“दुःख देने” अर्थात घोर कष्ट देना। किसी को दुःख देने का अर्थ है निर्दयता से सताना।
* कभी-कभी दुःख देने का संदर्भ शारीरिक कष्ट एवं व्यथा से होता है। उदाहरण के लिए, प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में शारीरिक यातना का वर्णन किया गया है जो "पशु" के पूजकों को अंत के समय में भुगतना पड़ेगा।
* पीड़ा आत्मिक एवं मानसिक व्यथा भी होती है जैसा अय्यूब के साथ था।
* प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के अनुसार यीशु में विश्वास नहीं करनेवालों को आग की झील में आत्मिक अनन्त पीड़ा सहनी होगी।
* इस शब्द का अनुवाद, “भयानक कष्ट” या “घोर कष्ट” या “क्लेश” हो सकता है। कुछ अनुवादों में स्पष्टता हेतु “शारीरिक” या “आत्मिक” शब्द को इसके साथ जोड़ दिया जाता है।