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\id JHN
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\ide UTF-8
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
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\h यूहन्ना
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\toc1 यूहन्ना रचित सुसमाचार
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\toc2 यूहन्ना
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\toc3 यूह.
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\mt यूहन्ना रचित सुसमाचार
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\is लेखक
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\ip जब्दी का पुत्र यूहन्ना इस पुस्तक का लेखक है। जैसा कि यूह. 21:20,24 से स्पष्ट होता है कि यह वृत्तान्त उस चेले ने लिखा “जिस शिष्य को यीशु प्यार करता था” और यूहन्ना स्वयं अपने लिए लिखता है, “चेला जिससे यीशु प्रेम रखता था।” वह और उसका भाई याकूब “गर्जन के पुत्र” कहलाते थे (मर. 3:17)। उन्हें यीशु के जीवन की घटनाओं का आँखों देखा गवाह बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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\is लेखन तिथि एवं स्थान
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\ip लगभग ई.स. 50 - 90
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\ip यूहन्ना का यह शुभ सन्देश वृत्तान्त सम्भवतः इफिसुस से लिखा गया था, लेखन के मुख्य स्थान यहूदिया का ग्रामीण क्षेत्र, सामरिया, गलील, बैतनिय्याह और यरूशलेम रहे होंगे।
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\is प्रापक
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\ip यूहन्ना रचित शुभ सन्देश वृत्तान्त यहूदियों के लिए लिखा गया था। उसने यहूदियों को यह प्रमाणित करने के लिए यह वृत्तान्त लिखा था कि यीशु ही मसीह है उसने जानकारियाँ इसलिए दीं कि वे “विश्वास करें कि यीशु ही मसीह है और विश्वास करके उसके नाम में जीवन पाएँ।”
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\is उद्देश्य
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\ip यूहन्ना के शुभ सन्देश वृत्तान्त का उद्देश्य है कि, “मसीही विश्वासियों को विश्वास में दृढ़ करके सुरक्षित किया जाये।” जैसा कि यूहन्ना 20:31 में स्पष्ट व्यक्त किया गया है, “ये इसलिए लिखे गये हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।” यूहन्ना प्रकट रूप से घोषणा करता है कि यीशु परमेश्वर है (यूह. 1:1), जिसने सब वस्तुओं को सृजा (यूह. 1:3)। वह ज्योति है (यूह. 1:4; 8:12) और जीवन है (यूह. 1:4; 5:26, 14:6)। यह वृत्तान्त यूहन्ना ने मसीह को परमेश्वर पुत्र सिद्ध करने के लिए भी लिखा था।
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\is मूल विषय
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\ip यीशु—परमेश्वर का पुत्र
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\iot रूपरेखा
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\io1 1. यीशु जीवन का कर्ता है — 1:1-18
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\io1 2. प्रथम शिष्य को बुलाना — 1:19-51
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\io1 3. यीशु की सार्वजनिक सेवा — 2:1-16:33
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\io1 4. प्रधान पुरोहित स्वरूप प्रार्थना — 17:1-26
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\io1 5. मसीह का क्रूसीकरण एवं पुनरूत्थान — 18:1-20:10
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\io1 6. यीशु की पुनरूत्थान सेवा — 20:11-21:25
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\c 1
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\s आदि में वचन था
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\p
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\v 1 \it आदि में\it*\f + \fr 1:1 \fq आदि में: \ft इसका अर्थ यह है कि संसार की सृष्टि के पहले से ही “वचन” का अस्तित्व था। वचन यूनानी में यह ‘लोगोस’ के रूप में जाना जाता हैं, एक ‘वचन’ जिसके द्वारा हम दूसरों से बातचीत करते हैं।\f* वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।
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\v 2 यही आदि में परमेश्वर के साथ था।
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\v 3 सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।
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\v 4 \it उसमें जीवन था\it*\f + \fr 1:4 \fq उसमें जीवन था: \ft परमेश्वर “जीवन” है या “जीवित” परमेश्वर है, घोषित किया गया हैं, क्योंकि वह स्रोत या जीवन का सोता है\f*; और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।
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\v 5 और ज्योति अंधकार में चमकती है; और अंधकार ने उसे ग्रहण न किया।
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\p
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\v 6 एक मनुष्य परमेश्वर की ओर से भेजा हुआ, जिसका नाम यूहन्ना था।
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\v 7 यह गवाही देने आया, कि ज्योति की गवाही दे, ताकि सब उसके द्वारा विश्वास लाएँ।
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\v 8 वह आप तो वह ज्योति न था, परन्तु उस ज्योति की गवाही देने के लिये आया था।
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\p
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\v 9 सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी।
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\v 10 वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहचाना।
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\v 11 वह अपने घर में आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया।
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\v 12 परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं
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\v 13 वे न तो लहू से, न शरीर की इच्छा से, न मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं।
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\p
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\v 14 और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। \bdit (1 यूह. 4:9) \bdit*
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\v 15 यूहन्ना ने उसके विषय में गवाही दी, और पुकारकर कहा, “यह वही है, जिसका मैंने वर्णन किया, कि जो मेरे बाद आ रहा है, वह मुझसे बढ़कर है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।”
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\v 16 क्योंकि उसकी परिपूर्णता से हम सब ने प्राप्त किया अर्थात् अनुग्रह पर अनुग्रह।
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\v 17 इसलिए कि व्यवस्था तो मूसा के द्वारा दी गई, परन्तु अनुग्रह और सच्चाई यीशु मसीह के द्वारा पहुँची।
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\v 18 \it परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा\it*\f + \fr 1:18 \fq परमेश्वर को किसी ने कभी नहीं देखा: \ft यह घोषणा सम्भवतः किसी भी पिछले वितरण से ऊपर यीशु के रहस्योद्घाटन की श्रेष्ठता दिखाने के लिए की गई है\f*, एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में हैं, उसी ने उसे प्रगट किया।
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\s यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की गवाही
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\p
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\v 19 यूहन्ना की गवाही यह है, कि जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उससे यह पूछने के लिये भेजा, “तू कौन है?”
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\v 20 तो उसने यह मान लिया, और इन्कार नहीं किया, परन्तु मान लिया “मैं मसीह नहीं हूँ।”
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\v 21 तब उन्होंने उससे पूछा, “तो फिर कौन है? क्या तू एलिय्याह है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।” “तो क्या तू वह भविष्यद्वक्ता है?” उसने उत्तर दिया, “नहीं।”
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\v 22 तब उन्होंने उससे पूछा, “फिर तू है कौन? ताकि हम अपने भेजनेवालों को उत्तर दें। तू अपने विषय में क्या कहता है?”
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\v 23 उसने कहा, “जैसा यशायाह भविष्यद्वक्ता ने कहा है, ‘मैं जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हूँ कि तुम प्रभु का मार्ग सीधा करो।’” (यशा. 40:3)
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\p
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\v 24 ये फरीसियों की ओर से भेजे गए थे।
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\v 25 उन्होंने उससे यह प्रश्न पूछा, “यदि तू न मसीह है, और न एलिय्याह, और न वह भविष्यद्वक्ता है, तो फिर बपतिस्मा क्यों देता है?”
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\v 26 यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “मैं तो जल से बपतिस्मा देता हूँ, परन्तु तुम्हारे बीच में एक व्यक्ति खड़ा है, जिसे तुम नहीं जानते।
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\v 27 अर्थात् मेरे बाद आनेवाला है, जिसकी जूती का फीता मैं खोलने के योग्य नहीं।”
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\v 28 ये बातें यरदन के पार बैतनिय्याह में हुईं, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।
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\s परमेश्वर का मेम्ना
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\p
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\v 29 दूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, “देखो, यह \it परमेश्वर का मेम्ना\it*\f + \fr 1:29 \fq परमेश्वर का मेम्ना: \ft एक “मेम्ना” यहूदियों के बीच, मिस्र से अपने उद्धार के उपलक्ष्य में फसह पर मारा और खाया जाता था। निर्गमन 12:3-11\f* है, जो जगत के पाप हरता है। \bdit (1 पत. 1:19, यशा. 53:7) \bdit*
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\v 30 यह वही है, जिसके विषय में मैंने कहा था, कि एक पुरुष मेरे पीछे आता है, जो मुझसे श्रेष्ठ है, क्योंकि वह मुझसे पहले था।
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\v 31 और मैं तो उसे पहचानता न था, परन्तु इसलिए मैं जल से बपतिस्मा देता हुआ आया, कि वह इस्राएल पर प्रगट हो जाए।”
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\v 32 और यूहन्ना ने यह गवाही दी, “मैंने आत्मा को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा है, और वह उस पर ठहर गया।
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\v 33 और मैं तो उसे पहचानता नहीं था, परन्तु जिसने मुझे जल से बपतिस्मा देने को भेजा, उसी ने मुझसे कहा, ‘जिस पर तू आत्मा को उतरते और ठहरते देखे; वही पवित्र आत्मा से बपतिस्मा देनेवाला है।’
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\v 34 और मैंने देखा, और गवाही दी है कि यही परमेश्वर का पुत्र है।” \bdit (भज. 2:7) \bdit*
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\s यीशु के प्रथम चेले
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\p
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\v 35 दूसरे दिन फिर यूहन्ना और उसके चेलों में से दो जन खड़े हुए थे।
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\v 36 और उसने यीशु पर जो जा रहा था, दृष्टि करके कहा, “देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है।”
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\v 37 तब वे दोनों चेले उसकी सुनकर यीशु के पीछे हो लिए।
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\v 38 यीशु ने मुड़कर और उनको पीछे आते देखकर उनसे कहा, \wj “तुम किसकी खोज में हो?”\wj* उन्होंने उससे कहा, “हे रब्बी, (अर्थात् हे गुरु), तू कहाँ रहता है?”
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\v 39 उसने उनसे कहा, \wj “चलो, तो देख लोगे।”\wj* तब उन्होंने आकर उसके रहने का स्थान देखा, और उस दिन उसी के साथ रहे; और यह दसवें घंटे के लगभग था।
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\p
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\v 40 उन दोनों में से, जो यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे हो लिए थे, एक शमौन पतरस का भाई अन्द्रियास था।
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\v 41 उसने पहले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उससे कहा, “हमको ख्रिस्त अर्थात् मसीह मिल गया।” \bdit (यूह. 4:25) \bdit*
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\v 42 वह उसे यीशु के पास लाया: यीशु ने उस पर दृष्टि करके कहा, \wj “तू यूहन्ना का पुत्र शमौन है, तू\wj* \it \+wj कैफा\f + \fr 1:42 \fq कैफा: \ft यह एक सिरिएक शब्द है, उसी के समान यूनानी में इसका मतलब पतरस, एक पत्थर है।\f*\+wj*\it* \wj अर्थात् पतरस कहलाएगा।”\wj*
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\s फिलिप्पुस और नतनएल का बुलाया जाना
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\p
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\v 43 दूसरे दिन यीशु ने गलील को जाना चाहा, और फिलिप्पुस से मिलकर कहा, \wj “मेरे पीछे हो ले।”\wj*
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\v 44 फिलिप्पुस तो अन्द्रियास और पतरस के नगर बैतसैदा का निवासी था।
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\v 45 फिलिप्पुस ने नतनएल से मिलकर उससे कहा, “जिसका वर्णन मूसा ने व्यवस्था में और भविष्यद्वक्ताओं ने किया है, वह हमको मिल गया; वह यूसुफ का पुत्र, यीशु नासरी है।” \bdit (मत्ती 21:11) \bdit*
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\v 46 नतनएल ने उससे कहा, “क्या कोई अच्छी वस्तु भी नासरत से निकल सकती है?” फिलिप्पुस ने उससे कहा, “चलकर देख ले।”
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\v 47 यीशु ने नतनएल को अपनी ओर आते देखकर उसके विषय में कहा, \wj “देखो, यह सचमुच इस्राएली है: इसमें कपट नहीं।”\wj*
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\v 48 नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “इससे पहले कि फिलिप्पुस ने तुझे बुलाया, जब तू अंजीर के पेड़ के तले था, तब मैंने तुझे देखा था।”\wj*
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\v 49 नतनएल ने उसको उत्तर दिया, “हे रब्बी, तू परमेश्वर का पुत्र हे; तू इस्राएल का महाराजा है।”
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\v 50 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “मैंने जो तुझ से कहा, कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के तले देखा, क्या तू इसलिए विश्वास करता है? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।”\wj* \bdit (यूह. 11:40) \bdit*
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\v 51 फिर उससे कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि तुम स्वर्ग को खुला हुआ, और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को ऊपर जाते और मनुष्य के पुत्र के ऊपर उतरते देखोगे।”\wj* \bdit (उत्प. 28:12) \bdit*
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\c 2
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\s काना में शादी
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\p
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\v 1 फिर तीसरे दिन गलील के \it काना\it*\f + \fr 2:1 \fq काना: \ft यह करीब 15 मील तिबिरियास के उत्तर-पश्चिम में और 6 मील नासरत के उत्तर-पूर्व में एक छोटा सा नगर था।\f* में किसी का विवाह था, और यीशु की माता भी वहाँ थी।
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\v 2 यीशु और उसके चेले भी उस विवाह में निमंत्रित थे।
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\v 3 जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माता ने उससे कहा, “\it उनके पास दाखरस नहीं रहा\it*\f + \fr 2:3 \fq उनके पास दाखरस नहीं रहा: \ft यह ज्ञात नहीं है कि मरियम ने यीशु से यह क्यों कहा। यह प्रतीत होता है कि उसे यह विश्वास था कि वह यह आपूर्ति करने में सक्षम था। \f*।”
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\v 4 यीशु ने उससे कहा, \wj “हे महिला मुझे तुझ से क्या काम? अभी\wj* \it \+wj मेरा समय\f + \fr 2:4 \fq मेरा समय: \ft इसका मतलब यह नहीं है कि उनके चमत्कार के काम करने का समय, या लोगों के बीच में काम करने का उचित समय नहीं आया हैं, परन्तु उनके अन्तःक्षेप करने के लिए उचित समय नहीं आया था।\f*\+wj*\it* \wj नहीं आया।”\wj*
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\v 5 उसकी माता ने सेवकों से कहा, “जो कुछ वह तुम से कहे, वही करना।”
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\v 6 वहाँ यहूदियों के शुद्धिकरण के लिए पत्थर के छः मटके रखे थे, जिसमें दो-दो, तीन-तीन मन समाता था।
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\v 7 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मटकों में पानी भर दो।”\wj* तब उन्होंने उन्हें मुहाँमुहँ भर दिया।
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\v 8 तब उसने उनसे कहा, \wj “अब निकालकर भोज के प्रधान के पास ले जाओ।”\wj* और वे ले गए।
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\v 9 जब भोज के प्रधान ने वह पानी चखा, जो दाखरस बन गया था और नहीं जानता था कि वह कहाँ से आया है; (परन्तु जिन सेवकों ने पानी निकाला था वे जानते थे), तो भोज के प्रधान ने दूल्हे को बुलाकर, उससे कहा
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\v 10 “हर एक मनुष्य पहले अच्छा दाखरस देता है, और जब लोग पीकर छक जाते हैं, तब मध्यम देता है; परन्तु तूने अच्छा दाखरस अब तक रख छोड़ा है।”
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\v 11 यीशु ने गलील के काना में अपना यह पहला चिन्ह दिखाकर अपनी महिमा प्रगट की और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।
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\p
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\v 12 इसके बाद वह और उसकी माता, उसके भाई, उसके चेले, कफरनहूम को गए और वहाँ कुछ दिन रहे।
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\s मन्दिर से व्यापारियों का निकाला जाना
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\p
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\v 13 यहूदियों का फसह का पर्व निकट था, और यीशु यरूशलेम को गया।
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\v 14 और उसने मन्दिर में बैल, और भेड़ और कबूतर के बेचनेवालों ओर सर्राफों को बैठे हुए पाया।
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\v 15 तब उसने रस्सियों का कोड़ा बनाकर, सब भेड़ों और बैलों को मन्दिर से निकाल दिया, और सर्राफों के पैसे बिखेर दिये, और मेजें उलट दीं,
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\v 16 और कबूतर बेचनेवालों से कहा, \wj “इन्हें यहाँ से ले जाओ। मेरे पिता के भवन को व्यापार का घर मत बनाओ।”\wj*
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\v 17 तब उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, “तेरे घर की धुन \it मुझे खा जाएगी\it*\f + \fr 2:17 \fq मुझे खा जाएगी: \ft मुझे उसकी धुन या मेरा पूरा ध्यान और मनोवेग\f*।” \bdit (भज. 69:9) \bdit*
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\p
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\v 18 इस पर यहूदियों ने उससे कहा, “तू जो यह करता है तो हमें कौन सा चिन्ह दिखाता है?”
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\v 19 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “इस मन्दिर को ढा दो, और मैं इसे तीन दिन में खड़ा कर दूँगा।”\wj*
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\v 20 यहूदियों ने कहा, “इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हैं, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?”
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\v 21 परन्तु उसने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था।
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\v 22 फिर जब वह मुर्दों में से जी उठा फिर उसके चेलों को स्मरण आया कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्रशास्त्र और उस वचन का जो यीशु ने कहा था, विश्वास किया।
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\s यीशु मनुष्य के मन को जानता है
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\p
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\v 23 जब वह यरूशलेम में फसह के समय, पर्व में था, तो बहुतों ने उन चिन्हों को जो वह दिखाता था देखकर उसके नाम पर विश्वास किया।
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\v 24 परन्तु यीशु ने अपने आपको उनके भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था,
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\v 25 और उसे प्रयोजन न था कि मनुष्य के विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप जानता था कि मनुष्य के मन में क्या है?
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\c 3
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\s यीशु और नीकुदेमुस
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\p
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\v 1 फरीसियों में से \it नीकुदेमुस नाम का एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था\it*\f + \fr 3:1 \fq नीकुदेमुस नाम का एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था: \ft राष्ट्र के महान परिषद या “महासभा,” का एक सदस्य।\f*।
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||
\v 2 उसने रात को यीशु के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।”
|
||
\v 3 यीशु ने उसको उत्तर दिया, “\it \+wj मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ\f + \fr 3:3 \fq मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ: \ft वह क्या कहना चाहता था उसकी निश्चितता और उसके महत्त्व को मजबूत अभिपुष्टि की अभिव्यक्ति को संकेत करता हैं।\f*\+wj*\it*\wj , यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।”\wj*
|
||
\v 4 नीकुदेमुस ने उससे कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो कैसे जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी बार प्रवेश करके जन्म ले सकता है?”
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||
\v 5 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई मनुष्य\wj* \it \+wj जल और आत्मा से न जन्मे\f + \fr 3:5 \fq जल और आत्मा से न जन्मे: \ft “जल” यहाँ स्पष्ट रूप से “बपतिस्मा” को प्रकट करता हैं।\f*\+wj*\it*\wj तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।\wj*
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||
\v 6 \wj क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है।\wj*
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||
\v 7 \wj अचम्भा न कर, कि मैंने तुझ से कहा, ‘तुझे नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है।’\wj*
|
||
\v 8 \wj हवा जिधर चाहती है उधर चलती है, और तू उसकी आवाज सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहाँ से आती और किधर को जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।”\wj* \bdit (सभो. 11:5) \bdit*
|
||
\v 9 नीकुदेमुस ने उसको उत्तर दिया, “ये बातें कैसे हो सकती हैं?”
