* “प्रचार” अर्थात आत्मिक या नैतिक सत्य की उद्घोषणा करना और श्रोताओं से प्रतिक्रिया का आग्रह करना। “शिक्षण” में निर्देशनों पर बल दिया जाता है, अर्थात् मनुष्यों को जानकारी देना या उन्हें शिक्षण देना की उन्हें कैसे कार्य करना है।
* __[24:02](rc://en/tn/help/obs/24/02)__ यूहन्ना ने उनसे कहा, “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है !”
* __[30:01](rc://en/tn/help/obs/30/01)__ यीशु ने __प्रचार करने__ के लिए और कई अलग- अलग नगरों में लोगों को सिखाने के लिए अपने शिष्यों को भेजा।
* __[38:01](rc://en/tn/help/obs/38/01)__ यीशु मसीह के सार्वजनिक उपदेशों के तीन साल बाद अपना पहला उपदेश शुरू किया। यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वह यरूशलेम में उनके साथ फसह का जश्न मनाना चाहता था, और यह वही जगह है जहाँ उसे मार डाला जाएगा।
* __[45:06](rc://en/tn/help/obs/45/06)__ तथापि, जहा कही भी वह गए, हर जगह यीशु मसीह का __प्रचार करते रहे__|
* __[45:07](rc://en/tn/help/obs/45/07)__ वह सामरिया नगर में गया और वहा लोगों को यीशु के बारे में बताया और बहुत से लोगों बचाए गए |
* __[46:06](rc://en/tn/help/obs/46/06)__तुरन्त ही, शाऊल दमिश्क के यहूदियों से __प्रचार करने लगा__ कि, "यीशु परमेश्वर का पुत्र है!"
* __[46:10](rc://en/tn/help/obs/46/10)__ फिर कलीसिया ने उन्हें कई अन्य स्थानों में यीशु के बारे में __प्रचार करने__ के लिये भेज दिया |
* __[47:14](rc://en/tn/help/obs/47/14)__ पौलुस और अन्य मसीही अगुवों ने अनेक शहरों में यीशु का __प्रचार किया__ और लोगों को परमेश्वर के वचन की शिक्षा दी।
* __[50:02](rc://en/tn/help/obs/50/02)__ जब यीशु पृथ्वी पर रहता था तो उसने कहा, "मेरे चेले दुनिया में हर जगह लोगों को परमेश्वर के राज्य के बारे में शुभ समाचार का __प्रचार करेंगे__, और फिर अन्त आ जाएगा।"