1543 lines
383 KiB
Plaintext
1543 lines
383 KiB
Plaintext
\id DEU
|
||
\ide UTF-8
|
||
\rem Copyright Information: Creative Commons Attribution-ShareAlike 4.0 License
|
||
\h व्यवस्थाविवरण
|
||
\toc1 व्यवस्थाविवरण
|
||
\toc2 व्यवस्थाविवरण
|
||
\toc3 व्यव.
|
||
\mt व्यवस्थाविवरण
|
||
\is लेखक
|
||
\ip व्यवस्थाविवरण की पुस्तक मूसा ने लिखी थी जो वास्तव में इस्राएल को दिये गये मूसा के उपदेशों का संग्रह है। जब इस्राएल यरदन नदी पार करने पर था तब मूसा ने उन्हें शिक्षात्मक बातें कहीं थीं। “जो बातें मूसा ने यरदन के पास...सारे इस्राएल से कहीं वे ये हैं” (1:1) अन्तिम अध्याय का लेखक कोई और (सम्भवतः यहोशू) है। पुस्तक ही में अधिकांश विषयवस्तु मूसा के नाम है। (1:1,5; 31:24) व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में मूसा और इस्राएल मोआब की सीमाओं में हैं, यह वह स्थान है जहाँ यरदन नदी मृत सागर में गिरती है। (1:5) व्यवस्थाविवरण के मूल शब्द (ड्यूटरो नोमोस) का अर्थ है, “दूसरी व्यवस्था” यह परमेश्वर और उसकी प्रजा इस्राएल के मध्य वाचा का पुनरावलोकन है।
|
||
\is लेखन तिथि एवं स्थान
|
||
\ip लगभग 1446 - 1405 ई. पू.
|
||
\ip यह पुस्तक इस्राएल द्वारा प्रतिज्ञा के प्रदेश में प्रवेश से 40 दिन पूर्व के समय में लिखी गई थी।
|
||
\is प्रापक
|
||
\ip इस्राएल की नई पीढ़ी इस पुस्तक के मूल पाठक थे जो प्रतिज्ञा के प्रदेश में प्रवेश करने के लिए तैयार थी (उनके माता-पिता के मिस्र से पलायन के 40 वर्ष पश्चात की पीढ़ी) परन्तु यह पुस्तक आनेवाले सब बाइबल पाठकों के लिए भी है।
|
||
\is उद्देश्य
|
||
\ip व्यवस्थाविवरण की पुस्तक इस्राएल के लिए मूसा का विदाई भाषण है। इस्राएल प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश हेतु खड़ा है। मिस्र से निर्गमन के 40 वर्ष बाद इस्राएल कनान पर विजय प्राप्त करने के लिए यरदन नदी पार करने पर है। परन्तु मूसा प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश नहीं करेगा उसके स्वर्ग सिधारने का समय आ गया है।
|
||
\ip मूसा का विदाई भाषण में इस्राएल से एक भावनात्मक याचना है कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करें कि उस नये देश में उनके साथ सब मंगलमय हो (6:1-3,17-19)। इस भाषण में इस्राएल को स्मरण करवाया गया है कि उनका परमेश्वर कौन है (6:4) और उसने उनके लिए कैसे-कैसे काम किए हैं (6:10-12,20-23)। मूसा उनसे आग्रह करता है कि वे परमेश्वर की इन आज्ञाओं को आनेवाली पीढ़ियों में अवश्य पहुँचाएँ (6:6-9)।
|
||
\is मूल विषय
|
||
\ip आज्ञाकारिता
|
||
\iot रूपरेखा
|
||
\io1 1. मिस्र से इस्राएली यात्रा — 1:1-3:29
|
||
\io1 2. परमेश्वर के साथ इस्राएल से सम्बंध — 4:1-5:33
|
||
\io1 3. परमेश्वर के साथ स्वामिभक्ति का महत्त्व — 6:1-11:32
|
||
\io1 4. परमेश्वर से प्रेम कैसे करें और उसकी आज्ञाओं का पालन कैसे करें — 12:1-26:19
|
||
\io1 5. आशीषें और श्राप — 27:1-30:20
|
||
\io1 6. मूसा की मृत्यु — 31:1-34:12
|
||
\c 1
|
||
\s परिचय
|
||
\p
|
||
\v 1 जो बातें मूसा ने यरदन के पार जंगल में, अर्थात् सूफ के सामने के अराबा में, और पारान और तोपेल के बीच, और लाबान हसेरोत और दीजाहाब में, सारे इस्राएलियों से कहीं वे ये हैं।
|
||
\v 2 होरेब से कादेशबर्ने तक सेईर पहाड़ का मार्ग ग्यारह दिन का है।
|
||
\v 3 चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहले दिन को जो कुछ यहोवा ने मूसा को इस्राएलियों से कहने की आज्ञा दी थी, उसके अनुसार मूसा उनसे ये बातें कहने लगा।
|
||
\v 4 अर्थात् जब मूसा ने एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन और बाशान के राजा अश्तारोतवासी ओग को एद्रेई में मार डाला,
|
||
\v 5 उसके बाद यरदन के पार \it मोआब देश में\f + \fr 1:5 \fq मोआब देश में: \ft यह क्षेत्र पहले मोआबियों का था और उन्हीं के नाम से इसका भी नाम पड़ा परन्तु अम्मोरियों ने इसे जीत लिया था। \f*\it* वह व्यवस्था का विवरण ऐसे करने लगा,
|
||
\s होरेब से प्रस्थान
|
||
\p
|
||
\v 6 “हमारे परमेश्वर यहोवा ने होरेब के पास हम से कहा था, ‘तुम लोगों को इस पहाड़ के पास रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं;
|
||
\v 7 इसलिए अब यहाँ से कूच करो, और एमोरियों के पहाड़ी देश को, और क्या अराबा में, क्या पहाड़ों में, क्या नीचे के देश में, क्या दक्षिण देश में, क्या समुद्र के किनारे, जितने लोग एमोरियों के पास रहते हैं उनके देश को, अर्थात् लबानोन पर्वत तक और फरात नामक महानद तक रहनेवाले कनानियों के देश को भी चले जाओ।
|
||
\v 8 सुनो, मैं उस देश को तुम्हारे सामने किए देता हूँ; जिस देश के विषय यहोवा ने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, तुम्हारे पितरों से शपथ खाकर कहा था कि मैं इसे तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंश को दूँगा, उसको अब जाकर अपने अधिकार में कर लो।’”
|
||
\s अगुओं और न्यायियों की नियुक्ति
|
||
\p
|
||
\v 9 “फिर उसी समय मैंने तुम से कहा, ‘मैं तुम्हारा भार अकेला नहीं उठा सकता;
|
||
\v 10 क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को यहाँ तक बढ़ाया है कि तुम गिनती में आज आकाश के तारों के समान हो गए हो। \bdit (इब्रा. 11:12) \bdit*
|
||
\v 11 तुम्हारे पितरों का परमेश्वर तुम को हजारगुणा और भी बढ़ाए, और अपने वचन के अनुसार तुम को आशीष भी देता रहे!
|
||
\v 12 परन्तु तुम्हारे झंझट, और भार, और झगड़ों को मैं अकेला कहाँ तक सह सकता हूँ।
|
||
\v 13 इसलिए तुम अपने-अपने गोत्र में से एक-एक बुद्धिमान और समझदार और प्रसिद्ध पुरुष चुन लो, और मैं उन्हें तुम पर मुखिया ठहराऊँगा।’
|
||
\v 14 इसके उत्तर में तुम ने मुझसे कहा, ‘जो कुछ तू हम से कहता है उसका करना अच्छा है।’
|
||
\v 15 इसलिए मैंने तुम्हारे गोत्रों के मुख्य पुरुषों को जो बुद्धिमान और प्रसिद्ध पुरुष थे चुनकर तुम पर मुखिया नियुक्त किया, अर्थात् हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस के ऊपर प्रधान और तुम्हारे गोत्रों के सरदार भी नियुक्त किए।
|
||
\v 16 और उस समय मैंने तुम्हारे न्यायियों को आज्ञा दी, ‘तुम अपने भाइयों के मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियों और परदेशियों के बीच भी धार्मिकता से न्याय किया करो। \bdit (यूह. 7:51) \bdit*
|
||
\v 17 न्याय करते समय किसी का पक्ष न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुँह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है; और जो मुकद्दमा तुम्हारे लिये कठिन हो, वह मेरे पास ले आना, और मैं उसे सुनूँगा।’ \bdit (याकू. 2:9) \bdit*
|
||
\v 18 और मैंने उसी समय तुम्हारे सारे कर्तव्य तुम को बता दिए।
|
||
\s कनान देश में भेदियों का भेजा जाना
|
||
\p
|
||
\v 19 “हम होरेब से कूच करके अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उस सारे बड़े और भयानक जंगल में होकर चले, जिसे तुम ने एमोरियों के पहाड़ी देश के मार्ग में देखा, और हम कादेशबर्ने तक आए।
|
||
\v 20 वहाँ मैंने तुम से कहा, ‘तुम एमोरियों के पहाड़ी देश तक आ गए हो जिसको हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है।
|
||
\v 21 देखो, उस देश को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सामने किए देता है, इसलिए अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस पर चढ़ो, और उसे अपने अधिकार में ले लो; न तो तुम डरो और न तुम्हारा मन कच्चा हो।’
|
||
\v 22 और तुम सब मेरे पास आकर कहने लगे, ‘हम अपने आगे पुरुषों को भेज देंगे, जो उस देश का पता लगाकर हमको यह सन्देश दें, कि कौन से मार्ग से होकर चलना होगा और किस-किस नगर में प्रवेश करना पड़ेगा?’
|
||
\v 23 इस बात से प्रसन्न होकर मैंने तुम में से बारह पुरुष, अर्थात् हर गोत्र में से एक पुरुष चुन लिया;
|
||
\v 24 और वे पहाड़ पर चढ़ गए, और एशकोल नामक नाले को पहुँचकर उस देश का भेद लिया।
|
||
\v 25 और उस देश के फलों में से कुछ हाथ में लेकर हमारे पास आए, और हमको यह सन्देश दिया, ‘जो देश हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है वह अच्छा है।’
|
||
\p
|
||
\v 26 “तो भी तुम ने वहाँ जाने से मना किया, किन्तु अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरुद्ध होकर
|
||
\v 27 अपने-अपने डेरे में यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, ‘यहोवा हम से बैर रखता है, इस कारण हमको मिस्र देश से निकाल ले आया है, कि हमको एमोरियों के वश में करके हमारा सत्यानाश कर डाले।
|
||
\v 28 हम किधर जाएँ? हमारे भाइयों ने यह कहकर हमारे मन को कच्चा कर दिया है कि वहाँ के लोग हम से बड़े और लम्बे हैं; और वहाँ के नगर बड़े-बड़े हैं, और उनकी शहरपनाह आकाश से बातें करती हैं; और हमने वहाँ अनाकवंशियों को भी देखा है।’
|
||
\v 29 मैंने तुम से कहा, ‘उनके कारण भय मत खाओ और न डरो।
|
||
\v 30 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे-आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उसने मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारे लिये किया;
|
||
\v 31 फिर तुम ने जंगल में भी देखा कि जिस रीति कोई पुरुष अपने लड़के को उठाए चलता है, उसी रीति हमारा परमेश्वर यहोवा हमको इस स्थान पर पहुँचने तक, उस सारे मार्ग में जिससे हम आए हैं, उठाए रहा।’ \bdit (प्रेरि. 13:18) \bdit*
|
||
\v 32 इस बात पर भी तुम ने अपने उस परमेश्वर यहोवा पर विश्वास नहीं किया,
|
||
\v 33 जो तुम्हारे आगे-आगे इसलिए चलता रहा कि डेरे डालने का स्थान तुम्हारे लिये ढूँढ़े, और रात को आग में और दिन को बादल में प्रगट होकर चला, ताकि तुम को वह मार्ग दिखाए जिससे तुम चलो।
|
||
\s इस्राएल को दण्ड मिलना
|
||
\p
|
||
\v 34 “परन्तु तुम्हारी वे बातें सुनकर यहोवा का कोप भड़क उठा, और उसने यह शपथ खाई,
|
||
\v 35 ‘निश्चय इस बुरी पीढ़ी के मनुष्यों में से एक भी उस अच्छे देश को देखने न पाएगा, जिसे मैंने उनके पितरों को देने की शपथ खाई थी।
|
||
\v 36 केवल यपुन्ने का पुत्र कालेब ही उसे देखने पाएगा, और जिस भूमि पर उसके पाँव पड़े हैं उसे मैं उसको और उसके वंश को भी दूँगा; क्योंकि वह मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिया है।’
|
||
\v 37 और मुझ पर भी यहोवा तुम्हारे कारण क्रोधित हुआ, और यह कहा, ‘तू भी वहाँ जाने न पाएगा;
|
||
\v 38 नून का पुत्र यहोशू जो तेरे सामने खड़ा रहता है, वह तो वहाँ जाने पाएगा; इसलिए तू उसको हियाव दे, क्योंकि उस देश को इस्राएलियों के अधिकार में वही कर देगा।
|
||
\v 39 फिर तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके विषय में तुम कहते हो कि ये लूट में चले जाएँगे, और तुम्हारे जो बच्चे अभी भले बुरे का भेद नहीं जानते, वे वहाँ प्रवेश करेंगे, और उनको मैं वह देश दूँगा, और वे उसके अधिकारी होंगे।
|
||
\v 40 परन्तु तुम लोग घूमकर कूच करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल की ओर जाओ।’
|
||
\p
|
||
\v 41 “तब तुम ने मुझसे कहा, ‘हमने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है; अब हम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार चढ़ाई करेंगे और लड़ेंगे।’ तब तुम अपने-अपने हथियार बाँधकर पहाड़ पर बिना सोचे समझे चढ़ने को तैयार हो गए।
|
||
\v 42 तब यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उनसे कह दे कि तुम मत चढ़ो, और न लड़ो; क्योंकि मैं तुम्हारे मध्य में नहीं हूँ; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपने शत्रुओं से हार जाओ।’
|
||
\v 43 यह बात मैंने तुम से कह दी, परन्तु तुम ने न मानी; किन्तु ढिठाई से यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके पहाड़ पर चढ़ गए।
|
||
\v 44 तब उस पहाड़ के निवासी एमोरियों ने तुम्हारा सामना करने को निकलकर मधुमक्खियों के समान तुम्हारा पीछा किया, और सेईर देश के होर्मा तक तुम्हें मारते-मारते चले आए।
|
||
\v 45 तब तुम लौटकर यहोवा के सामने रोने लगे; परन्तु यहोवा ने तुम्हारी न सुनी, न तुम्हारी बातों पर कान लगाया।
|
||
\v 46 और तुम कादेश में बहुत दिनों तक रहे, यहाँ तक कि एक युग हो गया।
|
||
\c 2
|
||
\s इस्राएलियों का जंगल में भटकना
|
||
\p
|
||
\v 1 “तब उस आज्ञा के अनुसार, जो यहोवा ने मुझ को दी थी, हमने घूमकर कूच किया, और लाल समुद्र के मार्ग के जंगल की ओर गए; और बहुत दिन तक सेईर पहाड़ के बाहर-बाहर चलते रहे।
|
||
\v 2 तब यहोवा ने मुझसे कहा,
|
||
\v 3 ‘तुम लोगों को इस पहाड़ के बाहर-बाहर चलते हुए बहुत दिन बीत गए, अब घूमकर उत्तर की ओर चलो।
|
||
\v 4 और तू प्रजा के लोगों को मेरी यह आज्ञा सुना, कि तुम सेईर के निवासी अपने भाई एसावियों की सीमा के पास होकर जाने पर हो; और वे तुम से डर जाएँगे। इसलिए तुम बहुत चौकस रहो;
|
||
\v 5 उनसे लड़ाई न छेड़ना; क्योंकि उनके देश में से मैं तुम्हें पाँव रखने की जगह तक न दूँगा, इस कारण कि \it मैंने सेईर पर्वत एसावियों के अधिकार में कर दिया है\f + \fr 2:5 \fq मैंने सेईर पर्वत एसावियों के अधिकार में कर दिया है: \ft यद्यपि एसाववंशियों को दाऊद ने जीत लिया था (2 शमू. 8:14), उन्हें देश से बाहर नहीं किया गया था परन्तु यहोशापात के राज्यकाल में उन्होंने अपनी स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी (2 राजा. 8:20-22) \f*\it*। \bdit (प्रेरि. 7:5) \bdit*
|
||
\v 6 तुम उनसे भोजन रुपये से मोल लेकर खा सकोगे, और रुपया देकर कुओं से पानी भरकर पी सकोगे।
|
||
\v 7 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हाथों के सब कामों के विषय तुम्हें आशीष देता आया है; इस भारी जंगल में तुम्हारा चलना फिरना वह जानता है; इन चालीस वर्षों में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग-संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई।’
|
||