|
||
\v 10 यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, \wj “तू इस्राएलियों का गुरु होकर भी क्या इन बातों को नहीं समझता?\wj*
|
||
\v 11 \wj मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि हम जो जानते हैं, वह कहते हैं, और जिसे हमने देखा है उसकी गवाही देते हैं, और तुम हमारी गवाही ग्रहण नहीं करते।\wj*
|
||
\v 12 \wj जब मैंने तुम से पृथ्वी की बातें कहीं, और तुम विश्वास नहीं करते, तो यदि मैं तुम से स्वर्ग की बातें कहूँ, तो फिर क्यों विश्वास करोगे?\wj*
|
||
\v 13 \wj कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा, केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र जो स्वर्ग में है।\wj* \bdit (यहू. 6:38) \bdit*
|
||
\v 14 \wj और जिस तरह से मूसा ने जंगल में साँप को ऊँचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए।\wj* \bdit (यूह. 8:28) \bdit*
|
||
\v 15 \wj ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए।\wj*
|
||
\p
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||
\v 16 \wj “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।\wj*
|
||
\v 17 \wj परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिए नहीं भेजा, कि जगत पर दण्ड की आज्ञा दे, परन्तु इसलिए कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए।\wj*
|
||
\v 18 \wj जो उस पर विश्वास करता है, उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती, परन्तु जो उस पर विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है; इसलिए कि उसने परमेश्वर के एकलौते पुत्र के नाम पर विश्वास नहीं किया।\wj* \bdit (यूह. 5:10) \bdit*
|
||
\v 19 \wj और दण्ड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अंधकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उनके काम बुरे थे।\wj*
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||
\v 20 \wj क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए।\wj*
|
||
\v 21 \wj परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।”\wj*
|
||
\s यीशु के विषय यूहन्ना की गवाही
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||
\p
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||
\v 22 इसके बाद यीशु और उसके चेले यहूदिया देश में आए; और वह वहाँ उनके साथ रहकर बपतिस्मा देने लगा।
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\v 23 और यूहन्ना भी सालेम के निकट \it ऐनोन\it*\f + \fr 3:23 \fq ऐनोन: \ft “इनोन” या “ऐनोन” शब्द का अर्थ “एक सोता” है।\f* में बपतिस्मा देता था। क्योंकि वहाँ बहुत जल था, और लोग आकर बपतिस्मा लेते थे।
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||
\v 24 क्योंकि यूहन्ना उस समय तक जेलखाने में नहीं डाला गया था।
|
||
\v 25 वहाँ यूहन्ना के चेलों का किसी यहूदी के साथ शुद्धि के विषय में वाद-विवाद हुआ।
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\v 26 और उन्होंने यूहन्ना के पास आकर उससे कहा, “हे रब्बी, जो व्यक्ति यरदन के पार तेरे साथ था, और जिसकी तूने गवाही दी है; देख, वह बपतिस्मा देता है, और सब उसके पास आते हैं।”
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||
\v 27 यूहन्ना ने उत्तर दिया, “जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह कुछ नहीं पा सकता।
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||
\v 28 तुम तो आप ही मेरे गवाह हो, कि मैंने कहा, ‘मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ।’ \bdit (यूह. 1:20, मला. 3:1) \bdit*
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||
\v 29 जिसकी दुल्हन है, वही दूल्हा है: परन्तु दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उसकी सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है।
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\v 30 अवश्य है कि वह बढ़े और मैं घटूँ।
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\p
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\v 31 “जो ऊपर से आता है, वह सर्वोत्तम है, जो पृथ्वी से आता है वह पृथ्वी का है; और पृथ्वी की ही बातें कहता है: जो स्वर्ग से आता है, वह सब के ऊपर है। \bdit (यूह. 8:23) \bdit*
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||
\v 32 जो कुछ उसने देखा, और सुना है, उसी की गवाही देता है; और कोई उसकी गवाही ग्रहण नहीं करता।
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\v 33 जिसने उसकी गवाही ग्रहण कर ली उसने इस बात पर छाप दे दी कि परमेश्वर सच्चा है।
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\v 34 क्योंकि जिसे परमेश्वर ने भेजा है, वह परमेश्वर की बातें कहता है: क्योंकि वह आत्मा नाप नापकर नहीं देता।
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\v 35 पिता पुत्र से प्रेम रखता है, और उसने सब वस्तुएँ उसके हाथ में दे दी हैं।
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\v 36 जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है।”
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\c 4
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\s यीशु और सामरी स्त्री
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\p
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\v 1 फिर जब प्रभु को मालूम हुआ कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक चेले बनाता और उन्हें बपतिस्मा देता है।
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\v 2 (यद्यपि यीशु स्वयं नहीं वरन् उसके चेले बपतिस्मा देते थे),
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\v 3 तब वह यहूदिया को छोड़कर फिर गलील को चला गया,
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\v 4 और उसको सामरिया से होकर जाना अवश्य था।
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\v 5 इसलिए वह \it सूखार\it*\f + \fr 4:5 \fq सूखार: \ft यह नगर करीब आठ मील दूर सामरिया नामक नगर से उत्तर-पूर्व में, एबाल पर्वत और गिरिज्जीम पर्वत के बीच में स्थित हैं।\f* नामक सामरिया के एक नगर तक आया, जो उस भूमि के पास है जिसे याकूब ने अपने पुत्र यूसुफ को दिया था।
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||
\v 6 और याकूब का कुआँ भी वहीं था। यीशु मार्ग का थका हुआ उस कुएँ पर ऐसे ही बैठ गया। और यह बात दोपहर के समय हुई।
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\p
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||
\v 7 इतने में एक सामरी स्त्री जल भरने को आई। यीशु ने उससे कहा, \wj “मुझे पानी पिला।”\wj*
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||
\v 8 क्योंकि उसके चेले तो नगर में भोजन मोल लेने को गए थे।
|
||
\v 9 उस सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर मुझ सामरी स्त्री से पानी क्यों माँगता है?” क्योंकि यहूदी सामरियों के साथ किसी प्रकार का व्यवहार नहीं रखते। \bdit (प्रेरि. 108:28) \bdit*
|
||
\v 10 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है, ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे माँगती, और वह तुझे\wj* \it \+wj जीवन का जल\f + \fr 4:10 \fq जीवन का जल: \ft मृत और स्थिर जल के बदले यहूदी लोग जीवन के जल को सोता या चलती धाराओं के रूप में निरुपित अभिव्यक्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं।\f*\+wj*\it* \wj देता।”\wj*
|
||
\v 11 स्त्री ने उससे कहा, “हे स्वामी, तेरे पास जल भरने को तो कुछ है भी नहीं, और कुआँ गहरा है; तो फिर वह जीवन का जल तेरे पास कहाँ से आया?
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||
\v 12 क्या तू हमारे पिता याकूब से बड़ा है, जिसने हमें यह कुआँ दिया; और आप ही अपनी सन्तान, और अपने पशुओं समेत उसमें से पीया?”
|
||
\v 13 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “जो कोई यह जल पीएगा वह फिर प्यासा होगा,\wj*
|
||
\v 14 \wj परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन्\wj* \it \+wj जो जल मैं उसे दूँगा\f + \fr 4:14 \fq जो जल मैं उसे दूँगा: \ft यीशु ने यहाँ पर बिना सन्देह के अपनी ही शिक्षा, अपना “अनुग्रह,” अपनी “आत्मा” और उसके सुसमाचार को गले लगाने से जो लाभ आत्मा में आते है, को संदर्भित किया।\f*\+wj*\it*\wj , वह उसमें एक सोता बन जाएगा, जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा।”\wj*
|
||
\v 15 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, वह जल मुझे दे ताकि मैं प्यासी न होऊँ और न जल भरने को इतनी दूर आऊँ।”
|
||
\p
|
||
\v 16 यीशु ने उससे कहा, \wj “जा, अपने पति को यहाँ बुला ला।”\wj*
|
||
\v 17 स्त्री ने उत्तर दिया, “मैं बिना पति की हूँ।” यीशु ने उससे कहा, \wj “तू ठीक कहती है, ‘मैं बिना पति की हूँ।’\wj*
|
||
\v 18 \wj क्योंकि तू पाँच पति कर चुकी है, और जिसके पास तू अब है वह भी तेरा पति नहीं; यह तूने सच कहा है।”\wj*
|
||
\v 19 स्त्री ने उससे कहा, “हे प्रभु, मुझे लगता है कि तू भविष्यद्वक्ता है।
|
||
\v 20 हमारे पूर्वजों ने इसी पहाड़ पर भजन किया, और तुम कहते हो कि वह जगह जहाँ भजन करना चाहिए यरूशलेम में है।” \bdit (व्यव. 11:29) \bdit*
|
||
\v 21 यीशु ने उससे कहा, \wj “हे नारी, मेरी बात का विश्वास कर कि वह समय आता है कि तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे, न यरूशलेम में।\wj*
|
||
\v 22 \wj तुम जिसे नहीं जानते, उसका भजन करते हो; और हम जिसे जानते हैं, उसका भजन करते हैं; क्योंकि उद्धार यहूदियों में से है।\wj* \bdit (यशा. 2:3) \bdit*
|
||
\v 23 \wj परन्तु वह समय आता है, वरन् अब भी है, जिसमें सच्चे भक्त पिता परमेश्वर की आराधना आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही आराधकों को ढूँढ़ता है।\wj*
|
||
\v 24 \wj परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्चाई से आराधना करें।”\wj*
|
||
\v 25 स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह जो ख्रिस्त कहलाता है, आनेवाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगा।”
|
||
\v 26 यीशु ने उससे कहा, \wj “मैं जो तुझ से बोल रहा हूँ, वही हूँ।”\wj*
|
||
\s चेलों की वापसी
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\p
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\v 27 इतने में उसके चेले आ गए, और अचम्भा करने लगे कि वह स्त्री से बातें कर रहा है; फिर भी किसी ने न पूछा, “तू क्या चाहता है?” या “किस लिये उससे बातें करता है?”
|
||
\v 28 तब स्त्री अपना घड़ा छोड़कर नगर में चली गई, और लोगों से कहने लगी,
|
||
\v 29 “आओ, एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैंने किया मुझे बता दिया। कहीं यही तो मसीह नहीं है?”
|
||
\v 30 तब वे नगर से निकलकर उसके पास आने लगे।
|
||
\v 31 इतने में उसके चेले यीशु से यह विनती करने लगे, “हे रब्बी, कुछ खा ले।”
|
||
\v 32 परन्तु उसने उनसे कहा, \wj “मेरे पास खाने के लिये ऐसा भोजन है जिसे तुम नहीं जानते।”\wj*
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||
\v 33 तब चेलों ने आपस में कहा, “क्या कोई उसके लिये कुछ खाने को लाया है?”
|
||
\v 34 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूँ और उसका काम पूरा करूँ।\wj*
|
||
\v 35 \wj क्या तुम नहीं कहते, ‘कटनी होने में अब भी चार महीने पड़े हैं?’ देखो, मैं तुम से कहता हूँ, अपनी आँखें उठाकर खेतों पर दृष्टि डालो, कि वे कटनी के लिये पक चुके हैं।\wj*
|
||
\v 36 \wj और काटनेवाला मजदूरी पाता, और अनन्त जीवन के लिये फल बटोरता है, ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर आनन्द करें।\wj*
|
||
\v 37 \wj क्योंकि इस पर यह कहावत ठीक बैठती है: ‘बोनेवाला और है और काटनेवाला और।’\wj* \bdit (मीका 6:15) \bdit*
|
||
\v 38 \wj मैंने तुम्हें वह खेत काटने के लिये भेजा जिसमें तुम ने परिश्रम नहीं किया औरों ने परिश्रम किया और तुम उनके परिश्रम के फल में भागी हुए।”\wj*
|
||
\s सामरियों का विश्वास करना
|
||
\p
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||
\v 39 और उस नगर के बहुत से सामरियों ने उस स्त्री के कहने से यीशु पर विश्वास किया; जिसने यह गवाही दी थी, कि उसने सब कुछ जो मैंने किया है, मुझे बता दिया।
|
||
\v 40 तब जब ये सामरी उसके पास आए, तो उससे विनती करने लगे कि हमारे यहाँ रह, और वह वहाँ दो दिन तक रहा।
|
||
\v 41 और उसके वचन के कारण और भी बहुतों ने विश्वास किया।
|
||
\v 42 और उस स्त्री से कहा, “अब हम तेरे कहने ही से विश्वास नहीं करते; क्योंकि हमने आप ही सुन लिया, और जानते हैं कि यही सचमुच में जगत का उद्धारकर्ता है।”
|
||
\p
|
||
\v 43 फिर उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से निकलकर गलील को गया।
|
||
\v 44 क्योंकि यीशु ने आप ही साक्षी दी कि भविष्यद्वक्ता अपने देश में आदर नहीं पाता।
|
||
\v 45 जब वह गलील में आया, तो गलीली आनन्द के साथ उससे मिले; क्योंकि जितने काम उसने यरूशलेम में पर्व के समय किए थे, उन्होंने उन सब को देखा था, क्योंकि वे भी पर्व में गए थे।
|
||
\s राजकर्मचारी के पुत्र को चंगा करना
|
||
\p
|
||
\v 46 तब वह फिर गलील के काना में आया, जहाँ उसने पानी को दाखरस बनाया था। वहाँ राजा का एक कर्मचारी था जिसका पुत्र कफरनहूम में बीमार था।
|
||
\v 47 वह यह सुनकर कि यीशु यहूदिया से गलील में आ गया है, उसके पास गया और उससे विनती करने लगा कि चलकर मेरे पुत्र को चंगा कर दे: क्योंकि वह मरने पर था।
|
||
\v 48 यीशु ने उससे कहा, \wj “जब तक तुम चिन्ह और अद्भुत काम न देखोगे तब तक कदापि विश्वास न करोगे।”\wj* \bdit (दानि. 4:2) \bdit*
|
||
\v 49 राजा के कर्मचारी ने उससे कहा, “हे प्रभु, मेरे बालक की मृत्यु होने से पहले चल।”
|
||
\v 50 यीशु ने उससे कहा, \wj “जा, तेरा पुत्र जीवित है।”\wj* उस मनुष्य ने यीशु की कही हुई बात पर विश्वास किया और चला गया।
|
||
\v 51 वह मार्ग में जा ही रहा था, कि उसके दास उससे आ मिले और कहने लगे, “तेरा लड़का जीवित है।”
|
||
\v 52 उसने उनसे पूछा, “किस घड़ी वह अच्छा होने लगा?” उन्होंने उससे कहा, “कल सातवें घण्टे में उसका ज्वर उतर गया।”
|
||
\v 53 तब पिता जान गया कि यह उसी घड़ी हुआ जिस घड़ी यीशु ने उससे कहा, \wj “तेरा पुत्र जीवित है,”\wj* और उसने और उसके सारे घराने ने विश्वास किया।
|
||
\v 54 यह दूसरा चिन्ह था जो यीशु ने यहूदिया से गलील में आकर दिखाया।
|
||
\c 5
|
||
\s अड़तीस वर्ष के रोगी को चंगा करना
|
||
\p
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||
\v 1 इन बातों के पश्चात् यहूदियों का एक पर्व हुआ, और यीशु यरूशलेम को गया।
|
||
\p
|
||
\v 2 यरूशलेम में भेड़-फाटक के पास एक कुण्ड है, जो इब्रानी भाषा में \it बैतहसदा\it*\f + \fr 5:2 \fq बैतहसदा: \ft दया का घर। इसे अपनी मजबूत चिकित्सा गुणों के कारण कहा जाता था।\f* कहलाता है, और उसके पाँच ओसारे हैं।
|
||
\v 3 इनमें बहुत से बीमार, अंधे, लँगड़े और सूखे अंगवाले (पानी के हिलने की आशा में) पड़े रहते थे।
|
||
\v 4 क्योंकि नियुक्त समय पर परमेश्वर के स्वर्गदूत कुण्ड में उतरकर पानी को हिलाया करते थे: पानी हिलते ही जो कोई पहले उतरता, वह चंगा हो जाता था, चाहे उसकी कोई बीमारी क्यों न हो।
|
||
\v 5 वहाँ एक मनुष्य था, जो अड़तीस वर्ष से बीमारी में पड़ा था।
|
||
\v 6 यीशु ने उसे पड़ा हुआ देखकर और यह जानकर कि वह बहुत दिनों से इस दशा में पड़ा है, उससे पूछा, \wj “क्या तू चंगा होना चाहता है?”\wj*
|
||
\v 7 उस बीमार ने उसको उत्तर दिया, “हे स्वामी, मेरे पास कोई मनुष्य नहीं, कि जब पानी हिलाया जाए, तो मुझे कुण्ड में उतारे; परन्तु मेरे पहुँचते-पहुँचते दूसरा मुझसे पहले उतर जाता है।”
|
||
\v 8 यीशु ने उससे कहा, \wj “उठ, अपनी खाट उठा और चल फिर।”\wj*
|
||
\v 9 वह मनुष्य तुरन्त चंगा हो गया, और अपनी खाट उठाकर चलने फिरने लगा।
|
||
\p
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||
\v 10 वह सब्त का दिन था। इसलिए यहूदी उससे जो चंगा हुआ था, कहने लगे, “आज तो सब्त का दिन है, तुझे खाट उठानी उचित नहीं।” \bdit (यिर्म. 17:21) \bdit*
|
||
\v 11 उसने उन्हें उत्तर दिया, “जिसने मुझे चंगा किया, उसी ने मुझसे कहा, ‘अपनी खाट उठाकर चल फिर।’”
|
||
\v 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कौन मनुष्य है, जिसने तुझ से कहा, ‘खाट उठा और, चल फिर’?”
|
||
\v 13 परन्तु जो चंगा हो गया था, वह नहीं जानता था कि वह कौन है; क्योंकि उस जगह में भीड़ होने के कारण यीशु वहाँ से हट गया था।
|
||
\v 14 इन बातों के बाद वह यीशु को मन्दिर में मिला, तब उसने उससे कहा, \wj “देख, तू तो चंगा हो गया है; फिर से पाप मत करना, ऐसा न हो कि इससे कोई भारी विपत्ति तुझ पर आ पड़े।”\wj*
|
||
\v 15 उस मनुष्य ने जाकर यहूदियों से कह दिया, कि जिसने मुझे चंगा किया, वह यीशु है।
|
||
\v 16 इस कारण यहूदी यीशु को \it सताने लगे\it*\f + \fr 5:16 \fq सताने लगे: \ft उन लोगों ने उनका विरोध किया; उनकी लोकप्रियता को नष्ट करने के लिए; उनके चरित्र को खराब करने का प्रयास किया; \f*, क्योंकि वह ऐसे-ऐसे काम सब्त के दिन करता था।
|
||
\v 17 इस पर यीशु ने उनसे कहा, \wj “मेरा पिता परमेश्वर अब तक काम करता है, और मैं भी काम करता हूँ।”\wj*
|
||
\v 18 इस कारण यहूदी और भी अधिक उसके मार डालने का प्रयत्न करने लगे, कि वह न केवल सब्त के दिन की विधि को तोड़ता, परन्तु परमेश्वर को अपना पिता कहकर, अपने आपको परमेश्वर के तुल्य ठहराता था।
|
||
\s पुत्र का अधिकार
|
||
\p
|
||
\v 19 इस पर यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन-जिन कामों को वह करता है, उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है।\wj*
|
||
\v 20 \wj क्योंकि\wj* \it \+wj पिता पुत्र से प्यार करता है\f + \fr 5:20 \fq पिता पुत्र से प्यार करता है: \ft विशेष, अवर्णनीय, असीमित प्रेम जो परमेश्वर को अपने एकलौते पुत्र के लिए है।\f*\+wj*\it* \wj और जो-जो काम वह आप करता है, वह सब उसे दिखाता है; और वह इनसे भी बड़े काम उसे दिखाएगा, ताकि तुम अचम्भा करो।\wj*
|
||
\v 21 \wj क्योंकि जैसा पिता मरे हुओं को उठाता और जिलाता है, वैसा ही पुत्र भी जिन्हें चाहता है, उन्हें जिलाता है।\wj*
|
||
\v 22 \wj पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है,\wj*
|
||
\v 23 \wj इसलिए कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें; जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिसने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।\wj*
|
||
\v 24 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दण्ड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश कर चुका है।\wj*
|
||
\p
|
||
\v 25 \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, वह समय आता है, और अब है, जिसमें मृतक परमेश्वर के पुत्र का शब्द सुनेंगे, और जो सुनेंगे वे जीएँगे।\wj*
|
||
\v 26 \wj क्योंकि जिस रीति से पिता अपने आप में जीवन रखता है, उसी रीति से उसने पुत्र को भी यह अधिकार दिया है कि अपने आप में जीवन रखे;\wj*
|
||
\v 27 \wj वरन् उसे न्याय करने का भी अधिकार दिया है, इसलिए कि वह मनुष्य का पुत्र है।\wj*
|
||
\v 28 \wj इससे अचम्भा मत करो; क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।\wj*
|
||
\v 29 \wj जिन्होंने भलाई की है, वे जीवन के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे और जिन्होंने बुराई की है, वे दण्ड के पुनरुत्थान के लिये जी उठेंगे।\wj* \bdit (दानि. 12:2) \bdit*
|
||
\s यीशु के सम्बंध में गवाही
|
||
\p
|
||
\v 30 \wj “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता; जैसा सुनता हूँ, वैसा न्याय करता हूँ, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।\wj*
|
||
\v 31 \wj यदि मैं आप ही अपनी गवाही दूँ; तो मेरी गवाही सच्ची नहीं।\wj*
|
||
\v 32 \wj एक और है जो मेरी गवाही देता है, और मैं जानता हूँ कि मेरी जो गवाही वह देता है, वह सच्ची है।\wj*
|
||
\v 33 \wj तुम ने यूहन्ना से पुछवाया और उसने सच्चाई की गवाही दी है।\wj*
|
||
\v 34 \it \+wj परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता\f + \fr 5:34 \fq परन्तु मैं अपने विषय में मनुष्य की गवाही नहीं चाहता: \ft वह मसीहत के लिए मनुष्यों की गवाही पर उसके प्रमाण के लिए निर्भर नहीं था, को संदर्भित करता है।\f*\+wj*\it*\wj ; फिर भी मैं ये बातें इसलिए कहता हूँ, कि तुम्हें उद्धार मिले।\wj*
|
||
\v 35 \wj वह तो जलता और चमकता हुआ दीपक था; और तुम्हें कुछ देर तक उसकी ज्योति में, मगन होना अच्छा लगा।\wj*
|
||
\v 36 \wj परन्तु मेरे पास जो गवाही है, वह यूहन्ना की गवाही से बड़ी है: क्योंकि जो काम पिता ने मुझे पूरा करने को सौंपा है अर्थात् यही काम जो मैं करता हूँ, वे मेरे गवाह हैं, कि पिता ने मुझे भेजा है।\wj*
|
||
\v 37 \wj और पिता जिसने मुझे भेजा है, उसी ने मेरी गवाही दी है: तुम ने न कभी उसका शब्द सुना, और न उसका रूप देखा है;\wj*
|
||
\v 38 \wj और उसके वचन को मन में स्थिर नहीं रखते, क्योंकि जिसे उसने भेजा तुम उस पर विश्वास नहीं करते।\wj*
|
||
\v 39 \wj तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है;\wj*
|
||
\v 40 \wj फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।\wj*
|
||
\v 41 \wj मैं मनुष्यों से आदर नहीं चाहता।\wj*
|
||
\v 42 \wj परन्तु मैं तुम्हें जानता हूँ, कि तुम में परमेश्वर का प्रेम नहीं।\wj*
|
||
\v 43 \wj मैं अपने पिता परमेश्वर के नाम से आया हूँ, और तुम मुझे ग्रहण नहीं करते; यदि कोई और अपने ही नाम से आए, तो उसे ग्रहण कर लोगे।\wj*
|
||
\v 44 \wj तुम जो एक दूसरे से आदर चाहते हो और वह आदर जो एकमात्र परमेश्वर की ओर से है, नहीं चाहते, किस प्रकार विश्वास कर सकते हो?\wj*
|
||
\v 45 \wj यह न समझो, कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा, तुम पर दोष लगानेवाला तो है, अर्थात् मूसा है जिस पर तुम ने भरोसा रखा है।\wj*
|
||
\v 46 \wj क्योंकि यदि तुम मूसा पर विश्वास करते, तो मुझ पर भी विश्वास करते, इसलिए कि उसने मेरे विषय में लिखा है।\wj* \bdit (लूका 24:27) \bdit*
|
||
\v 47 \wj परन्तु यदि तुम उसकी लिखी हुई बातों पर विश्वास नहीं करते, तो मेरी बातों पर क्यों विश्वास करोगे?”\wj*
|
||
\c 6
|
||
\s पाँच हजार लोगों को खिलाना
|
||
\p
|
||
\v 1 इन बातों के बाद यीशु गलील की झील अर्थात् तिबिरियास की झील के पार गया।
|
||
\v 2 और एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली क्योंकि \it जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे\it*\f + \fr 6:2 \fq जो आश्चर्यकर्म वह बीमारों पर दिखाता था वे उनको देखते थे \ft उन्होंने देखा कि उनमें उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने का सामर्थ्य हैं और वे इसलिए उनके पीछे हो लिए।\f*।
|
||
\v 3 तब यीशु पहाड़ पर चढ़कर अपने चेलों के साथ वहाँ बैठा।
|
||
\v 4 और यहूदियों के फसह का पर्व निकट था।
|
||
\p
|
||
\v 5 तब यीशु ने अपनी आँखें उठाकर एक बड़ी भीड़ को अपने पास आते देखा, और फिलिप्पुस से कहा, \wj “हम इनके भोजन के लिये कहाँ से रोटी मोल लाएँ?”\wj*
|
||
\v 6 परन्तु उसने यह बात उसे परखने के लिये कही; क्योंकि वह स्वयं जानता था कि वह क्या करेगा।
|
||
\v 7 फिलिप्पुस ने उसको उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटी भी उनके लिये पूरी न होंगी कि उनमें से हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल जाए।”
|
||
\v 8 उसके चेलों में से शमौन पतरस के भाई अन्द्रियास ने उससे कहा,
|
||
\v 9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटी और दो मछलियाँ हैं, परन्तु इतने लोगों के लिये वे क्या हैं।”
|
||
\v 10 यीशु ने कहा, \wj “लोगों को बैठा दो।”\wj* उस जगह बहुत घास थी। तब लोग जिनमें पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार की थी, बैठ गए।
|
||
\v 11 तब यीशु ने रोटियाँ लीं, और धन्यवाद करके बैठनेवालों को बाँट दीं; और वैसे ही मछलियों में से जितनी वे चाहते थे बाँट दिया।
|
||
\v 12 जब वे खाकर तृप्त हो गए, तो उसने अपने चेलों से कहा, \wj “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, कि कुछ फेंका न जाए।”\wj*
|
||
\v 13 इसलिए उन्होंने बटोरा, और जौ की पाँच रोटियों के टुकड़े जो खानेवालों से बच रहे थे, उनकी बारह टोकरियाँ भरीं।
|
||
\v 14 तब जो आश्चर्यकर्म उसने कर दिखाया उसे वे लोग देखकर कहने लगे; कि “वह भविष्यद्वक्ता जो जगत में आनेवाला था निश्चय यही है।” \bdit (मत्ती 21:11) \bdit*
|
||
\p
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||
\v 15 यीशु यह जानकर कि वे उसे राजा बनाने के लिये आकर पकड़ना चाहते हैं, फिर पहाड़ पर अकेला चला गया।
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\s यीशु का पानी पर चलना
|
||
\p
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||
\v 16 फिर जब संध्या हुई, तो उसके चेले झील के किनारे गए,
|
||
\v 17 और नाव पर चढ़कर झील के पार कफरनहूम को जाने लगे। उस समय अंधेरा हो गया था, और यीशु अभी तक उनके पास नहीं आया था।
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\v 18 और आँधी के कारण झील में लहरें उठने लगीं।
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\v 19 तब जब वे खेते-खेते तीन चार मील के लगभग निकल गए, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते, और नाव के निकट आते देखा, और डर गए।
|
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\v 20 परन्तु उसने उनसे कहा, \wj “मैं हूँ; डरो मत।”\wj*
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||
\v 21 तब वे उसे नाव पर चढ़ा लेने के लिये तैयार हुए और तुरन्त वह नाव उसी स्थान पर जा पहुँची जहाँ वह जाते थे।
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\s लोगों का यीशु को ढूँढ़ना
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\p
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\v 22 दूसरे दिन उस भीड़ ने, जो झील के पार खड़ी थी, यह देखा, कि यहाँ एक को छोड़कर और कोई छोटी नाव न थी, और यीशु अपने चेलों के साथ उस नाव पर न चढ़ा, परन्तु केवल उसके चेले ही गए थे।
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||
\v 23 (तो भी और छोटी नावें तिबिरियास से उस जगह के निकट आईं, जहाँ उन्होंने प्रभु के धन्यवाद करने के बाद रोटी खाई थी।)
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||
\v 24 जब भीड़ ने देखा, कि यहाँ न यीशु है, और न उसके चेले, तो वे भी छोटी-छोटी नावों पर चढ़ के यीशु को ढूँढ़ते हुए कफरनहूम को पहुँचे।
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\s यीशु जीवन की रोटी
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\p
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\v 25 और झील के पार उससे मिलकर कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”
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\v 26 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ते हो कि तुम ने अचम्भित काम देखे, परन्तु इसलिए कि तुम रोटियाँ खाकर तृप्त हुए।\wj*
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||
\v 27 \it \+wj नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो\f + \fr 6:27 \fq नाशवान भोजन के लिये परिश्रम न करो: \ft इसका मतलब यह नहीं हैं कि हम हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई प्रयास न करे, परन्तु यह कि हम चिंता प्रकट ना करें।\f*\+wj*\it*\wj , परन्तु उस भोजन के लिये जो अनन्त जीवन तक ठहरता है, जिसे मनुष्य का पुत्र तुम्हें देगा, क्योंकि पिता, अर्थात् परमेश्वर ने उसी पर छाप कर दी है।”\wj*
|
||
\v 28 उन्होंने उससे कहा, “परमेश्वर के कार्य करने के लिये हम क्या करें?”
