thr_jhn_text_reg/03/29.txt

1 line
456 B
Plaintext
Raw Normal View History

\v 29 दुलहीन त दुलहाकि हए, । दुलहाके ठिन जो ठाणो होत हए, और बाको अवाज सुनन बारो सँगी दुलहाको आवाज सुनके गजब खुशी होत हए । तव मिर आनन्द अब पुरा होबैगो । \v 30 बा बढैगो, और मोके घटन पड्हए ।