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\c 7 \v 1 1 उ सब बात के बारे म जवन तू लिखे हयो ,ई अच्छा बाय,की मर्द मेहरारू का न छुअए | 2 \v 2 लकिन व्यभिचार के डर के मारे हर मर्द कय मेहरारू ,अउर हर ऐक मेहरारू के मन्सेधु हुवय |
\c 7 \v 1 उ सब बात के बारे म जवन तू लिखे हयो ,ई अच्छा बाय,की मर्द मेहरारू का न छुअए | \v 2 लकिन व्यभिचार के डर के मारे हर मर्द कय मेहरारू ,अउर हर ऐक मेहरारू के मन्सेधु हुवय |

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\v 3 3 मर्द अपने मेहरारू कय हक़ पूरा करय,वैसय मेहरारू अपने मर्द कय हक़ पूरा करय | 4 \v 4 मेहरारू का अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मर्द कय बाय, वैसय मर्द कय अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मेहरारू कय बाय |
\v 3 मर्द अपने मेहरारू कय हक़ पूरा करय,वैसय मेहरारू अपने मर्द कय हक़ पूरा करय | \v 4 मेहरारू का अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मर्द कय बाय, वैसय मर्द कय अपने देहि पैय अधिकार नाही बल्कि मेहरारू कय बाय |

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\v 5 5 तू ऐक दुसरे से अलग न रहव,सिरिफ प्रार्थना की ताय वुहव सम्मत से फिर ऐक होई जाव कंहू यस न होय की सैतान मौका पाय कय परखय | 6 \v 6 लकिन हम जवन कही थान उ अनुमति हुए आज्ञा नाही | 7 \v 7 हम चाही थय की जयसैय हम हान वईसय सब होई जाय;लकिन हर ऐक विशेस विशेस वरदान मिला बाय ;केहू का कैसे तव केहू का कैसे |
\v 5 तू ऐक दुसरे से अलग न रहव,सिरिफ प्रार्थना की ताय वुहव सम्मत से फिर ऐक होई जाव कंहू यस न होय की सैतान मौका पाय कय परखय | \v 6 लकिन हम जवन कही थान उ अनुमति हुए आज्ञा नाही | \v 7 हम चाही थय की जयसैय हम हान वईसय सब होई जाय;लकिन हर ऐक विशेस विशेस वरदान मिला बाय ;केहू का कैसे तव केहू का कैसे |

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\v 8 8 लकिन हम उनकी ताय जवन अविबाहित अउर विधवा हए वे ऐसे रहंय जेस हम हांन | 9 \v 9 लकिन अगर वे संयम न कय सकय तव वियाह कय लिए,कहे से वियाह करब कामुकता करय से अच्छा बाय |
\v 8 लकिन हम उनकी ताय जवन अविबाहित अउर विधवा हए वे ऐसे रहंय जेस हम हांन | \v 9 लकिन अगर वे संयम न कय सकय तव वियाह कय लिए,कहे से वियाह करब कामुकता करय से अच्छा बाय |

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