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* पुराने नियम में परमेश्वर ने इस्राएल को बताया था कि उसने कौन-कौन से पशुओं को सांस्कारिक परिप्रेक्ष्य में “शुद्ध” और कौन-कौन से पशुओं को “अशुद्ध” घोषित किया है। केवल शुद्ध पशु ही खाने और बलि चढ़ाने के लिए काम में लिए जा सकते थे। इस संदर्भ में "शुद्ध" शब्द का अर्थ है कि पशु बलि चढ़ाने में परमेश्वर को ग्रहण योग्य है।
* जिस मनुष्य को कोई विशेष त्वचा रोग होता था वह अशुद्ध माना जाता था जब तक कि उसकी त्वचा रोगमुक्त न हो जाए कि संक्रमण न फैला पाए|\ त्वचा के शुद्धिकरण के निर्देशों का पालन करना आवश्यक था कि उस मनुष्य को पुनः “शुद्ध” घोषित किया जा सके|
* कभी-कभी “शुद्ध” शब्द का उपयोग लाक्षणिक भाषा में किया जाता था जिसका सन्दर्भ नैतिक शुद्धता से था अर्थात, पापिओं से "शुद्ध"
बाईबल में, "अशुद्ध" शब्द का उपयोग लाक्षणिक भाषा में उन वस्तुओं के सन्दर्भ में किया जाता था जिनको परमेश्वर ने अपनी प्रजा के लिए स्पर्श, भोजन और बलि चडाने के लिए योग्य ठराया था|
बाईबल में, "अशुद्ध" शब्द का उपयोग लाक्षणिक भाषा में उन वस्तुओं के सन्दर्भ में किया जाता था जिनको परमेश्वर ने अपनी प्रजा के लिए स्पर्श, भोजन और बलि चडाने के लिए योग्य ठराया था|
*परमेश्वर ने इस्राएलियों को निर्देश दीए थे कि कौन से पशु "शुद्ध" हैं और कौन से पशु"अशुद्ध" हैं| अशुद्ध पशुओं को न तो खाने के लिए और न ही बलि चढ़ाने के लिए काम में लिया जाना था|
* कुछ विशेष प्रकार के चर्म रोगियों को भी "अशुद्ध" घोषित कर दिया जाता था, जब तक कि वे रोगमुक्त न हो जाएं|
* यदि इस्राएली किसी "अशुद्ध" वस्तु के संपर्क में आ जाते थे तो वे कुछ समय के लिए अशुद्ध माने जाते थे|
* अशुद्ध वस्तु का स्पर्श न करने और अशुद्ध पशु को न खाने के सम्बन्ध में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने से इस्राएली परमेश्वर की सेवा निमित्त पृथक होते थे|
*यह शारीरिक और सांस्कारिक अशुद्धता नैतिक अशुद्धता की द्योतक भी थी|
* एक और लाक्षणिक प्रयोग में, "अश्द्ध आत्मा" दुष्टात्मा के सन्दर्भ में है|
## अनुवाद के सुझाव: ##