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\id ACT
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\ide UTF-8
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\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
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\h प्रेरितों के काम
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\toc1 प्रेरितों के काम
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\toc2 प्रेरितों के काम
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\toc3 प्रेरि.
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\mt प्रेरितों के काम
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\is लेखक
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\ip वैद्य लूका इस पुस्तक का लेखक है। प्रेरितों के काम की पुस्तक में व्यक्त अनेक घटनाओं का वह आँखों देखा गवाह था। इसकी पुष्टि उसके द्वारा बहुवचन सर्वनाम शब्द “हम” के उपयोग से होती है (16:10-17; 20:5-21:18; 27:1-28:16)। परम्परा के अनुसार वह एक विजातीय विश्वासी था जो प्रचारक बना।
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\is लेखन तिथि एवं स्थान
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\ip लगभग ई.स. 60 - 63
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\ip लेखन कार्य के मुख्य स्थान यरूशलेम, सामरिया, लुद्दा, याफा, अन्ताकिया, इकुनियुस, लुस्त्रा, दिरबे, फिलिप्पी, थिस्सलुनीके, बिरीया, एथेंस, कुरिन्थ, इफिसुस, कैसरिया, माल्टा, और रोम रहे होंगे।
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\is प्रापक
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\ip लूका ने थियुफिलुस को लिखा था (प्रेरि. 1:1)। दुर्भाग्यवश, थियुफिलुस के बारे में अन्य कोई जानकारी नहीं है। सम्भव है कि वह लूका का अभिभावक था; या यह नाम थियुफिलुस (अर्थात् “परमेश्वर से प्रेम करनेवाला”) मसीही विश्वासियों के लिए काम में लिया गया व्यापक शब्द था।
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\is उद्देश्य
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\ip प्रेरितों के काम की पुस्तक का उद्देश्य है की मसीही कलीसिया के आरम्भ और उसके विकास की कहानी प्रस्तुत करे। यह पुस्तक यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले, यीशु और शुभ सन्देश वृत्तान्तों में बारह शिष्यों के सन्देशों को प्रकट करती है। इस पुस्तक में पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा के अवतरण से लेकर मसीही विश्वास के प्रसारण का वृत्तान्त व्यक्त है।
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\is मूल विषय
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\ip सुसमाचार का प्रसार
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\iot रूपरेखा
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\io1 1. पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा — 1:1-26
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\io1 2. पवित्र आत्मा का प्रकटीकरण — 2:1-4
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\io1 3. यरूशलेम में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई और कलीसिया का उत्पीड़न — 2:5-8:3
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\io1 4. यहूदिया और सामरिया में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई — 8:4-12:25
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\io1 5. दुनिया के अन्य हिस्सों में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई — 13:1-28:31
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\c 1
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\s प्रस्तावना
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\p
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\v 1 हे थियुफिलुस, मैंने पहली पुस्तिका उन सब बातों के विषय में लिखी, जो यीशु आरम्भ से करता और सिखाता रहा,
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\v 2 उस दिन तक जब वह उन प्रेरितों को जिन्हें उसने चुना था, पवित्र आत्मा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया,
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\v 3 और यीशु के दुःख उठाने के बाद बहुत से पक्के प्रमाणों से अपने आपको उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह प्रेरितों को दिखाई देता रहा, और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा।
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\s पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा
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\p
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\v 4 और चेलों से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, \wj “यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की प्रतीक्षा करते रहो, जिसकी चर्चा तुम मुझसे सुन चुके हो।\wj* \bdit (लूका 24:49) \bdit*
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\v 5 \wj क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।”\wj* \bdit (मत्ती 3:11) \bdit*
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\p
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\v 6 अतः उन्होंने इकट्ठे होकर उससे पूछा, “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल का राज्य पुनः स्थापित करेगा?”
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\v 7 उसने उनसे कहा, \wj “उन समयों या कालों को जानना, जिनको पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं।\wj*
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\v 8 \wj परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब\wj* \it \+wj तुम सामर्थ्य पाओगे\f + \fr 1:8 \fq तुम सामर्थ्य पाओगे: \ft “सामर्थ्य” शब्द यहाँ पर मदद या सहायता को संदर्भित करता है जो पवित्र आत्मा देगा\f*\+wj*\it*\wj ; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होंगे।”\wj*
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\s यीशु का स्वर्गारोहण
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\p
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\v 9 यह कहकर वह उनके देखते-देखते ऊपर उठा लिया गया, और बादल ने उसे उनकी आँखों से छिपा लिया। \bdit (भज. 47:5) \bdit*
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\v 10 और उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तब देखो, दो पुरुष श्वेत वस्त्र पहने हुए उनके पास आ खड़े हुए।
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\v 11 और कहने लगे, “हे गलीली पुरुषों, तुम क्यों खड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो? यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।” \bdit (1 थिस्स. 4:16) \bdit*
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\s सामूहिक प्रार्थना
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\p
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\v 12 तब वे जैतून नामक पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे।
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\v 13 और जब वहाँ पहुँचे तो वे उस अटारी पर गए, जहाँ पतरस, यूहन्ना, याकूब, अन्द्रियास, फिलिप्पुस, थोमा, बरतुल्मै, मत्ती, हलफईस का पुत्र याकूब, शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे।
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\v 14 ये सब कई स्त्रियों और यीशु की माता मरियम और उसके भाइयों के साथ \it एक चित्त होकर\it*\f + \fr 1:14 \fq चित्त होकर: \ft एक मन के साथ।\f* प्रार्थना में लगे रहे।
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\s एक नये प्रेरित का चुनाव
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\p
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\v 15 और \it उन्हीं दिनों में\it*\f + \fr 1:15 \fq उन्हीं दिनों में: \ft यीशु के उठाएँ जाने और पिन्तेकुस्त के दिनों में से बीच का कोई एक दिन है।\f* पतरस भाइयों के बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा।
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\v 16 “हे भाइयों, अवश्य था कि पवित्रशास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्मा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु के पकड़ने वालों का अगुआ था, पहले से कहा था। \bdit (भज. 41:9) \bdit*
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\v 17 क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में भी सहभागी हुआ।”
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\v 18 (उसने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा, और उसका पेट फट गया, और उसकी सब अंतड़ियाँ निकल गई।
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\v 19 और इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहाँ तक कि उस खेत का नाम उनकी भाषा में ‘हकलदमा’ अर्थात् ‘लहू का खेत’ पड़ गया।)
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\v 20 क्योंकि भजन संहिता में लिखा है,
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\q ‘उसका घर उजड़ जाए,
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\q और उसमें कोई न बसे’
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\q और ‘उसका पद कोई दूसरा ले ले।’ \bdit (भज. 69:25, भज. 109:8) \bdit*
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\p
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\v 21 इसलिए जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साथ आता-जाता रहा, अर्थात् यूहन्ना के बपतिस्मा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साथ रहे,
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\v 22 उचित है कि उनमें से एक व्यक्ति हमारे साथ उसके जी उठने का गवाह हो जाए।
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\v 23 तब उन्होंने दो को खड़ा किया, एक यूसुफ को, जो बरसब्बास कहलाता है, जिसका उपनाम यूस्तुस है, दूसरा मत्तियाह को।
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\v 24 और यह कहकर प्रार्थना की, “हे प्रभु, तू जो सब के मन को जानता है, यह प्रगट कर कि इन दोनों में से तूने किसको चुना है,
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\v 25 कि वह इस सेवकाई और प्रेरिताई का पद ले, जिसे यहूदा छोड़कर अपने स्थान को गया।”
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\v 26 तब उन्होंने उनके बारे में चिट्ठियाँ डाली, और चिट्ठी मत्तियाह के नाम पर निकली, अतः वह उन ग्यारह प्रेरितों के साथ गिना गया।
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\c 2
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\s पवित्र आत्मा का आगमन
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\p
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\v 1 जब \it पिन्तेकुस्त का दिन\it*\f + \fr 2:1 \fq पिन्तेकुस्त का दिन: \ft “पिन्तेकुस्त” एक यूनानी शब्द है फसह के विश्रामदिन से पचासवाँ दिन है।\f* आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। \bdit (लैव्य. 23:15-21, व्यव. 16:9-11) \bdit*
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\v 2 और अचानक आकाश से बड़ी आँधी के समान सनसनाहट का शब्द हुआ, और उससे सारा घर जहाँ वे बैठे थे, गूँज गया।
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\v 3 और उन्हें आग के समान जीभें फटती हुई दिखाई दी और उनमें से हर एक पर आ ठहरी।
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\v 4 और \it वे सब पवित्र आत्मा से भर गए\it*\f + \fr 2:4 \fq वे सब पवित्र आत्मा से भर गए: \ft पूरी तरह से उसके पवित्र प्रभाव और सामर्थ्य के अधीन थे।\f*, और जिस प्रकार आत्मा ने उन्हें बोलने की सामर्थ्य दी, वे अन्य-अन्य भाषा बोलने लगे।
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\p
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\v 5 और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त-यहूदी यरूशलेम में रहते थे।
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\v 6 जब वह शब्द सुनाई दिया, तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता था, कि ये मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं।
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\v 7 और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे, “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं?
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\v 8 तो फिर क्यों हम में से; हर एक अपनी-अपनी जन्म-भूमि की भाषा सुनता है?
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\v 9 हम जो पारथी, मेदी, एलाम लोग, मेसोपोटामिया, यहूदिया, कप्पदूकिया, पुन्तुस और आसिया,
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\v 10 और फ्रूगिया और पंफूलिया और मिस्र और लीबिया देश जो कुरेने के आस-पास है, इन सब देशों के रहनेवाले और रोमी प्रवासी,
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\v 11 अर्थात् क्या यहूदी, और क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं, परन्तु अपनी-अपनी भाषा में उनसे परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा सुनते हैं।”
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\v 12 और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे, “यह क्या हो रहा है?”
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\v 13 परन्तु दूसरों ने उपहास करके कहा, “वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।”
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\s पिन्तेकुस्त के दिन पतरस का भाषण
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\p
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\v 14 पतरस उन ग्यारह के साथ खड़ा हुआ और ऊँचे शब्द से कहने लगा, “हे यहूदियों, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालों, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो।
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\v 15 जैसा तुम समझ रहे हो, ये नशे में नहीं हैं, क्योंकि अभी तो तीसरा पहर ही दिन चढ़ा है।
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\v 16 परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है:
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\q
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\v 17 ‘परमेश्वर कहता है, कि अन्त के दिनों में ऐसा होगा, कि
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\q मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उण्डेलूँगा और
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\q तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियाँ भविष्यद्वाणी करेंगी,
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\q और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे,
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\q और तुम्हारे वृद्ध पुरुष स्वप्न देखेंगे।
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\q
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\v 18 वरन् मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों
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\q में अपनी आत्मा उण्डेलूँगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।
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\q
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\v 19 और मैं ऊपर आकाश में \it अद्भुत काम\it*\f + \fr 2:19 \fq अद्भुत काम: \ft मैं परमेश्वर द्वारा निष्पादित चिन्ह या चमत्कार दूँगा।\f*,
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\q और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात्
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\q लहू, और आग और धुएँ का बादल दिखाऊँगा।
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\q
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\v 20 \it प्रभु के महान और तेजस्वी दिन\it*\f + \fr 2:20 \fq प्रभु के महान और तेजस्वी दिन: \ft उन दिनों में अन्य दिनों की तुलना से परमेश्वर असाधारण रूप से अधिक प्रभावशाली और सामर्थ्य के साथ प्रकट होगा।\f* के आने से पहले
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\q सूर्य अंधेरा
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\q और चाँद लहू सा हो जाएगा।
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\q
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\v 21 और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।’ \bdit (योए. 2:28-32) \bdit*
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\p
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\v 22 “हे इस्राएलियों, ये बातें सुनो कि यीशु नासरी एक मनुष्य था जिसका परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्थ्य के कामों और आश्चर्य के कामों और चिन्हों से प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो।
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\v 23 उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई योजना और पूर्व ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधर्मियों के हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला।
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\v 24 परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्धनों से छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना था कि वह उसके वश में रहता। \bdit (2 शमू. 22:6, भज. 18:4, भज. 116:3) \bdit*
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\v 25 क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है,
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\q ‘मैं प्रभु को सर्वदा अपने सामने देखता रहा
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\q क्योंकि वह मेरी दाहिनी ओर है, ताकि मैं डिग न जाऊँ।
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\q
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\v 26 इसी कारण मेरा मन आनन्दित हुआ, और मेरी जीभ मगन हुई;
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\q वरन् मेरा शरीर भी आशा में बना रहेगा।
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\q
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\v 27 क्योंकि तू मेरे प्राणों को अधोलोक में न छोड़ेगा;
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\q और न अपने पवित्र जन को सड़ने देगा!
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\q
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\v 28 तूने मुझे जीवन का मार्ग बताया है;
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\q तू मुझे अपने दर्शन के द्वारा आनन्द से भर देगा।’ \bdit (भज. 16:8-11) \bdit*
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\p
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||
\v 29 “हे भाइयों, मैं उस कुलपति दाऊद के विषय में तुम से साहस के साथ कह सकता हूँ कि वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उसकी कब्र आज तक हमारे यहाँ वर्तमान है। \bdit (1 राजा. 2:10) \bdit*
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\v 30 वह भविष्यद्वक्ता था, वह जानता था कि परमेश्वर ने उससे शपथ खाई है, मैं तेरे वंश में से एक व्यक्ति को तेरे सिंहासन पर बैठाऊँगा। \bdit (2 शमू. 7:12,13, भज. 132:11) \bdit*
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\v 31 उसने होनेवाली बात को पहले ही से देखकर मसीह के जी उठने के विषय में भविष्यद्वाणी की,
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\q कि न तो उसका प्राण अधोलोक में छोड़ा गया, और न उसकी देह सड़ने पाई। \bdit (भज. 16:10) \bdit*
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\p
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\v 32 “इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिसके हम सब गवाह हैं।
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\v 33 इस प्रकार परमेश्वर के दाहिने हाथ से सर्वोच्च पद पाकर, और पिता से वह पवित्र आत्मा प्राप्त करके जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी, उसने यह उण्डेल दिया है जो तुम देखते और सुनते हो।
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\v 34 क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा; परन्तु वह स्वयं कहता है,
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||
\q ‘प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा; मेरे दाहिने बैठ,
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||
\q
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\v 35 जब तक कि मैं तेरे बैरियों को तेरे पाँवों तले की चौकी न कर दूँ।’” \bdit (भज. 110:1) \bdit*
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\p
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\v 36 “अतः अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।”
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\p
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\v 37 तब सुननेवालों के हृदय छिद गए, और वे पतरस और अन्य प्रेरितों से पूछने लगे, “हे भाइयों, हम क्या करें?”
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\v 38 पतरस ने उनसे कहा, “मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपने-अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे।
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\v 39 क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर-दूर के लोगों के लिये भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपने पास बुलाएगा।” \bdit (योए. 2:32) \bdit*
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||
\v 40 उसने बहुत और बातों से भी गवाही दे देकर समझाया कि अपने आपको इस टेढ़ी जाति से बचाओ। \bdit (व्यव. 32:5, भज. 78:8) \bdit*
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\v 41 अतः जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्मा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्यों के लगभग उनमें मिल गए।
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\s विश्वासियों का साझा जीवन
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\p
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||
\v 42 और वे प्रेरितों से शिक्षा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्थना करने में लौलीन रहे।
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||
\v 43 और सब लोगों पर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्ह प्रेरितों के द्वारा प्रगट होते थे।
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||
\v 44 और सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उनकी सब वस्तुएँ साझे की थीं।
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||
\v 45 और वे अपनी-अपनी सम्पत्ति और सामान बेच-बेचकर जैसी जिसकी आवश्यकता होती थी बाँट दिया करते थे।
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||
\v 46 और वे प्रतिदिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर-घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सिधाई से भोजन किया करते थे।
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||
\v 47 और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उनसे प्रसन्न थे; और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रतिदिन उनमें मिला देता था।
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||
\c 3
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||
\s लँगड़े भिखारी की चंगाई
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\p
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||
\v 1 पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्थना के समय मन्दिर में जा रहे थे।
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\v 2 और लोग एक जन्म के लँगड़े को ला रहे थे, जिसको वे प्रतिदिन मन्दिर के उस द्वार पर जो ‘सुन्दर’ कहलाता है, बैठा देते थे, कि वह मन्दिर में जानेवालों से भीख माँगे।
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||
\v 3 जब उसने पतरस और यूहन्ना को मन्दिर में जाते देखा, तो उनसे भीख माँगी।
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||
\v 4 पतरस ने यूहन्ना के साथ उसकी ओर ध्यान से देखकर कहा, “हमारी ओर देख!”
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||
\v 5 अतः वह उनसे कुछ पाने की आशा रखते हुए उनकी ओर ताकने लगा।
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||
\p
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||
\v 6 तब पतरस ने कहा, “चाँदी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूँ; यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर।”
|
||
\v 7 और उसने उसका दाहिना हाथ पकड़ के उसे उठाया; और तुरन्त उसके पाँवों और टखनों में बल आ गया।
|
||
\v 8 और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने फिरने लगा; और चलता, और कूदता, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ उनके साथ मन्दिर में गया।
|
||
\v 9 सब लोगों ने उसे चलते फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखकर,
|
||
\v 10 उसको पहचान लिया कि यह वही है, जो मन्दिर के ‘सुन्दर’ फाटक पर बैठकर भीख माँगा करता था; और उस घटना से जो उसके साथ हुई थी; वे बहुत अचम्भित और चकित हुए।
|
||
\s सुलैमान के ओसारे में पतरस का सन्देश
|
||
\p
|
||
\v 11 जब वह पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए था, तो सब लोग बहुत अचम्भा करते हुए उस ओसारे में जो सुलैमान का कहलाता है, उनके पास दौड़े आए।
|
||
\v 12 यह देखकर पतरस ने लोगों से कहा, “हे इस्राएलियों, तुम इस मनुष्य पर क्यों अचम्भा करते हो, और हमारी ओर क्यों इस प्रकार देख रहे हो, कि मानो हमने अपनी सामर्थ्य या भक्ति से इसे चलने फिरने योग्य बना दिया।
|
||
\v 13 \it अब्राहम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर\it*\f + \fr 3:13 \fq अब्राहम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर: \ft वह अब्राहम का परमेश्वर कहा जाता है क्योंकि अब्राहम ने उन्हें परमेश्वर के रूप में स्वीकार किया।\f*, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने अपने सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पिलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके सामने यीशु का तिरस्कार किया।
|
||
\v 14 तुम ने \it उस पवित्र और धर्मी\it*\f + \fr 3:14 \fq उस पवित्र और धर्मी: \ft वह एक जो व्यवस्था की दृष्टिकोण से न्यायोचित है या जिस पर अपराध का दोष नहीं लगाया जा सकता है।\f* का तिरस्कार किया, और चाहा कि एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाए।
|
||
\v 15 और तुम ने जीवन के कर्ता को मार डाला, जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया; और इस बात के हम गवाह हैं।
|
||
\v 16 और उसी के नाम ने, उस विश्वास के द्वारा जो उसके नाम पर है, इस मनुष्य को जिसे तुम देखते हो और जानते भी हो सामर्थ्य दी है; और निश्चय उसी विश्वास ने जो यीशु के द्वारा है, इसको तुम सब के सामने बिलकुल भला चंगा कर दिया है।
|
||
\p
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||
\v 17 “और अब हे भाइयों, मैं जानता हूँ कि यह काम तुम ने अज्ञानता से किया, और वैसा ही तुम्हारे सरदारों ने भी किया।
|
||
\v 18 परन्तु जिन बातों को परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं के मुख से पहले ही बताया था, कि उसका मसीह दुःख उठाएगा; उन्हें उसने इस रीति से पूरा किया।
|
||
\v 19 इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाएँ जाएँ, जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रान्ति के दिन आएँ।
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\v 20 और वह उस यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिये पहले ही से मसीह ठहराया गया है।
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||
\v 21 अवश्य है कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि वह \it सब बातों का सुधार\it*\f + \fr 3:21 \fq सब बातों का सुधार: \ft किसी वस्तु को उसकी पूर्व स्थिति में पुनर्स्थापित करना\f* न कर ले जिसकी चर्चा प्राचीनकाल से परमेश्वर ने अपने पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से की है।
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\v 22 जैसा कि मूसा ने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मुझ जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जो कुछ वह तुम से कहे, उसकी सुनना।’ \bdit (व्यव. 18:15-18) \bdit*
|
||
\v 23 परन्तु प्रत्येक मनुष्य जो उस भविष्यद्वक्ता की न सुने, लोगों में से नाश किया जाएगा। \bdit (लैव्य. 23:29, व्यव. 18:19) \bdit*
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\v 24 और शमूएल से लेकर उसके बाद वालों तक जितने भविष्यद्वक्ताओं ने बात कहीं उन सब ने इन दिनों का सन्देश दिया है।
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\v 25 तुम भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे पूर्वजों से बाँधी, जब उसने अब्राहम से कहा, ‘तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी के सारे घराने आशीष पाएँगे।’ \bdit (उत्प. 12:3, उत्प. 18:18, उत्प. 22:18, उत्प. 26:4) \bdit*
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\v 26 परमेश्वर ने अपने सेवक को उठाकर पहले तुम्हारे पास भेजा, कि तुम में से हर एक को उसकी बुराइयों से फेरकर आशीष दे।”
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\c 4
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\s पतरस और यूहन्ना की गिरफ्तारी
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\p
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\v 1 जब पतरस और यूहन्ना लोगों से यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आए।
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\v 2 वे बहुत क्रोधित हुए कि पतरस और यूहन्ना यीशु के विषय में सिखाते थे और उसके मरे हुओं में से जी उठने का प्रचार करते थे।
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\v 3 और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि संध्या हो गई थी।
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\v 4 परन्तु वचन के सुननेवालों में से बहुतों ने विश्वास किया, और उनकी गिनती पाँच हजार पुरुषों के लगभग हो गई।
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\s पतरस और यूहन्ना: यहूदी सभा के सामने
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\p
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\v 5 दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उनके सरदार और पुरनिए और शास्त्री।
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\v 6 और महायाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महायाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए।
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\v 7 और पतरस और यूहन्ना को बीच में खड़ा करके पूछने लगे, “तुम ने यह काम किस सामर्थ्य से और किस नाम से किया है?”
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||
\v 8 तब पतरस ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उनसे कहा,
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\v 9 “हे लोगों के \it सरदारों और प्राचीनों\it*\f + \fr 4:9 \fq सरदारों और प्राचीनों: \ft पतरस ने सही सम्मान के साथ महासभा को संबोधित किया।\f*, इस दुर्बल मनुष्य के साथ जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछताछ की जाती है, कि वह कैसे अच्छा हुआ।
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||
\v 10 तो तुम सब और सारे इस्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे सामने भला चंगा खड़ा है।
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||
\v 11 \it यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना\it*\f + \fr 4:11 \fq यह वही पत्थर है जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने तुच्छ जाना: \ft यह वही है जिसे लोगों ने अस्वीकार किया परन्तु परमेश्वर ने उसे अपनी योजना का आधार बना दिया। \f* और वह कोने के सिरे का पत्थर हो गया। \bdit (भज. 118:22,23, दानि. 2:34,35) \bdit*
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||
\v 12 और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिसके द्वारा हम उद्धार पा सके।”
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\s यीशु के नाम के लिये चेलों को धमकी
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\p
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||
\v 13 जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का साहस देखा, और यह जाना कि ये अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उनको पहचाना, कि ये यीशु के साथ रहे हैं।
|
||
\v 14 परन्तु उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ था, उनके साथ खड़े देखकर, यहूदी उनके विरोध में कुछ न कह सके।
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||
\v 15 परन्तु उन्हें महासभा के बाहर जाने की आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे,
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||
\v 16 “हम इन मनुष्यों के साथ क्या करें? क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालों पर प्रगट है, कि इनके द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहीं कर सकते।
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||
\v 17 परन्तु इसलिए कि यह बात लोगों में और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएँ, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें।”
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\v 18 तब पतरस और यूहन्ना को बुलाया और चेतावनी देकर यह कहा, “यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखाना।”
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||
\v 19 परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उनको उत्तर दिया, “तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें?
