदालत करेगा और बहुत सी उम्मतों को डांटेगा और वह अपनी तलवारों को तोड़ कर फालें, और अपने भालों को हँसुए बना डालेंगे और क़ौम क़ौम पर तलवार न चलाएगी और वह फिर कभी जंग करना न सींखेंगे |
\v 6 तूने तो अपने लोगों या'नी या'क़ूब के घराने को छोड़ दिया, इसलिए कि वह अहल-ए-मशरिक़ की रसूम से पुर हैं और फ़िलिस्तियों की तरह शगुन लेते हैं और बेगानों की औलाद के साथ हाथ पर हाथ मारते हैं।
\v 19 ~और जब ख़ुदावन्द उठेगा कि ज़मीन को शिद्दत से हिलाए, तो लोग उसके डर से और उसके जलाल की शौकत से पहाड़ों के ग़ारों और ज़मीन के शिगाफ़ों में घुसेंगे |
\v 21 ~ताकि जब ख़ुदावन्द ज़मीन को शिद्दत से हिलाने के लिए उठे, तो उसके ख़ौफ़ से और उसके जलाल की शौकत से चट्टानों के ग़ारों और नाहमवार पत्थरों के शिगाफ़ों में घुस जाएँ।
\v 9 ~उनके मुँह की सूरत उन पर गवाही देती है वह अपने गुनाहों को सदूम की तरह ज़ाहिर करते हैं और छिपाते नहीं उनकी जानों पर वावैला है! क्यूँकि वह आप अपने ऊपर बला लाते हैं।
\v 12 मेरे लोगों की ये हालत है कि लड़के उन पर ज़ुल्म करते हैं,और 'औरतें उन पर हुक्मरान हैं। ऐ मेरे लोगों तुम्हारे रहनुमा तुम को गुमराह करते हैं,और तुम्हारे चलने की राहों को बिगाड़ते हैं।
\v 16 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि सिय्यून की बेटियाँ मुतकब्बिर हैं और गर्दनकशी और शोख़ चश्मी से ख़िरामाँ होती हैं और अपने पाँव से नाज़रफ़्तारी करती और घुंघरू बजाती जाती हैं |
\v 24 और ~यूँ होगा कि ख़ुशबू के बदले सड़ाहट होगी, और पटके के बदले रस्सी, और गुंधे हुए बालों की जगह चंदलापन और नफ़ीस लिबास के बदले टाट और हुस्न के बदले दाग़।
\v 26 ~उसके फाटक मातम और नौहा करेंगे,और वह उजाड़ होकर ख़ाक पर बैठेगी।
\s5
\c 4
\p
\v 1 उस वक़्त सात 'औरतें एक मर्द को पकड़ कर कहेंगी, कि हम अपनी रोटी खाएँगी और अपने कपड़े पहनेंगी; तू हम सबसे सिर्फ़ इतना कर कि तेरे नाम से कहलायें ताकि हमारी शर्मिंदगी मिटे|
\v 3 और यूँ होगा कि जो कोई सिय्यून में छूट जाएगा,~और जो कोई यरुशलीम में बाक़ी रहेगा,~बल्कि हर एक जिसका नाम यरुशलीम के ज़िन्दों में लिखा होगा,~मुक़द्दस कहलाएगा।
\v 4 ~जब ख़ुदावन्द सिय्यून की बेटियों की गन्दगी को दूर करेगा और यरुशलीम का ख़ून रूह-ए-'अद्ल और रूह-ए-सोज़ान के ज़रिए' से धो डालेगा।
\v 5 ~तब ख़ुदावन्द फिर सिय्यून पहाड़ के हर एक मकान पर और उसकी मजलिसगाहों पर, दिन को बादल और धुवाँ और रात को रोशन शोला पैदा करेगा; तमाम जलाल पर एक सायबान होगा।
\v 6 ~और एक ख़ेमा होगा जो दिन को गर्मी में सायादार मकान, और आँधी और झड़ी के वक़्त आरामगाह और पनाह की जगह हो ।
\s5
\c 5
\p
\v 1 अब ~मैं अपने महबूब के लिए अपने महबूब का एक गीत, उसके बाग़ के ज़रिए' गाऊँगा : मेरे महबूब का बाग़ एक ज़रखे़ज़ पहाड़ पर था।
\v 2 ~और उसने उसे खोदा और उससे पत्थर निकाल फेंके और अच्छी से अच्छी ताकि उसमें लगाई, और उसमें बुर्ज बनाया और एक कोल्हू भी उसमें तराशा; और इन्तिज़ार किया कि उसमें अच्छे अंगूर लगें लेकिन उसमें जंगली अंगूर लगे।
\v 5 ~मैं तुम को बताता हूँ कि ~अब मैं अपने बाग़ से क्या करूँगा; मैं उसकी बाड़ गिरा दूँगा, और वह चरागाह होगा; उसका अहाता तोड़ डालूँगा, और वह पामाल किया जाएगा;
\v 6 और ~मैं उसे बिल्कुल वीरान कर दूँगा वह न छाँटा जाएगा न निराया जाएगा, उसमें ऊँट कटारे और कॉटे उगेंगे; और मैं बादलों को हुक्म करूँगा कि उस पर मेंह न बरसाएँ।
\v 7 ~इसलिए रब्ब-उल-अफ़्वाज का बाग़ बनी-इस्राईल का घराना है, और बनी यहूदाह उसका ख़ुशनुमा पौधा है उसने इन्साफ़ का इन्तिज़ार किया, लेकिन ख़ूँरेज़ी देखी; वह दाद का मुन्तज़िर रहा,लेकिन फ़रियाद सुनी।
\v 12 ~और उनके जश्न की महफ़िलों में बरबत और सितार और दफ़ और बीन और शराब हैं; लेकिन वह ख़ुदावन्द के काम को नहीं सोचते और उसके हाथों की कारीगरी पर ग़ौर नहीं करते।
\v 20 उन पर अफ़सोस, जो बदी को नेकी और नेकी को बदी कहते हैं, और नूर की जगह तारीकी को और तारीकी की जगह नूर को देते हैं; और शीरीनी के बदले तल्ख़ी और तल्ख़़ी के बदले शीरीनी रखते हैं!
\v 24 ~फिर जिस तरह आग भूसे को खा जाती है और जलता हुआ फूस बैठ जाता है, उसी तरह उनकी जड़ बोसीदा होगी और उनकी कली गर्द की तरह उड़ जाएगी; क्यूँकि उन्होंने रब्ब-उल-अफ़वाज की शरी'अत को छोड़ दिया, और इस्राईल के क़ुददूस के कलाम को हक़ीर जाना।
\v 25 ~इसलिए ख़ुदावन्द का क़हर उसके लोगों पर भड़का, और उसने उनके ख़िलाफ़ अपना हाथ बढ़ाया और उनको मारा; चुनाँचे पहाड़ कॉप गए और उनकी लाशें बाज़ारों में ग़लाज़त की तरह पड़ी हैं। बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है।
\v 30 और उस रोज़ वह उन पर ऐसा शोर मचाएँगे जैसा समन्दर का शोर होता है;~और अगर कोई इस मुल्क पर नज़र करे,~तो बस,~अन्धेरा और तंगहाली है,~और रोशनी उसके बादलों से तारीक हो जाती है।
\s5
\c 6
\p
\v 1 जिस साल में उज़्ज़ियाह बादशाह ने वफ़ात पाई मैंने ख़ुदावन्द को एक बड़ी बुलन्दी पर ऊँचे तख़्त पर बैठे देखा, और उसके लिबास के दामन से हैकल मा'मूर हो गई।
\v 2 ~उसके आस-पास सराफ़ीम खड़े थे, जिनमें से हर एक के छ: बाज़ू थे; और हर एक दो से अपना मुँह ढाँपे था और दो से पाँव और दो से उड़ता था।
\s5
\v 3 और एक ने दूसरे को पुकारा और कहा ,क़ुद्दूस ,क़ुद्दूस, क़ुद्दूस रब्ब-उल-अफ़वाज है; सारी ज़मीन उसके जलाल से मा'मूर है।"
\v 5 तब मैं बोल उठा, कि मुझ पर अफ़सोस! मैं तो बर्बाद हुआ! क्यूँकि मेरे होंट नापाक हैं और नजिस लब ~लोगों में बसता हूँ, क्यूँकि मेरी आँखों ने बादशाह रब्ब-उल-अफ़वाज को देखा!”
\v 10 ~तू इन लोगों के दिलों को चर्बा दे, और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आँखें बन्द कर दे; ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें और अपने कानों से सुनें और अपने दिलों से समझ लें, और बाज़ आएँ और शिफ़ा पाएँ।"
\v 11 ~तब मैंने कहा, ऐ ख़ुदावन्द ये कब तक? "उसने जवाब दिया, जब तक बस्तियाँ वीरान न हों और कोई बसनेवाला न रहे, और घर बे-चराग़ न हों, और~ज़मीन सरासर उजाड़ न हो जाए;
\v 13 ~और अगर उसमें दसवाँ हिस्सा बाक़ी भी बच जाए, तो वह फिर भसम किया जाएगा; लेकिन वह बुत्म और बलूत की तरह होगा कि बावजूद यह कि वह काटे जाएँ तोभी उनका टुन्ड बच रहता है, इसलिए उसका टुन्ड एक मुक़द्दस तुख़्म होगा।"
\s5
\c 7
\p
\v 1 ~और शाह-ए-यहूदाह आख़ज़ बिन यूताम बिन उज़्ज़ियाह के दिनों में यूँ हुआ कि रज़ीन,शाह-ए-इराम फ़िक़ह बिन रमलियाह,शाह-ए-इस्राईल ने यरुशलीम पर चढ़ाई की; लेकिन उस पर ग़ालिब न आ सके।
\v 2 ~उस वक़्त दाऊद के घराने को यह ख़बर दी गई कि अराम इफ़्राईम के साथ मुत्तहिद है इसलिए उसके दिल ने और उसके लोगों के दिलों ने यूँ जुम्बिश खाई, जैसे जंगल के दरख़्त आँधी से जुम्बिश खाते हैं।
\v 3 तब ख़ुदावन्द ने यसा'याह को हुक्म किया, कि "तू अपने बेटे शियार याशूब को लेकर ऊपर के चश्मे की नहर के सिरे पर, जो धोबियों के मैदान के रास्ते में है, आख़ज़ से मुलाक़ात कर,
\v 4 और उसे कह, 'ख़बरदार हो, और बेक़रार न हो; इन लुक्टियों के दो धुवें वाले टुकड़ों से, या'नी अरामी रज़ीन और रमलियाह के बेटे की क़हरअंगेज़ी से न डर, और तेरा दिल न घबराए।
\s5
\v 5 ~चूँकि अराम और इफ़्राईम और रमलियाह का बेटा तेरे ख़िलाफ़ मश्वरत करके कहते हैं,
\v 6 कि आओ, हम यहूदाह पर चढ़ाई करें और उसे तंग करें, और अपने लिए उसमें रख़ना पैदा करे और ताबील के बेटे को उसके बीच तख़्तनशीन करें।
\s5
\v 7 इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है कि इसको पायदारी नहीं, बल्कि ऐसा हो भी नहीं सकता।
\v 11 ~ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से कोई निशान तलब कर चाहे नीचे पाताल में चाहे ऊपर बुलन्दी पर।"
\v 12 ~लेकिन आख़ज़ ने कहा, कि मैं तलब नहीं करूँगा और ख़ुदावन्द को नहीं,आज़माऊँगा।”
\s5
\v 13 तब उसने कहा, ऐ दाऊद के खान्दान, अब सुनो क्या तुम्हारा इन्सान को बेज़ार करना कोई हल्की बात है कि मेरे ख़ुदा को भी बेज़ार करोगे?
\v 14 लेकिन ख़ुदावन्द आप तुम को एक निशान बख़्शेगा। देखो, एक कुँवारी हामिला होगी, और बेटा पैदा होगा और वह उसका नाम ' इम्मानुएल रख्खेगी।
\v 15 ~ वह दही और शहद खाएगा, जब तक कि वह नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल न हो।
\s5
\v 16 लेकिन इससे पहले कि ये लड़का नेकी और बदी के रद्द-ओ-क़ुबूल के क़ाबिल हो, ये मुल्क जिसके दोनों बादशाहों से तुझ को नफ़रत है, वीरान हो जाएगा।
\v 17 ~ख़ुदावन्द तुझ पर और तेरे लोगों और तेरे बाप के घराने पर ऐसे दिन लाएगा जैसे उस दिन से जब इफ़्राईम यहूदाह से जुदा हुआ, आज तक कभी न लाया या'नी शाह-ए-असूर के दिन।
\v 20 ~उसी रोज़ ख़ुदावन्द उस उस्तरे से जो दरिया-ए-फ़रात के पार से किराये पर लिया या'नी असूर के बादशाह से, सिर और पाँव के बाल मूण्डेगा और इससे दाढ़ी भी खुर्ची जाएगी।
\v 21 ~और उस वक़्त यूँ होगा कि आदमी सिर्फ़ एक गाय और दो भेड़ें पालेगा,
\v 22 ~और उनके दूध की फ़िरावानी से लोग मक्खन खाएँगे; क्यूँकि हर एक जो इस मुल्क में बच रहेगा मख्खन और शहद ही खाया करेगा |
\v 23 ~और उस वक़्त यह हालत हो जाएगी कि हर जगह हज़ारों रुपये के बाग़ों की जगह ख़ारदार झाड़ियाँ होंगी।
\v 24 ~लोग तीर और कमाने लेकर वहाँ आयेंगे क्यूँकि तमाम मुल्क काँटों और झाड़ियों से पुर होगा |
\v 25 ~मगर उन सब पहाड़ियों पर जो कुदाली से खोदी जाती थीं, झाड़ियों और काँटों के ख़ौफ़ से तू फिर न चढ़ेगा लेकिन वह गाय बैल और भेड़ बकरियों की चरागाह होंगी।
\s5
\c 8
\p
\v 1 फिर ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि एक बड़ी तख़्ती ले और उस पर साफ़ साफ़ लिख महीर शालाल हाश्बज़ के लिए,'
\v 2 और दो दियानतदार गवाहों को या'नी ऊरियाह काहिन को और ज़करियाह बिन यबरकियाह को गवाह बना।"
\s5
\v 3 और मैं नबीय्या के पास गया; तब वह हामिला हुई और बेटा पैदा हुआ। तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, कि उसका नाम महीर-शालाल हाशबज़ रख,
\v 4 क्यूँकि इससे पहले कि ये लड़का अब्बा और अम्मा कहना सीखे दमिश्क़ का माल और सामरिया की लूट को उठवाकर शाह-ए-असूर के सामने ले जाएँगे।"
\v 7 इसलिए अब देख, ख़ुदावन्द दरिया-ए-फ़रात के सख़्त शदीद सैलाब को या 'नी शाह-ए-असूर और उसकी सारी शौकत को, इन पर चढ़ा लाएगा; और वह अपने सब नालों पर और अपने सब किनारों से बह निकलेगा;
\v 8 और वह यहूदाह में बढ़ता चला जाएगा, और उसकी तुग़ियानी बढ़ती जाएगी, वह गर्दन तक पहुँचेगा; और उसके परों के फैलाव से तेरे मुल्क की सारी वुस'अत ऐ इम्मानुएल, छिप जायेगी |
\v 9 ऐ लोगों, धूम मचाओ, लेकिन तुम टुकड़े-टुकड़े किए जाओगे; और ऐ दूर-दूर के मुल्कों के बाशिन्दो, सुनो: कमर बाँधों, लेकिन तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे; कमर बाँधो, लेकिन तुम्हारे पुर्जे़-पुर्जे़ होंगे।
\v 18 ~देख, मैं उन लड़कों के साथ जो ख़ुदावन्द ने मुझे बख़्शे, रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से जो सिय्यून पहाड़ में रहता है, बनी-इस्राईल के बीच निशानों और 'अजाइब-ओ-ग़राइब के लिए हूँ।
\v 19 और जब वह तुमसे कहें, "तुम जिन्नात के यारों और अफ़सूंगरों की जो फुसफुसाते और बड़बड़ाते हैं तलाश करो," तो तुम कहो, "क्या लोगों को मुनासिब नहीं कि अपने ख़ुदा के तालिब हों? क्या ज़िन्दों के बारे में मुर्दों से सवाल करें?”