\v 8 अतः हम सेईर निवासी अपने भाई एसावियों के पास से होकर, अराबा के मार्ग, और एलत और एस्योनगेबेर को पीछे छोड़कर चले। “फिर हम मुड़कर मोआब के जंगल के मार्ग से होकर चले।
|
||
\p
|
||
\v 9 और यहोवा ने मुझसे कहा, ‘मोआबियों को न सताना और न लड़ाई छेड़ना, क्योंकि मैं उनके देश में से कुछ भी तेरे अधिकार में न कर दूँगा क्योंकि मैंने आर को लूत के वंशजों के अधिकार में किया है।
|
||
\v 10 (पुराने दिनों में वहाँ एमी लोग बसे हुए थे, जो अनाकियों के समान बलवन्त और लम्बे-लम्बे और गिनती में बहुत थे;
|
||
\v 11 और अनाकियों के समान वे भी रपाई गिने जाते थे, परन्तु मोआबी उन्हें एमी कहते हैं।
|
||
\v 12 और पुराने दिनों में सेईर में होरी लोग बसे हुए थे, परन्तु एसावियों ने उनको उस देश से निकाल दिया, और अपने सामने से नाश करके उनके स्थान पर आप बस गए; जैसे कि इस्राएलियों ने यहोवा के दिए हुए अपने अधिकार के देश में किया।)
|
||
\v 13 अब तुम लोग कूच करके जेरेद नदी के पार जाओ।’ तब हम जेरेद नदी के पार आए।
|
||
\v 14 और हमारे कादेशबर्ने को छोड़ने से लेकर जेरेद नदी पार होने तक अड़तीस वर्ष बीत गए, उस बीच में यहोवा की शपथ के अनुसार उस पीढ़ी के सब योद्धा छावनी में से नाश हो गए।
|
||
\v 15 और जब तक वे नाश न हुए तब तक यहोवा का हाथ उन्हें छावनी में से मिटा डालने के लिये उनके विरुद्ध बढ़ा ही रहा।
|
||
\p
|
||
\v 16 “जब सब योद्धा मरते-मरते लोगों के बीच में से नाश हो गए,
|
||
\v 17 तब यहोवा ने मुझसे कहा,
|
||
\v 18 ‘अब मोआब की सीमा, अर्थात् आर को पार कर;
|
||
\v 19 और जब तू अम्मोनियों के सामने जाकर उनके निकट पहुँचे, तब उनको न सताना और न छेड़ना, क्योंकि मैं अम्मोनियों के देश में से कुछ भी तेरे अधिकार में न करूँगा, क्योंकि मैंने उसे लूत के वंशजों के अधिकार में कर दिया है।
|
||
\v 20 (वह देश भी रपाइयों का गिना जाता था, क्योंकि पुराने दिनों में रपाई, जिन्हें अम्मोनी \it जमजुम्मी\f + \fr 2:20 \fq जमजुम्मी: \ft यह विशालकाय मनुष्यों की एक जाति थी जिसे उत्प.14:5 में रापाई: कहा गया है। \f*\it* कहते थे, वे वहाँ रहते थे;
|
||
\v 21 वे भी अनाकियों के समान बलवान और लम्बे-लम्बे और गिनती में बहुत थे; परन्तु यहोवा ने उनको अम्मोनियों के सामने से नाश कर डाला, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और उनके स्थान पर आप रहने लगे;
|
||
\v 22 जैसे कि उसने सेईर के निवासी एसावियों के सामने से होरियों को नाश किया, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और आज तक उनके स्थान पर वे आप निवास करते हैं।
|
||
\v 23 वैसा ही अव्वियों को, जो गाज़ा नगर तक गाँवों में बसे हुए थे, उनको कप्तोरियों ने जो कप्तोर से निकले थे नाश किया, और उनके स्थान पर आप रहने लगे।)
|
||
\v 24 अब तुम लोग उठकर कूच करो, और अर्नोन के नाले के पार चलो: सुन, मैं देश समेत हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन को तेरे हाथ में कर देता हूँ; इसलिए उस देश को अपने अधिकार में लेना आरम्भ करो, और उस राजा से युद्ध छेड़ दो।
|
||
\v 25 और जितने लोग धरती पर रहते हैं उन सभी के मन में मैं आज ही के दिन से तेरे कारण डर और थरथराहट समवाने लगूँगा; वे तेरा समाचार पाकर तेरे डर के मारे काँपेंगे और पीड़ित होंगे।’
|
||
\s राजा सीहोन की पराजय
|
||
\p
|
||
\v 26 “अतः मैंने \it कदेमोत\f + \fr 2:26 \fq कदेमोत: \ft यह वास्तव में दूरस्थ पूर्वी क्षेत्र: या जो रूबेन के गोत्र के नाम करके लेवियों को दिया गया था।\f*\it* नामक जंगल से हेशबोन के राजा सीहोन के पास मेल की ये बातें कहने को दूत भेजे:
|
||
\v 27 ‘मुझे अपने देश में से होकर जाने दे; मैं राजपथ पर से चला जाऊँगा, और दाएँ और बाएँ हाथ न मुड़ूँगा।
|
||
\v 28 तू रुपया लेकर मेरे हाथ भोजनवस्तु देना कि मैं खाऊँ, और पानी भी रुपया लेकर मुझ को देना कि मैं पीऊँ; केवल मुझे पाँव-पाँव चले जाने दे,
|
||
\v 29 जैसा सेईर के निवासी एसावियों ने और आर के निवासी मोआबियों ने मुझसे किया, वैसा ही तू भी मुझसे कर, इस रीति मैं यरदन पार होकर उस देश में पहुँचूँगा जो हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है।’
|
||
\v 30 परन्तु हेशबोन के राजा सीहोन ने हमको अपने देश में से होकर चलने न दिया; क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उसका चित्त कठोर और उसका मन हठीला कर दिया था, इसलिए कि उसको तुम्हारे हाथ में कर दे, जैसा कि आज प्रगट है।
|
||
\v 31 और यहोवा ने मुझसे कहा, ‘सुन, मैं देश समेत सीहोन को तेरे वश में कर देने पर हूँ; उस देश को अपने अधिकार में लेना आरम्भ कर।’
|
||
\v 32 तब सीहोन अपनी सारी सेना समेत निकल आया, और हमारा सामना करके युद्ध करने को यहस तक चढ़ आया।
|
||
\v 33 और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसको हमारे द्वारा हरा दिया, और हमने उसको पुत्रों और सारी सेना समेत मार डाला।
|
||
\v 34 और उसी समय हमने उसके सारे नगर ले लिए, और एक-एक बसे हुए नगर की स्त्रियों और बाल-बच्चों समेत यहाँ तक सत्यानाश किया कि कोई न छूटा;
|
||
\v 35 परन्तु पशुओं को हमने अपना कर लिया, और उन नगरों की लूट भी हमने ले ली जिनको हमने जीत लिया था।
|
||
\v 36 अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर नगर से लेकर, और उस नाले में के नगर से लेकर, गिलाद तक कोई नगर ऐसा ऊँचा न रहा जो हमारे सामने ठहर सकता था; क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सभी को हमारे वश में कर दिया।
|
||
\v 37 परन्तु हम अम्मोनियों के देश के निकट, वरन् यब्बोक नदी के उस पार जितना देश है, और पहाड़ी देश के नगर जहाँ जाने से हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमको मना किया था, वहाँ हम नहीं गए।
|
||
\c 3
|
||
\s बाशान के लोगों के साथ युद्ध
|
||
\p
|
||
\v 1 “तब हम मुड़कर बाशान के मार्ग से चढ़ चले; और बाशान का ओग नामक राजा अपनी सारी सेना समेत हमारा सामना करने को निकल आया, कि एद्रेई में युद्ध करे।
|
||
\v 2 तब यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उससे मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में किए देता हूँ; और जैसा तूने हेशबोन के निवासी एमोरियों के राजा सीहोन से किया है वैसा ही उससे भी करना।’
|
||
\v 3 इस प्रकार हमारे परमेश्वर यहोवा ने सारी सेना समेत बाशान के राजा ओग को भी हमारे हाथ में कर दिया; और हम उसको यहाँ तक मारते रहे कि उनमें से कोई भी न बच पाया।
|
||
\v 4 उसी समय हमने उनके सारे नगरों को ले लिया, कोई ऐसा नगर न रह गया जिसे हमने उनसे न ले लिया हो, इस रीति अर्गोब का सारा देश, जो बाशान में ओग के राज्य में था और उसमें साठ नगर थे, वह हमारे वश में आ गया।
|
||
\v 5 ये सब नगर गढ़वाले थे, और उनके ऊँची-ऊँची शहरपनाह, और फाटक, और बेड़े थे, और इनको छोड़ बिना शहरपनाह के भी बहुत से नगर थे।
|
||
\v 6 और जैसा हमने हेशबोन के राजा सीहोन के नगरों से किया था वैसा ही हमने इन नगरों से भी किया, अर्थात् सब बसे हुए नगरों को स्त्रियों और बाल-बच्चों समेत सत्यानाश कर डाला।
|
||
\v 7 परन्तु सब घरेलू पशु और नगरों की लूट हमने अपनी कर ली।
|
||
\v 8 इस प्रकार हमने उस समय यरदन के इस पार रहनेवाले एमोरियों के दोनों राजाओं के हाथ से अर्नोन के नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक का देश ले लिया।
|
||
\v 9 (हेर्मोन को सीदोनी लोग सिर्योन, और एमोरी लोग सनीर कहते हैं।)
|
||
\v 10 समथर देश के सब नगर, और सारा गिलाद, और सल्का, और एद्रेई तक जो ओग के राज्य के नगर थे, सारा बाशान हमारे वश में आ गया।
|
||
\v 11 जो रपाई रह गए थे, उनमें से केवल बाशान का राजा ओग रह गया था, उसकी चारपाई जो लोहे की है वह तो अम्मोनियों के रब्बाह नगर में पड़ी है, साधारण पुरुष के हाथ के हिसाब से उसकी लम्बाई नौ हाथ की और चौड़ाई चार हाथ की है।
|
||
\s यरदन नदी के पूर्व की भूमि
|
||
\p
|
||
\v 12 “जो देश हमने उस समय अपने अधिकार में ले लिया वह यह है, अर्थात् अर्नोन के नाले के किनारेवाले अरोएर नगर से लेकर सब नगरों समेत गिलाद के पहाड़ी देश का आधा भाग, जिसे मैंने रूबेनियों और गादियों को दे दिया,
|
||
\v 13 और गिलाद का बचा हुआ भाग, और सारा बाशान, अर्थात् अर्गोब का सारा देश जो ओग के राज्य में था, इन्हें मैंने मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया। (सारा बाशान तो रपाइयों का देश कहलाता है।
|
||
\v 14 और मनश्शेई याईर ने गशूरियों और माकावासियों की सीमा तक अर्गोब का सारा देश ले लिया, और बाशान के नगरों का नाम अपने नाम पर \it हब्बोत्याईर\f + \fr 3:14 \fq हब्बोत्याईर: \ft अर्थात् ‘याईर का निवास-स्थान’\f*\it* रखा, और वही नाम आज तक बना है।)
|
||
\v 15 और मैंने गिलाद देश माकीर को दे दिया,
|
||
\v 16 और रूबेनियों और गादियों को मैंने गिलाद से लेकर अर्नोन के नाले तक का देश दे दिया, अर्थात् उस नाले का बीच उनकी सीमा ठहराया, और यब्बोक नदी तक जो अम्मोनियों की सीमा है;
|
||
\v 17 और किन्नेरेत से लेकर पिसगा की ढलान के नीचे के अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, अराबा और यरदन की पूर्व की ओर का सारा देश भी मैंने उन्हीं को दे दिया।
|
||
\p
|
||
\v 18 “उस समय मैंने तुम्हें यह आज्ञा दी, ‘तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें यह देश दिया है कि उसे अपने अधिकार में रखो; तुम सब योद्धा हथियार-बन्द होकर अपने भाई इस्राएलियों के आगे-आगे पार चलो।
|
||
\v 19 परन्तु तुम्हारी स्त्रियाँ, और बाल-बच्चे, और पशु, जिन्हें मैं जानता हूँ कि बहुत से हैं, वह सब तुम्हारे नगरों में जो मैंने तुम्हें दिए हैं रह जाएँ।
|
||
\v 20 और जब यहोवा तुम्हारे भाइयों को वैसा विश्राम दे जैसा कि उसने तुम को दिया है, और वे उस देश के अधिकारी हो जाएँ जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें यरदन पार देता है; तब तुम भी अपने-अपने अधिकार की भूमि पर जो मैंने तुम्हें दी है लौटोगे।’
|
||
\v 21 फिर मैंने उसी समय यहोशू से चिताकर कहा, ‘तूने अपनी आँखों से देखा है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने इन दोनों राजाओं से क्या-क्या किया है; वैसा ही यहोवा उन सब राज्यों से करेगा जिनमें तू पार होकर जाएगा।
|
||
\v 22 उनसे न डरना; क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़नेवाला है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है।’
|
||
\s मूसा का कनान में प्रवेश निषेध
|
||
\p
|
||
\v 23 “उसी समय मैंने यहोवा से गिड़गिड़ाकर विनती की,
|
||
\v 24 ‘हे प्रभु यहोवा, तू अपने दास को अपनी महिमा और बलवन्त हाथ दिखाने लगा है; स्वर्ग में और पृथ्वी पर ऐसा कौन देवता है जो तेरे से काम और पराक्रम के कर्म कर सके?
|
||
\v 25 इसलिए मुझे पार जाने दे कि यरदन पार के उस उत्तम देश को, अर्थात् उस उत्तम पहाड़ और लबानोन को भी \it देखने पाऊँ\f + \fr 3:25 \fq देखने पाऊँ: \ft मूसा की प्रार्थना में उसकी एक मनोकामना थी कि वह परमेश्वर की आगे की भलाई एवं महिमा को देखे और जिस काम को आरम्भ करने की आज्ञा उसे दी गई थी उसे अधूरा छोड़ देने में वह संकोच कर रहा था। \f*\it*।’
|
||
\v 26 \it परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझसे रुष्ट हो गया\f + \fr 3:26 \fq परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझसे रुष्ट हो गया: \ft उन लोगों के पापों के कारण मूसा की प्रार्थना को अस्वीकार किया गया। \f*\it*, और मेरी न सुनी; किन्तु यहोवा ने मुझसे कहा, ‘बस कर; इस विषय में फिर कभी मुझसे बातें न करना।
|
||
\v 27 पिसगा पहाड़ की चोटी पर चढ़ जा, और पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, चारों ओर दृष्टि करके उस देश को देख ले; क्योंकि तू इस यरदन के पार जाने न पाएगा।
|
||
\v 28 और यहोशू को आज्ञा दे, और उसे ढाढ़स देकर दृढ़ कर; क्योंकि इन लोगों के आगे-आगे वही पार जाएगा, और जो देश तू देखेगा उसको वही उनका निज भाग करा देगा।’
|
||
\v 29 तब हम \it बेतपोर\f + \fr 3:29 \fq बेतपोर: \ft पोर का घर यह नाम नि:सन्देह, मोआबियों के देवता पोर के मन्दिर के कारण पड़ा था जो वहाँ था।\f*\it* के सामने की तराई में ठहरे रहे।
|
||
\c 4
|
||
\s मूसा का उपदेश
|
||
\p
|
||
\v 1 “अब, हे इस्राएल, जो-जो विधि और नियम मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूँ उन्हें सुन लो, और उन पर चलो; जिससे तुम जीवित रहो, और जो देश तुम्हारे पितरों का परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उसमें जाकर उसके अधिकारी हो जाओ।
|
||
\v 2 जो आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूँ उसमें न तो कुछ बढ़ाना, और न कुछ घटाना; तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की जो-जो आज्ञा मैं तुम्हें सुनाता हूँ उन्हें तुम मानना \bdit (प्रका. 22:18) \bdit*
|
||
\v 3 तुम ने तो अपनी आँखों से देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या-क्या किया; अर्थात् जितने मनुष्य बालपोर के पीछे हो लिये थे उन सभी को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला;
|
||
\v 4 परन्तु तुम जो अपने परमेश्वर यहोवा के साथ लिपटे रहे हो सब के सब आज तक जीवित हो।
|
||
\v 5 सुनो, मैंने तो अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार तुम्हें विधि और नियम सिखाए हैं, कि जिस देश के अधिकारी होने जाते हो उसमें तुम उनके अनुसार चलो।
|
||
\v 6 इसलिए तुम उनको धारण करना और मानना; क्योंकि और देशों के लोगों के सामने तुम्हारी बुद्धि और समझ इसी से प्रगट होगी, अर्थात् वे इन सब विधियों को सुनकर कहेंगे, कि निश्चय यह बड़ी जाति बुद्धिमान और समझदार है।
|
||
\v 7 देखो, कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसका देवता उसके ऐसे समीप रहता हो जैसा हमारा परमेश्वर यहोवा, जब भी हम उसको पुकारते हैं? \bdit (रोम. 3:2) \bdit*
|
||
\v 8 फिर कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्था जिसे मैं आज तुम्हारे सामने रखता हूँ?
