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# प्रेम, प्रेम करता है, प्रिय, प्रेम किया #
# प्रेम, प्रिय,
## परिभाषा: ##
## परिभाषा:
किसी मनुष्य से प्रेम करने का अर्थ है, उस मनुष्य की सुधि लेना और उसे लाभ पहुंचाने के काम करना। “प्रेम” के विभिन्न अर्थ होते हैं जिनके लिए विभिन्न भाषाओं में विभिन्न शब्द होते हैं।
परमेश्वर का प्रेम मनुष्य की भलाई पर केन्द्रित होता है चाहे उसमें स्वयं का लाभ न हो। ऐसा प्रेम जो मनुष्यों की परवाह करता है चाहे वे कुछ भी करते हों। परमेश्वर स्वयं प्रेम है और सच्चे प्रेम का स्रोत है।
1. परमेश्वर के जैसा प्रेम मनुष्य की भलाई पर केन्द्रित होता है चाहे उसमें स्वयं का लाभ न हो। ऐसा प्रेम जो मनुष्यों की सुधि रखता है चाहे वे कुछ भी करते हों। परमेश्वर स्वयं प्रेम है और सच्चे प्रेम का स्रोत है।
* यीशु ने इस प्रेम का प्रदर्शन किया कि ह कि पाप और मृत्यु से बचाने के लिए अपने आपको बलि चढ़ा दिया। उसने अपने अनुयायियों को सिखाया कि निस्वार्थ प्रेम करें।
* जब लोग इस तरह के प्रेम से दूसरों को प्रेम करते हैं, तो वे उन तरीकों से कार्य करते हैं जो वे यह सोचते हैं कि दूसरों के विकास के लिए क्या कारण होगा। ऐसा प्रेम विशेष करके दूसरों को क्षमा करता है।
* यू.एल.बी. में “प्रेम” शब्द ऐसा ही आत्म त्याग या प्रेम है जब तक कि अनुवाद की टिप्पणी भिन्न अर्थ की व्याख्या न करे।
* यीशु ने इस प्रेम का प्रदर्शन किया कि हमें कि पाप और मृत्यु से बचाने के लिए अपने आपको बलि चढ़ा दिया। उसने अपने अनुयायियों को भी सिखाया कि निस्वार्थ प्रेम करें।
* जब लोग मनुष्यों से ऐसा प्रेम रखते हैं तब उनका व्यवहार प्रकट करता है कि उनके मन में मनुष्यों की उन्नति के विचार हैं| ऐसा प्रेम विशेष करके दूसरों को क्षमा करता है।
* ULT में “प्रेम” शब्द ऐसे ही आत्मत्याग के प्रेम को संदर्भित करता है जब तक कि अनुवाद की टिप्पणी भिन्न अर्थ की व्याख्या न करे।
नये नियम में शब्द का एक और संदर्भ है, भाईचारे का प्रेम या “मित्र का प्रेम या पारिवारिक सदस्य का प्रेम”
2. नये नियम में एक और शब्द है जो भाईचारे के प्रेम या मित्र के प्रेम या परिवार के किसी सदस्य से प्रेम करने को दर्शाता है|
* यह शब्द मित्रों और परिजनों के प्राकृतिक मानव प्रेम का संदर्भ देता है।
* इस का उपयोग ऐसे संदर्भों में भी हो सकता है जैसे वे भोज में महत्वपूर्ण स्थानों में बैठने की इच्छा रखते हैं। अर्थात उन्हें ऐसा करने की “अत्यधिक लालसा” या “ गहरी इच्छा”
* इस का उपयोग ऐसे संदर्भों में भी हो सकता है जैसे वे भोज में महत्वपूर्ण स्थानों में बैठने की इच्छा रखते हैं। अर्थात उनें ऐसा करने की “अत्यधिक लालसा” या “ गहरी इच्छा” है|
“प्रेम” शब्द का संदर्भ स्त्री-पुरूष में प्रसंगयुक्त संबन्धित प्रेम।
