\v 20 मिर उत्कट प्रतिक्षा और आशा जहे हए, कि मए कदापि लज्जित नाए हुइहौ, चाहूँ मृत्युसे होए, अथवा जीवन से| \v 21 काहेकी मिर् ताहीं जिनो ख्रीष्ट हए, और मरन लाभ हए|