|
||
\v 29 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “परमेश्वर का कार्य यह है, कि तुम उस पर, जिसे उसने भेजा है, विश्वास करो।”\wj*
|
||
\v 30 तब उन्होंने उससे कहा, “फिर तू कौन सा चिन्ह दिखाता है कि हम उसे देखकर तुझ पर विश्वास करें? तू कौन सा काम दिखाता है?
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||
\v 31 हमारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया; जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिये स्वर्ग से रोटी दी।’” \bdit (भज. 78:24) \bdit*
|
||
\v 32 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें वह रोटी स्वर्ग से न दी, परन्तु मेरा पिता तुम्हें सच्ची रोटी स्वर्ग से देता है।\wj*
|
||
\v 33 \wj क्योंकि परमेश्वर की रोटी वही है, जो स्वर्ग से उतरकर जगत को जीवन देती है।”\wj*
|
||
\v 34 तब उन्होंने उससे कहा, “हे स्वामी, यह रोटी हमें सर्वदा दिया कर।”
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||
\p
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||
\v 35 यीशु ने उनसे कहा, \wj “\wj*\it \+wj जीवन की रोटी मैं हूँ\f + \fr 6:35 \fq जीवन की रोटी मैं हूँ: \ft यीशु का मतलब है कि वह आत्मिक जीवन का सहारा है या उनकी शिक्षा जीवन और आत्मा के लिए शान्ति देगा।\f*\+wj*\it*\wj : जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।\wj*
|
||
\v 36 \wj परन्तु मैंने तुम से कहा, कि तुम ने मुझे देख भी लिया है, तो भी विश्वास नहीं करते।\wj*
|
||
\v 37 \wj जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं कभी न निकालूँगा।\wj*
|
||
\v 38 \wj क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, वरन् अपने भेजनेवाले की इच्छा पूरी करने के लिये स्वर्ग से उतरा हूँ।\wj*
|
||
\v 39 \wj और मेरे भेजनेवाले की इच्छा यह है कि जो कुछ उसने मुझे दिया है, उसमें से मैं कुछ न खोऊँ परन्तु उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँ।\wj*
|
||
\v 40 \wj क्योंकि मेरे पिता की इच्छा यह है, कि जो कोई पुत्र को देखे, और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए; और मैं उसे अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 41 तब यहूदी उस पर कुड़कुड़ाने लगे, इसलिए कि उसने कहा था, \wj “जो रोटी स्वर्ग से उतरी, वह मैं हूँ।”\wj*
|
||
\v 42 और उन्होंने कहा, “क्या यह यूसुफ का पुत्र यीशु नहीं, जिसके माता-पिता को हम जानते हैं? तो वह क्यों कहता है कि मैं स्वर्ग से उतरा हूँ?”
|
||
\v 43 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “आपस में मत कुड़कुड़ाओ।\wj*
|
||
\v 44 \wj कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिसने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उसको अन्तिम दिन फिर जिला उठाऊँगा।\wj*
|
||
\v 45 \wj भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, ‘वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे।’ जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।\wj* \bdit (यशा. 54:13) \bdit*
|
||
\v 46 \wj यह नहीं, कि किसी ने पिता को देखा है परन्तु जो परमेश्वर की ओर से है, केवल उसी ने पिता को देखा है।\wj*
|
||
\v 47 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसी का है।\wj*
|
||
\v 48 \wj जीवन की रोटी मैं हूँ।\wj*
|
||
\v 49 \wj तुम्हारे पूर्वजों ने जंगल में मन्ना खाया और मर गए।\wj*
|
||
\v 50 \wj यह वह रोटी है जो स्वर्ग से उतरती है ताकि मनुष्य उसमें से खाए और न मरे।\wj*
|
||
\v 51 \wj जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा; और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूँगा, वह मेरा माँस है।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 52 इस पर यहूदी यह कहकर आपस में झगड़ने लगे, “यह मनुष्य कैसे हमें अपना माँस खाने को दे सकता है?”
|
||
\v 53 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ जब तक मनुष्य के पुत्र का माँस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं।\wj*
|
||
\v 54 \wj जो मेरा माँस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अन्तिम दिन फिर उसे जिला उठाऊँगा।\wj*
|
||
\v 55 \wj क्योंकि मेरा माँस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है।\wj*
|
||
\v 56 \wj जो मेरा माँस खाता और मेरा लहू पीता है, वह\wj* \it \+wj मुझ में स्थिर बना रहता है\f + \fr 6:56 \fq मुझ में स्थिर बना रहता है: \ft सही मायने में और मुझ में अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। उनमें बसे रहना या बने रहना यह है कि उनके विश्वास के सिद्धान्त में बने रहना\f*\+wj*\it*\wj , और मैं उसमें।\wj*
|
||
\v 57 \wj जैसा जीविते पिता ने मुझे भेजा और मैं पिता के कारण जीवित हूँ वैसा ही वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा।\wj*
|
||
\v 58 \wj जो रोटी स्वर्ग से उतरी यही है, पूर्वजों के समान नहीं कि खाया, और मर गए; जो कोई यह रोटी खाएगा, वह सर्वदा जीवित रहेगा।”\wj*
|
||
\v 59 ये बातें उसने कफरनहूम के एक आराधनालय में उपदेश देते समय कहीं।
|
||
\s अनन्त जीवन के वचन
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||
\p
|
||
\v 60 इसलिए उसके चेलों में से बहुतों ने यह सुनकर कहा, “यह तो कठोर शिक्षा है; इसे कौन मान सकता है?”
|
||
\v 61 यीशु ने अपने मन में यह जानकर कि मेरे चेले आपस में इस बात पर कुड़कुड़ाते हैं, उनसे पूछा, \wj “क्या इस बात से तुम्हें ठोकर लगती है?\wj*
|
||
\v 62 \wj और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा?\wj* \bdit (भज. 47:5) \bdit*
|
||
\v 63 \wj आत्मा तो जीवनदायक है, शरीर से कुछ लाभ नहीं। जो बातें मैंने तुम से कहीं हैं वे आत्मा हैं, और जीवन भी हैं।\wj*
|
||
\v 64 \wj परन्तु तुम में से कितने ऐसे हैं जो विश्वास नहीं करते।”\wj* क्योंकि यीशु तो पहले ही से जानता था कि जो विश्वास नहीं करते, वे कौन हैं; और कौन मुझे पकड़वाएगा।
|
||
\v 65 और उसने कहा, \wj “इसलिए मैंने तुम से कहा था कि जब तक किसी को पिता की ओर से यह वरदान न दिया जाए तब तक वह मेरे पास नहीं आ सकता।”\wj*
|
||
\s पतरस का विश्वास
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||
\p
|
||
\v 66 इस पर उसके चेलों में से बहुत सारे उल्टे फिर गए और उसके बाद उसके साथ न चले।
|
||
\v 67 तब यीशु ने उन बारहों से कहा, \wj “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?”\wj*
|
||
\v 68 शमौन पतरस ने उसको उत्तर दिया, “हे प्रभु, हम किसके पास जाएँ? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे ही पास हैं।
|
||
\v 69 और हमने विश्वास किया, और जान गए हैं, कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।”
|
||
\v 70 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “क्या मैंने तुम बारहों को नहीं चुन लिया? तो भी तुम में से एक व्यक्ति शैतान है।”\wj*
|
||
\v 71 यह उसने शमौन इस्करियोती के पुत्र यहूदा के विषय में कहा, क्योंकि यही जो उन बारहों में से था, उसे पकड़वाने को था।
|
||
\c 7
|
||
\s यीशु और उसके भाई
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||
\p
|
||
\v 1 इन बातों के बाद यीशु गलील में फिरता रहा, क्योंकि यहूदी उसे मार डालने का यत्न कर रहे थे, इसलिए वह यहूदिया में फिरना न चाहता था।
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||
\v 2 और यहूदियों का झोपड़ियों का पर्व निकट था। \bdit (लैव्य. 23:34) \bdit*
|
||
\v 3 इसलिए उसके भाइयों ने उससे कहा, “यहाँ से कूच करके यहूदिया में चला जा, कि जो काम तू करता है, उन्हें तेरे चेले भी देखें।
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||
\v 4 क्योंकि ऐसा कोई न होगा जो प्रसिद्ध होना चाहे, और छिपकर काम करे: यदि तू यह काम करता है, तो अपने आपको जगत पर प्रगट कर।”
|
||
\v 5 क्योंकि उसके भाई भी उस पर विश्वास नहीं करते थे।
|
||
\v 6 तब यीशु ने उनसे कहा, \wj “मेरा समय अभी नहीं आया; परन्तु तुम्हारे लिये सब समय है।\wj*
|
||
\v 7 \it \+wj जगत तुम से बैर नहीं कर सकता\f + \fr 7:7 \fq जगत तुम से बैर नहीं कर सकता: \ft तुम संसार के विरोध में कोई सिद्धान्त के दावे पेश नहीं करते।\f*\+wj*\it*\wj , परन्तु वह मुझसे बैर करता है, क्योंकि मैं उसके विरोध में यह गवाही देता हूँ, कि उसके काम बुरे हैं।\wj*
|
||
\v 8 \wj तुम पर्व में जाओ; मैं अभी इस पर्व में नहीं जाता, क्योंकि अभी तक मेरा समय पूरा नहीं हुआ।”\wj*
|
||
\v 9 वह उनसे ये बातें कहकर गलील ही में रह गया।
|
||
\s झोपड़ियों के पर्व में यीशु
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||
\p
|
||
\v 10 परन्तु जब उसके भाई पर्व में चले गए, तो वह आप ही प्रगट में नहीं, परन्तु मानो गुप्त होकर गया।
|
||
\v 11 यहूदी पर्व में उसे यह कहकर ढूँढ़ने लगे कि “वह कहाँ है?”
|
||
\v 12 और लोगों में उसके विषय चुपके-चुपके बहुत सी बातें हुईं: कितने कहते थे, “वह भला मनुष्य है।” और कितने कहते थे, “नहीं, वह लोगों को भरमाता है।”
|
||
\v 13 तो भी यहूदियों के भय के मारे कोई व्यक्ति उसके विषय में खुलकर नहीं बोलता था।
|
||
\s पर्व में यीशु का उपदेश
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||
\p
|
||
\v 14 और जब पर्व के आधे दिन बीत गए; तो यीशु मन्दिर में जाकर उपदेश करने लगा।
|
||
\v 15 तब यहूदियों ने अचम्भा करके कहा, “इसे बिन पढ़े विद्या कैसे आ गई?”
|
||
\v 16 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।\wj*
|
||
\v 17 \it \+wj यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे\f + \fr 7:17 \fq यदि कोई उसकी इच्छा पर चलना चाहे: \ft वस्तुतः यदि कोई मनुष्य इच्छा करता है या परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार है।\f*\+wj*\it*\wj , तो वह इस उपदेश के विषय में जान जाएगा कि वह परमेश्वर की ओर से है, या मैं अपनी ओर से कहता हूँ।\wj*
|
||
\v 18 \wj जो अपनी ओर से कुछ कहता है, वह अपनी ही बढ़ाई चाहता है; परन्तु जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है वही सच्चा है, और उसमें अधर्म नहीं।\wj*
|
||
\v 19 \wj क्या मूसा ने तुम्हें व्यवस्था नहीं दी? तो भी तुम में से कोई व्यवस्था पर नहीं चलता। तुम क्यों मुझे मार डालना चाहते हो?”\wj*
|
||
\v 20 लोगों ने उत्तर दिया; “तुझ में दुष्टात्मा है! कौन तुझे मार डालना चाहता है?”
|
||
\v 21 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “मैंने एक काम किया, और तुम सब अचम्भा करते हो।\wj*
|
||
\v 22 \wj इसी कारण मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी है, यह नहीं कि वह मूसा की ओर से है परन्तु पूर्वजों से चली आई है, और तुम सब्त के दिन को मनुष्य का खतना करते हो।\wj* \bdit (उत्प. 17:10-13, लैव्य. 12:3) \bdit*
|
||
\v 23 \wj जब सब्त के दिन मनुष्य का खतना किया जाता है ताकि मूसा की व्यवस्था की आज्ञा टल न जाए, तो तुम मुझ पर क्यों इसलिए क्रोध करते हो, कि मैंने सब्त के दिन एक मनुष्य को पूरी रीति से चंगा किया।\wj*
|
||
\v 24 \wj मुँह देखकर न्याय न करो, परन्तु ठीक-ठीक न्याय करो।”\wj* \bdit (यशा. 11:3, यूह. 8:15) \bdit*
|
||
\s क्या यीशु ही मसीहा है?
|
||
\p
|
||
\v 25 तब कितने यरूशलेमवासी कहने लगे, “क्या यह वह नहीं, जिसके मार डालने का प्रयत्न किया जा रहा है?
|
||
\v 26 परन्तु देखो, वह तो खुल्लमखुल्ला बातें करता है और कोई उससे कुछ नहीं कहता; क्या सम्भव है कि सरदारों ने सच-सच जान लिया है; कि यही मसीह है?
|
||
\v 27 इसको तो हम जानते हैं, कि यह कहाँ का है; परन्तु मसीह जब आएगा, तो कोई न जानेगा कि वह कहाँ का है।”
|
||
\v 28 तब यीशु ने मन्दिर में उपदेश देते हुए पुकारके कहा, \wj “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं तो आप से नहीं आया परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है, उसको तुम नहीं जानते।\wj*
|
||
\v 29 \wj मैं उसे जानता हूँ; क्योंकि मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।”\wj*
|
||
\v 30 इस पर उन्होंने उसे पकड़ना चाहा तो भी किसी ने उस पर हाथ न डाला, क्योंकि उसका समय अब तक न आया था।
|
||
\v 31 और भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया, और कहने लगे, “मसीह जब आएगा, तो क्या इससे अधिक चिन्हों को दिखाएगा जो इसने दिखाए?”
|
||
\s यीशु को पकड़ने का प्रयास
|
||
\p
|
||
\v 32 फरीसियों ने लोगों को उसके विषय में ये बातें चुपके-चुपके करते सुना; और प्रधान याजकों और फरीसियों ने उसे पकड़ने को सिपाही भेजे।
|
||
\v 33 इस पर यीशु ने कहा, \wj “मैं थोड़ी देर तक और तुम्हारे साथ हूँ; तब अपने भेजनेवाले के पास चला जाऊँगा।\wj*
|
||
\v 34 \wj तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु नहीं पाओगे; और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।”\wj*
|
||
\v 35 यहूदियों ने आपस में कहा, “यह कहाँ जाएगा कि हम इसे न पाएँगे? क्या वह उन यहूदियों के पास जाएगा जो यूनानियों में तितर-बितर होकर रहते हैं, और यूनानियों को भी उपदेश देगा?
|
||
\v 36 यह क्या बात है जो उसने कही, कि ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे, परन्तु न पाओगे: और जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
|
||
\s जीवन-जल की नदियाँ
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||
\p
|
||
\v 37 फिर पर्व के अन्तिम दिन, जो मुख्य दिन है, यीशु खड़ा हुआ और पुकारकर कहा, \wj “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पीए।\wj* \bdit (यशा. 55:1) \bdit*
|
||
\v 38 \it \+wj जो मुझ पर विश्वास करेगा\f + \fr 7:38 \fq जो मुझ पर विश्वास करेगा: \ft वह जो मुझे मसीह के रूप में स्वीकार करता है और उद्धार के लिए मुझ में विश्वास करता हैं।\f*\+wj*\it*\wj , जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, ‘उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी।’”\wj*
|
||
\v 39 उसने यह वचन उस आत्मा के विषय में कहा, जिसे उस पर विश्वास करनेवाले पाने पर थे; क्योंकि आत्मा अब तक न उतरा था, क्योंकि यीशु अब तक अपनी महिमा को न पहुँचा था। \bdit (यशा. 44:3) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 40 तब भीड़ में से किसी किसी ने ये बातें सुनकर कहा, “सचमुच यही वह भविष्यद्वक्ता है।” \bdit (मत्ती 21:11) \bdit*
|
||
\v 41 औरों ने कहा, “यह मसीह है,” परन्तु किसी ने कहा, “क्यों? क्या मसीह गलील से आएगा?