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||
\v 20 क्योंकि यह तो हम से हो नहीं सकता, कि जो हमने देखा और सुना है, वह न कहें।”
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||
\v 21 तब उन्होंने उनको और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगों के कारण उन्हें दण्ड देने का कोई कारण नहीं मिला, इसलिए कि जो घटना हुई थी उसके कारण सब लोग परमेश्वर की बड़ाई करते थे।
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||
\v 22 क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया था, चालीस वर्ष से अधिक आयु का था।
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||
\s चेलों की प्रार्थना
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||
\p
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\v 23 पतरस और यूहन्ना छूटकर अपने साथियों के पास आए, और जो कुछ प्रधान याजकों और प्राचीनों ने उनसे कहा था, उनको सुना दिया।
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||
\v 24 यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊँचे शब्द से परमेश्वर से कहा, “हे प्रभु, तू वही है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। \bdit (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) \bdit*
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||
\v 25 तूने पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा,
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||
\q ‘अन्यजातियों ने हुल्लड़ क्यों मचाया?
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\q और देश-देश के लोगों ने क्यों व्यर्थ बातें सोची?
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||
\q
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||
\v 26 प्रभु और उसके अभिषिक्त के विरोध में पृथ्वी के राजा खड़े हुए,
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||
\q और हाकिम एक साथ इकट्ठे हो गए।’ \bdit (भज. 2:1,2) \bdit*
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||
\p
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||
\v 27 “क्योंकि सचमुच तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी अन्यजातियों और इस्राएलियों के साथ इस नगर में इकट्ठे हुए, \bdit (यशा. 61:1) \bdit*
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||
\v 28 कि जो कुछ पहले से तेरी सामर्थ्य और मति से ठहरा था वही करें।
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||
\v 29 अब हे प्रभु, उनकी धमकियों को देख; और अपने दासों को यह वरदान दे कि तेरा वचन बड़े साहस से सुनाएँ।
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||
\v 30 और चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ा कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएँ।”
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||
\v 31 जब वे प्रार्थना कर चुके, तो वह स्थान जहाँ वे इकट्ठे थे \it हिल गया\it*\f + \fr 4:31 \fq हिल गया: \ft आमतौर पर इसका अर्थ “तीव्र कम्पन,” भूकम्प का झटका या हवा से हिलाए गए पेड़ो के रूप में होता है\f*, और वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन साहस से सुनाते रहे।
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||
\s विश्वासियों का सहयोगी
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\p
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||
\v 32 और विश्वास करनेवालों की मण्डली एक चित्त और एक मन की थी, यहाँ तक कि कोई भी अपनी सम्पत्ति अपनी नहीं कहता था, परन्तु सब कुछ साझे का था।
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||
\v 33 और प्रेरित बड़ी सामर्थ्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह था।
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||
\v 34 और उनमें कोई भी दरिद्र न था, क्योंकि जिनके पास भूमि या घर थे, वे उनको बेच-बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्रेरितों के पाँवों पर रखते थे।
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||
\v 35 और जैसी जिसे आवश्यकता होती थी, उसके अनुसार हर एक को बाँट दिया करते थे।
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||
\p
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||
\v 36 और यूसुफ नामक, साइप्रस का एक लेवी था जिसका नाम प्रेरितों ने बरनबास अर्थात् (शान्ति का पुत्र) रखा था।
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||
\v 37 उसकी कुछ भूमि थी, जिसे उसने बेचा, और दाम के रुपये लाकर प्रेरितों के पाँवों पर रख दिए।
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\c 5
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\s पवित्र आत्मा से झूठ बोलना
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\p
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||
\v 1 हनन्याह नामक एक मनुष्य, और उसकी पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची।
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\v 2 और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी, और उसका एक भाग लाकर प्रेरितों के पाँवों के आगे रख दिया।
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||
\v 3 परन्तु पतरस ने कहा, “हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है कि तू पवित्र आत्मा से झूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े?
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||
\v 4 जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न थी? और जब बिक गई तो उसकी कीमत क्या तेरे वश में न थी? तूने यह बात अपने मन में क्यों सोची? तूने मनुष्यों से नहीं, परन्तु परमेश्वर से झूठ बोला है।”
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||
\v 5 \it ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा\it*\f + \fr 5:5 \fq ये बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा: \ft यह जानते हुए कि उसका पाप ज्ञात हो गया और परमेश्वर को धोखा देने के प्रयास का महापाप का, वो दोषी पाया गया।\f*, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालों पर बड़ा भय छा गया।
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||
\v 6 फिर जवानों ने उठकर उसकी अर्थी बनाई और बाहर ले जाकर गाड़ दिया।
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||
\p
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||
\v 7 लगभग तीन घंटे के बाद उसकी पत्नी, जो कुछ हुआ था न जानकर, भीतर आई।
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\v 8 तब पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने ही में।”
|
||
\v 9 पतरस ने उससे कहा, “यह क्या बात है, कि तुम दोनों प्रभु के आत्मा की परीक्षा के लिए एक साथ सहमत हो गए? देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएँगे।”
|
||
\v 10 तब वह तुरन्त उसके पाँवों पर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए; और जवानों ने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया।
|
||
\v 11 और सारी कलीसिया पर और इन बातों के सब सुननेवालों पर, बड़ा भय छा गया।
|
||
\s प्रेरितों द्वारा चिन्ह और चमत्कार
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||
\p
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||
\v 12 प्रेरितों के हाथों से बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगों के बीच में दिखाए जाते थे, और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे।
|
||
\v 13 परन्तु औरों में से किसी को यह साहस न होता था कि, उनमें जा मिलें; फिर भी लोग उनकी बड़ाई करते थे।
|
||
\v 14 और विश्वास करनेवाले बहुत सारे पुरुष और स्त्रियाँ प्रभु की कलीसिया में \it और भी अधिक आकर मिलते रहे\it*\f + \fr 5:14 \fq और भी अधिक आकर मिलते रहे: \ft इन सब बातों के प्रभाव से विश्वासियों की संख्या में वृद्धि हो रही थी।\f*।
|
||
\v 15 यहाँ तक कि लोग बीमारों को सड़कों पर ला-लाकर, खाटों और खटोलों पर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उसकी छाया ही उनमें से किसी पर पड़ जाए।
|
||
\v 16 और यरूशलेम के आस-पास के नगरों से भी बहुत लोग बीमारों और अशुद्ध आत्माओं के सताए हुओं को ला-लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे।
|
||
\s प्रेरितों को बन्दीगृह में डालना
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||
\p
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||
\v 17 तब महायाजक और उसके सब साथी जो सदूकियों के पंथ के थे, ईर्ष्या से भर उठे।
|
||
\v 18 और प्रेरितों को पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया।
|
||
\v 19 परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा,
|
||
\v 20 “जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगों को सुनाओ।”
|
||
\v 21 वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपदेश देने लगे। परन्तु महायाजक और उसके साथियों ने आकर महासभा को और इस्राएलियों के सब प्राचीनों को इकट्ठा किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएँ।
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||
\p
|
||
\v 22 परन्तु अधिकारियों ने वहाँ पहुँचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर सन्देश दिया,
|
||
\v 23 “हमने बन्दीगृह को बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालों को बाहर द्वारों पर खड़े हुए पाया; परन्तु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला।”
|
||
\v 24 जब मन्दिर के सरदार और प्रधान याजकों ने ये बातें सुनीं, तो उनके विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि उनका क्या हुआ!
|
||
\v 25 इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, “देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा था, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगों को उपदेश दे रहे हैं।”
|
||
\v 26 तब सरदार, अधिकारियों के साथ जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बलपूर्वक नहीं, क्योंकि वे लोगों से डरते थे, कि उन पर पथराव न करें।
|
||
\p
|
||
\v 27 उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया और महायाजक ने उनसे पूछा,
|
||
\v 28 “क्या हमने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी थी, कि तुम इस नाम से उपदेश न करना? फिर भी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो।”
|
||
\v 29 तब पतरस और, अन्य प्रेरितों ने उत्तर दिया, “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही हमारा कर्तव्य है।
|
||
\v 30 हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला था। \bdit (व्यव. 21:22,23) \bdit*
|
||
\v 31 उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारकर्ता ठहराकर, अपने दाहिने हाथ से सर्वोच्च किया, कि वह इस्राएलियों को मन फिराव और पापों की क्षमा प्रदान करे। \bdit (लूका 24:47) \bdit*
|
||
\v 32 और हम इन बातों के गवाह हैं, और पवित्र आत्मा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उसकी आज्ञा मानते हैं।”
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||
\p
|
||
\v 33 यह सुनकर वे जल उठे, और उन्हें मार डालना चाहा।
|
||
\v 34 परन्तु \it गमलीएल\it*\f + \fr 5:34 \fq गमलीएल: \ft पहली शताब्दी के आरम्भ में महासभा में एक प्रकार से न्यायमूर्ति था और वह महान यहूदी शिक्षक हिल्लेल का पोता भी था\f* नामक एक फरीसी ने जो व्यवस्थापक और सब लोगों में माननीय था, महासभा में खड़े होकर प्रेरितों को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देने की आज्ञा दी।
|
||
\v 35 तब उसने कहा, “हे इस्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्यों से करना चाहते हो, सोच समझ के करना।
|
||
\v 36 क्योंकि इन दिनों से पहले थियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूँ; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साथ हो लिए, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हुए और मिट गए।
|
||
\v 37 उसके बाद नाम लिखाई के दिनों में यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपनी ओर कर लिए; वह भी नाश हो गया, और जितने लोग उसे मानते थे, सब तितर-बितर हो गए।
|
||
\v 38 इसलिए अब मैं तुम से कहता हूँ, इन मनुष्यों से दूर ही रहो और उनसे कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह योजना या काम मनुष्यों की ओर से हो तब तो मिट जाएगा;
|
||
\v 39 परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो।”
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||
\p
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||
\v 40 तब उन्होंने उसकी बात मान ली; और प्रेरितों को बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना।
|
||
\v 41 वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के सामने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिये निरादर होने के योग्य तो ठहरे।
|
||
\v 42 इसके बाद हर दिन, मन्दिर में और घर-घर में, वे लगातार सिखाते और प्रचार करते थे कि यीशु ही मसीह है न रुके।
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\c 6
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\s सात सुनाम सेवकों का चुना जाना
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\p
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\v 1 उन दिनों में जब चेलों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तब यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।
|
||
\v 2 तब उन बारहों ने चेलों की मण्डली को अपने पास बुलाकर कहा, “यह ठीक नहीं कि हम परमेश्वर का वचन छोड़कर खिलाने-पिलाने की सेवा में रहें।
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\v 3 इसलिए हे भाइयों, अपने में से सात सुनाम पुरुषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें।
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||
\v 4 परन्तु हम तो प्रार्थना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे।”
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||
\v 5 यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिफनुस नामक एक पुरुष को जो विश्वास और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण था, फिलिप्पुस, प्रुखुरुस, नीकानोर, तीमोन, परमिनास और \it अन्ताकिया\it*\f + \fr 6:5 \fq अन्ताकिया: \ft यह नगर सीरिया में, ओरोंटस नदी पर स्थित था, और पूर्वकाल में इसे रिब्लाथ कहा जाता था।\f* वासी नीकुलाउस को जो यहूदी मत में आ गया था, चुन लिया।
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\v 6 और इन्हें प्रेरितों के सामने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्थना करके उन पर हाथ रखे।
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\p
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\v 7 और \it परमेश्वर का वचन फैलता गया\it*\f + \fr 6:7 \fq परमेश्वर का वचन फैलता गया: \ft यही कारण है, सुसमाचार अधिक से अधिक सफल रहा।\f* और यरूशलेम में चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया।
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\s स्तिफनुस की गिरफ्तारी
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\p
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\v 8 स्तिफनुस अनुग्रह और सामर्थ्य से परिपूर्ण होकर लोगों में बड़े-बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता था।
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\v 9 तब उस आराधनालय में से जो दासत्व-मुक्त कहलाती थी, और कुरेनी और सिकन्दरिया और किलिकिया और आसिया के लोगों में से कई एक उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे।
|
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\v 10 परन्तु उस ज्ञान और उस आत्मा का जिससे वह बातें करता था, वे सामना न कर सके।
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\v 11 इस पर उन्होंने कई लोगों को उकसाया जो कहने लगे, “हमने इसे \it मूसा और परमेश्वर के विरोध में निन्दा\it*\f + \fr 6:11 \fq मूसा और परमेश्वर के विरोध में निन्दा: \ft मूसा अत्यधिक सम्मान के साथ माना जाता था, परमेश्वर को यहूदियों ने केवल व्यवस्था का दाता माना था।।\f* की बातें कहते सुना है।”
|
||
\v 12 और लोगों और प्राचीनों और शास्त्रियों को भड़काकर चढ़ आए और उसे पकड़कर महासभा में ले आए।
|
||
\v 13 और झूठे गवाह खड़े किए, जिन्होंने कहा, “यह मनुष्य इस पवित्रस्थान और व्यवस्था के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता। \bdit (यिर्म. 26:11) \bdit*
|
||
\v 14 क्योंकि हमने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढा देगा, और उन रीतियों को बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं।”
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||
\v 15 तब सब लोगों ने जो महासभा में बैठे थे, उसकी ओर ताक कर \it उसका मुख स्वर्गदूत के समान देखा\it*\f + \fr 6:15 \fq उसका मुख स्वर्गदूत के समान देखा: \ft इस अभिव्यक्ति से जाहिर है कि वह ईमानदारी, निर्भयता और परमेश्वर में विश्वास के सबूत को प्रकट करता है, को दर्शाता है।\f*।
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\c 7
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\s महासभा में स्तिफनुस का भाषण
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\p
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\v 1 तब महायाजक ने कहा, “क्या ये बातें सत्य है?”
|
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\p
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\v 2 उसने कहा, “हे भाइयों, और पिताओं सुनो, हमारा पिता अब्राहम हारान में बसने से पहले जब मेसोपोटामिया में था; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया।
|
||
\v 3 और उससे कहा, ‘तू अपने देश और अपने कुटुम्ब से निकलकर उस देश में चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊँगा।’ \bdit (उत्प. 12:1) \bdit*
|
||
\v 4 तब वह कसदियों के देश से निकलकर हारान में जा बसा; और उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसको वहाँ से इस देश में लाकर बसाया जिसमें अब तुम बसते हो, \bdit (उत्प. 12:5) \bdit*
|
||
\v 5 और परमेश्वर ने उसको कुछ विरासत न दी, वरन् पैर रखने भर की भी उसमें जगह न दी, यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न था। फिर भी प्रतिज्ञा की, ‘मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूँगा।’ \bdit (उत्प. 13:15, उत्प. 15:18, उत्प. 16:1, उत्प. 24:7, व्यव. 2:5, व्यव. 11:5) \bdit*
|
||
\v 6 और परमेश्वर ने यह कहा, ‘तेरी सन्तान के लोग पराए देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएँगे, और चार सौ वर्ष तक दुःख देंगे।’ \bdit (उत्प. 15:13,14, निर्ग. 2:22) \bdit*
|
||
\v 7 फिर परमेश्वर ने कहा, ‘जिस जाति के वे दास होंगे, उसको मैं दण्ड दूँगा; और इसके बाद वे निकलकर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे।’ \bdit (उत्प. 15:14, निर्ग. 3:12) \bdit*
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||
\v 8 और उसने उससे खतने की \it वाचा\it*\f + \fr 7:8 \fq वाचा: \ft “वाचा” शब्द का अर्थ है, “दो या अधिक व्यक्तियों के बीच एक समझौता”\f* बाँधी; और इसी दशा में इसहाक उससे उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। \bdit (उत्प. 17:10,11, उत्प. 21:4) \bdit*
|
||
\p
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||
\v 9 “और कुलपतियों ने यूसुफ से ईर्ष्या करके उसे मिस्र देश जानेवालों के हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साथ था। \bdit (उत्प. 37:11, उत्प. 37:28, उत्प. 39:2,3, उत्प. 45:4) \bdit*
|
||
\v 10 और उसे उसके सब क्लेशों से छुड़ाकर मिस्र के राजा फ़िरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, उसने उसे मिस्र पर और अपने सारे घर पर राज्यपाल ठहराया। \bdit (उत्प. 39:21, उत्प. 41:40, उत्प. 41:43, उत्प. 41:46, भज. 105:21) \bdit*
|
||
\v 11 तब मिस्र और कनान के सारे देश में अकाल पड़ा; जिससे भारी क्लेश हुआ, और हमारे पूर्वजों को अन्न नहीं मिलता था। \bdit (उत्प. 41:54,55, उत्प. 42:5) \bdit*
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\v 12 परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिस्र में अनाज है, हमारे पूर्वजों को पहली बार भेजा। \bdit (उत्प. 42:2) \bdit*
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\v 13 और दूसरी बार यूसुफ अपने भाइयों पर प्रगट हो गया, और यूसुफ की जाति फ़िरौन को मालूम हो गई। \bdit (उत्प. 45:1, उत्प. 45:3, उत्प. 45:16) \bdit*
|
||
\v 14 तब यूसुफ ने अपने पिता याकूब और अपने सारे कुटुम्ब को, जो पचहत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। \bdit (उत्प. 45:9-11, उत्प. 45:18,19, निर्ग. 1:5, व्यव. 10:22) \bdit*
|
||
\v 15 तब याकूब मिस्र में गया; और वहाँ वह और हमारे पूर्वज मर गए। \bdit (उत्प. 45:5,6, उत्प. 49:33, निर्ग. 1:6) \bdit*
|
||
\v 16 उनके शव शेकेम में पहुँचाए जाकर उस कब्र में रखे गए, जिसे अब्राहम ने चाँदी देकर शेकेम में हमोर की सन्तान से मोल लिया था। \bdit (उत्प. 23:16,17, उत्प. 33:19, उत्प. 49:29,30, उत्प. 50:13, यहो. 24:32) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 17 “परन्तु जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, जो परमेश्वर ने अब्राहम से की थी, तो मिस्र में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए।
|
||
\v 18 तब मिस्र में दूसरा राजा हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता था। \bdit (निर्ग. 1:7,8) \bdit*
|
||
\v 19 उसने हमारी जाति से चतुराई करके हमारे बापदादों के साथ यहाँ तक बुरा व्यवहार किया, कि उन्हें अपने बालकों को फेंक देना पड़ा कि वे जीवित न रहें। \bdit (निर्ग. 1:9,10, निर्ग. 1:18, निर्ग. 1:22) \bdit*
|
||
\v 20 उस समय मूसा का जन्म हुआ; और वह परमेश्वर की दृष्टि में बहुत ही सुन्दर था; और वह तीन महीने तक अपने पिता के घर में पाला गया। \bdit (निर्ग. 2:2) \bdit*
|
||
\v 21 परन्तु जब फेंक दिया गया तो फ़िरौन की बेटी ने उसे उठा लिया, और अपना पुत्र करके पाला। \bdit (निर्ग. 2:5, निर्ग. 2:10) \bdit*
|
||
\v 22 और मूसा को मिस्रियों की सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह वचन और कामों में सामर्थी था।
|
||
\p
|
||
\v 23 “जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि अपने इस्राएली भाइयों से भेंट करे। \bdit (निर्ग. 2:11) \bdit*
|
||
\v 24 और उसने एक व्यक्ति पर अन्याय होते देखकर, उसे बचाया, और मिस्री को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। \bdit (निर्ग. 2:12) \bdit*
|
||
\v 25 उसने सोचा, कि उसके भाई समझेंगे कि परमेश्वर उसके हाथों से उनका उद्धार करेगा, परन्तु उन्होंने न समझा।
|
||
\v 26 दूसरे दिन जब इस्राएली आपस में लड़ रहे थे, तो वह वहाँ जा पहुँचा; और यह कहकर उन्हें मेल करने के लिये समझाया, कि हे पुरुषों, ‘तुम तो भाई-भाई हो, एक दूसरे पर क्यों अन्याय करते हो?’
|
||
\v 27 परन्तु जो अपने पड़ोसी पर अन्याय कर रहा था, उसने उसे यह कहकर धक्का दिया, ‘तुझे किसने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है?
|
||
\v 28 क्या जिस रीति से तूने कल मिस्री को मार डाला मुझे भी मार डालना चाहता है?’ \bdit (निर्ग. 2:13,14) \bdit*
|
||
\v 29 यह बात सुनकर, मूसा भागा और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगा: और वहाँ उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए। \bdit (निर्ग. 2:15-22, निर्ग. 18:3,4) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 30 “जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्गदूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई झाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। \bdit (निर्ग. 3:1) \bdit*
|
||
\v 31 मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिये पास गया, तो प्रभु की यह वाणी सुनाई दी, \bdit (निर्ग. 3:2,3) \bdit*
|
||
\v 32 ‘मैं तेरे पूर्वज, अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर हूँ।’ तब तो मूसा काँप उठा, यहाँ तक कि उसे देखने का साहस न रहा।
|
||
\v 33 तब प्रभु ने उससे कहा, ‘अपने पाँवों से जूती उतार ले, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। \bdit (निर्ग. 3:5) \bdit*
|
||
\v 34 मैंने सचमुच अपने लोगों की दुर्दशा को जो मिस्र में है, देखी है; और उनकी आहें और उनका रोना सुन लिया है; इसलिए उन्हें छुड़ाने के लिये उतरा हूँ। अब आ, मैं तुझे मिस्र में भेजूँगा। \bdit (निर्ग. 2:24, निर्ग. 3:7-10) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 35 “जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर नकारा था, ‘तुझे किसने हम पर अधिपति और न्यायाधीश ठहराया है?’ उसी को परमेश्वर ने अधिपति और छुड़ानेवाला ठहराकर, उस स्वर्गदूत के द्वारा जिसने उसे झाड़ी में दर्शन दिया था, भेजा। \bdit (निर्ग. 2:14, निर्ग. 3:2) \bdit*
|
||
\v 36 यही व्यक्ति मिस्र और लाल समुद्र और जंगल में चालीस वर्ष तक अद्भुत काम और चिन्ह दिखा दिखाकर उन्हें निकाल लाया। \bdit (निर्ग. 7:3, निर्ग. 14:21, गिन. 14:33) \bdit*
|
||
\v 37 यह वही मूसा है, जिसने इस्राएलियों से कहा, ‘परमेश्वर तुम्हारे भाइयों में से तुम्हारे लिये मेरे जैसा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा।’ \bdit (व्यव. 18:15-18) \bdit*
|
||
\v 38 यह वही है, जिसने जंगल में मण्डली के बीच उस स्वर्गदूत के साथ सीनै पहाड़ पर उससे बातें की, और हमारे पूर्वजों के साथ था, उसी को जीवित वचन मिले, कि हम तक पहुँचाए। \bdit (निर्ग. 19:1-6, निर्ग. 20:1-17, व्यव. 5:4-22, व्यव. 9:10,11) \bdit*
|
||
\v 39 परन्तु हमारे पूर्वजों ने उसकी मानना न चाहा; वरन् उसे ठुकराकर अपने मन मिस्र की ओर फेरे, \bdit (निर्ग. 23:20,21, गिन. 14:3,4) \bdit*
|
||
\v 40 और हारून से कहा, ‘हमारे लिये ऐसा देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चलें; क्योंकि यह मूसा जो हमें मिस्र देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ?’ \bdit (निर्ग. 32:1, निर्ग. 32:23) \bdit*
|
||
\v 41 उन दिनों में उन्होंने एक बछड़ा बनाकर, उसकी मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे। \bdit (निर्ग. 32:4,6) \bdit*
|
||
\v 42 अतः \it परमेश्वर ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया\it*\f + \fr 7:42 \fq परमेश्वर ने मुँह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया: \ft यही कारण है, उन लोगों से मुँह मोड़कर उन्हें दूर कर दिया; उन्हें अपनी इच्छाओं से जीने के लिए छोड़ दिया।\f*, कि आकाशगण पूजें, जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखा है,
|
||
\q ‘हे इस्राएल के घराने,
|
||
\q क्या तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशुबलि और अन्नबलि मुझ ही को
|
||
\q चढ़ाते रहे? \bdit (यिर्म. 7:18, यिर्म. 8:2, यिर्म. 19:13) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 43 और तुम \it मोलेक\it*\f + \fr 7:43 \fq मोलेक: \ft यह शब्द इब्रानी से आता है जो “राजा” शब्द का वाचक है, यह अम्मोनियों का एक देवता था।\f* के तम्बू
|
||
\q और रिफान देवता के तारे को लिए फिरते थे,
|
||
\q अर्थात् उन मूर्तियों को जिन्हें तुम ने दण्डवत् करने के लिये बनाया था।
|
||
\q अतः मैं तुम्हें बाबेल के परे ले जाकर बसाऊँगा।’ \bdit (आमो. 5:25,26) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 44 “साक्षी का तम्बू जंगल में हमारे पूर्वजों के बीच में था; जैसा उसने ठहराया, जिसने मूसा से कहा, ‘जो आकार तूने देखा है, उसके अनुसार इसे बना।’ \bdit (निर्ग. 25:1-40, निर्ग. 25:40, निर्ग. 27:21, गिन. 1:50) \bdit*
|
||
\v 45 उसी तम्बू को हमारे पूर्वजों ने पूर्वकाल से पाकर यहोशू के साथ यहाँ ले आए; जिस समय कि उन्होंने उन अन्यजातियों पर अधिकार पाया, जिन्हें परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के सामने से निकाल दिया, और वह दाऊद के समय तक रहा। \bdit (यहो. 3:14-17, यहो. 18:1, यहो. 23:9, यहो. 24:18) \bdit*
|
||
\v 46 उस पर परमेश्वर ने अनुग्रह किया; अत: उसने विनती की कि वह याकूब के परमेश्वर के लिये निवास-स्थान बनाए। \bdit (2 शमू. 7:2-16, 1 राजा. 8:17,18, 1 इति. 17:1-14, 2 इति. 6:7,8, भज. 132:5) \bdit*
|
||
\v 47 परन्तु सुलैमान ने उसके लिये घर बनाया। \bdit (1 राजा. 6:1,2, 1 राजा. 6:14, 1 राजा. 8:19,20, 2 इति. 3:1, 2 इति. 5:1, 2 इति. 6:2, 2 इति. 6:10) \bdit*
|
||
\v 48 परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा,
|
||
\q
|
||
\v 49 ‘प्रभु कहता है, स्वर्ग मेरा सिंहासन
|
||
\q और पृथ्वी मेरे पाँवों तले की चौकी है,
|
||
\q मेरे लिये तुम किस प्रकार का घर बनाओगे?
