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\v 52 “ तुम ब्यबस्थाके पण्डितके धिक्कार ! कहेकी तुम ज्ञानको चाभी लेन त लए, पर तुम अपनै फिर भितर घुस ना पाए और घुसन बालेनके फिर रोकत हौ ।