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\v 8 आपसमे प्रेम करन से अलावा कोइको कछु बातमे ऋणी मत होबओ।काहेकी अपन परोसीके प्रेम करनबारो व्यवस्था पुरो करत हए। \v 9 "तय व्यभिचार मत करए, तय हत्य मत करए, तय चोरी मत करए, तय लोभ मत करए,”जे आज्ञा सेअलाबा, और कोइ जित्तो आज्ञा हए, बे सबको सारांश जहे आज्ञामे पात हए, अथवा ""तए अपन परोसीके अपनी जैसी प्रेम करीए।" \v 10 प्रेम परोसीके खराब ना करहे । जहेकारन प्रेम करनो त व्यवस्था पूरा करन हए।