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\v 28 28 "पर कोइ आदमी तोके ""जा त बलिमे चढओ भव हए"" कही त बतान बारेके ताहिँ और ज्ञानके ताहिँ, मत खाओ| " \v 29 29 तिर नाए, पर बोके ज्ञानके ताहिँ मिर स्वतन्त्रताको न्याय और ज्ञानसे कही हुइ हए? \v 30 30 अगर धन्यवाद दैके मए खात हौ, कहिके धन्यवाद दैके खओ भव पाटीके ताहिँ काहे मिर निन्दा होए?