प्रतीकात्मक रूप में, “मैंने याकूब से प्रेम किया है और एसाव को अप्रिय जाना है।” यहां “प्रेम” शब्द का आशय है कि परमेश्वर ने याकूब को चुना कि परमेश्वर के साथ वाचा के संबंध में रहे। इसका अनुवाद “चुना” भी हो सकता है। यद्यपि एसाव को भी परमेश्वर ने आशिषें दी थी, उसे वाचा के संबन्ध के सौभाग्य प्राप्त नहीं थे। “अप्रिय” शब्द का प्रतीकात्मक उपयोग किया गया है जिसका अर्थ है “परित्याग किया” या “नहीं चुना।”
3. “प्रेम” शब्द का संदर्भ स्त्री-पुरूष के मध्य भावुक प्रेम से भी है।
## अनुवाद के लिए सुझाव: ##
* जब तक कि अनुवाद से संबन्धित टिप्पणी में अन्य अर्थ समझाया न जाए यू.एल.बी. में “प्रेम” शब्द परमेश्वर से प्राप्त आत्मत्याग के प्रेम का संदर्भ देता है।
* जब तक कि अनुवाद से संबन्धित टिप्पणी में अन्य अर्थ समझाया न जाए ULT में “प्रेम” शब्द परमेश्वर से प्राप्त आत्मत्याग के प्रेम का संदर्भ देता है।
* कुछ भाषाओं में परमेश्वर के निःस्वार्थ, आत्मत्याग के प्रेम के लिए विशेष शब्द हो सकता है। इस शब्द के अनुवाद हो सकते हैं, “समर्पित निष्ठावान देखरेख” या “निःस्वार्थ सेवा करना” या “परमेश्वर का प्रेम।” सुनिश्चित करें कि परमेश्वर के प्रेम का अनुवाद हो सकता है, अन्यों के लाभ के निमित्त अपनी इच्छाओं को मारना और कोई कुछ भी करे उनसे प्रेम निभाते रहना।
* कभी-कभी “प्रेम” शब्द का अर्थ होता है मित्रों और पारिवारिक सदस्यों के लिए अगाध सेवाभाव रखना। कुछ भाषाओं में इस शब्द का अनुवाद ऐसे शब्द या उक्ति से किया जा सकता है जिसका अर्थ है, “बहुत प्रिय समझना” या “सुधि लेना” या “गहरा लगाव होना।”
* जिन संदर्भों में प्रेम शब्द किसी के प्रति प्रबल अनुराग व्यक्त करे तो उस का अनुवाद हो सकता है, “प्रबल अधिमान्यता” या “बहुत अधिक चाहना” या “अत्यधिक पसन्द करना”।
* कुछ भाषाओं में एक अलग शब्द होता है जिसके द्वारा पति-पत्नी के बीच प्रसंगयुक्त सम्बन्धित प्रेम या यौन संबन्धित प्रेम को व्यक्त किया जाता है।
* कुछ भाषाओं में पति-पत्नी के बीच भावुक या यौन संबन्धित प्रेम को व्यक्त करने के लिए एक सर्वथा भिन्न शब्द होता है।
* अनेक भाषाओं में "प्रेम" शब्द को क्रिया रूप में व्यक्त करना होता है। उदाहरणार्थ उनमें “प्रेम धीरजवन्त है, प्रेम दयालु है, इस उक्ति का अनुवाद हो सकता है, “जब कोई किसी से प्रेम करता है, वह उसके साथ सहनशीलता दिखाता है, उस पर दया करता है।”
(यह भी देखें: [वाचा](../kt/covenant.md), [मृत्यु](../other/death.md), [बलिदान](../other/sacrifice.md), [बचाना](../kt/save.md), [पाप](../kt/sin.md))
(यह भी देखें: [वाचा](../kt/covenant.md), [मृत्यु](../other/death.md), [बलिदान](../other/sacrifice.md), [उद्धार](../kt/save.md), [पाप](../kt/sin.md))
