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\c 14 \v 1 1 प्रेम तुमरो लक्ष्य बनाओ, और आत्मिक वरदानके ताहि उत्कट अभिलाषा राखओ, विशेष करके अगमवाणी बोलनके ताहि| \v 2 2 काहेकी अन्य भाषामे बोलनबारो आदमीसे नाए पर परमेश्वरसंग बोलत हए| बो का कहत हए कोइ बुझत नैयाँ पवित्र आत्मा रहस्यकी बात बोलत हए| \v 3 3 पर अगमवाणी बोलनबारो हरेक आदमीसंग बोलत हए बिनके आत्मिक वृध्दि, उत्साह और सान्तवनाके ताहि बो बोलत \v 4 हए|4 अन्य भाषा बोलनबारो अपन आत्मिक वृध्दि करत हए| पर अगमवाणी बोलनबारो मण्डलीको आत्मिक वृध्दि करत हए|