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\v 17 बे सत्तरी जनी आनन्दसे घुमके आएके अइसो कही, “प्रभु जी, तुमर नाउँमे भूत फिर हमर बशमे आतहए ।” \v 18 बा बिनसे कही, “मए शैतानके स्वर्गसे बिजुलीकत गिरत देखो। \v 19 मै तुमके साँप और बिछी कुचलनके और शत्रुको सबै शक्ति उपर अधिकार दओ हौ, और कोइ बातसे तुमके नुकसान ना हुइहए। \v 20 तहुफिर दुष्टात्मा तुमरे वंशमे हए करके खुसी मत होबओ, पर तुमर नाँउ स्वर्गमे लिखो हए कहेके खुसी होबओ।" |