|
||
\p
|
||
\v 9 “यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपने विषय में सचेत रहो, और अपने मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो-जो बातें तुम ने अपनी आँखों से देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिये तुम्हारे मन से जाती रहें; किन्तु तुम उन्हें अपने बेटों पोतों को सिखाना।
|
||
\v 10 विशेष करके उस दिन की बातें जिसमें तुम होरेब के पास अपने परमेश्वर यहोवा के सामने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझसे कहा था, ‘उन लोगों को मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपने वचन सुनाऊँ, जिससे वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृथ्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपने बाल-बच्चों को भी यही सिखाएँ।’
|
||
\v 11 तब तुम समीप जाकर उस पर्वत के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से धधक रहा था, और उसकी लौ आकाश तक पहुँचती थी, और उसके चारों ओर अंधियारा और बादल, और घोर अंधकार छाया हुआ था। \bdit (इब्रा. 12:18,19) \bdit*
|
||
\v 12 तब यहोवा ने उस आग के बीच में से तुम से बातें की; बातों का शब्द तो तुम को सुनाई पड़ा, परन्तु कोई रूप न देखा; केवल शब्द ही शब्द सुन पड़ा।
|
||
\v 13 और उसने तुम को अपनी वाचा के दसों वचन बताकर उनके मानने की आज्ञा दी; और उन्हें पत्थर की दो पटियाओं पर लिख दिया।
|
||
\v 14 और मुझ को यहोवा ने उसी समय तुम्हें विधि और नियम सिखाने की आज्ञा दी, इसलिए कि जिस देश के अधिकारी होने को तुम पार जाने पर हो उसमें तुम उनको माना करो।
|
||
\s मूर्तिपूजा के विरुद्ध चेतावनी
|
||
\p
|
||
\v 15 “इसलिए तुम अपने विषय में बहुत सावधान रहना। क्योंकि जब यहोवा ने तुम से होरेब पर्वत पर आग के बीच में से बातें की, तब तुम को कोई रूप न दिखाई पड़ा, \bdit (रोम. 1:23) \bdit*
|
||
\v 16 कहीं ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर चाहे पुरुष चाहे स्त्री के,
|
||
\v 17 चाहे पृथ्वी पर चलनेवाले किसी पशु, चाहे आकाश में उड़नेवाले किसी पक्षी के।
|
||
\p
|
||
\v 18 “चाहे भूमि पर रेंगनेवाले किसी जन्तु, चाहे पृथ्वी के जल में रहनेवाली किसी मछली के रूप की कोई मूर्ति खोदकर बना लो,
|
||
\v 19 या जब तुम आकाश की ओर आँखें उठाकर, सूर्य, चन्द्रमा, और तारों को, अर्थात् \it आकाश का सारा तारागण देखो\f + \fr 4:19 \fq आकाश का सारा तारागण देखो: \ft जिनका प्रकाश परमेश्वर ने सब जातियों के उपयोग एवं लाभ के लिये वितरित कर दिया था। अत: मनुष्य की सेवा के लिये स्थापित इन वस्तुओं को ईश्वर मानकर उनकी उपासना नहीं करनी थी।\f*\it*, तब बहक कर उन्हें दण्डवत् करके उनकी सेवा करने लगो, जिनको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने धरती पर के सब देशवालों के लिये रखा है।
|
||
\v 20 और तुम को यहोवा लोहे के भट्ठे के सरीखे मिस्र देश से निकाल ले आया है, इसलिए कि तुम उसका प्रजारूपी निज भाग ठहरो, जैसा आज प्रगट है।
|
||
\v 21 फिर तुम्हारे कारण यहोवा ने मुझसे क्रोध करके यह शपथ खाई, ‘तू यरदन पार जाने न पाएगा, और जो उत्तम देश इस्राएलियों का परमेश्वर यहोवा उन्हें उनका निज भाग करके देता है, उसमें तू प्रवेश करने न पाएगा।’
|
||
\v 22 किन्तु मुझे इसी देश में मरना है, मैं तो यरदन पार नहीं जा सकता; परन्तु तुम पार जाकर उस उत्तम देश के अधिकारी हो जाओगे।
|
||
\v 23 इसलिए अपने विषय में तुम सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम उस वाचा को भूलकर, जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम से बाँधी है, किसी और वस्तु की मूर्ति खोदकर बनाओ, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को मना किया है।
|
||
\v 24 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा भस्म करनेवाली आग है; वह जलन रखनेवाला परमेश्वर है। \bdit (इब्रा. 12:29) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 25 “यदि उस देश में रहते-रहते बहुत दिन बीत जाने पर, और अपने बेटे-पोते उत्पन्न होने पर, तुम बिगड़कर किसी वस्तु के रूप की मूर्ति खोदकर बनाओ, और इस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति बुराई करके उसे अप्रसन्न कर दो,
|
||
\v 26 तो मैं आज आकाश और पृथ्वी को तुम्हारे विरुद्ध साक्षी करके कहता हूँ, कि जिस देश के अधिकारी होने के लिये तुम यरदन पार जाने पर हो उसमें तुम जल्दी बिल्कुल नाश हो जाओगे; और बहुत दिन रहने न पाओगे, किन्तु पूरी रीति से नष्ट हो जाओगे।
|
||
\v 27 और यहोवा तुम को देश-देश के लोगों में तितर-बितर करेगा, और जिन जातियों के बीच यहोवा तुम को पहुँचाएगा उनमें तुम थोड़े ही से रह जाओगे।
|
||
\v 28 और वहाँ तुम मनुष्य के बनाए हुए लकड़ी और पत्थर के देवताओं की सेवा करोगे, जो न देखते, और न सुनते, और न खाते, और न सूँघते हैं।
|
||
\v 29 परन्तु वहाँ भी यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा को ढूँढ़ोगे, तो वह तुम को मिल जाएगा, शर्त यह है कि तुम अपने पूरे मन से और अपने सारे प्राण से उसे ढूँढ़ो।
|
||
\v 30 अन्त के दिनों में जब तुम संकट में पड़ो, और ये सब विपत्तियाँ तुम पर आ पड़ें, तब तुम अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो और उसकी मानना;
|
||
\v 31 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा दयालु परमेश्वर है, वह तुम को न तो छोड़ेगा और न नष्ट करेगा, और जो वाचा उसने तेरे पितरों से शपथ खाकर बाँधी है उसको नहीं भूलेगा।
|
||
\p
|
||
\v 32 “जब से परमेश्वर ने मनुष्य को उत्पन्न करके पृथ्वी पर रखा तब से लेकर तू अपने उत्पन्न होने के दिन तक की बातें पूछ, और आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक की बातें पूछ, क्या ऐसी बड़ी बात कभी हुई या सुनने में आई है?
|
||
\v 33 क्या कोई जाति कभी परमेश्वर की वाणी आग के बीच में से आती हुई सुनकर जीवित रही, जैसे कि तूने सुनी है?
|
||
\v 34 फिर क्या परमेश्वर ने और किसी जाति को दूसरी जाति के बीच से निकालने को कमर बाँधकर परीक्षा, और चिन्ह, और चमत्कार, और युद्ध, और बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा से ऐसे बड़े भयानक काम किए, जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने मिस्र में तुम्हारे देखते किए?
|
||
\v 35 यह सब तुझको दिखाया गया, इसलिए कि तू जान ले कि यहोवा ही परमेश्वर है; उसको छोड़ और कोई है ही नहीं।
|
||
\v 36 आकाश में से उसने तुझे अपनी वाणी सुनाई कि तुझे शिक्षा दे; और पृथ्वी पर उसने तुझे अपनी बड़ी आग दिखाई, और उसके वचन आग के बीच में से आते हुए तुझे सुनाई पड़े।
|
||
\v 37 और उसने जो तेरे पितरों से प्रेम रखा, इस कारण उनके पीछे उनके वंश को चुन लिया, और प्रत्यक्ष होकर तुझे अपने बड़े सामर्थ्य के द्वारा मिस्र से इसलिए निकाल लाया,
|
||
\v 38 कि तुझ से बड़ी और सामर्थी जातियों को तेरे आगे से निकालकर तुझे उनके देश में पहुँचाए, और उसे तेरा निज भाग कर दे, जैसा आज के दिन दिखाई पड़ता है;
|
||
\v 39 इसलिए आज जान ले, और अपने मन में सोच भी रख, कि ऊपर आकाश में और नीचे पृथ्वी पर यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। \bdit (1 कुरि. 8:4) \bdit*
|
||
\v 40 और तू उसकी विधियों और आज्ञाओं को जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ मानना, इसलिए कि तेरा और तेरे पीछे तेरे वंश का भी भला हो, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसमें तेरे दिन बहुत वरन् सदा के लिये हों।”
|
||
\s यरदन के पूर्व के शरणनगर
|
||
\p
|
||
\v 41 तब मूसा ने यरदन के पार पूर्व की ओर तीन नगर अलग किए,
|
||
\v 42 इसलिए कि जो कोई बिना जाने और बिना पहले से बैर रखे अपने किसी भाई को मार डाले, वह उनमें से किसी नगर में भाग जाए, और भागकर जीवित रहे
|
||
\v 43 अर्थात् रूबेनियों का बेसेर नगर जो जंगल के समथर देश में है, और गादियों के गिलाद का रामोत, और मनश्शेइयों के बाशान का गोलन।
|
||
\s परमेश्वर की व्यवस्था का परिचय
|
||
\p
|
||
\v 44 फिर जो व्यवस्था मूसा ने इस्राएलियों को दी वह यह है
|
||
\v 45 ये ही वे चेतावनियाँ और नियम हैं जिन्हें मूसा ने इस्राएलियों को उस समय कह सुनाया जब वे मिस्र से निकले थे,
|
||
\v 46 अर्थात् यरदन के पार बेतपोर के सामने की तराई में, एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन के देश में, जिस राजा को उन्होंने मिस्र से निकलने के बाद मारा।
|
||
\v 47 और उन्होंने उसके देश को, और बाशान के राजा ओग के देश को, अपने वश में कर लिया; यरदन के पार सूर्योदय की ओर रहनेवाले एमोरियों के राजाओं के ये देश थे।
|
||
\v 48 यह देश अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर से लेकर सिय्योन पर्वत, जो हेर्मोन भी कहलाता है,
|
||
\v 49 उस पर्वत तक का सारा देश, और पिसगा की ढलान के नीचे के अराबा के ताल तक, यरदन पार पूर्व की ओर का सारा अराबा है।
|
||
\c 5
|
||
\s दस आज्ञाएँ
|
||
\p
|
||
\v 1 मूसा ने सारे इस्राएलियों को बुलवाकर कहा, “हे इस्राएलियों, जो-जो विधि और नियम मैं आज तुम्हें सुनाता हूँ वे सुनो, इसलिए कि उन्हें सीखकर मानने में चौकसी करो।
|
||
\v 2 हमारे परमेश्वर यहोवा ने तो होरेब पर हम से वाचा बाँधी।
|
||
\v 3 इस वाचा को यहोवा ने \it हमारे पितरों से नहीं\f + \fr 5:3 \fq हमारे पितरों से नहीं: \ft पितरों अर्थात् अब्राहम, इसहाक और याकूब (व्यव. 4:37) नि:सन्देह परमेश्वर ने उनसे वाचा बाँधी थी पर वह वाचा नहीं जिसकी यहाँ चर्चा की गई है। सीनै पर्वत पर बाँधी गई इस वाचा के उत्तरदायित्व क्योंकि अब उस जाति को एक राष्ट्र बनाया गया था।\f*\it*, हम ही से बाँधा, जो यहाँ आज के दिन जीवित हैं।
|
||
\v 4 यहोवा ने उस पर्वत पर आग के बीच में से तुम लोगों से आमने-सामने बातें की; \bdit (प्रेरि. 7:38) \bdit*
|
||
\v 5 उस आग के डर के मारे तुम पर्वत पर न चढ़े, इसलिए मैं यहोवा के और तुम्हारे बीच उसका वचन तुम्हें बताने को खड़ा रहा। तब उसने कहा,
|
||
\p
|
||
\v 6 ‘तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूँ।
|
||
\li1
|
||
\v 7 ‘मुझे छोड़ दूसरों को परमेश्वर करके न मानना।
|
||
\li1
|
||
\v 8 ‘तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना जो आकाश में, या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल में है;
|
||
\v 9 तू उनको दण्डवत् न करना और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखनेवाला परमेश्वर हूँ, और जो मुझसे बैर रखते हैं उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को पितरों का दण्ड दिया करता हूँ,
|
||
\v 10 और जो मुझसे प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हजारों पर करुणा किया करता हूँ।
|
||
\li1
|
||
\v 11 ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उनको निर्दोष न ठहराएगा। \bdit (मत्ती 5:33) \bdit*
|
||
\li1
|
||
\v 12 ‘तू विश्रामदिन को मानकर पवित्र रखना, जैसे तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी। \bdit (मर. 2:27) \bdit*
|
||
\v 13 छः दिन तो परिश्रम करके अपना सारा काम-काज करना; \bdit (लूका 13:14) \bdit*
|
||
\v 14 परन्तु सातवाँ दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है; उसमें न तू किसी भाँति का काम-काज करना, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरा बैल, न तेरा गदहा, न तेरा कोई पशु, न कोई परदेशी भी जो तेरे फाटकों के भीतर हो; जिससे तेरा दास और तेरी दासी भी तेरे समान विश्राम करे। \bdit (मत्ती 12:2, लूका 23:56) \bdit*
|
||
\v 15 और इस बात को स्मरण रखना कि मिस्र देश में तू आप दास था, और वहाँ से तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा निकाल लाया; इस कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे विश्रामदिन मानने की आज्ञा देता है।
|
||
\li1
|
||
\v 16 ‘अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; जिससे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसमें तू बहुत दिन तक रहने पाए, और तेरा भला हो। \bdit (मत्ती 15:4, मर. 7:10, मर. 10:19, इफि. 6:2-3) \bdit*
|
||
\li1
|
||
\v 17 ‘तू खून न करना। \bdit (मत्ती 5:21, याकू. 2:11) \bdit*
|
||
\li1
|
||
\v 18 ‘तू व्यभिचार न करना। \bdit (मत्ती 5:27, याकू. 2:11, रोम. 7:7, रोम. 13:9) \bdit*
|
||
\li1
|
||
\v 19 ‘तू चोरी न करना।
|
||
\li1
|
||
\v 20 ‘तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना। \bdit (लूका 18:20) \bdit*
|
||
\li1
|
||
\v 21 ‘तू न किसी की पत्नी का लालच करना, और न किसी के घर का लालच करना, न उसके खेत का, न उसके दास का, न उसकी दासी का, न उसके बैल या गदहे का, न उसकी किसी और वस्तु का लालच करना।’
|
||
\v 22 यही वचन यहोवा ने उस पर्वत पर आग, और बादल, और घोर अंधकार के बीच में से तुम्हारी सारी मण्डली से पुकारकर कहा; और \it इससे अधिक और कुछ न कहा\f + \fr 5:22 \fq इससे अधिक और कुछ न कहा: \ft अब परमेश्वर ने अपनी भयानक वाणी में उनसे सीधा वार्तालाप नहीं किया, उसने अपने सब आदेश उन्हें मूसा के माध्यम से दिए।\f*\it*। और उन्हें उसने पत्थर की दो पटियाओं पर लिखकर मुझे दे दिया।
|
||
\s परमेश्वर के तेज से लोगों का भयभीत होना
|
||
\p
|
||
\v 23 “जब पर्वत आग से दहक रहा था, और तुम ने उस शब्द को अंधियारे के बीच में से आते सुना, तब तुम और तुम्हारे गोत्रों के सब मुख्य-मुख्य पुरुष और तुम्हारे पुरनिए मेरे पास आए; \bdit (इब्रा. 12:19) \bdit*
|
||
\v 24 और तुम कहने लगे, ‘हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमको अपना तेज और अपनी महिमा दिखाई है, और हमने उसका शब्द आग के बीच में से आते हुए सुना; आज हमने देख लिया कि यद्यपि परमेश्वर मनुष्य से बातें करता है तो भी मनुष्य जीवित रहता है। \bdit (निर्ग. 19:19) \bdit*
|
||
\v 25 अब हम क्यों मर जाएँ? क्योंकि ऐसी बड़ी आग से हम भस्म हो जाएँगे; और यदि हम अपने परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनें, तब तो मर ही जाएँगे। \bdit (इब्रा. 12:19) \bdit*
|
||
\v 26 क्योंकि सारे प्राणियों में से कौन ऐसा है जो हमारे समान जीवित और अग्नि के बीच में से बोलते हुए परमेश्वर का शब्द सुनकर जीवित बचा रहे? \bdit (व्यव. 4:33) \bdit*
|
||
\v 27 इसलिए तू समीप जा, और जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे सुन ले; फिर जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे हम से कहना; और हम उसे सुनेंगे और उसे मानेंगे।’
|
||
\s परमेश्वर का मूसा से बात करना
|
||
\p
|
||
\v 28 “जब तुम मुझसे ये बातें कह रहे थे तब यहोवा ने तुम्हारी बातें सुनीं; तब उसने मुझसे कहा, ‘इन लोगों ने जो-जो बातें तुझ से कही हैं मैंने सुनी हैं; इन्होंने जो कुछ कहा वह ठीक ही कहा।
|
||
\v 29 भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिससे उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे!