\v 20 शरी'अत और शहादत पर नज़र करो! अगर वह इस कलाम के मुताबिक़ न बोलें तो उनके लिए सुबह न होगी।
\s5
\v 21 तब वह मुल्क में भूके और ख़स्ताहाल फिरेंगे और यूँ होगा कि जब वह भूके हों तो जान से बेज़ार होंगे, और अपने बादशाह और अपने ख़ुदा पर ला'नत करेंगे और अपने मुँह आसमान की तरफ़ उठाएँगे;
\v 22 ~फिर ज़मीन की तरफ़ देखेंगे और नागहान तंगी और तारीकी, या'नी ज़ुल्मत-ए-अन्दोह और तीरगी में खदेड़े जाएँगें।
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~लेकिन अन्दोहगीन की तीरगी जाती रहेगी। उसने पिछले ज़माने में ज़बूलून और नफ़्ताली के 'इलाक़ों को ज़लील किया, लेकिन आख़िरी ज़माने में क़ौमों के ग़लील में दरिया की तरफ़ यरदन के पार बुज़ुर्गी देगा।
\v 3 तूने क़ौम को बढ़ाया, तूने उनकी शादमानी को ज़्यादा किया; वह तेरे सामने ऐसे ख़ुश हैं, जैसे फ़सल काटते वक़्त और ग़नीमत की तक़सीम के वक़्त लोग ख़ुश होते हैं।
\v 6 इसलिए हमारे लिए एक लड़का तवल्लुद हुआ और हम को एक बेटा बख़्शा गया, और सल्तनत उसके कंधे पर होगी, उसका नाम 'अजीब सलाहकार ख़ुदा-ए-क़ादिर अब्दियत ~का बाप, सलामती का शहज़ादा होगा।
\v 7 ~उसकी सल्तनत के इक़बाल और सलामती की कुछ इन्तिहा न होगी, वह दाऊद के तख़्त और उसकी ममलुकत पर आज से हमेशा तक हुक्मरान रहेगा और 'अदालत और सदाक़त से उसे क़याम बख़्शेगा रब्ब-उल-अफ़्वाज की ग़य्यूरी ये करेगी|
\v 17 ख़ुदावन्द उनके जवानों से ख़ुशनूद न होगा और वह उनके यतीमों और उनकी बेवाओं पर कभी रहम न करेगा क्यूँकि उनमें हर एक बेदीन और बदकिरदार है और हर एक मुँह हिमाक़त उगलता है बावजूद इसके उसका क़हर टल नहीं गया बल्कि उसका हाथ अभी बढ़ा हुआ है|
\v 18 क्यूँकि शरारत आग की तरह जलाती है, वह ख़स-ओ-ख़ार को खा जाती है; बल्कि वह जंगल की गुन्जान झाड़ियों में शोलाज़न होती है, और वह धुंवें के बादल में ऊपर को उड़ जाती है।
\v 6 मैं उसे एक रियाकार क़ौम पर भेजूंगा, और उन लोगों की मुख़ालिफ़त में जिन पर मेरा क़हर है; मैं उसे हुक्म-ए- क़तई दूँगा कि माल लूटे और ग़नीमत ले ले, और उनको बाज़ारों की कीचड़ की तरह लताड़े।
\v 12 ~लेकिन यूँ होगा कि जब ख़ुदावन्द सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपना सब काम कर चुकेगा, तब वह फ़रमाता है)मैं शाह-ए-असूर को उसके गुस्ताख़ दिल के समरह की और उसकी बुलन्द नज़री और घमण्ड की सज़ा दूँगा।
\v 13 क्यूँकि वह कहता है, "मैंने अपने बाज़ू की ताक़त से और अपनी 'अक़्ल से ये किया है, क्यूँकि मैं 'अक़्लमन्द हूँ, हाँ, मैंने क़ौमों की हदों को सरका दिया और उनके ख़ज़ाने लूट लिए, और मैंने जंगी मर्द की तरह तख़्त नशीनों को उतार दिया।
\v 14 मेरे हाथ ने लोगों की दौलत को घोंसले की तरह पाया, और जैसे कोई उन अण्डों को जो मतरूक पड़े हों समेट ले, वैसे ही मैं सारी ज़मीन पर क़ाबिज़ हुआ और किसी को ये हिम्मत न हुई कि पर हिलाए या चोंच खोले या चहचहाये~|
\v 15 क्या कुल्हाड़ा उसके रू-ब-रू जो उससे काटता है लाफ़ज़नी करेगा अर्राकश के सामने शेख़ी मारेगा जैसे 'असा अपने उठानेवाले को हरकत देता है और छड़ी आदमी को उठाती है।
\v 20 और उस वक़्त यूँ होगा कि वह जो बनी इस्राईल में से बाक़ी रह जाएँगे और या'क़ूब के घराने में से बच रहेंगे, उस पर जिसने उनको मारा फिर भरोसा न करेंगे; बल्कि ख़ुदावन्द इस्राईल के क़ुद्दूस पर सच्चे दिल से भरोसा करेंगे।
\v 24 ~लेकिन~ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज~फ़रमाता है ऐ~मेरे लोगो, जो सिय्यून में बसते हो असूर से न डरो, अगरचे कि वह तुमको लठ से मारे और मिस्र की तरह तुम पर अपना 'असा उठाए |
\v 25 लेकिन थोड़ी ही देर है कि जोश-ओ-ख़रोश ख़त्म होगा और उनकी हलाकत से मेरे क़हर की तस्कीन होगी।
\v 26 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज मिदियान की ख़ूँरेज़ी के मुताबिक़ जो 'ओरेब की चट्टान पर हुई, उस पर एक कोड़ा उठाएगा; उसका 'असा समन्दर पर होगा, हाँ वह उसे मिस्र की तरह उठाएगा।
\v 3 और उसकी शादमानी ख़ुदावन्द के ख़ौफ़ में होगी। और वह न अपनी आँखों के देखने के मुताबिक़ इन्साफ़ करेगा, और न अपने कानों के सुनने के मुवाफ़िक़ फ़ैसला करेगा;
\v 4 बल्कि वह रास्ती से ग़रीबों का इन्साफ़ करेगा, और 'अद्ल से ज़मीन के ख़ाकसारों का फ़ैसला करेगा; और वह अपनी ज़बान के 'असा से ज़मीन को मारेगा, और अपने लबों के दम से शरीरों को फ़ना कर डालेगा।
\v 9 वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न नुक़्सान पहुँचाएँगें न हलाक करेंगे क्यूँकि जिस तरह समन्दर पानी से भरा है उसी तरह ज़मीन ख़ुदावन्द के इरफ़ान से मा'मूर होगी।
\v 10 और उस वक़्त यूँ होगा कि लोग यस्सी की उस जड़ के तालिब होंगे, जो लोगों के लिए एक निशान है; और उसकी आरामगाह जलाली होगी।
\v 11 उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दूसरी मर्तबा अपना हाथ बढ़ाएगा कि अपने लोगों का बक़िया या जो बच रहा हो, असूर और मिस्र और फ़त्रूस और कूश और इलाम और सिन'आर और हमात और समन्दर की अतराफ़ से वापस लाए।
\v 12 और वह क़ौमों के लिए एक झंडा खड़ा करेगा और उन इस्राईलियों को जो ख़ारिज किए गए हों जमा' करेगा; और सब बनी यहूदाह को जो तितर बितर होंगे, ज़मीन के चारों तरफ़ से इकठ्ठा करेगा।
\v 13 तब बनी इफ़्राईम में हसद न रहेगा और बनी यहूदाह के दुश्मन काट डाले जाएँगे, बनी इफ़्राईम बनी यहूदाह पर हसद न करेंगे और बनी यहूदाह बनी इफ़्राईम से कीना न रख्खेंगे।
\v 14 और वह पश्चिम की तरफ़ फ़िलिस्तियों के कंधों पर झपटेंगे, और वह मिलकर पूरब के बसनेवालों को लूटेंगे, और अदोम और मोआब पर हाथ डालेंगे; और बनी 'अम्मोन उनके फ़रमाबरदार होंगे।
\v 15 तब ख़ुदावन्द बहर-ए-मिस्र की ख़लीज को बिल्कुल हलाक कर देगा, और अपनी बाद-ए-समूम से दरिया-ए-फ़रात पर हाथ चलाएगा और उसको सात नाले कर देगा, ऐसा करेगा कि लोग जूते पहने हुऐ पार चले जाएँगे।
\v 8 और वह परेशान होंगे जाँकनी और ग़मगीनी उनको आ लेगी वह ऐसे दर्द में मुब्तिला होंगे जैसे 'औरत ज़िह की हालत में। वह सरासीमा होकर एक दूसरे का मुँह देखेंगे, और उनके चहरे शो'लानुमा होंगे।
\v 9 ~देखो ख़ुदावन्द का वह दिन आता है जो ग़ज़ब में और क़हर-ए-शदीद में सख़्त दुरुस्त हैं, ताकि मुल्क को वीरान करे और गुनाहगारों को उस पर से बर्बाद-ओ-हलाक कर दे।
\v 11 और मैं जहान को उसकी बुराई की वजह से, और शरीरों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दूँगा; और मैं मग़रूरों का गु़रूर हलाक और हैबतनाक लोगों का घमण्ड पस्त कर दूँगा।
\v 22 और गीदड़ उनके 'आलीशान मकानों में और भेड़िये उनके रंगमहलों में चिल्लाएँगे; उसका वक़्त नज़दीक आ पहुँचा है, और उसके दिनों को अब तूल नहीं होगा।
\s5
\c 14
\p
\v 1 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द या'क़ूब पर रहम फ़रमाएगा, बल्कि वह इस्राईल को भी बरगुज़ीदा करेगा और उनको उनके मुल्क में फिर क़ायम करेगा और परदेसी उनके साथ मेल करेंगे और या'क़ूब के घराने से मिल जाएँगे"।
\v 2 ~और लोग उनको लाकर उनके मुल्क में पहुंचाएगे और ~इस्राईल का घराना ख़ुदावन्द की सरज़मीन में उनका मालिक होकर उनको गु़लाम और लौंडियाँ बनाएगा क्यूँकि वह अपने ग़ुलाम करने वालों को ग़ुलाम करेंगे, और अपने ज़ुल्म करने वालों पर हुकूमत करेंगे।
\v 9 पाताल नीचे से तेरी वजह से जुम्बिश खाता है कि तेरे आते वक़्त तेरा इस्तक़बाल करे; वह तेरे लिए मुर्दों को या'नी ज़मीन के सब सरदारों को जगाता है; वह क़ौमों के सब बादशाहों को उनके तख़्तों पर से उठा खड़ा करता है|
\v 13 तू तो अपने दिल में कहता था, मैं आसमान पर चढ़ जाऊँगा; मैं अपने तख़्त को ख़ुदा के सितारों से भी ऊँचा करूँगा, और मैं उत्तरी अतराफ़ में जमा'अत के पहाड़ पर बैठूँगा;
\v 19 लेकिन तू अपनी क़ब्र से बाहर, निकम्मी शाख़ की तरह निकाल फेंका गया; तू उन मक़तूलों के नीचे दबा है जो तलवार से छेदे गए और गढ़े के पत्थरों पर गिरे हैं, उस लाश की तरह जो पाँवों से लताड़ी गई हो।
\v 20 तू उनके साथ कभी क़ब्र में दफ़न न किया जाएगा, क्यूँकि तूने अपनी ममलुकत को वीरान किया और अपनी र'अय्यत को क़त्ल किया, "बदकिरदारों की नस्ल का नाम बाक़ी न रहेगा।
\v 21 ~उसके फ़र्ज़न्दों के लिए उनके बाप दादा के गुनाहों की वजह से क़त्ल का सामान तैयार करो, ताकि वह फिर उठ कर मुल्क के मालिक न हो जाएँ और इस ज़मीन को शहरों से मा'मूर न करें।”
\v 22 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़्वाज~फ़रमाता है, मैं उनकी मुख़ालिफ़त को उठूँगा, और मैं बाबुल का नाम मिटाऊँगा और उनको जो बाक़ी हैं, बेटों और पोतों के साथ काट डालूँगा; यह ~ख़ुदावन्द का फ़रमान है।
\v 25 मैं अपने ही मुल्क में असूरी को शिकस्त दूँगा, और अपने पहाड़ों पर उसे पाँव तले लताड़ूँगा; तब उसका जूआ उन पर से उतरेगा, और उसका बोझ उनके कंधों पर से टलेगा।"
\v 29 "ऐ कुल फ़िलिस्तीन, तू इस पर ख़ुश न हो कि तुझे मारने वाला लठ टूट गया; क्यूँकि साँप की अस्ल से एक नाग निकलेगा, और उसका फल एक उड़नेवाला आग का साँप होगा।
\v 31 ऐ फाटक, तू वावैला कर; ऐ शहर, तू चिल्ला; ऐ फ़िलिस्तीन, तू बिल्कुल गुदाज़ हो गई! क्यूँकि उत्तर से एक धुंवा उठेगा और उसके लश्करों में से कोई पीछे न रह जाएगा।"
\v 2 बैत और दीबोन ऊँचे मक़ामों पर रोने के लिए चढ़ गए हैं; नबू और मीदबा पर अहल-ए-मोआब वावैला करते हैं; उन सब के सिर मुण्डाए गए और हर एक की दाढ़ी काटी गई।
\v 4 हस्बोन और इल्या'ला वावैला करते हैं उनकी आवाज़ यहज़ तक सुनाई देती है; इस पर मोआब के मुसल्लह सिपाही चिल्ला चिल्ला कर रोते हैं~उसकी जान उसमें थरथराती है।
\v 5 मेरा दिल मोआब के लिए फ़रियाद करता उसके भागने वाले ज़ुगर तक 'अजलत शलेशियाह तक पहुँचे हाँ वह ~लूहीत की चढ़ाई पर रोते हुए चढ़ जाते, और होरोनायम की राह में हलाकत पर वावैला करते हैं।
\v 9 क्यूँकि ~दीमोन की नदियाँ ख़ून से भरी हैं मैं दीमोन पर ज़्यादा मुसीबत लाऊँगा क्यूँकि उस पर जो मोआब में से बचकर भागेगा और उस मुल्क के बाक़ी लोगों पर एक शेर-ए-बबर भेजूँगा |
\s5
\c 16
\p
\v 1 सिला' से वीराने ~की राह दुख़्तर-ए-सिय्यून के पहाड़ पर मुल्क के हाकिम के पास बर्रे भेजो।
\v 8 क्यूँकि हस्बोन के खेत सूख गए, क़ौमों के सरदारों ने सिबमाह की ताक की बहतरीन शाख़ों को तोड़ डाला; वह या'ज़ेर तक बढ़ीं, वह जंगल में भी फैलीं; उसकी शाख़ें दूर तक फैल गईं, वह दरिया पार गुज़री।
\v 9 ~फिर मैं या'ज़ेर के आह-ओ-नाले से सिबमाह की ताक के लिए ज़ारी करूँगा ऐ हस्बून ऐ इलीया'लाह मैं तुझे अपने आँसुओं से तर कर दूँगा, क्यूँकि तेरे दिनों गर्मीं ~के मेवों और ग़ल्ले की फ़सल को ग़ोग़ा-ए-जंग ने आ लिया;
\v 10 और शादमानी छीन ली गई और हरे भरे खेतों की ख़ुशी जाती रही; और ताकिस्तानों में गाना और ललकारना बन्द हो जाएगा; पामाल करनेवाले अंगूरों को फिर हौज़ों में पामाल न करेंगे; मैंने अंगूर की फ़सल के ग़ल्ले को ख़त्म कर दिया।
\v 13 यह वह कलाम है जो ख़ुदावन्द ने मोआब के हक़ में पिछले ज़माने में फ़रमाया था
\v 14 लेकिन अब ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तीन बरस के अन्दर जो मज़दूरों के बरसों की तरह हों, मोआब की शौकत उसके तमाम लश्करों के साथ हक़ीर हो जाएगी; और बहुत थोड़े बाक़ी बचेंगे, और वह किसी हिसाब में न होंगे।
\s5
\c 17
\p
\v 1 दमिश्क़ के बारे में बार-ए-नबुव्वत, देखो दमिश्क़ अब तो शहर न रहेगा, बल्कि खण्डर का ढेर होगा।
\v 3 और इफ़्राईम में कोई क़िला' न रहेगा, दमिश्क़ और अराम के बक़िए से सल्तनत जाती रहेगी; रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, जो हाल बनी-इस्राईल की शौकत का हुआ वही उनका होगा।
\v 6 ख़ुदावन्द इस्राईल का ख़ुदा फ़रमाता है कि तब उसका बक़िया बहुत ही थोड़ा होगा, जैसे ज़ैतून के दरख़्त का जब वह हिलाया जाए, या'नी दो तीन दाने चोटी की शाख़ पर, चार पाँच फलवाले दरख़्त की बैरूनी शाख़ों पर।
\v 10 चूँकि तूने अपने नजात देनेवाले ख़ुदा को फ़रामोश किया, और अपनी तवानाई की चट्टान को याद न किया; इसलिए तू ख़ूबसूरत पौधे लगाता और 'अजीब कलमें उसमें जमाता है।
\v 13 उम्मतें सैलाब-ए-'अज़ीम की तरह आ पड़ेंगी; लेकिन वह उनको डॉंटेगा, और वह दूर भाग जाएँगी, और उस भूसे की तरह जो टीलों के ऊपर आँधी से उड़ता फिरे और उस गर्द की तरह जो बगोले में चक्कर खाए रगेदी जाएँगी।
\v 2 जो दरिया की राह से बुर्दी की क़श्तियों में सतह-ए-आब पर क़ासिद भेजती है! ऐ तेज़ रफ़्तार क़ासिदों, उस क़ौम ~के पास जाओ जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है; उस क़ौम के पास जो शुरू' से अब तक मुहीब है, ऐसी क़ौम जो ज़बरदस्त और फ़तहयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से मुन्क़सम है|
\v 4 क्यूँकि ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है: कि अपने घर में ताबिश-ए-आफ़ताब की तरह और मौसिम-ए-दिरौ~की गर्मी में शबनम के बादल की तरह सुकून के साथ नज़र करूँगा।"
\v 6 और वह पहाड़ के शिकारी परिन्दों और मैदान के दरिन्दों के लिए पड़ी रहेंगी; और शिकारी परिन्दे गर्मी के मौसम में उन पर बैठेगे, ज़मीन के सब दरिन्दे जाड़े के मौसम में उन पर लेटेंगे।
\v 7 ~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के सामने उस क़ौम की तरफ़ से जो ताक़तवर और ख़ूबसूरत है, गिरोह की तरफ़ से जो शुरू' से आज तक मुहीब है, उस क़ौम से जो ज़बरदस्त और ज़फ़रयाब है जिसकी ज़मीन नदियों से बँटी है एक हदिया रब्ब-उल-अफ़वाज के नाम के मकान पर जो सिय्यून पहाड़ में है पहुँचाया जाएगा।
\s5
\c 19
\p
\v 1 मिस्र के बारे में नबुव्वत देखो ख़ुदावन्द एक तेज़ रू ~बादल पर सवार होकर मिस्र में आता है, और मिस्र के बुत उसके सामने लरज़ाँ होंगे और मिस्र का दिल पिघल जाएगा।
\v 11 सुन'आन के शहज़ादे बिल्कुल बेवक़ूफ़ हैं फ़िर'औन के ~सबसे 'अक़्लमन्द सलाहकारों की मश्वरत वहशियाना ठहरी।फिर तुम क्यूँकर फ़िर'औन से कहते हो, कि मैं 'अक़्लमन्दों का फ़र्ज़न्द और शाहान-ए-क़दीम की नसल हूँ"?
\v 16 ~उस वक़्त रब्ब-उल-अफ़वाज के हाथ चलाने से जो वह मिस्र पर चलाएगा, मिस्री 'औरतों की तरह हो जायेंगे, और हैबतज़दह और परेशान होंगे।
\v 17 तब यहूदाह का मुल्क मिस्र के लिए दहशत नाक होगा, हर एक जिससे उसका ज़िक्र हो ख़ौफ़ खाएगा; उस इरादे की वजह से जो रब्ब-उल-अफ़वाज ने उनके ख़िलाफ़ कर रख्खा है।
\s5
\v 18 उस रोज़ मुल्क-ए-मिस्र में पाँच शहर होंगे जो कना'नी ज़बान बोलेंगे, और रब्ब-उल-अफ़वाज की क़सम खाएँगे; उनमें से एक का नाम शहर-ए-आफ़ताब होगा।
\v 19 ~उस वक़्त मुल्क-ए-मिस्र के वस्त में ख़ुदावन्द का एक मज़बह और उसकी सरहद पर ख़ुदावन्द का एक सुतून होगा।
\v 20 और वह मुल्क-ए-मिस्र में रब्ब-उल-अफ़वाज के लिए निशान और गवाह होगा; इसलिए कि वह सितमगरों के ज़ुल्म से ख़ुदावन्द से फ़रियाद करेंगे, और वह उनके लिए रिहाई देने वाला और हामी भेजेगा, और वह उनको रिहाई देगा।
\s5
\v 21 और ख़ुदावन्द अपने आपको मिस्रियों पर ज़ाहिर करेगा और उस वक़्त मिस्री ख़ुदावन्द को पहचानेंगे, और ज़बीहे और हदिये पेश करेंगे; हाँ, वह ख़ुदावन्द के लिए मिन्नत माँनेंगे और अदा करेंगे।
\v 22 और ख़ुदावन्द मिस्रियों को मारेगा, मारेगा और शिफ़ा बख़्शेगा; और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ रूजू' लाएँगे और वह उनकी दु'आ सुनेगा, और उनको सेहत बख़्शेगा।
\v 23 उस वक़्त मिस्र से असूर तक एक शाह-ए-राह होगी और असूरी मिस्र में आएँगें और मिस्री असूर को जाएँगे, मिस्री असूरियों के साथ मिलकर 'इबादत करेंगे।
\s5
\v 24 तब इस्राईल मिस्र और असूर के साथ तीसरा होगा, और इस ज़मीन पर बरकत का ज़रिए' आ ठहरेगा।
\v 25 क्यूँकि रब्ब-उल-अफ़वाज उनको बरकत बख़्शेगा और फ़रमाएगा मुबारक हो मिस्री मेरी उम्मत असूर मेरे हाथ की सन'अत और इस्राईल मेरी मीरास।
\s5
\c 20
\p
\v 1 ~जिस साल सरजून शाह-ए-असूर ने तरतान को अशदूद की तरफ़ भेजा, और उसने आकर अशदूद से लड़ाई की और उसे फ़तह कर लिया;
\v 2 ~उस वक़्त ख़ुदावन्द ने यसा'याह बिन आमूस के ज़रिए' यूँ फ़रमाया, "कि जा और टाट का लिबास अपनी कमर से खोल डाल और अपने पाँवों से जूते उतार," तब उसने ऐसा ही किया, वह बरहना और नंगे पाँव फिरा करता था |
\s5
\v 3 ~तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया, जिस तरह मेरा बन्दा यसा'याह तीन बरस तक बरहना और नंगे पाँव फिरा किया, ताकि मिस्रियों और कूशियों के बारे में निशान और ता'अज्जुब हो |
\v 4 उसी तरह शाह-ए-असूर मिस्री ग़ुलामों और कूशी जिलावतनों को क्या बूढ़े क्या जवान बरहना और नंगे पाँव और बेपर्दा सुरनियों के साथ मिस्रियों की रुस्वाई के लिए ले जाएगा।
\s5
\v 5 तब वह परेशान होंगे और कूश से जो उनकी उम्मीदगाह थी, और मिस्र से जो उनका घमण्ड था, शर्मिन्दा होंगे|
\v 6 और उस वक़्त इस साहिल के बाशिन्दे कहेंगे देखो हमारी उम्मीदगाह का यह हाल हुआ जिसमें हम मदद के लिए भागे ताकि असूर के बादशाह से बच जाएँ फिर हम किस तरह रिहाई पायें |
\s5
\c 21
\p
\v 1 दश्त-ए-दरिया के बारे में नबुवत: जिस तरह दक्खिनी हवा ज़ोर से चली आती है, उसी तरह वह दश्त से और मुहीब सरज़मीन से नज़दीक आ रहा है।
\v 2 एक हौलनाक ख़्वाब मुझे नज़र आया; दग़ाबाज़ दग़ाबाज़ी करता है; और ग़ारतगर ग़ारत करता है ऐ ऐलाम, चढ़ाई कर; ऐ मादै, मुहासिरा कर; मैं वह सब कराहना जो उसकी वजह से हुआ, ख़त्म करता हूँ।
\v 3 ~इसलिए मेरी कमर में सख़्त दर्द है, मैं जैसे दर्द-ए-ज़िह में तड़पता हूँ, मैं ऐसा परेशान हूँ कि सुन नहीं सकता; मैं ऐसा परेशान हूँ कि देख नहीं सकता|~
\v 9 और देख, सिपाहियों के ग़ोल और उनके सवार दो-दो करके आते हैं!" फिर उसने यूँ कहा, "कि बाबुल गिर पड़ा, गिर पड़ा; और उसके मा'बूदों की सब तराशी हुई मूरतें बिल्कुल टूटी पड़ी हैं।"
\v 3 ~तेरे सब सरदार इकट्ठे भाग निकले, उनको तीर अन्दाज़ों ने ग़ुलाम कर लिया; जितने तुझ में पाए गए सब के सब, बल्कि वह भी जो दूर से भाग गए थे ग़ुलाम किए गए हैं।
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज की तरफ़ से ख़्वाब की वादी में, यह दुख और पामाली ओ-बेक़रारी और दीवारों को गिराने और पहाड़ों तक फ़रियाद पहुँचाने का दिन है।
\v 11 और तुम ने पुराने हौज़ के पानी के लिए दोनों दीवारों के बीच एक और हौज़ बनाया; लेकिन तुम ने उसके पानी पर निगाह न की और उसकी तरफ़ जिसने पहले से उसकी तदबीर की मुतवज्जह न हुए।
\v 13 ~लेकिन देखो, ख़ुशी और शादमानी, गाय बैल को ज़बह करना और भेड़-बकरी को हलाल करना और गोश्त ख़्वारी-ओ-मयनोशी कि आओ खाएँ और पियें क्यूँकि कल तो हम मरेंगे।
\v 14 और रब्ब-उल-अफ़्वाज ने मेरे कान में कहा, कि तुम्हारी इस बदकिरदारी का कफ़्फ़ारा तुम्हारे मरने तक भी न हो सकेगा यह ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज का फ़रमान है।
\v 16 ~तू यहाँ क्या करता है? और तेरा यहाँ कौन है कि तू यहाँ अपने लिए क़ब्र तराश्ता है? बुलन्दी पर अपनी क़ब्र तराश्ता है और चट्टान में अपने लिए घर खुदवाता है|
\v 20 ~और उस रोज़ यूँ होगा कि मैं अपने बन्दे इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह को बुलाऊँगा,
\v 21 ~और मैं तेरा ख़िल'अत उसे पहनाऊँगा और तेरा पटका उस पर कसूँगा, और तेरी हुकूमत उसके हाथ में हवाले कर दूँगा; और वह अहल-ए-यरुशलीम का और बनी यहूदाह का बाप होगा।
