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\v 30 "मए अपनाए कछु ना करपैहौ। जैसी मए सुनत हौ, उइसी न्याय मए करङ्गो, और मिर न्याय ठीक ठहीरैगो, कहेकी मए अपन इच्छा नाए ढुड्त हौ, पर मोके पठान बारेकि इच्छा ढुड्त हौ ।" \v 31 "पर मए अपन बारेमे गवाही देहौ तव मिर गवाही सत्य ना हुइहए ।" \v 32 मिर बारेमे गवाही देन बारो दुसरो हँए और मए जान्तहौ, कि मेरे बारेमे बा जो गवाही देतहँए, बा गवाही सत्य ठहीरैगो। |