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\v 17 पर जे आदेश देत मए तुमर तारिफ ना करंगो, काहेकी तुम भेला होत बो अच्छोके ताहिँ ना होत हए, पर बो और खराबीके ताहिँ हए । \v 18 काहेकी पहिले त, मण्डलीमे एकसंग भेला होत तुमरमे फाटो हए कहिके मए सुनत हौ । तव कुछ मात्रमे मए बो विश्वास फिर करत हौ । \v 19 तुमर मैसे ग्रहणयोग्य ठहरे भए चिनन् ताहिँ तुमरमे मतभेद होन फिर आवश्यक हए ।