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\v 43 मए अपने दौवाके नाउँमे आओ हौ, पर तुम मोके ग्रहण नाए कर्तहौ । और दुस्रो कोई अपन नाउँमे आईगओ बाके तुम ग्रहण करलेहौ । \v 44 तुम कैसे बिश्‍वस करपैहौ, जब तुम आपसमे एक दुसरे से सम्मान ढुडत हौ, और बा सम्मान कि खोजी नाए करतहौ, जो एक मात्र परमेश्‍वरसे आतहए ।