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\v 11 \v 12 \v 13 11 पर आईसो सङ्गत मतकरीओ कहिके मए तुमके ताहिँ लिखो, जौन अपनयके विश्वासी भैया हौ काहिके कहतहए, पर वास्तवमे बो व्यभिचारी, और लोभी, और मूर्तिपूजक, और निन्दा करनबारो, और मतवालो और लुटहा हए । बो अइसो आदमीकेसंग त खान फिर मत बैठओ ।12 काहेकी बाहिर बालेके इन्साफ करन मोके का खाँचो? का तुम मण्डली भितरके न्याय करन ना पड्त हए का ? 13 बाहिरबालेके न्याय परमेश्वरय करत हए| “तुम अपन बीचसे दुष्ट आदमीके निकारदेओ ।”

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\c 6 \v 1 \v 2 \v 3 1 तुमर मैसे एक आदमी दुसरेक भैँयासे लडाई भैइहए कहेसे न्यायके ताहिँ सन्तठीन ना जाएके अधर्मीठीन जान के बो आँट करैगो? 2 सन्त संसारको न्याय करत हए कहनबालो बात का तुमके पता नैयाँ? अगर संसारको न्याय तुमही के करन पडैगो कहेसे, छोटेसे- छोटे मुद्दा छिनन् का तुम अयोग्य हौ? 3 का तुमके पता नैयाँ, हम स्वर्गदूतको न्याय करत् हँए? जहेमारे जा जीवनसे होनबालो बात बडो हए का?

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\v 4 \v 5 \v 6 4 अइसो लडाइतुमरमे नैयाँ कहेसे, बे लडाइ काहे बे आदमीके अग्गु धरतहौ,जौन आदमी मण्डली के कोई मोलको ना मानत हँए? 5 तुमके शर्ममे पड्न मए जा कहतहौ । अपन ददाभैयनके बीचमे लडाइ मिलान सिकानबालो बुध्दीमान आदमी को नेहत्व तुममे कोई ना पए हौ ? 6 पर एक भैया दुसरो भैयाके विरुध्दमे अदालतमे जए हए , बो फिर अविश्वासीके सामने !

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\v 7 \v 8 7 तुमर एक दुसरेके विरुध्दमे मुद्दा लडन त तुमर हार हए| बरु अन्याय काहे ना सहमैँ? बरु काहे ठगके ना बैठएँ? 8 पर तुमही त अन्याय करतहओ और ठगतहौ, बो फिर अपनी भैयाके !

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\v 9 \v 10 \v 11 9 अधर्मी परमेश्वरको राज्यको हकदार ना होतहए कहिके का तुमके पता नैयाँ? धोखा मतखाओ- अनैतिक, मूर्तिपूजक, व्यभिचारी, समलिंगी, पुरुषगामी, 10 चुट्टा, लोभी,मतवाला, निन्दा करनबालो, लुटेरा परमेश्वरको राज्यको हकदार ना हुइहँए । 11 तुम फिर अइसी रहओ, पर तुम धुइगए, पवित्र हुईगए, प्रभु येशू ख्रीष्टको नाउँमे हमर परमेश्वरको आत्मासे निर्दोष ठहरिगए ।

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\v 12 \v 13 12 " सब बात मेरे ताँही न्यायसंगत हँए,” पर सब बातफाइदाके नैयाँ| “सब बात मेरे ताँही न्यायसंगत हँए,” पर मए कुछ बातको कमैया ना हुइहौँ । " 13 "भोजन पेटके ताँही, और पेट भोजनके ताँही हए|” पर परमेश्वर दुनेके नाशा करैगो| शरीर व्यभिचारके ताँही नैयाँ, पर प्रभुके ताँही हए, और प्रभु शरीरके ताँही हए ।"