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\v 13 भिणसे एक जनि बासे कहि, “गुरु जी मिर ददासे कहि देओ,और बा अंशबण्डा कर देबए ।” \v 14 “तव बा बासे कहि” , मित्र कौन मोके तुमर उपर न्याय करन, औ तुमर सम्पत्ति बाँटदेन बरो बनाओ ?" \v 15 “बा बिनसे कहि”,होशियार रहबौ, सब तरह के लालच से बचके काम करौँ, काहेकी आदमिक जिन्दगी बके धन सम्पत्तिके प्रशस्ततामे ना रहात हए।"