|
||
\q और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा?
|
||
\q
|
||
\v 50 क्या ये सब वस्तुएँ मेरे हाथ की बनाई नहीं?’ \bdit (यशा. 66:1,2) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 51 “हे हठीले, और मन और कान के खतनारहित लोगों, तुम सदा पवित्र आत्मा का विरोध करते हो। जैसा तुम्हारे पूर्वज करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। \bdit (निर्ग. 32:9, लैव्य. 26:41, गिन. 27:14, यशा. 63:10, यिर्म. 6:10, यिर्म. 9:26) \bdit*
|
||
\v 52 भविष्यद्वक्ताओं में से किसको तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? और उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालों को मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए \bdit (2 इति. 36:16) \bdit*
|
||
\v 53 तुम ने स्वर्गदूतों के द्वारा ठहराई हुई व्यवस्था तो पाई, परन्तु उसका पालन नहीं किया।”
|
||
\s स्तिफनुस की हत्या
|
||
\p
|
||
\v 54 ये बातें सुनकर वे क्रोधित हुए और उस पर दाँत पीसने लगे। \bdit (अय्यू. 16:9, भज. 35:16, भज. 37:12, भज. 112:10) \bdit*
|
||
\v 55 परन्तु उसने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और \it परमेश्वर की महिमा को\it*\f + \fr 7:55 \fq परमेश्वर की महिमा को: \ft इसका मतलब है, कुछ शानदार प्रतिनिधित्व; एक वैभव, या प्रकाश, जो परमेश्वर की उपस्थिति का उचित प्रदर्शनी है। \f* और यीशु को परमेश्वर की दाहिनी ओर खड़ा देखकर
|
||
\v 56 कहा, “देखों, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दाहिनी ओर खड़ा हुआ देखता हूँ।”
|
||
\v 57 तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर झपटे।
|
||
\v 58 और उसे नगर के बाहर निकालकर पथराव करने लगे, और गवाहों ने अपने कपड़े शाऊल नामक एक जवान के पाँवों के पास उतार कर रखे।
|
||
\v 59 और वे स्तिफनुस को पथराव करते रहे, और वह यह कहकर प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को ग्रहण कर।” \bdit (भज. 31:5) \bdit*
|
||
\v 60 फिर घुटने टेककर ऊँचे शब्द से पुकारा, “हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा।” और यह कहकर सो गया।
|
||
\c 8
|
||
\s शाऊल का विश्वासियों पर अत्याचार
|
||
\p
|
||
\v 1 शाऊल उसकी मृत्यु के साथ सहमत था। उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितों को छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशों में तितर-बितर हो गए।
|
||
\p
|
||
\v 2 और भक्तों ने स्तिफनुस को कब्र में रखा; और उसके लिये बड़ा विलाप किया।
|
||
\v 3 पर शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा था; और घर-घर घुसकर पुरुषों और स्त्रियों को घसीट-घसीट कर बन्दीगृह में डालता था।
|
||
\s सामरिया में फिलिप्पुस
|
||
\p
|
||
\v 4 मगर जो तितर-बितर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।
|
||
\v 5 और \it फिलिप्पुस\it*\f + \fr 8:5 \fq फिलिप्पुस: \ft सात सेवकों में से एक, प्रेरित 6:5; वह उसके बाद “सुसमाचार प्रचारक” कहा गया, प्रेरित 21:8।\f* सामरिया नगर में जाकर लोगों में मसीह का प्रचार करने लगा।
|
||
\v 6 जो बातें फिलिप्पुस ने कहीं उन्हें लोगों ने सुनकर और जो चिन्ह वह दिखाता था उन्हें देख देखकर, एक चित्त होकर मन लगाया।
|
||
\v 7 क्योंकि बहुतों में से अशुद्ध आत्माएँ बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकल गईं, और बहुत से लकवे के रोगी और लँगड़े भी अच्छे किए गए।
|
||
\v 8 और उस नगर में बड़ा आनन्द छा गया।
|
||
\s शमौन जादूगर
|
||
\p
|
||
\v 9 इससे पहले उस नगर में \it शमौन\it*\f + \fr 8:9 \fq शमौन: \ft वह जादूगर की कला जानता था, अतः उसका नाम शमौन जादूगर था। \f* नामक एक मनुष्य था, जो जादू-टोना करके सामरिया के लोगों को चकित करता और अपने आपको एक बड़ा पुरुष बताता था।
|
||
\v 10 और सब छोटे से लेकर बड़े तक उसका सम्मान कर कहते थे, “यह मनुष्य परमेश्वर की वह शक्ति है, जो महान कहलाती है।”
|
||
\v 11 उसने बहुत दिनों से उन्हें अपने जादू के कामों से चकित कर रखा था, इसलिए वे उसको बहुत मानते थे।
|
||
\v 12 परन्तु जब उन्होंने फिलिप्पुस का विश्वास किया जो परमेश्वर के राज्य और यीशु मसीह के नाम का सुसमाचार सुनाता था तो लोग, क्या पुरुष, क्या स्त्री बपतिस्मा लेने लगे।
|
||
\v 13 तब शमौन ने स्वयं भी विश्वास किया और बपतिस्मा लेकर फिलिप्पुस के साथ रहने लगा और चिन्ह और बड़े-बड़े सामर्थ्य के काम होते देखकर चकित होता था।
|
||
\s सामरियों का पवित्र आत्मा पाना
|
||
\p
|
||
\v 14 जब प्रेरितों ने जो यरूशलेम में थे सुना कि सामरियों ने परमेश्वर का वचन मान लिया है तो पतरस और यूहन्ना को उनके पास भेजा।
|
||
\v 15 और उन्होंने जाकर उनके लिये प्रार्थना की ताकि पवित्र आत्मा पाएँ।
|
||
\v 16 क्योंकि पवित्र आत्मा अब तक उनमें से किसी पर न उतरा था, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु के नाम में बपतिस्मा लिया था।
|
||
\v 17 तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्मा पाया।
|
||
\s शमौन का पाप
|
||
\p
|
||
\v 18 जब शमौन ने देखा कि प्रेरितों के हाथ रखने से पवित्र आत्मा दिया जाता है, तो उनके पास रुपये लाकर कहा,
|
||
\v 19 “यह शक्ति मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूँ, वह पवित्र आत्मा पाए।”
|
||
\v 20 पतरस ने उससे कहा, “तेरे रुपये तेरे साथ नाश हों, क्योंकि तूने परमेश्वर का दान रुपयों से मोल लेने का विचार किया।
|
||
\v 21 इस बात में न तेरा हिस्सा है, न भाग; क्योंकि तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं। \bdit (भज. 78:37) \bdit*
|
||
\v 22 इसलिए अपनी इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्थना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार क्षमा किया जाए।
|
||
\v 23 क्योंकि मैं देखता हूँ, कि तू पित्त की कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है।” \bdit (व्यव. 29:18, विला. 3:15) \bdit*
|
||
\v 24 शमौन ने उत्तर दिया, “तुम मेरे लिये प्रभु से प्रार्थना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उनमें से कोई मुझ पर न आ पड़े।”
|
||
\p
|
||
\v 25 अतः पतरस और यूहन्ना गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियों के बहुत से गाँवों में सुसमाचार सुनाते गए।
|
||
\s कूश के खोजे को फिलिप्पुस का उपदेश
|
||
\p
|
||
\v 26 फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलिप्पुस से कहा, “उठकर दक्षिण की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से गाज़ा को जाता है। यह रेगिस्तानी मार्ग है।”
|
||
\v 27 वह उठकर चल दिया, और तब, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा था, जो \it खोजा\it*\f + \fr 8:27 \fq खोजा: \ft यह शब्द यहाँ पर “किसी भी गोपनीय अधिकारी या राज्य के सलाहकार” को निरुपित करने के लिए प्रयोग किया गया है।\f* और कूशियों की रानी कन्दाके का मंत्री और खजांची था, और आराधना करने को यरूशलेम आया था।
|
||
\v 28 और वह अपने रथ पर बैठा हुआ था, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा था।
|
||
\v 29 तब पवित्र आत्मा ने फिलिप्पुस से कहा, “निकट जाकर इस रथ के साथ हो ले।”
|
||
\v 30 फिलिप्पुस उसकी ओर दौड़ा और उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, “तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है?”
|
||
\v 31 उसने कहा, “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं कैसे समझूँ?” और उसने फिलिप्पुस से विनती की, कि चढ़कर उसके पास बैठे।
|
||
\v 32 पवित्रशास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा था, वह यह था:
|
||
\q “वह भेड़ के समान वध होने को पहुँचाया गया,
|
||
\q और जैसा मेम्ना अपने ऊन कतरनेवालों के सामने चुपचाप रहता है, वैसे ही
|
||
\q उसने भी अपना मुँह न खोला,
|
||
\q
|
||
\v 33 उसकी दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया,
|
||
\q और उसके समय के लोगों का वर्णन कौन करेगा?
|
||
\q क्योंकि पृथ्वी से उसका प्राण उठा लिया जाता है।” \bdit (यशा. 53:7,8) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 34 इस पर खोजे ने फिलिप्पुस से पूछा, “मैं तुझ से विनती करता हूँ, यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किसके विषय में कहता है, अपने या किसी दूसरे के विषय में?”
|
||
\v 35 तब फिलिप्पुस ने अपना मुँह खोला, और इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया।
|
||
\v 36 मार्ग में चलते-चलते वे किसी जल की जगह पहुँचे, तब खोजे ने कहा, “देख यहाँ जल है, अब मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?”
|
||
\v 37 फिलिप्पुस ने कहा, “यदि तू सारे मन से विश्वास करता है तो ले सकता है।” उसने उत्तर दिया, “मैं विश्वास करता हूँ कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है।”
|
||
\v 38 तब उसने रथ खड़ा करने की आज्ञा दी, और फिलिप्पुस और खोजा दोनों जल में उतर पड़े, और उसने उसे बपतिस्मा दिया।
|
||
\v 39 जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्मा फिलिप्पुस को उठा ले गया, और खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपने मार्ग चला गया। \bdit (1 राजा. 18:12) \bdit*
|
||
\v 40 पर फिलिप्पुस अश्दोद में आ निकला, और जब तक कैसरिया में न पहुँचा, तब तक नगर-नगर सुसमाचार सुनाता गया।
|
||
\c 9
|
||
\s शाऊल का हृदय परिवर्तन
|
||
\p
|
||
\v 1 \it शाऊल\it*\f + \fr 9:1 \fq शाऊल: \ft वह मसीहियों को सताने में शामिल था और स्तिफनुस की हत्या का साक्षी था।\f* जो अब तक प्रभु के चेलों को धमकाने और मार डालने की धुन में था, महायाजक के पास गया।
|
||
\v 2 और उससे \it दमिश्क\it*\f + \fr 9:2 \fq दमिश्क: \ft यह सीरिया का एक नगर था, यरूशलेम के उत्तर-पूर्व से 120 मील की दूरी पर स्थित था, और अन्ताकिया के दक्षिण-पूर्व से करीब 190 मील की दूरी पर स्थित था।\f* के आराधनालयों के नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियाँ माँगी, कि क्या पुरुष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंथ पर पाए उन्हें बाँधकर यरूशलेम में ले आए।
|
||
\v 3 परन्तु चलते-चलते जब वह दमिश्क के निकट पहुँचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारों ओर ज्योति चमकी,
|
||
\v 4 और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, \wj “हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?”\wj*
|
||
\v 5 उसने पूछा, “हे प्रभु, तू कौन है?” उसने कहा, \wj “मैं यीशु हूँ; जिसे तू सताता है।\wj*
|
||
\v 6 \wj परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो तुझे करना है, वह तुझ से कहा जाएगा।”\wj*
|
||
\v 7 जो मनुष्य उसके साथ थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को देखते न थे।
|
||
\v 8 तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आँखें खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़ के दमिश्क में ले गए।
|
||
\v 9 और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया।
|
||
\s शाऊल का बपतिस्मा
|
||
\p
|
||
\v 10 दमिश्क में हनन्याह नामक एक चेला था, उससे प्रभु ने दर्शन में कहा, \wj “हे हनन्याह!”\wj* उसने कहा, “हाँ प्रभु।”
|
||
\v 11 तब प्रभु ने उससे कहा, \wj “उठकर उस गली में जा, जो ‘सीधी’ कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नामक एक तरसुस वासी को पूछ ले; क्योंकि वह प्रार्थना कर रहा है,\wj*
|
||
\v 12 \wj और उसने हनन्याह नामक एक पुरुष को भीतर आते, और अपने ऊपर हाथ रखते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए।”\wj*
|
||
\v 13 हनन्याह ने उत्तर दिया, “हे प्रभु, मैंने इस मनुष्य के विषय में बहुतों से सुना है कि इसने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगों के साथ बड़ी-बड़ी बुराइयाँ की हैं;
|
||
\v 14 और यहाँ भी इसको प्रधान याजकों की ओर से अधिकार मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बाँध ले।”
|
||
\v 15 परन्तु प्रभु ने उससे कहा, \wj “तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियों और राजाओं, और इस्राएलियों के सामने मेरा नाम प्रगट करने के लिये मेरा चुना हुआ पात्र है।\wj*
|
||
\v 16 \wj और मैं उसे बताऊँगा, कि मेरे नाम के लिये उसे कैसा-कैसा दुःख उठाना पड़ेगा।”\wj*
|
||
\v 17 तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, “हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्थात् यीशु, जो उस रास्ते में, जिससे तू आया तुझे दिखाई दिया था, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो जाए।”
|
||
\v 18 और तुरन्त उसकी आँखों से छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्मा लिया;
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||
\v 19 फिर भोजन करके बल पाया। वह कई दिन उन चेलों के साथ रहा जो दमिश्क में थे।
|
||
\s शाऊल द्वारा यीशु मसीह का प्रचार
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||
\p
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||
\v 20 और वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है।
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||
\v 21 और सब सुननेवाले चकित होकर कहने लगे, “क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता था, और यहाँ भी इसलिए आया था, कि उन्हें बाँधकर प्रधान याजकों के पास ले जाए?”
|
||
\v 22 परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे-देकर कि यीशु ही मसीह है, दमिश्क के रहनेवाले यहूदियों का मुँह बन्द करता रहा।
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||
\p
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||
\v 23 जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियों ने मिलकर उसको मार डालने की युक्ति निकाली।
|
||
\v 24 परन्तु उनकी युक्ति शाऊल को मालूम हो गई: वे तो उसको मार डालने के लिये रात दिन फाटकों पर घात में लगे रहते थे।
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\v 25 परन्तु रात को उसके चेलों ने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर से लटकाकर उतार दिया।
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||
\s यरूशलेम में शाऊल
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\p
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||
\v 26 यरूशलेम में पहुँचकर उसने चेलों के साथ मिल जाने का उपाय किया परन्तु सब उससे डरते थे, क्योंकि उनको विश्वास न होता था, कि वह भी चेला है।
|
||
\v 27 परन्तु बरनबास ने उसे अपने साथ प्रेरितों के पास ले जाकर उनसे कहा, कि इसने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और उसने इससे बातें की; फिर दमिश्क में इसने कैसे साहस से यीशु के नाम का प्रचार किया।
|
||
\v 28 वह उनके साथ यरूशलेम में आता-जाता रहा। और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता था;
|
||
\v 29 और यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के साथ बातचीत और वाद-विवाद करता था; परन्तु वे उसे मार डालने का यत्न करने लगे।
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||
\v 30 यह जानकर भाइयों ने उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया।
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||
\p
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||
\v 31 इस प्रकार सारे यहूदिया, और गलील, और सामरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्मा की शान्ति में चलती और बढ़ती गई।
|
||
\s ऐनियास का चंगा होना
|
||
\p
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||
\v 32 फिर ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ, उन पवित्र लोगों के पास भी पहुँचा, जो \it लुद्दा\it*\f + \fr 9:32 \fq लुद्दा: \ft यह नगर यरूशलेम से कैसरिया फिलिप्पी के मार्ग पर स्थित था।\f* में रहते थे।
|
||
\v 33 वहाँ उसे ऐनियास नामक लकवे का मारा हुआ एक मनुष्य मिला, जो आठ वर्ष से खाट पर पड़ा था।
|
||
\v 34 पतरस ने उससे कहा, “हे ऐनियास! यीशु मसीह तुझे चंगा करता है। उठ, अपना बिछौना उठा।” तब वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ।
|
||
\v 35 और लुद्दा और शारोन के सब रहनेवाले उसे देखकर प्रभु की ओर फिरे।
|
||
\s दोरकास को जीवनदान
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||
\p
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||
\v 36 \it याफा\it*\f + \fr 9:36 \fq याफा: \ft यह भूमध्य सागर पर स्थित एक समुद्र तटीय नगर था, कैसरिया के दक्षिण से करीब 30 मील, और यरूशलेम के उत्तर-पश्चिम से 45 मील की दूरी पर स्थित था।\f* में तबीता अर्थात् दोरकास नामक एक विश्वासिनी रहती थी, वह बहुत से भले-भले काम और दान किया करती थी।
|
||
\v 37 उन्हीं दिनों में वह बीमार होकर मर गई; और उन्होंने उसे नहलाकर अटारी पर रख दिया।
|
||
\v 38 और इसलिए कि लुद्दा याफा के निकट था, चेलों ने यह सुनकर कि पतरस वहाँ है दो मनुष्य भेजकर उससे विनती की, “हमारे पास आने में देर न कर।”
|
||
\v 39 तब पतरस उठकर उनके साथ हो लिया, और जब पहुँच गया, तो वे उसे उस अटारी पर ले गए। और सब विधवाएँ रोती हुई, उसके पास आ खड़ी हुईं और जो कुर्ते और कपड़े दोरकास ने उनके साथ रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं।
|
||
\v 40 तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्थना की; और शव की ओर देखकर कहा, “हे तबीता, उठ।” तब उसने अपनी आँखें खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी।
|
||
\v 41 उसने हाथ देकर उसे उठाया और पवित्र लोगों और विधवाओं को बुलाकर उसे जीवित और जागृत दिखा दिया।
|
||
\v 42 यह बात सारे याफा में फैल गई; और बहुतों ने प्रभु पर विश्वास किया।
|
||
\v 43 और पतरस याफा में शमौन नामक किसी चमड़े का धन्धा करनेवाले के यहाँ बहुत दिन तक रहा।
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\c 10
|
||
\s कुरनेलियुस का दर्शन
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\p
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||
\v 1 कैसरिया में \it कुरनेलियुस\it*\f + \fr 10:1 \fq कुरनेलियुस: \ft यह एक लैटिन नाम है, और इससे दिखता है कि वह एक रोमी मनुष्य था।\f* नामक एक मनुष्य था, जो इतालियानी नाम सैन्य-दल का सूबेदार था।
|
||
\v 2 वह \it भक्त\it*\f + \fr 10:2 \fq भक्त: \ft एक धार्मिक या वह जो परमेश्वर की आराधना करनेवाला।\f* था, और अपने सारे घराने समेत परमेश्वर से डरता था, और यहूदी लोगों को बहुत दान देता, और बराबर परमेश्वर से प्रार्थना करता था।
|
||
\v 3 उसने दिन के तीसरे पहर के निकट दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा कि परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा, “हे कुरनेलियुस।”
|
||
\v 4 उसने उसे ध्यान से देखा और डरकर कहा, “हे स्वामी क्या है?” उसने उससे कहा, “तेरी प्रार्थनाएँ और तेरे दान स्मरण के लिये परमेश्वर के सामने पहुँचे हैं।
|
||
\v 5 और अब याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले।
|
||
\v 6 वह शमौन, चमड़े का धन्धा करनेवाले के यहाँ अतिथि है, जिसका घर समुद्र के किनारे है।”
|
||
\v 7 जब वह स्वर्गदूत जिसने उससे बातें की थी चला गया, तो उसने दो सेवक, और जो उसके पास उपस्थित रहा करते थे उनमें से एक भक्त सिपाही को बुलाया,
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||
\v 8 और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा।
|
||
\s पतरस का दर्शन
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||
\p
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||
\v 9 दूसरे दिन जब वे चलते-चलते नगर के पास पहुँचे, तो दोपहर के निकट पतरस छत पर प्रार्थना करने चढ़ा।
|
||
\v 10 उसे भूख लगी और कुछ खाना चाहता था, परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे तो वह बेसुध हो गया।
|
||
\v 11 और उसने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक बड़ी चादर, पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, पृथ्वी की ओर उतर रहा है।
|
||
\v 12 जिसमें पृथ्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे।
|
||
\v 13 और उसे एक ऐसी वाणी सुनाई दी, \wj “हे पतरस उठ, मार और खा।”\wj*
|
||
\v 14 परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” \bdit (लैव्य. 11:1-47, यहे. 4:14) \bdit*
|
||
\v 15 फिर दूसरी बार उसे वाणी सुनाई दी, \wj “\wj*\it \+wj जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है\f + \fr 10:15 \fq जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है: \ft वह जो कुछ जिसे परमेश्वर ने शुद्ध कहा या शुद्ध घोषित किया है।\f*\+wj*\it*\wj , उसे तू अशुद्ध मत कह।”\wj*
|
||
\v 16 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह चादर आकाश पर उठा लिया गया।
|
||
\s कुरनेलियुस के घर पतरस
|
||
\p
|
||
\v 17 जब पतरस अपने मन में दुविधा में था, कि यह दर्शन जो मैंने देखा क्या है, तब वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा था, शमौन के घर का पता लगाकर द्वार पर आ खड़े हुए।
|
||
\v 18 और पुकारकर पूछने लगे, “क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहाँ पर अतिथि है?”
|
||
\v 19 पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा था, कि आत्मा ने उससे कहा, “देख, तीन मनुष्य तुझे खोज रहे हैं।
|
||
\v 20 अतः उठकर नीचे जा, और निःसंकोच उनके साथ हो ले; क्योंकि मैंने ही उन्हें भेजा है।”
|
||
\v 21 तब पतरस ने नीचे उतरकर उन मनुष्यों से कहा, “देखो, जिसको तुम खोज रहे हो, वह मैं ही हूँ; तुम्हारे आने का क्या कारण है?”
|
||
\v 22 उन्होंने कहा, “कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनाम मनुष्य है, उसने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह निर्देश पाया है, कि तुझे अपने घर बुलाकर तुझ से उपदेश सुने।”
|
||
\v 23 तब उसने उन्हें भीतर बुलाकर उनको रहने की जगह दी। और दूसरे दिन, वह उनके साथ गया; और याफा के भाइयों में से कुछ उसके साथ हो लिए।
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||
\p
|
||
\v 24 दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुँचे, और कुरनेलियुस अपने कुटुम्बियों और प्रिय मित्रों को इकट्ठे करके उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।
|
||
\v 25 जब पतरस भीतर आ रहा था, तो कुरनेलियुस ने उससे भेंट की, और उसके पाँवों पर गिरकर उसे प्रणाम किया।
|
||
\v 26 परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, “खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य ही हूँ।”
|
||
\v 27 और उसके साथ बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगों को इकट्ठे देखकर
|
||
\v 28 उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करना या उसके यहाँ जाना यहूदी के लिये अधर्म है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे बताया है कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूँ।
|
||
\v 29 इसलिए मैं जब बुलाया गया तो बिना कुछ कहे चला आया। अब मैं पूछता हूँ कि मुझे किस काम के लिये बुलाया गया है?”