\v 22 और मैं दाऊद के घर की कुंजी उसके कन्धे पर रख्खूँगा, तब वह खोलेगा और कोई बन्द न करेगा; और वह बन्द करेगा और कोई न खोलेगा।
\s5
\v 23 और मैं उसको खूँटी की तरह मज़बूत जगह में मुहकम करूँगा, और वह अपने बाप के घराने के लिए जलाली तख़्त होगा।
\v 24 ~और उसके बाप के ख़ान्दान की सारी हशमत या'नी आल-ओ-औलाद और सब छोटे-बड़े बर्तन प्यालों से लेकर क़राबों तक सबको उसी से मन्सूब करेंगे।
\v 25 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है,उस वक़्त वह खूँटी जो मज़बूत जगह में लगाई गई थी हिलाई जाएगी, और वह काटी जाएगी और गिर जाएगी, और उस पर का बोझ गिर पड़ेगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यूँ फ़रमाया है|
\s5
\c 23
\p
\v 1 सूर के बारे में नबुव्वत ऐ तरसीस के जहाज़ो, वावैला करो क्यूँकि वह उजड़ गया, वहाँ कोई घर और कोई दाख़िल होने की जगह नहीं! कित्तीम की ज़मीन से उनको ये ख़बर पहुँची है|
\v 4 ऐ सैदा, तू शरमा, क्यूँकि समन्दर ने कहा है, समन्दर की गढ़ी ने कहा, "मुझे दर्द-ए-ज़िह नहीं लगा, और मैंने बच्चे नहीं जने; मैं जवानों को नहीं पालती, और कुँवारियों की परवरिश नहीं करती हूँ।”
\v 13 कसदियों के मुल्क को देख! यह क़ौम मौजूद न थी; असूर ने उसे वीरान के रहनेवालों का हिस्सा ठहराया। उन्होंने अपने बुर्ज बनाए उन्होंने उसके महल ग़ारत किये और उसे वीरान किया।
\v 15 और उस वक़्त यूँ होगा कि सूर किसी बादशाह के दिनों के मुताबिक़, सत्तर बरस तक फ़रामोश हो जाएगा; और ~सत्तर बरस के बा'द सूर की हालत फ़ाहिशा के गीत के मुताबिक़ होगी |
\v 17 और सत्तर बरस के बा'द यूँ होगा कि ख़ुदावन्द सूर की ख़बर लेगा, और वह उजरत पर जाएगी और इस ज़मीन पर की तमाम ममलुकतों से बदकारी करेगी |
\v 18 ~ लेकिन उसकी तिजारत और उसकी उजरत ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस होगी और उसका माल न ज़ख़ीरा किया जाएगा और न जमा' रहेगा बल्कि उसकी तिजारत का हासिल उनके लिए होगा, जो ख़ुदावन्द के सामने रहते हैं कि खाकर सेर हों और नफ़ीस पोशाक पहने |
\s5
\c 24
\p
\v 1 ~देखो ख़ुदावन्द ज़मीन को ख़ाली और सरनगूँ करके वीरान करता है और उसके बाशिन्दों को तितर-बितर कर देता है।
\v 2 और यूँ होगा कि जैसा र'इयत का हाल, वैसा ही काहिन का; जैसा नौकर का, वैसा ही उसके साहिब का; जैसा लौंडी का, वैसा ही उसकी बीबी का; जैसा ख़रीदार का, वैसा ही बेचनेवाले का; जैसा क़र्ज़ देनेवाले का, वैसा ही क़र्ज़ लेनेवाले का; जैसा सूद देनेवाले का, वैसा ही सूद लेनेवाले का।
\v 16 ~इन्तिहा-ए-ज़मीन से नग़मों की आवाज़ हम को सुनाई देती है, जलाल-ओ-'अज़मत सादिक़ के लिए। लेकिन मैंने कहा, "मैं गुदाज़ हो गया, मैं हलाक हुआ; मुझ पर अफ़सोस! दग़ाबाज़ों ने दग़ा की; हाँ, दग़ाबाज़ों ने बड़ी दग़ा की।”
\v 18 ~और यूँ होगा कि जो ख़ौफ़नाक आवाज़ सुन कर भागे, गढ़े में गिरेगा; और जो गढ़े से निकल आए, दाम में फँसेगा; क्यूँकि आसमान की खिड़कियाँ खुल गईं, और ज़मीन की बुनियादें हिल रही हैं |
\v 23 और जब रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ पर और यरुशलीम में अपने बुज़ुर्ग बन्दों के सामने हश्मत के साथ सल्तनत करेगा, तो चाँद मुज़्तरिब' सूरज शर्मिन्दा होगा।
\s5
\c 25
\p
\v 1 ऐ ख़ुदावन्द तू मेरा ख़ुदा है; मैं तेरी तम्जीद करूँगा; तेरे नाम की 'इबादत करूँगा क्यूँकि तूने 'अजीब काम किए हैं, तेरी मसलहत क़दीम से वफ़ादारी और सच्चाई हैं।
\v 2 क्यूँकि तूने शहर को ख़ाक का ढेर किया; हाँ, फ़सीलदार शहर को खण्डर बना दिया और परदेसियों के महल को भी, यहाँ तक कि शहर न रहा; वह फिर ता'मीर न किया जाएगा।
\v 4 क्यूँकि तू ग़रीब के लिए क़िला' और मोहताज के लिए परेशानी के वक़्त मल्जा और ऑधी से पनाहगाह और गर्मी ~से बचाने को साया हुआ, जिस वक़्त ज़ालिमों की साँस दिवारकन तूफ़ान की तरह हो।
\v 5 तू परदेसियों के शोर को ख़ुश्क मकान की गर्मी की तरह दूर करेगा और जिस तरह अब्र के साये से गरमी हलाक होती है उसी तरह ज़ालिमों का शादियाना बजाना ख़त्म होगा|
\v 6 और~~रब्ब-उल-अफ़वाज इस पहाड़ पर सब क़ौमों के लिए फ़रबा चीज़ों से एक ज़ियाफ़त तैयार करेगा बल्कि एक ज़ियाफ़त तलछट पर से निथरी हुई मय से; हाँ फ़रबा चीज़ों से जो पुरमग़्ज़ हों और मय से जो तलछट पर से ख़ूब निथरी हुई हो।
\v 8 वह मौत को हमेशा के लिए हलाक करेगा और~ख़ुदावन्द खुदा सब के~चहरों से आँसू पोंछ डालेगा, और अपने लोगों की रुस्वाई तमाम सरज़मीन पर से मिटा देगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ने यह फ़रमाया है।
\v 9 और उस वक़्त यूँ कहा जाएगा, "लो, यह हमारा ख़ुदा है; हम उसकी राह तकते थे और वही हम को बचाएगा। यह ख़ुदावन्द है, हम उसके इन्तिज़ार में थे। हम उसकी नजात से ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम होंगे।"
\v 9 रात को मेरी जान तेरी मुश्ताक़ है; हाँ, मेरी रूह तेरी जुस्तजू में कोशाँ रहेगी; क्यूँकि जब तेरी 'अदालत ज़मीन पर जारी है, तो दुनिया के बाशिन्दे सदाक़त सीखते हैं।
\v 11 ~ ऐ ख़ुदावन्द, तेरा हाथ बुलन्द है लेकिन वह नहीं देखते, लेकिन वह लोगों के लिए तेरी गै़रत को देखेंगे और शर्मसार होंगे, बल्कि आग तेरे दुश्मनों को खा जाएगी।
\v 19 ~तेरे मुर्दे जी उठेंगे,मेरी ~लाशें उठ खड़ी होंगी। तुम जो ख़ाक में जा बसे हो, जागो और गाओ! क्यूँकि तेरी ओस उस ओस की तरह है जो नबातात पर पड़ती है, और ज़मीन मुर्दों को उगल देगी।
\v 21 ~क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द अपने मक़ाम से चला आता है, ताकि ज़मीन के बाशिन्दों को उनकी बदकिरदारी की सज़ा दे; और ज़मीन उस ख़ून को ज़ाहिर करेगी जो उसमें है और अपने मक़तूलों को हरगिज़ न छिपाएगी।
\s5
\c 27
\p
\v 1 ~उस वक़्त ख़ुदावन्द अपनी सख़्त और बड़ी और मज़बूत तलवार से अज़दहा या'नी तेज़रू साँप को और अज़दहा या'नी पेचीदा साँप को सज़ा देगा; और दरियाई अज़दहे को क़त्ल करेगा।
\v 9 इसलिए इससे या'क़ूब के गुनाह का कफ़्फ़ारा होगा और उसका गुनाह दूर करने का कुल नतीजा यही है; जिस ~वक़्त वह मज़बह के सब पत्थरों को टूटे कंकरों की तरह टुकड़े-टुकड़े करे कि यसीरतें और सूरज के बुत फिर क़ायम न हों।
\v 11 जब उसकी शाख़े मुरझा जायेंगी तो तोड़ी जायेंगी 'औरतें आयेंगी और उनको जलाएँगी; क्यूँकि लोग अक़्ल से ख़ाली हैं, इसलिए उनका ख़ालिक़ उन पर रहम नहीं करेगा और उनका बनाने वाला उन पर तरस नहीं खाएगा|
\v 12 ~और उस वक़्त यूँ होगा कि ख़ुदावन्द दरया-ए-फ़रात की गुज़रगाह से रूद-ए-मिस्र तक झाड़ डालेगा; और तुम ऐ बनी इस्राईल एक एक करके जमा' किए जाओगे |
\v 13 और उस वक़्त यूँ होगा कि बड़ा नरसिंगा फूँका जाएगा, और वह जो असूर के मुल्क में क़रीब-उल-मौत थे, और वह जो मुल्क-ए-मिस्र में जिला वतन थे आएँगें और यरुशलीम के मुक़द्दस पहाड़ पर ख़ुदावन्द की 'इबादत करेंगे।
\s5
\c 28
\p
\v 1 अफ़सोस इफ़्राईम के मतवालों के घमण्ड के ताज पर और उसकी शानदार शौकत के मुरझाये हुए फूल पर जो उन लोगों की शादाब वादी के सिरे पर है जो मय के मग़लूब हैं|
\v 2 देखो ख़ुदावन्द के पास एक ज़बरदस्त और ताक़तवर शख़्स है, जो उस आँधी की तरह जिसके साथ ओले हों और बाद समूम की तरह और सैलाब-ए-शदीद की तरह ज़मीन पर हाथ से पटक देगा।
\v 4 और उस शानदार शौकत का मुरझाया हुआ फूल जो उस शादाब वादी के सिरे पर है, पहले पक्के अंजीर की तरह होगा जो गर्मी के दिनों से पहले ~लगे; जिस पर किसी की निगाह पड़े और वह उसे देखते ही और हाथ में लेते ही निगल जाए।
\v 7 ~लेकिन यह भी मयख़्वारी से डगमगाते और नशे में लड़खड़ाते हैं; काहिन और नबी भी नशे में चूर और मय में ग़र्क़ हैं, वह नशे में झूमते हैं; वह रोया में ख़ता करते और 'अदालत में लगज़िश खाते हैं|
\v 13 ~तब ख़ुदावन्द का कलाम उनके लिए हुक्म पर हुक्म, हुक्म पर हुक्म, क़ानून पर क़ानून, क़ानून पर क़ानून, थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ होगा; ताकि वह चले जाएँ और पीछे गिरें और सिकश्त खाएँ और दाम में फसें और गिरफ़्तार हों|
\v 15 चूँकि तुम कहा करते हो, कि "हम ने मौत से 'अहद बाँधा, और पाताल से पैमान कर लिया है; जब सज़ा का सैलाब आएगा तो हम तक नहीं पहुँचेगा, क्यूँकि हम ने झूठ को अपनी पनाहगाह बनाया है और दरोग़गोई की आड़ में छिप गए हैं;"
\v 16 इसलिए~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है देखो मैं सिय्यून~में बुनियाद के लिए एक पत्थर रख्खूँगा, आज़मूदा पत्थर मुहकम बुनियाद के लिए कोने के सिरे का क़ीमती पत्थर: जो कोई ईमान लाता है क़ायम रहेगा |
\v 21 क्यूँकि ख़ुदावन्द उठेगा जैसा कोह-ए-पराज़ीम में, और वह ग़ज़बनाक होगा जैसा जिबा'ऊन की वादी में; ताकि अपना काम बल्कि अपना 'अजीब काम करे और अपना काम, हाँ अपना अनोखा, काम पूरा करे।
\v 22 ~इसलिए अब तुम ठठ्ठा न करो, ऐसा न हो कि तुम्हारे बंद सख़्त हो जाएं क्यूँकि मैंने ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़्वाज से सुना है कि उसने कामिल और मुसमम्म इरादा किया है कि सारी सर ज़मीन को तबाह करे |
\v 25 ~जब उसको हमवार कर चुका, तो क्या वह अजवायन को नहीं छांटता, और ज़ीरे को डाल नहीं देता, और गेहूँ को कतारों में नहीं बोता, और जौ को उसके मु'अय्यन मकान में, और कठिया गेहूँ को उसकी ख़ास क्यारी में नहीं बोता?
\v 28 ~रोटी के ग़ल्ले पर दाँय चलाता है,लेकिन वह हमेशा उसे कूटता नहीं रहता; और अपनी गाड़ी के पहियों और घोड़ों को उस पर हमेशा फिराता नहीं उसे सरासर नहीं कुचलेगा।
\v 4 ~और तू पस्त होगा, और ज़मीन पर से बोलेगा, और ख़ाक पर से तेरी आवाज़ धीमी आयेगी तेरी सदा भूत की सी होगी जो ज़मीन के अन्दर से निकलेगी, और तेरी बोली ख़ाक पर से चुरुगने की आवाज़ मा'लूम होगी।
\v 7 ~और उन सब क़ौमों का गिरोह जो अरीएल से लड़ेगा, या'नी वह सब जो उससे और उसके क़िले' से जंग करेंगे और उसे दुख देंगे, ख़्वाब या रात के ख़्वाब की तरह हो जायेंगे |
\v 8 ~जैसे भूका आदमी ख़्वाब में देखे कि खा रहा है, जाग उठे और उसका जी न भरा हो; प्यासा आदमी ख़्वाब में देखे कि पानी पी रहा है, जाग उठे और प्यास से बेताब हो' उसकी जान आसूदा न हो; ऐसा ही उन सब क़ौमों के गिरोह का हाल होगा जो सिय्यून पहाड़ से जंग करती हैं।
\v 10 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ने तुम पर गहरी नींद की रूह भेजी है, और तुम्हारी आँखों या'नी नबियों को नाबीना कर दिया; और तुम्हारे सिरों या'नी ग़ैबबीनों पर हिजाब डाल दिया:
\v 11 और सारी रोया तुम्हारे नज़दीक सरबमुहर किताब के मज़मून की तरह होगी, जिसे लोग किसी पढ़े लिखे को दें और कहें कि इसको पढ़ और वह कहे, पढ़ नहीं सकता,क्यूँकि यह सर-ब-मुहर है|
\v 12 और ~फिर वह किताब किसी नाख़्वान्दा को दें और कहें, इसको पढ़ और वह कहे,मैं तो पढ़ना नहीं जानता।"
\v 13 फिर ख़ुदावन्द फ़रमाता है, चूँकि यह लोग ज़बान से मेरी नज़दीकी चाहते हैं और होठों से मेरी ता'ज़ीम करते हैं लेकिन इनके दिल मुझसे दूर हैं मेरा ख़ौफ़ जो इनको हुआ सिर्फ़ आदियों की ता'लीम सुनने से हुआ |
\v 14 ~इसलिए मैं इन लोगों के साथ 'अजीब सुलूक करूँगा, जो हैरत अंगेज़ और ता'अज्जुब ख़ेज़ होगा और इनके 'आक़िलों की 'अक़्ल ज़ायल हो जाएगी और इनके समझदारों की समझ जाती रहेगी।”
\v 16 ~आह तुम कैसे टेढे हो! क्या कुम्हार मिट्टी के बराबर गिना जाएगा या मसनू'अ अपने सानि'अ से कहेगा, कि मैं तेरी सन'अत नहीं क्या मख़लूक़ अपने ख़ालिक़ से कहेगा, कि तू कुछ नहीं जानता"?
\v 21 या'नी जो आदमी को उसके मुक़द्दमे में मुजरिम ठहराते, और उसके लिए जिसने 'अदालत से फाटक पर मुक़द्दमा फै़सल किया फंदा लगाते और रास्तबाज़ को बेवजह बरगश्ता करते हैं।
\v 22 इसलिए ख़ुदावन्द जो इब्राहीम का नजात देनेवाला है, या'क़ूब के ख़ान्दान के हक़ में यूँ फ़रमाता है, कि या'क़ूब अब शर्मिन्दा न होगा, वह हरगिज़ ज़र्द रू न होगा।
\v 23 बल्कि ~उसके फ़र्ज़न्द अपने बीच मेरी दस्तकारी देख कर मेरे नाम की तक़दीस करेंगे; हाँ या'क़ूब के क़ुद्दूस ~की तक़्दीस करेंगे और इस्राईल के ख़ुदा से डरेंगे।
\v 24 ~और वह भी जो रूह में गुमराह हैं, फ़हम हासिल करेंगे और बुड़बुड़ाने वाले ता'लीम पज़ीर होंगे।"
\s5
\c 30
\p
\v 1 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, उन बाग़ी लड़कों पर अफ़सोस जो ऐसी तदबीर करते हैं जो मेरी तरफ़ से नहीं,और 'अहद-ओ-पेमान ~करते हैं जो मेरी रूह की हिदायत से नहीं; ताकि गुनाह पर गुनाह करें।
\v 6 दक्खिन के जानवरों के बारे में दुख और मुसीबत की सरज़मीन में, जहाँ से नर-ओ-मादा शेर-ए-बबर और अफ़'ई और उड़नेवाले आग के साँप आते हैं वह अपनी दौलत गधों की पीठ पर, और अपने ख़ज़ाने ऊँटों के कोहान पर लाद कर उस क़ौम के पास ले जाते हैं जिससे उनको कुछ फ़ायदा न पहुँचेगा।
\v 10 जो गै़बबीनों से कहते हैं, "ग़ैबबीनी न करो," और नबियों से, कि "हम पर सच्ची नबुव्वतें ज़ाहिर न करो, हम को ~ ख़ुशगवार बातें सुनाओ, और हम से झूठी नबुव्वत करो,
\v 11 रास्ते से बाहर जाओ, रास्ते से बरगश्ता हो, और इस्राईल के क़ुद्दूस ~को हमारे बीच से ख़त्म करो।"
\v 14 ~वह इसे कुम्हार के बर्तन की तरह तोड़ डालेगा, इसे बे दरेग़ चकनाचूर करेगा; चुनाँचे ~इसके टुकड़ों में एक ठीकरा भी न मिलेगा जिसमें चूल्हे पर से आग उठाई जाए,या होज़ से पानी लिया जाए।"
\v 15 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द यहोवाह, इस्राईल का क़ुददूस यूँ फ़रमाता है, कि वापस आने और ख़ामोश बैठने में तुम्हारी सलामती है; ख़ामोशी और भरोसे में तुम्हारी ताक़त है।" लेकिन तुम ने यह न चाहा।
\v 16 ~तुम ने कहा, "नहीं, हम तो घोड़ों पर चढ़ के भागेंगे;" इसलिए तुम भागोगे; और कहा, "हम तेज़ रफ़्तार जानवरों पर सवार होंगे; "फिर तुम्हारा पीछा करनेवाले तेज़ रफ़्तार होंगे।
\v 17 एक की झिड़की से एक हज़ार भागेंगे पाँच की झिडकी से तुम ऐसा भागोगे कि तुम उस 'अलामत की तरह जो पहाड़ की चोटी पर और उस निशान की तरह जो कोह पर नसब किया गया हो रह जाओगे।
\v 18 ~तोभी ख़ुदावन्द तुम पर मेहरबानी करने के लिए इन्तिज़ार करेगा, और तुम पर रहम करने के लिए बुलन्द होगा। क्यूँकि ख़ुदावन्द ~इन्साफ़ करने वाला ख़ुदा है, मुबारक हैं वह सब जो उसका इन्तिज़ार करते हैं।
\v 19 क्यूँकि ऐ सिय्यूनी क़ौम, जो यरुशलीम में बसेगी,तो ~फिर न रोएगी; वह तेरी फ़रियाद की आवाज़ सुन कर यक़ीनन तुझ पर रहम फ़रमाएगा; वह सुनते ही तुझे जवाब देगा।
\s5
\v 20 और अगरचे ख़ुदावन्द तुझ को तंगी की रोटी और मुसीबत का पानी देता है, तोभी तेरा मु'अल्लिम फिर तुझ से रूपोश न होगा; बल्कि तेरी ऑखें उसको देखेंगी।
\v 21 और जब तू दहनी या बाँई तरफ़ मुड़े, तो तेरे कान तेरे पीछे से यह आवाज़ सुनेंगे, कि "राह यही है, इस पर चल।”
\s5
\v 22 उस ~वक़्त तू अपनी खोदी हुई मूरतों पर मढ़ी हुई चाँदी, और ढाले हुए बुतों पर चढ़े हुए सोने को नापाक करेगा। तू उसे हैज़ के लते की तरह फेंक देगा तू उसे कहेगा, निकल दूर हो|
\v 23 ~तब वह तेरे बीज के लिए जो तू ज़मीन में बोए, बारिश भेजेगा; और ज़मीन की अफ़ज़ाइश की रोटी का ग़ल्ला, 'उम्दा और कसरत से होगा। उस वक़्त तेरे जानवर वसी' चरागाहों में चरेंगे।
\v 24 और ~बैल और जवान गधे जिनसे ज़मीन जोती जाती है, लज़ीज़ चारा खाएँगे जो बेल्चे और छाज से फटका गया हो।
\s5
\v 25 ~और जब बुर्ज गिर जाएँगे और बड़ी ख़ूँरेज़ी होगी, तो हर एक ऊँचे पहाड़ और बुलन्द टीले पर चश्मे और पानी की नदियाँ होंगी।
\v 26 ~और जिस वक़्त ख़ुदावन्द अपने लोगों की शिकस्तगी को दुरुस्त करेगा और उनके ज़ख़्मों को अच्छा करेगा; तो चाँद की चाँदनी ऐसी होगी जैसी सूरज की रोशनी, और सूरज की रोशनी सात गुनी बल्कि सात दिन की रोशनी के बराबर होगी।
\v 28 ~उसका दम नदी के सैलाब की तरह है, जो गर्दन तक पहुँच जाए; वह क़ौमों को हलाकत के छाज में फटकेगा और लोगों के जबड़ों में लगाम डालेगा, ताकि उनको गुमराह करे।
\v 29 ~तब तुम गीत गाओगे, जैसे उस रात गाते हो जब मुक़द्दस 'ईद मनाते हो; और दिल की ऐसी ख़ुशी होगी जैसी उस शख़्स की जो बाँसुरी लिए हुए खिरामान हो कि ख़ुदावन्द के पहाड़ में इस्राईल की चट्टान के पास जाए।
\v 30 क्यूँकि ख़ुदावन्द अपनी जलाली आवाज़ सुनाएगा,~और अपने क़हर की शिद्दत और आतिश-ए-सोज़ान के शो'ले,~और सैलाब और आँधी और ओलों के साथ अपना बाज़ू नीचे लाएगा।
\v 33 क्यूँकि तूफ़त मुद्दत से तैयार किया गया है;~हाँ, वह बादशाह के लिए गहरा और वसी'~बनाया गया है;~उसका ढेर आग और बहुत सा ईधन है,~और ख़ुदावन्द की साँस गन्धक के सैलाब की तरह उसको सुलगाती है।
\s5
\c 31
\p
\v 1 ~उसपर अफ़सोस, जो मदद के लिए मिस्र को जाते और घोड़ों पर एतमाद करते हैं और रथों पर भरोसा रखते हैं इसलिए कि वह बहुत हैं, और सवारों पर इसलिए कि वह बहुत ताक़तवर हैं; लेकिन इस्राईल के क़ुददूस पर निगाह नहीं करते और ख़ुदावन्द के तालिब नहीं होते।
\v 2 ~लेकिन वह भी तो 'अक़्लमन्द है और बला नाज़िल करेगा, और अपने कलाम को बातिल न होने देगा वह शरीरों के घराने पर और उन पर जो बदकिरदारों की हिमायत करते हैं चढ़ाई करेगा|
\v 3 ~क्यूँकि मिस्री तो इन्सान हैं ख़ुदा नहीं। और उनके घोड़े गोश्त हैं रूह नहीं सो जब ख़ुदावन्द अपना हाथ बढ़ाएगा तो हिमायती गिर जाएगा , और वह जिसकी हिमायत की गई पस्त हो जाएगा, और वह सब के सब इकट्ठे हलाक हो जायेंगे |
\v 4 क्यूँकि ~ख़ुदावन्द ने मुझ से यूँ फ़रमाया है कि जिस तरह शेर बबर हाँ जवान शेर बबर अपने शिकार पर से ग़ुर्राता है और अगर बहुत से गड़रिये उसके मुक़ाबिले को बुलाए जाएँ तो उनकी ललकार से नहीं डरता,और ~उनके हुजूम से दब नहीं जाता; उसी तरह रब्ब-उल-अफ़वाज सिय्यून पहाड़ और उसके टीले पर लड़ने को उतरेगा |
\v 8 ~तब असूर उसी तलवार से गिर जाएगा जो इन्सान की नहीं, और वही तलवार जो आदमी की नहीं उसे हलाक करेगी; वह तलवार के सामने से भागेगा और उसके जवान मर्द ख़िराज गुज़ार बनेंगे |
\v 9 ~और वह ख़ौफ़ की वजह से अपने हसीन मकान से गुज़र जाएगा, और उसके सरदार झण्डे से ख़ौफ़ज़दह हो जाएँगे," ये ख़ुदावन्द फ़रमाता है, जिसकी आग सिय्यून में और भट्टी यरुशलीम में है।
\s5
\c 32
\p
\v 1 ~देख एक बादशाह सदाक़त से सल्तनत करेगा और शहज़ादे 'अदालत से हुक्मरानी करेंगे।
\v 2 और ~एक शख़्स ऑधी से पनाहगाह की तरह होगा, और तूफ़ान से छिपने की जगह; और ख़ुश्क ज़मीन में पानी की नदियों की तरह और मान्दिगी की ज़मीन में ~बड़ी चट्टान के साये की तरह होगा
\v 6 ~क्यूँकि बेवक़ूफ़ हिमाक़त की बातें करेगा और उसका दिल बदी का मंसूबा बाँधेगा कि बेदीनी करे और ख़ुदावन्द के ख़िलाफ़ दरोग़गोई करे और भूके के पेट को ख़ाली करे और प्यासे को पानी से महरूम रख्खे
\v 14 ~क्यूँकि क़स्र ~ख़ाली हो जाएगा,और आबाद शहर तर्क ~किया जाएगा; 'ओफल और दीद बानी का बुर्ज हमेशा तक मांद बनकर गोख़रों की आरामगाहें और गल्लों की चरागाहें होंगे |
\v 20 ~तुम ख़ुशनसीब हो, जो सब नहरों के आसपास बोते हो और बैलों और गधों को उधर ले जाते हो |
\s5
\c 33
\p
\v 1 ~तुझ पर अफ़सोस कि तू ग़ारत करता है, और ~ग़ारत न किया गया था! तू दगाबाज़ी करता है और किसी ने तुझ से दग़ाबाज़ी न की थी? जब तू ग़ारत~कर चुकेगा तो तू~ग़ारत~ किया जाएगा; और जब तू दग़ाबाज़ी कर चुकेगा, तो और लोग तुझ से दग़ाबाज़ी करेंगे।
\v 14 ~ वह गुनाहगार जो सिय्यून में हैं डर गए; कपकपी ने बेदीनों को आ दबाया है : 'कौन हम में से उस मुहलिक़ आग में रह सकता है? और कौन हम में से हमेशा के शो'लों के बीच बस सकता है?"
