\v 1 ~तक़ू'अ के चरवाहों में से 'आमूस का कलाम, जो उस पर शाह-ए-यहूदाह 'उज़्जियाह और शाह-ए-इस्राईल युरब'आम- बिन-यूआस के दिनों में इस्राईल के बारे में भौंचाल से दो साल पहले ख़्वाब में नाज़िल हुआ।
\v 3 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि "दमिश्क़ के तीन बल्कि चार गुनाहों~की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने जिलआद को ख़लीहान में दाउने के आहनी औज़ार से रौंद डाला है |
\v 5 ~और मैं दमिश्क़ का अड़बंगा तोड़ूँगा और वादी-ए-आवन के बाशिंदों और बैत-'अदन के फ़रमाँरवाँ को काट डालूँगा और अराम के लोग ग़ुलाम होकर क़ीर को जाएँगे," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 6 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि ग़ज़्ज़ा के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि वह सब लोगों को ग़ुलाम करके ले गए ताकि उनको अदूम के हवाले करें।
\v 8 ~और अशदूद के बाशिन्दों और अस्क़लोन के फ़रमाँरवाँ को काट डलूँगा और 'अक़्रून पर हाथ चलाऊँगा और फ़िलिस्तियों के बाक़ी लोग बर्बाद हो जायेंगे| ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 9 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि सूर के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सब लोगों को अदूम के हवाले किया और बिरादराना 'अहद को याद न किया।
\v 11 ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि अदोम के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोड़ूँगा, क्यूँकि उसने तलवार लेकर अपने भाई को दौड़ाया और रहमदिली को छोड़ ~दिया और उसका क़हर हमेशा फाड़ता रहा और उसका ग़ज़ब ख़त्म न हुआ |
\v 13 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि बनी 'अम्मोन ~के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उन्होंने अपनी हुदूद को बढ़ाने के लिए जिलआद की बारदार 'औरतों के पेट चाक किए।
\v 15 ~और उनका बादशाह बल्कि वह अपने हाकिमों के साथ ग़ुलाम होकर जाएगा," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\s5
\c 2
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "मोआब के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न छोडूँगा, क्यूँकि उसने शाह-ए-अदूम की हड्डियों को जलाकर चूना बना दिया है।
\v 4 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है ~कि "यहूदाह के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोडूँगा~क्यूँकि उन्होंने ख़ुदावन्द की शरी'अत को रद्द किया, और उसके अहकाम की पैरवी न की और उनके झूटे मा'बूदों ने जिनकी पैरवी उनके बाप-दादा ने की, उनको गुमराह किया है।
\v 6 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है: "इस्राईल के तीन बल्कि चार गुनाहों की वजह से मैं उसको बेसज़ा न~छोड़ूँगा, क्यूँकि उन्होंने सादिक़~को रुपये की ख़ातिर, और ग़रीब को जूतियों के जोड़े की ख़ातिर बेच डाला।
\v 7 ~वह ग़रीबों के सिर पर की गर्द का भी लालच रखते हैं, और हलीमों को उनकी राह से गुमराह करते हैं और बाप बेटा एक ही 'औरत के पास जाने से मेरे पाक नाम की तकफ़ीर करते हैं।
\v 9 ~हालाँकि मैं ही ने उनके सामने से अमोरियों को हलाक किया, जो देवदारों की तरह बलंद और बलूतों की तरह मज़बूत थे; हाँ, मैं ही ने ऊपर से उनका फल बर्बाद किया,और नीचे से उनकी जड़ें काटीं।
\v 5 ~क्या कोई चिड़िया ज़मीन पर दाम में फँस सकती है, जबकि उसके लिए दाम ही न बिछाया गया हो? क्या फंदा जब तक कि कुछ न कुछ उसमें फँसा न ~हो, ज़मीन पर से उछलेगा?
