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\v 15 तुमरो अनुभव करो सन्तोस कितए गओ ? काहेकी मए गवाही दए सक्तहौं, कि अगर सम्भव होतो तव तुम अपन आँखी तक निकारके फिर मोके दैदित्ते। \v 16 तव तुमसे सच्चो कहेसे क मए तुमर शत्रु हुइगओ हौं क ?