|
||
\p
|
||
\v 30 कुरनेलियुस ने कहा, “चार दिन पहले, इसी समय, मैं अपने घर में तीसरे पहर को प्रार्थना कर रहा था; कि एक पुरुष चमकीला वस्त्र पहने हुए, मेरे सामने आ खड़ा हुआ।
|
||
\v 31 और कहने लगा, ‘हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्थना सुन ली गई है और तेरे दान परमेश्वर के सामने स्मरण किए गए हैं।
|
||
\v 32 इसलिए किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला। वह समुद्र के किनारे शमौन जो, चमड़े का धन्धा करनेवाले के घर में अतिथि है।’
|
||
\v 33 तब मैंने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तूने भला किया जो आ गया। अब हम सब यहाँ परमेश्वर के सामने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें।”
|
||
\s कुरनेलियुस के घर पतरस का उपदेश
|
||
\p
|
||
\v 34 तब पतरस ने मुँह खोलकर कहा, अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, \bdit (व्यव. 10:17, 2 इति. 19:7) \bdit*
|
||
\v 35 वरन् हर जाति में जो उससे डरता और धार्मिक काम करता है, वह उसे भाता है।
|
||
\v 36 जो वचन उसने इस्राएलियों के पास भेजा, जबकि उसने यीशु मसीह के द्वारा जो सब का प्रभु है, शान्ति का सुसमाचार सुनाया। \bdit (भज. 107:20, भज. 147:18, यशा. 52:7, नहू. 1:15) \bdit*
|
||
\v 37 वह वचन तुम जानते हो, जो यूहन्ना के बपतिस्मा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ होकर सारे यहूदिया में फैल गया:
|
||
\v 38 परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से अभिषेक किया; वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा, क्योंकि परमेश्वर उसके साथ था। \bdit (यशा. 61:1) \bdit*
|
||
\v 39 और हम उन सब कामों के गवाह हैं; जो उसने यहूदिया के देश और यरूशलेम में भी किए, और उन्होंने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला। \bdit (व्यव. 21:22,23) \bdit*
|
||
\v 40 उसको परमेश्वर ने तीसरे दिन जिलाया, और प्रगट भी कर दिया है।
|
||
\v 41 सब लोगों को नहीं वरन् उन गवाहों को जिन्हें परमेश्वर ने पहले से चुन लिया था, अर्थात् हमको जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साथ खाया पीया;
|
||
\v 42 और उसने हमें आज्ञा दी कि लोगों में प्रचार करो और गवाही दो, कि यह वही है जिसे परमेश्वर ने जीवितों और मरे हुओं का न्यायी ठहराया है।
|
||
\v 43 उसकी सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उसको उसके नाम के द्वारा पापों की क्षमा मिलेगी। \bdit (यशा. 33:24, यशा. 53:5,6, यिर्म. 31:34, दानि. 9:24) \bdit*
|
||
\s गैर-यहूदियों पर पवित्र आत्मा का उतरना
|
||
\p
|
||
\v 44 पतरस ये बातें कह ही रहा था कि \it पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया\it*\f + \fr 10:44 \fq पवित्र आत्मा वचन के सब सुननेवालों पर उतर आया: \ft अन्य भाषा के साथ उन्हें बोलने की सामर्थ्य प्रदान की।\f*।
|
||
\v 45 और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साथ आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियों पर भी पवित्र आत्मा का दान उण्डेला गया है।
|
||
\v 46 क्योंकि उन्होंने उन्हें भाँति-भाँति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। इस पर पतरस ने कहा,
|
||
\v 47 “क्या अब कोई इन्हें जल से रोक सकता है कि ये बपतिस्मा न पाएँ, जिन्होंने हमारे समान पवित्र आत्मा पाया है?”
|
||
\v 48 और उसने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह के नाम में बपतिस्मा दिया जाए। तब उन्होंने उससे विनती की, कि कुछ दिन और हमारे साथ रह।
|
||
\c 11
|
||
\s पतरस का यरूशलेम लौटना
|
||
\p
|
||
\v 1 और प्रेरितों और भाइयों ने जो यहूदिया में थे सुना, कि अन्यजातियों ने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है।
|
||
\v 2 और जब पतरस यरूशलेम में आया, तो खतना किए हुए लोग उससे वाद-विवाद करने लगे,
|
||
\v 3 “तूने खतनारहित लोगों के यहाँ जाकर उनके साथ खाया।”
|
||
\v 4 तब पतरस ने उन्हें आरम्भ से क्रमानुसार कह सुनाया;
|
||
\v 5 “मैं याफा नगर में प्रार्थना कर रहा था, और बेसुध होकर एक दर्शन देखा, कि एक बड़ी चादर, एक पात्र के समान चारों कोनों से लटकाया हुआ, आकाश से उतरकर मेरे पास आया।
|
||
\v 6 जब मैंने उस पर ध्यान किया, तो पृथ्वी के चौपाए और वन पशु और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी देखे;
|
||
\v 7 और यह आवाज भी सुना, \wj ‘हे पतरस उठ मार और खा।’\wj*
|
||
\v 8 मैंने कहा, ‘नहीं प्रभु, नहीं; क्योंकि कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मेरे मुँह में कभी नहीं गई।’
|
||
\v 9 इसके उत्तर में आकाश से दोबारा आवाज आई, \wj ‘जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह।’\wj*
|
||
\v 10 तीन बार ऐसा ही हुआ; तब सब कुछ फिर आकाश पर खींच लिया गया।
|
||
\v 11 तब तुरन्त तीन मनुष्य जो कैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर पर जिसमें हम थे, आ खड़े हुए।
|
||
\v 12 तब आत्मा ने मुझसे उनके साथ बेझिझक हो लेने को कहा, और ये छः भाई भी मेरे साथ हो लिए; और हम उस मनुष्य के घर में गए।
|
||
\v 13 और उसने बताया, कि मैंने एक स्वर्गदूत को अपने घर में खड़ा देखा, जिसने मुझसे कहा, ‘याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले।
|
||
\v 14 वह तुझ से ऐसी बातें कहेगा, जिनके द्वारा तू और तेरा सारा घराना उद्धार पाएगा।’
|
||
\v 15 जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्मा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा था।
|
||
\v 16 तब मुझे प्रभु का वह वचन स्मरण आया; जो उसने कहा, \wj ‘यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्मा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगे।’\wj*
|
||
\v 17 अतः जबकि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला; तो मैं कौन था जो परमेश्वर को रोक सकता था?”
|
||
\v 18 यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, “तब तो परमेश्वर ने अन्यजातियों को भी जीवन के लिये मन फिराव का दान दिया है।”
|
||
\s अन्ताकिया में शाऊल और बरनबास
|
||
\p
|
||
\v 19 जो लोग उस क्लेश के मारे जो स्तिफनुस के कारण पड़ा था, तितर-बितर हो गए थे, वे फिरते-फिरते फीनीके और साइप्रस और अन्ताकिया में पहुँचे; परन्तु यहूदियों को छोड़ किसी और को वचन न सुनाते थे।
|
||
\v 20 परन्तु उनमें से कुछ साइप्रस वासी और \it कुरेनी\it*\f + \fr 11:20 \fq कुरेनी: \ft अफ्रीका में एक प्रांत और लीबिया का शहर था।।\f* थे, जो अन्ताकिया में आकर यूनानियों को भी प्रभु यीशु का सुसमाचार की बातें सुनाने लगे।
|
||
\v 21 और प्रभु का हाथ उन पर था, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे।
|
||
\v 22 तब उनकी चर्चा यरूशलेम की कलीसिया के सुनने में आई, और उन्होंने \it बरनबास\it*\f + \fr 11:22 \fq बरनबास: \ft वह साइप्रस का एक निवासी था, और सम्भवतः अन्ताकिया से अच्छी तरह से परिचित था।\f* को अन्ताकिया भेजा।
|
||
\v 23 वह वहाँ पहुँचकर, और परमेश्वर के अनुग्रह को देखकर आनन्दित हुआ; और सब को उपदेश दिया कि तन मन लगाकर प्रभु से लिपटे रहें।
|
||
\v 24 क्योंकि वह एक भला मनुष्य था; और पवित्र आत्मा और विश्वास से परिपूर्ण था; और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले।
|
||
\v 25 तब वह शाऊल को ढूँढ़ने के लिये तरसुस को चला गया।
|
||
\v 26 और जब उनसे मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साथ मिलते और बहुत से लोगों को उपदेश देते रहे, और चेले सबसे पहले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए।
|
||
\p
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||
\v 27 उन्हीं दिनों में कई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम से अन्ताकिया में आए।
|
||
\v 28 उनमें से \it अगबुस\it*\f + \fr 11:28 \fq अगबुस: \ft वह भविष्यद्वक्ता के रूप में संदर्भित किया गया है कि पौलुस अन्यजातियों के हाथों में सौंपा जाएगा।\f* ने खड़े होकर आत्मा की प्रेरणा से यह बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल पड़ेगा, और वह अकाल क्लौदियुस के समय में पड़ा।
|
||
\p
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||
\v 29 तब चेलों ने निर्णय किया कि हर एक अपनी-अपनी पूँजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयों की सेवा के लिये कुछ भेजे।
|
||
\v 30 और उन्होंने ऐसा ही किया; और बरनबास और शाऊल के हाथ प्राचीनों के पास कुछ भेज दिया।
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\c 12
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||
\s हेरोदेस की हिंसा
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\p
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||
\v 1 उस समय \it हेरोदेस राजा\it*\f + \fr 12:1 \fq हेरोदेस राजा: \ft यह हेरोदेस अग्रिप्पा था, वह हेरोदेस महान का पोता था।\f* ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियों को दुःख देने के लिये उन पर हाथ डाले।
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||
\v 2 उसने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला।
|
||
\v 3 जब उसने देखा, कि यहूदी लोग इससे आनन्दित होते हैं, तो उसने पतरस को भी पकड़ लिया। वे दिन अख़मीरी रोटी के दिन थे।
|
||
\v 4 और उसने उसे पकड़कर बन्दीगृह में डाला, और रखवाली के लिये, चार-चार सिपाहियों के चार पहरों में रखा, इस मनसा से कि फसह के बाद उसे लोगों के सामने लाए।
|
||
\s पतरस का बन्दीगृह से छुटकारा
|
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\p
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\v 5 बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही थी; परन्तु कलीसिया उसके लिये लौ लगाकर परमेश्वर से प्रार्थना कर रही थी।
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\v 6 और जब हेरोदेस उसे उनके सामने लाने को था, तो उसी रात पतरस दो जंजीरों से बंधा हुआ, दो सिपाहियों के बीच में सो रहा था; और पहरेदार द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे।
|
||
\v 7 तब प्रभु का एक स्वर्गदूत आ खड़ा हुआ और उस कोठरी में ज्योति चमकी, और उसने पतरस की पसली पर हाथ मारकर उसे जगाया, और कहा, “उठ, जल्दी कर।” और उसके हाथ से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं।
|
||
\v 8 तब स्वर्गदूत ने उससे कहा, “कमर बाँध, और अपने जूते पहन ले।” उसने वैसा ही किया, फिर उसने उससे कहा, “अपना वस्त्र पहनकर मेरे पीछे हो ले।”
|
||
\v 9 वह निकलकर उसके पीछे हो लिया; परन्तु यह न जानता था कि जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, वह सच है, बल्कि यह समझा कि मैं दर्शन देख रहा हूँ।
|
||
\v 10 तब वे पहले और दूसरे पहरे से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुँचे, जो नगर की ओर है। वह उनके लिये आप से आप खुल गया, और वे निकलकर एक ही गली होकर गए, इतने में स्वर्गदूत उसे छोड़कर चला गया।
|
||
\v 11 तब पतरस ने सचेत होकर कहा, “अब मैंने सच जान लिया कि प्रभु ने अपना स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया, और यहूदियों की सारी आशा तोड़ दी।”
|
||
\p
|
||
\v 12 और यह सोचकर, वह उस यूहन्ना की माता मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है। वहाँ बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्थना कर रहे थे।
|
||
\v 13 जब उसने फाटक की खिड़की खटखटाई तो \it रूदे\it*\f + \fr 12:13 \fq रूदे: \ft यह एक यूनानी नाम है जो गुलाब को दर्शाता है।\f* नामक एक दासी सुनने को आई।
|
||
\v 14 और पतरस का शब्द पहचानकर, उसने आनन्द के मारे फाटक न खोला; परन्तु दौड़कर भीतर गई, और बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है।
|
||
\v 15 उन्होंने उससे कहा, “तू पागल है।” परन्तु वह दृढ़ता से बोली कि ऐसा ही है: तब उन्होंने कहा, “उसका स्वर्गदूत होगा।”
|
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\v 16 परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा अतः उन्होंने खिड़की खोली, और \it उसे देखकर चकित रह गए\it*\f + \fr 12:16 \fq उसे देखकर चकित रह गए: \ft पतरस बचा लिया गया था इससे वे चकित थे।\f*।
|
||
\v 17 तब उसने उन्हें हाथ से संकेत किया कि चुप रहें; और उनको बताया कि प्रभु किस रीति से मुझे बन्दीगृह से निकाल लाया है। फिर कहा, “याकूब और भाइयों को यह बात कह देना।” तब निकलकर दूसरी जगह चला गया।
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||
\p
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||
\v 18 भोर को सिपाहियों में बड़ी हलचल होने लगी कि पतरस कहाँ गया।
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\v 19 जब हेरोदेस ने उसकी खोज की और न पाया, तो पहरुओं की जाँच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएँ: और वह यहूदिया को छोड़कर कैसरिया में जाकर रहने लगा।
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||
\s हेरोदेस का कीड़े पड़कर मरना
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\p
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||
\v 20 हेरोदेस सोर और सीदोन के लोगों से बहुत अप्रसन्न था। तब वे एक चित्त होकर उसके पास आए और बलास्तुस को जो राजा का एक कर्मचारी था, मनाकर मेल करना चाहा; क्योंकि राजा के देश से उनके देश का पालन-पोषण होता था। \bdit (1 राजा. 5:11, यहे. 27:17) \bdit*
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||
\v 21 ठहराए हुए दिन हेरोदेस राजवस्त्र पहनकर सिंहासन पर बैठा; और उनको व्याख्यान देने लगा।
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||
\v 22 और लोग पुकार उठे, “यह तो मनुष्य का नहीं ईश्वर का शब्द है।”
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||
\v 23 उसी क्षण प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे आघात पहुँचाया, क्योंकि उसने परमेश्वर की महिमा नहीं की और उसके शरीर में कीड़े पड़ गए और वह मर गया। \bdit (दानि. 5:20) \bdit*
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||
\p
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||
\v 24 परन्तु \it परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया\it*\f + \fr 12:24 \fq परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया: \ft सताव अब समाप्त हो गया था और कलीसिया को दबा देने के जितने भी प्रयास किए गए थे उनके बावजूद भी वह बढ़ती और फलवन्त होती गई।\f*।
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||
\p
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||
\v 25 जब बरनबास और शाऊल अपनी सेवा पूरी कर चुके तो यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेकर यरूशलेम से लौटे।
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\c 13
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\s बरनबास और शाऊल का भेजा जाना
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\p
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\v 1 अन्ताकिया की कलीसिया में कई भविष्यद्वक्ता और उपदेशक थे; अर्थात् बरनबास और शमौन जो \it नीगर\it*\f + \fr 13:1 \fq नीगर: \ft नीगर एक लैटिन नाम है जिसका अर्थ “काला” होता है।\f* कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और चौथाई देश के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम और शाऊल।
|
||
\v 2 जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे थे, तो पवित्र आत्मा ने कहा, “मेरे लिये बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिसके लिये मैंने उन्हें बुलाया है।”
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||
\v 3 तब उन्होंने उपवास और प्रार्थना करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया।
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||
\s पौलुस की प्रथम प्रचार-यात्रा
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||
\p
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||
\v 4 अतः वे पवित्र आत्मा के भेजे हुए सिलूकिया को गए; और वहाँ से जहाज पर चढ़कर साइप्रस को चले।
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||
\v 5 और \it सलमीस\it*\f + \fr 13:5 \fq सलमीस: \ft यह साइप्रस का प्रमुख नगर और बंदरगाह था। यह द्वीप के दक्षिण पूर्वी तट पर स्थित था\f* में पहुँचकर, परमेश्वर का वचन यहूदियों के आराधनालयों में सुनाया; और यूहन्ना उनका सेवक था।
|
||
\v 6 और उस सारे टापू में से होते हुए, पाफुस तक पहुँचे। वहाँ उन्हें \it बार-यीशु\it*\f + \fr 13:6 \fq बार-यीशु: \ft “बार” अरामी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ है “पुत्र”, यीशु।\f* नामक एक जादूगर मिला, जो यहूदी और झूठा भविष्यद्वक्ता था।
|
||
\v 7 वह हाकिम सिरगियुस पौलुस के साथ था, जो बुद्धिमान पुरुष था। उसने बरनबास और शाऊल को अपने पास बुलाकर परमेश्वर का वचन सुनना चाहा।
|
||
\v 8 परन्तु एलीमास जादूगर ने, (क्योंकि यही उसके नाम का अर्थ है) उनका सामना करके, हाकिम को विश्वास करने से रोकना चाहा।
|
||
\v 9 तब शाऊल ने जिसका नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर उसकी ओर टकटकी लगाकर कहा,
|
||
\v 10 “हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धार्मिकता के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गों को टेढ़ा करना न छोड़ेगा? \bdit (नीति. 10:9, होशे 14:9) \bdit*
|
||
\v 11 अब देख, प्रभु का हाथ तुझ पर पड़ा है; और तू कुछ समय तक अंधा रहेगा और सूर्य को न देखेगा।” तब तुरन्त धुंधलापन और अंधेरा उस पर छा गया, और वह इधर-उधर टटोलने लगा ताकि कोई उसका हाथ पकड़कर ले चले।
|
||
\v 12 तब हाकिम ने जो कुछ हुआ था, देखकर और प्रभु के उपदेश से चकित होकर विश्वास किया।
|
||
\s पिसिदिया के अन्ताकिया में पौलुस का उपदेश
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||
\p
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||
\v 13 पौलुस और उसके साथी पाफुस से जहाज खोलकर \it पंफूलिया के पिरगा में\it*\f + \fr 13:13 \fq पंफूलिया के पिरगा में: \ft पंफूलिया आसिया माइनर का एक प्रांत था, पिरगा पंफूलिया का एक महानगर था\f* आए; और यूहन्ना उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया।
|
||
\v 14 और पिरगा से आगे बढ़कर पिसिदिया के अन्ताकिया में पहुँचे; और सब्त के दिन आराधनालय में जाकर बैठ गए।
|
||
\v 15 व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक से पढ़ने के बाद आराधनालय के सरदारों ने उनके पास कहला भेजा, “हे भाइयों, यदि लोगों के उपदेश के लिये तुम्हारे मन में कोई बात हो तो कहो।”
|
||
\v 16 तब पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से इशारा करके कहा, “हे इस्राएलियों, और परमेश्वर से डरनेवालों, सुनो
|
||
\v 17 इन इस्राएली लोगों के परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को चुन लिया, और जब ये मिस्र देश में परदेशी होकर रहते थे, तो उनकी उन्नति की; और बलवन्त भुजा से निकाल लाया। \bdit (निर्ग. 6:1, निर्ग. 12:51) \bdit*
|
||
\v 18 और वह कोई चालीस वर्ष तक जंगल में उनकी सहता रहा, \bdit (निर्ग. 16:35, गिन. 14:34, व्यव. 1:31) \bdit*
|
||
\v 19 और कनान देश में सात जातियों का नाश करके उनका देश लगभग साढ़े चार सौ वर्ष में इनकी विरासत में कर दिया। \bdit (व्यव. 7:1, यहो. 14:1) \bdit*
|
||
\v 20 इसके बाद उसने शमूएल भविष्यद्वक्ता तक उनमें न्यायी ठहराए। \bdit (न्या. 2:16, 1 शमू. 2:16) \bdit*
|
||
\v 21 उसके बाद उन्होंने एक राजा माँगा; तब परमेश्वर ने चालीस वर्ष के लिये बिन्यामीन के गोत्र में से एक मनुष्य अर्थात् कीश के पुत्र शाऊल को उन पर राजा ठहराया। \bdit (1 शमू. 8:5,1 शमू. 8:19, 1 शमू. 10:24, 1 शमू. 11:15) \bdit*
|
||
\v 22 फिर उसे अलग करके दाऊद को उनका राजा बनाया; जिसके विषय में उसने गवाही दी, ‘मुझे एक मनुष्य, यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है। वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।’ \bdit (1 शमू. 13:14, 1 शमू. 16:12,13, भज. 89:20, यशा. 44:28) \bdit*
|
||
\v 23 उसी के वंश में से परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्थात् यीशु को भेजा। \bdit (2 शमू. 7:12,13, यशा. 11:1) \bdit*
|
||
\v 24 जिसके आने से पहले यूहन्ना ने सब इस्राएलियों को मन फिराव के बपतिस्मा का प्रचार किया।
|
||
\v 25 और जब यूहन्ना अपनी सेवा पूरी करने पर था, तो उसने कहा, ‘तुम मुझे क्या समझते हो? मैं वह नहीं! वरन् देखो, मेरे बाद एक आनेवाला है, जिसके पाँवों की जूती के बन्ध भी मैं खोलने के योग्य नहीं।’
|
||
\p
|
||
\v 26 “हे भाइयों, तुम जो अब्राहम की सन्तान हो; और तुम जो परमेश्वर से डरते हो, तुम्हारे पास इस उद्धार का वचन भेजा गया है।
|
||
\v 27 क्योंकि यरूशलेम के रहनेवालों और उनके सरदारों ने, न उसे पहचाना, और न भविष्यद्वक्ताओं की बातें समझी; जो हर सब्त के दिन पढ़ी जाती हैं, इसलिए उसे दोषी ठहराकर उनको पूरा किया।
|
||
\v 28 उन्होंने मार डालने के योग्य कोई दोष उसमें न पाया, फिर भी पिलातुस से विनती की, कि वह मार डाला जाए।
|
||
\v 29 और जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई सब बातें पूरी की, तो उसे क्रूस पर से उतार कर कब्र में रखा।
|
||
\v 30 परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया,
|
||
\v 31 और वह उन्हें जो उसके साथ गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनों तक दिखाई देता रहा; लोगों के सामने अब वे ही उसके गवाह हैं।
|
||
\v 32 और हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में जो पूर्वजों से की गई थी, यह सुसमाचार सुनाते हैं,
|
||
\v 33 कि परमेश्वर ने यीशु को जिलाकर, वही प्रतिज्ञा हमारी सन्तान के लिये पूरी की; जैसा दूसरे भजन में भी लिखा है,
|
||
\q ‘तू मेरा पुत्र है; आज मैं ही ने तुझे जन्माया है।’ \bdit (भज. 2:7) \bdit*
|
||
\v 34 और उसके इस रीति से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी, कि वह कभी न सड़े, उसने यह कहा है,
|
||
\q ‘मैं दाऊद पर की पवित्र और अटल कृपा तुम पर करूँगा।’ \bdit (यशा. 55:3) \bdit*
|
||
\v 35 इसलिए उसने एक और भजन में भी कहा है,
|
||
\q ‘तू अपने पवित्र जन को सड़ने न देगा।’ \bdit (भज. 16:10) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 36 “क्योंकि दाऊद तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने समय में सेवा करके सो गया, और अपने पूर्वजों में जा मिला, और सड़ भी गया। \bdit (न्या. 2:10, 1 राजा. 2:10) \bdit*
|
||
\v 37 परन्तु जिसको परमेश्वर ने जिलाया, वह सड़ने नहीं पाया।
|
||
\v 38 इसलिए, हे भाइयों; तुम जान लो कि यीशु के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है।
|
||
\v 39 और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सबसे हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है।
|
||
\v 40 इसलिए चौकस रहो, ऐसा न हो, कि जो भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखित है, तुम पर भी आ पड़े:
|
||
\q
|
||
\v 41 ‘हे निन्दा करनेवालों, देखो, और चकित हो, और मिट जाओ;
|
||
\q क्योंकि मैं तुम्हारे दिनों में एक काम करता हूँ;
|
||
\q ऐसा काम, कि यदि कोई तुम से उसकी चर्चा करे, तो तुम कभी विश्वास न करोगे।’” \bdit (हब. 1:5) \bdit*
|
||
\s अन्ताकिया में पौलुस और बरनबास
|
||
\p
|
||
\v 42 उनके बाहर निकलते समय लोग उनसे विनती करने लगे, कि अगले सब्त के दिन हमें ये बातें फिर सुनाई जाएँ।
|
||
\v 43 और जब आराधनालय उठ गई तो यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्तों में से बहुत से पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए; और उन्होंने उनसे बातें करके समझाया, कि परमेश्वर के अनुग्रह में बने रहो।
|
||
\p
|
||
\v 44 अगले सब्त के दिन नगर के प्रायः सब लोग परमेश्वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए।
|
||
\v 45 परन्तु यहूदी भीड़ को देखकर ईर्ष्या से भर गए, और निन्दा करते हुए पौलुस की बातों के विरोध में बोलने लगे।
|
||
\v 46 तब पौलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा, “अवश्य था, कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता; परन्तु जबकि तुम उसे दूर करते हो, और अपने को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, तो अब, हम अन्यजातियों की ओर फिरते हैं।
|
||
\v 47 क्योंकि प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है,
|
||
\q ‘मैंने तुझे अन्यजातियों के लिये ज्योति ठहराया है,
|
||
\q ताकि तू पृथ्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो।’” \bdit (यशा. 49:6) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 48 यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे, और जितने अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया।
|
||
\v 49 तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा।
|
||
\v 50 परन्तु यहूदियों ने भक्त और कुलीन स्त्रियों को और नगर के प्रमुख लोगों को भड़काया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपनी सीमा से बाहर निकाल दिया।
|
||
\v 51 तब वे उनके सामने अपने पाँवों की धूल झाड़कर इकुनियुम को चले गए।
|
||