\v 15 जो रास्तरफ़्तार और दुरुस्तगुफ़्तार हैं जो ~ज़ुल्म के नफ़े' हक़ीर जानता है, जो रिश्वत से दस्तबरदार है, जो अपने कान बन्द करता है ताकि ख़ूँरेज़ी के मज़मून न सुने, और आँखें मून्दता है ताकि बुराई न देखे।
\v 20 ~हमारी ईदगाह सिय्यून पर नज़र कर; तेरी आँखें यरुशलीम को देखेंगी जो सलामती का मक़ाम है, बल्कि ऐसा ख़ेमा जो हिलाया न जाएगा, जिसकी मेख़ों में से एक भी उखाड़ी न जाएगी, और उसकी डोरियों में से एक भी तोड़ी न जाएगी।
\v 21 ~बल्कि वहाँ ज़ुलजलाल ख़ुदावन्द, बड़ी नदियों और नहरों के बदले हमारी गुन्जाइश के लिए आप मौजूद होगा कि वहाँ डॉंड की कोई नाव न जाएगी, और न शानदार जहाज़ों का गुज़र उसमें होगा।
\v 23 ~तेरी रस्सियाँ ढीली हैं; लोग मस्तूल की चूल को मज़बूत न कर सके, वह बादबान न फैला सके; सो लूट का वाफ़िर माल तक़सीम किया गया, लंगड़े भी ग़नीमत पर क़ाबिज़ हो गए।
\v 4 और ~तमाम अजराम-ए-फ़लक गुदाज़ हो जायेंगे और आसमान तूमार की ~तरह लपेटे जाएँगे; और उनकी तमाम अफ़्वाज ~ताक और अंजीर के मुरझाये हुए पत्तों की तरह गिर जाएँगी।
\v 6 ख़ुदावन्द की तलवार ख़ून आलूदा है; वह चर्बी ~और बर्रों और बकरों के ख़ून से, और मेढ़ों के गुर्दों ~की चर्बी से चिकना गई। क्यूँकि ख़ुदावन्द के लिए बुसराह में एक क़ुर्बानी और अदोम के मुल्क में बड़ी ख़ूँरेज़ी है।
\v 16 तुम ख़ुदावन्द की किताब में ढूंडो और पढ़ो ~: इनमें से एक भी कम न होगा, और कोई बेजुफ़्त न होगा; क्यूँकि मेरे मुँह ने यही हुक्म किया है और उसकी रूह ने इनको जमा' किया है।
\v 2 उसमें कसरत से कलियाँ निकलेंगी, वह शादमानी से गा कर ख़ुशी करेगा। लुबनान की शौकत और कर्मिल और शारून की ज़ीनत उसे दी जाएगी; वह ख़ुदावन्द का जलाल और हमारे ख़ुदा की हश्मत देखेंगे।
\v 8 और ~वहाँ एक शाहराह और गुज़रगाह होगी जो पाक राह कहलाएगी; जिससे कोई नापाक गुज़र न करेगा लेकिन ये मुसाफ़िरों के लिए होगी, बेवक़ूफ़ भी उसमें गुमराह न होंगे।
\v 10 और ~जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और सिय्यून में गाते हुए आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे, और ग़म व अंदोह काफू़र हो जाएँगे।
\s5
\c 36
\p
\v 1 और ~हिज़क़ियाह बादशाह की सल्तनत के चौदहवें बरस यूँ हुआ कि शाह-ए-असूर ~सनहेरिब ने यहूदाह के सब फ़सीलदार शहरों पर चढ़ाई की और उनको ले लिया।
\v 2 और~शाह-ए-असूर~~ने रबशाक़ी को एक बड़े लश्कर के साथ लकीस से हिज़क़ियाह के पास यरुशलीम को भेजा, और उसने ऊपर के तालाब की नाली पर धोबियों के मैदान की राह में मक़ाम किया।
\v 3 ~तब इलयाक़ीम बिन ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और मुहर्रिर यूआख़ बिन आसिफ़ निकल कर उसके पास आए।
\v 4 ~और रबशाक़ी ने उनसे कहा,तुम ~हिज़क़ियाह से कहो : कि मलिक-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर यूँ ~फ़रमाता है कि तू क्या एतमाद किए बैठा है?
\v 5 ~क्या मशवरत और जंग की ताक़त मुँह की बातें ही हैं आख़िर किस के भरोसे पर तूने मुझ से सरकशी की है?
\s5
\v 6 ~देख, तुझे उस मसले हुए सरकंडे के 'असा या'नी मिस्र पर भरोसा है; उस पर अगर कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में गड़ जाएगा और उसे छेद देगा। शाह-ए-मिस्र फ़िर'औन उन सब के लिए, जो उस पर भरोसा करते हैं ऐसा ही है।
\v 7 फ़िर अगर तू मुझ से यूँ कहे कि हमारा तवक्कुल ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा पर है,तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊँचे मक़ामों और मज़बहों को ढाकर हिज़क़ियाह ने यहूदाह और यरुशलीम से कहा है कि तुम इस मज़बह के आगे सिज्दा किया करो|
\s5
\v 8 ~इसलिए अब ज़रा मेरे आक़ा शाह-ए-असूर के साथ शर्त बाँध और मैं तुझे दो हज़ार घोड़े दूँगा, बशर्ते कि तू अपनी तरफ़ से उन पर सवार चढ़ा सके।
\s5
\v 9 ~भला तू क्यूँकर मेरे आक़ा के कमतरीन मुलाज़िमों में से एक सरदार का भी मुँह फेर सकता है? और तू रथों और सवारों के लिए मिस्र पर भरोसा करता है?
\v 10 ~और क्या अब मैंने ख़ुदावन्द के बे कहे ही इस मक़ाम को ग़ारत करने के लिए इस पर चढ़ाई की है? ख़ुदावन्द ही ने तो मुझ से कहा कि इस मुल्क पर चढ़ाई कर और इसे ग़ारत करदे
\v 11 ~तब इलियाक़ीम और शबनाह और यूआख़ ने रबशाक़ी से 'अर्ज़ की कि अपने ख़ादिमों से अरामी ज़बान में बात कर, क्यूँकि हम उसे समझते हैं, और दीवार पर के लोगों के सुनते हुए यहूदियों की ज़बान में हम से बात न कर।"
\v 12 लेकिन रबशाक़ी ने कहा, "क्या मेरे आक़ा ने मुझे ये बातें कहने को तेरे आक़ा के पास या तेरे पास भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा, जो तुम्हारे साथ अपनी ही नजासत खाने और अपना ही क़ारूरा पीने को दीवार पर बैठे हैं?
\v 13 ~फिर रबशाक़ी खड़ा हो गया और यहूदियों की ज़बान में बलन्द आवाज़ से यूँ कहने लगा, कि मुल्क-ए-मु'अज्ज़म शाह-ए-असूर का कलाम सुनो!
\v 14 ~ बादशाह यूँ फ़रमाता है : कि हिज़क़ियाह तुम को धोखा न दे, क्यूँकि वह तुम को छुड़ा नहीं सकेगा।
\v 15 ~और न वह ये कह कर तुम से ख़ुदावन्द पर भरोसा कराए कि ख़ुदावन्द ज़रूर हम को छुड़ाएगा, और ये शहर शाह-ए-असूर के हवाले न किया जाएगा।
\s5
\v 16 हिज़क़ियाह~की न सुनो; क्यूँकि~ शाह-ए-असूर यूँ फ़रमाता है कि तुम मुझ से सुलह कर लो,और ~निकलकर मेरे पास आओ; तुम में से हर एक अपनी ताक और अपने अँजीर के दरख़्त का मेवा खाता और अपने हौज़ का पानी पीता रहे।
\v 17 जब तक कि मैं आकर तुम को ऐसे मुल्क में न ले जाऊँ, जो तुम्हारे मुल्क की तरह ग़ल्ला ~और मय का मुल्क, रोटी और ताकिस्तानों का मुल्क है।
\s5
\v 18 ~ख़बरदार ऐसा न हो कि हिज़क़ियाह तुम को ये कह कर तरग़ीब दे, कि ख़ुदावन्द हम को छुड़ाएगा। क्या क़ौमों के मा'बूदों में से किसी ने भी अपने मुल्क को~ शाह-ए-असूर के हाथ से छुड़ाया है?
\v 19 ~हमात और अरफ़ाद के मा'बूद कहाँ हैं? सिफ़वाईम के मा'बूद कहाँ हैं? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचा लिया?
\v 20 ~इन मुल्कों के तमाम मा'बूदों में से किस किस ने अपना मुल्क मेरे हाथ से छुड़ा लिया, जो ख़ुदावन्द भी यरुशलीम को मेरे हाथ से छुड़ा लेगा?" "
\v 21 ~लेकिन वह ख़ामोश रहे और उसके जवाब में उन्होंने एक बात भी न कही; क्यूँकि बादशाह का हुक्म ये था कि उसे जवाब न देना।
\v 22 ~और इलियाक़ीम-बिन-ख़िलक़ियाह जो घर का दीवान था, और शबनाह मुंशी और यूआख़-बिन-आसफ़ मुहर्रिर अपने कपड़े चाक किए हुए हिज़क़ियाह के पास आए और रबशाक़ी की बातें उसे सुनाई।
\s5
\c 37
\p
\v 1 जब हिज़क़ियाह बादशाह ने ये सुना तो अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर ~ख़ुदावन्द के घर में गया।
\v 2 और उसने घर के दीवान इलियाक़ीम और शबनाह मुंशी और काहिनों के बुज़ुर्गों को टाट उढ़ा कर आमूस के बेटे यसा'याह नबी के पास भेजा।
\s5
\v 3 ~और उनहोंने उससे कहा कि~हिज़क़ियाह यूँ कहता है कि आज का~दिन दुख और मलामत और तौहीन का दिन है क्यूँकि बच्चे पैदा होने पर हैं और विलादत की ताक़त नहीं।
\v 4 ~शायद ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा रबशाक़ी की बातें सुनेगा जिसे उसके आक़ा~शाह-ए-असूर ने भेजा है कि ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करे; और जो बातें ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा ने सुनीं, उनपर वह मलामत करेगा। फिर तू उस बक़िये के लिए जो मौजूद है दू'आ कर | ''
\v 5 ~तब ~हिज़क़ियाह बादशाह के मुलाज़िम यसा'याह के पास आए।
\v 6 और यसा'याह ने उनसे कहा, "तुम अपने आक़ा से यूँ कहना, 'ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू उन बातों से जो तूने सुनी हैं,~जिनसे शाह-ए-असूर के मुलाज़िमों ने मेरी तकफ़ीर की है,~परेशान न हो।
\v 7 ~देख मैं उसमें एक रूह डाल दूँगा,और वह एक अफ़वाह सुनकर अपने मुल्क को लौट जाएगा, मैं उसे उसी के मुल्क में तलवार से मरवा डालूँगा।'
\v 8 इसलिए रबशाक़ी लौट गया और उसने~शाह-ए-असूर को लिबनाह से लड़ते पाया, क्यूँकि उसने सुना था कि वह लकीस से चला गया है।
\v 9 और उसने कूश के बादशाह तिरहाक़ा के ज़रिए' सुना कि वह तुझ से लड़ने को निकला है; और जब उसने ये सुना, तो हिज़क़ियाह के पास क़ासिद भेजे और कहा,
\v 10 ~"शाह-ए-यहूदाह हिज़क़ियाह से यूँ कहना, कि तेरा ख़ुदा जिस पर तेरा यक़ीन है, तुझे ये कह कर धोखा न दे कि यरुशलीम शाह-ए-असूर के क़ब्ज़े में न किया जाएगा।
\s5
\v 11 देख तूने सुना है कि असूर के बादशाहों ने तमाम मुल्कों को बिलकुल ग़ारत करके उनका क्या हाल बनाया है; इसलिए क्या तू बचा रहेगा?