|
||
\v 42 क्या पवित्रशास्त्र में नहीं लिखा कि मसीह दाऊद के वंश से और बैतलहम गाँव से आएगा, जहाँ दाऊद रहता था?” \bdit (यशा. 11:1, मीका 5:2) \bdit*
|
||
\v 43 अतः उसके कारण लोगों में फूट पड़ी।
|
||
\v 44 उनमें से कितने उसे पकड़ना चाहते थे, परन्तु किसी ने उस पर हाथ न डाला।
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\p
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||
\v 45 तब सिपाही प्रधान याजकों और फरीसियों के पास आए, और उन्होंने उनसे कहा, “तुम उसे क्यों नहीं लाए?”
|
||
\s यहूदी अगुओं का अविश्वास
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||
\p
|
||
\v 46 सिपाहियों ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न की।”
|
||
\v 47 फरीसियों ने उनको उत्तर दिया, “क्या तुम भी भरमाए गए हो?
|
||
\v 48 क्या शासकों या फरीसियों में से किसी ने भी उस पर विश्वास किया है?
|
||
\v 49 परन्तु ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, श्रापित हैं।”
|
||
\v 50 नीकुदेमुस ने, (जो पहले उसके पास आया था और उनमें से एक था), उनसे कहा,
|
||
\v 51 “क्या हमारी व्यवस्था किसी व्यक्ति को जब तक पहले उसकी सुनकर जान न ले कि वह क्या करता है; दोषी ठहराती है?”
|
||
\p
|
||
\v 52 उन्होंने उसे उत्तर दिया, “क्या तू भी गलील का है? ढूँढ़ और देख, कि गलील से कोई भविष्यद्वक्ता प्रगट नहीं होने का।”
|
||
\v 53 तब सब कोई अपने-अपने घर चले गए।
|
||
\c 8
|
||
\s व्यभिचारिणी को क्षमा
|
||
\p
|
||
\v 1 यीशु \it जैतून के पहाड़\it*\f + \fr 8:1 \fq जैतून के पहाड़: \ft यरूशलेम के पूर्व से सीधे करीब एक मील की दूरी पर यह पहाड़ हैं\f* पर गया।
|
||
\v 2 और भोर को फिर मन्दिर में आया, और सब लोग उसके पास आए; और वह बैठकर उन्हें उपदेश देने लगा।
|
||
\v 3 तब शास्त्रियों और फरीसियों ने एक स्त्री को लाकर जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी, और उसको बीच में खड़ा करके यीशु से कहा,
|
||
\v 4 “हे गुरु, यह स्त्री व्यभिचार करते पकड़ी गई है।
|
||
\v 5 व्यवस्था में मूसा ने हमें आज्ञा दी है कि ऐसी स्त्रियों को पथराव करें; अतः तू इस स्त्री के विषय में क्या कहता है?” \bdit (लैव्य. 20:10) \bdit*
|
||
\v 6 उन्होंने उसको परखने के लिये यह बात कही ताकि उस पर दोष लगाने के लिये कोई बात पाएँ, परन्तु यीशु झुककर उँगली से भूमि पर लिखने लगा।
|
||
\v 7 जब वे उससे पूछते रहे, तो उसने सीधे होकर उनसे कहा, \wj “तुम में जो निष्पाप हो, वही पहले उसको पत्थर मारे।”\wj* \bdit (रोम. 2:1) \bdit*
|
||
\v 8 और फिर झुककर भूमि पर उँगली से लिखने लगा।
|
||
\v 9 परन्तु वे यह सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक एक-एक करके निकल गए, और यीशु अकेला रह गया, और स्त्री वहीं बीच में खड़ी रह गई।
|
||
\v 10 यीशु ने सीधे होकर उससे कहा, \wj “हे नारी, वे कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर दण्ड की आज्ञा न दी?”\wj*
|
||
\v 11 उसने कहा, “हे प्रभु, किसी ने नहीं।” यीशु ने कहा, \wj “मैं भी तुझ पर दण्ड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।”\wj*
|
||
\s यीशु जगत की ज्योति
|
||
\p
|
||
\v 12 तब यीशु ने फिर लोगों से कहा, \wj “जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अंधकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”\wj* \bdit (यूह. 12:46) \bdit*
|
||
\v 13 फरीसियों ने उससे कहा; “तू अपनी गवाही आप देता है; तेरी गवाही ठीक नहीं।”
|
||
\v 14 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “यदि मैं अपनी गवाही आप देता हूँ, तो भी मेरी गवाही ठीक है, क्योंकि\wj* \it \+wj मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ\f + \fr 8:14 \fq मैं जानता हूँ, कि मैं कहाँ से आया हूँ: \ft मैं जानता हूँ किस अधिकार के द्वारा मैं यह करता हूँ; मैं जानता हूँ किसके द्वारा मैं भेजा गया हूँ\f*\+wj*\it* \wj और कहाँ को जाता हूँ? परन्तु तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आता हूँ या कहाँ को जाता हूँ।\wj*
|
||
\v 15 \wj तुम शरीर के अनुसार न्याय करते हो; मैं किसी का न्याय नहीं करता।\wj*
|
||
\v 16 \wj और यदि मैं न्याय करूँ भी, तो मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अकेला नहीं, परन्तु मैं पिता के साथ हूँ, जिसने मुझे भेजा है।\wj*
|
||
\v 17 \wj और तुम्हारी व्यवस्था में भी लिखा है; कि दो जनों की गवाही मिलकर ठीक होती है।\wj*
|
||
\v 18 \wj एक तो मैं आप अपनी गवाही देता हूँ, और दूसरा पिता मेरी गवाही देता है जिसने मुझे भेजा।”\wj* \bdit (व्यव. 19:15) \bdit*
|
||
\v 19 उन्होंने उससे कहा, “तेरा पिता कहाँ है?” यीशु ने उत्तर दिया, \wj “न तुम मुझे जानते हो, न मेरे पिता को, यदि मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।”\wj*
|
||
\v 20 ये बातें उसने मन्दिर में उपदेश देते हुए भण्डार घर में कहीं, और किसी ने उसे न पकड़ा; क्योंकि उसका समय अब तक नहीं आया था।
|
||
\s अपने विषय यीशु का कथन
|
||
\p
|
||
\v 21 उसने फिर उनसे कहा, \wj “मैं जाता हूँ, और तुम मुझे ढूँढ़ोगे और अपने पाप में मरोगे; जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।”\wj*
|
||
\v 22 इस पर यहूदियों ने कहा, “क्या वह अपने आपको मार डालेगा, जो कहता है, \wj ‘जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”\wj*
|
||
\v 23 उसने उनसे कहा, \wj “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ; तुम संसार के हो, मैं संसार का नहीं।\wj*
|
||
\v 24 \wj इसलिए मैंने तुम से कहा, कि तुम अपने पापों में मरोगे; क्योंकि यदि तुम विश्वास न करोगे कि मैं वही हूँ, तो अपने पापों में मरोगे।”\wj*
|
||
\v 25 उन्होंने उससे कहा, “तू कौन है?” यीशु ने उनसे कहा, \wj “वही हूँ जो प्रारम्भ से तुम से कहता आया हूँ।\wj*
|
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\v 26 \wj तुम्हारे विषय में मुझे बहुत कुछ कहना और निर्णय करना है परन्तु मेरा भेजनेवाला सच्चा है; और जो मैंने उससे सुना है, वही जगत से कहता हूँ।”\wj*
|
||
\v 27 वे न समझे कि हम से पिता के विषय में कहता है।
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||
\v 28 तब यीशु ने कहा, \wj “जब तुम मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाओगे, तो जानोगे कि मैं वही हूँ, और अपने आप से कुछ नहीं करता, परन्तु जैसे मेरे पिता परमेश्वर ने मुझे सिखाया, वैसे ही ये बातें कहता हूँ।\wj*
|
||
\v 29 \wj और मेरा भेजनेवाला मेरे साथ है; उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा; क्योंकि मैं सर्वदा वही काम करता हूँ, जिससे वह प्रसन्न होता है।”\wj*
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||
\v 30 वह ये बातें कह ही रहा था, कि बहुतों ने यीशु पर विश्वास किया।
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\s सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा
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\p
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\v 31 तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर विश्वास किया था, कहा, \wj “यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।\wj*
|
||
\v 32 \wj और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।”\wj*
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||
\v 33 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हम तो अब्राहम के वंश से हैं, और कभी किसी के दास नहीं हुए; फिर तू क्यों कहता है, कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे?”
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\p
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\v 34 यीशु ने उनको उत्तर दिया, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है, वह पाप का दास है।\wj*
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||
\v 35 \wj और दास सदा घर में नहीं रहता; पुत्र सदा रहता है।\wj* \bdit (गला. 4:30) \bdit*
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||
\v 36 \wj इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे।\wj*
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||
\v 37 \wj मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंश से हो; तो भी मेरा वचन तुम्हारे हृदय में जगह नहीं पाता, इसलिए तुम मुझे मार डालना चाहते हो।\wj*
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||
\v 38 \wj मैं वही कहता हूँ, जो अपने पिता के यहाँ देखा है; और तुम वही करते रहते हो जो तुम ने अपने पिता से सुना है।”\wj*
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||
\p
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||
\v 39 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा, \wj “यदि तुम अब्राहम के सन्तान होते, तो अब्राहम के समान काम करते।\wj*
|
||
\v 40 \wj परन्तु अब तुम मुझ जैसे मनुष्य को मार डालना चाहते हो, जिसने तुम्हें वह सत्य वचन बताया जो परमेश्वर से सुना, यह तो अब्राहम ने नहीं किया था।\wj*
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||
\v 41 \wj तुम अपने पिता के समान काम करते हो”\wj* उन्होंने उससे कहा, “हम व्यभिचार से नहीं जन्मे, हमारा एक पिता है अर्थात् परमेश्वर।”
|
||
\v 42 यीशु ने उनसे कहा, \wj “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्रेम रखते; क्योंकि मैं परमेश्वर में से निकलकर आया हूँ; मैं आप से नहीं आया, परन्तु उसी ने मुझे भेजा।\wj*
|
||
\v 43 \wj तुम मेरी बात क्यों नहीं समझते? इसलिए कि मेरा वचन सुन नहीं सकते।\wj*
|
||
\v 44 \it \+wj तुम अपने पिता शैतान से हो\f + \fr 8:44 \fq तुम अपने पिता शैतान से हो: \ft यही कारण है, तुम्हारे पास गुस्सा, शैतान का स्वभाव, या शैतान की आत्मा है।\f*\+wj*\it*\wj , और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरम्भ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उसमें है ही नहीं; जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, वरन् झूठ का पिता है।\wj* \bdit (प्रेरि. 13:10) \bdit*
|
||
\v 45 \wj परन्तु मैं जो सच बोलता हूँ, इसलिए तुम मेरा विश्वास नहीं करते।\wj*
|
||
\v 46 \wj तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूँ, तो तुम मेरा विश्वास क्यों नहीं करते?\wj*
|
||
\v 47 \it \+wj जो परमेश्वर से होता है\f + \fr 8:47 \fq जो परमेश्वर से होता है: \ft वह जो परमेश्वर से प्रेम, भय, और सम्मान करता है।\f*\+wj*\it*\wj , वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिए नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो।”\wj*
|
||
\s यीशु और अब्राहम
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||
\p
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||
\v 48 यह सुन यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम ठीक नहीं कहते, कि तू सामरी है, और तुझ में दुष्टात्मा है?”
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||
\v 49 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “मुझ में दुष्टात्मा नहीं; परन्तु मैं अपने पिता का आदर करता हूँ, और तुम मेरा निरादर करते हो।\wj*
|
||
\v 50 \wj परन्तु मैं अपनी प्रतिष्ठा नहीं चाहता, हाँ, एक है जो चाहता है, और न्याय करता है।\wj*
|
||
\v 51 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु को न देखेगा।”\wj*
|
||
\v 52 लोगों ने उससे कहा, “अब हमने जान लिया कि तुझ में दुष्टात्मा है: अब्राहम मर गया, और भविष्यद्वक्ता भी मर गए हैं और तू कहता है, ‘यदि कोई मेरे वचन पर चलेगा तो वह अनन्तकाल तक मृत्यु का स्वाद न चखेगा।’
|
||
\v 53 हमारा पिता अब्राहम तो मर गया, क्या तू उससे बड़ा है? और भविष्यद्वक्ता भी मर गए, तू अपने आपको क्या ठहराता है?”
|
||
\v 54 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “यदि मैं आप अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ नहीं, परन्तु मेरी महिमा करनेवाला मेरा पिता है, जिसे तुम कहते हो, कि वह हमारा परमेश्वर है।\wj*
|
||
\v 55 \wj और तुम ने तो उसे नहीं जाना: परन्तु मैं उसे जानता हूँ; और यदि कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे समान झूठा ठहरूँगा: परन्तु मैं उसे जानता, और उसके वचन पर चलता हूँ।\wj*
|
||
\v 56 \wj तुम्हारा पिता अब्राहम मेरा दिन देखने की आशा से बहुत मगन था; और उसने देखा, और आनन्द किया।”\wj*
|
||
\v 57 लोगों ने उससे कहा, “अब तक तू पचास वर्ष का नहीं, फिर भी तूने अब्राहम को देखा है?”
|
||
\v 58 यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।”\wj*
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||
\v 59 तब उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठाए, परन्तु यीशु छिपकर मन्दिर से निकल गया।
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||
\c 9
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||
\s जन्म के अंधे को दृष्टिदान
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||
\p
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\v 1 फिर जाते हुए उसने एक मनुष्य को देखा, जो जन्म से अंधा था।
|
||
\v 2 और उसके चेलों ने उससे पूछा, “हे \it रब्बी, किसने पाप किया था\it*\f + \fr 9:2 \fq रब्बी, किसने पाप किया था: \ft यह यहूदियों के बीच एक सार्वभौमिक विचार था कि सभी प्रकार की आपदा पाप के प्रभाव से होती थी। \f* कि यह अंधा जन्मा, इस मनुष्य ने, या उसके माता पिता ने?”
|
||
\v 3 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “न तो इसने पाप किया था, न इसके माता पिता ने परन्तु यह इसलिए हुआ, कि परमेश्वर के काम उसमें प्रगट हों।\wj*
|
||
\v 4 \wj जिसने मुझे भेजा है; हमें उसके काम दिन ही दिन में करना अवश्य है। वह रात आनेवाली है जिसमें कोई काम नहीं कर सकता।\wj*
|
||
\v 5 \wj जब तक मैं जगत में हूँ, तब तक जगत की ज्योति हूँ।”\wj* \bdit (यूह. 8:12) \bdit*
|
||
\v 6 यह कहकर उसने भूमि पर थूका और उस थूक से मिट्टी सानी, और वह मिट्टी उस अंधे की आँखों पर लगाकर।
|
||
\v 7 उससे कहा, \wj “जा, शीलोह के कुण्ड में धो ले”\wj* (शीलोह का अर्थ भेजा हुआ है) अतः उसने जाकर धोया, और देखता हुआ लौट आया। \bdit (यशा. 35:5) \bdit*
|
||
\v 8 तब पड़ोसी और जिन्होंने पहले उसे भीख माँगते देखा था, कहने लगे, “क्या यह वही नहीं, जो बैठा भीख माँगा करता था?”
|
||
\v 9 कुछ लोगों ने कहा, “यह वही है,” औरों ने कहा, “नहीं, परन्तु उसके समान है” उसने कहा, “मैं वही हूँ।”
|
||
\v 10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखें कैसे खुल गईं?”
|
||
\v 11 उसने उत्तर दिया, “यीशु नामक एक व्यक्ति ने मिट्टी सानी, और मेरी आँखों पर लगाकर मुझसे कहा, ‘शीलोह में जाकर धो ले,’ तो मैं गया, और धोकर देखने लगा।”
|
||
\v 12 उन्होंने उससे पूछा, “वह कहाँ है?” उसने कहा, “मैं नहीं जानता।”
|
||
\s फरीसियों द्वारा चंगाई की जाँच-पड़ताल
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\p
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||
\v 13 लोग उसे जो पहले अंधा था फरीसियों के पास ले गए।
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||
\v 14 जिस दिन यीशु ने मिट्टी सानकर उसकी आँखें खोली थी वह सब्त का दिन था।
|
||
\v 15 फिर फरीसियों ने भी उससे पूछा; तेरी आँखें किस रीति से खुल गई? उसने उनसे कहा, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी लगाई, फिर मैंने धो लिया, और अब देखता हूँ।”
|
||
\v 16 इस पर कई फरीसी कहने लगे, “\it यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं\it*\f + \fr 9:16 \fq यह मनुष्य परमेश्वर की ओर से नहीं: \ft परमेश्वर की ओर से नहीं भेजा गया, या परमेश्वर का मित्र नहीं हो सकता।\f*, क्योंकि वह सब्त का दिन नहीं मानता।” औरों ने कहा, “पापी मनुष्य कैसे ऐसे चिन्ह दिखा सकता है?” अतः उनमें फूट पड़ी।
|
||
\v 17 उन्होंने उस अंधे से फिर कहा, “उसने जो तेरी आँखें खोली, तू उसके विषय में क्या कहता है?” उसने कहा, “यह भविष्यद्वक्ता है।”
|
||
\p
|
||
\v 18 परन्तु यहूदियों को विश्वास न हुआ कि यह अंधा था और अब देखता है जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को जिसकी आँखें खुल गई थी, बुलाकर
|
||
\v 19 उनसे पूछा, “क्या यह तुम्हारा पुत्र है, जिसे तुम कहते हो कि अंधा जन्मा था? फिर अब कैसे देखता है?”
|
||
\v 20 उसके माता-पिता ने उत्तर दिया, “हम तो जानते हैं कि यह हमारा पुत्र है, और अंधा जन्मा था।
|
||
\v 21 परन्तु हम यह नहीं जानते हैं कि अब कैसे देखता है; और न यह जानते हैं, कि किसने उसकी आँखें खोलीं; वह सयाना है; उसी से पूछ लो; वह अपने विषय में आप कह देगा।”
|
||
\v 22 ये बातें उसके माता-पिता ने इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदियों से डरते थे; क्योंकि यहूदी एकमत हो चुके थे, कि यदि कोई कहे कि वह मसीह है, तो आराधनालय से निकाला जाए।
|
||
\v 23 इसी कारण उसके माता-पिता ने कहा, “वह सयाना है; उसी से पूछ लो।”
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\p
|
||
\v 24 तब उन्होंने उस मनुष्य को जो अंधा था दूसरी बार बुलाकर उससे कहा, “परमेश्वर की स्तुति कर; हम तो जानते हैं कि वह मनुष्य पापी है।”
|
||
\v 25 उसने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता कि वह पापी है या नहीं मैं एक बात जानता हूँ कि मैं अंधा था और अब देखता हूँ।”
|
||
\v 26 उन्होंने उससे फिर कहा, “उसने तेरे साथ क्या किया? और किस तरह तेरी आँखें खोली?”
|
||
\v 27 उसने उनसे कहा, “मैं तो तुम से कह चुका, और तुम ने न सुना; अब दूसरी बार क्यों सुनना चाहते हो? क्या तुम भी उसके चेले होना चाहते हो?”
|
||
\v 28 तब वे उसे बुरा-भला कहकर बोले, “तू ही उसका चेला है; हम तो मूसा के चेले हैं।
|
||
\v 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बातें कीं; परन्तु इस मनुष्य को नहीं जानते की कहाँ का है।”
|
||
\v 30 उसने उनको उत्तर दिया, “यह तो अचम्भे की बात है कि तुम नहीं जानते कि वह कहाँ का है तो भी उसने मेरी आँखें खोल दीं।
|
||
\v 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता परन्तु यदि कोई परमेश्वर का भक्त हो, और उसकी इच्छा पर चलता है, तो वह उसकी सुनता है। \bdit (नीति. 15:29) \bdit*
|
||
\v 32 जगत के आरम्भ से यह कभी सुनने में नहीं आया, कि किसी ने भी जन्म के अंधे की आँखें खोली हों।
|
||
\v 33 यदि यह व्यक्ति परमेश्वर की ओर से न होता, तो कुछ भी नहीं कर सकता।”
|
||
\v 34 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “तू तो बिलकुल पापों में जन्मा है, तू हमें क्या सिखाता है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया।
|
||
\s आत्मिक अंधापन
|
||
\p
|
||
\v 35 यीशु ने सुना, कि उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया है; और जब उससे भेंट हुई तो कहा, \wj “क्या तू परमेश्वर के पुत्र पर विश्वास करता है?”\wj*
|
||
\v 36 उसने उत्तर दिया, “हे प्रभु, वह कौन है कि मैं उस पर विश्वास करूँ?”
|
||
\v 37 यीशु ने उससे कहा, \wj “तूने उसे देखा भी है; और जो तेरे साथ बातें कर रहा है वही है।”\wj*
|
||
\v 38 उसने कहा, “हे प्रभु, \it मैं विश्वास करता हूँ\it*\f + \fr 9:38 \fq मैं विश्वास करता हूँ: \ft यह आभार प्रकट करने की और विश्वास की उमड़ रही अभिव्यक्ति थी।\f*।” और उसे दण्डवत् किया।
|
||
\v 39 तब यीशु ने कहा, \wj “मैं इस जगत में न्याय के लिये आया हूँ, ताकि जो नहीं देखते वे देखें, और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।”\wj*
|
||
\v 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने ये बातें सुनकर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?”