\v 52 और चेले आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।
|
||
\c 14
|
||
\s पौलुस और बरनबास का इकुनियुम में विरोध
|
||
\p
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||
\v 1 इकुनियुम में ऐसा हुआ कि पौलुस और बरनबास यहूदियों की आराधनालय में साथ-साथ गए, और ऐसी बातें की, कि यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्वास किया।
|
||
\v 2 परन्तु विश्वास न करनेवाले यहूदियों ने अन्यजातियों के मन भाइयों के विरोध में भड़काए, और कटुता उत्पन्न कर दी।
|
||
\v 3 और वे बहुत दिन तक वहाँ रहे, और प्रभु के भरोसे पर साहस के साथ बातें करते थे: और वह उनके हाथों से चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपने अनुग्रह के वचन पर गवाही देता था।
|
||
\v 4 परन्तु नगर के लोगों में फूट पड़ गई थी; इससे कितने तो यहूदियों की ओर, और कितने प्रेरितों की ओर हो गए।
|
||
\v 5 परन्तु जब अन्यजाति और यहूदी उनका अपमान और उन्हें पथराव करने के लिये अपने सरदारों समेत उन पर दौड़े।
|
||
\v 6 तो वे इस बात को जान गए, और \it लुकाउनिया\it*\f + \fr 14:6 \fq लुकाउनिया: \ft लुकाउनिया आसिया माइनर के प्रान्तों में से एक था। \f* के लुस्त्रा और दिरबे नगरों में, और आस-पास के प्रदेशों में भाग गए।
|
||
\v 7 और वहाँ सुसमाचार सुनाने लगे।
|
||
\s लुस्त्रा में एक लँगड़े का चंगा होना
|
||
\p
|
||
\v 8 लुस्त्रा में एक मनुष्य बैठा था, जो पाँवों का निर्बल था। वह जन्म ही से लँगड़ा था, और कभी न चला था।
|
||
\v 9 वह पौलुस को बातें करते सुन रहा था और पौलुस ने उसकी ओर टकटकी लगाकर देखा कि इसको चंगा हो जाने का विश्वास है।
|
||
\v 10 और ऊँचे शब्द से कहा, “अपने पाँवों के बल सीधा खड़ा हो।” तब वह उछलकर चलने फिरने लगा।
|
||
\v 11 लोगों ने पौलुस का यह काम देखकर लुकाउनिया भाषा में ऊँचे शब्द से कहा, “देवता मनुष्यों के रूप में होकर हमारे पास उतर आए हैं।”
|
||
\v 12 और उन्होंने बरनबास को ज्यूस, और पौलुस को हिर्मेस कहा क्योंकि वह बातें करने में मुख्य था।
|
||
\v 13 और ज्यूस के उस मन्दिर का पुजारी जो उनके नगर के सामने था, बैल और फूलों के हार फाटकों पर लाकर लोगों के साथ बलिदान करना चाहता था।
|
||
\v 14 परन्तु बरनबास और पौलुस प्रेरितों ने जब सुना, तो अपने कपड़े फाड़े, और भीड़ की ओर लपक गए, और पुकारकर कहने लगे,
|
||
\v 15 “हे लोगों, तुम क्या करते हो? हम भी तो तुम्हारे समान दुःख-सुख भोगी मनुष्य हैं, और तुम्हें सुसमाचार सुनाते हैं, कि तुम इन व्यर्थ वस्तुओं से अलग होकर जीविते परमेश्वर की ओर फिरो, जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जो कुछ उनमें है बनाया। \bdit (निर्ग. 20:11, भज. 146:6) \bdit*
|
||
\v 16 उसने बीते समयों में सब जातियों को अपने-अपने मार्गों में चलने दिया।
|
||
\v 17 तो भी उसने अपने आपको बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” \bdit (भज. 147:8, यिर्म. 5:24) \bdit*
|
||
\v 18 यह कहकर भी उन्होंने लोगों को बड़ी कठिनाई से रोका कि उनके लिये बलिदान न करें।
|
||
\p
|
||
\v 19 परन्तु कितने यहूदियों ने अन्ताकिया और इकुनियुम से आकर लोगों को अपनी ओर कर लिया, और पौलुस पर पथराव किया, और मरा समझकर उसे नगर के बाहर घसीट ले गए।
|
||
\v 20 पर जब चेले उसकी चारों ओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साथ दिरबे को चला गया।
|
||
\s सीरिया के अन्ताकिया को लौटना
|
||
\p
|
||
\v 21 और वे उस नगर के लोगों को सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियुम और अन्ताकिया को लौट आए।
|
||
\v 22 और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे कि विश्वास में बने रहो; और यह कहते थे, “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।”
|
||
\v 23 और उन्होंने हर एक कलीसिया में उनके लिये प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्थना करके उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया था।
|
||
\p
|
||
\v 24 और पिसिदिया से होते हुए वे पंफूलिया में पहुँचे;
|
||
\v 25 और पिरगा में वचन सुनाकर अत्तलिया में आए।
|
||
\v 26 और वहाँ से जहाज द्वारा अन्ताकिया गये, जहाँ वे उस काम के लिये जो उन्होंने पूरा किया था परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपे गए।
|
||
\v 27 वहाँ पहुँचकर, उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्वर ने हमारे साथ होकर कैसे बड़े-बड़े काम किए! और अन्यजातियों के लिये \it विश्वास का द्वार खोल दिया\it*\f + \fr 14:27 \fq विश्वास का द्वार खोल दिया: \ft अन्यजातियों को सुसमाचार प्रचार करने का एक अवसर सुसज्जित था।\f*।
|
||
\v 28 और वे चेलों के साथ बहुत दिन तक रहे।
|
||
\c 15
|
||
|
||
\s यरूशलेम की सभा
|
||
\p
|
||
\v 1 फिर कुछ लोग यहूदिया से आकर भाइयों को सिखाने लगे: “यदि मूसा की रीति पर तुम्हारा खतना न हो तो तुम उद्धार नहीं पा सकते।” \bdit (लैव्य. 12:3) \bdit*
|
||
\v 2 जब पौलुस और बरनबास का उनसे बहुत मतभेद और विवाद हुआ तो यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और उनमें से कुछ व्यक्ति इस बात के विषय में प्रेरितों और प्राचीनों के पास यरूशलेम को जाएँ।
|
||
\v 3 अतः कलीसिया ने उन्हें कुछ दूर तक पहुँचाया; और वे फीनीके और सामरिया से होते हुए अन्यजातियों के मन फिराने का समाचार सुनाते गए, और सब भाइयों को बहुत आनन्दित किया।
|
||
\v 4 जब वे यरूशलेम में पहुँचे, तो कलीसिया और प्रेरित और प्राचीन उनसे आनन्द के साथ मिले, और उन्होंने बताया कि परमेश्वर ने उनके साथ होकर कैसे-कैसे काम किए थे।
|
||
\v 5 परन्तु फरीसियों के पंथ में से जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से कितनों ने उठकर कहा, “उन्हें खतना कराने और मूसा की व्यवस्था को मानने की आज्ञा देनी चाहिए।”
|
||
\p
|
||
\v 6 तब प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिये इकट्ठे हुए।
|
||
\v 7 तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद हो जाने के बाद खड़े होकर उनसे कहा, “हे भाइयों, तुम जानते हो, कि बहुत दिन हुए, कि परमेश्वर ने तुम में से मुझे चुन लिया, कि मेरे मुँह से अन्यजातियाँ सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें।
|
||
\v 8 और मन के जाँचने वाले परमेश्वर ने उनको भी हमारे समान पवित्र आत्मा देकर उनकी गवाही दी;
|
||
\v 9 और विश्वास के द्वारा उनके मन शुद्ध करके हम में और उनमें कुछ भेद न रखा।
|
||
\v 10 तो अब तुम क्यों परमेश्वर की परीक्षा करते हो, कि चेलों की गर्दन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे पूर्वज उठा सकते थे और न हम उठा सकते हैं।
|
||
\v 11 हाँ, हमारा यह तो निश्चय है कि जिस रीति से वे \it प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे\it*\f + \fr 15:11 \fq प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएँगे: \ft यहूदियों के संस्कार और अनुष्ठानों के बिना, केवल मसीह के अनुग्रह या दया के द्वारा उद्धार पाएँगे।\f*; उसी रीति से हम भी पाएँगे।”
|
||
\p
|
||
\v 12 तब सारी सभा चुपचाप होकर बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्वर ने उनके द्वारा अन्यजातियों में कैसे-कैसे बड़े चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए।
|
||
\s याकूब का निर्णय
|
||
\p
|
||
\v 13 जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा, “हे भाइयों, मेरी सुनो।
|
||
\v 14 शमौन ने बताया, कि परमेश्वर ने पहले-पहल अन्यजातियों पर कैसी कृपादृष्टि की, कि उनमें से अपने नाम के लिये एक लोग बना ले।
|
||
\v 15 और इससे भविष्यद्वक्ताओं की बातें भी मिलती हैं, जैसा लिखा है,
|
||
\q
|
||
\v 16 ‘इसके बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊँगा,
|
||
\q और उसके खंडहरों को फिर बनाऊँगा,
|
||
\q और उसे खड़ा करूँगा, \bdit (यिर्म. 12:15) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 17 इसलिए कि शेष मनुष्य, अर्थात् सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूँढ़ें,
|
||
\q
|
||
\v 18 यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातों का समाचार देता आया है।’ \bdit (आमो. 9:9-12, यशा. 45:21) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 19 “इसलिए मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियों में से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दुःख न दें;
|
||
\v 20 परन्तु उन्हें लिख भेजें, कि वे \it मूरतों की अशुद्धताओं\it*\f + \fr 15:20 \fq मूरतों की अशुद्धताओं: \ft अशुद्ध का मतलब किसी भी तरह का अपवित्रीकरण। परन्तु यहाँ स्पष्ट रूप से निरुपित किया गया है कि उन पशुओं का माँस जो मूरतों को बलिदान किया गया था।\f* और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के माँस से और लहू से परे रहें। \bdit (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17, लैव्य. 17:10-14) \bdit*
|
||
\v 21 क्योंकि पुराने समय से नगर-नगर मूसा की व्यवस्था के प्रचार करनेवाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन आराधनालय में पढ़ी जाती है।”
|
||
\s गैर-यहूदी विश्वासियों को पत्र
|
||
\p
|
||
\v 22 तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितों और प्राचीनों को अच्छा लगा, कि अपने में से कुछ मनुष्यों को चुनें, अर्थात् यहूदा, जो बरसब्बास कहलाता है, और सीलास को जो भाइयों में मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया को भेजें।
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||
\v 23 और उन्होंने उनके हाथ यह लिख भेजा: “अन्ताकिया और सीरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयों को जो अन्यजातियों में से हैं, प्रेरितों और प्राचीन भाइयों का नमस्कार!
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||
\v 24 हमने सुना है, कि हम में से कुछ ने वहाँ जाकर, तुम्हें अपनी बातों से घबरा दिया; और तुम्हारे मन उलट दिए हैं परन्तु हमने उनको आज्ञा नहीं दी थी।
|
||
\v 25 इसलिए हमने एक चित्त होकर ठीक समझा, कि चुने हुए मनुष्यों को अपने प्रिय बरनबास और पौलुस के साथ तुम्हारे पास भेजें।
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||
\v 26 ये तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने अपने प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिये जोखिम में डाले हैं।
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||
\v 27 और हमने यहूदा और सीलास को भेजा है, जो अपने मुँह से भी ये बातें कह देंगे।
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||
\v 28 पवित्र आत्मा को, और हमको भी ठीक जान पड़ा कि इन आवश्यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें;
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||
\v 29 कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से दूर रहो। इनसे दूर रहो तो तुम्हारा भला होगा। आगे शुभकामना।” \bdit (उत्प. 9:4, लैव्य. 3:17) \bdit*
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\p
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\v 30 फिर वे विदा होकर अन्ताकिया में पहुँचे, और सभा को इकट्ठी करके उन्हें पत्री दे दी।
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\v 31 और वे पढ़कर उस उपदेश की बात से अति आनन्दित हुए।
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||
\v 32 और यहूदा और सीलास ने जो आप भी भविष्यद्वक्ता थे, बहुत बातों से भाइयों को उपदेश देकर स्थिर किया।
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||
\v 33 वे कुछ दिन रहकर भाइयों से शान्ति के साथ विदा हुए कि अपने भेजनेवालों के पास जाएँ।
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||
\v 34 (परन्तु सीलास को वहाँ रहना अच्छा लगा।)
|
||
\v 35 और पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रह गए: और अन्य बहुत से लोगों के साथ प्रभु के वचन का उपदेश करते और सुसमाचार सुनाते रहे।
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\s पौलुस और बरनबास में मतभेद
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\p
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\v 36 कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा, “जिन-जिन नगरों में हमने प्रभु का वचन सुनाया था, आओ, फिर उनमें चलकर अपने भाइयों को देखें कि कैसे हैं।”
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\v 37 तब बरनबास ने यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साथ लेने का विचार किया।
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||
\v 38 परन्तु पौलुस ने उसे जो पंफूलिया में उनसे अलग हो गया था, और काम पर उनके साथ न गया, साथ ले जाना अच्छा न समझा।
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||
\v 39 अतः ऐसा विवाद उठा कि वे एक दूसरे से अलग हो गए; और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज से साइप्रस को चला गया।
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\s पौलुस की (सीलास के साथ) द्वितीय प्रचार-यात्रा
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\p
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\v 40 परन्तु पौलुस ने सीलास को चुन लिया, और भाइयों से परमेश्वर के अनुग्रह में सौंपा जाकर वहाँ से चला गया।
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||
\v 41 और कलीसियाओं को स्थिर करता हुआ, सीरिया और किलिकिया से होते हुए निकला।
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\c 16
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||
\s पौलुस और तीमुथियुस
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\p
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\v 1 फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और वहाँ तीमुथियुस नामक एक चेला था। उसकी माँ यहूदी विश्वासी थी, परन्तु उसका पिता यूनानी था।
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||
\v 2 वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था।
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||
\v 3 पौलुस की इच्छा थी कि वह उसके साथ चले; और जो यहूदी लोग उन जगहों में थे उनके कारण उसे लेकर उसका खतना किया, क्योंकि वे सब जानते थे, कि उसका पिता यूनानी था।
|
||
\v 4 और नगर-नगर जाते हुए वे उन विधियों को जो यरूशलेम के प्रेरितों और प्राचीनों ने ठहराई थीं, मानने के लिये उन्हें पहुँचाते जाते थे।
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||
\v 5 इस प्रकार कलीसियाएँ विश्वास में स्थिर होती गई और गिनती में प्रतिदिन बढ़ती गई।
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\s पौलुस का दर्शन
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\p
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||
\v 6 और वे फ्रूगिया और गलातिया प्रदेशों में से होकर गए, क्योंकि पवित्र आत्मा ने उन्हें आसिया में वचन सुनाने से मना किया।
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\v 7 और उन्होंने \it मूसिया\it*\f + \fr 16:7 \fq मूसिया: \ft यह आसिया माइनर का एक प्रांत था, जिसके उत्तर में प्रोपोंतिस था।\f* के निकट पहुँचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्मा ने उन्हें जाने न दिया।
|
||
\v 8 अतः वे मूसिया से होकर \it त्रोआस\it*\f + \fr 16:8 \fq त्रोआस: \ft ट्रोजन्स के पूरे देश को दर्शाने के लिए उपयोग किया गया है, जहाँ ट्रॉय का प्राचीन नगर खड़ा था।\f* में आए।
|
||
\v 9 वहाँ पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरुष खड़ा हुआ, उससे विनती करके कहता है, “पार उतरकर मकिदुनिया में आ, और हमारी सहायता कर।”
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||
\v 10 उसके यह दर्शन देखते ही हमने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिये बुलाया है।
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\p
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||
\v 11 इसलिए त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए।
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\v 12 वहाँ से हम \it फिलिप्पी\it*\f + \fr 16:12 \fq फिलिप्पी: \ft इस नगर का भूतपूर्व नाम दाथोस था। सिकंदर महान के पिता, फिलिप के द्वारा इसकी मरम्मत और विभूषित हुई थी।\f* में पहुँचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियों की बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे।
|
||
\v 13 सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहाँ प्रार्थना करने का स्थान होगा; और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे।
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||
\s यूरोप कि प्रथम विश्वासी
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\p
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||
\v 14 और लुदिया नाम थुआतीरा नगर की बैंगनी कपड़े बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुन रही थी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातों पर ध्यान लगाए।
|
||
\v 15 और जब उसने अपने घराने समेत बपतिस्मा लिया, तो उसने विनती की, “यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो,” और वह हमें मनाकर ले गई।
|
||
\s दुष्ट आत्मा से छुटकारा
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||
\p
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||
\v 16 जब हम प्रार्थना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली, जिसमें भावी कहनेवाली आत्मा थी; और भावी कहने से अपने स्वामियों के लिये बहुत कुछ कमा लाती थी।
|
||
\v 17 वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी, “ये मनुष्य परमप्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कथा सुनाते हैं।”
|
||
\v 18 वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस परेशान हुआ, और मुड़कर उस आत्मा से कहा, “मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूँ, कि उसमें से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।”
|
||
\p
|
||
\v 19 जब उसके स्वामियों ने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़कर चौक में प्रधानों के पास खींच ले गए।
|
||
\v 20 और उन्हें फौजदारी के हाकिमों के पास ले जाकर कहा, “ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं; \bdit (1 राजा. 18:17) \bdit*
|
||
\v 21 और ऐसी रीतियाँ बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियों के लिये ठीक नहीं।”
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||
\s पौलुस और सीलास बन्दीगृह में
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||
\p
|
||
\v 22 तब भीड़ के लोग उनके विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमों ने उनके कपड़े फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेंत मारने की आज्ञा दी।
|
||
\v 23 और बहुत बेंत लगवाकर उन्होंने उन्हें बन्दीगृह में डाल दिया और दरोगा को आज्ञा दी कि उन्हें सावधानी से रखे।
|
||
\v 24 उसने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उनके पाँव काठ में ठोंक दिए।
|
||
\s पौलुस और सीलास को बन्दीगृह से छुटकारा
|
||
\p
|
||
\v 25 आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और कैदी उनकी सुन रहे थे।
|
||
\v 26 कि इतने में अचानक एक बड़ा भूकम्प हुआ, यहाँ तक कि बन्दीगृह की नींव हिल गई, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल गए।
|
||
\v 27 और दरोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि कैदी भाग गए, अतः उसने तलवार खींचकर अपने आपको मार डालना चाहा।
|
||
\v 28 परन्तु पौलुस ने ऊँचे शब्द से पुकारकर कहा, “अपने आपको कुछ हानि न पहुँचा, क्योंकि हम सब यहीं हैं।”
|
||
\v 29 तब वह दिया मँगवाकर भीतर आया और काँपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा;
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||
\s दरोगा का हृदय परिवर्तन
|
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\p
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||
\v 30 और उन्हें बाहर लाकर कहा, “हे सज्जनों, उद्धार पाने के लिये मैं क्या करूँ?”
|
||
\v 31 उन्होंने कहा, “प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।”
|
||
\v 32 और उन्होंने उसको और उसके सारे घर के लोगों को प्रभु का वचन सुनाया।
|
||
\v 33 और रात को उसी घड़ी उसने उन्हें ले जाकर उनके घाव धोए, और उसने अपने सब लोगों समेत तुरन्त बपतिस्मा लिया।
|
||
\p
|
||
\v 34 और उसने उन्हें अपने घर में ले जाकर, उनके आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।
|
||
\v 35 जब दिन हुआ तब हाकिमों ने सिपाहियों के हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्यों को छोड़ दो।
|
||
\v 36 दरोगा ने ये बातें पौलुस से कह सुनाई, “हाकिमों ने तुम्हें छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, इसलिए अब निकलकर कुशल से चले जाओ।”
|
||
\v 37 परन्तु पौलुस ने उससे कहा, “उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहराए बिना लोगों के सामने मारा और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं? ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएँ।”
|
||
\v 38 सिपाहियों ने ये बातें हाकिमों से कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए,
|
||
\v 39 और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर विनती की, कि नगर से चले जाएँ।
|
||
\v 40 वे बन्दीगृह से निकलकर लुदिया के यहाँ गए, और भाइयों से भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए।
|
||
\c 17
|
||
\s थिस्सलुनीके नगर में पौलुस और सीलास
|
||
\p
|
||
\v 1 फिर वे \it अम्फिपुलिस\it*\f + \fr 17:1 \fq अम्फिपुलिस: \ft यह मकिदुनिया के पूर्वी प्रांत की राजधानी थी।\f* और अपुल्लोनिया होकर थिस्सलुनीके में आए, जहाँ यहूदियों का एक आराधनालय था।
|
||
\v 2 और पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्रशास्त्रों से उनके साथ वाद-विवाद किया;
|
||
\v 3 और उनका अर्थ खोल-खोलकर समझाता था कि मसीह का दुःख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूँ, मसीह है।”
|
||
\v 4 उनमें से कितनों ने, और भक्त यूनानियों में से बहुतों ने और बहुत सारी प्रमुख स्त्रियों ने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साथ मिल गए।
|
||
\v 5 परन्तु यहूदियों ने ईर्ष्या से भरकर बाजार से लोगों में से कई दुष्ट मनुष्यों को अपने साथ में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगों के सामने लाना चाहा।
|
||
\v 6 और उन्हें न पाकर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कुछ भाइयों को नगर के हाकिमों के सामने खींच लाए, “ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है, यहाँ भी आए हैं।
|
||
\v 7 और यासोन ने उन्हें अपने यहाँ ठहराया है, और ये सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं।”
|
||
\v 8 जब भीड़ और नगर के हाकिमों ने ये बातें सुनीं, तो वे परेशान हो गये।
|
||
\v 9 और उन्होंने यासोन और बाकी लोगों को जमानत पर छोड़ दिया।
|
||
\s बिरीया नगर में पौलुस और सीलास
|
||
\p
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||
\v 10 भाइयों ने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया, और वे वहाँ पहुँचकर यहूदियों के आराधनालय में गए।
|
||
\v 11 ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रतिदिन पवित्रशास्त्रों में ढूँढ़ते रहे कि ये बातें ऐसी ही हैं कि नहीं।
|
||
\v 12 इसलिए उनमें से बहुतों ने, और यूनानी कुलीन स्त्रियों में से और पुरुषों में से बहुतों ने विश्वास किया।
|
||
\v 13 किन्तु जब थिस्सलुनीके के यहूदी जान गए कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहाँ भी आकर लोगों को भड़काने और हलचल मचाने लगे।
|
||
\v 14 तब भाइयों ने तुरन्त पौलुस को विदा किया कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुथियुस वहीं रह गए।
|
||
\v 15 पौलुस के पहुँचाने वाले उसे एथेंस तक ले गए, और सीलास और तीमुथियुस के लिये यह निर्देश लेकर विदा हुए कि मेरे पास अति शीघ्र आओ।
|
||
\s एथेंस नगर में पौलुस
|
||
\p
|
||
\v 16 जब पौलुस एथेंस में उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो नगर को मूरतों से भरा हुआ देखकर उसका जी जल उठा।
|
||
\v 17 अतः वह आराधनालय में यहूदियों और भक्तों से और चौक में जो लोग मिलते थे, उनसे हर दिन वाद-विवाद किया करता था।
|
||
\v 18 तब \it इपिकूरी\it*\f + \fr 17:18 \fq इपिकूरी: \ft दार्शनिकों के इस संप्रदाय ने इन्कार किया था कि संसार की सृष्टि परमेश्वर के द्वारा की गई है।\f* और स्तोईकी दार्शनिकों में से कुछ उससे तर्क करने लगे, और कुछ ने कहा, “यह बकवादी क्या कहना चाहता है?” परन्तु दूसरों ने कहा, “वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है,” क्योंकि वह यीशु का और पुनरुत्थान का सुसमाचार सुनाता था।
|
||
\v 19 तब वे उसे अपने साथ \it अरियुपगुस\it*\f + \fr 17:19 \fq अरियुपगुस: \ft मार्जिन, या “मंगल ग्रह की पहाड़ी।”\f* पर ले गए और पूछा, “क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है?