\v 12 क्या ~उन क़ौमों के मा'बूदों ने उनको, या'नी जूज़ान और हारान और रसफ़ और बनी 'अदन को जो तिलसार में थे, जिनको हमारे बाप-दादा ने हलाक किया, छुड़ाया|
\v 13 ~हमात का बादशाह, और अरफ़ाद का बादशाह, और शहर सिफ्रवाईम और हेना' और 'इवाह का बादशाह कहाँ है|
\v 14 हिज़क़ियाह~ने क़ासिदों के हाथ से ख़त लिया और उसे पढ़ा और~हिज़क़ियाह ने ~ख़ुदावन्द के घर जाकर उसे ख़ुदावन्द के सामने फैला दिया।
\v 15 ~और हिज़क़ियाह ने ख़ुदावन्द से यूँ दु'आ की,
\v 16 ~"ऐ रब्ब-उल-अफ़वाज, इस्राईल के ख़ुदा करूबियों के ऊपर बैठनेवाले; तू ही अकेला ज़मीन की सब सल्तनतों का ख़ुदा है, तू ही ने आसमान और ज़मीन को पैदा किया।
\s5
\v 17 ~ऐ ख़ुदावन्द कान लगा और सुन; ऐ ख़ुदावन्द अपनी आँखें खोल और देख;और ~सनहेरिब की इन सब बातों को जो उसने ज़िन्दा ख़ुदा की तौहीन करने के लिए कहला भेजी हैं,सुनले
\v 18 ~ऐ ख़ुदावन्द, दर-हक़ीक़त असूर के बादशाहों ने सब क़ौमों को उनके मुल्कों" के साथ तबाह किया,
\s5
\v 19 और उनके मा'बूदों को आग में डाला, क्यूँकि वह ख़ुदा न थे बल्कि आदमियों की दस्तकारी थे, लकड़ी और पत्थर; इसलिए उन्होंने उनको हलाक किया है।
\v 20 इसलिए अब ऐ ख़ुदावन्द हमारे ख़ुदा, हम को उसके हाथ से बचा ले, ताकि ज़मीन की सब सल्तनतें जान लें कि तू ही अकेला ख़ुदावन्द है।
\v 21 ~तब यसा'याह बिन आमूस ने हिज़क़ियाह को कहला भेजा,कि ख़ुदावन्द ~इस्राईल का ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~चूँकि तूने शाह-ए-असूर सनहेरिब के ख़िलाफ़ मुझ से दु'आ की है,
\v 22 ~इसलिए ख़ुदावन्द ने उसके हक़ में यूँ फ़रमाया है, कि 'कुँवारी दुख़्तर-ए-सिय्यून ने तेरी तहक़ीर की और तेरा मज़ाक़ उड़ाया है। यरुशलीम की बेटी ने तुझ पर सिर हिलाया है।
\v 24 ~तूने अपने ख़ादिमों के ज़रीए से ख़ुदावन्द की तौहीन की और कहा कि मैं अपने बहुत से रथों को साथ लेकर पहाड़ों की चोटियों पर बल्कि लुबनान के बीच ~हिस्सों तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊँचे ऊँचे देवदारों और अच्छे से अच्छे सनोबर के दरख़्तों को काट डालूँगा, और मैं उसके चोटी पर के ज़रखे़ज़ जंगल में जा घुसूंगा।
\v 26 ~क्या तूने नहीं सुना कि मुझे ये किए हुए मुद्दत हुई;~और मैंने पिछले दिनों से ठहरा दिया था?~अब मैंने उसी को पूरा किया है कि तू फ़सीलदार शहरों को उजाड़ कर खण्डर बना देने के लिए खड़ा हो।
\v 27 इसी वजह से उनके बाशिन्दे कमज़ोर हुए और घबरा गए, और शर्मिन्दा हुए; और मैदान की घास और पौध, छतों पर की घास , खेत के अनाज की तरह हो गए जो अभी बढ़ा न हो।
\v 29 ~तेरे मुझ पर झुंझलाने की वजह से और इसलिए कि तेरा घमण्ड मेरे कानों तक पहुँचा है, मैं अपनी नकेल तेरी नाक में और अपनी लगाम तेरे मुँह में डालूँगा , और तू जिस राह से आया है मैं तुझे उसी राह से वापस लौटा दूँगा।'
\v 30 और तेरे लिए ये निशान होगा कि तुम इस साल वह चीज़ें जो अज़-ख़ुद उगती हैं,और दूसरे साल वह चीज़ें जो उनसे पैदा हों खाओगे; और तीसरे साल तुम बोना और काटना और बाग़ लगा कर उनका फल खाना|
\v 33 ~"इसलिए ख़ुदावन्द शाह-ए-असूर के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि वह इस शहर में आने या यहाँ तीर चलाने न पाएगा; वह न तो सिपर लेकर उसके सामने आने और न उसके सामने दमदमा बाँधने पाएगा।
\v 36 ~फिर ख़ुदावन्द के फ़रिश्ते ने असूरियों की लश्करगाह में जाकर एक लाख पिच्चासी हज़ार आदमी जान से मार डाले; और सुबह ~को जब लोग सवेरे उठे, तो देखा कि वह सब पड़े हैं।
\v 37 ~तब शाह-ए-असूर सनहेरिब रवानगी करके वहाँ से चला गया और लौटकर नीनवाह में रहने लगा |
\s5
\v 38 और ~जब वह अपने ~मा'बूद निसरूक के मंदिर में 'इबादत कर रहा था तो अदरम्मलिक और शराज़र, उसके बेटों ने उसे तलवार से क़त्ल किया और अरारात की सर ज़मीन को भाग गए। और उसका बेटाअसरहद्दन उसकी जगह बादशाह हुआ
\s5
\c 38
\p
\v 1 उन ही दिनों में~हिज़क़ियाह ऐसा बीमार पड़ा कि मरने के क़रीब हो गया और यसा'याह नबी आमूस के बेटे ने उसके पास आकर उससे कहा कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि तू अपने घर का इन्तिज़ाम करदे क्यूँकि तू मर जाएगा और बचने का नहीं |
\v 2 तब~हिज़क़ियाह ने अपना मुँह दीवार की तरफ़ किया और ख़ुदावन्द से दु'आ की |
\v 3 ~और कहा ऐ ख़ुदावन्द मैं ~तेरी मिन्नत करता हूँ याद फ़रमा कि ~मैं तेरे सामने सच्चाई और पूरे दिल से चलता रहा हूँ, और जो तेरी नज़र में अच्छा ~है वही किया है और ~हिज़क़ियाह ज़ार-ज़ार रोया|
\s5
\v 4 तब ~ख़ुदावन्द का ये कलाम यसायाह पर नाज़िल हुआ
\v 5 ~कि जा और हिज़क़ियाह~से कह कि~ख़ुदावन्द तेरे बाप दाऊद का ख़ुदा यूँ~फ़रमाता है कि मैंने तेरी~दू'आ सुनी,मैंने तेरे आँसू देखे इसलिए देख मैं तेरी 'उम्र पन्द्रह बरस और बढ़ा दूँगा |
\v 6 और ~मैं तुझ को और इस शहर को~शाह-ए-असूर के हाथ से बचा लूँगा;और मैं इस शहर की हिमायत करूँगा।
\s5
\v 7 और ख़ुदावन्द की तरफ़ से तेरे लिए ये निशान ~होगा कि ख़ुदावन्द इस बात को जो उसने फ़रमाई पूरा करेगा|
\v 8 देख मैं आफ़ताब के ढले हुए साए के दर्जों में से आख़ज़ की धूप घड़ी के मुताबिक़ दस दर्जे पीछे को लौटा दूँगा चुनाँचे आफ़ताब जिन दर्जों से ढल गया था उनमें के दस दर्जे फिर लौट गया |
\v 12 मेरा घर उजड़ गया है और गडरिए के ख़ेमा की तरह मुझसे दूर किया गया मैंने जुलाहे की तरह अपनी ज़िन्दगानी को लपेट लिया है वह मुझको तांत से काट डालेगा सुबह से शाम तक तू मुझको तमाम कर डालता है|
\v 14 मैं अबाबील और सारस की तरह चीं-चीं करता रहा; मैं कबूतर की तरह कुढ़ता रहा; मेरी ऑखें ऊपर देखते-देखते पथरा गईं ऐ ख़ुदावन्द, मैं बे-कस हूँ, तू मेरा कफ़ील हो।
\v 17 देख, मेरा सख़्त रन्ज राहत से तब्दील हुआ;और मेरी जान पर मेहरबान होकर तूने उसे हलाकी के गढे से रिहाई दी; क्यूँकि तूने मेरे सब गुनाहों को अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया।
\v 21 यसा'याह ने कहा था, कि'अंजीर की टिकिया लेकर फोड़े पर बाँधे, और वह शिफ़ा पाएगा।"
\v 22 और हिज़क़ियाह ने कहा था, इसका क्या निशान है कि मैं ख़ुदावन्द के घर में जाऊँगा|
\s5
\c 39
\p
\v 1 उस वक़्त मरूदक बल्दान-बिन-बल्दान,शाह-ए-बाबुल ने हिज़क़ियाह के लिए नामे और तहाइफ़ भेजे; क्यूँकि उसने सुना था कि वह बीमार था और शिफ़ायाब हुआ।
\v 2 और हिज़क़ियाह उनसे बहुत ख़ुश हुआ और अपने ख़ज़ाने, या'नी चाँदी और सोना और मसालेह और बेश क़ीमत 'इत्र और तमाम सिलाह ख़ाना, और जो कुछ उसके ख़ज़ानों में मौजूद था उनको दिखाया। उसके घर में और उसकी सारी ममलुकत में ऐसी कोई चीज़ न थी, जो हिज़क़ियाह ने उनको न दिखाई।
\s5
\v 3 तब यसा'याह नबी ने हिज़क़ियाह बादशाह के पास आकर उससे कहा, कि "ये लोग क्या कहते थे, और ये कहाँ से तेरे पास आए?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, कि "ये एक दूर के मुल्क, या'नी बाबुल से मेरे पास आए हैं।"
\v 4 तब उसने पूछा, कि "उन्होंने तेरे घर में क्या-क्या देखा?" हिज़क़ियाह ने जवाब दिया, "सब कुछ जो मेरे घर में है, उन्होंने देखा : मेरे ख़ज़ानों में ऐसी कोई चीज़ नहीं जो मैंने उनको दिखाई न हो।"
\s5
\v 5 तब यसा'याह ने हिज़क़ियाह से कहा, 'रब्ब-उल-अफ़वाज का कलाम सुन ले :
\v 6 देख, वह दिन आते हैं कि सब कुछ जो तेरे घर में है, और जो कुछ तेरे बाप दादा ने आज के दिन तक जमा' कर रख्खा है बाबुल को ले जायेंगे ;ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कुछ भी बाक़ी न रहेगा।
\s5
\v 7 और वह तेरे बेटों में से जो तुझ से पैदा होंगे और जिनका बाप तू ही होगा, कितनों को ले जाएँगे; और वह शाह-ए-बाबुल के महल में ख्वाजासरा होंगे |
\v 8 तब हिज़क़ियाह ने यसा'याह से कहा, 'ख़ुदावन्द का कलाम जो तूने सुनाया भला है।" और उसने ये भी कहा, "मेरे दिनों में तो सलामती और अम्न होगा।
\s5
\c 40
\p
\v 1 तसल्ली दो तुम मेरे लोगों को तसल्ली दो; तुम्हारा ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 2 यरुशलीम को दिलासा दो; और उसे पुकार कर कहो कि उसकी मुसीबत के दिन जो जंग-ओ-जदल के थे गुज़र गए, उसके गुनाह का कफ़्फ़ारा हुआ; और उसने ख़ुदावन्द के हाथ से अपने सब गुनाहों का बदला दो चन्द पाया ।
\v 9 ऐ सिय्यून को ख़ुशख़बरी सुनाने वाली, ऊँचे पहाड़ पर चढ़ जा; और ऐ यरुशलीम को बशारत देनेवाली, ज़ोर से अपनी आवाज़ बलन्द कर, ख़ूब पुकार, और मत डर; यहूदाह की बस्तियों से कह, 'देखो, अपना ख़ुदा !"
\v 11 वह चौपान की तरह अपना गल्ला चराएगा, वह बर्रों को अपने बाज़ूओं में जमा' करेगा और अपनी बग़ल में लेकर चलेगा, और उनको जो दूध पिलाती हैं आहिस्ता आहिस्ता ले जाएगा।
\v 12 किसने समन्दर को चुल्लू से नापा और आसमान की पैमाइश बालिश्त से की,और ज़मीन की गर्द को पैमाने में भरा, और पहाड़ों को पलड़ों में वज़न किया और टीलों को तराजू़ में तोला।
\v 20 और जो ऐसा तहीदस्त है कि उसके पास नजर गुज़रानने को कुछ नहीं, वह ऐसी लकड़ी चुन लेता है जो सड़ने वाली न हो; वह होशियार कारीगर की तलाश करता है, ताकि ऐसी मूरत बनाए जो क़ायम रह सके।
\v 22 वह मुहीत-ए-ज़मीन पर बैठा है, और उसके बाशिन्दे टिड्डों की तरह हैं; वह आसमान को पर्दे की तरह तानता है, और उसको सुकूनत के लिए खे़मे की तरह फैलाता है।
\v 24 वह अभी लगाए न गए, वह अभी बोए न गए; उनका तना अभी ज़मीन में जड़ न पकड़ चुका कि वह सिर्फ़ उन पर फूँक मारता है और वह ख़ुश्क हो जाते है और हवा का झोंका ~उनको भूसे की तरह उड़ा ले जाता है।
\v 26 अपनी आँखें ऊपर उठाओ और देखो कि इन सबका ख़ालिक़ कौन है? वही जो इनके लश्कर को शुमार करके निकालता है, और उन सबको नाम-ब-नाम बुलाता है। उसकी क़ुदरत की 'अज़मत और उसके बाज़ू की ~तवानाई की वजह से एक भी ग़ैर हाज़िर नहीं रहता।
\v 27 तब ऐ या'क़ूब ! तू क्यूँ यूँ कहता है; और ऐ इस्राईल! तू किस लिए ऐसी बात करता है, कि "मेरी राह ख़ुदावन्द से पोशीदा है और मेरी 'अदालत मेरे ख़ुदा से गुज़र गई"?
\v 28 क्या तू नहीं जानता, क्या तूने नहीं सुना ? कि ख़ुदावन्द हमेशा का ख़ुदा~व तमाम ज़मीन का ख़ालिक़ थकता नहीं और मांदा नहीं होता उसकी हिकमत इदराक से बाहर है।
\v 31 लेकिन ख़ुदावन्द का इन्तिज़ार करने वाले, अज़-सर-ए-नौ ज़ोर हासिल करेंगे; वह उक़ाबों की तरह बाल-ओ-पर से उड़ेंगे", वह दौड़ेंगे और न थकेंगे, वह चलेंगे और मान्दा न होंगे।
\s5
\c 41
\p
\v 1 ऐ जज़ीरो, मेरे सामने ख़ामोश रहो; और उम्मतें अज़-सर-ए-नौ-ज़ोर ~हासिल करें; वह नज़दीक आकर 'अर्ज़ करें; आओ, हम मिलकर 'अदालत के लिए नज़दीक हों।
\v 2 किसने पूरब से उसको खड़ा किया, जिसको वह सदाक़त से अपने क़दमों में बुलाता है? वह क़ौमों को उसके हवाले करता और उसे बादशाहों पर मुसल्लित करता है; और उनको ख़ाक की तरह उसकी तलवार की तरफ़ उड़ती हुई भूसी की तरह उसकी कमान के हवाले करता है, |
\v 7 बढ़ई ने सुनार की और उसने जो हथौड़ी से साफ़ करता है उसकी जो निहाई पर पीटता है, हिम्मत बढ़ाई और कहा जोड़ तो अच्छा है, इसलिए उनहोंने उसको मैंख़ों से मज़बूत किया ताकि क़ायम रहे|
\v 10 तू मत डर, क्यूँकि मैं तेरे साथ हूँ; परेशान न हो, क्यूँकि मैं तेरा ख़ुदा हूँ, मैं तुझे ज़ोर बख़्शूँगा, मैं यक़ीनन तेरी मदद करूँगा , और मैं अपनी सदाक़त के दहने हाथ से तुझे संभालूँगा।
\v 14 परेशान न हो, ऐ कीड़े या'क़ूब ! ऐ ~इस्राईल की क़लील जमा'अत मैं तेरी मदद करूँगा ,~ख़ुदावन्द फ़रमाता है; हाँ मैं जो इस्राईल~का कु़ददूस तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।~,
\v 17 मुहताज और ग़रीब पानी ढूँडते फिरते हैं लेकिन मिलता नहीं, उनकी ज़बान प्यास से ख़ुश्क है; मैं ख़ुदावन्द उनकी सुनूँगा, मैं इस्राईल का ख़ुदा उनको तर्क न करूँगा ।
\v 22 वह उनको हाज़िर करें ताकि वह हम को होने वाली चीज़ों की ख़बर दें: हम से अगली बातें बयान करो कि क्या थीं, ताकि हम उन पर सोचें और उनके अंजाम को समझें या आइंदा की होने वाली बातों से हम को आगाह करो।
\v 25 मैंने उत्तर से एक को खड़ा किया है, वह आ पहुँचा; वह आफ़ताब के मतले' से होकर मेरा नाम लेगा, और शाहज़ादों को गारे की तरह लताड़ेगा जैसे कुम्हार मिट्टी गूँधता है।
\v 26 किसने ये इब्तिदा से बयान किया कि हम जानें? और किसने आगे से ख़बर दी कि हम कहें कि सच है? कोई उसका बयान करने वाला नहीं, कोई उसकी ख़बर देने वाला नहीं कोई नहीं जो तुम्हारी बातें सुने।
\v 5 जिसने आसमान को पैदा किया और तान दिया, जिसने ज़मीन को और उनको जो उसमें से निकलते हैं फैलाया, जो उसके बाशिन्दों को साँस और उस पर चलनेवालों को रूह 'इनायत करता है, या'नी ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है
\v 14 मैं बहुत मुद्दत से चुप रहा, मैं ख़ामोश हो रहा और ज़ब्त करता रहा; लेकिन अब मैं दर्द-ए-ज़िह वाली की तरह चिल्लाऊँगा; मैं हॉपूँगा और ज़ोर-ज़ोर से साँस लूँगा।
\v 16 और अन्धों को उस राह से जिसे वह नहीं जानते ले जाऊँगा, मैं उनको उन रास्तों पर जिनसे वह आगाह नहीं ले चलूँगा; मैं उनके आगे तारीकी को रोशनी और ऊँची नीची जगहों को हमवार कर दूँगा, मैं उनसे ये सुलूक करूँगा और उनको तर्क न करूँगा ।
\v 22 लेकिन ये वह लोग हैं जो लुट गए और ग़ारत हुए, वह सब के सब ज़िन्दानों में गिरफ़्तार और कै़दख़ानों में छिपे हैं; वह शिकार हुए और कोई नहीं छुड़ाता; वह लुट गए और कोई नहीं कहता, 'फेर दो!"
\v 24 किसने या'क़ूब को हवाले किया के ग़ारत हो, और इस्राईल को कि लुटेरों के हाथ में पड़े? क्या ख़ुदावन्द ने नहीं, जिसके ख़िलाफ़ हम ने गुनाह किया? क्यूँकि उन्होंने न चाहा कि उसकी राहों पर चलें, और वह उसकी शरी'अत के ताबे' न हुए।
\v 25 इसलिए उसने अपने क़हर की शिद्दत, और जंग की सख़्ती को उस पर डाला ~; और उसे हर तरफ़ से आग लग गई पर वह उसे दरियाफ़्त नहीं करता, वह उससे जल जाता है पर ख़ातिर में नहीं लाता।
\s5
\c 43
\p
\v 1 और अब, ऐ या'क़ूब, ख़ुदावन्द जिसने तुझ को पैदा किया, और जिसने, ऐ इस्राईल, तुझ को बनाया यूँ फ़रमाता है कि ख़ौफ़ न कर क्यूँकि तेरा फ़िदया दिया है~~मैंने तेरा नाम लेकर तुझे बुलाया है, तू मेरा है।
\v 2 जब तू सैलाब में से गुज़रेगा, तो मैं तेरे साथ हूँगा; और जब तू नदियों को उबूर करेगा, तो वह तुझे न डुबाएँगी; जब तू आग पर चलेगा, तो तुझे आँच न लगेगी और शोला तुझे न जलाएगा।
\v 9 तमाम क़ौमें फ़राहम की जाएँ और सब उम्मतें जमा' हों। उनके बीच कौन है जो उसे बयान करे या हम को पिछली बातें बताए? वह अपने गवाहों को लाएँ ताकि वह सच्चे साबित हों, और लोग सुनें और कहें कि ये सच है।
\v 10 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "तुम मेरे गवाह हो और मेरे ख़ादिम भी, जिन्हें मैंने बरगुज़ीदा किया, ताकि तुम जानो और मुझ पर ईमान लाओ और समझो कि मैं वही हूँ। मुझ से पहले कोई ख़ुदा न हुआ और मेरे बा'द भी कोई न होगा।
\v 12 मैंने 'ऐलान किया और मैंने नजात बख्शी और मैं ही ने ज़ाहिर किया, जब तुम में कोई अजनबी मा'बूद न था; इसलिए तुम मेरे गवाह हो," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "मैं ही ख़ुदा हूँ।
\v 14 ख़ुदावन्द तुम्हारा नजात देनेवाला इस्राईल का क़ुद्दूस यूँ फ़रमाता है, कि "तुम्हारी ख़ातिर मैंने बाबुल पर ख़ुरूज कराया, और मैं उन सबको फ़रारियों की हालत में और कसदियों को भी जो अपने जहाज़ों में ललकारते थे, ले आऊँगा।
\v 20 जंगली जानवर, गीदड़ और शुतरमुर्ग़, मेरी ताज़ीम करेंगे; क्यूँकि मैं वीराने में पानी और सहरा में नदियाँ जारी करूँगा ताकि मेरे लोगों के लिए, या'नी मेरे बरगुज़ीदों के पीने के लिए हों;
\v 23 तू बर्रों को अपनी सोख़्तनी क़ुर्बानी के लिए मेरे सामने नहीं लाया, और तूने अपने ज़बीहों से मेरी ताज़ीम नहीं की। मैंने तुझे हदिया लाने पर मजबूर नहीं किया, और लुबान जलाने की तक्लीफ़ नहीं दी।
\v 24 तूने रुपये से मेरे लिए अगर को नहीं ख़रीदा, और तूने मुझे अपने ज़बीहों की चर्बी से सेर नहीं किया; लेकिन तूने अपने गुनाहों से मुझे ज़ेरबार किया और अपनी ख़ताओं से मुझे बेज़ार कर दिया।
\v 2 ख़ुदावन्द तेरा ख़ालिक़ जिसने रहम ही से तुझे बनाया और तेरी मदद करेगा, यूँ फ़रमाता है :कि ऐ या'क़ूब, मेरे ख़ादिम और यसूरून मेरे बरगुज़ीदा, ख़ौफ़ न कर!
\v 3 क्यूँकि मैं प्यासी ज़मीन पर पानी उँडेलूँगा, और ख़ुश्क ज़मीन में नदियाँ जारी करूँगा ; मैं अपनी रूह तेरी नस्ल पर और अपनी बरकत तेरी औलाद पर नाज़िल करूँगा
\v 5 एक तो कहेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ," और दूसरा अपने आपको या'क़ूब के नाम का ठहराएगा, और तीसरा अपने हाथ पर लिखेगा, 'मैं ख़ुदावन्द का हूँ,' और अपने आपको इस्राईल के नाम से मुलक़्क़ब करेगा।"
\v 6 ख़ुदावन्द, इस्राईल का बादशाह और उसका फिदया देने वाला रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ही अव्वल और मैं ही आख़िर हूँ; और मेरे सिवा कोई ख़ुदा नहीं।
\v 7 और जब से मैंने पुराने लोगों की बिना डाली, कौन मेरी तरह बुलाएगा और उसको बयान करके मेरे लिए तरतीब देगा? हाँ, जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होने वाला है, उसका बयान करे।
\v 8 तुम न डरो, और परेशान न हो; क्या मैंने पहले ही से तुझे ये नहीं बताया और ज़ाहिर नहीं किया? तुम मेरे गवाह हो। क्या मेरे 'अलावाह कोई और ख़ुदा है? नहीं, कोई चट्टान नहीं; मैं तो कोई नहीं जानता।"
\v 12 लुहार कुल्हाड़ा बनाता है और अपना काम अंगारों से करता है, और उसे हथौड़ों से दुरुस्त करता और अपने बाज़ू की क़ुव्वत से गढ़ता है; हाँ वह भूका हो जाता हैं और उसका ज़ोर घट जाता है वह पानी नहीं पीता और थक जाता है |
\v 13 बढ़ई सूत फैलाता है और नुकेले हथियार से उसकी सूरत खींचता है, वह उसको रंदे से साफ़ करता है और परकार से उस पर नक़्श बनाता है; वह उसे इन्सान की शक्ल बल्कि आदमी की ख़ूबसूरत शबीह बनाता है, ताकि उसे घर में खड़ा करें।
\v 14 वह देवदारों को अपने लिए काटता है और क़िस्म-क़िस्म के बलूत को लेता है, और जंगल के दरख़्तों से जिसको पसन्द करता है; वह सनोबर का दरख़्त लगाता है और मेंह उसे सींचता है।
\v 15 तब वह आदमी के लिए ईधन होता है; वह उसमें से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी पकाता है, बल्कि उससे बुत बना कर उसको सिज्दा करता~ वह खोदी हुई मूरत बनाता है और उसके आगे मुँह के बल गिरता है।
\v 16 उसका एक टुकड़ा लेकर आग में जलाता है, और उसी के एक टुकड़े पर गोश्त कबाब करके खाता और सेर होता है; फिर वह तापता और कहता है, अहा, मैं गर्म हो गया, मैंने आग देखी!"
\v 17 फिर उसकी बाक़ी लकड़ी से देवता या'नी खोदी हुई मूरत बनाता है, और उसके आगे मुँह के बल गिर जाता है और उसे सिज्दा करता है और उससे इल्तिजा करके कहता है "मुझे नजात दे, क्यूँकि तू मेरा ख़ुदा है!"
\v 19 बल्कि कोई अपने दिल में नहीं सोचता़ और न किसी को मा'रिफ़त और तमीज़ है कि "मैंने तो इसका एक टुकड़ा आग में जलाया, और मैंने इसके अंगारों पर रोटी भी पकाई, और मैंने गोश्त भूना और खाया; अब क्या मैं इसके बक़िये" से एक मकरूह चीज़ बनाऊँ? क्या मैं दरख़्त के कुन्दे को सिज्दा करूँ?"
\v 21 ऐ या'क़ूब, ऐ इस्राईल, इन बातों को याद रख; क्यूँकि तू मेरा बन्दा है, मैंने तुझे बनाया है, तू मेरा ख़ादिम है; ऐ इस्राईल, मैं तुझ को फ़रामोश न करूँगा ।
\v 23 ऐ आसमानो, गाओ कि ख़ुदावन्द ने ये किया, ऐ असफ़ल-ए-ज़मीन, ललकार; ऐ पहाड़ो, ऐ जंगल और उसके सब दरख़्तो, नग़मापरदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने या'क़ूब का फ़िदिया दिया, और इस्राईल में अपना जलाल ज़ाहिर करेगा।
\v 24 ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, जिसने रहम ही से तुझे बनाया यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द सबका ख़ालिक़ हूँ, मैं ही अकेला आसमान को तानने और ज़मीन को बिछाने वाला हूँ, कौन मेरा शरीक है?
