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\v 7 लकिन सबका ई बुधि नाहीं;केतना तव अब मूरत का कुछ समझ कय चड़ावा परसाद कुछ समझ कय खाय लागे,कमजोर बुधि के नाते अशुद्ध होय जाथे |