From 29c5ea6c6b59f248523ea97b84e2eafa3c3ce48e Mon Sep 17 00:00:00 2001 From: Rana_Tharu Date: Thu, 11 May 2023 09:41:09 +0545 Subject: [PATCH] Thu May 11 2023 09:41:09 GMT+0545 (Nepal Time) --- 02/12.txt | 2 +- 02/14.txt | 1 + 2 files changed, 2 insertions(+), 1 deletion(-) create mode 100644 02/14.txt diff --git a/02/12.txt b/02/12.txt index e49baa6..bf1f0eb 100644 --- a/02/12.txt +++ b/02/12.txt @@ -1 +1 @@ -\v 12 \v 13 10 परमेश्वर हमर ताहिँ पवित्र आत्मासे बो प्रकट करीरहए ,। काहेकी पवित्र आत्मा प्रत्येक बात ढुड्त रहए, परमेश्वरको गहिरो-गहिरो बात फिर ढुडी रहए । 11 काहेकी आदमी भितर रहो भव अपन आत्माबाहेक कौन आदमीको विचारके बुझत हए? अइसी यत परमेश्वरको विचार परमेश्वरको आत्माबाहेक कोइ बुझ ना पात् हए । \ No newline at end of file +\v 13 \v 12 अब हम संसारको आत्मा ना पाए हँए, पर परमेश्वर हमके दौ भव वरदान बुझ्न सिकएँ कहिके बोसेपवित्र आत्मा पाए हँए । 13 जौन बात प्रचार करत हँए, बे बात आदमीको बुध्दिसे सिखओ शब्दमे नैयाँ, पर पवित्र आत्मासे सिखओ भव अनुसार हम आत्मिक शब्दमे आत्मिक सत्यताको अर्थ खोलत हँए । \ No newline at end of file diff --git a/02/14.txt b/02/14.txt new file mode 100644 index 0000000..c171c6f --- /dev/null +++ b/02/14.txt @@ -0,0 +1 @@ +\v 14 \v 15 \v 16 14 जौन आदमी आत्मिक नैयाँ, बो परमेश्वरको आत्माको बात ग्रहण ना करत हए । काहेकी बे बात बोके ताहिँ मूर्खता होतहँए, और बोके ना बुझ पात हए, काहेकी बे बात आत्मिक रितिसे मात्र चिनन् सिकत हए| 15 आत्मिक आदमी सबए बातको जाँच करत हए, पर बो कोइ आदमीसे ना जाँचैगो । 16 "काहेकी कौन प्रभुको मनके जानो हए? और कौन बाके सिखान सकैगो?” पर हमरसंग त ख्रीष्टको मन हए । " \ No newline at end of file