|
||
\v 41 यीशु ने उनसे कहा, \wj “यदि तुम अंधे होते तो पापी न ठहरते परन्तु अब कहते हो, कि हम देखते हैं, इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है।\wj*
|
||
\c 10
|
||
\s चरवाहा और भेड़ों का दृष्टान्त
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||
\p
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||
\v 1 \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो कोई द्वार से भेड़शाला में प्रवेश नहीं करता, परन्तु किसी दूसरी ओर से चढ़ जाता है,\wj* \it \+wj वह चोर और डाकू है\f + \fr 10:1 \fq वह चोर और डाकू है: \ft वह जो चुपचाप और गुप्त रूप से दूसरों की सम्पत्ति दूर ले जाता है।\f*\+wj*\it*\wj ।\wj*
|
||
\v 2 \wj परन्तु \wj*\it \+wj जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है\f + \fr 10:2 \fq जो द्वार से भीतर प्रवेश करता है: \ft यह एक तरीका था जिसमें एक चरवाहा अपने झुण्ड के बीच में प्रवेश करता था।\f*\+wj*\it* \wj वह भेड़ों का चरवाहा है।\wj*
|
||
\v 3 \wj उसके लिये द्वारपाल द्वार खोल देता है, और भेड़ें उसका शब्द सुनती हैं, और वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर बुलाता है और बाहर ले जाता है।\wj*
|
||
\v 4 \wj और जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल चुकता है, तो उनके आगे-आगे चलता है, और भेड़ें उसके पीछे-पीछे हो लेती हैं; क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं।\wj*
|
||
\v 5 \wj परन्तु वे पराए के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानतीं।”\wj*
|
||
\v 6 यीशु ने उनसे यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे न समझे कि ये क्या बातें हैं जो वह हम से कहता है।
|
||
\s यीशु अच्छा चरवाहा
|
||
\p
|
||
\v 7 तब यीशु ने उनसे फिर कहा, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि भेड़ों का द्वार मैं हूँ।\wj*
|
||
\v 8 \wj जितने मुझसे पहले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उनकी न सुनी।\wj* \bdit (यिर्म. 23:1, यूह. 10:27) \bdit*
|
||
\v 9 \wj द्वार मैं हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया-जाया करेगा और चारा पाएगा।\wj* \bdit (भज. 118:20) \bdit*
|
||
\v 10 \wj चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और हत्या करने और नष्ट करने को आता है। मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएँ, और बहुतायत से पाएँ।\wj*
|
||
\v 11 \wj अच्छा चरवाहा मैं हूँ; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।\wj* \bdit (भज. 23:1, यशा. 40:11, यहे. 34:15) \bdit*
|
||
\v 12 \wj मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िया उन्हें पकड़ता और तितर-बितर कर देता है।\wj*
|
||
\v 13 \wj वह इसलिए भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्ता नहीं।\wj*
|
||
\v 14 \wj अच्छा चरवाहा मैं हूँ;\wj* \it \+wj मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ\f + \fr 10:14 \fq मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ: \ft मैं अपने लोगों को जानता हूँ, यहाँ यह शब्द “जानता हूँ” स्नेही सम्बंध या प्रेम की भावना के लिए उपयोग किया गया है।\f*\+wj*\it*\wj , और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं।\wj*
|
||
\v 15 \wj जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिये अपना प्राण देता हूँ।\wj*
|
||
\v 16 \wj और मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं; मुझे उनका भी लाना अवश्य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।\wj* \bdit (यशा. 56:8, यहे. 34:23, यहे. 37:24) \bdit*
|
||
\v 17 \wj पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूँ।\wj*
|
||
\v 18 \it \+wj कोई उसे मुझसे छीनता नहीं\f + \fr 10:18 \fq कोई उसे मुझसे छीनता नहीं: \ft यह कि, कोई भी बल द्वारा इसे ले नहीं सकता, या जब तक कि मैं अपने आपको उसके हाथों में सौंप दूँ।\f*\+wj*\it*\wj , वरन् मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है। यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है।”\wj*
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||
\p
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||
\v 19 इन बातों के कारण यहूदियों में फिर फूट पड़ी।
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||
\v 20 उनमें से बहुत सारे कहने लगे, “उसमें दुष्टात्मा है, और वह पागल है; उसकी क्यों सुनते हो?”
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||
\v 21 औरों ने कहा, “ये बातें ऐसे मनुष्य की नहीं जिसमें दुष्टात्मा हो। क्या दुष्टात्मा अंधों की आँखें खोल सकती है?”
|
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\s यहूदियों का अविश्वास
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\p
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\v 22 यरूशलेम में स्थापन पर्व हुआ, और जाड़े की ऋतु थी।
|
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\v 23 और यीशु मन्दिर में सुलैमान के ओसारे में टहल रहा था।
|
||
\v 24 तब यहूदियों ने उसे आ घेरा और पूछा, “तू हमारे मन को कब तक दुविधा में रखेगा? यदि तू मसीह है, तो हम से साफ कह दे।”
|
||
\v 25 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “मैंने तुम से कह दिया, और तुम विश्वास करते ही नहीं, जो काम मैं अपने पिता के नाम से करता हूँ वे ही मेरे गवाह हैं।\wj*
|
||
\v 26 \wj परन्तु तुम इसलिए विश्वास नहीं करते, कि मेरी भेड़ों में से नहीं हो।\wj*
|
||
\v 27 \wj मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं।\wj*
|
||
\v 28 \wj और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, और वे कभी नाश नहीं होंगी, और कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा।\wj*
|
||
\v 29 \wj मेरा पिता, जिसने उन्हें मुझ को दिया है, सबसे बड़ा है, और कोई उन्हें पिता के हाथ से छीन नहीं सकता।\wj*
|
||
\v 30 \wj मैं और पिता एक हैं।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 31 यहूदियों ने उसे पथराव करने को फिर पत्थर उठाए।
|
||
\v 32 इस पर यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैंने तुम्हें अपने पिता की ओर से बहुत से भले काम दिखाए हैं, उनमें से किस काम के लिये तुम मुझे पथराव करते हो?”\wj*
|
||
\v 33 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझे पथराव नहीं करते, परन्तु परमेश्वर की निन्दा करने के कारण और इसलिए कि तू मनुष्य होकर अपने आपको परमेश्वर बनाता है।” \bdit (लैव्य. 24:16) \bdit*
|
||
\v 34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, \wj “क्या तुम्हारी व्यवस्था में नहीं लिखा है कि ‘मैंने कहा, तुम ईश्वर हो’?\wj* \bdit (भज. 82:6) \bdit*
|
||
\v 35 \wj यदि उसने उन्हें ईश्वर कहा जिनके पास परमेश्वर का वचन पहुँचा (और पवित्रशास्त्र की बात लोप नहीं हो सकती।) \wj*
|
||
\v 36 \wj तो जिसे पिता ने पवित्र ठहराकर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो, ‘तू निन्दा करता है,’ इसलिए कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ।’\wj*
|
||
\v 37 \wj यदि मैं अपने पिता का काम नहीं करता, तो मेरा विश्वास न करो।\wj*
|
||
\v 38 \wj परन्तु यदि मैं करता हूँ, तो चाहे मेरा विश्वास न भी करो, परन्तु उन कामों पर विश्वास करो, ताकि तुम जानो, और समझो, कि पिता मुझ में है, और मैं पिता में हूँ।”\wj*
|
||
\v 39 तब उन्होंने फिर उसे पकड़ने का प्रयत्न किया परन्तु वह उनके हाथ से निकल गया।
|
||
\p
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||
\v 40 फिर वह यरदन के पार उस स्थान पर चला गया, जहाँ यूहन्ना पहले बपतिस्मा दिया करता था, और वहीं रहा।
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\v 41 और बहुत सारे लोग उसके पास आकर कहते थे, “यूहन्ना ने तो कोई चिन्ह नहीं दिखाया, परन्तु जो कुछ यूहन्ना ने इसके विषय में कहा था वह सब सच था।”
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\v 42 और वहाँ बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
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\c 11
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\s लाज़र की मृत्यु
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\p
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\v 1 मरियम और उसकी बहन मार्था के गाँव बैतनिय्याह का लाज़र नामक एक मनुष्य बीमार था।
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\v 2 यह वही मरियम थी जिसने प्रभु पर इत्र डालकर उसके पाँवों को अपने बालों से पोंछा था, इसी का भाई लाज़र बीमार था।
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||
\v 3 तब उसकी बहनों ने उसे कहला भेजा, “हे प्रभु, देख, \it जिससे तू प्यार करता है\it*\f + \fr 11:3 \fq जिससे तू प्यार करता है: \ft इस परिवार के सदस्य कुछ विशेष लोगों में और हमारे प्रभु के अन्तरंग मित्रों में से एक थे\f*, वह बीमार है।”
|
||
\v 4 यह सुनकर यीशु ने कहा, \wj “यह बीमारी मृत्यु की नहीं, परन्तु परमेश्वर की महिमा के लिये है, कि उसके द्वारा परमेश्वर के पुत्र की महिमा हो।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 5 और यीशु मार्था और उसकी बहन और लाज़र से प्रेम रखता था।
|
||
\v 6 जब उसने सुना, कि वह बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया।
|
||
\v 7 फिर इसके बाद उसने चेलों से कहा, \wj “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।”\wj*
|
||
\v 8 चेलों ने उससे कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझे पथराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है?”
|
||
\v 9 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “क्या दिन के बारह घंटे नहीं होते? यदि कोई दिन को चले, तो ठोकर नहीं खाता, क्योंकि इस जगत का उजाला देखता है।\wj*
|
||
\v 10 \wj परन्तु यदि कोई रात को चले, तो ठोकर खाता है, क्योंकि उसमें प्रकाश नहीं।”\wj*
|
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\v 11 उसने ये बातें कहीं, और इसके बाद उनसे कहने लगा, \wj “हमारा मित्र लाज़र सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूँ।”\wj*
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\v 12 तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा।”
|
||
\v 13 यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा।
|
||
\v 14 तब यीशु ने उनसे साफ कह दिया, \wj “लाज़र मर गया है।\wj*
|
||
\v 15 \wj और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्वास करो। परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।”\wj*
|
||
\v 16 तब थोमा ने जो दिदुमुस कहलाता है, अपने साथ के चेलों से कहा, “आओ, हम भी उसके साथ मरने को चलें।”
|
||
\s यीशु पुनरुत्थान और जीवन
|
||
\p
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||
\v 17 फिर यीशु को आकर यह मालूम हुआ कि उसे कब्र में रखे चार दिन हो चुके हैं।
|
||
\v 18 बैतनिय्याह यरूशलेम के समीप कोई दो मील की दूरी पर था।
|
||
\v 19 और बहुत से यहूदी मार्था और मरियम के पास उनके भाई के विषय में शान्ति देने के लिये आए थे।
|
||
\v 20 जब मार्था यीशु के आने का समाचार सुनकर उससे भेंट करने को गई, परन्तु मरियम घर में बैठी रही।
|
||
\v 21 मार्था ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता।
|
||
\v 22 और अब भी मैं जानती हूँ, कि जो कुछ तू परमेश्वर से माँगेगा, परमेश्वर तुझे देगा।”
|
||
\v 23 यीशु ने उससे कहा, \wj “तेरा भाई जी उठेगा।”\wj*
|
||
\v 24 मार्था ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ, अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।” \bdit (प्रेरि. 24:15) \bdit*
|
||
\v 25 यीशु ने उससे कहा, \wj “\wj*\it \+wj पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ\f + \fr 11:25 \fq पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ: \ft अर्थात् वह पुनरुत्थान का कर्ता है या उसके होने का कारण है। \f*\+wj*\it*\wj , जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तो भी जीएगा।\wj*
|
||
\v 26 \wj और जो कोई जीवित है, और मुझ पर विश्वास करता है, वह अनन्तकाल तक न मरेगा। क्या तू इस बात पर विश्वास करती है?”\wj*
|
||
\v 27 उसने उससे कहा, “हाँ, हे प्रभु, मैं विश्वास कर चुकी हूँ, कि परमेश्वर का पुत्र मसीह जो जगत में आनेवाला था, वह तू ही है।”
|
||
\s लाज़र का जिलाया जाना
|
||
\p
|
||
\v 28 यह कहकर वह चली गई, और अपनी बहन मरियम को चुपके से बुलाकर कहा, “गुरु यहीं है, और तुझे बुलाता है।”
|
||
\v 29 वह सुनते ही तुरन्त उठकर उसके पास आई।
|
||
\v 30 (यीशु अभी गाँव में नहीं पहुँचा था, परन्तु उसी स्थान में था जहाँ मार्था ने उससे भेंट की थी।)
|
||
\v 31 तब जो यहूदी उसके साथ घर में थे, और उसे शान्ति दे रहे थे, यह देखकर कि मरियम तुरन्त उठकर बाहर गई है और यह समझकर कि वह कब्र पर रोने को जाती है, उसके पीछे हो लिये।
|
||
\v 32 जब मरियम वहाँ पहुँची जहाँ यीशु था, तो उसे देखते ही उसके पाँवों पर गिरकर कहा, “हे प्रभु, यदि तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।”
|
||
\v 33 जब यीशु ने उसको और उन यहूदियों को जो उसके साथ आए थे रोते हुए देखा, तो आत्मा में बहुत ही उदास और व्याकुल हुआ,
|
||
\v 34 और कहा, \wj “तुम ने उसे कहाँ रखा है?”\wj* उन्होंने उससे कहा, “हे प्रभु, चलकर देख ले।”
|
||
\v 35 \it यीशु रोया\it*\f + \fr 11:35 \fq यीशु रोया: \ft यह प्रभु यीशु को एक मित्र, एक संवेदनशील मित्र के रूप में, और उनके चरित्र को एक मनुष्य के रूप में दिखाता है।\f*।
|
||
\v 36 तब यहूदी कहने लगे, “देखो, वह उससे कैसा प्यार करता था।”
|
||
\v 37 परन्तु उनमें से कितनों ने कहा, “क्या यह जिसने अंधे की आँखें खोलीं, यह भी न कर सका कि यह मनुष्य न मरता?”
|
||
\p
|
||
\v 38 यीशु मन में फिर बहुत ही उदास होकर कब्र पर आया, वह एक गुफा थी, और एक पत्थर उस पर धरा था।
|
||
\v 39 यीशु ने कहा, \wj “पत्थर को उठाओ।”\wj* उस मरे हुए की बहन मार्था उससे कहने लगी, “हे प्रभु, उसमें से अब तो दुर्गन्ध आती है, क्योंकि उसे मरे चार दिन हो गए।”
|
||
\v 40 यीशु ने उससे कहा, \wj “क्या मैंने तुझ से न कहा था कि यदि तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा को देखेगी।”\wj*
|
||
\v 41 तब उन्होंने उस पत्थर को हटाया, फिर यीशु ने आँखें उठाकर कहा, \wj “हे पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुन ली है।\wj*
|
||
\v 42 \wj और मैं जानता था, कि तू सदा मेरी सुनता है, परन्तु जो भीड़ आस-पास खड़ी है, उनके कारण मैंने यह कहा, जिससे कि वे विश्वास करें, कि तूने मुझे भेजा है।”\wj*
|
||
\v 43 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, \wj “हे लाज़र, निकल आ!”\wj*
|
||
\v 44 जो मर गया था, वह कफन से हाथ पाँव बंधे हुए निकल आया और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, \wj “उसे खोलकर जाने दो।”\wj*
|
||
\s यीशु के खिलाफ षड्यंत्र
|
||
\p
|
||
\v 45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे, और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
|
||
\v 46 परन्तु उनमें से कितनों ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया।
|
||
\v 47 इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने मुख्य सभा के लोगों को इकट्ठा करके कहा, “हम क्या करेंगे? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है।
|
||
\v 48 यदि हम उसे ऐसे ही छोड़ दें, तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे और रोमी आकर हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे।”
|
||
\v 49 तब उनमें से कैफा नामक एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते;
|
||
\v 50 और न यह सोचते हो, कि तुम्हारे लिये यह भला है, कि लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और न यह, कि सारी जाति नाश हो।”
|
||
\v 51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यद्वाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा;
|
||
\v 52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन् इसलिए भी, कि परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे।
|
||
\v 53 अतः उसी दिन से वे उसके मार डालने की सम्मति करने लगे।
|
||
\p
|
||
\v 54 इसलिए यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा; परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के एप्रैम नामक, एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा।
|
||
\p
|
||
\v 55 और यहूदियों का फसह निकट था, और बहुत सारे लोग फसह से पहले दिहात से यरूशलेम को गए कि अपने आपको शुद्ध करें। \bdit (2 इति. 30:17) \bdit*
|
||
\v 56 वे यीशु को ढूँढ़ने और मन्दिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम क्या समझते हो? क्या वह पर्व में नहीं आएगा?”
|
||
\v 57 और प्रधान याजकों और फरीसियों ने भी आज्ञा दे रखी थी, कि यदि कोई यह जाने कि यीशु कहाँ है तो बताए, कि वे उसे पकड़ लें।
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||
\c 12
|
||
\s बैतनिय्याह में यीशु का आदर
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||
\p
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||
\v 1 फिर यीशु फसह से छः दिन पहले बैतनिय्याह में आया, जहाँ लाज़र था; जिसे यीशु ने मरे हुओं में से जिलाया था।
|
||
\v 2 वहाँ उन्होंने उसके लिये भोजन तैयार किया, और मार्था सेवा कर रही थी, और लाज़र उनमें से एक था, जो उसके साथ भोजन करने के लिये बैठे थे।
|
||
\v 3 तब मरियम ने जटामासी का आधा सेर बहुमूल्य इत्र लेकर यीशु के पाँवों पर डाला, और अपने बालों से उसके पाँव पोंछे, और इत्र की सुगन्ध से घर सुगन्धित हो गया।
|
||
\v 4 परन्तु उसके चेलों में से यहूदा इस्करियोती नामक एक चेला जो उसे पकड़वाने पर था, कहने लगा,
|
||
\v 5 “यह इत्र तीन सौ दीनार में बेचकर गरीबों को क्यों न दिया गया?”
|
||
\v 6 उसने यह बात इसलिए न कही, कि उसे गरीबों की चिन्ता थी, परन्तु इसलिए कि वह चोर था और उसके पास उनकी थैली रहती थी, और उसमें जो कुछ डाला जाता था, वह निकाल लेता था।
|
||
\v 7 यीशु ने कहा, \wj “उसे मेरे गाड़े जाने के दिन के लिये रहने दे।\wj*
|
||
\v 8 \wj क्योंकि गरीब तो तुम्हारे साथ सदा रहते हैं, परन्तु मैं तुम्हारे साथ सदा न रहूँगा।”\wj* \bdit (मर. 14:7) \bdit*
|
||
\s लाज़र को मार डालने का निर्णय
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\p
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||
\v 9 यहूदियों में से साधारण लोग जान गए, कि वह वहाँ है, और वे न केवल यीशु के कारण आए परन्तु इसलिए भी कि लाज़र को देखें, जिसे उसने मरे हुओं में से जिलाया था।
|
||
\v 10 तब प्रधान याजकों ने लाज़र को भी मार डालने की सम्मति की।
|
||
\v 11 क्योंकि उसके कारण बहुत से यहूदी चले गए, और यीशु पर विश्वास किया।
|
||
\s यीशु का यरूशलेम में विजय-प्रवेश
|
||
\p
|
||
\v 12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आ रहा है।
|
||
\v 13 उन्होंने खजूर की डालियाँ लीं, और उससे भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, “होशाना! धन्य इस्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।” \bdit (भज. 118:25,26) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो वह उस पर बैठा, जैसा लिखा है,
|
||
\q
|
||
\v 15 “हे सिय्योन की बेटी,
|
||
\q मत डर;
|
||
\q देख, तेरा राजा गदहे के बच्चे पर चढ़ा
|
||
\q हुआ चला आता है।”
|
||
\p
|
||
\v 16 उसके चेले, ये बातें पहले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उनको स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उससे इस प्रकार का व्यवहार किया था।
|
||
\v 17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाज़र को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था।
|
||
\v 18 इसी कारण लोग उससे भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है।
|
||
\v 19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, “सोचो, तुम लोग कुछ नहीं कर पा रहे हो; देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।”
|
||
\s यीशु और यूनानी
|
||
\p
|
||
\v 20 जो लोग उस पर्व में आराधना करने आए थे उनमें से कई यूनानी थे।
|
||
\v 21 उन्होंने गलील के बैतसैदा के रहनेवाले फिलिप्पुस के पास आकर उससे विनती की, “श्रीमान हम यीशु से भेंट करना चाहते हैं।”
|
||
\v 22 फिलिप्पुस ने आकर अन्द्रियास से कहा; तब अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने जाकर यीशु से कहा।
|
||
\v 23 इस पर यीशु ने उनसे कहा, \wj “\wj*\it \+wj वह समय आ गया है\f + \fr 12:23 \fq वह समय आ गया है: \ft यह एक संक्षिप्त अवधि, और एक स्थिर, निश्चित, निर्धारित समय निरुपित करने के लिए उपयोग किया गया है।\f*\+wj*\it*\wj , कि मनुष्य के पुत्र कि महिमा हो।\wj*
|
||
\v 24 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जब तक गेहूँ का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।\wj*
|
||
\v 25 \wj जो अपने प्राण को प्रिय जानता है, वह उसे खो देता है; और जो इस जगत में अपने प्राण को अप्रिय जानता है; वह अनन्त जीवन के लिये उसकी रक्षा करेगा।\wj*
|
||
\v 26 \wj यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।\wj*
|
||
\s अपनी मृत्यु के बारे में भविष्यद्वाणी
|
||
\p
|
||
\v 27 \wj “\wj*\it \+wj अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है\f + \fr 12:27 \fq अब मेरा जी व्याकुल हो रहा है: \ft उनकी उल्लेखित मृत्यु से पहले उनके पास अपने अत्यन्त भय, अपने दर्द और अपने अंधेरे को लाया।\f*\+wj*\it*\wj । इसलिए अब मैं क्या कहूँ? ‘हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा?’ परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुँचा हूँ।\wj*
|
||
\v 28 \wj हे पिता अपने नाम की महिमा कर।”\wj* तब यह आकाशवाणी हुई, “मैंने उसकी महिमा की है, और फिर भी करूँगा।”
|
||
\v 29 तब जो लोग खड़े हुए सुन रहे थे, उन्होंने कहा; कि बादल गरजा, औरों ने कहा, “कोई स्वर्गदूत उससे बोला।”
|
||
\v 30 इस पर यीशु ने कहा, \wj “यह शब्द मेरे लिये नहीं परन्तु तुम्हारे लिये आया है।\wj*
|
||
\v 31 \wj अब इस जगत का न्याय होता है,\wj* \it \+wj अब इस जगत का सरदार\f + \fr 12:31 \fq अब इस जगत का सरदार: \ft शैतान, या दुष्ट, वह इस संसार का सरदार भी कहा जाता है। (यूह 14:30, यूहन्ना 16:11) \f*\+wj*\it* \wj निकाल दिया जाएगा। \wj*
|
||
\v 32 \wj और मैं यदि पृथ्वी पर से ऊँचे पर चढ़ाया जाऊँगा, तो सब को अपने पास खीचूँगा।”\wj*
|
||
\v 33 ऐसा कहकर उसने यह प्रगट कर दिया, कि वह कैसी मृत्यु से मरेगा।
|
||
\v 34 इस पर लोगों ने उससे कहा, “हमने व्यवस्था की यह बात सुनी है, कि मसीह सर्वदा रहेगा, फिर तू क्यों कहता है, कि \wj मनुष्य के पुत्र को ऊँचे पर चढ़ाया जाना अवश्य है?\wj* यह मनुष्य का पुत्र कौन है?” \bdit (दानि. 7:14) \bdit*
|
||
\v 35 यीशु ने उनसे कहा, \wj “ज्योति अब थोड़ी देर तक तुम्हारे बीच में है, जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है तब तक चले चलो; ऐसा न हो कि अंधकार तुम्हें आ घेरे; जो अंधकार में चलता है वह नहीं जानता कि किधर जाता है।\wj*
|
||
\v 36 \wj जब तक ज्योति तुम्हारे साथ है, ज्योति पर विश्वास करो कि तुम ज्योति के सन्तान बनो।”\wj* ये बातें कहकर यीशु चला गया और उनसे छिपा रहा।
|
||
\s भविष्यद्वाणियों का पूरा होना
|
||
\p
|
||
\v 37 और उसने उनके सामने इतने चिन्ह दिखाए, तो भी उन्होंने उस पर विश्वास न किया;
|
||
\v 38 ताकि यशायाह भविष्यद्वक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा:
|
||
\q “हे प्रभु, हमारे समाचार पर किसने विश्वास किया है?
