|
\v 17 न्यायके दीनके ताही हम पुरो भरोसा साथ बैठ सकए । काहेकी प्रेम जहएमे हमरे उपर पुरो होथहए । काहेकी बा जैसो हए हम फिर जा संसारमे उइसिए हए । \v 18 प्रेममे कोइ डर ना होथए पर सच्चो प्रेम डरके दुर हटाथए काहेकी डरको सम्बन्ध दन्ढसे हए । पर, जो डरातहए प्रेममे बा पुरो ना भव हए । |