|
||
\v 30 इसलिए तू जाकर उनसे कह दे, कि अपने-अपने डेरों को लौट जाओ।
|
||
\v 31 परन्तु तू यहीं मेरे पास खड़ा रह, और मैं वे सारी आज्ञाएँ और विधियाँ और नियम जिन्हें तुझे उनको सिखाना होगा तुझ से कहूँगा, जिससे वे उन्हें उस देश में जिसका अधिकार मैं उन्हें देने पर हूँ मानें।’ \bdit (गला. 3:19) \bdit*
|
||
\v 32 इसलिए तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दाएँ मुड़ना और न बाएँ।
|
||
\v 33 जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिकारी होगे उसमें तुम बहुत दिनों के लिये बने रहो। \bdit (लूका 1:6) \bdit*
|
||
\c 6
|
||
\s महानतम् आज्ञा
|
||
\p
|
||
\v 1 “यह वह आज्ञा, और वे विधियाँ और नियम हैं जो तुम्हें सिखाने की तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने आज्ञा दी है, कि तुम उन्हें उस देश में मानो जिसके अधिकारी होने को पार जाने पर हो;
|
||
\v 2 और तू और तेरा बेटा और तेरा पोता परमेश्वर यहोवा का भय मानते हुए उसकी उन सब विधियों और आज्ञाओं पर, जो मैं तुझे सुनाता हूँ, अपने जीवन भर चलते रहें, जिससे तू बहुत दिन तक बना रहे।
|
||
\v 3 हे इस्राएल, सुन, और ऐसा ही करने की चौकसी कर; इसलिए कि तेरा भला हो, और तेरे पितरों के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार \it उस देश में\f + \fr 6:3 \fq उस देश में: \ft जैसा परमेश्वर ने उनके पितरों से प्रतिज्ञा की थी कि वह देश दूध और मधु का है। \f*\it* जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं तुम बहुत हो जाओ।
|
||
\p
|
||
\v 4 “हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; \bdit (मर. 12:29-33) \bdit*
|
||
\v 5 तू \it अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे प्राण, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना\f + \fr 6:5 \fq अपने परमेश्वर यहोवा से .... प्रेम रखना: \ft परमेश्वर एक ही है और वह इस्राएल का परमेश्वर है अत: इस्राएल परमेश्वर से संकोच रहित पूरे मन से प्रेम रखे। \f*\it*।; \bdit (मत्ती 22:37, लूका 10:27) \bdit*
|
||
\v 6 और ये आज्ञाएँ जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ वे तेरे मन में बनी रहें
|
||
\v 7 और तू इन्हें अपने बाल-बच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना। \bdit (इफि. 6:4) \bdit*
|
||
\v 8 और इन्हें अपने हाथ पर चिन्ह के रूप में बाँधना, और ये तेरी आँखों के बीच टीके का काम दें। \bdit (मत्ती 23:5) \bdit*
|
||
\v 9 और इन्हें अपने-अपने घर के चौखट की बाजुओं और अपने फाटकों पर लिखना।
|
||
\s आज्ञा उल्लंघन के विरुद्ध चेतावनी
|
||
\p
|
||
\v 10 “जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में पहुँचाए जिसके विषय में उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब नामक, तेरे पूर्वजों से तुझे देने की शपथ खाई, और जब वह तुझको \it बड़े-बड़े और अच्छे नगर, जो तूने नहीं बनाए\f + \fr 6:10 \fq बड़े-बड़े और अच्छे नगर, जो तूने नहीं बनाए: \ft अब इस्राएल साधारण जीवन का त्याग करके अन्यजातियों के मध्य स्थाई जीवन जीने जा रहा था और अब वे बड़े-बड़े और अच्छे नगर, घर और दाख की बारियों में जीवन निर्वाह करेंगे। \f*\it*,
|
||
\v 11 और अच्छे-अच्छे पदार्थों से भरे हुए घर, जो तूने नहीं भरे, और खुदे हुए कुएँ, जो तूने नहीं खोदे, और दाख की बारियाँ और जैतून के वृक्ष, जो तूने नहीं लगाए, ये सब वस्तुएँ जब वह दे, और तू खाके तृप्त हो,
|
||
\v 12 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू यहोवा को भूल जाए, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश से निकाल लाया है।
|
||
\v 13 अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना, और उसी के नाम की शपथ खाना। \bdit (मत्ती 4:10, लूका 4:8) \bdit*
|
||
\v 14 तुम पराए देवताओं के, अर्थात् अपने चारों ओर के देशों के लोगों के देवताओं के पीछे न हो लेना;
|
||
\v 15 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा जो तेरे बीच में है वह जलन रखनेवाला परमेश्वर है; कहीं ऐसा न हो कि तेरे परमेश्वर यहोवा का कोप तुझ पर भड़के, और वह तुझको पृथ्वी पर से नष्ट कर डाले।
|
||
\p
|
||
\v 16 “तुम अपने परमेश्वर यहोवा की परीक्षा न करना, जैसे कि तुम ने मस्सा में उसकी परीक्षा की थी। \bdit (मत्ती 4:7, लूका 4:12) \bdit*
|
||
\v 17 अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं, चेतावनियों, और विधियों को, जो उसने तुझको दी हैं, सावधानी से मानना।
|
||
\v 18 और जो काम यहोवा की दृष्टि में ठीक और सुहावना है वही किया करना, जिससे कि तेरा भला हो, और जिस उत्तम देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाई उसमें तू प्रवेश करके उसका अधिकारी हो जाए,
|
||
\v 19 कि तेरे सब शत्रु तेरे सामने से दूर कर दिए जाएँ, जैसा कि यहोवा ने कहा था।
|
||
\p
|
||
\v 20 “फिर आगे को जब तेरी सन्तान तुझ से पूछे, ‘ये चेतावनियाँ और विधि और नियम, जिनके मानने की आज्ञा हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है, इनका प्रयोजन क्या है?’ \bdit (इफि. 6:4) \bdit*
|
||
\v 21 तब अपनी सन्तान से कहना, ‘जब हम मिस्र में फ़िरौन के दास थे, तब यहोवा बलवन्त हाथ से हमको मिस्र में से निकाल ले आया;
|
||
\v 22 और यहोवा ने हमारे देखते मिस्र में फ़िरौन और उसके सारे घराने को दुःख देनेवाले बड़े-बड़े चिन्ह और चमत्कार दिखाए;
|
||
\v 23 और हमको वह वहाँ से निकाल लाया, इसलिए कि हमें इस देश में पहुँचाकर, जिसके विषय में उसने हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी, इसको हमें सौंप दे।
|
||
\v 24 और यहोवा ने हमें ये सब विधियाँ पालन करने की आज्ञा दी, इसलिए कि हम अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और इस रीति सदैव हमारा भला हो, और वह हमको जीवित रखे, जैसा कि आज के दिन है।
|
||
\v 25 और यदि हम अपने परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में उसकी आज्ञा के अनुसार इन सारे नियमों के मानने में चौकसी करें, तो \it यह हमारे लिये धार्मिकता ठहरेगा\f + \fr 6:25 \fq यह हमारे लिये धार्मिकता ठहरेगा: \ft आरम्भ ही से मूसा ने विधान के अनुसार न्यायोचित ठहरना पूर्णतः मन की अवस्था पर आधारित किया है अर्थात् विश्वास पर। \f*\it*।’
|
||
\c 7
|
||
\s प्रभु की चुनी हुई प्रजा
|
||
\p
|
||
\v 1 “फिर जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में जिसके अधिकारी होने को तू जाने पर है पहुँचाए, और तेरे सामने से हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी नामक, बहुत सी जातियों को अर्थात् तुम से बड़ी और सामर्थी सातों जातियों को निकाल दे, \bdit (प्रेरि. 13:19) \bdit*
|
||
\v 2 और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे द्वारा हरा दे, और तू उन पर जय प्राप्त कर ले; तब उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना; उनसे न वाचा बाँधना, और न उन पर दया करना।
|
||
\v 3 और न उनसे ब्याह शादी करना, न तो अपनी बेटी उनके बेटे को ब्याह देना, और न उनकी बेटी को अपने बेटे के लिये ब्याह लेना।
|
||
\v 4 क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएँगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएँगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तेरा शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा।
|
||
\v 5 उन लोगों से ऐसा बर्ताव करना, कि उनकी वेदियों को ढा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, उनकी अशेरा नामक मूर्तियों को काट काटकर गिरा देना, और उनकी खुदी हुई मूर्तियों को आग में जला देना।
|
||
\v 6 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा ने पृथ्वी भर के सब देशों के लोगों में से तुझको चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज भाग ठहरे।
|
||
\v 7 यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं था कि तुम गिनती में और सब देशों के लोगों से अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशों के लोगों से \it गिनती में थोड़े थे\f + \fr 7:7 \fq गिनती में थोड़े थे: \ft परमेश्वर ने जब इस्राएल को चुना था तब वह भाग एक ही परिवार था वरन् एक ही मनुष्य, अब्राहम था।\f*\it*;
|
||
\v 8 यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लाया, इसका यही कारण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपथ को भी पूरी करना चाहता है जो उसने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी।
|
||
\v 9 इसलिए जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, वह विश्वासयोग्य परमेश्वर है; जो उससे प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं उनके साथ वह हजार पीढ़ी तक अपनी वाचा का पालन करता, और उन पर करुणा करता रहता है;
|
||
\v 10 और जो उससे बैर रखते हैं, वह उनके देखते उनसे बदला लेकर नष्ट कर डालता है; अपने बैरी के विषय वह विलम्ब न करेगा, उसके देखते ही उससे बदला लेगा।
|
||
\v 11 इसलिए इन आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को, जो मैं आज तुझे चिताता हूँ, मानने में चौकसी करना।
|
||
\s आज्ञाकारिता की आशीषें
|
||
\p
|
||
\v 12 “और तुम जो इन नियमों को सुनकर मानोगे और इन पर चलोगे, तो तेरा परमेश्वर यहोवा भी उस करुणामय वाचा का पालन करेगा जिसे उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बाँधी थी;
|
||
\v 13 और वह तुझ से प्रेम रखेगा, और तुझे आशीष देगा, और गिनती में बढ़ाएगा; और जो देश उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर तुझे देने को कहा है उसमें वह तेरी सन्तान पर, और अन्न, नये दाखमधु, और टटके तेल आदि, भूमि की उपज पर आशीष दिया करेगा, और तेरी गाय-बैल और भेड़-बकरियों की बढ़ती करेगा।
|
||
\v 14 तू सब देशों के लोगों से अधिक धन्य होगा; तेरे बीच में न पुरुष न स्त्री निर्वंश होगी, और तेरे पशुओं में भी ऐसा कोई न होगा।
|
||
\v 15 और यहोवा तुझ से सब प्रकार के रोग दूर करेगा; और मिस्र की बुरी-बुरी व्याधियाँ जिन्हें तू जानता है उनमें से किसी को भी तुझे लगने न देगा, ये सब तेरे बैरियों ही को लगेंगे।
|
||
\v 16 और देश-देश के जितने लोगों को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे वश में कर देगा, तू उन सभी को सत्यानाश करना; उन पर तरस की दृष्टि न करना, और न उनके देवताओं की उपासना करना, नहीं तो तू फंदे में फँस जाएगा।
|
||
\p
|
||
\v 17 “यदि तू अपने मन में सोचे, कि वे जातियाँ जो मुझसे अधिक हैं; तो मैं उनको कैसे देश से निकाल सकूँगा?
|
||
\v 18 तो भी उनसे न डरना, जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने फ़िरौन से और सारे मिस्र से किया उसे भली भाँति स्मरण रखना।
|
||
\v 19 जो बड़े-बड़े परीक्षा के काम तूने अपनी आँखों से देखे, और जिन चिन्हों, और चमत्कारों, और जिस बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको निकाल लाया, उनके अनुसार तेरा परमेश्वर यहोवा उन सब लोगों से भी जिनसे तू डरता है करेगा।
|
||
\v 20 इससे अधिक तेरा परमेश्वर यहोवा उनके बीच बर्रे भी भेजेगा, यहाँ तक कि उनमें से जो बचकर छिप जाएँगे वे भी तेरे सामने से नाश हो जाएँगे।
|
||
\v 21 उनसे भय न खाना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, और वह महान और भययोग्य परमेश्वर है।
|
||
\v 22 तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को तेरे आगे से धीरे धीरे निकाल देगा; तो तू एकदम से उनका अन्त न कर सकेगा, नहीं तो जंगली पशु बढ़कर तेरी हानि करेंगे।
|
||
\v 23 तो भी तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तुझ से हरवा देगा, और जब तक वे सत्यानाश न हो जाएँ तब तक उनको अति व्याकुल करता रहेगा।
|
||
\v 24 और वह उनके राजाओं को तेरे हाथ में करेगा, और तू उनका भी नाम धरती पर से मिटा डालेगा; उनमें से कोई भी तेरे सामने खड़ा न रह सकेगा, और अन्त में तू उन्हें सत्यानाश कर डालेगा।
|
||
\v 25 उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्तियाँ तुम आग में जला देना; जो चाँदी या \it सोना उन पर मढ़ा हो उसका लालच करके न ले लेना\f + \fr 7:25 \fq सोना उन पर मढ़ा हो उसका लालच करके न ले लेना: \ft मूर्तियों पर चढ़ाया हुआ सोना चाँदी। \f*\it*, नहीं तो तू उसके कारण फंदे में फँसेगा; क्योंकि ऐसी वस्तुएँ तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।
|
||
\v 26 और कोई घृणित वस्तु अपने घर में न ले आना, नहीं तो तू भी उसके समान नष्ट हो जाने की वस्तु ठहरेगा; उसे सत्यानाश की वस्तु जानकर उससे घृणा करना और उसे कदापि न चाहना; क्योंकि वह अशुद्ध वस्तु है।
|
||
\c 8
|
||
\s परमेश्वर का स्मरण करना
|
||
\p
|
||
\v 1 “जो-जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूँ उन सभी पर चलने की चौकसी करना, इसलिए कि तुम जीवित रहो और बढ़ते रहो, और जिस देश के विषय में यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से शपथ खाई है उसमें जाकर उसके अधिकारी हो जाओ।
|
||
\v 2 और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिए ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या-क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा या नहीं।
|
||
\v 3 उसने तुझको नम्र बनाया, और भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखा भी जानते थे, वही तुझको खिलाया; इसलिए कि वह तुझको सिखाए कि \it मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो-जो वचन यहोवा के मुँह\f + \fr 8:3 \fq मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं .... वचन यहोवा के मुँह: \ft उन्हें यह शिक्षा दी गई कि मनुष्य मात्र प्रकृति के पोषण से नहीं, बल्कि उस प्रकृति के माध्यम से सृजनहार परमेश्वर के द्वारा जीवित रहता है। \f*\it* से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है। \bdit (मत्ती 4:4, लूका 4:4, 1 कुरि. 10:3) \bdit*
|
||
\v 4 इन चालीस वर्षों में तेरे वस्त्र पुराने न हुए, और तेरे तन से भी नहीं गिरे, और न तेरे पाँव फूले।
|
||
\v 5 फिर अपने मन में यह तो विचार कर, कि जैसा कोई अपने बेटे को ताड़ना देता है वैसे ही तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको ताड़ना देता है। \bdit (इब्रा. 12:7) \bdit*
|
||
\v 6 इसलिए अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके मार्गों पर चलना, और उसका भय मानते रहना।
|
||
\v 7 क्योंकि तेरा परमेश्वर \it यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिये जा रहा है\f + \fr 8:7 \fq यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिये जा रहा है: \ft प्रतिज्ञा देश की उर्वरता और उत्कृष्टता से इस्राएलियों को प्रोत्साहन मिला कि कनान वासियों के विरोध का सामना अधिक हर्ष के साथ करें। \f*\it*, जो जल की नदियों का, और तराइयों और पहाड़ों से निकले हुए गहरे-गहरे सोतों का देश है।
|
||
\v 8 फिर वह गेहूँ, जौ, दाखलताओं, अंजीरों, और अनारों का देश है; और तेलवाले जैतून और मधु का भी देश है।
|
||
\v 9 उस देश में अन्न की महँगी न होगी, और न उसमें तुझे किसी पदार्थ की घटी होगी; वहाँ के पत्थर लोहे के हैं, और वहाँ के पहाड़ों में से तू तांबा खोदकर निकाल सकेगा।
|
||
\v 10 और तू पेट भर खाएगा, और उस उत्तम देश के कारण जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देगा उसे धन्य मानेगा।
|
||
\s परमेश्वर के कार्यों को ना भूलना
|
||
\p
|
||
\v 11 “इसलिए सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो-जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूँ उनका मानना छोड़ दे;
|
||
\v 12 ऐसा न हो कि जब तू खाकर तृप्त हो, और अच्छे-अच्छे घर बनाकर उनमें रहने लगे,
|
||
\v 13 और तेरी गाय-बैलों और भेड़-बकरियों की बढ़ती हो, और तेरा सोना, चाँदी, और तेरा सब प्रकार का धन बढ़ जाए,
|
||
\v 14 तब तेरे मन में अहंकार समा जाए, और तू अपने परमेश्वर यहोवा को भूल जाए, जो तुझको दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश से निकाल लाया है,
|
||
\v 15 और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहाँ तेज विषवाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उसने तेरे लिये चकमक की चट्टान से जल निकाला,
|
||
\v 16 और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिए कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा करके \it अन्त में तेरा भला ही करे\f + \fr 8:16 \fq अन्त में तेरा भला ही करे: \ft यह परमेश्वर के व्यवहार का परिणाम था।\f*\it*।
|
||
\v 17 और कहीं ऐसा न हो कि तू सोचने लगे, कि यह सम्पत्ति मेरे ही सामर्थ्य और मेरे ही भुजबल से मुझे प्राप्त हुई।
|
||
\v 18 परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पत्ति प्राप्त करने की सामर्थ्य इसलिए देता है, कि जो वाचा उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बाँधी थी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है।
|
||
\v 19 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लेगा, और उनकी उपासना और उनको दण्डवत् करेगा, तो मैं आज तुम को चिता देता हूँ कि तुम निःसन्देह नष्ट हो जाओगे।
|
||
\v 20 जिन जातियों को यहोवा तुम्हारे सम्मुख से नष्ट करने पर है, उन्हीं के समान तुम भी अपने परमेश्वर यहोवा का वचन न मानने के कारण नष्ट हो जाओगे।
|
||
\c 9
|
||
\s इस्राएल की अनाज्ञाकारिता का वर्णन
|
||
\p
|
||
\v 1 “हे इस्राएल, सुन, आज तू यरदन पार इसलिए जानेवाला है, कि ऐसी जातियों को जो तुझ से बड़ी और सामर्थी हैं, और ऐसे बड़े नगरों को जिनकी शहरपनाह आकाश से बातें करती हैं, अपने अधिकार में ले ले।
|
||
\v 2 उनमें बड़े-बड़े और लम्बे-लम्बे लोग, अर्थात् अनाकवंशी रहते हैं, जिनका हाल तू जानता है, और उनके विषय में तूने यह सुना है, कि अनाकवंशियों के सामने कौन ठहर सकता है?
