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\v 3 बा दुपाह्रके तीन बजे घेन दर्शनमे सफा रुपसे परमेश्वरको एक स्वर्गदुत अपने घेन आत अइसो कहात सुनी, “कर्नेलियस !” \v 4 झसक्के बा उनके निहारके देखि और कहि, प्रभु कहौ |” और बा बिनसे कहि, “तुमरो प्रार्थना और गरीबके दओ दान सम्झनाके रुपमे परमेश्वरको अग्गु पुगो हए | \v 5 अब आदमीनके योप्पामे पठओ, और पत्रुस कहान बारो सिमोनके बुलान पठओ | \v 6 बा चर्मकार सिमोनके ठिन बैठो हए, जौनको घर समुन्द्र किंनरे हए |
\v 3 बा दुपाह्रके तीन बजे घेन दर्शनमे सफा रुपसे परमेश्वरको एक स्वर्गदुत अपने घेन आत अइसो कहात सुनी, “कर्नेलियस !” \v 4 झसक्के बा उनके निहारके देखि और कहि, प्रभु कहौ ” और बा बिनसे कहि, “तुमरो प्रार्थना और गरीबके दओ दान सम्झनाके रुपमे परमेश्वरको अग्गु पुगो हए \v 5 अब आदमीनके योप्पामे पठओ, और पत्रुस कहान बारो सिमोनके बुलान पठओ \v 6 बा चर्मकार सिमोनके ठिन बैठो हए, जौनको घर समुन्द्र किंनरे हए

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\v 9 कल बे अपन यात्रामे सहेरके जौने आएपुगत्, दुपहरको बाह्र बजेघेन पत्रुस त प्रार्थना करन घरको पणमे चढो | \v 10 बा भुखानो, और कुछ खानके मन करी, पर औरदुस्रे खानु तयार करत् बेरा बा ध्यानमे-मग्‍न हुइगव | \v 11 बा स्वर्ग खुलो और हुवाँसे चारौ कोनेमे बधो तन्‍ना जैसो पृथ्बीघेन झर्त देखी | \v 12 तव बा तन्‍नामे पृथ्बीके सब किसिमके चारटाँगके जनावर और घिस्टनबारे प्राणी और आकाशके चिरैचुरुंगी रहएँ |
\v 9 कल बे अपन यात्रामे सहेरके जौने आएपुगत्, दुपहरको बाह्र बजेघेन पत्रुस त प्रार्थना करन घरको पणमे चढो \v 10 बा भुखानो, और कुछ खानके मन करी, पर औरदुस्रे खानु तयार करत् बेरा बा ध्यानमे-मग्‍न हुइगव \v 11 बा स्वर्ग खुलो और हुवाँसे चारौ कोनेमे बधो तन्‍ना जैसो पृथ्बीघेन झर्त देखी \v 12 तव बा तन्‍नामे पृथ्बीके सब किसिमके चारटाँगके जनावर और घिस्टनबारे प्राणी और आकाशके चिरैचुरुंगी रहएँ

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\v 13 तव बा एक आवाज सुनी, “ए पत्रुस उठ, और मारके खा |” \v 14 तव पत्रुस कहि, “नाए प्रभु, काहेकी मए कबही कछु अपबित्र औ अशुद चीज ना खओ हौँ |” \v 15 बा आवाज फिर दुस्रो चोटी सुनी, “परमेश्वर जो शुध्द करीहए बाके तुम अपवित्र काहे मन्त हौ | \v 16 तीन चोटीतक अइसो भव, और तुरन्त बा तन्‍ना स्वर्गघेन लैगओ |
\v 13 तव बा एक आवाज सुनी, “ए पत्रुस उठ, और मारके खा |” \v 14 तव पत्रुस कहि, “नाए प्रभु, काहेकी मए कबही कछु अपबित्र औ अशुद चीज ना खओ हौँ |” \v 15 बा आवाज फिर दुस्रो चोटी सुनी, “परमेश्वर जो शुध्द करीहए बाके तुम अपवित्र काहे मन्त हौ | \v 16 तीन चोटीतक अइसो भव, और तुरन्त बा तन्‍ना स्वर्गघेन लैगओ

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