|
||
\q और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ?” \bdit (यशा. 53:1) \bdit*
|
||
\v 39 इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यह भी कहा है:
|
||
\q
|
||
\v 40 “उसने उनकी आँखें अंधी,
|
||
\q और उनका मन कठोर किया है;
|
||
\q कहीं ऐसा न हो, कि आँखों से देखें,
|
||
\q और मन से समझें,
|
||
\q और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूँ।” \bdit (यशा. 6:10) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 41 यशायाह ने ये बातें इसलिए कहीं, कि उसने उसकी महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें की।
|
||
\v 42 तो भी सरदारों में से भी बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, ऐसा न हो कि आराधनालय में से निकाले जाएँ।
|
||
\v 43 क्योंकि मनुष्यों की प्रशंसा उनको परमेश्वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।
|
||
\s ज्योति में चलना
|
||
\p
|
||
\v 44 यीशु ने पुकारकर कहा, \wj “जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं, वरन् मेरे भेजनेवाले पर विश्वास करता है।\wj*
|
||
\v 45 \wj और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजनेवाले को देखता है।\wj*
|
||
\v 46 \wj मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे, वह अंधकार में न रहे।\wj*
|
||
\v 47 \wj यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ।\wj*
|
||
\v 48 \it \+wj जो मुझे तुच्छ जानता है \+wj*\it*\f + \fr 12:48 \fq जो मुझे तुच्छ जानता है: \ft “तुच्छ” शब्द का मतलब तिरस्कार करना, या उसे ग्रहण करने के लिए अस्वीकार करना है।\f* \wj और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैंने कहा है, वह अन्तिम दिन में उसे दोषी ठहराएगा। \wj*
|
||
\v 49 \wj क्योंकि मैंने अपनी ओर से बातें नहीं की, परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है, कि क्या-क्या कहूँ और क्या-क्या बोलूँ?\wj*
|
||
\v 50 \wj और मैं जानता हूँ, कि उसकी आज्ञा अनन्त जीवन है इसलिए मैं जो बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझसे कहा है वैसा ही बोलता हूँ।” \wj*
|
||
\c 13
|
||
\s प्रभु भोज
|
||
\p
|
||
\v 1 फसह के पर्व से पहले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरा वह समय आ पहुँचा है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊँ, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।
|
||
\v 2 और जब शैतान शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था, कि उसे पकड़वाए, तो भोजन के समय
|
||
\v 3 यीशु ने, यह जानकर कि पिता ने सब कुछ उसके हाथ में कर दिया है और मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ, और परमेश्वर के पास जाता हूँ।
|
||
\v 4 भोजन पर से उठकर अपने कपड़े उतार दिए, और अँगोछा लेकर अपनी कमर बाँधी।
|
||
\s यीशु का चेलों के पैर धोना
|
||
\p
|
||
\v 5 तब बर्तन में पानी भरकर \it चेलों के पाँव धोने\it*\f + \fr 13:5 \fq चेलों के पाँव धोने: \ft यह दासों के लिए अतिथियों के पाँव धोने का एक रिवाज था।\f* और जिस अँगोछे से उसकी कमर बंधी थी उसी से पोंछने लगा।
|
||
\v 6 जब वह शमौन पतरस के पास आया तब उसने उससे कहा, “हे प्रभु, क्या तू मेरे पाँव धोता है?”
|
||
\v 7 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “जो मैं करता हूँ, तू अभी नहीं जानता, परन्तु इसके बाद समझेगा।”\wj*
|
||
\v 8 पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पाँव कभी न धोने पाएगा!” यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, \wj “यदि मैं तुझे न धोऊँ, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी भाग नहीं।”\wj*
|
||
\v 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पाँव ही नहीं, वरन् हाथ और सिर भी धो दे।”
|
||
\v 10 यीशु ने उससे कहा, \wj “जो नहा चुका है, उसे पाँव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं।”\wj*
|
||
\v 11 वह तो अपने पकड़वानेवाले को जानता था इसलिए उसने कहा, \wj “तुम सब के सब शुद्ध नहीं।”\wj*
|
||
\s पैर धोने का अर्थ
|
||
\p
|
||
\v 12 जब वह उनके पाँव धो चुका और अपने कपड़े पहनकर फिर बैठ गया तो उनसे कहने लगा, \wj “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया?\wj*
|
||
\v 13 \wj तुम मुझे गुरु, और प्रभु, कहते हो, और भला ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ।\wj*
|
||
\v 14 \wj यदि मैंने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए।\wj*
|
||
\v 15 \wj क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।\wj*
|
||
\v 16 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से।\wj*
|
||
\v 17 \wj तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।\wj*
|
||
\v 18 \wj मैं तुम सब के विषय में नहीं कहता: जिन्हें मैंने चुन लिया है, उन्हें मैं जानता हूँ; परन्तु यह इसलिए है, कि पवित्रशास्त्र का यह वचन पूरा हो, ‘जो मेरी रोटी खाता है, उसने मुझ पर लात उठाई।’\wj* \bdit (भज. 41:9) \bdit*
|
||
\v 19 \wj अब मैं उसके होने से पहले तुम्हें जताए देता हूँ कि जब हो जाए तो तुम विश्वास करो कि मैं वही हूँ।\wj* \bdit (यूह. 14:29) \bdit*
|
||
\v 20 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मेरे भेजे हुए को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, और जो मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।”\wj*
|
||
\s विश्वासघात की ओर संकेत
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||
\p
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||
\v 21 ये बातें कहकर यीशु आत्मा में व्याकुल हुआ और यह गवाही दी, \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा।”\wj*
|
||
\v 22 चेले यह संदेह करते हुए, कि वह किसके विषय में कहता है, एक दूसरे की ओर देखने लगे।
|
||
\v 23 उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था।
|
||
\v 24 तब शमौन पतरस ने उसकी ओर संकेत करके पूछा, “बता तो, वह किसके विषय में कहता है?”
|
||
\v 25 तब उसने उसी तरह यीशु की छाती की ओर झुककर पूछा, “हे प्रभु, वह कौन है?”
|
||
\v 26 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “जिसे मैं यह रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।”\wj* और उसने टुकड़ा डुबोकर शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती को दिया।
|
||
\v 27 और टुकड़ा लेते ही शैतान उसमें समा गया: तब यीशु ने उससे कहा, \wj “जो तू करनेवाला है, तुरन्त कर।”\wj*
|
||
\v 28 परन्तु बैठनेवालों में से किसी ने न जाना कि उसने यह बात उससे किस लिये कही।
|
||
\v 29 यहूदा के पास थैली रहती थी, इसलिए किसी किसी ने समझा, कि यीशु उससे कहता है, कि जो कुछ हमें पर्व के लिये चाहिए वह मोल ले, या यह कि गरीबों को कुछ दे।
|
||
\v 30 तब वह टुकड़ा लेकर तुरन्त बाहर चला गया, और यह रात्रि का समय था।
|
||
\s एक नई आज्ञा
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||
\p
|
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\v 31 जब वह बाहर चला गया तो यीशु ने कहा, \wj “अब मनुष्य के पुत्र की महिमा हुई, और परमेश्वर की महिमा उसमें हुई;\wj*
|
||
\v 32 \wj और परमेश्वर भी अपने में उसकी महिमा करेगा, वरन् तुरन्त करेगा।\wj*
|
||
\v 33 \it \+wj हे बालकों\f + \fr 13:33 \fq हे बालकों: \ft महान कोमलता की एक अभिव्यक्ति, उनकी समृद्धि में उनकी गहरी रूचि को दर्शाता है।\f*\+wj*\it*\wj , मैं और थोड़ी देर तुम्हारे पास हूँ: फिर तुम मुझे ढूँढ़ोगे, और जैसा मैंने यहूदियों से कहा, ‘जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ।\wj*
|
||
\v 34 \it \+wj मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ\f + \fr 13:34 \fq मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ: \ft जिसके द्वारा वे उनके अनुसरण करनेवाले के रूप में जाना जा सकता है और जिसके द्वारा वे सभी दूसरे लोगों से प्रतिष्ठित किया जा सकता है।\f*\+wj*\it*\wj , कि एक दूसरे से प्रेम रखो जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।\wj*
|
||
\v 35 \wj यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।”\wj*
|
||
\s यीशु द्वारा पतरस के इन्कार की भविष्यद्वाणी
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\p
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\v 36 शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तू कहाँ जाता है?” यीशु ने उत्तर दिया, \wj “जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ तू अब मेरे पीछे आ नहीं सकता; परन्तु इसके बाद मेरे पीछे आएगा।”\wj*
|
||
\v 37 पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, अभी मैं तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तो तेरे लिये अपना प्राण दूँगा।”
|
||
\v 38 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “क्या तू मेरे लिये अपना प्राण देगा? मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ कि मुर्गा बाँग न देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा।\wj*
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\c 14
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\s यीशु का अपने चेलों को सांत्वना देना
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\p
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\v 1 \wj “\wj*\it \+wj तुम्हारा मन व्याकुल न हो\f + \fr 14:1 \fq तुम्हारा मन व्याकुल न हो: \ft यीशु ने जो उन्हें छोड़कर जाने की बात कहीं थी उस पर शिष्य बहुत व्याकुल हो रहे थे\f*\+wj*\it*\wj , तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो।\wj*
|
||
\v 2 \wj मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ।\wj*
|
||
\v 3 \wj और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा, कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो।\wj*
|
||
\s मार्ग, सत्य और जीवन
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||
\p
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||
\v 4 \wj “और जहाँ मैं जाता हूँ तुम वहाँ का मार्ग जानते हो।”\wj*
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||
\v 5 थोमा ने उससे कहा, “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जाता है; तो मार्ग कैसे जानें?”
|
||
\v 6 यीशु ने उससे कहा, \wj “\wj*\it \+wj मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ\f + \fr 14:6 \fq मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ: \ft उनके कहने का मतलब यह हैं कि, वे और अन्य सभी केवल उन्हीं के माध्यम से परमेश्वर के पास पहुँच सकते है।\f*\+wj*\it*\wj ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता।\wj*
|
||
\v 7 \wj यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे: यही हमारे लिये बहुत है।”
|
||
\v 9 यीशु ने उससे कहा, \wj “हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है: तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा?\wj*
|
||
\v 10 \wj क्या तू विश्वास नहीं करता, कि मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है।\wj*
|
||
\v 11 \wj मेरा ही विश्वास करो, कि मैं पिता में हूँ; और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो।\wj*
|
||
\s यीशु के नाम से प्रार्थना
|
||
\p
|
||
\v 12 \wj “मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन् इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ।\wj*
|
||
\v 13 \wj और जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वही मैं करूँगा कि पुत्र के द्वारा पिता की महिमा हो।\wj*
|
||
\v 14 \wj यदि तुम मुझसे मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं उसे करूँगा।\wj*
|
||
\s पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा
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||
\p
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||
\v 15 \wj “यदि तुम मुझसे प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।\wj*
|
||
\v 16 \wj और\wj* \it \+wj मैं पिता से विनती करूँगा\f + \fr 14:16 \fq मैं पिता से विनती करूँगा: \ft यह उनकी मृत्यु और स्वर्ग में उठा लिए जाने के बाद उनके द्वारा मध्यस्थता करने को संदर्भित करता है\f*\+wj*\it*\wj , और वह तुम्हें एक और सहायक देगा, कि वह सर्वदा तुम्हारे साथ रहे।\wj*
|
||
\v 17 \wj अर्थात् सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है: तुम उसे जानते हो, क्योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।\wj*
|
||
\p
|
||
\v 18 \wj “मैं तुम्हें अनाथ न छोड़ूँगा, मैं तुम्हारे पास वापस आता हूँ।\wj*
|
||
\v 19 \wj और थोड़ी देर रह गई है कि संसार मुझे न देखेगा, परन्तु तुम मुझे देखोगे, इसलिए कि मैं जीवित हूँ, तुम भी जीवित रहोगे।\wj*
|
||
\v 20 \wj उस दिन तुम जानोगे, कि मैं अपने पिता में हूँ, और तुम मुझ में, और मैं तुम में।\wj*
|
||
\v 21 \wj जिसके पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझसे प्रेम रखता है, और जो मुझसे प्रेम रखता है, उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूँगा, और अपने आपको उस पर प्रगट करूँगा।”\wj*
|
||
\v 22 उस यहूदा ने जो इस्करियोती न था, उससे कहा, “हे प्रभु, क्या हुआ कि तू अपने आपको हम पर प्रगट करना चाहता है, और संसार पर नहीं?”