\v 26 अपने ख़ादिम के कलाम को साबित करता, और अपने रसूलों की मसलहत को पूरा करता हूँ जो यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, कि ' वह आबाद हो जाएगा," और यहूदाह के शहरों के ज़रिए' , कि ' वह ता'मीर किए जाएँगे, और मैं उसके खण्डरों को ता'मीर करूँगा ।
\v 28 जो ख़ोरस के हक़ में कहता हूँ, कि ~वह मेरा चरवाहा है और मेरी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करेगा;' और यरुशलीम के ज़रिए' कहता हूँ, ' वह ता'मीर किया जाएगा,"और हैकल के ज़रिए' कि उसकी बुनियाद डाली जायेगी |
\s5
\c 45
\p
\v 1 ख़ुदावन्द अपने मम्सूह ख़ोरस के हक़ में यूँ फ़रमाता है कि मैंने उसका दहना हाथ पकड़ा कि उम्मतों को उसके सामने ज़ेर करूँ और बादशाहों की कमरें खुलवा डालूँ और दरवाज़ों को उसके लिए खोल दूँ और फाटक बन्द न किए जाएँ,
\v 8 "ऐ आसमान, ऊपर से टपक पड़; हाँ बादल रास्तबाज़ी बरसाएँ," ज़मीन खुल जाए, और नजात और सदाक़त का फल लाए; वह उनको इकट्ठे उगाए; मैं ख़ुदावन्द उसका पैदा करनेवाला हूँ।
\v 9 "अफ़सोस उस पर जो अपने ख़ालिक़ से झगड़ता है! ठीकरा तो ज़मीन के ठीकरों में से है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहे, 'तू क्या बनाता है?" क्या तेरी दस्तकारी कहे, 'उसके तो हाथ नहीं?"
\v 11 ख़ुदावन्द इस्राईल का क़ुददूस और ख़ालिक़ यूँ फ़रमाता है, कि"क्या तुम आनेवाली चीज़ों के ज़रिए' मुझ से पूछोगे? क्या तुम मेरे बेटों या मेरी दस्तकारी के ज़रिए' मुझे हुक्म दोगे?
\v 13 रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है मैंने उसको सदाक़त में खड़ा किया है और मैं उसकी तमाम राहों को हमवार करूँगा ; वह मेरा शहर बनाएगा, और मेरे ग़ुलामों को बगै़र क़ीमत और इवज़ लिए आज़ाद कर देगा।"
\v 14 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मिस्र की दौलत, और कूश की तिजारत, और सबा के कद्दावर लोग तेरे पास आएँगे और तेरे होंगे; वह तेरी पैरवी करेंगे, वह बेड़ियाँ पहने हुए अपना मुल्क छोड़कर आयेंगे और तेरे सामने सिज्दा करेंगे; वह तेरी मिन्नत करेंगे और कहेंगे,यक़ीनन ख़ुदा तुझमें है और कोई दूसरा नहीं और उसके सिवा कोई ख़ुदा नहीं।' "
\v 18 क्यूँकि ख़ुदावन्द जिसने आसमान पैदा किए, वही ख़ुदा है; उसी ने ज़मीन बनाई और तैयार की, उसी ने उसे क़ायम किया; उसने उसे सुन्सान पैदा नहीं किया बल्कि उसको आबादी के लिए आरास्ता किया। वह यूँ फ़रमाता है, कि "मैं ख़ुदावन्द हूँ, और मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।
\v 19 मैंने ज़मीन की किसी तारीक जगह में, पोशीदगी में तो कलाम नहीं किया; मैंने या'क़ूब की नस्ल को नहीं फ़रमाया कि 'अबस मेरे तालिब हो। मैं ख़ुदावन्द सच कहता हूँ, और रास्ती की बातें बयान फ़रमाता हूँ।
\v 20 "तुम जो क़ौमों में से बच निकले हो! जमा' होकर आओ मिलकर नज़दीक हो वह जो अपनी लकड़ी की खोदी हुई मूरत लिए फिरते हैं, और ऐसे मा'बूद से जो बचा नहीं सकता दु'आ करते हैं, अक़्ल से ख़ाली हैं।
\v 21 तुम 'ऐलान करो और उनको नज़दीक लाओ; हाँ, वह एक साथ मशवरत करें, किसने पहले ही से ये ज़ाहिर किया? किसने पिछले दिनों में इसकी ख़बर पहले ही से दी है? क्या मैं ख़ुदावन्द ही ने ये नहीं किया? इसलिए मेरे 'अलावाह कोई ख़ुदा नहीं है; सादिक़-उल-क़ौल और नजात देनेवाला ख़ुदा मेरे 'अलावाह कोई नहीं।
\v 23 मैंने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, कलाम-ए-सिद्क़ मेरे मुँह से निकला है और वह टलेगा नहीं', कि 'हर एक घुटना मेरे सामने झुकेगा और हर एक ज़बान मेरी क़सम खाएगी।'
\v 4 मैं तुम्हारे बुढ़ापे तक वही हूँ और सिर सफ़ेद होने तक तुम को उठाए फिरूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और मैं ही उठाता रहूँगा, मैं ही लिए चलूँगा और रिहाई दूँगा।
\v 6 जो थैली से बाइफ़रात सोना निकालते और चाँदी को तराज़ू में तोलते हैं, वह सुनार को उजरत पर लगाते हैं और वह उससे एक बुत बनाता है; फिर वह उसके सामने झुकते, बल्कि सिज्दा करते हैं।
\v 7 वह उसे कँधे पर उठाते हैं, वह उसे ले जाकर उसकी जगह पर खड़ा करते हैं और वह खड़ा रहता है, वह अपनी जगह से सरकता नहीं; बल्कि अगर कोई उसे पुकारे, तो वह न जवाब दे सकता है और न उसे मुसीबत से छुड़ा सकता है |
\v 10 जो इब्तिदा ही से अंजाम की ख़बर देता हूँ, और पहले ~दिनों से वह बातें जो अब तक वजूद में नहीं आई, बताता हूँ; और कहता हूँ, कि 'मेरी मसलहत क़ायम रहेगी और मैं अपनी मर्ज़ी ~बिल्कुल पूरी करूँगा ।'
\v 11 जो पूरब से उक़ाब को या'नी उस शख़्स को जो मेरे इरादे को पूरा करेगा, दूर के मुल्क से बुलाता हूँ, मैंने ही ~कहा और मैं ही इसको वजूद में लाऊँगा; मैंने इसका इरादा किया और मैं ही इसे पूरा करूँगा |
\v 6 मैं अपने लोगों पर ग़ज़बनाक हुआ, मैंने अपनी मीरास को नापाक किया और उनको तेरे हाथ में सौंप दिया; तूने उन पर रहम न किया, तूने बूढ़ों पर भी अपना भारी जूआ रख्खा।
\v 8 इसलिए अब ये बात सुन, ऐ तू जो 'इश्रत में ग़र्क है, जो बेपर्वा रहती है, जो अपने दिल में कहती है, कि"मैं हूँ, और मेरे 'अलावाह कोई नहीं; मैं बेवा की तरह न बैठूँगी, और न बेऔलाद होने की हालत से वाक़िफ़ हूँगी;"
\v 9 इसलिए अचानक एक ही दिन में ये दो मुसीबतें तुझ पर आ पड़ेंगी, या'नी तू बेऔलाद और बेवा हो जाएगी। तेरे जादू की इफ़रात और तेरे सहर की कसरत के बावजूद ये मुसीबतें पूरे तौर से तुझ पर आ पड़ेंगी।
\v 10 क्यूँकि तूने अपनी शरारत पर भरोसा किया, तूने कहा, "मुझे कोई नहीं देखता; "तेरी हिकमत और तेरी अक़्ल ने तुझे बहकाया, और तूने अपने दिल में कहा, "मैं ही हूँ। मेरे 'अलावाह और कोई नहीं।"
\v 11 इसलिए तुझ पर मुसीबत आ पड़ेगी जिसका मंतर तू नहीं जानती, और ऐसी बला तुझ पर नाज़िल होगी जिसको तू दूर न कर सकेगी; यकायक तबाही तुझ पर आएगी जिसकी तुझ को कुछ ख़बर नहीं।
\v 13 तू अपनी मश्वरतों की कसरत से थक गई, अब अफ़लाक-पैमा और मुनज्जिम और वह जो माह-ब-माह आइन्दा हालात दरियाफ़त करते हैं, उठें और जो कुछ तुझ पर आनेवाला है उससे तुझ को बचाएँ।
\v 15 जिनके लिए तूने मेहनत की, तेरे लिए ऐसे ही होंगे; जिनके साथ तूने अपनी जवानी ही से तिजारत की, उनमें से हर एक अपनी राह लेगा; तुझ को बचानेवाला कोई न रहेगा।
\s5
\c 48
\p
\v 1 ये बात सुनो ऐ या'क़ूब के घराने जो इस्राईल के नाम से कहलाते हो और यहूदाह के चश्मे से निकले हो, जो ख़ुदावन्द का नाम लेकर क़सम खाते हो, और इस्राईल के ख़ुदा का इक़रार करते हो, बल्कि अमानत और सदाक़त से नहीं।
\v 5 इसलिए मैंने पहले ही से ये बातें तुझे कह सुनाई, और उनके बयान" होने से पहले तुझ पर ज़ाहिर कर दिया; ता न हो कि तू कहे, 'मेरे बुत ने ये काम किया, और मेरे खोदे हुए सनम ने और मेरी ढाली हुई मूरत ने ये बातें फ़रमाईं।"
\v 14 "तुम सब जमा' होकर सुनो। उनमें~किसने इन बातों की ख़बर दी है? वह जिसे ख़ुदावन्द ने पसन्द किया है; उसकी ख़ुशी को बाबुल के मुताल्लिक 'अमल में लाएगा, और उसी का हाथ कसदियों की मुख़ालिफ़त में होगा।
\v 16 मेरे नज़दीक आओ और ये सुनो, मैंने शुरू' ही से पोशीदगी में कलाम नहीं किया, जिस वक़्त से कि वह था मैं वहीं था।” और अब ख़ुदावन्द ख़ुदा ने और उसकी रूह ने मुझ को भेजा है।
\v 17 ख़ुदावन्द तेरा फ़िदिया देनेवाला, इस्राईल का क़ुददूस , यूँ फ़रमाता है, कि"मैं ही ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा हूँ। जो तुझे मुफ़ीद ता'लीम देता हूँ और तुझे उस राह में जिसमें तुझे जाना है, ले चलता हूँ।
\v 20 तुम बाबुल से निकलो, कसदियों के बीच से भागो; नग़मे की आवाज़ से बयान करो इसे मशहूर करों हाँ इसकी ख़बर ज़मीन के ~किनारों तक पहुँचाओ; कहते जाओ, कि "ख़ुदावन्द ने अपने ख़ादिम या'क़ूब का फ़िदिया दिया।"
\v 4 तब मैंने कहा, "मैंने बेफ़ाइदा मशक्क़त उठाई मैंने अपनी क़ुव्वत बेफ़ाइदा बतालत में सर्फ़ की; तोभी यक़ीनन मेरा हक़ ख़ुदावन्द के साथ और मेरा 'अज्र मेरे ख़ुदा के पास है।"
\v 5 चूँकि मैं ख़ुदावन्द की नज़र में जलील-उल-क़द्र हूँ और वह मेरी तवानाई है, इसलिए वह जिसने मुझे रहम ही से बनाया, ताकि उसका ख़ादिम होकर या'क़ूब को उसके पास वापस लाऊँ और इस्राईल को उसके पास जमा' करूँ, यूँ फ़रमाता है।
\v 6 हाँ, ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि "ये तो हल्की सी बात है कि तू या'क़ूब के क़बाइल को खड़ा करने और महफ़ूज़ इस्राईलियों को वापस लाने के लिए मेरा ख़ादिम हो, बल्कि मैं तुझ को क़ौमों के लिए नूर बनाऊँगा कि तुझ से मेरी नजात ज़मीन के किनारों तक पहुँचे।"
\v 7 ख़ुदावन्द इस्राईल का फ़िदिया देने वाला और उसका क़ुददूस उसको जिसे इन्सान हक़ीर जानता है और जिससे क़ौम को नफ़रत है और जो हाकिमों का चाकर है, यूँ फ़रमाता है, कि 'बादशाह देखेंगे और उठ खड़े होंगे, और उमरा सिज्दा करेंगे; ख़ुदावन्द के लिए जो सादिक़-उल-क़ौल और इस्राईल का क़ुददूस है, जिसने तुझे बरगुज़ीदा किया है।"
\v 8 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"मैंने क़ुबूलियत के वक़्त तेरी सुनी, और नजात के दिन तेरी मदद की; और मैं तेरी हिफ़ाज़त करूँगा और लोगों के लिए तुझे एक 'अहद ठहराऊँगा, ताकि मुल्क को बहाल करे और वीरान मीरास वारिसों को दे;
\v 9 ताकि तू कै़दियों को कहे, कि 'निकल चलो,' और उनको जो अन्धेरे में हैं, कि 'अपने आपको दिखलाओ।" वह रास्तों में चरेंगे और सब नंगे टीले उनकी चरागाहें होंगे।
\v 10 वह न भूके होंगे न प्यासे, और न गर्मी और धूप से उनको ज़रर पहुँचेगा; क्यूँकि वह जिसकी रहमत उन पर है उनका रहनुमा होगा, और पानी के सोतों की तरफ़ उनकी रहबरी करेगा।
\v 13 ऐ आसमानो, गाओ; ऐ ज़मीन, ख़ुश हो; ऐ पहाड़ो, नग़मा परदाज़ी करो! क्यूँकि ख़ुदावन्द ने अपने लोगों को तसल्ली बख़्शी है और अपने रंजूरों पर रहम फ़रमाएगा।
\v 15 ~'क्या ये मुम्किन है कि कोई माँ अपने शीरख़्वार बच्चे को भूल जाए, और अपने रहम के फ़र्ज़न्द पर तरस न खाए? हाँ, वह शायद भूल जाए, पर मैं तुझे न भूलूँगा।
\v 18 अपनी आँखें उठा कर चारों तरफ़ नज़र कर, ये सब के सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और तेरे पास आते हैं। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, मुझे अपनी हयात की क़सम कि तू यक़ीनन इन सबको ज़ेवर की तरह पहन लेगी, और इनसे दुल्हन की तरह आरास्ता होगी।
\v 19 ~"क्यूँकि तेरी वीरान और उजड़ी जगहों में, और तेरे बर्बाद मुल्क में अब यक़ीनन बसनेवाले गुंजाइश से ज़्यादा होंगे, और तुझ को ग़ारत करनेवाले दूर हो जाएँगे।
\v 21 तब तू अपने दिल में कहेगी, 'कौन मेरे लिए इनका बाप हुआ? कि मैं तो बेऔलाद हो गई और अकेली थी, मैं तो जिलावतनी और आवारगी में रही, सो किसने इनको पाला? देख, मैं तो अकेली रह गई थी; फिर ये कहाँ थे?' "
\v 22 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है, कि "देख, मैं क़ौमों पर हाथ उठाऊँगा, और उम्मतों पर अपना झण्डा खड़ा करूँगा ; और वह तेरे बेटों को अपनी गोद में लिए आएँगे, और तेरी बेटियों को अपने कंधों पर बिठाकर पहुँचाएँगे।
\v 23 और बादशाह तेरे मुरब्बी होंगे और उनकी बीवियाँ तेरी दाया होंगी। वह तेरे सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरेंगे, और तेरे पाँव की खाक चाटेंगे; और तू जानेगी कि मैं ही ख़ुदावन्द हूँ, जिसके मुन्तज़िर शर्मिन्दा न होंगे।”
\v 25 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि 'ताक़तवर के ग़ुलाम भी ले लिए जाएँगे, और मुहीब का शिकार छुड़ा लिया जाएगा; क्यूँकि मैं उससे जो तेरे साथ झगड़ता है, झगड़ा करूँगा और तेरे बच्चों को बचा लूँगा।
\v 26 ~और मैं तुम पर ज़ुल्म करनेवालों को उन ही का गोश्त खिलाऊँगा, और वह मीठी शराब की तरह अपना ही ख़ून पीकर बदमस्त हो जाएँगे; और हर फ़र्द-ए-बशर जानेगा कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला, और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देनेवाला हूँ।
\s5
\c 50
\p
\v 1 ख़ुदावन्दयूँ फ़रमाता है कि तेरी माँ का तलाक़ नामा जिसे लिख कर मैंने उसे~छोड़ दिया कहाँ है? या अपने क़र्ज़ ख़्वाहों में से किसके हाथ मैंने तुम को बेचा? देखो, तुम अपनी शरारतों की वजह से बिक गए, और तुम्हारी ख़ताओं के ज़रिए' तुम्हारी माँ को तलाक़ दी गई।
\v 2 ~फ़िर किस लिए, जब मैं आया तो कोई आदमी न था? और जब मैंने पुकारा, तो कोई जवाब देनेवाला न हुआ? क्या मेरा हाथ ऐसा कोताह हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? और क्या मुझ में नजात देने की क़ुदरत नहीं? देखो, मैं अपनी एक धमकी से समन्दर को सुखा देता हूँ, और नहरों को सहरा कर डालता हूँ, उनमें की मछलियाँ पानी के न होने से बदबू हो जाती हैं और प्यास से मर जाती हैं।
\v 4 ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझ को शागिर्द की ज़बान बख़्शी, ताकि मैं जानूँ कि कलाम के वसीले से किस तरह थके माँदे की मदद करूँ । वह मुझे हर सुबह जगाता है, और मेरा कान लगाता है ताकि शागिदों की तरह सुनूँ।
\v 7 लेकिन ख़ुदावन्द ख़ुदा मेरी हिमायत करेगा, और इसलिए मैं शर्मिन्दा न हूँगा; और इसीलिए मैंने अपना मुँह संग-ए-ख़ारा की तरह बनाया और मुझे यक़ीन है कि मैं शर्मसार न हूँगा।
\v 10 ~तुम्हारे बीच कौन है जो ख़ुदावन्द से डरता और उसके ख़ादिम की बातें सुनता है? जो अन्धेरे में चलता और रोशनी नहीं पाता, वह ख़ुदावन्द ~के नाम पर तवक्कुल करे और अपने ख़ुदा पर भरोसा रख्खे।
\v 11 ~देखो, तुम सब जो आग सुलगाते हो और अपने आपको अँगारों से घेर लेते हो, अपनी ही आग के शोलों में और अपने सुलगाए हुए अंगारों में चलो। तुम मेरे हाथ से यही पाओगे, तुम 'अज़ाब में लेट रहोगे।
\s5
\c 51
\p
\v 1 "ऐ लोगो, जो सदाक़त की पैरवी करते हो और ख़ुदावन्द के जोयान हो, मेरी सुनो। उस चटटान पर जिसमें से तुम काटे गए हो और उस गढ़े के सूराख़ पर जहाँ से तुम खोदे गए हो, नज़र करो।
\v 3 यक़ीनन ख़ुदावन्द सिय्यून को तसल्ली देगा, वह उसके तमाम वीरानों की दिलदारी करेगा, वह उसका वीराना 'अदन की तरह और उसका सहरा ख़ुदावन्द के बाग़ की तरह बनाएगा; ख़ुशी और शादमानी उसमें पाई जाएगी, शुक्रगुज़ारी और गाने की आवाज़ उसमें होगी।
\v 4 "मेरी तरफ़ मुत्वज्जिह हो, ऐ मेरे लोगो; मेरी तरफ़ कान लगा, ऐ मेरी उम्मत: क्यूँकि शरी'अत मुझ से सादिर होगी और मैं अपने 'अद्ल को लोगों की रोशनी के लिए क़ायम करूँगा ।
\v 5 मेरी सदाक़त नज़दीक है, मेरी नजात ज़ाहिर है, और मेरे बाज़ू लोगों पर हुक्मरानी करेंगे, जज़ीरे मेरा इन्तिज़ार करेंगे और मेरे बाज़ू पर उनका तवक्कुल होगा।
\v 6 अपनी आँखें आसमान की तरफ़ उठाओ और नीचे ज़मीन पर निगाह करो; क्यूँकि आसमान धुँवें ~की तरह ग़ायब हो जायेंगे और ज़मीन कपड़े की तरह पुरानी हो जाएगी, और उसके बाशिन्दे मच्छरों की तरह मर जाएँगे; लेकिन मेरी नजात हमेशा तक रहेगी, और मेरी सदाक़त ख़त्म न होगी।
\v 9 जाग, जाग, ऐ ख़ुदावन्द के बाज़ू तवानाई से मुलब्बस हो; जाग जैसा पुराने ज़माने में और गुज़िश्ता नस्लों में क्या तू वही नहीं जिसने रहब' को टुकड़े-टुकड़े किया और अज़दहे को छेदा?
\v 10 क्या तू वही नहीं जिसने समन्दर या'नी बहर-ए-'अमीक़ के पानी को सुखा डाला; जिसने बहर की तह को रास्ता बना डाला, ताकि जिनका फ़िदिया दिया गया उसे उबूर करें?
\v 11 फ़िर वह जिनको ख़ुदावन्द ने मख़लसी बख़्शी लौटेंगे और गाते हुए सिय्यून में आएँगे, और हमेशा सुरूर उनके सिरों पर होगा; वह ख़ुशी और शादमानी हासिल करेंगे और ग़म-ओ-अन्दोह काफ़ूर हो जाएँगे।
\v 13 और ख़ुदावन्द अपने ख़ालिक़ को भूल गया है, जिसने आसमान को ताना और ज़मीन की बुनियाद डाली; और तू हर वक़्त ज़ालिम के जोश-ओ-ख़रोश से कि जैसे वह हलाक करने को तैयार है, डरता है? पर ज़ालिम का जोश-ओ-ख़रोश कहाँ है?
