* अनेक संस्कृतियों में विलाप के लिए विशिष्ट बाहरी व्यवहार होता है जिससे दुःख एवं शोक प्रकट होता है।
* प्राचीन युग में इस्राएल और अन्य जातियां ऊंचे स्वर में रोकर और शोक प्रकट करके दुःख व्यक्त करते थे। वे टाट के बने वस्त्र पहन कर और सिर में राख डालते थे।
* भाड़े के शोक मनाने वाले भी होते थे, प्रायः स्त्रियाँ, वे मृत्यु के समय से लेकर दफन तक रोती और विलाप करती थी।
* शोक का समय सात दिन होता था परन्तु तीस दिन तक भी होता था (जैसे मूसा और हारून के लिए था) या सत्तर दिन (जैसा याकूब के लिए किया गया था)
* बाइबल इस शब्द का प्रतीकात्मक उपयोग भी करती है पाप के लिए “विलाप करना”। इसका संदर्भ गहरे दुःख की भावना से है क्योंकि पाप परमेश्वर और मनुष्य को कष्ट पहुँचाता है।