|
||
\v 20 क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिए हम जानना चाहते हैं कि इनका अर्थ क्या है?”
|
||
\v 21 (इसलिए कि सब एथेंस वासी और परदेशी जो वहाँ रहते थे नई-नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे।)
|
||
\s अरियुपगुस में पौलुस का उपदेश
|
||
\p
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||
\v 22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा, “हे एथेंस के लोगों, मैं देखता हूँ कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो।
|
||
\v 23 क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा था, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा था, ‘अनजाने ईश्वर के लिये।’ इसलिए जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूँ।
|
||
\v 24 जिस परमेश्वर ने पृथ्वी और उसकी सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृथ्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरों में नहीं रहता। \bdit (1 राजा. 8:27, 2 इति. 6:18, भज. 146:6) \bdit*
|
||
\v 25 न किसी वस्तु की आवश्यकता के कारण मनुष्यों के हाथों की सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और श्वास और सब कुछ देता है। \bdit (यशा. 42:5, भज. 50:12, भज. 50:12) \bdit*
|
||
\v 26 उसने एक ही मूल से मनुष्यों की सब जातियाँ सारी पृथ्वी पर रहने के लिये बनाई हैं; और उनके ठहराए हुए समय और निवास के सीमाओं को इसलिए बाँधा है, \bdit (व्यव. 32:8) \bdit*
|
||
\v 27 कि वे परमेश्वर को ढूँढ़े, और शायद वे उसके पास पहुँच सके, और वास्तव में, वह हम में से किसी से दूर नहीं हैं। \bdit (यशा. 55:6, यिर्म. 23:23) \bdit*
|
||
\v 28 क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, ‘हम तो उसी के वंश भी हैं।’
|
||
\v 29 अतः परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझना उचित नहीं कि ईश्वरत्व, सोने या चाँदी या पत्थर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पना से गढ़े गए हों। \bdit (उत्प. 1:27, यशा. 40:18-20, यशा. 44:10-17) \bdit*
|
||
\v 30 इसलिए परमेश्वर ने अज्ञानता के समयों पर ध्यान नहीं दिया, पर अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।
|
||
\v 31 क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिसमें वह उस मनुष्य के द्वारा धार्मिकता से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” \bdit (भज. 9:8, भज. 72:2-4, भज. 96:13, भज. 98:9, यशा. 2:4) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 32 मरे हुओं के पुनरुत्थान की बात सुनकर कितने तो उपहास करने लगे, और कितनों ने कहा, “यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे।”
|
||
\v 33 इस पर पौलुस उनके बीच में से चला गया।
|
||
\v 34 परन्तु कुछ मनुष्य उसके साथ मिल गए, और विश्वास किया; जिनमें दियुनुसियुस जो अरियुपगुस का सदस्य था, और दमरिस नामक एक स्त्री थी, और उनके साथ और भी कितने लोग थे।
|
||
\c 18
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||
\s कुरिन्थुस में पौलुस
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||
\p
|
||
\v 1 इसके बाद पौलुस एथेंस को छोड़कर कुरिन्थुस में आया।
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||
\v 2 और वहाँ अक्विला नामक एक यहूदी मिला, जिसका जन्म पुन्तुस में हुआ था; और अपनी पत्नी प्रिस्किल्ला के साथ इतालिया से हाल ही में आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियों को रोम से निकल जाने की आज्ञा दी थी, इसलिए वह उनके यहाँ गया।
|
||
\v 3 और उसका और उनका एक ही व्यापार था; इसलिए वह उनके साथ रहा, और वे काम करने लगे, और उनका व्यापार तम्बू बनाने का था।
|
||
\v 4 और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था।
|
||
\p
|
||
\v 5 जब सीलास और तीमुथियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियों को गवाही देता था कि यीशु ही मसीह है।
|
||
\v 6 परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उसने अपने कपड़े झाड़कर उनसे कहा, “तुम्हारा लहू तुम्हारी सिर पर रहे! मैं निर्दोष हूँ। अब से मैं अन्यजातियों के पास जाऊँगा।”
|
||
\v 7 और वहाँ से चलकर वह तीतुस यूस्तुस नामक परमेश्वर के एक भक्त के घर में आया, जिसका घर आराधनालय से लगा हुआ था।
|
||
\v 8 तब आराधनालय के सरदार \it क्रिस्पुस\it*\f + \fr 18:8 \fq क्रिस्पुस: \ft वह कुलुस्सियों 1:14 में कुछ लोगों में से एक के रूप में उल्लेखित है जिसे पौलुस ने अपने हाथों से बपतिस्मा दिया था।\f* ने अपने सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्थवासियों ने सुनकर विश्वास किया और बपतिस्मा लिया।
|
||
\v 9 और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, \wj “मत डर, वरन् कहे जा और चुप मत रह;\wj*
|
||
\v 10 \wj क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हानि न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं।”\wj* \bdit (यशा. 41:10, यशा. 43:5, यिर्म. 1:8) \bdit*
|
||
\v 11 इसलिए वह उनमें परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा।
|
||
\p
|
||
\v 12 जब गल्लियो अखाया देश का राज्यपाल था तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के सामने लाकर कहने लगे,
|
||
\v 13 “यह लोगों को समझाता है, कि परमेश्वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्था के विपरीत है।”
|
||
\v 14 जब पौलुस बोलने पर था, तो गल्लियो ने यहूदियों से कहा, “हे यहूदियों, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित था कि मैं तुम्हारी सुनता।
|
||
\v 15 परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहाँ की व्यवस्था के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातों का न्यायी बनना नहीं चाहता।”
|
||
\v 16 और उसने उन्हें न्याय आसन के सामने से निकलवा दिया।
|
||
\v 17 तब सब लोगों ने आराधनालय के सरदार सोस्थिनेस को पकड़ के न्याय आसन के सामने मारा। परन्तु गल्लियो ने इन बातों की कुछ भी चिन्ता न की।
|
||
\s अन्ताकिया को लौटना
|
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\p
|
||
\v 18 अतः पौलुस बहुत दिन तक वहाँ रहा, फिर भाइयों से विदा होकर किंख्रिया में इसलिए सिर मुँड़ाया, क्योंकि उसने मन्नत मानी थी और जहाज पर सीरिया को चल दिया और उसके साथ प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। \bdit (गिन. 6:18) \bdit*
|
||
\v 19 और उसने \it इफिसुस\it*\f + \fr 18:19 \fq इफिसुस: \ft यह नगर इओनिआ, आसिया माइनर में था, करीब 40 मील स्मुरना के दक्षिण में था।\f* में पहुँचकर उनको वहाँ छोड़ा, और आप ही आराधनालय में जाकर यहूदियों से विवाद करने लगा।
|
||
\v 20 जब उन्होंने उससे विनती की, “हमारे साथ और कुछ दिन रह।” तो उसने स्वीकार न किया;
|
||
\v 21 परन्तु यह कहकर उनसे विदा हुआ, “यदि परमेश्वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊँगा।” तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया;
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\v 22 और कैसरिया में उतरकर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया।
|
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\s पौलुस का तृतीय प्रचार-यात्रा का आरम्भ
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\p
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\v 23 फिर कुछ दिन रहकर वहाँ से चला गया, और एक ओर से गलातिया और फ्रूगिया में सब चेलों को स्थिर करता फिरा।
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\s अपुल्लोस नामक विद्वान पुरुष
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\p
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\v 24 अपुल्लोस नामक एक यहूदी जिसका जन्म \it सिकन्दरिया\it*\f + \fr 18:24 \fq सिकन्दरिया: \ft सिकन्दरिया मिस्र का एक नगर था, इसे सिकंदर महान द्वारा स्थापित किया गया था।\f* में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्रशास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया।
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\v 25 उसने प्रभु के मार्ग की शिक्षा पाई थी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक-ठीक सुनाता और सिखाता था, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्मा की बात जानता था।
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||
\v 26 वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उसकी बातें सुनकर, उसे अपने यहाँ ले गए और परमेश्वर का मार्ग उसको और भी स्पष्ट रूप से बताया।
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\v 27 और जब उसने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयों ने उसे ढाढ़स देकर चेलों को लिखा कि वे उससे अच्छी तरह मिलें, और उसने पहुँचकर वहाँ उन लोगों की बड़ी सहायता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया था।
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\v 28 अपुल्लोस ने अपनी शक्ति और कौशल के साथ यहूदियों को सार्वजनिक रूप से अभिभूत किया, पवित्रशास्त्र से प्रमाण दे देकर कि यीशु ही मसीह है।
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\c 19
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\s इफिसुस में पौलुस
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\p
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\v 1 जब अपुल्लोस कुरिन्थुस में था, तो पौलुस ऊपर के सारे देश से होकर इफिसुस में आया और वहाँ कुछ चेले मिले।
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\v 2 उसने कहा, “क्या तुम ने विश्वास करते समय \it पवित्र आत्मा पाया\it*\f + \fr 19:2 \fq पवित्र आत्मा पाया: \ft यह पूछना पौलुस के लिए स्वाभाविक था कि यह आत्मिक वरदान उन्हें मिला है या नहीं।\f*?” उन्होंने उससे कहा, “हमने तो पवित्र आत्मा की चर्चा भी नहीं सुनी।”
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\v 3 उसने उनसे कहा, “तो फिर तुम ने किसका बपतिस्मा लिया?” उन्होंने कहा, “यूहन्ना का बपतिस्मा।”
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\v 4 पौलुस ने कहा, “यूहन्ना ने यह कहकर मन फिराव का बपतिस्मा दिया, कि जो मेरे बाद आनेवाला है, उस पर अर्थात् यीशु पर विश्वास करना।”
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\v 5 यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्मा लिया।
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||
\v 6 और जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो उन पर पवित्र आत्मा उतरा, और वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्वाणी करने लगे।
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\v 7 ये सब लगभग बारह पुरुष थे।
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\p
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||
\v 8 और वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा।
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||
\v 9 परन्तु जब कुछ लोगों ने कठोर होकर उसकी नहीं मानी वरन् लोगों के सामने इस पंथ को बुरा कहने लगे, तो उसने उनको छोड़कर चेलों को अलग कर लिया, और प्रतिदिन तुरन्नुस की पाठशाला में वाद-विवाद किया करता था।
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\v 10 दो वर्ष तक यही होता रहा, यहाँ तक कि आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया।
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\s इफिसुस में सामर्थ्य के अनोखे काम
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\p
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\v 11 और परमेश्वर पौलुस के हाथों से सामर्थ्य के अद्भुत काम दिखाता था।
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\v 12 यहाँ तक कि रूमाल और अँगोछे उसकी देह से स्पर्श कराकर बीमारों पर डालते थे, और उनकी बीमारियाँ दूर हो जाती थी; और दुष्टात्माएँ उनमें से निकल जाया करती थीं।
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\v 13 परन्तु कुछ यहूदी जो झाड़ा फूँकी करते फिरते थे, यह करने लगे कि जिनमें दुष्टात्मा हों उन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूँकने लगे, “जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपथ देता हूँ।”
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||
\v 14 और \it स्क्किवा\it*\f + \fr 19:14 \fq स्क्किवा: \ft यह एक यूनानी नाम है, परन्तु इसके बारे में कुछ ज्यादा ज्ञात नहीं है।\f* नाम के एक यहूदी प्रधान याजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे।
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||
\v 15 पर दुष्टात्मा ने उत्तर दिया, “यीशु को मैं जानती हूँ, और पौलुस को भी पहचानती हूँ; परन्तु तुम कौन हो?”
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||
\v 16 और उस मनुष्य ने जिसमें दुष्ट आत्मा थी; उन पर लपककर, और उन्हें काबू में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे।
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\v 17 और यह बात इफिसुस के रहनेवाले यहूदी और यूनानी भी सब जान गए, और उन सब पर भय छा गया; और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई।
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\v 18 और जिन्होंने विश्वास किया था, उनमें से बहुतों ने आकर अपने-अपने बुरे कामों को मान लिया और प्रगट किया।
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||
\v 19 और जादू-टोना करनेवालों में से बहुतों ने अपनी-अपनी पोथियाँ इकट्ठी करके सब के सामने जला दीं; और जब उनका दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर निकला।
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||
\v 20 इस प्रकार प्रभु का वचन सामर्थ्यपूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।
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\p
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||
\v 21 जब ये बातें हो चुकी तो पौलुस ने आत्मा में ठाना कि \it मकिदुनिया और अखाया\it*\f + \fr 19:21 \fq मकिदुनिया और अखाया: \ft इन स्थानों में उन्होंने उत्कर्षित कलीसियाओं की स्थापना की थी।\f* से होकर यरूशलेम को जाऊँ, और कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम को भी देखना अवश्य है।”
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\v 22 इसलिए अपनी सेवा करनेवालों में से तीमुथियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ दिन आसिया में रह गया।
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\s इफिसुस में उपद्रव
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\p
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\v 23 उस समय उस पन्थ के विषय में बड़ा हुल्लड़ हुआ।
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\v 24 क्योंकि दिमेत्रियुस नाम का एक सुनार अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाकर, कारीगरों को बहुत काम दिलाया करता था।
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\v 25 उसने उनको और ऐसी वस्तुओं के कारीगरों को इकट्ठे करके कहा, “हे मनुष्यों, तुम जानते हो कि इस काम से हमें कितना धन मिलता है।
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\v 26 और तुम देखते और सुनते हो कि केवल इफिसुस ही में नहीं, वरन् प्रायः सारे आसिया में यह कह कहकर इस पौलुस ने बहुत लोगों को समझाया और भरमाया भी है, कि जो हाथ की कारीगरी है, वे ईश्वर नहीं।
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\v 27 और अब केवल इसी एक बात का ही डर नहीं कि हमारे इस धन्धे की प्रतिष्ठा जाती रहेगी; वरन् यह कि महान देवी अरतिमिस का मन्दिर तुच्छ समझा जाएगा और जिसे सारा आसिया और जगत पूजता है उसका महत्त्व भी जाता रहेगा।”
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\p
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\v 28 वे यह सुनकर क्रोध से भर गए और चिल्ला चिल्लाकर कहने लगे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है!”
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\v 29 और सारे नगर में बड़ा कोलाहल मच गया और लोगों ने गयुस और अरिस्तर्खुस, मकिदुनियों को जो पौलुस के संगी यात्री थे, पकड़ लिया, और एक साथ होकर रंगशाला में दौड़ गए।
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\v 30 जब पौलुस ने लोगों के पास भीतर जाना चाहा तो चेलों ने उसे जाने न दिया।
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\v 31 आसिया के हाकिमों में से भी उसके कई मित्रों ने उसके पास कहला भेजा और विनती की, कि रंगशाला में जाकर जोखिम न उठाना।
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\v 32 वहाँ कोई कुछ चिल्लाता था, और कोई कुछ; क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही थी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि वे किस लिये इकट्ठे हुए हैं।
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\v 33 तब उन्होंने सिकन्दर को, जिसे यहूदियों ने खड़ा किया था, भीड़ में से आगे बढ़ाया, और सिकन्दर हाथ से संकेत करके लोगों के सामने उत्तर देना चाहता था।
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||
\v 34 परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है, तो सब के सब एक स्वर से कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, “इफिसियों की अरतिमिस, महान है।”
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\v 35 तब नगर के मंत्री ने लोगों को शान्त करके कहा, “हे इफिसियों, कौन नहीं जानता, कि इफिसियों का नगर महान देवी अरतिमिस के मन्दिर, और आकाश से गिरी हुई मूरत का रखवाला है।
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\v 36 अतः जबकि इन बातों का खण्डन ही नहीं हो सकता, तो उचित है, कि तुम शान्त रहो; और बिना सोचे-विचारे कुछ न करो।
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||
\v 37 क्योंकि तुम इन मनुष्यों को लाए हो, जो न मन्दिर के लूटनेवाले हैं, और न हमारी देवी के निन्दक हैं।
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||
\v 38 यदि दिमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर आरोप लगाए।
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\v 39 परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा।
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\v 40 क्योंकि आज के बलवे के कारण हम पर दोष लगाए जाने का डर है, इसलिए कि इसका कोई कारण नहीं, अतः हम इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर न दे सकेंगे।”
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\v 41 और यह कह के उसने सभा को विदा किया।
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\c 20
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\s मकिदुनिया, यूनान और त्रोआस में पौलुस
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\p
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\v 1 जब हुल्लड़ थम गया तो पौलुस ने चेलों को बुलवाकर समझाया, और उनसे विदा होकर मकिदुनिया की ओर चल दिया।
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\v 2 उस सारे प्रदेश में से होकर और चेलों को बहुत उत्साहित कर वह यूनान में आया।
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\v 3 जब तीन महीने रहकर वह वहाँ से जहाज पर सीरिया की ओर जाने पर था, तो यहूदी उसकी घात में लगे, इसलिए उसने यह निश्चय किया कि मकिदुनिया होकर लौट जाए।
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\v 4 बिरीया के पुरूर्स का पुत्र सोपत्रुस और थिस्सलुनीकियों में से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और दिरबे का गयुस, और तीमुथियुस और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साथ हो लिए।
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||
\v 5 पर वे आगे जाकर त्रोआस में हमारी प्रतीक्षा करते रहे।
|
||
\v 6 और हम अख़मीरी रोटी के दिनों के बाद फिलिप्पी से जहाज पर चढ़कर पाँच दिन में त्रोआस में उनके पास पहुँचे, और सात दिन तक वहीं रहे।
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\s यूतुखुस का जिलाया जाना
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\p
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\v 7 सप्ताह के पहले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिये इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने जो दूसरे दिन चले जाने पर था, उनसे बातें की, और आधी रात तक उपदेश देता रहा।
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\v 8 जिस अटारी पर हम इकट्ठे थे, उसमें बहुत दीये जल रहे थे।
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||
\v 9 और यूतुखुस नाम का एक जवान खिड़की पर बैठा हुआ गहरी नींद से झुक रहा था, और जब पौलुस देर तक बातें करता रहा तो वह नींद के झोंके में तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा, और मरा हुआ उठाया गया।
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||
\v 10 परन्तु पौलुस उतरकर उससे \it लिपट गया\it*\f + \fr 20:10 \fq लिपट गया: \ft सम्भवतः एलीशा के समान जैसा उसने शूनेमवासी स्त्री के बेटे के साथ किया था उसी तरह से पौलुस ने अपने आपको उस पर लिटा दिया।\f*, और गले लगाकर कहा, “घबराओ नहीं; क्योंकि उसका प्राण उसी में है।” \bdit (1 राजा. 17:21) \bdit*
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||
\v 11 और ऊपर जाकर रोटी तोड़ी और खाकर इतनी देर तक उनसे बातें करता रहा कि पौ फट गई; फिर वह चला गया।
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\v 12 और वे उस जवान को जीवित ले आए, और बहुत शान्ति पाई।
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\s त्रोआस से मीलेतुस की यात्रा
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\p
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\v 13 हम पहले से जहाज पर चढ़कर अस्सुस को इस विचार से आगे गए, कि वहाँ से हम पौलुस को चढ़ा लें क्योंकि उसने यह इसलिए ठहराया था, कि आप ही पैदल जानेवाला था।
|
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\v 14 जब वह अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ाकर \it मितुलेने\it*\f + \fr 20:14 \fq मितुलेने: \ft यह लेसबोस के द्वीप की राजधानी थी।\f* में आए।
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||
\v 15 और वहाँ से जहाज खोलकर हम दूसरे दिन खियुस के सामने पहुँचे, और अगले दिन सामुस में जा पहुँचे, फिर दूसरे दिन मीलेतुस में आए।
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||
\v 16 क्योंकि पौलुस ने इफिसुस के पास से होकर जाने की ठानी थी, कि कहीं ऐसा न हो, कि उसे आसिया में देर लगे; क्योंकि वह जल्दी में था, कि यदि हो सके, तो वह पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में रहे।
|
||
\s इफिसुस के प्राचीनों को उपदेश
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\p
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||
\v 17 और उसने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनों को बुलवाया।
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\v 18 जब वे उसके पास आए, तो उनसे कहा, “तुम जानते हो, कि पहले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुँचा, मैं हर समय तुम्हारे साथ किस प्रकार रहा।
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\v 19 अर्थात् बड़ी दीनता से, और आँसू बहा-बहाकर, और उन परीक्षाओं में जो यहूदियों के षड्यंत्र के कारण जो मुझ पर आ पड़ी; मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा।
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||
\v 20 और जो-जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उनको बताने और लोगों के सामने और घर-घर सिखाने से कभी न झिझका।
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||
\v 21 वरन् यहूदियों और यूनानियों को चेतावनी देता रहा कि परमेश्वर की ओर मन फिराए, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करे।
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||
\v 22 और अब, मैं \it आत्मा में बंधा हुआ\it*\f + \fr 20:22 \fq आत्मा में बंधा हुआ: \ft पवित्र आत्मा के प्रभाव के द्वारा दृढ़तापूर्वक आग्रह या विवश किया हुआ।\f* यरूशलेम को जाता हूँ, और नहीं जानता, कि वहाँ मुझ पर क्या-क्या बीतेगा,
|
||
\v 23 केवल यह कि पवित्र आत्मा हर नगर में गवाही दे-देकर मुझसे कहता है कि बन्धन और क्लेश तेरे लिये तैयार है।
|
||
\v 24 परन्तु मैं अपने प्राण को कुछ नहीं समझता कि उसे प्रिय जानूँ, वरन् यह कि मैं अपनी दौड़ को, और उस सेवा को पूरी करूँ, जो मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिये प्रभु यीशु से पाई है।
|
||
\v 25 और अब मैं जानता हूँ, कि तुम सब जिनमें मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुँह फिर न देखोगे।
|
||
\v 26 इसलिए मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूँ, कि मैं सब के लहू से निर्दोष हूँ।
|
||
\v 27 क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बताने से न झिझका।
|
||
\v 28 इसलिए अपनी और पूरे झुण्ड की देख-रेख करो; जिसमें पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने लहू से मोल लिया है। \bdit (भज. 74:2) \bdit*
|
||
\v 29 मैं जानता हूँ, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेड़िए तुम में आएँगे, जो झुण्ड को न छोड़ेंगे।
|
||
\v 30 तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे-ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहेंगे।
|
||
\v 31 इसलिए जागते रहो, और स्मरण करो कि मैंने तीन वर्ष तक रात दिन आँसू बहा-बहाकर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा।
|
||
\v 32 और अब मैं तुम्हें परमेश्वर को, और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूँ; जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, और सब पवित्र किए गये लोगों में सहभागी होकर विरासत दे सकता है।
|
||
\v 33 मैंने किसी के चाँदी, सोने या कपड़े का लालच नहीं किया। \bdit (1 शमू. 12:3) \bdit*
|
||
\v 34 तुम आप ही जानते हो कि इन्हीं हाथों ने मेरी और मेरे साथियों की आवश्यकताएँ पूरी की।
|
||
\v 35 मैंने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना, और प्रभु यीशु के वचन स्मरण रखना अवश्य है, कि उसने आप ही कहा है: \wj ‘लेने से देना धन्य है।’”\wj*
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||
\p
|
||
\v 36 यह कहकर उसने घुटने टेके और उन सब के साथ प्रार्थना की।
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||
\v 37 तब वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले लिपटकर उसे चूमने लगे।
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||
\v 38 वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उसने कही थी, कि तुम मेरा मुँह फिर न देखोगे। और उन्होंने उसे जहाज तक पहुँचाया।
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\c 21
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\s यरूशलेम की यात्रा
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\p
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||
\v 1 जब हमने उनसे अलग होकर समुद्री यात्रा प्रारम्भ किया, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रुदुस में, और वहाँ से पतरा में;
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||
\v 2 और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और हमने उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया।
|
||
\v 3 जब साइप्रस दिखाई दिया, तो हमने उसे बाएँ हाथ छोड़ा, और सीरिया को चलकर सोर में उतरे; क्योंकि वहाँ जहाज का बोझ उतारना था।
|
||
\v 4 और चेलों को पाकर हम वहाँ सात दिन तक रहे। उन्होंने आत्मा के सिखाए पौलुस से कहा कि यरूशलेम में पाँव न रखना।
|
||
\v 5 जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहाँ से चल दिए; और सब स्त्रियों और बालकों समेत हमें नगर के बाहर तक पहुँचाया और हमने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्थना की।
|
||
\v 6 तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपने-अपने घर लौट गए।
|
||
\p
|
||
\v 7 जब हम सोर से जलयात्रा पूरी करके \it पतुलिमयिस\it*\f + \fr 21:7 \fq पतुलिमयिस: \ft यह भूमध्य सागर के तट पर स्थित एक नगर था।\f* में पहुँचे, और भाइयों को नमस्कार करके उनके साथ एक दिन रहे।
|
||
\v 8 दूसरे दिन हम वहाँ से चलकर कैसरिया में आए, और फिलिप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातों में से एक था, जाकर उसके यहाँ रहे।
|
||
\v 9 उसकी चार कुँवारी पुत्रियाँ थीं; जो भविष्यद्वाणी करती थीं। \bdit (योए. 2:28) \bdit*
|
||
\v 10 जब हम वहाँ बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया।
|
||
\v 11 उसने हमारे पास आकर पौलुस का कमरबन्द लिया, और अपने हाथ पाँव बाँधकर कहा, “पवित्र आत्मा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह कमरबन्द है, उसको यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बाँधेंगे, और अन्यजातियों के हाथ में सौंपेंगे।”
|
||
\v 12 जब हमने ये बातें सुनी, तो हम और वहाँ के लोगों ने उससे विनती की, कि यरूशलेम को न जाए।
|
||
\v 13 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “तुम क्या करते हो, कि रो-रोकर मेरा मन तोड़ते हो? मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिये यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने ही के लिये वरन् मरने के लिये भी तैयार हूँ।”
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||
\v 14 जब उसने न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए, “प्रभु की इच्छा पूरी हो।”
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||
\p
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||
\v 15 उन दिनों के बाद हमने तैयारी की और यरूशलेम को चल दिए।
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||
\v 16 कैसरिया के भी कुछ चेले हमारे साथ हो लिए, और मनासोन नामक साइप्रस के एक पुराने चेले को साथ ले आए, कि हम उसके यहाँ टिकें।
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\s यरूशलेम में पौलुस का आगमन
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\p
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\v 17 जब हम यरूशलेम में पहुँचे, तब भाइयों ने बड़े आनन्द के साथ हमारा स्वागत किया।
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\v 18 दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहाँ सब प्राचीन इकट्ठे थे।
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||
\v 19 तब उसने उन्हें नमस्कार करके, जो-जो काम परमेश्वर ने उसकी सेवकाई के द्वारा अन्यजातियों में किए थे, एक-एक करके सब बताया।
|
||
\v 20 उन्होंने यह सुनकर परमेश्वर की महिमा की, फिर उससे कहा, “हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियों में से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्था के लिये धुन लगाए हैं।
|
||
\v 21 और उनको तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियों में रहनेवाले यहूदियों को मूसा से फिर जाने को सिखाता है, और कहता है, कि न अपने बच्चों का खतना कराओ ओर न रीतियों पर चलो।
|
||
\v 22 तो फिर क्या किया जाए? लोग अवश्य सुनेंगे कि तू यहाँ आया है।
|
||
\v 23 इसलिए जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर। हमारे यहाँ चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है।
|
||
\v 24 उन्हें लेकर उसके साथ अपने आपको शुद्ध कर; और उनके लिये खर्चा दे, कि वे सिर मुँड़ाएँ। तब सब जान लेंगे, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उनकी कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्था को मानकर उसके अनुसार चलता है। \bdit (गिन. 6:5, गिन. 6:13-18, गिन. 6:21) \bdit*
|
||
\v 25 परन्तु उन अन्यजातियों के विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हमने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मूर्तियों के सामने बलि किए हुए माँस से, और लहू से, और गला घोंटे हुओं के माँस से, और व्यभिचार से, बचे रहें।”
|
||
\v 26 तब पौलुस उन मनुष्यों को लेकर, और दूसरे दिन उनके साथ शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और वहाँ बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्थात् उनमें से हर एक के लिये चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे। \bdit (गिन. 6:13-21) \bdit*
|
||
\s मन्दिर में पौलुस की गिरफ्तारी
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\p
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\v 27 जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियों ने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगों को भड़काया, और यह चिल्ला चिल्लाकर उसको पकड़ लिया,
|
||
\v 28 “हे इस्राएलियों, सहायता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगों के, और व्यवस्था के, और इस स्थान के विरोध में हर जगह सब लोगों को सिखाता है, यहाँ तक कि यूनानियों को भी मन्दिर में लाकर उसने इस पवित्रस्थान को अपवित्र किया है।”
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||
\v 29 उन्होंने तो इससे पहले इफिसुस वासी \it त्रुफिमुस\it*\f + \fr 21:29 \fq त्रुफिमुस: \ft वह पौलुस के साथ उनके इफिसुस से आने के मार्ग में हो लिया था, प्रेरित 20:4।\f* को उसके साथ नगर में देखा था, और समझते थे कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है।
|
||
\v 30 तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए।
|
||
\v 31 जब वे उसे मार डालना चाहते थे, तो सैन्य-दल के सरदार को सन्देश पहुँचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है।
|
||
\v 32 तब वह तुरन्त सिपाहियों और सूबेदारों को लेकर उनके पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने सैन्य-दल के सरदार को और सिपाहियों को देखकर पौलुस को मारना-पीटना रोक दिया।
|
||
\v 33 तब सैन्य-दल के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरों से बाँधने की आज्ञा देकर पूछने लगा, “यह कौन है, और इसने क्या किया है?”