## बाइबल संदर्भ: ##
* [1 कुरिन्थियों 13:4-7](rc://en/tn/help/1co/13/04)
* [1 यूहन्ना 03:1-3](rc://en/tn/help/1jn/03/01)
* [1 थिस्सलुनीकियों 04:9-12](rc://en/tn/help/1th/04/09)
* [गलातियों 05:22-24](rc://en/tn/help/gal/05/22)
* [उत्पत्ति 29:15-18](rc://en/tn/help/gen/29/15)
* [यशायाह 56:6-7](rc://en/tn/help/isa/56/06)
* [यिर्मयाह 02:1-3](rc://en/tn/help/jer/02/01)
* [यूहन्ना 03: 16-18](rc://en/tn/help/jhn/03/16)
* [मत्ती 10:37-39](rc://en/tn/help/mat/10/37)
* [नहेमायाह 09:32-34](rc://en/tn/help/neh/09/32)
* [फिलिप्पियों 1: 9-11](rc://en/tn/help/php/01/09)
* [श्रेष्ठगीत 01:1-4](rc://en/tn/help/sng/01/01)
* [1 कुरिन्थियों 13:7](rc://hi/tn/help/1co/13/07)
* [1 यूहन्ना 3:2](rc://hi/tn/help/1jn/03/02)
* [1 थिस्सलुनीकियों 4:10](rc://hi/tn/help/1th/04/10)
* [गलातियों 5:23](rc://hi/tn/help/gal/05/23)
* [उत्पत्ति 29:18](rc://hi/tn/help/gen/29/18)
* [यशायाह 56:6](rc://hi/tn/help/isa/56/06)
* [यिर्मयाह 2:2](rc://hi/tn/help/jer/02/02)
* [यूहन्ना 3: 16](rc://hi/tn/help/jhn/03/16)
* [मत्ती 10:37](rc://hi/tn/help/mat/10/37)
* [नहेमायाह 9:32-34](rc://hi/tn/help/neh/09/32)
* [फिलिप्पियों 1: 9](rc://hi/tn/help/php/01/09)
* [श्रेष्ठगीत 1:2](rc://hi/tn/help/sng/01/01)
## बाइबल कहानियों से उदाहरण: ##
## बाइबल की कहानियों के उदाहरण:
* __[27:02](rc://en/tn/help/obs/27/02)__ व्यवस्थापक ने उत्तर दिया, “तू अपने परमेश्वर से अपने सारे ह्रदय, आत्मा, शक्ति और ,मन से __प्रेम__ रखना। और अपने पड़ोसी से अपने समान __प्रेम__ करना।”
* __[27:02](rc://en/tn/help/obs/27/02)__ व्यवस्थापक ने उत्तर दिया, “तू अपने परमेश्वर से अपने सारे ह्रदय, आत्मा, शक्ति और ,मन से __प्रेम__ रख और अपने पड़ोसी से अपने समान __प्रेम__ रख।”
* __[33:08](rc://en/tn/help/obs/33/08)__ “कंटीली भूमि वे व्यक्ति है जिन्होंने वचन सुना, और संसार की चिन्ता और धन का धोखा, और अन्य वस्तुओं का लोभ उनमें समाकर परमेश्वर के लिए उसके __प्रेम__ को दबा देता है।”
* __[36:05](rc://en/tn/help/obs/36/05)__ जैसे पतरस बोल ही रहा था कि एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला : “ यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे में __प्रेम__ करता हूँ”
* __[39:10](rc://en/tn/help/obs/39/10)__ हर वह व्यक्ति जिसे सच्चाई से __प्रेम__ है, मुझे सुनेगा।”
* __[47:01](rc://en/tn/help/obs/47/01)__ वह(लुदिया) बहुत __प्रेम__ के साथ प्रभु की आराधना करती थी।
* __[48:01](rc://en/tn/help/obs/48/01)__परमेश्वर ने जब संसार की सृष्टि की , तो सब कुछ एकदम सही था। संसार में कोई पाप नहीं था। आदम और हव्वा एक-दूसरे से वा परमेश्वर से __प्रेम__ करते थे।