|
||
\v 3 इसलिए आज तू यह जान ले, कि जो तेरे आगे भस्म करनेवाली आग के समान पार जानेवाला है वह तेरा परमेश्वर यहोवा है; और वह उनका सत्यानाश करेगा, और वह उनको तेरे सामने दबा देगा; और तू यहोवा के वचन के अनुसार उनको उस देश से \it निकालकर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा\f + \fr 9:3 \fq निकालकर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा: \ft मूसा उन्हें प्रोत्साहित कर रहा है कि वे परमेश्वर की वाचा आधारित सहायता पर भरोसा रखें वह जिन जातियों पर आक्रमण करेंगे उन्हें नष्ट करने में यहोवा विलम्ब नहीं करेगा कि वे प्रतिज्ञा का आनन्द ले पाएँ और ऐसा करने में इस्राएल का कल्याण यथासंभव अति शीघ्र हो।\f*\it*। \bdit (इब्रा. 12:29) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 4 “जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे सामने से निकाल देगा तब यह न सोचना, कि यहोवा तेरी धार्मिकता के कारण तुझे इस देश का अधिकारी होने को ले आया है, किन्तु उन जातियों की दुष्टता ही के कारण यहोवा उनको तेरे सामने से निकालता है। \bdit (रोम. 10:6) \bdit*
|
||
\v 5 तू जो उनके देश का अधिकारी होने के लिये जा रहा है, इसका कारण तेरी धार्मिकता या मन की सिधाई नहीं है; तेरा परमेश्वर यहोवा जो उन जातियों को तेरे सामने से निकालता है, उसका कारण उनकी दुष्टता है, और यह भी कि जो वचन उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, अर्थात् तेरे पूर्वजों को शपथ खाकर दिया था, उसको वह पूरा करना चाहता है।
|
||
\p
|
||
\v 6 “इसलिए यह जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिकारी हो, उसे वह तेरी धार्मिकता के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है।
|
||
\v 7 इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तूने किस-किस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस दिन से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्थान पर न पहुँचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो।
|
||
\v 8 फिर होरेब के पास भी तुम ने यहोवा को क्रोधित किया, और वह क्रोधित होकर तुम्हें नष्ट करना चाहता था।
|
||
\v 9 जब मैं उस वाचा के पत्थर की पटियाओं को जो यहोवा ने तुम से बाँधी थी लेने के लिये पर्वत के ऊपर चढ़ गया, तब चालीस दिन और चालीस रात पर्वत ही के ऊपर रहा; और मैंने न तो रोटी खाई न पानी पिया।
|
||
\v 10 और यहोवा ने मुझे अपने ही हाथ की लिखी हुई पत्थर की दोनों पटियाओं को सौंप दिया, और वे ही वचन जिन्हें यहोवा ने पर्वत के ऊपर आग के मध्य में से सभा के दिन तुम से कहे थे वे सब उन पर लिखे हुए थे। \bdit (प्रेरि. 7:38, 2 कुरि. 3:3) \bdit*
|
||
\v 11 और चालीस दिन और चालीस रात के बीत जाने पर यहोवा ने पत्थर की वे दो वाचा की पटियाएँ मुझे दे दीं।
|
||
\v 12 और यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उठ, यहाँ से झटपट नीचे जा; क्योंकि तेरी प्रजा के लोग जिनको तू मिस्र से निकालकर ले आया है वे बिगड़ गए हैं; जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैंने उन्हें दी थी उसको उन्होंने झटपट छोड़ दिया है; अर्थात् उन्होंने तुरन्त अपने लिये एक मूर्ति ढालकर बना ली है।’
|
||
\p
|
||
\v 13 “फिर यहोवा ने मुझसे यह भी कहा, ‘मैंने उन लोगों को देख लिया, वे हठीली जाति के लोग हैं;
|
||
\v 14 इसलिए अब मुझे तू मत रोक, ताकि मैं उन्हें नष्ट कर डालूँ, और धरती के ऊपर से उनका नाम या चिन्ह तक मिटा डालूँ, और मैं उनसे बढ़कर एक बड़ी और सामर्थी जाति तुझी से उत्पन्न करूँगा।
|
||
\v 15 तब मैं उलटे पैर पर्वत से नीचे उतर चला, और पर्वत अग्नि से दहक रहा था और मेरे दोनों हाथों में वाचा की दोनों पटियाएँ थीं।
|
||
\v 16 और मैंने देखा कि तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध महापाप किया; और अपने लिये एक बछड़ा ढालकर बना लिया है, और तुरन्त उस मार्ग से जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम को दी थी उसको तुम ने तज दिया।
|
||
\v 17 तब मैंने उन दोनों पटियाओं को अपने दोनों हाथों से लेकर फेंक दिया, और तुम्हारी आँखों के सामने उनको तोड़ डाला।
|
||
\v 18 तब तुम्हारे उस महापाप के कारण जिसे करके तुम ने यहोवा की दृष्टि में बुराई की, और उसे रिस दिलाई थी, \it मैं यहोवा के सामने मुँह के बल गिर पड़ा\f + \fr 9:18 \fq मैं यहोवा के सामने मुँह के बल गिर पड़ा: \ft मूसा ने पर्वत पर 40 दिन उपवास के साथ प्रार्थना की कि वाचा की क्षतिपूर्ति पूरी हो जाए। यह 40 दिन की दूसरी उपवास प्रार्थना यहाँ विशेष रूप में उजागर की गई है। व्यव. 9:25-29 \f*\it*, और पहले के समान, अर्थात् चालीस दिन और चालीस रात तक, न तो रोटी खाई और न पानी पिया।
|
||
\v 19 मैं तो यहोवा के उस कोप और जलजलाहट से डर रहा था, क्योंकि वह तुम से अप्रसन्न होकर तुम्हारा सत्यानाश करने को था। परन्तु यहोवा ने उस बार भी मेरी सुन ली। \bdit (इब्रा. 12:21) \bdit*
|
||
\v 20 और यहोवा हारून से इतना कोपित हुआ कि उसका भी सत्यानाश करना चाहा; परन्तु उसी समय \it मैंने हारून के लिये भी प्रार्थना की\f + \fr 9:20 \fq मैंने हारून के लिये भी प्रार्थना की: \ft हारून को प्रधान पुरोहित के उत्तरदायित्वों के लिये नियुक्त किया जा चुका था परन्तु वह प्रजा के साथ चूक गया था। अत: केवल परमेश्वर के अनुग्रह और मूसा की मध्यस्थता के कारण ही हारून और उसका प्रतीक्षत पुरोहिताई नष्ट होने से बच गई। \f*\it*।
|
||
\v 21 और मैंने वह बछड़ा जिसे बनाकर तुम पापी हो गए थे लेकर, आग में डालकर फूँक दिया; और फिर उसे पीस-पीसकर ऐसा चूर चूरकर डाला कि वह धूल के समान जीर्ण हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में फेंक दिया जो पर्वत से निकलकर नीचे बहती थी।
|
||
\p
|
||
\v 22 “फिर तबेरा, और मस्सा, और किब्रोतहत्तावा में भी तुम ने यहोवा को रिस दिलाई थी।
|
||
\v 23 फिर जब यहोवा ने तुम को कादेशबर्ने से यह कहकर भेजा, ‘जाकर उस देश के जिसे मैंने तुम्हें दिया है अधिकारी हो जाओ,’ तब भी तुम ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरुद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात ही मानी।
|
||
\v 24 जिस दिन से मैं तुम्हें जानता हूँ उस दिन से तुम यहोवा से बलवा ही करते आए हो।
|
||
\p
|
||
\v 25 “मैं यहोवा के सामने चालीस दिन और चालीस रात मुँह के बल पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कह दिया था, कि वह तुम्हारा सत्यानाश करेगा।
|
||
\v 26 और मैंने यहोवा से यह प्रार्थना की, ‘हे प्रभु यहोवा, अपना प्रजारूपी निज भाग, जिनको तूने अपने महान प्रताप से छुड़ा लिया है, और जिनको तूने अपने बलवन्त हाथ से मिस्र से निकाल लिया है, उन्हें नष्ट न कर।
|
||
\v 27 अपने दास अब्राहम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर; और इन लोगों की हठ, और दुष्टता, और पाप पर दृष्टि न कर,
|
||
\v 28 जिससे ऐसा न हो कि जिस देश से तू हमको निकालकर ले आया है, वहाँ के लोग कहने लगें, कि यहोवा उन्हें उस देश में जिसके देने का वचन उनको दिया था नहीं पहुँचा सका, और उनसे बैर भी रखता था, इसी कारण उसने उन्हें जंगल में लाकर मार डाला है।’
|
||
\v 29 ये लोग तेरी प्रजा और निज भाग हैं, जिनको तूने अपने बड़े सामर्थ्य और बलवन्त भुजा के द्वारा निकाल ले आया है।”
|
||
\c 10
|
||
\s पत्थर की नई पटियाएँ
|
||
\p
|
||
\v 1 “उस समय यहोवा ने मुझसे कहा, ‘पहली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएँ गढ़ ले, और उन्हें लेकर मेरे पास पर्वत के ऊपर आ जा, और लकड़ी का एक सन्दूक भी बनवा ले।
|
||
\v 2 और मैं उन पटियाओं पर वे ही वचन लिखूँगा, जो उन पहली पटियाओं पर थे, जिन्हें तूने तोड़ डाला, और तू उन्हें उस सन्दूक में रखना।’
|
||
\v 3 तब मैंने बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनवाया, और पहली पटियाओं के समान पत्थर की दो और पटियाएँ गढ़ीं, तब उन्हें हाथों में लिये हुए पर्वत पर चढ़ गया। \bdit (इब्रा. 9:4) \bdit*
|
||
\v 4 और जो दस वचन यहोवा ने सभा के दिन पर्वत पर अग्नि के मध्य में से तुम से कहे थे, वे ही उसने पहले के समान उन पटियाओं पर लिखे; और उनको मुझे सौंप दिया।
|
||
\v 5 तब मैं पर्वत से नीचे उतर आया, और पटियाओं को अपने बनवाए हुए सन्दूक में धर दिया; और यहोवा की आज्ञा के अनुसार वे वहीं रखीं हुई हैं।
|
||
\p
|
||
\v 6 “(तब इस्राएली याकानियों के कुओं से कूच करके मोसेरा तक आए। \it वहाँ हारून मर गया\f + \fr 10:6 \fq वहाँ हारून मर गया: \ft यद्धपि हारून मरीबा पर अपने पाप के कारण जंगल ही में मृत्युदण्ड पा चुका था, परमेश्वर ने प्रधान पुरोहितवृत्ति को स्थिर रखा था कि प्रजा कष्ट न उठाएँ।\f*\it*, और उसको वहीं मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र एलीआजर उसके स्थान पर याजक का काम करने लगा।
|
||
\v 7 वे वहाँ से कूच करके गुदगोदा को, और गुदगोदा से योतबाता को चले, इस देश में जल की नदियाँ हैं।
|
||
\v 8 उस समय यहोवा ने लेवी गोत्र को इसलिए अलग किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाया करें, और यहोवा के सम्मुख खड़े होकर उसकी सेवा टहल किया करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, जिस प्रकार कि आज के दिन तक होता आ रहा है।
|
||
\v 9 इस कारण लेवियों को अपने भाइयों के साथ कोई निज अंश या भाग नहीं मिला; यहोवा ही उनका निज भाग है, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उनसे कहा था।)
|
||
\p
|
||
\v 10 “मैं तो पहले के समान उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा, और उस बार भी यहोवा ने मेरी सुनी, और तुझे नाश करने की मनसा छोड़ दी।
|
||
\v 11 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, ‘उठ, और तू इन लोगों की अगुआई कर, ताकि जिस देश के देने को मैंने उनके पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था उसमें वे जाकर उसको अपने अधिकार में कर लें।’
|
||
\s परमेश्वर की माँग
|
||
\p
|
||
\v 12 “अब, हे इस्राएल, \it तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है\f + \fr 10:12 \fq तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है: \ft परमेश्वर ने मूसा प्रदत्त विधान में अनेक शर्तें रखी थी। तथापि, यह बाहरी अनुष्ठानों से सम्बंधित हैं जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर लागू किया जा सकता है। परन्तु प्रेम लागू नहीं किया जा सकता, वे तो स्वाभाविक होना है।\f*\it*, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गों पर चले, उससे प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे, \bdit (लूका 10:27) \bdit*
|
||
\v 13 और यहोवा की जो-जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूँ उनको ग्रहण करे, जिससे तेरा भला हो?
|
||
\v 14 सुन, स्वर्ग और सबसे ऊँचा स्वर्ग भी, और पृथ्वी और उसमें जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्वर यहोवा ही का है;
|
||
\v 15 तो भी यहोवा ने तेरे पूर्वजों से स्नेह और प्रेम रखा, और उनके बाद तुम लोगों को जो उनकी सन्तान हो सब देशों के लोगों के मध्य में से चुन लिया, जैसा कि आज के दिन प्रगट है। \bdit (1 पत. 2:9) \bdit*
|
||
\v 16 इसलिए अपने-अपने हृदय का खतना करो, और आगे को हठीले न रहो।
|
||
\v 17 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरों का परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान पराक्रमी और भययोग्य परमेश्वर है, जो किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है। \bdit (प्रेरि. 10:34, रोम. 2:11, गला. 2:6, इफि. 6:9, कुलु. 3:25, 1 तीमु. 6:15, प्रका. 17:14, प्रका. 19:16) \bdit*
|
||
\v 18 वह अनाथों और विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियों से ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है।
|
||
\v 19 इसलिए तुम भी परदेशियों से प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।
|
||
\v 20 अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपटे रहना, और उसी के नाम की शपथ खाना।
|
||
\v 21 वही तुम्हारी स्तुति के योग्य है; और वही तुम्हारा परमेश्वर है, जिसने तेरे साथ वे बड़े महत्त्व के और भयानक काम किए हैं, जिन्हें तूने अपनी आँखों से देखा है।
|
||
\v 22 तेरे पुरखा जब मिस्र में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारों के समान बहुत कर दी है। \bdit (प्रेरि. 7:14, इब्रा. 11:12) \bdit*
|
||
\c 11
|
||
\s आज्ञाकारिता का पुरस्कार
|
||
\p
|
||
\v 1 “इसलिए तू अपने परमेश्वर यहोवा से अत्यन्त प्रेम रखना, और जो कुछ उसने तुझे सौंपा है उसका, अर्थात् उसकी विधियों, नियमों, और आज्ञाओं का नित्य पालन करना।
|
||
\v 2 और तुम आज यह सोच समझ लो (क्योंकि मैं तो तुम्हारे बाल-बच्चों से नहीं कहता,) जिन्होंने न तो कुछ देखा और न जाना है कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या-क्या ताड़ना की, और कैसी महिमा, और बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा दिखाई,
|
||
\v 3 और मिस्र में वहाँ के राजा फ़िरौन को कैसे-कैसे चिन्ह दिखाए, और उसके सारे देश में कैसे-कैसे चमत्कार के काम किए;
|
||
\v 4 और उसने मिस्र की सेना के घोड़ों और रथों से क्या किया, अर्थात् जब वे तुम्हारा पीछा कर रहे थे तब उसने उनको लाल समुद्र में डुबोकर किस प्रकार नष्ट कर डाला, कि आज तक उनका पता नहीं;
|
||
\v 5 और तुम्हारे इस स्थान में पहुँचने तक उसने जंगल में तुम से क्या-क्या किया; \bdit (प्रेरि. 7:5) \bdit*
|
||
\v 6 और उसने रूबेनी एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम से क्या-क्या किया; अर्थात् पृथ्वी ने अपना मुँह पसारकर उनको घरानों, और डेरों, और सब अनुचरों समेत सब इस्राएलियों के देखते-देखते कैसे निगल लिया;
|
||
\v 7 परन्तु यहोवा के इन सब बड़े-बड़े कामों को तुम ने अपनी आँखों से देखा है।
|
||
\p
|
||
\v 8 “इस कारण जितनी आज्ञाएँ मैं आज तुम्हें सुनाता हूँ उन सभी को माना करना, इसलिए कि तुम सामर्थी होकर उस देश में जिसके अधिकारी होने के लिये तुम पार जा रहे हो प्रवेश करके उसके अधिकारी हो जाओ,
|
||
\v 9 और उस देश में बहुत दिन रहने पाओ, जिसे तुम्हें और तुम्हारे वंश को देने की शपथ यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी, और उसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं।
|
||
\v 10 देखो, जिस देश के अधिकारी होने को तुम जा रहे हो वह मिस्र देश के समान नहीं है, जहाँ से निकलकर आए हो, जहाँ तुम बीज बोते थे और हरे साग के खेत की रीति के अनुसार अपने पाँव से नालियाँ बनाकर सींचते थे;
|
||
\v 11 परन्तु जिस देश के अधिकारी होने को तुम पार जाने पर हो वह पहाड़ों और तराइयों का देश है, और आकाश की वर्षा के जल से सींचता है;
|
||
\v 12 वह ऐसा देश है जिसकी तेरे परमेश्वर यहोवा को सुधि रहती है; और वर्ष के आदि से लेकर अन्त तक तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि उस पर निरन्तर लगी रहती है।
|
||
\p
|
||
\v 13 “यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूँ ध्यान से सुनकर, अपने सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साथ, अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो,
|
||
\v 14 तो मैं तुम्हारे देश में बरसात के \it आदि और अन्त दोनों समयों की वर्षा को अपने-अपने समय पर बरसाऊँगा\f + \fr 11:14 \fq आदि और अन्त दोनों समयों की वर्षा को अपने-अपने समय पर बरसाऊँगा: \ft आदि अर्थात् वसन्त ऋतु की वर्षा जो बोने के समय होती है। \f*\it*, जिससे तू अपना अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल संचय कर सकेगा। \bdit (याकू. 5:7) \bdit*
|
||
\v 15 और मैं तेरे पशुओं के लिये तेरे मैदान में घास उपजाऊँगा, और तू पेट भर खाएगा और सन्तुष्ट रहेगा।
|
||
\v 16 इसलिए अपने विषय में सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन धोखा खाएँ, और तुम बहक कर दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनको दण्डवत् करने लगो,
|
||
\v 17 और यहोवा का कोप तुम पर भड़के, और वह आकाश की वर्षा बन्द कर दे, और भूमि अपनी उपज न दे, और तुम उस उत्तम देश में से जो यहोवा तुम्हें देता है शीघ्र नष्ट हो जाओ।
|
||
\v 18 इसलिए तुम मेरे ये वचन अपने-अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्ह के रूप में अपने हाथों पर बाँधना, और वे तुम्हारी आँखों के मध्य में टीके का काम दें।
|
||
\v 19 और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने बच्चों को सिखाया करना।
|
||
\v 20 और इन्हें अपने-अपने घर के चौखट के बाजुओं और अपने फाटकों के ऊपर लिखना;
|
||
\v 21 \it इसलिए कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर कहा था, कि मैं उसे तुम्हें दूँगा, उसमें तुम और तुम्हारे बच्चे दीर्घायु हों\f + \fr 11:21 \fq इसलिए कि .... उसमें तुम और तुम्हारे बच्चे दीर्घायु हों: \ft अत: इस्राएल के लिये कनान देश की प्रतिज्ञा सदाकालीन थी परन्तु शर्त आधारित भी थी।\f*\it*, और जब तक पृथ्वी के ऊपर का आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें।
|
||
\v 22 इसलिए यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूँ पूरी चौकसी करके अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गों पर चलो, और उससे लिपटे रहो,
|
||
\v 23 तो यहोवा उन सब जातियों को तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम अपने से बड़ी और सामर्थी जातियों के अधिकारी हो जाओगे।
|
||
\v 24 जिस-जिस स्थान पर तुम्हारे पाँव के तलवे पड़ें वे सब तुम्हारे ही हो जाएँगे, अर्थात् जंगल से लबानोन तक, और फरात नामक महानद से लेकर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारी सीमा होगी।
|
||
\v 25 तुम्हारे सामने कोई भी खड़ा न रह सकेगा; क्योंकि जितनी भूमि पर तुम्हारे पाँव पड़ेंगे उस सब पर रहनेवालों के मन में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुम्हारे कारण उनमें डर और थरथराहट उत्पन्न कर देगा।
|
||
\p
|
||
\v 26 “सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और श्राप दोनों रख देता हूँ।
|
||
\v 27 अर्थात् यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हें सुनाता हूँ मानो, तो तुम पर आशीष होगी,
|
||
\v 28 और यदि तुम अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे, और जिस मार्ग की आज्ञा मैं आज सुनाता हूँ उसे तजकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो, तो तुम पर श्राप पड़ेगा।
|
||
\v 29 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको उस देश में पहुँचाए जिसके अधिकारी होने को तू जाने पर है, तब आशीष गिरिज्जीम पर्वत पर से और श्राप एबाल पर्वत पर से सुनाना। \bdit (यूह. 4:20) \bdit*
|
||
\v 30 क्या वे यरदन के पार, सूर्य के अस्त होने की ओर, अराबा के निवासी कनानियों के देश में, गिलगाल के सामने, मोरे के बांजवृक्षों के पास नहीं है?
