thr_1co_text_reg/14/17.txt

1 line
666 B
Plaintext

\v 17 तुम त आच्छेसे धन्यवाद देतहौ, पर बो दुसरे आदमीके कोइ आत्मिक वृध्दि ना करत हए । \v 18 मए परमेश्वरके धन्यवाद चढ़ात हौ, काहेकी तुम सब से जद्धा मए अन्य भाषामे मस्कत हौँ । \v 19 पर मए मण्डलीमे दुस्रो भाषामे दश हजार बोली बोलनसेेे त अपन दिमाकसे पाँच बोली बोलन चाँहत हौँ ।