\v 16 और मैंने अपना कलाम तेरे मुँह में डाला, और तुझे अपने हाथ के साये तले छिपा रख्खा ताकि अफ़लाक को खड़ा करूँ” और ज़मीन की बुनियाद डालूँ, और अहल-ए-सिय्यून से कहूँ, 'तुम मेरे लोग हो।'
\v 22 तेरा"ख़ुदावन्द यहोवाह हाँ तेरा ख़ुदा जो ~अपने लोगों की वकालत करता है यूँ फ़रमाता है कि देख, मैं डगमगाने का प्याला और अपने क़हर का जाम तेरे हाथ से ले लूँगा; तू उसे फिर कभी न पिएगी।
\v 23 और मैं उसे उनके हाथ में दूँगा जो तुझे दुख देते, और जो तुझ से कहते थे, 'झुक जा ताकि हम तेरे ऊपर से गुज़रें', और तूने अपनी पीठ को जैसे ज़मीन, बल्कि गुज़रने वालों के लिए सड़क बना दिया।"
\s5
\c 52
\p
\v 1 जाग जाग ऐ सिय्यून, अपनी शौकत से मुलब्बस हो; ऐ यरुशलीम पाक शहर, अपना ख़ुशनुमा लिबास पहन ले; क्यूँकि आगे को कोई नामख़्तून या नापाक तुझ में कभी दाख़िल न होगा।
\v 5 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"अब मेरा यहाँ क्या काम, हालाँकि मेरे लोग मुफ़्त ग़ुलामी में गए हैं? वह जो उन पर मुसल्लत हैं लल्कारतें हैं ख़ुदावन्द फ़रमाता हैं और हर रोज़ मुतवातिर मेरे नाम की तकफ़ीर की जाती है।
\v 7 उसके पाँव पहाड़ों पर क्या ही ख़ुशनुमा हैं जो ख़ुशख़बरी लाता है और सलामती का 'ऐलान करता है और खैरियत की ख़बर और नजात का इश्तिहार देता है जो सिय्यून से कहता है तेरा ख़ुदा सल्तनत करता है |
\v 8 अपने निगहबानों की आवाज़ सुन, वह अपनी आवाज़ बलन्द करते हैं, वह आवाज़ मिलाकर गाते हैं; क्यूँकि जब ख़ुदावन्द सिय्यून को वापस आएगा तो वह उसे रू-ब-रू देखेंगे।
\v 15 उसी तरह वह बहुत सी क़ौमों को पाक करेगा और बादशाह उसके सामने ख़ामोश होंगे; क्यूँकि जो कुछ उनसे कहा न गया था, वह देखेंगे; और जो कुछ उन्होंने सुना न था, वह समझेंगे।
\s5
\c 53
\p
\v 1 हमारे पैग़ाम पर कौन ईमान लाया? और ख़दावन्द का बाज़ू किस पर ज़ाहिर हुआ?
\v 2 लेकिन वह उसके आगे कोंपल की तरह, और ख़ुश्क ज़मीन से जड़ की तरह फूट निकला है; न उसकी कोई शक्ल और सूरत है, न ख़ूबसूरती; और जब हम उस पर निगाह करें, तो कुछ हुस्न-ओ-जमाल नहीं कि हम उसके मुश्ताक़ हों।
\v 5 हालाँकी वह हमारी ख़ताओं की वजह से घायल किया गया, और हमारी बदकिरदारी के ज़रिए' कुचला गया। हमारी ही सलामती के लिए उस पर सियासत हुई, ताकि उसके मार खाने से हम शिफ़ा पाएँ।
\v 7 वह सताया गया, तोभी उसने बर्दाश्त की और मुँह न खोला; जिस तरह बर्रा जिसे ज़बह करने को ले जाते हैं, और जिस तरह भेड़ अपने बाल कतरनेवालों के सामने बेज़बान है, उसी तरह वह ख़ामोश रहा।
\v 8 वह ज़ुल्म करके और फ़तवा लगाकर उसे ले गए; फ़िर उसके ज़माने के लोगों में से किसने ख़याल किया कि वह ज़िन्दों की ज़मीन से काट डाला गया? मेरे लोगों की ख़ताओं की वजह से उस पर मार पड़ी।
\v 9 उसकी क़ब्र भी शरीरों के बीच ठहराई गई, और वह अपनी मौत में दौलतमन्दों के साथ हुआ; हालाँकि उसने किसी तरह का ज़ुल्म न किया, और उसके मुँह में हरगिज़ छल न था।
\v 10 लेकिन ख़ुदावन्द को पसन्द आया कि उसे कुचले, उसने उसे ग़मगीन किया; जब उसकी जान गुनाह की क़ुर्बानी के लिए पेश की जाएगी, तो वह अपनी नस्ल को देखेगा; उसकी 'उम्र दराज़ होगी और ख़ुदावन्द की मर्ज़ी उसके हाथ के वसीले से पूरी होगी।
\v 11 अपनी जान ही का दुख उठाकर वह उसे देखेगा और सेर होगा; अपने ही इरफ़ान से मेरा सादिक़ ख़ादिम बहुतों को रास्तबाज़ ठहराएगा, क्यूँकि वह उनकी बदकिरदारी खुद उठा लेगा।
\v 12 इसलिए मैं उसे बुज़ुर्गों के साथ हिस्सा दूँगा, और वह लूट का माल ताक़तवरों के साथ बाँट लेगा; क्यूँकि उसने अपनी जान मौत के लिए उडेल दी, और वह ख़ताकारों के साथ शुमार किया गया, तोभी उसने बहुतों के गुनाह उठा लिए और ख़ताकारों की शफ़ा'अत की।
\s5
\c 54
\p
\v 1 ऐ बाँझ, तू जो बे-औलाद थी नग़मा सराई ~कर, तू जिसने विलादत का दर्द बर्दाश्त नहीं किया, ख़ुशी से गा और ज़ोर से चिल्ला," क्यूँकि ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि बे कस छोड़ी हुई औलाद शौहर वाली की औलाद से ज़्यादा है।
\v 4 ख़ौफ़ न कर, क्यूँकि तू फिर पशेमाँ न होगी; तू न घबरा, क्यूँकि तू फिर रूस्वा न होगी; और अपनी जवानी का नंग भूल जाएगी, और अपनी बेवगी की 'आर को फिर याद न करेगी।
\v 8 ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला फ़रमाता है, कि क़हर की शिद्दत में मैंने एक दम के लिए तुझ से मुँह छिपाया, लेकिन अब मैं हमेशा शफ़क़त से तुझ पर रहम करूँगा ।
\v 9 क्यूँकि मेरे लिए ये तूफ़ान-ए-नूह का सा मु'आमिला है, कि जिस तरह मैंने क़सम खाई थी कि फिर ज़मीन पर नूह जैसा तूफ़ान कभी न आएगा, उसी तरह अब मैंने क़सम खाई है कि मैं तुझ से फिर कभी आज़ुर्दा न हूँगा और तुझ को न घुड़कूँगा।"
\v 10 ख़ुदावन्द तुझ पर रहम करने वाला यूँ फ़रमाता है कि पहाड़ तो जाते रहें और टीले टल जाएँ लेकिन मेरी शफ़क़त कभी तुझ पर से जाती न रहेगी, और मेरा सुलह का 'अहद न टलेगा।
\v 17 ~ कोई हथियार जो तेरे ख़िलाफ़ बनाया जाए काम न आएगा, और जो ज़बान 'अदालत में तुझ पर चलेगी तू उसे मुजरिम ठहराएगी। ख़ुदावन्द फ़रमाता है, ये मेरे बन्दों की मीरास है और उनकी रास्तबाज़ी मुझ से है।"
\s5
\c 55
\p
\v 1 ऐ सब प्यासो, पानी के पास आओ, और वह भी जिसके पास पैसा न हो, आओ, मोल लो, और खाओ, हाँ आओ! शराब और दूध बेज़र और बेक़ीमत ख़रीदो।
\v 2 तुम किस लिए अपना रुपया उस चीज़ के लिए जो रोटी नहीं, और अपनी मेहनत उस चीज़ के वास्ते जो आसूदा नहीं करती, ख़र्च करते हो? तुम ग़ौर से मेरी सुनो, और वह चीज़ जो अच्छी है खाओ; और तुम्हारी जान फ़रबही से लज़्ज़त उठाए।
\v 5 देख, तू एक ऐसी क़ौम को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और एक ऐसी क़ौम जो तुझे नहीं जानती थी, ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस की ख़ातिर तेरे पास दौड़ी आएगी; क्यूँकि उसने तुझे जलाल बख्शा है।
\v 7 शरीर अपनी राह को तर्क करे और बदकिरदार अपने ख़यालों को, और वह ख़ुदावन्द की तरफ़ फिरे और वह उस पर रहम करेगा; और हमारे ख़ुदा की तरफ़ क्यूँकि वह कसरत से मु'आफ़ करेगा।
\v 10 "क्यूँकि जिस तरह आसमान से बारिश होती और बर्फ़ पड़ती है, और फिर वह वहाँ वापस नहीं जाती बल्कि ज़मीन को सेराब करती है, और उसकी शादाबी और रोईदगी ~का ज़रि'आ होती है ताकि बोनेवाले को बीज और खाने वाले को रोटी दे;
\v 11 उसी तरह मेरा कलाम जो मेरे मुँह से निकलता है होगा, वह बेअन्जाम मेरे पास वापस न आएगा, बल्कि जो कुछ मेरी ख़्वाहिश होगी वह उसे पूरा करेगा और उस काम में जिसके लिए मैंने उसे भेजा मो'अस्सिर होगा।
\v 2 मुबारक है वह इन्सान, जो इस पर 'अमल करता है और वह आदमज़ाद जो इस पर क़ायम रहता है, जो सबत को मानता और उसे नापाक नहीं करता, और अपना हाथ हर तरह की बुराई से बाज़ रखता है।"
\v 3 और बेगाने का फ़र्ज़न्द जो ख़ुदावन्द से मिल गया हरगिज़ न कहे, "ख़ुदावन्द मुझ को अपने लोगों से जुदा कर देगा;" और ख़ोजा न कहे, कि "देखो, मैं तो सूखा दरख़्त हूँ।”
\v 5 मैं उनको अपने घर में और अपनी चार दीवारी के अन्दर, ऐसा नाम-ओ-निशान बख़्शूँगा जो बेटों और बेटियों से भी बढ़ कर होगा; मैं हर एक को एक अबदी नाम दूँगा जो मिटाया न जाएगा।
\v 6 'और बेगाने की औलाद भी जिन्होंने अपने आपको ख़ुदावन्द से पैवस्ता किया है कि उसकी ख़िदमत करें, और ख़ुदावन्द के नाम को 'अज़ीज़ रख्खें और उसके बन्दे हों, वह सब जो सबत को हिफ़्ज़ करके उसे नापाक न करें और मेरे 'अहद पर क़ायम रहें;
\v 7 मैं उनको भी अपने पाक पहाड़ पर लाऊँगा और अपनी 'इबादतगाह में उनको शादमान करूँगा और उनकी सोख़्तनी क़ुर्बानियाँ और उनके ज़बीहे मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे; क्यूँकि मेरा घर सब लोगों की 'इबादतगाह कहलाएगा।”
\v 8 ख़ुदावन्द ख़ुदा, जो इस्राईल के तितर-बितर लोगों को जमा' करनेवाला है, यूँ फ़रमाता है, कि "मैं उनके सिवा जो उसी के होकर जमा' हुए हैं, औरों को भी उसके पास जमा' करूँगा ।"
\v 10 उसके निगहबान अन्धे हैं, वह सब जाहिल हैं, वह सब गूँगे कुत्ते हैं जो भौंक नहीं सकते, वह ख़्वाब देखनेवाले हैं जो पड़े रहते हैं और ऊँघते रहना पसन्द करते हैं।
\v 12 हर एक कहता है, "तुम आओ, मैं शराब लाऊँगा, और हम ख़ूब नशे में चूर होंगे; और कल भी आज ही की तरह होगा बल्कि इससे बहुत बेहतर।"
\s5
\c 57
\p
\v 1 सादिक़ हलाक होता है, और कोई इस बात को ख़ातिर में नहीं लाता; और नेक लोग उठा लिए जाते हैं और कोई नहीं सोचता कि सादिक़ उठा लिया गया ताकि आनेवाली आफ़त से बचे;
\v 6 वादी के चिकने पत्थर तेरा हिस्सा हैं, वही तेरा हिस्सा हैं"; हाँ, तूने उनके लिए तपावन दिया और हदिया पेश किया है; क्या मुझे इन कामों से तिस्कीन होगी?
\v 8 और तूने दरवाज़ों और चौखटों के पीछे अपनी यादगार की 'अलामतें नस्ब कीं, और तू मेरे सिवा दूसरे के आगे बेपर्दा हुई; हाँ, तू चढ़ गई और तूने अपना बिछौना भी बड़ा बनाया और उनके साथ 'अहद कर लिया है; तूने उनके बिस्तर को जहाँ देखा पसन्द किया।
\v 11 तब तू किससे डरी और किसके ख़ौफ़ से तूने झूट बोला, और मुझे याद न किया और ख़ातिर में न लाई? क्या मैं एक मुद्दत से ख़ामोश नहीं रहा? तोभी तू मुझ से न डरी।
\v 13 जब तू फ़रियाद करे, तो जिनको तूने जमा' किया है वह तुझे छुड़ाएँ; ये हवा उन~सबको उड़ा ले जाएगी, एक झोंका उनको ले जाएगा; लेकिन मुझ पर तवक्कुल करनेवाला ज़मीन का मालिक होगा और मेरे पाक पहाड़ का वारिस होगा।
\v 15 क्यूँकि वह जो 'आली और बलन्द है और हमेशा से हमेशा ~तक क़ायम है, जिसका नाम क़ुददूस है, यूँ फ़रमाता है, "मैं बलन्द और मुक़द्दस मक़ाम में रहता हूँ, और उसके साथ भी जो शिकस्ता दिल और फ़रोतन है; ताकि फ़रोतनों की रूह को ज़िन्दा करूँ और शिकस्ता दिलों को हयात बख़्शूँ।
\v 17 कि मैं उसके लालच के गुनाह से ग़ज़बनाक हुआ, इसलिए मैंने उसे मारा, मैंने अपने आपको छिपाया और ग़ज़बनाक हुआ; इसलिए कि वह उस राह पर जो उसके दिल ने निकाली, भटक गया था।
\v 2 वह रोज़-ब-रोज़ मेरे तालिब हैं और उस क़ौम की तरह जिसने सदाक़त के काम किए और अपने ख़ुदा के अहकाम को तर्क न किया, मेरी राहों को दरियाफ़्त करना चाहते हैं; वह मुझ से सदाक़त के अहकाम तलब करते हैं, वह ख़ुदा की नज़दीकी चाहते हैं।
\v 3 वह कहते है, 'हम ने किस लिए रोज़े रख्खे, जब कि तू नज़र नहीं करता; और हम ने क्यूँ अपनी जान को दुख दिया, जब कि तू ख़याल में नहीं लाता?" देखो, तुम अपने रोज़े के दिन में अपनी ख़ुशी के तालिब रहते हो, और सब तरह की सख़्त मेहनत लोगों से कराते हो।
\v 4 देखो, तुम इस मक़सद से रोज़ा रखते हो कि झगड़ा-रगड़ा करो, और शरारत के मुक्के मारो; फ़िर अब तुम इस तरह का रोज़ा नहीं रखते हो कि तुम्हारी आवाज़ 'आलम-ए-बाला पर सुनी जाए।
\v 5 क्या ये वह रोज़ा है जो मुझ को पसन्द है? ऐसा दिन कि उसमें आदमी अपनी जान को दुख दे और अपने सिर को झाऊ की तरह झुकाए, और अपने नीचे टाट और राख बिछाए; क्या तू इसको रोज़ा और ऐसा दिन कहेगा जो ख़ुदावन्द का मक़बूल हो ?
\v 6 "क्या वह रोज़ा जो मैं चाहता हूँ ये नहीं कि ज़ुल्म की ज़ंजीरें तोड़ें और जूए के बन्धन खोलें, और मज़लूमों को आज़ाद करें बल्कि हर एक जूए को तोड़ डालें?
\v 7 क्या ये नहीं कि तू अपनी रोटी भूकों को खिलाए, और ग़रीबों को जो आवारा हैं अपने घर में लाए; और जब किसी को नंगा देखे तो उसे पहिनाए, और तू अपने हमजिन्स से रूपोशी न करे?
