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\v 22 तुमरमे भव विश्वास परमेश्वर और तुमर बिचमे धरओ| धन्या हए बा आदमी, जौनसे अपनेक उचित मानो भव बातके कारनसे अपनेके दोषी ना ठहरात हए । \v 23 पर कोइ शङका करके कुछ खात हए कहेसे बादोषी ठहरत हए, काहेकी बा विश्वासके साथ नाखाइ हए| विश्वाससे उत्पन्न नाभव कोइ फिर बात पाप हए । |