“अधिकारी होना" और "अधिकार" ये दोंनों शब्द प्रायः किसी वस्तु के स्वामीत्व को दर्शाते हैं। इनका अर्थ किसी वस्तु पर अधिकार करना भी है या भूमि पर अधिकार करना भी है.
* पुराने नियम में ये शब्द “भूमि पर अधिकार” या “अधिकार करने” के संदर्भ में उपयोग किए गए हैं.
* यहोवा ने इस्राएलियों को आज्ञा दी कि वे कनान देश पर “अधिकार” करें तो इसका अर्थ था कि वे उस देश में जाकर वहां रहें। इस अभियान में पहले वहां के निवासियों,कनानिओं को जीतना था.
* परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा था कि उसने उन्हें वह देश उनकी संपदा होने के लिए दे दिया गया है. * इसका अनुवाद हो सकता है, “उनका अधिकृत निवास स्थान.”
* इस्राएल को यहोवा की “विशिष्ट संपदा” भी कहा गया है. इसका अर्थ है कि वे उसके अपने लोग थे जिन्हें उसने विशेष करके अपनी आराधना और सेवा के लिए बुलाया था.
* “अधिकारी होना” का अनुवाद “स्वामी होना” या “रखना” या “अधिकार रखना” भी हो सकता है.
* “पर अधिकार करो” का अनुवाद “वश में करो” या “अधिग्रहण करो” “वहां रहो”-प्रकरण के अनुसार अनुवाद करें.
* मनुष्यों की संपदा के संदर्भ में “संपदा” का अनुवाद किया जा सकता है,“सामान” या “सम्पत्ति” या “अधिकार की वस्तुएं” या “जो वस्तुओं के वे स्वामी हैं.”
* यहोवा इस्राएल को “मेरी विशिष्ट संपदा" कहता है इसका अनुवाद हो सकता है,“मेरे विशेष लोग” या “मेरे लोग” या “मेरे लोग जिन से मैं प्रेम करता हूं और जिन पर मैं राज करता हूं.”
* भूमि के संबन्ध में जब कहा गया है, “वे उनका भाग होंगे” तो इसका अर्थ है, “वे उस भूमि के अधिकारी होंगे” या “वह देश उनका होगा.”
* “उसके पास पाया गया” का अनुवाद होगा,“वह रखे हुए था” या “उसके पास था.”
* “तुम्हारा निज भाग” का अनुवाद होगा,“जैसे कोई वास्तु जो तुम्हारी है" या “जैसे एक स्थान जहाँ तुम रहोगे.”
* “उसके अधिकार में" इसका अनुवाद हो सकता है,“जो उसके अधिकार में था” या “जो उसका था."