|
||
\v 31 तुम तो यरदन पार इसलिए जाने पर हो, कि जो देश तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उसके अधिकारी हो जाओ; और तुम उसके अधिकारी होकर उसमें निवास करोगे;
|
||
\v 32 इसलिए जितनी विधियाँ और नियम मैं आज तुम को सुनाता हूँ उन सभी के मानने में चौकसी करना।
|
||
\c 12
|
||
\s परमेश्वर की उपासना का स्थान
|
||
\p
|
||
\v 1 “जो देश तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें अधिकार में लेने को दिया है, उसमें जब तक तुम भूमि पर जीवित रहो तब तक इन विधियों और नियमों के मानने में चौकसी करना।
|
||
\v 2 जिन जातियों के तुम अधिकारी होगे उनके लोग ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों या टीलों पर, या किसी भाँति के हरे वृक्ष के तले, जितने स्थानों में अपने देवताओं की उपासना करते हैं, उन सभी को तुम पूरी रीति से नष्ट कर डालना;
|
||
\v 3 उनकी वेदियों को ढा देना, उनकी लाठों को तोड़ डालना, उनकी अशेरा नामक मूर्तियों को आग में जला देना, और उनके देवताओं की खुदी हुई मूर्तियों को काटकर गिरा देना, कि उस देश में से उनके नाम तक मिट जाएँ।
|
||
\v 4 फिर \it जैसा वे करते हैं, तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये वैसा न करना\f + \fr 12:4 \fq जैसा वे करते हैं, तुम अपने परमेश्वर यहोवा के लिये वैसा न करना: \ft कनान वासियों का धर्म मानवीय था और उनकी उपासना विधि मानव रचित थी। वे अपने पूज्य स्थल पर्वतों पर बनाते थे, यह सोचकर कि वे स्वर्ग के निकट है परन्तु ऐसे अंधविश्वास सच्चे धर्म के योग्य न थे। \f*\it*।
|
||
\v 5 किन्तु जो स्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सब गोत्रों में से चुन लेगा, \it कि वहाँ अपना नाम बनाए रखे\f + \fr 12:5 \fq कि वहाँ अपना नाम बनाए रखे: \ft अर्थात् मनुष्यों में अपनी दिव्य उपस्थिति प्रगट करे। \f*\it*, उसके उसी निवास-स्थान के पास जाया करना;
|
||
\v 6 और वहीं तुम अपने होमबलि, और मेलबलि, और दशमांश, और उठाई हुई भेंट, और मन्नत की वस्तुएँ, और स्वेच्छाबलि, और गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहलौठे ले जाया करना;
|
||
\v 7 और वहीं तुम अपने परमेश्वर यहोवा के सामने भोजन करना, और अपने-अपने घराने समेत उन सब कामों पर, जिनमें तुम ने हाथ लगाया हो, और जिन पर तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आशीष मिली हो, आनन्द करना।
|
||
\v 8 जैसे हम आजकल यहाँ जो काम जिसको भाता है वही करते हैं वैसा तुम न करना;
|
||
\v 9 जो विश्रामस्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे भाग में देता है वहाँ तुम अब तक तो नहीं पहुँचे।
|
||
\v 10 परन्तु जब तुम यरदन पार जाकर उस देश में जिसके भागी तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें करता है बस जाओ, और वह तुम्हारे चारों ओर के सब शत्रुओं से तुम्हें विश्राम दे,
|
||
\v 11 और तुम निडर रहने पाओ, तब जो स्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसी में तुम अपने होमबलि, और मेलबलि, और दशमांश, और उठाई हुई भेंट, और मन्नतों की सब उत्तम-उत्तम वस्तुएँ जो तुम यहोवा के लिये संकल्प करोगे, अर्थात् जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूँ उन सभी को वहीं ले जाया करना।
|
||
\v 12 और वहाँ तुम अपने-अपने बेटे-बेटियों और दास दासियों सहित अपने परमेश्वर यहोवा के सामने आनन्द करना, और जो लेवीय तुम्हारे फाटकों में रहे वह भी आनन्द करे, क्योंकि उसका तुम्हारे संग कोई निज भाग या अंश न होगा।
|
||
\v 13 और सावधान रहना कि तू अपने होमबलियों को हर एक स्थान पर जो देखने में आए न चढ़ाना; \bdit (यूह. 4:20) \bdit*
|
||
\v 14 परन्तु जो स्थान तेरे किसी गोत्र में यहोवा चुन ले वहीं अपने होमबलियों को चढ़ाया करना, और जिस-जिस काम की आज्ञा मैं तुझको सुनाता हूँ उसको वहीं करना।
|
||
\p
|
||
\v 15 “परन्तु तू अपने सब फाटकों के भीतर अपने जी की इच्छा और अपने परमेश्वर यहोवा की दी हुई आशीष के अनुसार पशु मारकर खा सकेगा, शुद्ध और अशुद्ध मनुष्य दोनों खा सकेंगे, जैसे कि चिकारे और हिरन का माँस।
|
||
\v 16 परन्तु उसका लहू न खाना; उसे जल के समान भूमि पर उण्डेल देना।
|
||
\v 17 फिर अपने अन्न, या नये दाखमधु, या टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय-बैलों या भेड़-बकरियों के पहलौठे, और अपनी मन्नतों की कोई वस्तु, और अपने स्वेच्छाबलि, और उठाई हुई भेंटें अपने सब फाटकों के भीतर न खाना;
|
||
\v 18 उन्हें अपने परमेश्वर यहोवा के सामने उसी स्थान पर जिसको वह चुने अपने बेटे-बेटियों और दास दासियों के, और जो लेवीय तेरे फाटकों के भीतर रहेंगे उनके साथ खाना, और तू अपने परमेश्वर यहोवा के सामने अपने सब कामों पर जिनमें हाथ लगाया हो आनन्द करना।
|
||
\v 19 और सावधान रह कि जब तक तू भूमि पर जीवित रहे तब तक लेवियों को न छोड़ना।
|
||
\p
|
||
\v 20 “जब तेरा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तेरा देश बढ़ाए, और तेरा जी माँस खाना चाहे, और तू सोचने लगे, कि मैं माँस खाऊँगा, तब जो माँस तेरा जी चाहे वही खा सकेगा।
|
||
\v 21 जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिये चुन ले वह यदि तुझ से बहुत दूर हो, तो जो गाय-बैल भेड़-बकरी यहोवा ने तुझे दी हों, उनमें से जो कुछ तेरा जी चाहे, उसे मेरी आज्ञा के अनुसार मारकर अपने फाटकों के भीतर खा सकेगा। \bdit (लैव्य. 14:24) \bdit*
|
||
\v 22 जैसे चिकारे और हिरन का माँस खाया जाता है वैसे ही उनको भी खा सकेगा, शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार के मनुष्य उनका माँस खा सकेंगे।
|
||
\v 23 परन्तु उनका लहू किसी भाँति न खाना; क्योंकि लहू जो है वह प्राण ही है, और तू माँस के साथ प्राण कभी भी न खाना।
|
||
\v 24 उसको न खाना; उसे जल के समान भूमि पर उण्डेल देना।
|
||
\v 25 तू उसे न खाना; इसलिए कि वह काम करने से जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी भला हो।
|
||
\v 26 परन्तु जब तू कोई वस्तु पवित्र करे, या मन्नत माने, तो ऐसी वस्तुएँ लेकर उस स्थान को जाना जिसको यहोवा चुन लेगा,
|
||
\v 27 और वहाँ अपने होमबलियों के माँस और लहू दोनों को अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी पर चढ़ाना, और मेलबलियों का लहू उसकी वेदी पर उण्डेलकर उनका माँस खाना।
|
||
\v 28 इन बातों को जिनकी आज्ञा मैं तुझे सुनाता हूँ चित्त लगाकर सुन, कि जब तू वह काम करे जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है, तब तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी सदा भला होता रहे।
|
||
\s मूर्तिपूजा के विरुद्ध चेतावनी
|
||
\p
|
||
\v 29 “जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को जिनका अधिकारी होने को तू जा रहा है तेरे आगे से नष्ट करे, और तू उनका अधिकारी होकर उनके देश में बस जाए,
|
||
\v 30 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनका सत्यानाश होने के बाद तू भी उनके समान फँस जाए, अर्थात् यह कहकर उनके देवताओं के सम्बंध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियों के लोग अपने देवताओं की उपासना किस रीति करते थे? मैं भी वैसी ही करूँगा।
|
||
\v 31 तू अपने परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामों से यहोवा घृणा करता है और बैर-भाव रखता है, उन सभी को उन्होंने अपने देवताओं के लिये किया है, यहाँ तक कि अपने बेटे-बेटियों को भी वे अपने देवताओं के लिये अग्नि में डालकर जला देते हैं।
|
||
\p
|
||
\v 32 “जितनी बातों की मैं तुम को आज्ञा देता हूँ उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उनमें बढ़ाना और न उनमें से कुछ घटाना। \bdit (प्रका. 22:18) \bdit*
|
||
\c 13
|
||
\s झूठे भविष्यद्वक्ता
|
||
\p
|
||
\v 1 “यदि तेरे बीच कोई \it भविष्यद्वक्ता या स्वप्न देखनेवाला\f + \fr 13:1 \fq भविष्यद्वक्ता या स्वप्न देखनेवाला: \ft भविष्यद्वक्ता दर्शन या सीधा मौखिक सम्पर्क द्वारा सन्देश प्राप्त करता है। स्वप्न देखनेवाला: स्वप्न के द्वारा। \f*\it* प्रगट होकर तुझे कोई चिन्ह या चमत्कार दिखाए, \bdit (मत्ती 24:24, मर. 13:22) \bdit*
|
||
\v 2 और जिस चिन्ह या चमत्कार को प्रमाण ठहराकर वह तुझ से कहे, ‘आओ हम पराए देवताओं के अनुयायी होकर, जिनसे तुम अब तक अनजान रहे, उनकी पूजा करें,’
|
||
\v 3 तब तुम उस भविष्यद्वक्ता या स्वप्न देखनेवाले के वचन पर कभी कान न रखना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी परीक्षा लेगा, जिससे यह जान ले, कि ये मुझसे अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम रखते हैं या नहीं? \bdit (व्यव. 13:3, 1 कुरि. 11:19) \bdit*
|
||
\v 4 तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपटे रहना।
|
||
\v 5 और ऐसा भविष्यद्वक्ता या स्वप्न देखनेवाला जो तुम को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से फेर के, जिसने तुम को मिस्र देश से निकाला और दासत्व के घर से छुड़ाया है, तेरे उसी परमेश्वर यहोवा के मार्ग से बहकाने की बात कहनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मार डाला जाए। इस रीति से तू अपने बीच में से \it ऐसी बुराई को दूर कर देना\f + \fr 13:5 \fq ऐसी बुराई को दूर कर देना: \ft इससे प्रगट होता है कि उनमें एक वैधानिक प्रक्रिया थी और मृत्युदण्ड पथराव करके दिया जाता था। इसमें समुदाय की भागीदारी थी कि अपराध की भयानकता प्रगट हो और उस बुरे काम की सहभागिता से स्वयं को मुक्त करें।\f*\it*।
|
||
\p
|
||
\v 6 “यदि तेरा सगा भाई, या बेटा, या बेटी, या तेरी अर्द्धांगिनी, या प्राणप्रिय तेरा कोई मित्र निराले में तुझको यह कहकर फुसलाने लगे, ‘आओ हम दूसरे देवताओं की उपासना या पूजा करें,’ जिन्हें न तो तू न तेरे पुरखा जानते थे, \bdit (व्यव. 17:2, उत्प. 16:5) \bdit*
|
||
\v 7 चाहे वे तुम्हारे निकट रहनेवाले आस-पास के लोगों के, चाहे पृथ्वी के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक दूर-दूर के रहनेवालों के देवता हों,
|
||
\v 8 तो तू उसकी न मानना, और न तो उसकी बात सुनना, और न उस पर तरस खाना, और न कोमलता दिखाना, और न उसको छिपा रखना;
|
||
\v 9 उसको अवश्य घात करना; उसको घात करने में पहले तेरा हाथ उठे, उसके बाद सब लोगों के हाथ उठें। \bdit (लैव्य. 24:14) \bdit*
|
||
\v 10 उस पर ऐसा पथराव करना कि वह मर जाए, क्योंकि उसने तुझको तेरे उस परमेश्वर यहोवा से, जो तुझको दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश से निकाल लाया है, बहकाने का यत्न किया है।
|
||
\v 11 और सब इस्राएली सुनकर भय खाएँगे, और ऐसा बुरा काम फिर तेरे बीच न करेंगे।
|
||
\p
|
||
\v 12 “\it यदि तेरे किसी नगर के विषय में, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे रहने के लिये देता है\f + \fr 13:12 \fq यदि तेरे किसी नगर के विषय में, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे रहने के लिये देता है: \ft यह इस्राएलियों को गंभीरता से स्मरण कराता है कि उनके निवास-स्थान का स्वामित्व परमेश्वर का है।\f*\it*, ऐसी बात तेरे सुनने में आए,
|
||
\v 13 कि कुछ अधर्मी पुरुषों ने तेरे ही बीच में से निकलकर अपने नगर के निवासियों को यह कहकर बहका दिया है, ‘आओ हम अन्य देवताओं की जिनसे अब तक अनजान रहे उपासना करें,’
|
||
\v 14 तो पूछपाछ करना, और खोजना, और भली भाँति पता लगाना; और यदि यह बात सच हो, और कुछ भी सन्देह न रहे कि तेरे बीच ऐसा घिनौना काम किया जाता है,
|
||
\v 15 तो अवश्य उस नगर के निवासियों को तलवार से मार डालना, और पशु आदि उस सब समेत जो उसमें हो उसको तलवार से सत्यानाश करना।
|
||
\v 16 और उसमें की सारी लूट चौक के बीच इकट्ठी करके उस नगर को लूट समेत अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मानो सर्वांग होम करके जलाना; और वह सदा के लिये खण्डहर रहे, वह फिर बसाया न जाए।
|
||
\v 17 और कोई सत्यानाश की वस्तु तेरे हाथ न लगने पाए; जिससे यहोवा अपने भड़के हुए कोप से शान्त होकर जैसा उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाई थी वैसा ही तुझ से दया का व्यवहार करे, और दया करके तुझको गिनती में बढ़ाए।
|
||
\v 18 यह तब होगा जब तू अपने परमेश्वर यहोवा की जितनी आज्ञाएँ मैं आज तुझे सुनाता हूँ उन सभी को मानेगा, और जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही करेगा।
|
||
\c 14
|
||
\s अनुचित शोक
|
||
\p
|
||
\v 1 “तुम अपने परमेश्वर यहोवा के पुत्र हो; इसलिए मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना, और न \it भौहों के बाल मुण्डाना\f + \fr 14:1 \fq भौहों के बाल मुण्डाना: \ft यह अभ्यास अन्यजातियों के थे, इस्राएल के लिये यह वर्जित था। \f*\it*। \bdit (रोम. 9:4) \bdit*
|
||
\v 2 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये एक पवित्र प्रजा है, और यहोवा ने तुझको पृथ्वी भर के समस्त देशों के लोगों में से अपनी निज सम्पत्ति होने के लिये चुन लिया है। \bdit (तीतु. 2:14, 1 पत. 2:9) \bdit*
|
||
\s शुद्ध और अशुद्ध पशु
|
||
\p
|
||
\v 3 “तू कोई घिनौनी वस्तु न खाना।
|
||
\v 4 जो पशु तुम खा सकते हो वे ये हैं, अर्थात् गाय-बैल, भेड़-बकरी,
|
||
\v 5 हिरन, चिकारा, मृग, जंगली बकरी, साबर, नीलगाय, और बनैली भेड़।
|
||
\v 6 अतः पशुओं में से जितने पशु चिरे या फटे खुरवाले और पागुर करनेवाले होते हैं उनका माँस तुम खा सकते हो।
|
||
\v 7 परन्तु पागुर करनेवाले या चिरे खुरवालों में से इन पशुओं को, अर्थात् ऊँट, खरगोश, और शापान को न खाना, क्योंकि ये पागुर तो करते हैं परन्तु चिरे खुर के नहीं होते, इस कारण वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।
|
||
\v 8 फिर सूअर, जो चिरे खुर का तो होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है। तुम न तो इनका माँस खाना, और न इनकी लोथ छूना।
|
||
\p
|
||
\v 9 “फिर जितने जलजन्तु हैं उनमें से तुम इन्हें खा सकते हो, अर्थात् जितनों के पंख और छिलके होते हैं।
|
||
