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\v 13 भैया, तुम त स्वतन्त्रताके ताहिँ बुलाए हौ। केवल बा स्वतन्त्रता पापमय स्वभावके ताहिँ प्रयोग मत कराओ पर प्रेममे तुम एक-दुसरेके सेवक बनओ। \v 14 काहेकी सबय व्यवस्था एकए वचनमे पुरा होत हए, “तए अपन परोसिनके अपनए कता प्रेम कर।” \v 15 पर तुम एक दुसरेके काटन और निलन करत् हौ तव होसियार होबओ, तुम एक दुसरेसे खतम होन न पणए।