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# मैं लजाता नहीं
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पौलुस रोम में शुभ सन्देश सुनाने का कारण बताता है।
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# मैं सुसमाचार से नहीं लजाता
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इसका अनुवाद ऐसे भी किया जा सकता है, “चाहे कितने भी लोग मेरे द्वारा सुनाए गए इस सन्देश का तिरस्कार कर दें, मैं आत्म-विश्वास के साथ सुनाता हूँ।” )
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# इसलिए कि वह
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पौलुस समझता है कि वह आत्म-विश्वास से शुभ सन्देश क्यों सुनाता है।
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# “वह हर एक विश्वास करने वालों के लिए उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ्य है।
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“शुभ सन्देश के द्वारा परमेश्वर मसीह में विश्वास करने वाले हर एक मनुष्य का बड़े सामर्थ्य से उद्धार करता है”।
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# पहले तो यहूदी फिर यूनानी
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“यहूदियों को” और यूनानियों को”
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# पहले
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यूनानियों से पूर्व यहूदियों को यह शुभ सन्देश सुनाया गया था। अतः यहाँ इसका मूल हो सकता है, 1) समय के क्रम में पूर्व परन्तु इसका अर्थ यह भी हो सकता है, 2) “अत्यधिक महत्त्व में”।
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# परमेश्वर की धार्मिकता विश्वास से और विश्वास के लिए प्रगट होती है।
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“परमेश्वर ने प्रकट कर दिया है कि आरंभ से अन्त तक विश्वास ही के द्वारा मनुष्य धर्मी ठहरता है”। दूसरा अनुवाद, “परमेश्वर ने अपनी न्यायनिष्ठा विश्वास करनेवाले पर प्रकट की है और इसका परिणाम यह हुआ कि उनका विश्वास और अधिक हो गया है”। या “क्योंकि परमेश्वर विश्वासयोग्य है, वह अपनी धार्मिकता प्रकट करता है जिससे मनुष्यों का विश्वास बढ़ता है”।
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# विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।
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“परमेश्वर में विश्वास करनेवालों को परमेश्वर अपने साथ उचित संबन्ध में मानता है और वे सदा जीवित रहेंगे”।