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\c 2 \v 1 सबसे पहिले मए आग्रह कर्तहौँ, कि सबए आदमीनके ताहिँ नम्र-निबेदन, प्रार्थना और मध्यस्थ- बिन्ती और धन्यबाद चढमए, \v 2 राजा और सब उँचे पदमे भएनके ताहिँ फिर, ताकि हम निर्धक्क और शान्तिपूर्ण हुइके हरप्रकारसे धार्मिक और आदरणीय जीवन बितान सकाएँ । \v 3 हमर मुक्तिदाता परमेश्वरको दृष्टिमे जा असल और ग्रहण योग्य हए । \v 4 सब आदमी मुक्ति पामए और बे सत्यके ज्ञानमे आमए करके इच्छा बा कर्तहए|