\v 9 ~अशदूद के क़स्रों में और मुल्क-ए-मिस्र के क़स्रों में 'ऐलान करो,और कहो, "सामरिया के पहाड़ों पर जमा' हो जाओ, और देखो उसमें कैसा हंगामा और ज़ुल्म है।
\v 12 ~ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि ~जिस तरह से चरवाहा दो टाँगें , या कान का एक टुकड़ा, शेर-ए-बबर के मुँह से छुड़ा लेता है~उसी तरह~बनी~इस्राईल~जो सामरिया में पलंग के गोशे में और रेशमीन फ़र्श पर बैठे रहते हैं, छुड़ा लिए जाएँगे।
\v 15 ~और ख़ुदावन्द फ़रमाता है :"मैं ज़मिस्तानी और ताबिस्तानी घरों को बर्बाद करूँगा,और हाथी दाँत के घर मिस्मार किए जायेंगे और बहुत से मकान वीरान होंगे।
\s5
\c 4
\p
\v 1 ऐ बसन की गायों, जो कोह-ए-सामरिया पर रहती हो, और ग़रीबों को सताती और ग़रीबों को कुचलती और अपने मालिकों से कहती हो, 'लाओ, हम पियें,' तुम ये बात सुनो।
\v 5 ~और शुक्रगुज़ारी का हदिया ख़मीर के साथ आग पर पेश करो, और रज़ा की क़ुर्बानी का 'ऐलान करो, और उसको मशहूर करो, क्यूँकि ऐ बनी इस्राईल, ये सब काम तुम को पसंद हैं," ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है।
\v 6 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "अगरचे मैंने तुम को तुम्हारे हर शहर में दाँतों की सफ़ाई, और तुम्हारे हर मकान में रोटी की कमी दी है; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए।
\v 7 और अगरचे मैंने मेंह को, जबकि फ़सल पकने में तीन महीने बाक़ी थे तुम से रोक लिया; और एक शहर पर बरसाया और दूसरे से रोक रख्खा, एक~क़िता' ज़मीन पर बरसा और दूसरा क़िता' बारिश न होने की वजह से सूख गया;
\v 9 "फिर मैंने तुम पर बाद-ए-समूम और गेरोई की आफ़त भेजी, और तुम्हारे बेशुमार बाग़ और ताकिस्तान और अंजीर और जै़तून के दरख़्त, टिड्डियों ने खा लिए; तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 10 ~मैंने मिस्र के जैसी वबा तुम पर भेजी और तुम्हारे जवानों को तलवार से क़त्ल किया; तुम्हारे घोड़े छीन लिए और तुम्हारी लश्करगाह की बदबू तुम्हारे नथनों में पहुँची, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 11 ~"मैंने तुम में से कुछ को उलट दिया, जैसे ख़ुदा ने सदूम और 'अमूरा को उलट दिया था; और तुम उस लुक्टी की तरह हुए जो आग से निकाली जाए, तोभी तुम मेरी तरफ़ रुजू' न लाए," ख़ुदावन्द फ़रमाता है।
\v 13 ~क्यूँकि देख, उसी ने पहाड़ों को बनाया और हवा को पैदा किया, वह इन्सान पर उसके ख़यालात को ज़ाहिर करता है और सुबह को तारीक बना देता है और ज़मीन के ऊँचे मक़ामात पर चलता है; उसका नाम ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज है।
\s5
\c 5
\p
\v 1 ~ऐ इस्राईल के ख़ान्दान, इस कलाम को जिससे मैं तुम पर नौहा करता हूँ, सुनो:
\v 3 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द ख़ुदा यूँ फ़रमाता है ~कि "इस्राईल के घराने के लिए, जिस शहर से एक हज़ार निकलते थे, उसमें एक सौ रह जाएँगे; और जिससे एक सौ निकलते थे, उसमें दस रह जाएँगे।"
\v 8 ~वही सुरैया और जब्बार सितारों का ख़ालिक़ है जो मौत के साये को मतला'-ए-नूर, और रोज़-ए-रोशन को शब-ए-दैजूर बना देता है, और समन्दर के पानी को बुलाता और इस ज़मीन पर फैलाता है,जिसका नाम ख़ुदावन्द है;
\v 11 ~इसलिए चूँकि तुम ग़रीबों को पायमाल करते हो और ज़ुल्म करके उनसे गेहूँ छीन लेते हो, इसलिए जो तराशे हुए पत्थरों के मकान तुम ने बनाए उनमें न बसोगे, और जो नफ़ीस ताकिस्तान तुम ने लगाए उनकी मय न पियोगे।
\v 12 ~क्यूँकि मैं तुम्हारी बेशुमार ख़ताओं और तुम्हारे बड़े-बड़े गुनाहों से आगाह हूँ तुम सादिक़ों को सताते और रिश्वत लेते हो, और फाटक में ग़रीबों की हक़तलफ़ी करते हो।
\v 16 ~इसलिए ख़ुदावन्द ख़ुदा रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है कि: "सब बाज़ारों में नौहा होगा, और सब गलियों में अफ़सोस अफ़सोस कहेंगे; और किसानों को मातम के लिए, और उनको जो नौहागरी में महारत रखते हैं नौहे के लिए बुलाएँगे;
