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\v 25 ” व्यवस्थाको एक जनी पण्डित बाके परीक्षा करन ठाणो रहए और जा प्रश्‍न करी, “गुरुजी, अनन्त जीवन पान ताँही मोके का करन पणैइगो ?” \v 26 बा बिनसे कहि, व्यवस्थामे का लिखो हए ? तुमका पढत हौँ ?” \v 27 बा कहि, “तए परमप्रभु, अपन परमेश्‍वरके अपन सारे हृदयसे, आपने सारे प्राणसे, अपन सारे समझसे और आपने सारे मनसे प्रेम कर, और आपनो पणोसिके अपन कता प्रेम कर।” \v 28 बा बिनसे कहिँ, '' तुम ठिक ज़वाफ दए । अइसए कर, और तुम जिबैगे।"