From a7e4ea3f03ddd0c4e5427b93710935e175acec74 Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Rana_Tharu Date: Fri, 28 Jul 2023 21:38:21 +0545 Subject: [PATCH] Fri Jul 28 2023 21:38:21 GMT+0545 (Nepal Time) --- 07/39.txt | 2 +- 08/01.txt | 2 +- manifest.json | 1 + 3 files changed, 3 insertions(+), 2 deletions(-) diff --git a/07/39.txt b/07/39.txt index 17ebc60..87762b9 100644 --- a/07/39.txt +++ b/07/39.txt @@ -1 +1 @@ -\v 39 लोगा बाँचनतक लोगाके बन्धनमे बैयर रहतहए| पर लोगा मरके पिच्छु बो इच्छा करो व्यक्तिसंग बो विहा करन स्वतन्त्र होतहए, पर बो प्रभुको जन होन पणतहए । \v 40 पर बो अइसी बैठैगित और खुशी होतहए, जा मेरो विचार हए, तव मए सम्झात हौ कि मिरमे फिर परमेश्वरको आत्मा हए| \ No newline at end of file +\v 39 लोगा बाँचनतक लोगाके बन्धनमे बैयर रहतहए । पर लोगा मरके पिच्छु बो इच्छा करो व्यक्तिसंग बो विहा करन स्वतन्त्र होतहए, पर बो प्रभुको जन होन पणतहए । \v 40 पर बो अइसी बैठैगित और खुशी होतहए, जा मेरो विचार हए, तव मए सम्झात हौ कि मिरमे फिर परमेश्वरको आत्मा हए । \ No newline at end of file diff --git a/08/01.txt b/08/01.txt index 27ad181..a50f8e2 100644 --- a/08/01.txt +++ b/08/01.txt @@ -1 +1 @@ -\c 8 \v 1 1 अब मूर्तिके चढ़ो भव खानबारो चिजके बारेमे: हम जानतहँए, कि हमर सबएसंग ज्ञान हए| ज्ञान घमण्ड लात हए, पर प्रेम उन्नती करत हए| \v 2 2 "अगर कोई ""कछु जानत हौँ"" कहिके सोचत हए कहेसे, जितका जानत रहै उतनो ना जानत हए| " \v 3 3 अगर कोई परमेश्वरके प्रेम करत हए बाके परमेश्वर चीनत हए| \ No newline at end of file +\c 8 \v 1 अब मूर्तिके चढ़ो भव खानबारो चिजके बारेमे: हम जानतहँए, कि हमर सबएसंग ज्ञान हए| ज्ञान घमण्ड लात हए, पर प्रेम उन्नती करत हए । \v 2 "अगर कोई ""कछु जानत हौँ"" कहिके सोचत हए कहेसे, जितका जानत रहै उतनो ना जानत हए । " \v 3 3 अगर कोई परमेश्वरके प्रेम करत हए बाके परमेश्वर चीनत हए| \ No newline at end of file diff --git a/manifest.json b/manifest.json index 3f7fa6e..dc2a5b9 100644 --- a/manifest.json +++ b/manifest.json @@ -113,6 +113,7 @@ "07-32", "07-35", "07-36", + "07-39", "09-title", "10-title", "11-title",