\v 3 स्वार्थ और अहंकारमे कुछु मत करओ, पर नम्रतामे एक दुसरेके अपनसे श्रेष्ट मानओ। \v 4 तुम सब अपन हित इकल्लो मत ढुणओ, पर और के हितके फिर देखओ।