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\v 7 \v 8 \v 9 7 हम कोइ फिर अपन ताँहि ना जितहएँ और कोइ फिर अपन ताँहि नामरत हँए| 8 अगर हम बचङगे कहेसे प्रभुके ताँहि बचङगे, और मरङगे कहेसे प्रभुक ताँहि मरङगे| 9 चाहे हम बचए, चाहे मरए, हम प्रभुके हँए| जहेक ताँहि ख्रीष्ट मरो हए और फिर जिन्दा भव, कि बो मरे भएके और जिन्दानके दुनेको प्रभु होबए|

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\v 10 \v 11 10 तुम काहे अपन भैयाको इन्साफ करत हऔ? या तुम अपनो भैयाके काहे तुच्छ ठहेरत हऔ? काहेकी हम सबय परमेश्वरके न्याय-आसनके अग्गु ठाड़ङगे| 11 काहेकी लिखो हए, “प्रभु काहत हए, 'जैसो मए जीन्दा हओ, प्रत्यक घुटो मिर अग्गु टिकइगो, और सब जिभ परमेश्वरको प्रशंसा करङगे|”

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\v 12 \v 13 12 अइसीय हम सबय परमेश्वरके अपनो लेखा देमङगे| 13 जाहेकमारे हम एक दुसरेके अब आइसो इन्साफ ना करएँ| बरु अपन भैयाके डगरमे ठेस लागनबारे बात या बाधा करनबारो बात कबहु ना धारन बाचा करएँ|

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\v 14 \v 15 14 मए जानत हओ, और प्रभु येशूमे मोके निश्चय हए, कि कोइ बात फिर अपनमे अशुद्ध ना होत हँए, पर जौन अशुद्ध मानत हए, बक ताँहि बो अशुद्ध होत हए| 15 अगर तुम जो खात हओ, बो बातसे तुमर भैयाक चोट लागत हए कहेसे, तुम प्रेममे ना चले हओ| जौन भैयक ताँहि ख्रीष्ट मरो हए, तुम खाओभव बातसे बाक नाश ना होबए|

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\v 16 \v 17 16 जहेकमारे तुमके जो अच्छो लागत हए बासे दुसरोके खराब कहेन मत देबओ| 17 काहेकी परमेश्वरको राज्य खान और पिन इकल्लो नाए, पर पवित्र आत्मामे धार्मिकता, शान्ति और आनन्द हए|

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\v 18 \v 19 18 जौन जा किसिमसे ख्रीष्टको सेवा करत हए, बा परमेश्वरके मन पाड्त और आदमीनसे अच्छो ठाहिरो हए| 19 तबहि हम बे बातके अनुसरण करेए जो शान्ति लातहए, औ एक दुसरेके आत्मिक उन्नति करत हए|