\v 10 परन्तु जितने बिना पंख और छिलके के होते हैं उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं।
|
||
\p
|
||
\v 11 “सब शुद्ध पक्षियों का माँस तो तुम खा सकते हो।
|
||
\v 12 परन्तु इनका माँस न खाना, अर्थात् उकाब, हड़फोड़, कुरर;
|
||
\v 13 गरूड़, चील और भाँति-भाँति के शाही;
|
||
\v 14 और भाँति-भाँति के सब काग;
|
||
\v 15 शुतुर्मुर्ग, तहमास, जलकुक्कट, और भाँति-भाँति के बाज;
|
||
\v 16 छोटा और बड़ा दोनों जाति का उल्लू, और घुग्घू;
|
||
\v 17 धनेश, गिद्ध, हाड़गील;
|
||
\v 18 सारस, भाँति-भाँति के बगुले, हुदहुद, और चमगादड़।
|
||
\v 19 और जितने रेंगनेवाले जन्तु हैं वे सब तुम्हारे लिये अशुद्ध हैं; वे खाए न जाएँ।
|
||
\v 20 परन्तु सब शुद्ध पंखवालों का माँस तुम खा सकते हो।
|
||
\p
|
||
\v 21 “\it जो अपनी मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना\f + \fr 14:21 \fq जो अपनी मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना: \ft यहाँ उद्देश्य स्पष्ट है। ऐसा माँस न तो वे स्वयं खाएँ ना किसी को खाने के लिये दें। इसमें सम्पदा की हानि और आज्ञा के उल्लंघन की परीक्षा होती है। \f*\it*; उसे अपने फाटकों के भीतर किसी परदेशी को खाने के लिये दे सकते हो, या किसी पराए के हाथ बेच सकते हो; परन्तु तू तो अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पवित्र प्रजा है। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।
|
||
\s दशमांश का नियम
|
||
\p
|
||
\v 22 “बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपजे उसका दशमांश अवश्य अलग करके रखना।
|
||
\v 23 और जिस स्थान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने के लिये चुन ले उसमें अपने अन्न, और नये दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपने गाय-बैलों और भेड़-बकरियों के पहलौठे अपने परमेश्वर यहोवा के सामने खाया करना; जिससे तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे।
|
||
\v 24 परन्तु यदि वह स्थान जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाएँ रखने के लिये चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहाँ की यात्रा तेरे लिये इतनी लम्बी हो कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएँ वहाँ न ले जा सके,
|
||
\v 25 तो उसे बेचकर, रुपये को बाँध, हाथ में लिये हुए उस स्थान पर जाना जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा,
|
||
\v 26 और वहाँ गाय-बैल, या भेड़-बकरी, या दाखमधु, या मदिरा, या किसी भाँति की वस्तु क्यों न हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रुपये से मोल लेकर अपने घराने समेत अपने परमेश्वर यहोवा के सामने खाकर आनन्द करना।
|
||
\v 27 और अपने फाटकों के भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साथ उसका कोई भाग या अंश न होगा।
|
||
\p
|
||
\v 28 “तीन-तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशमांश निकालकर अपने फाटकों के भीतर इकट्ठा कर रखना;
|
||
\v 29 तब लेवीय जिसका तेरे संग कोई निज भाग या अंश न होगा वह, और जो परदेशी, और अनाथ, और विधवाएँ तेरे फाटकों के भीतर हों, वे भी आकर पेट भर खाएँ; जिससे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझे आशीष दे।
|
||
\c 15
|
||
\s सातवाँ वर्ष: छुटकारे का वर्ष
|
||
\p
|
||
\v 1 “सात-सात वर्ष बीतने पर तुम \it छुटकारा दिया करना\f + \fr 15:1 \fq छुटकारा दिया करना: \ft अर्थात् ‘ऋण रद्द करना’\f*\it*,
|
||
\v 2 अर्थात् जिस किसी ऋण देनेवाले ने अपने पड़ोसी को कुछ उधार दिया हो, तो वह उसे छोड़ दे; और अपने पड़ोसी या भाई से उसको बरबस न भरवाए, क्योंकि \it यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है\f + \fr 15:2 \fq यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है: \ft क्योंकि परमेश्वर द्वारा मुक्ति की घोषणा की जा चुकी है और इसमें मुक्ति के वर्ष की गंभीरता: की सार्वजनिक घोषणा का अभिप्राय निहित है। \f*\it*।
|
||
\v 3 \it परदेशी मनुष्य से तू उसे बरबस भरवा सकता है\f + \fr 15:3 \fq परदेशी मनुष्य से तू उसे बरबस भरवा सकता है: \ft परदेशी मनुष्य विश्रामवर्ष की सीमाओं में नहीं आता हैं अत: उसे ऋण मुक्ति और विशेषाधिकारों का लाभ प्राप्त नहीं है। \f*\it*, परन्तु जो कुछ तेरे भाई के पास तेरा हो उसे तू बिना भरवाए छोड़ देना।
|
||
\v 4 तेरे बीच कोई दरिद्र न रहेगा, क्योंकि जिस देश को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है, कि तू उसका अधिकारी हो, उसमें वह तुझे बहुत ही आशीष देगा।
|
||
\v 5 इतना अवश्य है कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की बात चित्त लगाकर सुने, और इन सारी आज्ञाओं के मानने में जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ चौकसी करे।
|
||
\v 6 तब तेरा परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे आशीष देगा, और तू बहुत जातियों को उधार देगा, परन्तु तुझे उधार लेना न पड़ेगा; और तू बहुत जातियों पर प्रभुता करेगा, परन्तु वे तेरे ऊपर प्रभुता न करने पाएँगी।
|
||
\s दरिद्र के लिये उदारता
|
||
\p
|
||
\v 7 “जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी फाटक के भीतर यदि तेरे भाइयों में से कोई तेरे पास दरिद्र हो, तो अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना, और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना; \bdit (यूह. 3:17) \bdit*
|
||
\v 8 जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसकी जितनी आवश्यकता हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना।
|
||
\v 9 \it सचेत रह कि तेरे मन में ऐसी अधर्मी चिन्ता न समाए\f + \fr 15:9 \fq सचेत रह कि तेरे मन में ऐसी अधर्मी चिन्ता न समाए: \ft सावधान रहना कि छुटकारे का पर्व निकट देखकर किसी को ऋण देने में तेरे मन में बुराई न आए। \f*\it*, कि सातवाँ वर्ष जो छुटकारे का वर्ष है वह निकट है, और अपनी दृष्टि तू अपने उस दरिद्र भाई की ओर से क्रूर करके उसे कुछ न दे, और वह तेरे विरुद्ध यहोवा की दुहाई दे, तो यह तेरे लिये पाप ठहरेगा।
|
||
\v 10 तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योंकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में जिनमें तू अपना हाथ लगाएगा तुझे आशीष देगा।
|
||
\v 11 तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएँगे, इसलिए मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ कि तू अपने देश में अपने दीन-दरिद्र भाइयों को अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना। \bdit (मत्ती 26:11, मर. 14:7, यूह. 12:8) \bdit*
|
||
\s दासों को स्वतंत्र करने की विधि
|
||
\p
|
||
\v 12 “यदि तेरा कोई भाई-बन्धु, अर्थात् कोई इब्री या इब्रिन, तेरे हाथ बिके, और वह छः वर्ष तेरी सेवा कर चुके, तो सातवें वर्ष उसको अपने पास से स्वतंत्र करके जाने देना।
|
||
\v 13 और जब तू उसको स्वतंत्र करके अपने पास से जाने दे तब उसे खाली हाथ न जाने देना;
|
||
\v 14 वरन् अपनी भेड़-बकरियों, और खलिहान, और दाखमधु के कुण्ड में से बहुतायत से देना; तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे जैसी आशीष दी हो उसी के अनुसार उसे देना।
|
||
\v 15 और इस बात को स्मरण रखना कि तू भी मिस्र देश में दास था, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे छुड़ा लिया; इस कारण मैं आज तुझे यह आज्ञा सुनाता हूँ।
|
||
\v 16 और यदि वह तुझ से और तेरे घराने से प्रेम रखता है, और तेरे संग आनन्द से रहता हो, और इस कारण तुझ से कहने लगे, ‘मैं तेरे पास से न जाऊँगा,’
|
||
\v 17 तो सुतारी लेकर उसका कान किवाड़ पर लगाकर छेदना, तब वह सदा तेरा दास बना रहेगा। और अपनी दासी से भी ऐसा ही करना।
|
||
\v 18 जब तू उसको अपने पास से स्वतंत्र करके जाने दे, तब उसे छोड़ देना तुझको कठिन न जान पड़े; क्योंकि उसने छः वर्ष \it दो मजदूरों के बराबर\f + \fr 15:18 \fq दो मजदूरों के बराबर: \ft उसने एक आम मजदूर से दो गुणा अधिक मजदूरी की है।\f*\it* तेरी सेवा की है। और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सारे कामों में तुझको आशीष देगा।
|
||
\s पहलौठे पशुओं का अर्पण
|
||
\p
|
||
\v 19 “तेरी गायों और भेड़-बकरियों के जितने पहलौठे नर हों उन सभी को अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पवित्र रखना; अपनी गायों के पहलौठों से कोई काम न लेना, और न अपनी भेड़-बकरियों के पहलौठों का ऊन कतरना।
|
||
\v 20 उस स्थान पर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा तू यहोवा के सामने अपने-अपने घराने समेत प्रतिवर्ष उसका माँस खाना।
|
||
\v 21 परन्तु यदि उसमें किसी प्रकार का दोष हो, अर्थात् वह लंगड़ा या अंधा हो, या उसमें किसी और ही प्रकार की बुराई का दोष हो, तो उसे अपने परमेश्वर यहोवा के लिये बलि न करना।
|
||
\v 22 उसको अपने फाटकों के भीतर खाना; शुद्ध और अशुद्ध दोनों प्रकार के मनुष्य जैसे चिकारे और हिरन का माँस खाते हैं वैसे ही उसका भी खा सकेंगे।
|
||
\v 23 परन्तु उसका लहू न खाना; उसे जल के समान भूमि पर उण्डेल देना।
|
||
\c 16
|
||
\s फसह और अख़मीरी रोटी का पर्व
|
||
\p
|
||
\v 1 “अबीब महीने को स्मरण करके अपने परमेश्वर यहोवा के लिये \it फसह का पर्व मानना\f + \fr 16:1 \fq फसह का पर्व मानना: \ft यह आदेश लागू करना अधिक आवश्यक था क्योंकि इसका मनाया जाना 39 वर्षों से अन्तर्विराम में था। \f*\it*; क्योंकि अबीब महीने में तेरा परमेश्वर यहोवा रात को तुझे मिस्र से निकाल लाया।
|
||
\v 2 इसलिए जो स्थान यहोवा अपने नाम का निवास ठहराने को चुन लेगा, वहीं अपने परमेश्वर यहोवा के लिये भेड़-बकरियों और गाय-बैल \it फसह करके बलि करना\f + \fr 16:2 \fq फसह करके बलि करना: \ft फसह का त्यौहार जो सात दिन का होता था उसमें उचित बलि चढ़ाई जाए। \f*\it*।
|
||
\v 3 उसके संग कोई ख़मीरी वस्तु न खाना; सात दिन तक अख़मीरी रोटी जो दुःख की रोटी है खाया करना; क्योंकि तू मिस्र देश से उतावली करके निकला था; इसी रीति से तुझको मिस्र देश से निकलने का दिन जीवन भर स्मरण रहेगा। \bdit (1 कुरि. 5:8) \bdit*
|
||
\v 4 सात दिन तक तेरे सारे देश में तेरे पास कहीं ख़मीर देखने में भी न आए; और जो पशु तू पहले दिन की संध्या को बलि करे उसके माँस में से कुछ सवेरे तक रहने न पाए।
|
||
\v 5 फसह को अपने किसी फाटक के भीतर, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे बलि न करना।
|
||
\v 6 जो स्थान तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने के लिये चुन ले केवल वहीं, वर्ष के उसी समय जिसमें तू मिस्र से निकला था, अर्थात् सूरज डूबने पर संध्याकाल को, फसह का पशु बलि करना।
|
||
\v 7 तब उसका माँस उसी स्थान में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले भूनकर खाना; फिर सवेरे को उठकर अपने-अपने डेरे को लौट जाना।
|
||
\v 8 छः दिन तक अख़मीरी रोटी खाया करना; और सातवें दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये महासभा हो; उस दिन किसी प्रकार का काम-काज न किया जाए। \bdit (लूका 2: 41) \bdit*
|
||
\s कटनी का पर्व
|
||
\p
|
||
\v 9 “फिर जब तू खेत में हँसुआ लगाने लगे, तब से आरम्भ करके सात सप्ताह गिनना।
|
||
\v 10 तब अपने परमेश्वर यहोवा की आशीष के अनुसार उसके लिये स्वेच्छाबलि देकर सप्ताहों का पर्व मानना;
|
||
\v 11 और उस स्थान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले अपने-अपने बेटे-बेटियों, दास दासियों समेत तू और तेरे फाटकों के भीतर जो लेवीय हों, और जो-जो परदेशी, और अनाथ, और विधवाएँ तेरे बीच में हों, वे सब के सब अपने परमेश्वर यहोवा के सामने आनन्द करें।
|
||
\v 12 और स्मरण रखना कि तू भी मिस्र में दास था; इसलिए इन विधियों के पालन करने में चौकसी करना।
|
||
\s झोपड़ियों का पर्व
|
||
\p
|
||
\v 13 “तू जब अपने खलिहान और दाखमधु के कुण्ड में से सब कुछ इकट्ठा कर चुके, तब झोपड़ियों का पर्व सात दिन मानते रहना;
|
||
\v 14 और अपने इस पर्व में अपने-अपने बेटे बेटियों, दास दासियों समेत तू और जो लेवीय, और परदेशी, और अनाथ, और विधवाएँ तेरे फाटकों के भीतर हों वे भी आनन्द करें।
|
||
\v 15 जो स्थान यहोवा चुन ले उसमें तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये सात दिन तक पर्व मानते रहना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामों में तुझको आशीष देगा; तू आनन्द ही करना।
|
||
\v 16 वर्ष में तीन बार, अर्थात् अख़मीरी रोटी के पर्व, और सप्ताहों के पर्व, और झोपड़ियों के पर्व, इन तीनों पर्वों में तुम्हारे सब पुरुष अपने परमेश्वर यहोवा के सामने उस स्थान में जो वह चुन लेगा जाएँ। और देखो, खाली हाथ यहोवा के सामने कोई न जाए;
|
||
\v 17 सब पुरुष अपनी-अपनी पूँजी, और उस आशीष के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझको दी हो, दिया करें।
|
||
\s लोगों के लिये न्यायियों की नियुक्ति
|
||
\p
|
||
\v 18 “तू अपने एक-एक गोत्र में से, अपने सब फाटकों के भीतर जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको देता है \it न्यायी और सरदार नियुक्त कर लेना\f + \fr 16:18 \fq न्यायी और सरदार नियुक्त कर लेना: \ft मूसा के कूच करने का समय आ गया था और इस्राएली कनान देश में सर्वत्र फैल जाएँगे। अत: नागरिक एवं सामाजिक व्यवस्था तथा सुचारू प्रबन्ध हेतु स्थाई व्यवस्था की आवश्यकता थी। \f*\it*, जो लोगों का न्याय धार्मिकता से किया करें।
|
||
\v 19 तुम न्याय न बिगाड़ना; तू न तो पक्षपात करना; और न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आँखें अंधी कर देती है, और धर्मियों की बातें पलट देती है।
|
||
\v 20 जो कुछ नितान्त ठीक है उसी का पीछा करना, जिससे तू जीवित रहे, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसका अधिकारी बना रहे।
|
||
\s वर्जित पूजा
|
||
\p
|
||
\v 21 “तू अपने परमेश्वर यहोवा की जो वेदी बनाएगा उसके पास किसी प्रकार की लकड़ी की बनी हुई अशेरा का स्थापन न करना।
|
||
\v 22 और न कोई स्तम्भ खड़ा करना, क्योंकि उससे तेरा परमेश्वर यहोवा घृणा करता है।