* __[49:03](rc://en/tn/help/obs/49/03)__उसने(यीशु) सिखाया कि तुम्हें दूसरे लोगों को उसी तरह प्रेम करना है जैसे कि आप स्वयं से प्रेम करते हैं।
* __[49:04](rc://en/tn/help/obs/49/04)__ उसने(यीशु) यह भी सिखाया कि तुम्हें किसी भी चीज़, अपनी सम्पत्ति से भी ज्यादा परमेश्वर को __प्रेम__ करना चाहिए।
* __[49:07](rc://en/tn/help/obs/49/07)__ यीशु ने सिखाया कि परमेश्वर पापियों से बहुत __प्रेम__ करता है।
* __[49:09](rc://en/tn/help/obs/49/09)__ लेकिन परमेश्वर ने जगत के हर मनुष्य से इतना अधिक __प्रेम__ किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई यीशु पर विश्वास करे उसे उसके पापों का दण्ड नहीं मिलेगा, परन्तु हमेशा परमेश्वर के साथ रहेगा
* __[49:13](rc://en/tn/help/obs/49/13)__ परमेश्वर तुमसे __प्रेम__ करता है और चाहता है कि तुम यीशु पर विश्वास करो ताकि वह तुमसे एक निकटतम सम्बन्ध स्थापित रख सके।
* __[48:1](rc://hi/tn/help/obs/48/01)__परमेश्वर ने जब संसार की सृष्टि की , तो सब कुछ बहुर अच्छा था। संसार में कोई पाप नहीं था। आदम और हव्वा एक-दूसरे से और परमेश्वर से __प्रेम__ करते थे।
* __[49:3](rc://hi/tn/help/obs/49/03)__उसने(यीशु) सिखाया कि तुम्हें दूसरे लोगों से उसी तरह प्रेम करना है जैसे कि तुम स्वयं से प्रेम करते हैं।
* __[49:4](rc://hi/tn/help/obs/49/04)__ उसने(यीशु) यह भी सिखाया कि तुम्हें किसी भी चीज़, अपनी सम्पत्ति से भी ज्यादा परमेश्वर को __प्रेम__ करना चाहिए।
* __[49:7](rc://hi/tn/help/obs/49/07)__ यीशु ने सिखाया कि परमेश्वर पापियों से बहुत __प्रेम__ करता है।
* __[49:9](rc://hi/tn/help/obs/49/09)__ लेकिन परमेश्वर ने जगत के हर मनुष्य से इतना अधिक __प्रेम__ किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो कोई यीशु पर विश्वास करे उसे उसके पापों का दण्ड नहीं मिले, परन्तु हमेशा परमेश्वर के साथ रहे।
* __[49:13](rc://hi/tn/help/obs/49/13)__ परमेश्वर तुमसे __प्रेम__ करता है और चाहता है कि तुम यीशु पर विश्वास करो ताकि वह तुमसे घनिष्ठ सम्बन्ध बनाए रखे।
## शब्द तथ्य: ##
## शब्द तथ्य:
* Strong's: H157, H158, H159, H160, H2245, H2617, H2836, H3039, H4261, H5689, H5690, H5691, H7355, H7356, H7453, H7474, G25, G26, G5360, G5361, G5362, G5363, G5365, G5367, G5368, G5369, G5377, G5381, G5382, G5383, G5388
* स्ट्रोंग्स: H0157, H0158, H0159, H0160, H2245, H2617, H2836, H3039, H4261, H5689, H5690, H5691, H7355, H7356, H7453, H7474, G00250, G00260, G53600, G53610, G53620, G53630, G53650, G53670, G53680, G53690, G53770, G53810, G53820, G53830, G53880