\v 22 और अगरचे तुम मेरे सामने सोख़्तनी और नज़्र की क़ुर्बानियाँ पेश करोगे तोभी मैं उनको क़ुबूल न करूँगा; और तुम्हारे फ़र्बा जानवरों की शुक्राने की क़ुर्बानियों को ख़ातिर में न लाऊँगा।
\v 2 ~तुम कलना तक जाकर देखो,और वहाँ से हमात-ए-'आज़म तक सैर करो, और फिर फ़िलिस्तियों के जात को जाओ। क्या वह इन ममलुकतों से बेहतर हैं? क्या उनकी हुदूद तुम्हारी हुदूद से ज़्यादा वसी' हैं? "
\v 8 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने अपनी ज़ात की क़सम खाई है, ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज यूँ फ़रमाता है: "कि मैं या'क़ूब की हश्मत से नफ़रत रखता हूँ और उसके क़स्रों से मुझे 'अदावत है। इसलिए मैं शहर को उसकी सारी मा'मूरी के साथ हवाले कर दूँगा।”
\v 9 ~बल्कि यूँ होगा कि अगर किसी घर में दस आदमी बाक़ी होंगे, तो वह भी मर जाएँगे।
\v 10 ~और जब किसी का रिश्तेदार जो उसको जलाता है, उसे उठाएगा ताकि उसकी हड्डियों को घर से निकाले, और उससे जो घर के अन्दर पूछेगा, "क्या कोई और तेरे साथ ~है?" तो वह जवाब देगा, "कोई नहीं,” तब वह कहेगा, "चुप रह, ऐसा न हो कि हम ख़ुदावन्द के नाम का ज़िक्र करें।”
\v 14 ~लेकिन ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल, देखो, मैं तुम पर एक क़ौम को चढ़ा लाऊँगा, और वह तुम को हमात के मदख़ल से, वादी-ए-अरबा तक परेशान करेगी।”
\s5
\c 7
\p
\v 1 ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया और क्या ~देखता हूँ कि उसने ज़रा'अत की आख़िरी रोईदगी की शुरू' में टिड्डियाँ पैदा कीं; और देखो, ये शाही कटाई के बा'द~आख़िरी~रोईदगी थी।
\v 2 ~और जब वह ज़मीन की घास को बिल्कुल खा चुकीं, तो मैंने~'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से मु'आफ़ फ़रमा! या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके?क्यूँकि वह छोटा है!"
\v 3 ~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और उसने फ़रमाया : "यूँ न होगा।”
\v 4 ~फिर ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द ख़ुदा ने आग को बुलाया कि मुक़ाबला करे, और वह बहर-ए-'अमीक़ को निगल गई, और नज़दीक था कि ज़मीन को खा जाए।
\v 5 ~तब मैंने 'अर्ज़ की, "कि ऐ ख़ुदावन्द ख़ुदा, मेहरबानी से बाज़ आ, या'क़ूब की क्या हक़ीक़त है कि वह क़ायम रह सके? क्यूँकि वह छोटा है!"
\v 6 ~ख़ुदावन्द इससे बाज़ आया, और ख़ुदावन्द ख़ुदा ने फ़रमाया: "यूँ भी न होगा।"
\v 7 ~फिर उसने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ख़ुदावन्द एक दीवार पर, जो साहूल से बनाई गई थी खड़ा है, और साहूल उसके हाथ में है।
\v 8 ~और ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, "कि ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "कि साहूल।" तब ख़ुदावन्द ने फ़रमाया,"देख, मैं अपनी क़ौम इस्राईल में साहूल लटकाऊँगा, और मैं फिर उनसे दरगुज़र न करूँगा;
\v 10 ~तब बैतएल के काहिन इम्सियाह ने शाह-ए-इस्राईल युरब'आम को कहला भेजा कि 'आमूस ने तेरे ख़िलाफ़ बनी-इस्राईल में फ़ितना खड़ा किया है, और मुल्क में उसकी बातों की बर्दाश्त नहीं।
\v 11 ~क्यूँकि 'आमूस यूँ कहता है, "'कि युरब'आम तलवार से मारा जाएगा, और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।'"
\v 17 इसलिए ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है, "कि तेरी बीवी शहर में कस्बी बनेगी, और तेरे बेटे और तेरी बेटियाँ तलवार से मारे जाएँगे; और तेरी ज़मीन जरीब से बाँटी जाएगी, और तू एक नापाक मुल्क में मरेगा; और इस्राईल यक़ीनन अपने वतन से ग़ुलाम होकर जाएगा।"
\s5
\c 8
\p
