thr_php_text_reg/04/10.txt

1 line
1.1 KiB
Plaintext

\v 10 मए प्रभुमे गजब आनन्दित हौ, कि अब गजब दिनपिच्छु मोए प्रति तुमर वास्ता फिर पलाए गओ हए| तुम नेहत्व मिर ताहिँ चिन्तित रहओ, पर तुमके मौका नाए मिलो| \v 11 जरुरि पाडो कहिके मए गुनासो नएकरो हौ, काहेकी जैसो परिस्थिति होएसे फिर मए बोमे सन्तुष्ट रहान मए सिखो हौ| \v 12 कैसे झुकन और कैसे बढन् मए जान्त हौ| परिपूर्णतामे होए या भूकप्यासमे होए, प्रश्स्तमे होए या अभाबमे होए, सब परिस्थितिमे सन्तुष्ट रहन रहस्य मए सिखो हौ| \v 13 जुन मोके शक्ति देतहए, बोमे मए सब बात करन् सिकत हौ|