|
||
\v 23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “यदि कोई मुझसे प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उससे प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएँगे, और उसके साथ वास करेंगे।\wj*
|
||
\v 24 \wj जो मुझसे प्रेम नहीं रखता, वह मेरे वचन नहीं मानता, और जो वचन तुम सुनते हो, वह मेरा नहीं वरन् पिता का है, जिसने मुझे भेजा।\wj*
|
||
\p
|
||
\v 25 \wj “ये बातें मैंने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कहीं।\wj*
|
||
\v 26 \wj परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैंने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”\wj*
|
||
\s यीशु की शान्ति का उपहार
|
||
\p
|
||
\v 27 \it \+wj मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ\f + \fr 14:27 \fq मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ: \ft यह यहूदियों के बीच आशीर्वाद देने का एक आम रूप था।\f*\+wj*\it*\wj , अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे।\wj*
|
||
\v 28 \wj तुम ने सुना, कि मैंने तुम से कहा, ‘मैं जाता हूँ, और तुम्हारे पास फिर आता हूँ’ यदि तुम मुझसे प्रेम रखते, तो इस बात से आनन्दित होते, कि मैं पिता के पास जाता हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है।\wj*
|
||
\v 29 \wj और मैंने अब इसके होने से पहले तुम से कह दिया है, कि जब वह हो जाए, तो तुम विश्वास करो।\wj*
|
||
\v 30 \wj मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूँगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ पर उसका कुछ अधिकार नहीं।\wj*
|
||
\v 31 \wj परन्तु यह इसलिए होता है कि संसार जाने कि मैं पिता से प्रेम रखता हूँ, और जिस तरह पिता ने मुझे आज्ञा दी, मैं वैसे ही करता हूँ। उठो, यहाँ से चलें।\wj*
|
||
\c 15
|
||
\s सच्ची दाखलता
|
||
\p
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||
\v 1 \wj “सच्ची दाखलता मैं हूँ; और मेरा पिता किसान है।\wj*
|
||
\v 2 \it \+wj जो डाली मुझ में है\f + \fr 15:2 \fq जो डाली मुझ में है: \ft हर कोई जो मेरा सच्चा अनुसरण करनेवाला है, विश्वास से मुझ में मिला हुआ है।\f*\+wj*\it*\wj , और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छाँटता है ताकि और फले।\wj*
|
||
\v 3 \wj तुम तो उस वचन के कारण जो मैंने तुम से कहा है, शुद्ध हो।\wj*
|
||
\v 4 \it \+wj तुम मुझ में बने रहो\+wj*\it*\f + \fr 15:4 \fq तुम मुझ में बने रहो: \ft एक जीवित विश्वास के द्वारा मुझ में बने रहो।\f*\wj , और मैं तुम में। जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। \wj*
|
||
\v 5 \wj मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उसमें, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि\wj* \it \+wj मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते\f + \fr 15:5 \fq मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते: \ft यह अभिव्यक्ति “मेरे बिना” मुझसे अलग होकर के रूप को दर्शाता है।\f*\+wj*\it*\wj ।\wj*
|
||
\v 6 \wj यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती हैं।\wj*
|
||
\v 7 \wj यदि तुम मुझ में बने रहो, और मेरी बातें तुम में बनी रहें तो जो चाहो माँगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा।\wj*
|
||
\v 8 \wj मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।\wj*
|
||
\v 9 \wj जैसा पिता ने मुझसे प्रेम रखा, वैसे ही मैंने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।\wj*
|
||
\v 10 \wj यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे जैसा कि मैंने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूँ।\wj*
|
||
\v 11 \wj मैंने ये बातें तुम से इसलिए कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।\wj*
|
||
\s चेलों का एक दूसरे से सम्बंध
|
||
\p
|
||
\v 12 \wj “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।\wj*
|
||
\v 13 \wj इससे बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।\wj*
|
||
\v 14 \wj जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।\wj*
|
||
\v 15 \wj अब से मैं तुम्हें दास न कहूँगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैंने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैंने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।\wj*
|
||
\v 16 \it \+wj तुम ने मुझे नहीं चुना\+wj*\it*\f + \fr 15:16 \fq तुम ने मुझे नहीं चुना: \ft वह कहता है कि ऐसा नहीं था क्योंकि उन्होंने उसे अपना शिक्षक और मार्गदर्शक चुना था, क्योंकि उसने उन्हें अपने प्रेरित होने के लिए नामित किया था।\f* \wj परन्तु मैंने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जाकर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से माँगो, वह तुम्हें दे। \wj*
|
||
\v 17 \wj इन बातों की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिए देता हूँ, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।\wj*
|
||
\s संसार से सताव
|
||
\p
|
||
\v 18 \wj “\wj*\it \+wj यदि संसार तुम से बैर रखता है\f + \fr 15:18 \fq यदि संसार तुम से बैर रखता है: \ft संसार से मित्रता करने की वे उम्मीद नहीं रखते थे, लेकिन वे उनके नफरत के द्वारा अपने कामों से विचलित नहीं हो रहे थे।\f*\+wj*\it*\wj , तो तुम जानते हो, कि उसने तुम से पहले मुझसे भी बैर रखा।\wj*
|
||
\v 19 \wj यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रेम रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं वरन् मैंने तुम्हें संसार में से चुन लिया है; इसलिए संसार तुम से बैर रखता है।\wj*
|
||
\v 20 \wj जो बात मैंने तुम से कही थी, ‘दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता,’ उसको याद रखो यदि उन्होंने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएँगे; यदि उन्होंने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।\wj*
|
||
\v 21 \wj परन्तु यह सब कुछ वे मेरे नाम के कारण तुम्हारे साथ करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।\wj*
|
||
\v 22 \wj यदि मैं न आता और उनसे बातें न करता, तो वे पापी न ठहरते परन्तु अब उन्हें उनके पाप के लिये कोई बहाना नहीं।\wj*
|
||
\v 23 \wj जो मुझसे बैर रखता है, वह मेरे पिता से भी बैर रखता है।\wj*
|
||
\v 24 \wj यदि मैं उनमें वे काम न करता, जो और किसी ने नहीं किए तो वे पापी नहीं ठहरते, परन्तु अब तो उन्होंने मुझे और मेरे पिता दोनों को देखा, और दोनों से बैर किया।\wj*
|
||
\v 25 \wj और यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उनकी व्यवस्था में लिखा है, ‘उन्होंने मुझसे व्यर्थ बैर किया।’ \wj*\bdit (भज. 69:4, भज. 109:3) \bdit*
|
||
\v 26 \wj परन्तु जब वह सहायक आएगा, जिसे मैं तुम्हारे पास पिता की ओर से भेजूँगा, अर्थात् सत्य का आत्मा जो पिता की ओर से निकलता है, तो वह मेरी गवाही देगा।\wj*
|
||
\v 27 \wj और तुम भी गवाह हो क्योंकि तुम आरम्भ से मेरे साथ रहे हो।\wj*
|
||
\c 16
|
||
\p
|
||
\v 1 \wj “ये बातें मैंने तुम से इसलिए कहीं कि तुम ठोकर न खाओ।\wj*
|
||
\v 2 \wj वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन् वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा यह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूँ।\wj*
|
||
\v 3 \wj और यह वे इसलिए करेंगे कि उन्होंने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं।\wj*
|
||
\v 4 \wj परन्तु ये बातें मैंने इसलिए तुम से कहीं, कि जब उनके पूरे होने का समय आए तो तुम्हें स्मरण आ जाए, कि मैंने तुम से पहले ही कह दिया था,\wj*
|
||
\s पवित्र आत्मा के कार्य
|
||
\p \wj “मैंने आरम्भ में तुम से ये बातें इसलिए नहीं कहीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था।\wj*
|
||
\v 5 \wj अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जाता हूँ और तुम में से कोई मुझसे नहीं पूछता, ‘तू कहाँ जाता है?’\wj*
|
||
\v 6 \wj परन्तु मैंने जो ये बातें तुम से कहीं हैं, इसलिए तुम्हारा मन शोक से भर गया।\wj*
|
||
\v 7 \wj फिर भी मैं तुम से सच कहता हूँ, कि मेरा जाना तुम्हारे लिये अच्छा है, क्योंकि यदि मैं न जाऊँ, तो वह सहायक तुम्हारे पास न आएगा, परन्तु यदि मैं जाऊँगा, तो उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा।\wj*
|
||
\v 8 \wj और वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा।\wj*
|
||
\v 9 \wj पाप के विषय में इसलिए कि वे मुझ पर विश्वास नहीं करते;\wj*
|
||
\v 10 \wj और धार्मिकता के विषय में इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ, और तुम मुझे फिर न देखोगे;\wj*
|
||
\v 11 \wj न्याय के विषय में इसलिए कि संसार का सरदार दोषी ठहराया गया है।\wj* \bdit (यूह. 12:31) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 12 \wj “मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते।\wj*
|
||
\v 13 \wj परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा, परन्तु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।\wj*
|
||
\v 14 \wj वह मेरी महिमा करेगा, क्योंकि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।\wj*
|
||
\v 15 \wj जो कुछ पिता का है, वह सब मेरा है; इसलिए मैंने कहा, कि वह मेरी बातों में से लेकर तुम्हें बताएगा।\wj*
|
||
\s शोक आनन्द में बदल जाएगा
|
||
\p
|
||
\v 16 \wj “थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे।”\wj*
|
||
\v 17 तब उसके कितने चेलों ने आपस में कहा, “यह क्या है, जो वह हम से कहता है, \wj ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे?’ और यह ‘इसलिए कि मैं पिता के पास जाता हूँ’?”\wj*
|
||
\v 18 तब उन्होंने कहा, “यह \wj ‘थोड़ी देर’\wj* जो वह कहता है, क्या बात है? हम नहीं जानते, कि क्या कहता है।”
|
||
\v 19 यीशु ने यह जानकर, कि वे मुझसे पूछना चाहते हैं, उनसे कहा, \wj “क्या तुम आपस में मेरी इस बात के विषय में पूछताछ करते हो, ‘थोड़ी देर में तुम मुझे न देखोगे, और फिर थोड़ी देर में मुझे देखोगे’?\wj*
|
||
\v 20 \wj मैं तुम से सच-सच कहता हूँ; कि तुम रोओगे और विलाप करोगे, परन्तु संसार आनन्द करेगा: तुम्हें शोक होगा, परन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जाएगा।\wj*
|
||
\v 21 \wj जब स्त्री जनने लगती है तो उसको शोक होता है, क्योंकि उसकी दुःख की घड़ी आ पहुँची, परन्तु जब वह बालक को जन्म दे चुकी तो इस आनन्द से कि जगत में एक मनुष्य उत्पन्न हुआ, उस संकट को फिर स्मरण नहीं करती।\wj* \bdit (यशा. 26:17, मीका 4:9) \bdit*
|
||
\v 22 \wj और तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूँगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।\wj*
|
||
\v 23 \it \+wj उस दिन\+wj*\it*\f + \fr 16:23 \fq उस दिन: \ft उनके जी उठने और पुनरुत्थान के बाद।\f* \wj तुम मुझसे कुछ न पूछोगे; मैं तुम से सच-सच कहता हूँ, यदि पिता से कुछ माँगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा।\wj*
|
||
\v 24 \wj अब तक तुम ने मेरे नाम से कुछ नहीं माँगा;\wj* \it \+wj माँगो तो पाओगे\f + \fr 16:24 \fq माँगो तो पाओगे: \ft अब उन्हें आश्वासन था कि यीशु के नाम से वे परमेश्वर के पास पहुँच सकते हैं।\f*\+wj*\it* \wj ताकि तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए। \wj*
|
||
\s संसार पर विजय
|
||
\p
|
||
\v 25 \wj “मैंने ये बातें तुम से दृष्टान्तों में कहीं हैं, परन्तु वह समय आता है, कि मैं तुम से दृष्टान्तों में और फिर नहीं कहूँगा परन्तु खोलकर तुम्हें पिता के विषय में बताऊँगा।\wj*
|
||
\v 26 \wj उस दिन तुम मेरे नाम से माँगोगे, और मैं तुम से यह नहीं कहता, कि मैं तुम्हारे लिये पिता से विनती करूँगा।\wj*
|
||
\v 27 \wj क्योंकि पिता तो स्वयं ही तुम से प्रेम रखता है, इसलिए कि तुम ने मुझसे प्रेम रखा है, और यह भी विश्वास किया, कि मैं पिता की ओर से आया।\wj*
|
||
\v 28 \wj मैं पिता की ओर से जगत में आया हूँ, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास वापस जाता हूँ।”\wj*
|
||
\p
|
||
\v 29 उसके चेलों ने कहा, “देख, अब तो तू खुलकर कहता है, और कोई दृष्टान्त नहीं कहता।
|
||
\v 30 अब हम जान गए, कि तू सब कुछ जानता है, और जरूरत नहीं कि कोई तुझ से प्रश्न करे, इससे हम विश्वास करते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से आया है।”
|
||
\v 31 यह सुन यीशु ने उनसे कहा, \wj “क्या तुम अब विश्वास करते हो?\wj*
|
||
\v 32 \wj देखो, वह घड़ी आती है वरन् आ पहुँची कि तुम सब तितर-बितर होकर अपना-अपना मार्ग लोगे, और मुझे अकेला छोड़ दोगे, फिर भी मैं अकेला नहीं क्योंकि पिता मेरे साथ है।\wj* \bdit (यूह. 8:29) \bdit*
|
||
\v 33 \wj मैंने ये बातें तुम से इसलिए कहीं हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बाँधो, मैंने संसार को जीत लिया है।” \wj*
|
||
\c 17
|
||
\s यीशु की स्वयं के लिये प्रार्थना
|
||
\p
|
||
\v 1 यीशु ने ये बातें कहीं और अपनी आँखें आकाश की ओर उठाकर कहा, \wj “हे पिता, वह घड़ी आ पहुँची, अपने पुत्र की महिमा कर,\wj* \it \+wj कि पुत्र भी तेरी महिमा करे\f + \fr 17:1 \fq कि पुत्र भी तेरी महिमा करे: \ft यह स्पष्ट रूप से परमेश्वर के सम्मान को जाहिर करने के लिए जो लोगों के बीच सुसमाचार के प्रचार के द्वारा किया जाएगा को संदर्भित करता है।\f*\+wj*\it*\wj ,\wj*
|
||
\v 2 \wj क्योंकि तूने उसको सब प्राणियों पर अधिकार दिया, कि जिन्हें तूने उसको दिया है, उन सब को वह अनन्त जीवन दे।\wj*
|
||
\v 3 \wj और अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तूने भेजा है, जानें।\wj*
|
||
\v 4 \wj जो काम तूने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैंने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।\wj*
|
||
\v 5 \wj और अब, हे पिता, तू अपने साथ मेरी महिमा उस महिमा से कर जो जगत की सृष्टि से पहले, मेरी तेरे साथ थी।\wj*
|
||
\s यीशु की अपने चेलों के लिये प्रार्थना
|
||
\p
|
||
\v 6 \wj “मैंने तेरा नाम उन मनुष्यों पर प्रगट किया जिन्हें तूने जगत में से मुझे दिया। वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया और उन्होंने तेरे वचन को मान लिया है।\wj*
|
||
\v 7 \wj अब वे जान गए हैं, कि जो कुछ तूने मुझे दिया है, सब तेरी ओर से है।\wj*
|
||
\v 8 \wj क्योंकि जो बातें तूने मुझे पहुँचा दीं, मैंने उन्हें उनको पहुँचा दिया और उन्होंने उनको ग्रहण किया और सच-सच जान लिया है, कि मैं तेरी ओर से आया हूँ, और यह विश्वास किया है कि तू ही ने मुझे भेजा।\wj*
|
||
\v 9 \wj मैं उनके लिये विनती करता हूँ, संसार के लिये विनती नहीं करता परन्तु उन्हीं के लिये जिन्हें तूने मुझे दिया है, क्योंकि वे तेरे हैं।\wj*
|
||
\v 10 \wj और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा है; और जो तेरा है वह मेरा है; और इनसे मेरी महिमा प्रगट हुई है।\wj*
|
||
\v 11 \wj मैं आगे को जगत में न रहूँगा, परन्तु ये जगत में रहेंगे, और मैं तेरे पास आता हूँ; हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा कर, कि वे हमारे समान एक हों।\wj*
|
||
\v 12 \wj जब मैं उनके साथ था, तो मैंने तेरे उस नाम से, जो तूने मुझे दिया है, उनकी रक्षा की, मैंने उनकी देख-रेख की और विनाश के पुत्र को छोड़ उनमें से कोई नाश न हुआ, इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो।\wj* \bdit (यूह. 18:9) \bdit*
|
||
\v 13 \wj परन्तु अब मैं तेरे पास आता हूँ, और ये बातें जगत में कहता हूँ, कि वे मेरा आनन्द अपने में पूरा पाएँ।\wj*
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||
\v 14 \wj मैंने तेरा वचन उन्हें पहुँचा दिया है, और संसार ने उनसे बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।\wj*
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||
\v 15 \wj मैं यह विनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख।\wj*
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||
\v 16 \wj जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।\wj*
|
||
\v 17 \wj सत्य के द्वारा\wj* \it \+wj उन्हें पवित्र कर\f + \fr 17:17 \fq उन्हें पवित्र कर: \ft इस शब्द का मतलब हैं पवित्र बनाना या पापों से शुद्ध करना।\f*\+wj*\it*\wj : तेरा वचन सत्य है।\wj*
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||
\v 18 \wj जैसे तूने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैंने भी उन्हें जगत में भेजा।\wj*
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||
\v 19 \wj और उनके लिये मैं अपने आपको पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सत्य के द्वारा पवित्र किए जाएँ।\wj*
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||
\s यीशु की अपने सभी विश्वासियों के लिये प्रार्थना
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\p
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||
\v 20 \wj “मैं केवल इन्हीं के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे,\wj*
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||
\v 21 \wj कि वे सब एक हों; जैसा तू हे पिता मुझ में है, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिए कि जगत विश्वास करे, कि तू ही ने मुझे भेजा।\wj*
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||
\v 22 \wj और वह महिमा जो तूने मुझे दी, मैंने उन्हें दी है कि वे वैसे ही एक हों जैसे कि हम एक हैं।\wj*
|
||
\v 23 \wj मैं उनमें और तू मुझ में कि वे सिद्ध होकर एक हो जाएँ, और जगत जाने कि तू ही ने मुझे भेजा, और जैसा तूने मुझसे प्रेम रखा, वैसा ही उनसे प्रेम रखा।\wj*
|
||
\v 24 \wj हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है, जहाँ मैं हूँ, वहाँ वे भी मेरे साथ हों कि वे मेरी उस महिमा को देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने जगत की उत्पत्ति से पहले मुझसे प्रेम रखा।\wj* \bdit (यूह. 14:3) \bdit*
|
||
\v 25 \wj हे धार्मिक पिता, संसार ने मुझे नहीं जाना, परन्तु मैंने तुझे जाना और इन्होंने भी जाना कि तू ही ने मुझे भेजा।\wj*
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||
\v 26 \wj और मैंने तेरा नाम उनको बताया और बताता रहूँगा कि जो प्रेम तुझको मुझसे था, वह उनमें रहे और\wj* \it \+wj मैं उनमें रहूँ\f + \fr 17:26 \fq मैं उनमें रहूँ: \ft मेरी शिक्षाओं और मेरी आत्मा के प्रभावों के द्वारा।\f*\+wj*\it*\wj ।”\wj*
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||
\c 18
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||
\s बगीचे में यीशु का पकड़वाया जाना
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\p
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||
\v 1 यीशु ये बातें कहकर अपने चेलों के साथ किद्रोन के नाले के पार गया, वहाँ एक बारी थी, जिसमें वह और उसके चेले गए।
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||
\v 2 और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी वह जगह जानता था, क्योंकि यीशु अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था।
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||
\v 3 तब यहूदा सैन्य-दल को और प्रधान याजकों और फरीसियों की ओर से प्यादों को लेकर दीपकों और मशालों और हथियारों को लिए हुए वहाँ आया।
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||
\v 4 तब यीशु उन सब बातों को जो उस पर आनेवाली थीं, जानकर निकला, और उनसे कहने लगा, \wj “किसे ढूँढ़ते हो?”\wj*
|
||
\v 5 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यीशु नासरी को।” यीशु ने उनसे कहा, \wj “मैं हूँ।”\wj* और उसका पकड़वानेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था।
|
||
\v 6 उसके यह कहते ही, \wj “मैं हूँ,”\wj* वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पड़े।
|
||
\v 7 तब उसने फिर उनसे पूछा, \wj “तुम किसको ढूँढ़ते हो।”\wj* वे बोले, “यीशु नासरी को।”
|
||
\v 8 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “मैं तो तुम से कह चुका हूँ कि मैं हूँ, यदि मुझे ढूँढ़ते हो \wj*\it \+wj तो इन्हें जाने दो\f + \fr 18:8 \fq तो इन्हें जाने दो: \ft ये सभी प्रेरित थे। यह मुसीबत की घड़ी में भी उनकी देख-भाल और प्रेम को दर्शाता है।\f*\+wj*\it*\wj ।”\wj*
|
||
\v 9 यह इसलिए हुआ, कि वह वचन पूरा हो, जो उसने कहा था: \wj “जिन्हें तूने मुझे दिया, उनमें से मैंने एक को भी न खोया।”\wj*
|
||
\v 10 शमौन पतरस ने तलवार, जो उसके पास थी, खींची और महायाजक के दास पर चलाकर, उसका दाहिना कान काट दिया, उस दास का नाम मलखुस था।
|
||
\v 11 तब यीशु ने पतरस से कहा, \wj “अपनी तलवार काठी में रख। जो कटोरा पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे न पीऊँ?”\wj*
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||
\s हन्ना के समक्ष यीशु
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||
\p
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||
\v 12 तब सिपाहियों और उनके सूबेदार और यहूदियों के प्यादों ने यीशु को पकड़कर बाँध लिया,
|
||
\v 13 और पहले उसे हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस वर्ष के महायाजक कैफा का ससुर था।
|
||
\v 14 यह वही कैफा था, जिसने यहूदियों को सलाह दी थी कि हमारे लोगों के लिये एक पुरुष का मरना अच्छा है।
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||
\s पतरस का यीशु को पहचानने से इन्कार
|
||
\p
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||
\v 15 शमौन पतरस और एक और चेला भी यीशु के पीछे हो लिए। यह चेला महायाजक का जाना पहचाना था और यीशु के साथ महायाजक के आँगन में गया।
|
||
\v 16 परन्तु पतरस बाहर द्वार पर खड़ा रहा, तब वह दूसरा चेला जो महायाजक का जाना पहचाना था, बाहर निकला, और द्वारपालिन से कहकर, पतरस को भीतर ले आया।
|
||
\v 17 उस दासी ने जो द्वारपालिन थी, पतरस से कहा, “क्या तू भी इस मनुष्य के चेलों में से है?” उसने कहा, “मैं नहीं हूँ।”
|
||
\v 18 दास और प्यादे जाड़े के कारण कोयले धधकाकर खड़े आग ताप रहे थे और पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था।
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||
\s महायाजक के समक्ष यीशु
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\p
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||
\v 19 तब महायाजक ने यीशु से उसके चेलों के विषय में और उसके उपदेश के विषय में पूछा।
|
||
\v 20 यीशु ने उसको उत्तर दिया, \wj “मैंने जगत से खुलकर बातें की; मैंने आराधनालयों और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी इकट्ठा हुआ करते हैं सदा उपदेश किया और\wj* \it \+wj गुप्त में कुछ भी नहीं कहा\f + \fr 18:20 \fq गुप्त में कुछ भी नहीं कहा: \ft उसने अपने चेलों को ऐसी कोई शिक्षा और आज्ञा नहीं दी जो उसने सार्वजनिक आख्यान में न कही थी।\f*\+wj*\it*\wj ।\wj*
|
||
\v 21 \wj तू मुझसे क्यों पूछता है? सुननेवालों से पूछ: कि मैंने उनसे क्या कहा? देख वे जानते हैं; कि मैंने क्या-क्या कहा।”\wj*
|
||
\v 22 \wj जब उसने यह कहा, तो प्यादों में से एक ने जो पास खड़ा था, यीशु को थप्पड़ मारकर कहा, “क्या तू महायाजक को इस प्रकार उत्तर देता है?”\wj* \bdit (लूका 22:63, मीका 5:1) \bdit*
|
||
\v 23 यीशु ने उसे उत्तर दिया, \wj “यदि मैंने बुरा कहा, तो उस बुराई पर गवाही दे; परन्तु यदि भला कहा, तो मुझे क्यों मारता है?”\wj*
|
||
\v 24 हन्ना ने उसे बंधे हुए कैफा महायाजक के पास भेज दिया।
|
||
\s पतरस का यीशु को पहचानने से पुनः इन्कार
|
||
\p
|
||
\v 25 शमौन पतरस खड़ा हुआ आग ताप रहा था। तब उन्होंने उससे कहा; “क्या तू भी उसके चेलों में से है?” उसने इन्कार करके कहा, “मैं नहीं हूँ।”
|
||
\v 26 महायाजक के दासों में से एक जो उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था, बोला, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बारी में न देखा था?”
|
||
\v 27 पतरस फिर इन्कार कर गया और तुरन्त मुर्गे ने बाँग दी।
|
||
\s यीशु का पिलातुस के सामने लाया जाना
|
||
\p
|
||
\v 28 और वे यीशु को कैफा के पास से किले को ले गए और भोर का समय था, परन्तु वे स्वयं किले के भीतर न गए ताकि अशुद्ध न हों परन्तु फसह खा सकें।
|
||
\v 29 तब पिलातुस उनके पास बाहर निकल आया और कहा, “तुम इस मनुष्य पर किस बात का दोषारोपण करते हो?”
|
||
\v 30 उन्होंने उसको उत्तर दिया, “यदि वह कुकर्मी न होता तो हम उसे तेरे हाथ न सौंपते।”
|
||
\v 31 पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही इसे ले जाकर अपनी व्यवस्था के अनुसार उसका न्याय करो।” यहूदियों ने उससे कहा, “हमें अधिकार नहीं कि किसी का प्राण लें।”
|
||
\v 32 यह इसलिए हुआ, कि यीशु की वह बात पूरी हो जो उसने यह दर्शाते हुए कही थी, कि उसका मरना कैसा होगा।
|
||
\p
|
||
\v 33 तब पिलातुस फिर किले के भीतर गया और यीशु को बुलाकर, उससे पूछा, “\it क्या तू यहूदियों का राजा है\it*\f + \fr 18:33 \fq क्या तू यहूदियों का राजा है: \ft यह उसको देश द्रोही और कैसर को सम्मान नहीं देने का आरोप के बाद की घटना था।\f*?”
|
||
\v 34 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “क्या तू यह बात अपनी ओर से कहता है या औरों ने मेरे विषय में तुझ से कही?”\wj*
|
||
\v 35 पिलातुस ने उत्तर दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरी ही जाति और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हाथ सौंपा, तूने क्या किया है?”
|
||
\v 36 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “मेरा राज्य इस जगत का नहीं, यदि मेरा राज्य इस जगत का होता, तो मेरे सेवक लड़ते, कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाता: परन्तु अब मेरा राज्य यहाँ का नहीं।”\wj*
|
||
\v 37 पिलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू राजा है?” यीशु ने उत्तर दिया, \wj “तू कहता है, कि मैं राजा हूँ; मैंने इसलिए जन्म लिया, और इसलिए जगत में आया हूँ कि सत्य पर गवाही दूँ जो कोई सत्य का है, वह मेरा शब्द सुनता है।”\wj* \bdit (1 यूह. 4:6) \bdit*
|
||
\v 38 पिलातुस ने उससे कहा, “सत्य क्या है?” और यह कहकर वह फिर यहूदियों के पास निकल गया और उनसे कहा, “मैं तो उसमें कुछ दोष नहीं पाता।
|
||
\s यीशु या बरअब्बा
|
||
\p
|
||
\v 39 “पर तुम्हारी यह रीति है कि मैं फसह में तुम्हारे लिये एक व्यक्ति को छोड़ दूँ। तो क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?”