\v 1 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा ने मुझे ख़्वाब दिखाया, और क्या देखता हूँ कि ताबिस्तानी मेवों की टोकरी है।
\v 2 ~और उसने फ़रमाया, "ऐ 'आमूस, तू क्या देखता है?" मैंने 'अर्ज़ की, "ताबिस्तानी मेवों की टोकरी।" तब ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया कि "मेरी क़ौम इस्राईल का वक़्त आ पहुँचा है; अब मैं उससे दरगुज़र न करूँगा।
\v 5 ~और ऐफ़ा को छोटा और मिस्क़ाल को बड़ा बनाते, और फ़रेब की तराजू से दग़ाबाज़ी करते,और कहते हो, "कि नये चाँद का दिन कब गुज़रेगा, ताकि हम ग़ल्ला बेचें, और सबत का दिन कब ख़त्म होगा के गेहूँ के खत्ते खोलें,
\v 8 ~क्या इस वजह से ज़मीन न थरथराएगी, और उसका हर एक बाशिंदा मातम न करेगा? हाँ, वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठेगी और रोद-ए-मिस्र की तरह फैल कर फिर सुकड़ जाएगी।"
\v 10 ~तुम्हारी 'ईदों को मातम से और तुम्हारे नामों को नौहों से बदल दुँगा, और हर एक की कमर पर टाट बँधवाऊँगा और हर एक के सिर पर चँदलापन भेजूँगा और ऐसा मातम खड़ा करूँगा जैसा इकलौते बेटे पर होता है और उसका अंजाम रोज़-ए-तल्ख़ सा होगा।"
\v 11 ~ख़ुदावन्द ख़ुदा फ़रमाता है, "देखो, वह दिन आते हैं कि मैं इस मुल्क में क़हत डालूँगा न पानी की प्यास और न रोटी का क़हत, बल्कि ख़ुदावन्द का कलाम सुनने का।
\v 14 जो सामरिया के बुत की क़सम खाते हैं, और कहते हैं, 'ऐ दान, तेरे मा'बूद की क़सम' और 'बैर सबा' के तरीक़े की क़सम,' वह गिर जाएँगे और फिर हरगिज़ न उठेंगे।"
\s5
\c 9
\p
\v 1 ~मैंने ख़ुदावन्द को मज़बह के पास खड़े देखा, और उसने फ़रमाया :"सुतूनों के सिर पर मार, ताकि आस्ताने हिल जाएँ; और उन सबके सिरों पर उनको पारा-पारा कर दे, और उनके बक़िये को मैं तलवार से क़त्ल करूँगा; उनमें से एक भी भाग न सकेगा, उनमें से एक भी बच न निकलेगा।
\v 3 ~अगर वह कोह-ए-कर्मिल की चोटी पर जा छिपें, तो मैं उनको वहाँ से ढूंड निकालूँगा; और अगर समन्दर की तह में मेरी नज़र से ग़ायब हो जाए तो मैं वहाँ साँप को हुक्म करूँगा और वह उनको काटेगा।
\v 4 और अगर दुश्मन उनको ग़ुलाम करके ले जाएँ, तो वहाँ तलवार को हुक्म करूँगा, और वह उनको क़त्ल करेगी; और मैं उनकी भलाई के लिए नहीं, बल्कि बुराई के लिए उन पर निगाह रखूँगा ।"
\v 5 ~क्यूँकि ख़ुदावन्द रब्ब-उल-अफ़वाज वह है कि अगर ज़मीन को छू दे तो वह गुदाज़ हो जाए, और उसकी सब मा'मूरी मातम करे; वह बिल्कुल दरिया-ए-नील की तरह उठे और रोद-ए-मिस्र की तरह फिर सुकड़ जाए।
\v 6 ~वही आसमान पर अपने बालाख़ाने ता'मीर करता है, उसी ने ज़मीन पर अपने गुम्बद की बुनियाद रख्खी है; वह समन्दर के पानी को बुलाकर इस ज़मीन पर फैला देता है; उसी का नाम ख़ुदावन्द है।
\v 7 ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "ऐ बनी-इस्राईल,क्या तुम मेरे लिए अहल-ए-कूश की औलाद की तरह नहीं हो? क्या मैं इस्राईल को मुल्क-ए-मिस्र से, और फ़िलिस्तियों को कफ़तूर से, और अरामियों को क़ीर से नहीं निकाल लाया हूँ?
\v 8 ~देखो, ख़ुदावन्द ख़ुदा की आँखें इस गुनाहगार मम्लुकत पर लगी हैं," ~ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "मैं उसे इस ज़मीन से हलाक-ओ-बर्बाद कर दूँगा, मगर या'क़ूब के घराने को बिल्कुल हलाक न करूँगा।
\v 13 ~देखो, वह दिन आते हैं," ख़ुदावन्द फ़रमाता है, "जोतने वाला काटने वाले को, और अंगूर कुचलने वाला बोने वाले को जा लेगा; और पहाड़ों से नई मय टपकेगी, और सब टीले गुदाज़ होंगे।
\v 14 ~और मैं बनी-इस्राईल, अपने लोगों को ग़ुलामी से वापस लाऊँगा; वह उजड़े शहरों को ता'मीर करके उनमें क़याम करेंगे और बाग़ लगाकर उनकी मय पिएँगे। वह बाग़ लगाएँगे और उनके फल खाएँगे।
\v 15 ~क्यूँकि मैं उनको उनके मुल्क में क़ायम करूँगा और वह फिर कभी अपने वतन से जो मैने उनको बख़्शा है, निकाले न जाएँगे," ख़ुदावन्द तेरा ख़ुदा फ़रमाता है।