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||
\v 34 परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी।
|
||
\v 35 जब वह सीढ़ी पर पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहियों को उसे उठाकर ले जाना पड़ा।
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\v 36 क्योंकि लोगों की भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, “उसका अन्त कर दो।”
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\p
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\v 37 जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उसने सैन्य-दल के सरदार से कहा, “क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूँ?” उसने कहा, “क्या तू यूनानी जानता है?
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||
\v 38 क्या तू वह मिस्री नहीं, जो इन दिनों से पहले बलवाई बनाकर चार हजार हथियार-बन्द लोगों को जंगल में ले गया?”
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||
\v 39 पौलुस ने कहा, “मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूँ! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूँ। और मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि मुझे लोगों से बातें करने दे।”
|
||
\v 40 जब उसने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगों को हाथ से संकेत किया। जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा:
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\c 22
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\s भीड़ में पौलुस का सन्देश
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\p
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\v 1 “हे भाइयों और पिताओं, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे सामने कहता हूँ।”
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\p
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\v 2 वे यह सुनकर कि वह उनसे इब्रानी भाषा में बोलता है, वे चुप रहे। तब उसने कहा:
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\p
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\v 3 “मैं तो यहूदी हूँ, जो किलिकिया के तरसुस में जन्मा; परन्तु इस नगर में \it गमलीएल\it*\f + \fr 22:3 \fq गमलीएल: \ft प्रेरित 5:34 की टिप्पणी देखिए।\f* के पाँवों के पास बैठकर शिक्षा प्राप्त की, और पूर्वजों की व्यवस्था भी ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिये ऐसी धुन लगाए था, जैसे तुम सब आज लगाए हो।
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||
\v 4 मैंने पुरुष और स्त्री दोनों को बाँधकर, और बन्दीगृह में डालकर, इस पंथ को यहाँ तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला।
|
||
\v 5 स्वयं महायाजक और सब पुरनिए गवाह हैं; कि उनमें से मैं भाइयों के नाम पर चिट्ठियाँ लेकर दमिश्क को चला जा रहा था, कि जो वहाँ हों उन्हें दण्ड दिलाने के लिये बाँधकर यरूशलेम में लाऊँ।
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\s हृदय-परिवर्तन का वर्णन
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\p
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\v 6 “जब मैं यात्रा करके दमिश्क के निकट पहुँचा, तो ऐसा हुआ कि दोपहर के लगभग अचानक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारों ओर चमकी।
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||
\v 7 और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह वाणी सुनी, \wj ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है?’\wj*
|
||
\v 8 मैंने उत्तर दिया, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ उसने मुझसे कहा, \wj ‘मैं यीशु नासरी हूँ, जिसे तू सताता है।’\wj*
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||
\v 9 और मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझसे बोलता था उसकी वाणी न सुनी।
|
||
\v 10 तब मैंने कहा, ‘हे प्रभु, मैं क्या करूँ?’ प्रभु ने मुझसे कहा, \wj ‘उठकर दमिश्क में जा, और जो कुछ तेरे करने के लिये ठहराया गया है वहाँ तुझे सब बता दिया जाएगा।’\wj*
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||
\v 11 जब उस ज्योति के तेज के कारण मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपने साथियों के हाथ पकड़े हुए दमिश्क में आया।
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||
\p
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\v 12 “तब हनन्याह नाम का व्यवस्था के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहाँ के रहनेवाले सब यहूदियों में सुनाम था, मेरे पास आया,
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||
\v 13 और खड़ा होकर मुझसे कहा, ‘हे भाई शाऊल, फिर देखने लग।’ उसी घड़ी मेरी आँखें खुल गई और मैंने उसे देखा।
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||
\v 14 तब उसने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने तुझे इसलिए ठहराया है कि तू उसकी इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुँह से बातें सुने।
|
||
\v 15 क्योंकि तू उसकी ओर से सब मनुष्यों के सामने उन बातों का गवाह होगा, जो तूने देखी और सुनी हैं।
|
||
\v 16 अब क्यों देर करता है? उठ, बपतिस्मा ले, और \it उसका नाम लेकर\it*\f + \fr 22:16 \fq उसका नाम लेकर: \ft क्षमा और पवित्रीकरण के लिए।\f* अपने पापों को धो डाल।’ \bdit (योए. 2:32) \bdit*
|
||
\p
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||
\v 17 “जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्थना कर रहा था, तो बेसुध हो गया।
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||
\v 18 और उसको देखा कि मुझसे कहता है, \wj ‘जल्दी करके यरूशलेम से झट निकल जा; क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे।’\wj*
|
||
\v 19 मैंने कहा, ‘हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालों को बन्दीगृह में डालता और जगह-जगह आराधनालय में पिटवाता था।
|
||
\v 20 और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लहू बहाया जा रहा था तब भी मैं वहाँ खड़ा था, और इस बात में सहमत था, और उसके हत्यारों के कपड़ों की रखवाली करता था।’
|
||
\v 21 और उसने मुझसे कहा, \wj ‘चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियों के पास दूर-दूर भेजूँगा।’”\wj*
|
||
\p
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||
\v 22 वे इस बात तक उसकी सुनते रहे; तब ऊँचे शब्द से चिल्लाए, “ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहना उचित नहीं!”
|
||
\v 23 जब वे चिल्लाते और कपड़े फेंकते और \it आकाश में धूल उड़ाते थे\it*\f + \fr 22:23 \fq आकाश में धूल उड़ाते थे: \ft उनमें से सार्थक रूप में घृणा और आक्रोश। \f*;
|
||
\v 24 तो सैन्य-दल के सूबेदार ने कहा, “इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मारकर जाँचो, कि मैं जानूँ कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं।”
|
||
\v 25 जब उन्होंने उसे तसमों से बाँधा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो उसके पास खड़ा था कहा, “क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो?”
|
||
\v 26 सूबेदार ने यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार के पास जाकर कहा, “तू यह क्या करता है? यह तो रोमी मनुष्य है।”
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||
\v 27 तब सैन्य-दल के सरदार ने उसके पास आकर कहा, “मुझे बता, क्या तू रोमी है?” उसने कहा, “हाँ।”
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||
\v 28 यह सुनकर सैन्य-दल के सरदार ने कहा, “मैंने रोमी होने का पद बहुत रुपये देकर पाया है।” पौलुस ने कहा, “मैं तो जन्म से रोमी हूँ।”
|
||
\v 29 तब जो लोग उसे जाँचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और सैन्य-दल का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और उसने उसे बाँधा है, डर गया।
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||
\s महासभा के सामने पौलुस
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\p
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\v 30 दूसरे दिन वह ठीक-ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्यों दोष लगाते हैं, इसलिए उसके बन्धन खोल दिए; और प्रधान याजकों और सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उनके सामने खड़ा कर दिया।
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\c 23
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\p
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\v 1 पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, “हे भाइयों, मैंने आज तक परमेश्वर के लिये बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया है।”
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||
\v 2 हनन्याह महायाजक ने, उनको जो उसके पास खड़े थे, उसके मुँह पर थप्पड़ मारने की आज्ञा दी।
|
||
\v 3 तब पौलुस ने उससे कहा, “हे चूना फिरी हुई दीवार, परमेश्वर तुझे मारेगा। तू व्यवस्था के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्था के विरुद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है?” \bdit (लैव्य. 19:15, यहे. 13:10-15) \bdit*
|
||
\v 4 जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, “क्या तू परमेश्वर के महायाजक को बुरा-भला कहता है?”
|
||
\v 5 पौलुस ने कहा, “हे भाइयों, मैं नहीं जानता था, कि यह महायाजक है; क्योंकि लिखा है,
|
||
\q ‘अपने लोगों के प्रधान को बुरा न कह।’” \bdit (निर्ग. 22:28) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 6 तब पौलुस ने यह जानकर, कि एक दल सदूकियों और दूसरा फरीसियों का है, महासभा में पुकारकर कहा, “हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियों के वंश का हूँ, मरे हुओं की आशा और पुनरुत्थान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है।”
|
||
\v 7 जब उसने यह बात कही तो फरीसियों और सदूकियों में झगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई।
|
||
\v 8 क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा है; परन्तु फरीसी इन सब को मानते हैं।
|
||
\v 9 तब बड़ा हल्ला मचा और कुछ शास्त्री जो फरीसियों के दल के थे, उठकर यह कहकर झगड़ने लगे, “हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्मा या स्वर्गदूत उससे बोला है तो फिर क्या?”
|
||
\v 10 जब बहुत झगड़ा हुआ, तो सैन्य-दल के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर डालें, सैन्य-दल को आज्ञा दी कि उतरकर उसको उनके बीच में से जबरदस्ती निकालो, और गढ़ में ले आओ।
|
||
\p
|
||
\v 11 उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा, \wj “हे पौलुस, धैर्य रख; क्योंकि जैसी तूने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।”\wj*
|
||
\s पौलुस की हत्या का षड्यंत्र
|
||
\p
|
||
\v 12 जब दिन हुआ, तो यहूदियों ने एका किया, और शपथ खाई कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, यदि हम खाएँ या पीएँ तो हम पर धिक्कार।
|
||
\v 13 जिन्होंने यह शपथ खाई थी, वे चालीस जन से अधिक थे।
|
||
\v 14 उन्होंने प्रधान याजकों और प्राचीनों के पास आकर कहा, “हमने यह ठाना है कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ भी खाएँ, तो हम पर धिक्कार है।
|
||
\v 15 इसलिए अब महासभा समेत सैन्य-दल के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक से जाँच करना चाहते हो, और हम उसके पहुँचने से पहले ही उसे मार डालने के लिये तैयार रहेंगे।”
|
||
\p
|
||
\v 16 और पौलुस के भांजे ने सुना कि वे उसकी घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया।
|
||
\v 17 पौलुस ने सूबेदारों में से एक को अपने पास बुलाकर कहा, “इस जवान को सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाओ, यह उससे कुछ कहना चाहता है।”
|
||
\v 18 अतः उसने उसको सैन्य-दल के सरदार के पास ले जाकर कहा, “बन्दी पौलुस ने मुझे बुलाकर विनती की, कि यह जवान सैन्य-दल के सरदार से कुछ कहना चाहता है; इसे उसके पास ले जा।”
|
||
\v 19 सैन्य-दल के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और उसे अलग ले जाकर पूछा, “तू मुझसे क्या कहना चाहता है?”
|
||
\v 20 उसने कहा, “यहूदियों ने एका किया है, कि तुझ से विनती करें कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उसकी जाँच करना चाहता है।
|
||
\v 21 परन्तु उनकी मत मानना, क्योंकि उनमें से चालीस के ऊपर मनुष्य उसकी घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है कि जब तक वे पौलुस को मार न डालें, तब तक न खाएँगे और न पीएँगे, और अब वे तैयार हैं और तेरे वचन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
|
||
\v 22 तब सैन्य-दल के सरदार ने जवान को यह निर्देश देकर विदा किया, “किसी से न कहना कि तूने मुझ को ये बातें बताई हैं।”
|
||
\s पौलुस का कैसरिया को भेजा जाना
|
||
\p
|
||
\v 23 उसने तब दो सूबेदारों को बुलाकर कहा, “दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत को कैसरिया जाने के लिये तैयार कर रख, तू रात के तीसरे पहर को निकलना।
|
||
\v 24 और पौलुस की सवारी के लिये घोड़े तैयार रखो कि उसे \it फेलिक्स राज्यपाल\it*\f + \fr 23:24 \fq फेलिक्स राज्यपाल: \ft यहूदिया का हाकिम, उसका नाम अनतोलियाई फेलिक्स था।\f* के पास सुरक्षित पहुँचा दें।”
|
||
\v 25 उसने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी:
|
||
\p
|
||
\v 26 “महाप्रतापी फेलिक्स राज्यपाल को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार;
|
||
\v 27 इस मनुष्य को यहूदियों ने पकड़कर मार डालना चाहा, परन्तु जब मैंने जाना कि वो रोमी है, तो सैन्य-दल लेकर छुड़ा लाया।
|
||
\v 28 और मैं जानना चाहता था, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिए उसे उनकी महासभा में ले गया।
|
||
\v 29 तब मैंने जान लिया, कि वे अपनी व्यवस्था के विवादों के विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बाँधे जाने के योग्य उसमें कोई दोष नहीं।
|
||
\v 30 और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैंने तुरन्त उसको तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयों को भी आज्ञा दी, कि तेरे सामने उस पर आरोप लगाए।”
|
||
\p
|
||
\v 31 अतः जैसे सिपाहियों को आज्ञा दी गई थी, वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए।
|
||
\v 32 दूसरे दिन वे सवारों को उसके साथ जाने के लिये छोड़कर आप गढ़ को लौटे।
|
||
\v 33 उन्होंने कैसरिया में पहुँचकर राज्यपाल को चिट्ठी दी; और पौलुस को भी उसके सामने खड़ा किया।
|
||
\v 34 उसने पढ़कर पूछा, “यह किस प्रदेश का है?” और जब जान लिया कि किलिकिया का है;
|
||
\v 35 तो उससे कहा, “जब तेरे मुद्दई भी आएँगे, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूँगा।” और उसने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी।
|
||
\c 24
|
||
\s फेलिक्स के सामने पौलुस
|
||
\p
|
||
\v 1 पाँच दिन के बाद हनन्याह महायाजक कई प्राचीनों और तिरतुल्लुस नामक किसी वकील को साथ लेकर आया; उन्होंने राज्यपाल के सामने पौलुस पर दोषारोपण किया।
|
||
\v 2 जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उस पर दोष लगाकर कहने लगा, “हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिये कितनी बुराइयाँ सुधरती जाती हैं।
|
||
\p
|
||
\v 3 “इसको हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साथ मानते हैं।
|
||
\v 4 परन्तु इसलिए कि तुझे और दुःख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से विनती करता हूँ, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले।
|
||
\v 5 क्योंकि हमने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियों में बलवा करानेवाला, और नासरियों के कुपंथ का मुखिया पाया है।
|
||
\v 6 उसने \it मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा\it*\f + \fr 24:6 \fq मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा: \ft यह एक गंभीर, परन्तु निराधार आरोप था। \f*, और तब हमने उसे बन्दी बना लिया। [हमने उसे अपनी व्यवस्था के अनुसार दण्ड दिया होता;
|
||
\v 7 परन्तु सैन्य-दल के सरदार लूसियास ने आकर उसे बलपूर्वक हमारे हाथों से छीन लिया,
|
||
\v 8 और इस पर दोष लगाने वालों को तेरे सम्मुख आने की आज्ञा दी।] इन सब बातों को जिनके विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू स्वयं उसको जाँच करके जान लेगा।”
|
||
\v 9 यहूदियों ने भी उसका साथ देकर कहा, ये बातें इसी प्रकार की हैं।
|
||
\s फेलिक्स के सम्मुख पौलुस का प्रत्युत्तर
|
||
\p
|
||
\v 10 जब राज्यपाल ने पौलुस को बोलने के लिये संकेत किया तो उसने उत्तर दिया: “मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षों से इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूँ।,
|
||
\v 11 तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में आराधना करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए।
|
||
\v 12 उन्होंने मुझे न मन्दिर में, न आराधनालयों में, न नगर में किसी से विवाद करते या भीड़ लगाते पाया;
|
||
\v 13 और न तो वे उन बातों को, जिनके विषय में वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे सामने उन्हें सच प्रमाणित कर सकते हैं।
|
||
\v 14 परन्तु यह मैं तेरे सामने मान लेता हूँ, कि जिस पंथ को वे कुपंथ कहते हैं, उसी की रीति पर मैं \it अपने पूर्वजों के परमेश्वर\it*\f + \fr 24:14 \fq अपने पूर्वजों के परमेश्वर: \ft मेरे बापदादों के परमेश्वर, यहोवा; परमेश्वर जिसे मेरे यहूदी पूर्वज मानते है।\f* की सेवा करता हूँ; और जो बातें व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में लिखी हैं, उन सब पर विश्वास करता हूँ।
|
||
\v 15 और परमेश्वर से आशा रखता हूँ जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा। \bdit (दानि. 12:2) \bdit*
|
||
\v 16 इससे मैं आप भी यत्न करता हूँ, कि परमेश्वर की और मनुष्यों की ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे।
|
||
\v 17 बहुत वर्षों के बाद मैं अपने लोगों को दान पहुँचाने, और भेंट चढ़ाने आया था।
|
||
\v 18 उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में, बिना भीड़ के साथ, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया। परन्तु वहाँ आसिया के कुछ यहूदी थे - और उनको उचित था,
|
||
\v 19 कि यदि मेरे विरोध में उनकी कोई बात हो तो यहाँ तेरे सामने आकर मुझ पर दोष लगाते।
|
||
\v 20 या ये आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के सामने खड़ा था, तो उन्होंने मुझ में कौन सा अपराध पाया?
