“शुद्ध” अर्थात निर्दोष या “ऐसी कोई वस्तु मिश्रित न हो जो नहीं होनी चहिए। किसी वस्तु को शुद्ध करना अर्थात उसे किसी भी अशुद्ध या दूषित करनेवाली वस्तु से मुक्त करना।
* पुराने नियम के आदेशों के अनुसार “शुद्ध करना” और “शुद्ध होना” मुख्यतः किसी वस्तु या मनुष्य को एसी बातों से शुद्ध करना जो वस्तु या मनुष्य को अशुद्ध बनती है जैसे रोग, शारीरिक स्राव या प्रसव से।
* पुराने नियम में मनुष्यों का पापों से शोधन के भी नियम थे कि पापों से कैसे शुद्ध या मुक्त हुआ जाए- पशुओं के बलिदान से। परन्तु यह एक अस्थाई व्यवस्था थी, अतः बलि बार-बार चढ़ानी होती थी।
* नये नियम में शुद्ध होने का अर्थ है पापमार्जन।
* मनुष्यों के लिए पूर्ण एवं सिद्ध पाप शोधन केवल मन फिराव और यीशु में तथा उसके बलिदान में विश्वास के द्वारा परमेश्वर की क्षमा से क्षमा प्राप्त करने से होता है।