|
||
\v 40 तब उन्होंने फिर चिल्लाकर कहा, “इसे नहीं परन्तु हमारे लिये बरअब्बा को छोड़ दे।” और बरअब्बा डाकू था।
|
||
\c 19
|
||
\s कोड़े लगवाना और मजाक उड़ाना
|
||
\p
|
||
\v 1 इस पर पिलातुस ने यीशु को लेकर कोड़े लगवाए।
|
||
\v 2 और सिपाहियों ने काँटों का मुकुट गूँथकर उसके सिर पर रखा, और उसे बैंगनी ऊपरी वस्त्र पहनाया,
|
||
\v 3 और उसके पास आ आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, प्रणाम!” और उसे थप्पड़ मारे।
|
||
\v 4 तब पिलातुस ने फिर बाहर निकलकर लोगों से कहा, “देखो, मैं उसे तुम्हारे पास फिर बाहर लाता हूँ; ताकि तुम जानो कि मैं उसमें कुछ भी दोष नहीं पाता।”
|
||
\s क्रूस पर चढ़ाने के लिये सौंपना
|
||
\p
|
||
\v 5 तब यीशु काँटों का मुकुट और बैंगनी वस्त्र पहने हुए बाहर निकला और पिलातुस ने उनसे कहा, “देखो, यह पुरुष।”
|
||
\v 6 जब प्रधान याजकों और प्यादों ने उसे देखा, तो चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर!” पिलातुस ने उनसे कहा, “तुम ही उसे लेकर क्रूस पर चढ़ाओ; क्योंकि मैं उसमें दोष नहीं पाता।”
|
||
\v 7 यहूदियों ने उसको उत्तर दिया, “हमारी भी व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने के योग्य है क्योंकि उसने अपने आपको \it परमेश्वर का पुत्र\it*\f + \fr 19:7 \fq परमेश्वर का पुत्र: \ft व्यवस्था में ऐसा कहना वर्जित नहीं था, परन्तु परमेश्वर की निन्दा करना निश्चय ही वर्जित था, अत: अपने लिए इस शीर्षक का उपयोग उनकी समझ में परमेश्वर की निन्दा करना था\f* बताया।” \bdit (लैव्य. 24:16) \bdit*
|
||
\v 8 जब पिलातुस ने यह बात सुनी तो और भी डर गया।
|
||
\v 9 और फिर किले के भीतर गया और यीशु से कहा, “तू कहाँ का है?” परन्तु यीशु ने उसे कुछ भी उत्तर न दिया।
|
||
\v 10 पिलातुस ने उससे कहा, “मुझसे क्यों नहीं बोलता? क्या तू नहीं जानता कि तुझे छोड़ देने का अधिकार मुझे है और तुझे क्रूस पर चढ़ाने का भी मुझे अधिकार है।”
|
||
\v 11 यीशु ने उत्तर दिया, \wj “यदि तुझे ऊपर से न दिया जाता, तो तेरा मुझ पर कुछ अधिकार न होता; इसलिए जिसने मुझे तेरे हाथ पकड़वाया है, उसका पाप अधिक है।”\wj*
|
||
\v 12 इससे \it पिलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा\it*\f + \fr 19:12 \fq पिलातुस ने उसे छोड़ देना चाहा: \ft वह उसकी निर्दोषता के प्रति अधिक से अधिक आश्वस्त था। \f*, परन्तु यहूदियों ने चिल्ला चिल्लाकर कहा, “यदि तू इसको छोड़ देगा तो तू कैसर का मित्र नहीं; जो कोई अपने आपको राजा बनाता है वह कैसर का सामना करता है।”
|
||
\v 13 ये बातें सुनकर पिलातुस यीशु को बाहर लाया और उस जगह एक चबूतरा था, जो इब्रानी में ‘\it गब्बता\it*\f + \fr 19:13 \fq गब्बता: \ft यह एक इब्रानी भाषा का शब्द है, यह ऊँचा होने के वाचक शब्द से आता है।\f*’ कहलाता है, और वहाँ न्याय आसन पर बैठा।
|
||
\v 14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था: तब उसने यहूदियों से कहा, “देखो, यही है, तुम्हारा राजा!”
|
||
\v 15 परन्तु वे चिल्लाए, “ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा!” पिलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊँ?” प्रधान याजकों ने उत्तर दिया, “कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं।”
|
||
\v 16 तब उसने उसे उनके हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।
|
||
\s क्रूस पर चढ़ाया जाना
|
||
\p
|
||
\v 17 तब वे यीशु को ले गए। और वह अपना क्रूस उठाए हुए उस स्थान तक बाहर गया, जो ‘खोपड़ी का स्थान’ कहलाता है और इब्रानी में ‘गुलगुता’।
|
||
\v 18 वहाँ उन्होंने उसे और उसके साथ और दो मनुष्यों को क्रूस पर चढ़ाया, एक को इधर और एक को उधर, और बीच में यीशु को।
|
||
\v 19 और पिलातुस ने एक दोष-पत्र लिखकर क्रूस पर लगा दिया और उसमें यह लिखा हुआ था, “यीशु नासरी यहूदियों का राजा।”
|
||
\v 20 यह दोष-पत्र बहुत यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि वह स्थान जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था नगर के पास था और पत्र इब्रानी और लतीनी और यूनानी में लिखा हुआ था।
|
||
\v 21 तब यहूदियों के प्रधान याजकों ने पिलातुस से कहा, “‘यहूदियों का राजा’ मत लिख परन्तु यह कि ‘उसने कहा, मैं यहूदियों का राजा हूँ।’”
|
||
\v 22 पिलातुस ने उत्तर दिया, “मैंने जो लिख दिया, वह लिख दिया।”
|
||
\p
|
||
\v 23 जब सिपाही यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सिपाही के लिये एक भाग और कुर्ता भी लिया, परन्तु कुर्ता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था;
|
||
\v 24 इसलिए उन्होंने आपस में कहा, “हम इसको न फाड़ें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि यह किसका होगा।” यह इसलिए हुआ, कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो, “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बाँट लिए और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।” \bdit (भज. 22:18) \bdit*
|
||
\s यीशु का अपनी माता के लिये प्रावधान
|
||
\p
|
||
\v 25 अतः सिपाहियों ने ऐसा ही किया। यीशु के क्रूस के पास उसकी माता और उसकी माता की बहन मरियम, क्लोपास की पत्नी और मरियम मगदलीनी खड़ी थी।
|
||
\v 26 यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिससे वह प्रेम रखता था पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा, \wj “हे नारी, देख, यह तेरा पुत्र है।”\wj*
|
||
\v 27 तब उस चेले से कहा, \wj “देख, यह तेरी माता है।”\wj* और उसी समय से वह चेला, उसे अपने घर ले गया।
|
||
\s कार्यों का पूरा होना
|
||
\p
|
||
\v 28 इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका; इसलिए कि पवित्रशास्त्र की बात पूरी हो कहा, \wj “मैं प्यासा हूँ।”\wj*
|
||
\v 29 वहाँ एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, इसलिए उन्होंने सिरके के भिगाए हुए पनसोख्ता को जूफे पर रखकर उसके मुँह से लगाया। \bdit (भज. 69:21) \bdit*
|
||
\v 30 जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, \wj “पूरा हुआ”;\wj* और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए। \bdit (लूका 23:46, मर. 15:37) \bdit*
|
||
\s भाले से बेधा जाना
|
||
\p
|
||
\v 31 और इसलिए कि वह तैयारी का दिन था, यहूदियों ने पिलातुस से विनती की, कि उनकी टाँगें तोड़ दी जाएँ और वे उतारे जाएँ ताकि सब्त के दिन वे क्रूसों पर न रहें, क्योंकि वह सब्त का दिन बड़ा दिन था। \bdit (मर. 15: 42, व्यव. 21:22,23) \bdit*
|
||
\v 32 इसलिए सिपाहियों ने आकर पहले की टाँगें तोड़ीं तब दूसरे की भी, जो उसके साथ क्रूसों पर चढ़ाए गए थे।
|
||
\v 33 परन्तु जब यीशु के पास आकर देखा कि वह मर चुका है, तो उसकी टाँगें न तोड़ीं।
|
||
\v 34 परन्तु सिपाहियों में से एक ने बरछे से उसका पंजर बेधा और उसमें से तुरन्त लहू और पानी निकला।
|
||
\v 35 जिसने यह देखा, उसी ने गवाही दी है, और उसकी गवाही सच्ची है; और वह जानता है, कि सच कहता है कि तुम भी विश्वास करो।
|
||
\v 36 ये बातें इसलिए हुईं कि पवित्रशास्त्र की यह बात पूरी हो, “उसकी कोई हड्डी तोड़ी न जाएगी।” \bdit (निर्ग. 12:46, गिन. 9:12, भज. 34:20) \bdit*
|
||
\v 37 फिर एक और स्थान पर यह लिखा है, “जिसे उन्होंने बेधा है, उस पर दृष्टि करेंगे।” \bdit (जक. 12:10) \bdit*
|
||
\s यूसुफ की कब्र में यीशु का दफनाया जाना
|
||
\p
|
||
\v 38 इन बातों के बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने, जो यीशु का चेला था, (परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था), पिलातुस से विनती की, कि मैं यीशु के शव को ले जाऊँ, और पिलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकर उसका शव ले गया।
|
||
\v 39 नीकुदेमुस भी जो पहले यीशु के पास रात को गया था पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया।
|
||
\v 40 तब उन्होंने यीशु के शव को लिया और यहूदियों के गाड़ने की रीति के अनुसार उसे सुगन्ध-द्रव्य के साथ कफन में लपेटा।
|
||
\v 41 उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी; और उस बारी में एक नई कब्र थी; जिसमें कभी कोई न रखा गया था।
|
||
\v 42 अतः यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण, उन्होंने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी।
|
||
\c 20
|
||
\s खाली कब्र
|
||
\p
|
||
\v 1 सप्ताह के पहले दिन मरियम मगदलीनी भोर को अंधेरा रहते ही कब्र पर आई, और पत्थर को कब्र से हटा हुआ देखा।
|
||
\v 2 तब वह दौड़ी और शमौन पतरस और उस दूसरे चेले के पास जिससे यीशु प्रेम रखता था आकर कहा, “वे प्रभु को कब्र में से निकाल ले गए हैं; और हम नहीं जानतीं, कि उसे कहाँ रख दिया है।”
|
||
\v 3 तब पतरस और वह दूसरा चेला निकलकर कब्र की ओर चले।
|
||
\v 4 और दोनों साथ-साथ दौड़ रहे थे, परन्तु दूसरा चेला पतरस से आगे बढ़कर कब्र पर पहले पहुँचा।
|
||
\v 5 और झुककर कपड़े पड़े देखे: तो भी वह भीतर न गया।
|
||
\v 6 तब शमौन पतरस उसके पीछे-पीछे पहुँचा और कब्र के भीतर गया और कपड़े पड़े देखे।
|
||
\v 7 और वह अँगोछा जो उसके सिर पर बन्धा हुआ था, कपड़ों के साथ पड़ा हुआ नहीं परन्तु अलग एक जगह लपेटा हुआ देखा।
|
||
\v 8 तब दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, भीतर गया और देखकर विश्वास किया।
|
||
\v 9 वे तो अब तक पवित्रशास्त्र की वह बात न समझते थे, कि उसे मरे हुओं में से जी उठना होगा। \bdit (भज. 16:10) \bdit*
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||
\v 10 तब ये चेले अपने घर लौट गए।
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||
\s मरियम मगदलीनी को दर्शन
|
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\p
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||
\v 11 परन्तु मरियम रोती हुई कब्र के पास ही बाहर खड़ी रही और रोते-रोते कब्र की ओर झुककर,
|
||
\v 12 दो स्वर्गदूतों को उज्ज्वल कपड़े पहने हुए एक को सिरहाने और दूसरे को पैताने बैठे देखा, जहाँ यीशु का शव पड़ा था।
|
||
\v 13 उन्होंने उससे कहा, “हे नारी, तू क्यों रोती है?” उसने उनसे कहा, “वे मेरे प्रभु को उठा ले गए और मैं नहीं जानती कि उसे कहाँ रखा है।”
|
||
\v 14 यह कहकर वह पीछे फिरी और यीशु को खड़े देखा और \it न पहचाना कि यह यीशु है\it*\f + \fr 20:14 \fq न पहचाना कि यह यीशु है: \ft वह उसे देखने की उम्मीद नहीं कर रही थी।\f*।
|
||
\v 15 यीशु ने उससे कहा, \wj “हे नारी तू क्यों रोती है? किसको ढूँढ़ती है?”\wj* उसने माली समझकर उससे कहा, “हे श्रीमान, यदि तूने उसे उठा लिया है तो मुझसे कह कि उसे कहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँगी।”
|
||
\v 16 यीशु ने उससे कहा, \wj “मरियम!”\wj* उसने पीछे फिरकर उससे इब्रानी में कहा, “\it रब्बूनी\it*\f + \fr 20:16 \fq रब्बूनी: \ft यह एक इब्रानी शब्द है, जिसका अर्थ है, मेरे महान गुरू \f*!” अर्थात् ‘हे गुरु।’
|
||
\v 17 यीशु ने उससे कहा, \wj “मुझे मत छू क्योंकि मैं अब तक पिता के पास ऊपर नहीं गया, परन्तु मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कह दे, कि मैं अपने पिता, और तुम्हारे पिता, और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जाता हूँ।”\wj*
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\v 18 मरियम मगदलीनी ने जाकर चेलों को बताया, “मैंने प्रभु को देखा और उसने मुझसे बातें कहीं।”
|
||
\s चेलों के बीच में यीशु का प्रगट होना
|
||
\p
|
||
\v 19 उसी दिन जो सप्ताह का पहला दिन था, संध्या के समय जब वहाँ के द्वार जहाँ चेले थे, यहूदियों के डर के मारे बन्द थे, तब यीशु आया और बीच में खड़ा होकर उनसे कहा, \wj “तुम्हें शान्ति मिले।”\wj*
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\v 20 और यह कहकर उसने अपना हाथ और अपना पंजर उनको दिखाए: तब चेले प्रभु को देखकर आनन्दित हुए।
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\v 21 यीशु ने फिर उनसे कहा, \wj “तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।”\wj*
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\v 22 यह कहकर उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, \wj “पवित्र आत्मा लो।\wj*
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\v 23 \it \+wj जिनके पाप तुम क्षमा करो\+wj*\it*\f + \fr 20:23 \fq जिनके पाप तुम क्षमा करो: \ft यीशु ने सब प्रेरितों पर वही सामर्थ्य प्रदान की, वह उनमें से किसी को भी कोई विशेष अधिकार नहीं देता है।\f* \wj वे उनके लिये क्षमा किए गए हैं; जिनके तुम रखो, वे रखे गए हैं।” \wj*
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\s देखना और विश्वास करना
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\v 24 परन्तु बारहों में से एक व्यक्ति अर्थात् थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, जब यीशु आया तो उनके साथ न था।
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\v 25 जब और चेले उससे कहने लगे, “हमने प्रभु को देखा है,” तब उसने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के छेद न देख लूँ, और कीलों के छेदों में अपनी उँगली न डाल लूँ, तब तक मैं विश्वास नहीं करूँगा।”
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\v 26 आठ दिन के बाद उसके चेले फिर घर के भीतर थे, और थोमा उनके साथ था, और द्वार बन्द थे, तब यीशु ने आकर और बीच में खड़ा होकर कहा, \wj “तुम्हें शान्ति मिले।”\wj*
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\v 27 तब उसने थोमा से कहा, \wj “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल और अविश्वासी नहीं परन्तु विश्वासी हो।”\wj*
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\v 28 यह सुन थोमा ने उत्तर दिया, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!”
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\v 29 यीशु ने उससे कहा, \wj “तूने तो मुझे देखकर विश्वास किया है? धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया।”\wj*
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\s यह पुस्तक यूहन्ना ने क्यों लिखी
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\v 30 यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के सामने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए।
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\v 31 परन्तु ये इसलिए लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।
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\c 21
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\s तिबिरियास झील के किनारे चेलों पर प्रगट होना
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\v 1 इन बातों के बाद यीशु ने अपने आपको तिबिरियास झील के किनारे चेलों पर प्रगट किया और इस रीति से प्रगट किया।
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\v 2 शमौन पतरस और थोमा जो दिदुमुस कहलाता है, और गलील के काना नगर का नतनएल और जब्दी के पुत्र, और उसके चेलों में से दो और जन इकट्ठे थे।
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\v 3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जाता हूँ।” उन्होंने उससे कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।” इसलिए वे निकलकर नाव पर चढ़े, परन्तु उस रात कुछ न पकड़ा।
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\v 4 भोर होते ही यीशु किनारे पर खड़ा हुआ; फिर भी चेलों ने न पहचाना कि यह यीशु है।
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\v 5 तब यीशु ने उनसे कहा, \wj “हे बालकों, क्या तुम्हारे पास कुछ खाने को है?”\wj* उन्होंने उत्तर दिया, “नहीं।”
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\v 6 उसने उनसे कहा, \wj “नाव की दाहिनी ओर जाल डालो, तो पाओगे।”\wj* तब उन्होंने जाल डाला, और अब मछलियों की बहुतायत के कारण उसे खींच न सके।
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\v 7 इसलिए उस चेले ने जिससे यीशु प्रेम रखता था पतरस से कहा, “\it यह तो प्रभु है\it*\f + \fr 21:7 \fq यह तो प्रभु है: \ft वह आश्वस्त था, सम्भवतः दृश्यमान चमत्कार के द्वारा\f*।” शमौन पतरस ने यह सुनकर कि प्रभु है, कमर में अंगरखा कस लिया, क्योंकि वह नंगा था, और झील में कूद पड़ा।
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\v 8 परन्तु और चेले डोंगी पर मछलियों से भरा हुआ जाल खींचते हुए आए, क्योंकि वे किनारे से अधिक दूर नहीं, कोई दो सौ हाथ पर थे।
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\v 9 जब किनारे पर उतरे, तो उन्होंने कोयले की आग, और उस पर मछली रखी हुई, और रोटी देखी।
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\v 10 यीशु ने उनसे कहा, \wj “जो मछलियाँ तुम ने अभी पकड़ी हैं, उनमें से कुछ लाओ।”\wj*
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\v 11 शमौन पतरस ने डोंगी पर चढ़कर एक सौ तिरपन बड़ी मछलियों से भरा हुआ जाल किनारे पर खींचा, और इतनी मछलियाँ होने पर भी जाल न फटा।
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\v 12 यीशु ने उनसे कहा, \wj “आओ, भोजन करो।”\wj* और चेलों में से किसी को साहस न हुआ, कि उससे पूछे, “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि यह प्रभु है।
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\v 13 यीशु आया, और रोटी लेकर उन्हें दी, और वैसे ही मछली भी।
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\v 14 यह तीसरी बार है, कि यीशु ने मरे हुओं में से जी उठने के बाद चेलों को दर्शन दिए।
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\s यीशु की पतरस से बातचीत
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\v 15 भोजन करने के बाद यीशु ने शमौन पतरस से कहा, \wj “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू इनसे बढ़कर मुझसे प्रेम रखता है?”\wj* उसने उससे कहा, “हाँ प्रभु; तू तो जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, \wj “मेरे मेम्नों को चरा।”\wj*
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\v 16 उसने फिर दूसरी बार उससे कहा, \wj “हे शमौन यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रेम रखता है?”\wj* उसने उससे कहा, “हाँ, प्रभु तू जानता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” उसने उससे कहा, \wj “\wj*\it \+wj मेरी भेड़ों\f + \fr 21:16 \fq मेरी भेड़ों: \ft यह शब्द आमतौर पर सामान्य रूप में कलीसिया को व्यक्त करता है (यूह 10) \f*\+wj*\it* \wj की रखवाली कर।”\wj*
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\v 17 उसने तीसरी बार उससे कहा, \wj “हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?”\wj* पतरस उदास हुआ, कि उसने उसे तीसरी बार ऐसा कहा, “क्या तू मुझसे प्रीति रखता है?” और उससे कहा, “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूँ।” यीशु ने उससे कहा, \wj “मेरी भेड़ों को चरा।\wj*
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\v 18 \wj मैं तुझ से सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था, तो अपनी कमर बाँधकर जहाँ चाहता था, वहाँ फिरता था; परन्तु जब तू बूढ़ा होगा, तो अपने हाथ लम्बे करेगा, और दूसरा तेरी कमर बाँधकर जहाँ तू न चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।”\wj*
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\v 19 उसने इन बातों से दर्शाया कि पतरस कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा; और यह कहकर, उससे कहा, \wj “मेरे पीछे हो ले।”\wj*
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\s यीशु और उसका प्रिय चेला
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\v 20 पतरस ने फिरकर उस चेले को पीछे आते देखा, जिससे यीशु प्रेम रखता था, और जिसने भोजन के समय उसकी छाती की ओर झुककर पूछा “हे प्रभु, तेरा पकड़वानेवाला कौन है?”
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\v 21 उसे देखकर पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, इसका क्या हाल होगा?”
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\v 22 यीशु ने उससे कहा, \wj “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे हो ले।”\wj*
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\v 23 इसलिए भाइयों में यह बात फैल गई, कि वह चेला न मरेगा; तो भी यीशु ने उससे यह नहीं कहा, कि वह न मरेगा, परन्तु यह कि \wj “यदि मैं चाहूँ कि वह मेरे आने तक ठहरा रहे, तो तुझे इससे क्या?”\wj*
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\s उपसंहार
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\v 24 यह वही चेला है, जो इन बातों की गवाही देता है और जिसने इन बातों को लिखा है और हम जानते हैं, कि उसकी गवाही सच्ची है।
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\v 25 और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक-एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं।
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