|
||
\v 21 इस एक बात को छोड़ जो मैंने उनके बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा था, ‘मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे सामने मुकद्दमा हो रहा है।’”
|
||
\v 22 फेलिक्स ने जो इस पंथ की बातें ठीक-ठीक जानता था, उन्हें यह कहकर टाल दिया, “जब सैन्य-दल का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूँगा।”
|
||
\v 23 और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को कुछ छूट में रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रों में से किसी को भी उसकी सेवा करने से न रोकना।
|
||
\s पौलुस की फेलिक्स और उसकी पत्नी से बातचीत
|
||
\p
|
||
\v 24 कुछ दिनों के बाद फेलिक्स अपनी पत्नी \it द्रुसिल्ला\it*\f + \fr 24:24 \fq द्रुसिल्ला: \ft द्रुसिल्ला हेरोदेस अग्रिप्पा की बेटी थी।\f* को, जो यहूदिनी थी, साथ लेकर आया और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जो मसीह यीशु पर है, उससे सुना।
|
||
\v 25 जब वह धार्मिकता और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था, तो फेलिक्स ने भयभीत होकर उत्तर दिया, “अभी तो जा; अवसर पाकर मैं तुझे फिर बुलाऊँगा।”
|
||
\v 26 उसे पौलुस से कुछ धन मिलने की भी आशा थी; इसलिए और भी बुला-बुलाकर उससे बातें किया करता था।
|
||
\v 27 परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरकियुस फेस्तुस, फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्दी ही छोड़ गया।
|
||
\c 25
|
||
\s फेस्तुस के सम्मुख
|
||
\p
|
||
\v 1 फेस्तुस उस प्रान्त में पहुँचकर तीन दिन के बाद कैसरिया से यरूशलेम को गया।
|
||
\v 2 तब प्रधान याजकों ने, और यहूदियों के प्रमुख लोगों ने, उसके सामने पौलुस पर दोषारोपण की;
|
||
\v 3 और उससे विनती करके उसके विरोध में यह चाहा कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की \it घात\it*\f + \fr 25:3 \fq घात: \ft यह वही है, वे मार्ग में प्रतिक्षा करेगा, या यात्रा में उनकी जान लेने के लिए वे हत्यारों के जत्थों के साथ होगा।\f* लगाए हुए थे।
|
||
\v 4 फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस कैसरिया में कैदी है, और मैं स्वयं जल्द वहाँ जाऊँगा।”
|
||
\v 5 फिर कहा, “तुम से जो अधिकार रखते हैं, वे साथ चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएँ।”
|
||
\p
|
||
\v 6 उनके बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस को लाने की आज्ञा दी।
|
||
\v 7 जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस-पास खड़े होकर उस पर बहुत से गम्भीर दोष लगाए, जिनका प्रमाण वे नहीं दे सकते थे।
|
||
\v 8 परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, “मैंने न तो यहूदियों की व्यवस्था के और न मन्दिर के, और न कैसर के विरुद्ध कोई अपराध किया है।”
|
||
\v 9 तब फेस्तुस ने यहूदियों को खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, “क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहाँ मेरे सामने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए?”
|
||
\s पौलुस का कैसर की दुहाई देना
|
||
\p
|
||
\v 10 पौलुस ने कहा, “मैं कैसर के न्याय आसन के सामने खड़ा हूँ; मेरे मुकद्दमे का यहीं फैसला होना चाहिए। जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियों का मैंने कुछ अपराध नहीं किया।
|
||
\v 11 यदि अपराधी हूँ और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है, तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातों का ये मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उनमें से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उनके हाथ नहीं सौंप सकता। मैं कैसर की दुहाई देता हूँ।”
|
||
\v 12 तब फेस्तुस ने मंत्रियों की सभा के साथ विचार करके उत्तर दिया, “तूने कैसर की दुहाई दी है, तो तू कैसर के पास ही जाएगा।”
|
||
\s अग्रिप्पा के सम्मुख पौलुस
|
||
\p
|
||
\v 13 कुछ दिन बीतने के बाद \it अग्रिप्पा राजा\it*\f + \fr 25:13 \fq अग्रिप्पा राजा: \ft यह अग्रिप्पा हेरोदेस अग्रिप्पा का पुत्र था प्रेरित 12:1, और हेरोदेस महान का प्रपौत्र था।\f* और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की।
|
||
\v 14 उनके बहुत दिन वहाँ रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस के विषय में राजा को बताया, “एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्दी छोड़ गया है।
|
||
\v 15 जब मैं यरूशलेम में था, तो प्रधान याजकों और यहूदियों के प्राचीनों ने उस पर दोषारोपण किया और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए।
|
||
\v 16 परन्तु मैंने उनको उत्तर दिया, कि रोमियों की यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिये सौंप दें, जब तक आरोपी को अपने दोष लगाने वालों के सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले।
|
||
\v 17 अतः जब वे यहाँ उपस्थित हुए, तो मैंने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी।
|
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\v 18 जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातों का दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता था।
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\v 19 परन्तु अपने मत के, और यीशु नामक किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया था, और पौलुस उसको जीवित बताता था, विवाद करते थे।
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\v 20 और मैं उलझन में था, कि इन बातों का पता कैसे लगाऊँ? इसलिए मैंने उससे पूछा, ‘क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहाँ इन बातों का फैसला हो?’
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\v 21 परन्तु जब पौलुस ने दुहाई दी, कि मेरे मुकद्दमे का फैसला महाराजाधिराज के यहाँ हो; तो मैंने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूँ, उसकी रखवाली की जाए।”
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\v 22 तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूँ।” उसने कहा, “तू कल सुन लेगा।”
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\p
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\v 23 अतः दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर सैन्य-दल के सरदारों और नगर के प्रमुख लोगों के साथ दरबार में पहुँचे। तब फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएँ।
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\v 24 फेस्तुस ने कहा, “हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्यों जो यहाँ हमारे साथ हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिसके विषय में सारे यहूदियों ने यरूशलेम में और यहाँ भी चिल्ला चिल्लाकर मुझसे विनती की, कि इसका जीवित रहना उचित नहीं।
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\v 25 परन्तु मैंने जान लिया कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जबकि उसने आप ही महाराजाधिराज की दुहाई दी, तो मैंने उसे भेजने का निर्णय किया।
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\v 26 परन्तु मैंने उसके विषय में \it कोई ठीक बात नहीं पाई कि महाराजाधिराज को लिखूँ\it*\f + \fr 25:26 \fq कोई ठीक बात नहीं पाई कि महाराजाधिराज को लिखूँ: \ft लिखने के लिए कुछ भी निश्चित और सुव्यवस्थित नहीं। वे रोमन कानून के विरुद्ध किसी भी अपराध में पौलुस को दोषी नहीं ठहरा पाए।\f*, इसलिए मैं उसे तुम्हारे सामने और विशेष करके हे राजा अग्रिप्पा तेरे सामने लाया हूँ, कि जाँचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले।
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\v 27 क्योंकि बन्दी को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्थ समझ पड़ता है।”
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\c 26
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\s अग्रिप्पा के सम्मुख स्पष्टीकरण
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\p
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\v 1 अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “तुझे अपने विषय में बोलने की अनुमति है।” तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा,
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\p
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\v 2 “हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ,
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\v 3 विशेष करके इसलिए कि तू \it यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है\it*\f + \fr 26:3 \fq यहूदियों के सब प्रथाओं और विवादों को जानता है: \ft संस्कार, सभाओं, व्यवस्था, आदि सब कुछ मूसा के अनुष्ठान से सम्बंधित, आदि\f*। अतः मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन ले।
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\p
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\v 4 “जैसा मेरा चाल-चलन आरम्भ से अपनी जाति के बीच और यरूशलेम में जैसा था, यह सब यहूदी जानते हैं।
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\v 5 वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपने धर्म के सबसे खरे पंथ के अनुसार चला।
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\v 6 और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों से की थी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है।
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\v 7 उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहों गोत्र अपने सारे मन से रात-दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं। हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं।
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\v 8 जबकि \it परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है\it*\f + \fr 26:8 \fq परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है: \ft यह क्यों बेतुका माना जाना चाहिए कि परमेश्वर, जो सभी के निर्माता हैं, फिर से मनुष्य को जीवन में पुनर्स्थापित करना चाहिए।\f*, तो तुम्हारे यहाँ यह बात क्यों विश्वास के योग्य नहीं समझी जाती?
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\p
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\v 9 “मैंने भी समझा था कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए।
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\v 10 और मैंने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और प्रधान याजकों से अधिकार पाकर बहुत से पवित्र लोगों को बन्दीगृह में डाला, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उनके विरोध में अपनी सम्मति देता था।
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\v 11 और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला-दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता था, यहाँ तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया कि बाहर के नगरों में भी जाकर उन्हें सताता था।
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\p
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\v 12 “इसी धुन में जब मैं प्रधान याजकों से अधिकार और आज्ञापत्र लेकर दमिश्क को जा रहा था;
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\v 13 तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैंने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति, अपने और अपने साथ चलनेवालों के चारों ओर चमकती हुई देखी।
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||
\v 14 और जब हम सब भूमि पर गिर पड़े, तो मैंने इब्रानी भाषा में, मुझसे कहते हुए यह वाणी सुनी, \wj ‘हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्यों सताता है? पैने पर लात मारना तेरे लिये कठिन है।’\wj*
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||
\v 15 मैंने कहा, ‘हे प्रभु, तू कौन है?’ प्रभु ने कहा, \wj ‘मैं यीशु हूँ, जिसे तू सताता है।\wj*
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||
\v 16 \wj परन्तु तू उठ, अपने पाँवों पर खड़ा हो; क्योंकि मैंने तुझे इसलिए दर्शन दिया है कि तुझे उन बातों का भी सेवक और गवाह ठहराऊँ, जो तूने देखी हैं, और उनका भी जिनके लिये मैं तुझे दर्शन दूँगा।\wj* \bdit (यहे. 2:1) \bdit*
|
||
\v 17 \wj और मैं तुझे तेरे लोगों से और अन्यजातियों से बचाता रहूँगा, जिनके पास मैं अब तुझे इसलिए भेजता हूँ।\wj* \bdit (1 इति. 16:35) \bdit*
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||
\v 18 \wj कि तू उनकी आँखें खोले, कि\wj* \it \+wj वे अंधकार से ज्योति की ओर\f + \fr 26:18 \fq वे अंधकार से ज्योति की ओर: \ft मूर्तिपूजा और पाप के अंधेरे से ज्योति और सुसमाचार की पवित्रता में।\f*\+wj*\it*\wj , और शैतान के अधिकार से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापों की क्षमा, और उन लोगों के साथ जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, विरासत पाएँ।’\wj* \bdit (व्यव. 33:3,4, यशा. 35:5,6, यशा. 42:7, यशा. 42:16, यशा. 61:1) \bdit*
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||
\p
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||
\v 19 अतः हे राजा अग्रिप्पा, मैंने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली,
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||
\v 20 परन्तु पहले दमिश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालों को, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियों को समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिरकर मन फिराव के योग्य काम करो।
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||
\v 21 इन बातों के कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़कर मार डालने का यत्न करते थे।
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||
\v 22 परन्तु परमेश्वर की सहायता से मैं आज तक बना हूँ और छोटे बड़े सभी के सामने गवाही देता हूँ, और उन बातों को छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं,
|
||
\v 23 कि मसीह को दुःख उठाना होगा, और वही सबसे पहले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगों में और अन्यजातियों में ज्योति का प्रचार करेगा।” \bdit (यशा. 42:6, यशा. 49:6) \bdit*
|
||
\p
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||
\v 24 जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा था, तो फेस्तुस ने ऊँचे शब्द से कहा, “हे पौलुस, तू पागल है। बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है।”
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||
\v 25 परन्तु उसने कहा, “हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूँ।
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||
\v 26 राजा भी जिसके सामने मैं निडर होकर बोल रहा हूँ, ये बातें जानता है, और मुझे विश्वास है, कि इन बातों में से कोई उससे छिपी नहीं, क्योंकि वह घटना तो कोने में नहीं हुई।
|
||
\v 27 हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं का विश्वास करता है? हाँ, मैं जानता हूँ, कि तू विश्वास करता है।”
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||
\v 28 अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू थोड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है?”
|
||
\v 29 पौलुस ने कहा, “परमेश्वर से मेरी प्रार्थना यह है कि क्या थोड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, मेरे इन बन्धनों को छोड़ वे मेरे समान हो जाएँ।”
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||
\p
|
||
\v 30 तब राजा और राज्यपाल और बिरनीके और उनके साथ बैठनेवाले उठ खड़े हुए;
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||
\v 31 और अलग जाकर आपस में कहने लगे, “यह मनुष्य \it ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु-दण्ड या बन्दीगृह में डाले जाने के योग्य हो\it*\f + \fr 26:31 \fq ऐसा तो कुछ नहीं करता, .... योग्य हो: \ft यह निष्कर्ष था जो यहूदियों के द्वारा उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप को सुनने के बाद आया था।\f*।
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||
\v 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि यह मनुष्य कैसर की दुहाई न देता, तो छूट सकता था।”
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\c 27
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\s पौलुस का रोम भेजा जाना
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\p
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\v 1 जब यह निश्चित हो गया कि हम जहाज द्वारा इतालिया जाएँ, तो उन्होंने पौलुस और कुछ अन्य बन्दियों को भी यूलियुस नामक औगुस्तुस की सैन्य-दल के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया।
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||
\v 2 \it अद्रमुत्तियुम\it*\f + \fr 27:2 \fq अद्रमुत्तियुम: \ft आसिया माइनर में मुसिया का एक समुद्री नगर।\f* के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहों में जाने पर था, चढ़कर हमने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नामक थिस्सलुनीके का एक मकिदुनी हमारे साथ था।
|
||
\v 3 दूसरे दिन हमने सीदोन में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रों के यहाँ जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए।
|
||
\v 4 वहाँ से जहाज खोलकर हवा विरुद्ध होने के कारण हम साइप्रस की आड़ में होकर चले;
|
||
\v 5 और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर \it लूसिया\it*\f + \fr 27:5 \fq लूसिया: \ft लूसिया आसिया माइनर के पश्चिमी हिस्से में एक प्रांत था।\f* के मूरा में उतरे।
|
||
\v 6 वहाँ सूबेदार को सिकन्दरिया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उसने हमें उस पर चढ़ा दिया।
|
||
\v 7 जब हम बहुत दिनों तक धीरे धीरे चलकर कठिनता से कनिदुस के सामने पहुँचे, तो इसलिए कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती थी, हम सलमोने के सामने से होकर क्रेते की आड़ में चले;
|
||
\v 8 और उसके किनारे-किनारे कठिनता से चलकर ‘शुभलंगरबारी’ नामक एक जगह पहुँचे, जहाँ से लसया नगर निकट था।
|
||
\s पौलुस की सलाह नज़रअंदाज़
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||
\p
|
||
\v 9 जब बहुत दिन बीत गए, और जलयात्रा में जोखिम इसलिए होती थी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर चेतावनी दी,
|
||
\v 10 “हे सज्जनों, मुझे ऐसा जान पड़ता है कि इस यात्रा में विपत्ति और बहुत हानि, न केवल माल और जहाज की वरन् हमारे प्राणों की भी होनेवाली है।”
|
||
\v 11 परन्तु सूबेदार ने कप्तान और जहाज के स्वामी की बातों को पौलुस की बातों से बढ़कर माना।
|
||
\v 12 वह बन्दरगाह जाड़ा काटने के लिये अच्छा न था; इसलिए बहुतों का विचार हुआ कि वहाँ से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके तो \it फीनिक्स\it*\f + \fr 27:12 \fq फीनिक्स: \ft यह एक बन्दरगाह या क्रेते के दक्षिण की ओर टिकने का एक स्थान था\f* में पहुँचकर जाड़ा काटें। यह तो क्रेते का एक बन्दरगाह है जो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम की ओर खुलता है।
|
||
\s समुद्र में तूफान
|
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\p
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||
\v 13 जब दक्षिणी हवा बहने लगी, तो उन्होंने सोचा कि उन्हें जिसकी जरूरत थी वह उनके पास थी, इसलिए लंगर उठाया और किनारे के किनारे, समुद्र तट के पास चल दिए।
|
||
\v 14 परन्तु थोड़ी देर में जमीन की ओर से एक बड़ी आँधी उठी, जो ‘यूरकुलीन’ कहलाती है।
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||
\v 15 जब आँधी जहाज पर लगी, तब वह हवा के सामने ठहर न सका, अतः हमने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए।
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||
\v 16 तब \it कौदा\it*\f + \fr 27:16 \fq कौदा: \ft यह एक छोटा सा द्वीप करीब 20 मील क्रेते के दक्षिण-पश्चिम में है।\f* नामक एक छोटे से टापू की आड़ में बहते-बहते हम कठिनता से डोंगी को वश में कर सके।
|
||
\v 17 फिर मल्लाहों ने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बाँधा, और सुरतिस के रेत पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर बहते हुए चले गए।
|
||
\v 18 और जब हमने आँधी से बहुत हिचकोले और धक्के खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे;
|
||
\v 19 और तीसरे दिन उन्होंने अपने हाथों से जहाज का साज-सामान भी फेंक दिया।
|
||
\v 20 और जब बहुत दिनों तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आँधी चल रही थी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही।
|
||
\p
|
||
\v 21 जब वे बहुत दिन तक भूखे रह चुके, तो पौलुस ने उनके बीच में खड़ा होकर कहा, “हे लोगों, चाहिए था कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह विपत्ति आती और न यह हानि उठाते।
|
||
\v 22 परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूँ कि ढाढ़स बाँधो, क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, पर केवल जहाज की।
|
||
\v 23 क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूँ, और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा,
|
||
\v 24 ‘हे पौलुस, मत डर! तुझे कैसर के सामने खड़ा होना अवश्य है। और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साथ यात्रा करते हैं, तुझे दिया है।’
|
||
\v 25 इसलिए, हे सज्जनों, ढाढ़स बाँधो; क्योंकि मैं परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, कि जैसा मुझसे कहा गया है, वैसा ही होगा।
|
||
\v 26 परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।”
|
||
\s जहाज का टूटना
|
||
\p
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||
\v 27 जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में भटक रहे थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहों ने अनुमान से जाना कि हम किसी देश के निकट पहुँच रहे हैं।
|
||
\v 28 थाह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और थोड़ा आगे बढ़कर फिर थाह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया।
|
||
\v 29 तब पत्थरीली जगहों पर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज के पीछे चार लंगर डाले, और भोर होने की कामना करते रहे।
|
||
\v 30 परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी;
|
||
\v 31 तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियों से कहा, “यदि ये जहाज पर न रहें, तो तुम भी नहीं बच सकते।”
|
||
\v 32 तब सिपाहियों ने रस्से काटकर डोंगी गिरा दी।
|
||
\p
|
||
\v 33 जब भोर होने पर था, तो पौलुस ने यह कहकर, सब को भोजन करने को समझाया, “आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते-देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया।
|
||
\v 34 इसलिए तुम्हें समझाता हूँ कि कुछ खा लो, जिससे तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर का एक बाल भी न गिरेगा।”
|
||
\v 35 और यह कहकर उसने रोटी लेकर सब के सामने परमेश्वर का धन्यवाद किया और तोड़कर खाने लगा।
|
||
\v 36 तब वे सब भी ढाढ़स बाँधकर भोजन करने लगे।
|
||
\v 37 हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे।
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||
\v 38 जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेहूँ को समुद्र में फेंककर जहाज हलका करने लगे।
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||
\p
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||
\v 39 जब दिन निकला, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिसका चौरस किनारा था, और विचार किया कि यदि हो सके तो इसी पर जहाज को टिकाएँ।
|
||
\v 40 तब उन्होंने लंगरों को खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारों के बन्धन खोल दिए, और हवा के सामने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले।
|
||
\v 41 परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो धक्का खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु जहाज का पीछला भाग लहरों के बल से टूटने लगा।
|
||
\v 42 तब सिपाहियों का यह विचार हुआ कि बन्दियों को मार डालें; ऐसा न हो कि कोई तैर कर निकल भागे।
|
||
\v 43 परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने की इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहले कूदकर किनारे पर निकल जाएँ।
|
||
\v 44 और बाकी कोई पटरों पर, और कोई जहाज की अन्य वस्तुओं के सहारे निकल जाएँ, इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले।
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\c 28
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\s माल्टा द्वीप में पौलुस का स्वागत
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\p
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\v 1 जब हम बच निकले, तो पता चला कि यह टापू \it माल्टा\it*\f + \fr 28:1 \fq माल्टा: \ft यह सिसिली के तट से लगभग 60 मील की दूरी पर है।\f* कहलाता है।
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||
\v 2 और वहाँ के निवासियों ने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा था और जाड़े के कारण, उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया।
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||
\v 3 जब पौलुस ने लकड़ियों का गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो \it एक साँप\it*\f + \fr 28:3 \fq एक साँप: \ft एक ज़हरीला साँप।\f* आँच पाकर निकला और उसके हाथ से लिपट गया।
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||
\v 4 जब उन निवासियों ने साँप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा, “सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तो भी न्याय ने जीवित रहने न दिया।”
|
||
\v 5 तब उसने साँप को आग में झटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुँची।
|
||
\v 6 परन्तु वे प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिरकर मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे और देखा कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा, “यह तो कोई देवता है।”
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||
\p
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||
\v 7 उस जगह के आस-पास पुबलियुस नामक उस टापू के प्रधान की भूमि थी: उसने हमें अपने घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की।
|
||
\v 8 पुबलियुस के पिता तेज बुखार और पेचिश से रोगी पड़ा था। अतः पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्थना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया।
|
||
\v 9 जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए।
|
||
\v 10 उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमारे लिये आवश्यक था, जहाज पर रख दिया।
|
||
\s माल्टा द्वीप से रोम की ओर
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||
\p
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||
\v 11 तीन महीने के बाद हम सिकन्दरिया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े काट रहा था, और जिसका चिन्ह दियुसकूरी था।
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||
\v 12 \it सुरकूसा\it*\f + \fr 28:12 \fq सुरकूसा: \ft यह पूर्वी तट पर सिसिली के द्वीप की राजधानी था।\f* में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे।
|
||
\v 13 वहाँ से हम घूमकर \it रेगियुम\it*\f + \fr 28:13 \fq रेगियुम: \ft यह नेपल्स के राज्य में इतालिया का एक नगर था। \f* में आए; और एक दिन के बाद दक्षिणी हवा चली, तब दूसरे दिन पुतियुली में आए।
|
||
\v 14 वहाँ हमको कुछ भाई मिले, और उनके कहने से हम उनके यहाँ सात दिन तक रहे; और इस रीति से हम रोम को चले।
|
||
\v 15 वहाँ से वे भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराय तक हमारी भेंट करने को निकल आए, जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बाँधा।
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||
\p
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||
\v 16 जब हम रोम में पहुँचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साथ जो उसकी रखवाली करता था, अकेले रहने की आज्ञा हुई।
|
||
\s पौलुस रोम में
|
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\p
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||
\v 17 तीन दिन के बाद उसने यहूदियों के प्रमुख लोगों को बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उनसे कहा, “हे भाइयों, मैंने अपने लोगों के या पूर्वजों की प्रथाओं के विरोध में कुछ भी नहीं किया, फिर भी बन्दी बनाकर यरूशलेम से रोमियों के हाथ सौंपा गया।
|
||
\v 18 उन्होंने मुझे जाँचकर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न था।
|
||
\v 19 परन्तु जब यहूदी इसके विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दुहाई देनी पड़ी; यह नहीं कि मुझे अपने लोगों पर कोई दोष लगाना था।
|
||
\v 20 इसलिए मैंने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूँ और बातचीत करूँ; क्योंकि इस्राएल की आशा के लिये मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूँ।”
|
||
\v 21 उन्होंने उससे कहा, “न हमने तेरे विषय में यहूदियों से चिट्ठियाँ पाईं, और न भाइयों में से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा।
|
||
\v 22 परन्तु तेरा विचार क्या है? वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें करते हैं।”
|
||
\p
|
||
\v 23 तब उन्होंने उसके लिये एक दिन ठहराया, और बहुत से लोग उसके यहाँ इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों से यीशु के विषय में समझा-समझाकर भोर से साँझ तक वर्णन करता रहा।
|
||
\v 24 तब कुछ ने उन बातों को मान लिया, और कुछ ने विश्वास न किया।
|
||
\v 25 जब वे आपस में एकमत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, “पवित्र आत्मा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे पूर्वजों से ठीक ही कहा,
|
||
\v 26 ‘जाकर इन लोगों से कह,
|
||
\q कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे,
|
||
\q और देखते तो रहोगे, परन्तु न बूझोगे;
|
||
\q
|
||
\v 27 क्योंकि इन लोगों का मन मोटा,
|
||
\q और उनके कान भारी हो गए हैं,
|
||
\q और उन्होंने अपनी आँखें बन्द की हैं,
|
||
\q ऐसा न हो कि वे कभी आँखों से देखें,
|
||
\q और कानों से सुनें,
|
||
\q और मन से समझें
|
||
\q और फिरें,
|
||
\q और मैं उन्हें चंगा करूँ।’ \bdit (यशा. 6:9,10) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 28 “अतः तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे।” \bdit (भज. 67:2, भज. 98:3, यशा. 40:5) \bdit*
|
||
\v 29 जब उसने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहाँ से चले गए।
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\v 30 और पौलुस पूरे दो वर्ष अपने किराये के घर में रहा,
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\v 31 और जो उसके पास आते थे, उन सबसे मिलता रहा और \it बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर\it*\f + \fr 28:31 \fq बिना रोक-टोक बहुत निडर होकर: \ft उन्हें बिना किसी रुकावट पहुँचाए, खुले आम और साहसपूर्वक।\f* परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।
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