\v 9 तब तू पुकारेगा और ख़ुदावन्द जवाब देगा, तू चिल्लाएगा और वह फ़रमाएगा, 'मैं यहाँ हूँ"। अगर तू उस जूए को और उंगलियों से इशारा करने की, और हरज़ागोई को अपने बीच से दूर करेगा,
\v 11 और ख़ुदावन्द हमेशा तेरी रहनुमाई करेगा, और ख़ुश्क साली में तुझे सेर करेगा और तेरी हड्डियों को कु़व्वत बख़्शेगा; तब तू सेराब बाग़ की तरह होगा और उस चश्मे की तरह जिसका पानी कम न हो |
\v 12 और तेरे लोग पुराने वीरान मकानों को ता'मीर करेंगे, और तू पुश्त-दर-पुश्त की बुनियादों को खड़ा करेगा, और तू रख़ने का~बन्द करनेवाला और आबादी के लिए राह का दुरुस्त करने वाला कहलाएगा।
\v 13 "अगर तू सबत के रोज़ अपना पाँव रोक रख्खे, और मेरे मुक़द्दस दिन में अपनी ख़ुशी का तालिब न हो, और सबत को राहत और ख़ुदावन्द का मुक़द्दस और मु'अज़्ज़म कहे और उसकी ता'ज़ीम करे, अपना कारोबार न करे, और अपनी ख़ुशी और बेफ़ाइदा बातों से दस्तबरदार रहे;
\v 14 तब तू ख़ुदावन्द में मसरूर होगा और मैं तुझे दुनिया की बलन्दियों पर ले चलूँगा, और मैं तुझे तेरे बाप या'क़ूब की मीरास से खिलाऊँगा; क्यूँकि ख़ुदावन्द ही के मुँह से ये इरशाद हुआ है।”
\s5
\c 59
\p
\v 1 देखो ख़ुदावन्द का हाथ छोटा नहीं हो गया कि बचा न सके, और उसका कान भारी नहीं कि सुन न सके;
\v 2 ~बल्कि तुम्हारी बदकिरदारी ने तुम्हारे और तुम्हारे ख़ुदा के बीच जुदाई कर दी है, और तुम्हारे गुनाहों ने उसे तुम से छिपा लिया , ऐसा कि वह नहीं सुनता।
\v 4 कोई इन्साफ़ की बातें पेश नहीं करता और कोई सच्चाई से हुज्जत नहीं करता, वह झूट पर भरोसा करते हैं और झूट बोलते हैं वह ज़ियानकारी से बारदार होकर बदकिरदारी को जन्म देते हैं ।
\v 7 उनके पाँव बुराई की तरफ़ दौड़ते हैं, और वह बेगुनाह का ख़ून बहाने के लिए जल्दी करते हैं; उनके ख़यालात बदकिरदारी के हैं, तबाही और हलाकत उनकी राहों में है।
\v 9 इसलिए इन्साफ़ हम से दूर है, और सदाक़त हमारे नज़दीक नहीं आती; हम नूर का ~इन्तिज़ार करते हैं, लेकिन देखो तारीकी है; और रोशनी का, लेकिन अन्धेरे में चलते हैं।
\v 10 हम दीवार को अन्धे की तरह टटोलते हैं, हाँ, यूँ टटोलते हैं कि जैसे हमारी ऑखें नहीं; हम दोपहर को यूँ ठोकर खाते हैं जैसे रात हो गई, हम तन्दरुस्तों के बीच जैसे मुर्दा हैं।
\v 11 हम सब के सब रीछों की तरह गु़र्राते हैं और कबूतरों की तरह कुढ़ते हैं, हम इन्साफ़ की राह तकते हैं, लेकिन वह कहीं नहीं; और नजात के मुन्तज़िर हैं, लेकिन वह हम से दूर है।
\v 12 क्यूँकि हमारी खताएँ तेरे सामने बहुत हैं और हमारे गुनाह हम पर गवाही देते हैं, क्यूँकि हमारी ख़ताएँ हमारे साथ हैं और हम अपनी बदकिरदारी को जानते हैं;
\v 13 कि हम ने ख़ता की, ख़ुदावन्द का इन्कार किया, और अपने ख़ुदा की पैरवी से बरगश्ता हो गए; हम ने ज़ुल्म और सरकशी की बातें कीं, और दिल में झूठ तसव्वुर करके दरोग़ोई की।
\v 16 और उसने देखा कि कोई आदमी नहीं, और ता'अज्जुब किया कि कोई शफ़ा'अत करने वाला नहीं; इसलिए उसी के बाज़ू ने उसके लिए नजात हासिल की और उसी की रास्तबाज़ी ने उसे सम्भाला।
\v 17 हाँ, उसने रास्तबाज़ी का बक्तर पहना और नजात का खूद अपने सिर पर रख्खा, और उसने लिबास की जगह इन्तक़ाम की पोशाक पहनी और गै़रत के जुब्बे से मुलब्बस हुआ।
\v 19 तब पश्चिम के बाशिन्दे ख़ुदावन्द के नाम से डरेंगे, और पूरब के बाशिन्दे उसके जलाल से; क्यूँकि वह दरिया के सैलाब की तरह आएगा जो ख़ुदावन्द के दम से रवाँ हो।
\v 21 क्यूँकि उनके साथ मेरा 'अहद ये है," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, कि"मेरी रूह जो तुझ पर है और मेरी बातें जो मैंने तेरे मुँह में डाली हैं,तेरे मुँह से और तेरी नस्ल के मुँह से, और तेरी नस्ल की नस्ल के मुँह से अब से लेकर हमेशा तक जाती न रहेंगी;" ख़ुदावन्द का यही इरशाद है।
\s5
\c 60
\p
\v 1 उठ मुनव्वर हो क्यूँकि तेरा नूर आगया और ख़ुदावन्द का जलाल तुझ पर ज़ाहिर हुआ।
\v 5 तब तू देखेगी और मुनव्वर होगी; हाँ, तेरा दिल उछलेगा और कुशादा होगा क्यूँकि समन्दर की फ़िरावानी तेरी तरफ फिरेगी और क़ौमों की दौलत तेरे पास फ़राहम होगी।
\v 6 ऊँटों की कतारें और मिदयान और 'ऐफ़ा की सांडनियाँ आकर तेरे गिर्द बेशुमार होंगी; वह सब सबा से आएँगे,और सोना और लुबान लायेंगे और ख़ुदावन्द की हम्द का 'ऐलान करेंगे।
\v 7 क़ीदार की सब भेड़ें तेरे पास जमा' होंगी, नबायोत के मेंढे तेरी ख़िदमत में हाज़िर होंगे; वह मेरे मज़बह पर मक़बूल होंगे और मैं अपनी शौकत के घर को जलाल बख़्शूँगा।
\v 9 यक़ीनन जज़ीरे मेरी राह देखेंगे,और तरसीस के जहाज़ पहले आएँगे कि तेरे बेटों को उनकी चाँदी और उनके सोने के साथ दूर से ख़ुदावन्द तेरे ख़ुदा और इस्राईल के क़ुददूस के नाम के लिए लाएँ; क्यूँकि उसने तुझे बुज़ुर्गी बख़्शी है।
\v 10 और बेगानों के बेटे तेरी दीवारें बनाएँगे और उनके बादशाह तेरी ख़िदमत गुज़ारी करेंगे अगरचे मैंने अपने क़हर से तुझे मारा पर अपनी महरबानी से मैं तुझ पर रहम करूँगा ।
\v 14 और तेरे ग़ारत गरों के बेटे तेरे सामने झुकते हुए आयेंगे और तेरी तह्क़ीर करने वाले सब तेरे कदमों पर गिरेंगे; और वह तेरा नाम ख़ुदावन्द का शहर, इस्राईल के क़ुददूस का सिय्यून रखेंगे।
\v 15 इसलिए कि तू तर्क की गई और तुझसे नफ़रत हुई ऐसा कि~किसी आदमी ने~तेरी तरफ़ गुज़र भी न किया मैं तुझे हमेशा की ~फ़ज़ीलत और नसल दर नसल की ख़ुशी का ज़रिया' बनाऊंगा|
\v 16 तू क़ौमों का दूध भी पी लेगी;हाँ बादशाहों की छाती चूसेगी और तू जानेगी कि मैं ख़ुदावन्द तेरा नजात देनेवाला और या'क़ूब का क़ादिर तेरा फ़िदिया देने वाला हूँ।
\v 17 मैं पीतल के बदले सोना लाऊँगा,और लोहे के बदले चाँदी और लकड़ी के बदले पीतल और पत्थरों के बदले लोहा; और मैं तेरे हाकिमों को सलामती, और तेरे 'आमिलों को सदाक़त बनाऊँगा
\v 18 फिर कभी तेरे मुल्क में ज़ुल्म का ज़िक्र न होगा, और न तेरी हदों के अन्दर ख़राबी या बर्बादी का; बल्कि तू अपनी दीवारों का नाम नजात और अपने फाटकों का हम्द रख्खेगी।
\v 21 और तेरे लोग सब के सब रास्तबाज़ होंगे; वह हमेशा तक मुल्क के वारिस होंगे, या'नी मेरी लगाई हुई शाख़ और मेरी दस्तकारी ठहरेंगे ताकि मेरा जलाल ज़ाहिर हो।
\v 22 ~सबसे छोटा एक हज़ार हो जाएगा और सबसे हक़ीर एक ज़बरदस्त क़ौम। मैं ख़ुदावन्द ठीक वक़्त पर ये सब कुछ जल्द करूँगा ।
\s5
\c 61
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ख़ुदा की रूह मुझ पर है क्यूँकि उसने मुझे मसह किया ताकि हलीमों को ख़ुशख़बरी सुनाऊँ; उसने मुझे भेजा है कि शिकस्ता दिलों को तसल्ली दूँ, ़कैदियों के लिए रिहाई और ग़ुलामों के लिए आज़ादी का 'ऐलान करूँ,
\v 3 सिय्यून के ग़मज़दों के लिए ये मुक़र्रर कर दूँ कि उनको राख के बदले सेहरा और मातम की जगह ख़ुशी का रौग़न, और उदासी के बदले 'इबादत का ख़िल'अत बख़्शूं, ताकि वह सदाक़त के दरख़्त और ख़ुदावन्द के लगाए हुए कहलाएँ कि उसका जलाल ज़ाहिर हो।
\v 4 तब वह पुराने उजाड़ मकानों को ता'मीर करेंगे और पुरानी वीरानियों को फिर बिना करेंगे, और उन उजड़े शहरों की मरम्मत करेंगे जो नसल -दर-नसल उजाड़ पड़े थे।
\v 7 तुम्हारी शर्मिन्दगी का बदले दो चन्द मिलेगा, वह अपनी रुस्वाई के बदले अपने हिस्से से ख़ुश होंगे; तब वह अपने मुल्क में दो चन्द के मालिक होंगे और उनको हमेशा की ~ख़ुशी होगी।
\v 8 क्यूँकि मैं ख़ुदावन्द इन्साफ़ को 'अज़ीज़ रखता हूँ और ग़ारतगरी और ज़ुल्म से नफ़रत करता हूँ; सो मैं सच्चाई से उनके कामों का अज्र दूँगा और उनके साथ हमेशा का 'अहद बाँधुंगा।
\v 9 उनकी नस्ल क़ौमों के बीच नामवर होगी, और उनकी औलाद लोगों के बीच ; वह सब जो उनको देखेंगे, इक़रार करेंगे कि ये वह नस्ल है जिसे ख़ुदावन्द ने बरकत बख़्शी है।
\v 10 मैं ख़ुदावन्द से बहुत खुश हूँगा, मेरी जान मेरे ख़ुदा में मसरूर होगी, क्यूँकि उसने मुझे नजात के कपड़े पहनाए, उसने रास्तबाज़ी के ख़िल'अत से मुझे मुलब्बस किया जैसे दूल्हा सेहरे से अपने आपको आरास्ता करता है और दुल्हन अपने ज़ेवरों से अपना सिंगार करती है।
\v 11 ~क्यूँकि जिस तरह ज़मीन अपने नबातात को पैदा करती है, और जिस तरह बाग़ उन चीज़ों को जो उसमें बोई गई हैं उगाता है; उसी तरह ख़ुदावन्द ख़ुदा सदाक़त और 'इबादत को तमाम क़ौमों के सामने ज़हूर में लाएगा।
\s5
\c 62
\p
\v 1 सिय्यून की ख़ातिर मैं चुप न रहूँगा और यरुशलीम की ख़ातिर मैं दम न लूँगा, जब तक कि उसकी सदाक़त नूर की तरह न चमके और उसकी नजात रोशन चराग़ की तरह जलवागर न हो।
\v 4 तू आगे को मतरूका न कहलाएगी, और तेरे मुल्क का नाम फिर कभी ख़राब न होगाः बल्कि तू प्यारी' और तेरी सरज़मीन सुहागन कहलाएगी; क्यूँकि ख़ुदावन्द तुझ से ख़ुश है, और तेरी ज़मीन ख़ाविन्द वाली होगी।
\v 5 क्यूँकि जिस तरह जवान मर्द कुँवारी 'औरत को ब्याह लाता है, उसी तरह तेरे बेटे तुझे ब्याह लेंगे; और जिस तरह दुल्हा दुल्हन में राहत पाता है, उसी तरह तेरा ख़ुदा तुझ में मसरूर होगा।
\v 8 ख़ुदावन्द ने अपने दहने हाथ और अपने क़वी बाज़ू की क़सम खाई है, कि"यक़ीनन मैं आगे को तेरा ग़ल्ला तेरे दुश्मनों के खाने को न दूँगा; और बेगानों के बेटे तेरी मय, जिसके लिए तूने मेहनत की, नहीं पीएँगे;
\v 9 बल्कि वही जिन्होंने फ़स्ल जमा' की है, उसमें से खाएँगे और ख़ुदावन्द की हम्द करेंगे, और वह जो ज़ख़ीरे में लाए हैं उसे मेरे मक़दिस की बारगाहों में पीएँगे।
\v 10 गुज़र जाओ, फाटकों में से गुज़र जाओ, लोगों के लिए राह दुरुस्त करो, और शाहराह ऊँची और बलन्द करो, पत्थर चुनकर साफ़ कर दो, लोगों के लिए झण्डा खड़ा करो।
\v 11 देख, ख़ुदावन्द ने इन्तिहा-ए-ज़मीन तक ऐलान कर दिया है, दुख़्तर-ए-सिय्यून से कहो, "देख, तेरा नजात देनेवाला आता है; देख, उसका बदला उसके साथ और उसका काम उसके सामने है।"
\v 12 ~~और वह पाक लोग और ख़ुदावन्द के ख़रीदे हुए कहलाएँगे, और तू मत्लूबा या'नी ग़ैर -मतरूक शहर कहलाएगी।
\s5
\c 63
\p
\v 1 ये कौन है जो अदोम से और सुर्ख़ लिबास पहने बुसराह से आता है? ये जिसका लिबास दरखशां है और अपनी तवानाई की बुज़ुर्गी से ख़रामान है ये मैं हूँ, जो सादिक़-उल-क़ौल और नजात देने पर क़ादिर हूँ।”
\v 3 "मैंने तन-ए-तन्हा अंगूर हौज़ में रौंदें और लोगों में से मेरे साथ कोई न था; हाँ, मैंने उनको अपने क़हर में लताड़ा, और अपने जोश में उनको रौंदा; और उनका ख़ून मेरे लिबास पर छिड़का गया, और मैंने अपने सब कपड़ों को आलूदा किया।
\v 7 मैं ख़ुदावन्द की शफ़क़त का ज़िक्र करूँगा , ख़ुदावन्द ही की 'इबादत का, उस सबके मुताबिक़ जो ख़ुदावन्द ने हम को इनायत किया है; और उस बड़ी मेहरबानी का जो उसने इस्राईल के घराने पर अपनी ख़ास रहमत और फ़िरावान शफ़क़त के मुताबिक़ ज़ाहिर की है।
\v 9 उनकी तमाम मुसीबतों में वह मुसीबतज़दा हुआ और उसके सामने के फ़रिश्ते ने उनको बचाया, उसने अपनी उलफ़त और रहमत से उनका फ़िदिया दिया; उसने उनको उठाया और पहले से हमेशा उनको लिए फिरा।
\v 11 फिर उसने अगले दिनों को और मूसा को और अपने लोगों को याद किया, और फ़रमाया, वह कहाँ है, जो उनको अपने गल्ले के चौपानों के साथ समन्दर में से निकाल लाया ? वह कहाँ है, जिसने अपनी रूह-ए-क़ुददूस उनके अन्दर डाली?
\v 14 जिस तरह मवेशी वादी में चले जाते हैं, उसी तरह ख़ुदावन्द की रूह उनको आरामगाह में लाई; और उसी तरह तूने अपनी क़ौम को हिदायत की, ताकि तू अपने लिए जलील नाम पैदा करे।
\v 15 आसमान पर से निगाह कर, और अपने पाक और जलील घर से देख। तेरी गै़रत और तेरी क़ुदरत के काम कहाँ हैं? तेरी दिली रहमत और तेरी शफ़क़त जो मुझ पर थी ख़त्म हो गई।
\v 16 यक़ीनन तू हमारा बाप है, अगरचे इब्राहीम हम से नावाक़िफ़ हो और इस्राईल हम को न पहचाने; तू, ऐ ख़ुदावन्द,हामारा बाप और फ़िदया देने वाला है तेरा नाम अज़ल से यही है।
\v 17 ऐ ख़ुदावन्द, तूने हम को अपनी राहों से क्यूँ गुमराह किया, और हमारे दिलों को सख़्त किया कि तुझ से न डरें? अपने बन्दों की ख़ातिर अपनी मीरास के क़बाइल की ख़ातिर बाज़ आ।
\v 4 क्यूँकि शुरू' ही से न किसी ने सुना, न किसी के कान तक पहुँचा और न आँखों ने तेरे सिवा ऐसे ख़ुदा को देखा, जो अपने इन्तिज़ार करनेवाले के लिए कुछ कर दिखाए।
\v 5 तू उससे मिलता है जो ख़ुशी से सदाक़त के काम करता है, और उनसे जो तेरी राहों में तुझे याद रखते हैं; देख, तू ग़ज़बनाक हुआ क्यूँकि हम ने गुनाह किया, और मुद्दत तक उसी में रहे; क्या हम नजात पाएँगे?
\v 6 और हम तो सब के सब ऐसे हैं जैसे नापाक चीज़ और हमारी तमाम रस्तबाज़ी नापाक लिबास की तरह है। और हम सब पत्ते की तरह कुमला जाते हैं, और हमारी बदकिरदारी आँधी की तरह हम को उड़ा ले जाती है।
\v 7 और कोई नहीं जो तेरा नाम ले, जो अपने आपको आमादा करे कि तुझ से लिपटा ~रहे; क्यूँकि हमारी बदकिरदारी की वजह से तू हम से ~छिपा रहा और हम को पिघला डाला।
\v 12 ~ऐ ख़ुदावन्द, क्या तू इस पर भी अपने आप को रोकेगा? क्या तू ख़ामोश रहेगा और हम को यूँ बदहाल करेगा?
\s5
\c 65
\p
\v 1 जो मेरे तालिब न थे, मैं उनकी तरफ़ मुतवज्जिह हुआ; जिन्होंने मुझे ढूँढा न था, मुझे पा लिया; मैंने एक क़ौम से जो मेरे नाम से नहीं कहलाती थी, फ़रमाया, "देख, मैं हाज़िर हूँ।"
\v 7 तुम्हारी और तुम्हारे बाप ~दादा की बदकिरदारी का बदला इकट्ठा दूँगा, जो पहाड़ों पर ख़ुशबू जलाते और टीलों पर मेरा इन्कार करते थे; इसलिए मैं पहले उनके कामों को उनकी गोद में नाप कर दूँगा।"
\v 8 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "जिस तरह शीरा ख़ोशा-ए-अँगूर में मौजूद है, और कोई कहे, उसे ख़राब न कर क्यूँकि उसमें बरकत है, उसी तरह मैं अपने बन्दों की ख़ातिर करूँगा ताकि उन सबको हलाक न करूँ ।
\v 9 और मैं या'क़ूब में से एक नस्ल और यहूदाह में से अपने कोहिस्तान का वारिस खड़ा करूँगा ~और मेरे बर्गुज़ीदा लोग उसके वारिस होंगे और मेरे बन्दे वहाँ बसेंगे।
\v 11 लेकिन तुम जो ख़ुदावन्द को छोड़ देते और उसके पाक पहाड़ को फ़रामोश करते, और मुश्तरी के लिए दस्तरख़्वान चुनते और ज़ुहरा के लिए शराब-ए-मम्जू़ज का जाम पुर करते हो;
\v 12 मैं तुम को गिन गिनकर तलवार के हवाले करूँगा , और तुम सब ज़बह होने के लिए ~झुकोगे; क्यूँकि जब मैंने बुलाया तो तुम ने जवाब न दिया, जब मैंने कलाम किया तो तुम ने न सुना; बल्कि तुम ने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”
\v 16 यहाँ तक कि जो कोई इस ज़मीन पर अपने लिए दु'आ-ए-ख़ैर करे, ख़ुदाए-बरहक़ के नाम से करेगा और जो कोई ज़मीन में क़सम खाए, ख़ुदा-ए-बरहक़ के नाम से खाएगा; क्यूँकि गुज़री हुई मुसीबतें फ़रामोश हो गईं और वह मेरी आँखों से पोशीदा हैं।
\v 20 फिर कभी वहाँ कोई ऐसा लड़का न होगा जो कम 'उम्र रहे, और न कोई ऐसा बूढ़ा जो अपनी 'उम्र पूरी न करे; क्यूँकि लड़का सौ बरस का होकर मरेगा, और जो गुनाहगार सौ बरस का हो जाए, मला'ऊन होगा।
\v 22 न कि वह बनाएँ और दूसरा बसे, वह लगाएँ और दूसरा खाए; क्यूँकि मेरे बन्दों के दिन दरख़्त के दिनों की तरह होंगे, और मेरे बरगुज़ीदा अपने हाथों के काम से मुद्दतों तक फ़ायदा उठाएंगे
\v 25 ~भेड़िया और बर्रा इकट्ठे चरेंगे, और शेर-ए-बबर बैल की तरह भूसा खाएगा, और साँप की ख़ुराक ख़ाक होगी। वह मेरे तमाम पाक पहाड़ पर न ज़रर पहुँचाएँगे न हलाक करेंगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 66
\p
\v 1 ख़ुदावन्द यूँ फरमाता है कि आसमान मेरा तख़्त है और ज़मीन मेरे पाँव की चौकी ; तुम मेरे लिए कैसा घर बनाओगे, और कौन सी जगह मेरी आरामगाह होगी?
\v 2 क्यूँकि ये सब चीजें तो मेरे हाथ ने बनाई और यूँ मौजूद हुई, ख़ुदावन्द फ़रमाता है। लेकिन मैं उस शख़्स पर निगाह करूँगा , उसी पर जो ~ग़रीब और शिकश्ता दिल है और मेरे कलाम से कॉप जाता है।
\v 3 "जो बैल ज़बह करता है, उसकी तरह है जो किसी आदमी को मार डालता है; और जो बर्रे की क़ुर्बानी करता है, उसके बराबर है जो कुत्ते की गर्दन काटता है; जो हदिया लाता है, जैसे सूअर का ख़ून पेश करता है; जो लुबान जलाता है, उसकी तरह है जो बुत को मुबारक कहता है। हाँ, उन्होंने अपनी अपनी राहें चुन लीं और उनके दिल उनकी नफ़रती चीज़ों से मसरूर हैं |
\v 4 मैं भी उनके लिए आफ़तों को चुन लूँगा और जिन बातों से वह डरते हैं उन पर लाऊँगा क्यूँकि जब मैंने कलाम किया तो उनहोंने न सुना; बल्कि उन्होंने वही किया जो मेरी नज़र में बुरा था, और वह चीज़ पसन्द की जिससे मैं ख़ुश न था।”
\v 5 ख़ुदावन्द की बात सुनो, ऐ तुम जो उसके कलाम से काँपते हो; "तुम्हारे भाई जो तुम से कीना रखते हैं, और मेरे नाम की ख़ातिर तुम को ख़ारिज कर देते हैं, कहते हैं, 'ख़ुदावन्द की तम्जीद करो, ताकि हम तुम्हारी ख़ुशी को देखें'; लेकिन वही शर्मिन्दा होंगे।
\v 8 ऐसी बात किसने सुनी ? ऐसी चीजें किसने देखीं? क्या एक दिन में कोई मुल्क पैदा हो सकता है? क्या एक ही साथ एक क़ौम पैदा हो जाएगी? क्यूँकि सिय्यून को दर्द लगे ही थे कि उसकी औलाद पैदा हो गई।”
\v 9 ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "क्या मैं उसे विलादत के वक़्त तक लाऊँ और फिर उससे विलादत न कराऊँ?" तेरा ख़ुदा फ़रमाता है, "क्या मैं जो विलादत तक लाता हूँ, विलादत से बा'ज़ रख्खूँ?"
\v 12 क्यूँकि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, कि"देख, मैं सलामती नहर की तरह , और क़ौमों की दौलत सैलाब की तरह उसके पास रवाँ करूँगा ; तब तुम दूध पियोगे, और बग़ल में उठाए जाओगे और घुटनों पर कुदाए जाओगे।
\v 14 और तुम देखोगे और तुम्हारा दिल ख़ुश होगा, और तुम्हारी हड्डियाँ सब्ज़ा की तरह नशोंनुमा पाएँगी, और ख़ुदावन्द का हाथ अपने बन्दों पर ज़ाहिर होगा, लेकिन उसका क़हर उसके दुश्मनों पर भड़केगा।
\v 15 "क्यूँकि देखो, ख़ुदावन्द आग के साथ आएगा, और उसके रथ उड़ती धूल की तरह होंगे, ताकि अपने क़हर को जोश के साथ और अपनी तम्बीह को आग के शो'ले में ज़ाहिर करे।
\v 17 वह जो बाग़ों की वस्त में किसी के पीछे खड़े होने के लिए अपने आपको पाक-ओ-साफ़ करते हैं, जो सूअर का गोश्त और मकरूह चीजें और चूहे खाते हैं; ख़ुदावन्द फ़रमाता है, वह एक साथ फ़ना हो जाएँगे।
\v 18 और मैं उनके काम और उनके मन्सूबे जानता हूँ। वह वक़्त आता है कि मैं तमाम क़ौमों और अहल-ए-लुग़त को जमा' करूँगा और वह आयेंगे और मेरा जलाल देखेंगे,
\v 19 तब मैं उनके बीच एक निशान खड़ा करूँगा ; और मैं उनको जो उनमें से बच निकलें, क़ौमों की तरफ़ भेजूँगा, या'नी तरसीस और पूल और लूद को जो तीरअन्दाज़ हैं, और तूबल और यावान को, और दूर के जज़ीरों को जिन्होंने मेरी शोहरत नहीं सुनी और मेरा जलाल नहीं देखा; और वह क़ौमों के बीच मेरा जलाल बयान करेंगे।
\s5
\v 20 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि वह तुम्हारे सब भाइयों को तमाम क़ौमों में से घोड़ों और रथों पर, और पालकियों में और खच्चरों पर, और साँडनियों पर बिठा कर ख़ुदावन्द के हदिये के लिए यरुशलीम में मेरे पाक पहाड़ को लाएँगे, जिस तरह से बनी-इस्राईल ख़ुदावन्द के घर में पाक बर्तनों में हदिया लाते हैं।
\v 21 और ख़ुदावन्द फ़रमाता है कि मैं उनमें से भी काहिन और लावी होने के लिए लूँगा।
\v 24 ~'और वह निकल निकल कर उन लोगों की लाशों पर जो मुझ से बाग़ी हुए नज़र करेंगे; क्यूँकि उनका कीड़ा न मरेगा और उनकी आग न बुझेगी, और वह तमाम बनी आदम के लिए नफ़रती होंगे।"