|
||
\c 17
|
||
\p
|
||
\v 1 “तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये कोई बैल या भेड़-बकरी बलि न करना जिसमें \it दोष या किसी प्रकार की खोट हो\f + \fr 17:1 \fq दोष या किसी प्रकार की खोट हो: \ft यहाँ फिर से परमेश्वर के लिये दोषबलि पशु चढ़ाना वर्जित किया गया है (व्यव. 15:21) जिसके कारण परमेश्वर का अपमान होता है। \f*\it*; क्योंकि ऐसा करना तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप घृणित है।
|
||
\s मूर्तिपूजा के लिये न्यायिक प्रक्रिया
|
||
\p
|
||
\v 2 “जो बस्तियाँ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, यदि उनमें से किसी में कोई पुरुष या स्त्री ऐसी पाई जाए, जिसने तेरे परमेश्वर यहोवा की वाचा तोड़कर ऐसा काम किया हो, जो उसकी दृष्टि में बुरा है,
|
||
\v 3 अर्थात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके पराए देवताओं की, या सूर्य, या चन्द्रमा, या आकाश के गण में से किसी की उपासना की हो, या उनको दण्डवत् किया हो,
|
||
\v 4 और यह बात तुझे बताई जाए और तेरे सुनने में आए; तब भली भाँति पूछपाछ करना, और यदि यह बात सच ठहरे कि इस्राएल में ऐसा घृणित कर्म किया गया है,
|
||
\v 5 तो जिस पुरुष या स्त्री ने ऐसा बुरा काम किया हो, उस पुरुष या स्त्री को बाहर अपने फाटकों पर ले जाकर ऐसा पथराव करना कि वह मर जाए।
|
||
\v 6 जो प्राणदण्ड के योग्य ठहरे वह एक ही की साक्षी से न मार डाला जाए, किन्तु दो या तीन मनुष्यों की साक्षी से मार डाला जाए। \bdit (यूह. 8:17, 1 तीमु. 5:19, इब्रा. 10:28) \bdit*
|
||
\v 7 उसके मार डालने के लिये सबसे पहले साक्षियों के हाथ, और उनके बाद और सब लोगों के हाथ उठें। इसी रीति से ऐसी बुराई को अपने मध्य से दूर करना। \bdit (यूह. 8:7, 1 कुरि. 5:13) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 8 “यदि तेरी बस्तियों के भीतर कोई झगड़े की बात हो, अर्थात् आपस के खून, या विवाद, या मारपीट का कोई मुकद्दमा उठे, और उसका \it न्याय करना तेरे लिये कठिन जान पड़े\f + \fr 17:8 \fq न्याय करना तेरे लिये कठिन जान पड़े: \ft उपन्यायधिशों के लिये यदि किसी बात का निर्णय लेना कठिन हो तो वह उनके वरिष्ठ न्यायियों को सौंप दिया जाए।\f*\it*, तो उस स्थान को जाकर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा;
|
||
\v 9 लेवीय याजकों के पास और उन दिनों के न्यायियों के पास जाकर पूछपाछ करना, कि वे तुम को न्याय की बातें बताएँ।
|
||
\v 10 और न्याय की जैसी बात उस स्थान के लोग जो यहोवा चुन लेगा तुझे बता दें, उसी के अनुसार करना; और जो व्यवस्था वे तुझे दें उसी के अनुसार चलने में चौकसी करना;
|
||
\v 11 व्यवस्था की जो बात वे तुझे बताएँ, और न्याय की जो बात वे तुझ से कहें, उसी के अनुसार करना; जो बात वे तुझको बताएँ उससे दाएँ या बाएँ न मुड़ना।
|
||
\v 12 और जो मनुष्य अभिमान करके उस याजक की, जो वहाँ तेरे परमेश्वर यहोवा की सेवा टहल करने को उपस्थित रहेगा, न माने, या उस न्यायी की न सुने, तो वह मनुष्य मार डाला जाए; इस प्रकार तू इस्राएल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।
|
||
\v 13 इससे सब लोग सुनकर डर जाएँगे, और फिर अभिमान नहीं करेंगे।
|
||
\s राजाओं से सम्बंधित आदेश
|
||
\p
|
||
\v 14 “जब तू उस देश में पहुँचे जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, और उसका अधिकारी हो, और उनमें बसकर कहने लगे, कि चारों ओर की सब जातियों के समान मैं भी अपने ऊपर राजा ठहराऊँगा;
|
||
\v 15 तब \it जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना\f + \fr 17:15 \fq जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना: \ft न्यायियों और अधिकारियों (व्यव. 16:18) के सदृश्य राजा भी प्रजा द्वारा ही चुना जाए परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप हो और उन्हीं में से हो। \f*\it*। अपने भाइयों ही में से किसी को अपने ऊपर राजा ठहराना; किसी परदेशी को जो तेरा भाई न हो तू अपने ऊपर अधिकारी नहीं ठहरा सकता।
|
||
\v 16 और वह बहुत घोड़े न रखे, और \it न इस मनसा से अपनी प्रजा के लोगों को मिस्र में भेजे\f + \fr 17:16 \fq न इस मनसा से अपनी प्रजा के लोगों को मिस्र में भेजे: \ft अधिक घोड़ों के आदान-प्रदान के लिए, घोड़ों की जगह दास न भेजें\f*\it* कि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएँ, क्योंकि यहोवा ने तुम से कहा है, कि तुम उस मार्ग से फिर कभी न लौटना।
|
||
\v 17 और वह बहुत स्त्रियाँ भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए; और न वह अपना सोना-चाँदी बहुत बढ़ाए।
|
||
\v 18 और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, जो लेवीय याजकों के पास रहेगी, उसकी एक नकल अपने लिये कर ले।
|
||
\v 19 और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिससे वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों को मानने में चौकसी करना, सीखे;
|
||
\v 20 जिससे वह अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जाने, और इन आज्ञाओं से न तो दाएँ मुड़ें और न बाएँ; जिससे कि वह और उसके वंश के लोग इस्राएलियों के मध्य बहुत दिनों तक राज्य करते रहें।
|
||
\c 18
|
||
\s याजकों और लेवियों के लिये भेंट
|
||
\p
|
||
\v 1 “लेवीय याजकों का, वरन् सारे लेवीय गोत्रियों का, इस्राएलियों के संग कोई भाग या अंश न हो; उनका भोजन हव्य और यहोवा का दिया हुआ भाग हो।
|
||
\v 2 उनका अपने भाइयों के बीच कोई भाग न हो; क्योंकि अपने वचन के अनुसार यहोवा उनका निज भाग ठहरा है।
|
||
\v 3 और चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरी का मेलबलि हो, उसके करनेवाले लोगों की ओर से याजकों का हक़ यह हो, कि वे उसका कंधा और दोनों गाल और पेट याजक को दें। \bdit (1 कुरि. 9:13) \bdit*
|
||
\v 4 तू उसको अपनी पहली उपज का अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल, और अपनी भेड़ों का वह ऊन देना जो पहली बार कतरा गया हो।
|
||
\v 5 क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे सब गोत्रों में से उसी को चुन लिया है, कि वह और उसके वंश सदा उसके नाम से सेवा टहल करने को उपस्थित हुआ करें।
|
||
\p
|
||
\v 6 “फिर यदि कोई लेवीय इस्राएल की बस्तियों में से किसी से, जहाँ वह परदेशी के समान रहता हो, अपने मन की बड़ी अभिलाषा से उस स्थान पर जाए जिसे यहोवा चुन लेगा,
|
||
\v 7 तो अपने सब लेवीय भाइयों के समान, जो वहाँ अपने परमेश्वर यहोवा के सामने उपस्थित होंगे, वह भी उसके नाम से सेवा टहल करे।
|
||
\v 8 और अपने पूर्वजों के भाग के मोल को छोड़ उसको भोजन का भाग भी उनके समान मिला करे।
|
||
\s पवित्र रहने के लिये बुलाहट
|
||
\p
|
||
\v 9 “जब तू उस देश में पहुँचे जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब वहाँ की जातियों के अनुसार घिनौना काम करना न सीखना।
|
||
\v 10 तुझ में कोई ऐसा न हो जो अपने बेटे या बेटी को आग में होम करके चढ़ानेवाला, या भावी कहनेवाला, या शुभ-अशुभ मुहूर्त्तों का माननेवाला, या टोन्हा, या तांत्रिक,
|
||
\v 11 या बाजीगर, या ओझों से पूछनेवाला, या भूत साधनेवाला, या भूतों का जगानेवाला हो।
|
||
\v 12 क्योंकि जितने ऐसे-ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं; और इन्हीं घृणित कामों के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे सामने से निकालने पर है।
|
||
\v 13 तू अपने परमेश्वर \it यहोवा के सम्मुख सिद्ध बना रहना\f + \fr 18:13 \fq यहोवा के सम्मुख सिद्ध बना रहना: \ft अर्थात् इस्राएलियों को यहोवा की उपासना मूर्तिपूजा के द्वारा दूषित न की जाए। \f*\it*। \bdit (मत्ती 5:48) \bdit*
|
||
\s एक नबी भेजने की प्रतिज्ञा
|
||
\p
|
||
\v 14 “वे जातियाँ जिनका अधिकारी तू होने पर है शुभ-अशुभ मुहूर्त्तों के माननेवालों और भावी कहनेवालों की सुना करती है; परन्तु तुझको तेरे परमेश्वर यहोवा ने ऐसा करने नहीं दिया।
|
||
\v 15 तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्थात् तेरे भाइयों में से \it मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा\f + \fr 18:15 \fq मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा: \ft मूसा एक भविष्यद्वक्ता एवं एक प्रधान स्वरूप मसीह की प्रतिज्ञा करता है।\f*\it*; तू उसी की सुनना; \bdit (मत्ती 17:5, मर. 9:7, लूका 9:35) \bdit*
|
||
\v 16 यह तेरी उस विनती के अनुसार होगा, जो तूने होरेब पहाड़ के पास सभा के दिन अपने परमेश्वर यहोवा से की थी, ‘मुझे न तो अपने परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनना, और न वह बड़ी आग फिर देखनी पड़े, कहीं ऐसा न हो कि मर जाऊँ।’
|
||
\v 17 तब यहोवा ने मुझसे कहा, ‘वे जो कुछ कहते हैं ठीक कहते हैं।
|
||
\v 18 इसलिए मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूँगा; और अपना वचन उसके मुँह में डालूँगा; और जिस-जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूँगा वही वह उनको कह सुनाएगा। \bdit (प्रेरि. 3:2, 7:37) \bdit*
|
||
\v 19 और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उससे लूँगा। \bdit (प्रेरि. 3:23) \bdit*
|
||
\v 20 परन्तु जो नबी अभिमान करके मेरे नाम से कोई ऐसा वचन कहे जिसकी आज्ञा मैंने उसे न दी हो, या पराए देवताओं के नाम से कुछ कहे, वह नबी मार डाला जाए।’
|
||
\v 21 और यदि तू अपने मन में कहे, ‘जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहचानें?’
|
||
\v 22 तो पहचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभिमान करके कही है, तू उससे भय न खाना।
|
||
\c 19
|
||
\s खूनी के लिये शरणनगर
|
||
\p
|
||
\v 1 “जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियों को नाश करे जिनका देश वह तुझे देता है, और तू उनके देश का अधिकारी होकर उनके नगरों और घरों में रहने लगे,
|
||
\v 2 तब अपने देश के बीच जिसका अधिकारी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे कर देता है तीन नगर अपने लिये अलग कर देना।
|
||
\v 3 और तू अपने लिये मार्ग भी तैयार करना, और अपने देश के, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे सौंप देता है, तीन भाग करना, ताकि हर एक खूनी वहीं भाग जाए।
|
||
\v 4 और जो खूनी वहाँ भागकर अपने प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्थात् वह किसी से बिना पहले बैर रखे या उसको बिना जाने बूझे मार डाला हो
|
||
\v 5 जैसे कोई किसी के संग लकड़ी काटने को जंगल में जाए, और वृक्ष काटने को कुल्हाड़ी हाथ से उठाए, और कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर उस भाई को ऐसी लगे कि वह मर जाए तो वह उन नगरों में से किसी में भागकर जीवित रहे;
|
||
\v 6 ऐसा न हो कि मार्ग की लम्बाई के कारण खून का पलटा लेनेवाला अपने क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा करके उसको जा पकड़े, और मार डाले, यद्यपि वह प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि वह उससे बैर नहीं रखता था।
|
||
\v 7 इसलिए मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ, कि अपने लिये तीन नगर अलग कर रखना।
|
||
\p
|
||
\v 8 “यदि तेरा परमेश्वर यहोवा उस शपथ के अनुसार जो उसने तेरे पूर्वजों से खाई थी, \it तेरी सीमा को बढ़ाकर\f + \fr 19:8 \fq तेरी सीमा को बढ़ाकर: \ft यहाँ इस्राएल की सीमाओं को परमेश्वर की प्रतिज्ञा के अनुसार मिस्र की नदी से फरात नदी तक विस्तृत करने का प्रावधान किया गया है। \f*\it* वह सारा देश तुझे दे, जिसके देने का वचन उसने तेरे पूर्वजों को दिया था
|
||
\v 9 यदि तू इन सब आज्ञाओं के मानने में जिन्हें मैं आज तुझको सुनाता हूँ चौकसी करे, और अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखे और सदा उसके मार्गों पर चलता रहे तो इन तीन नगरों से अधिक और भी तीन नगर अलग कर देना,
|
||
\v 10 इसलिए कि तेरे उस देश में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके देता है, किसी निर्दोष का खून न बहाया जाए, और उसका दोष तुझ पर न लगे।
|
||
\p
|
||
\v 11 “परन्तु यदि कोई किसी से बैर रखकर उसकी घात में लगे, और उस पर लपककर उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए, और फिर उन नगरों में से किसी में भाग जाए,
|
||
\v 12 तो उसके नगर के पुरनिये किसी को भेजकर उसको वहाँ से मँगवाकर खून के पलटा लेनेवाले के हाथ में सौंप दें, कि वह मार डाला जाए।
|
||
\v 13 उस पर तरस न खाना, परन्तु निर्दोष के खून का दोष इस्राएल से दूर करना, जिससे तुम्हारा भला हो।
|
||
\s सीमा चिन्ह
|
||
\p
|
||
\v 14 “जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको देता है, उसका जो भाग तुझे मिलेगा, उसमें \it किसी की सीमा\f + \fr 19:14 \fq किसी की सीमा: \ft जिस प्रकार मनुष्य की जान को पवित्र मानना था, उसी प्रकार उसकी जीविका को भी पवित्र मानना था। इस सम्बंध में एक निषेधाज्ञा दी गई थी जो पड़ोसी की भूमि के चिन्ह से छेड़-छाड़ करने के विरुद्ध थी। \f*\it* जिसे प्राचीन लोगों ने ठहराया हो न हटाना।
|
||
\s गवाहों से सम्बंधित नियम
|
||
\p
|
||
\v 15 “किसी मनुष्य के विरुद्ध किसी प्रकार के अधर्म या पाप के विषय में, चाहे उसका पाप कैसा ही क्यों न हो, एक ही जन की साक्षी न सुनना, परन्तु दो या तीन साक्षियों के कहने से बात पक्की ठहरे। \bdit (मत्ती 18:16) \bdit*
|
||
\v 16 यदि कोई झूठी साक्षी देनेवाला किसी के विरुद्ध यहोवा से फिर जाने की साक्षी देने को खड़ा हो,
|
||
\v 17 तो \it वे दोनों मनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुकद्दमा उठा हो\f + \fr 19:17 \fq वे दोनों मनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुकद्दमा उठा हो: \ft वादी और प्रतिवादी दोनों को व्यवस्थाविवरण में दिए गए प्रावधानों के अधीन न्यायियों के सामने प्रस्तुत किया जाए।\f*\it*, \it यहोवा के सम्मुख\f + \fr 19:17 \fq यहोवा के सम्मुख: \ft उनके न्यायी परमेश्वर के प्रतिनिधि थे, अत: उनसे झूठ बोलना परमेश्वर से झूठ बोलने के बराबर था।\f*\it*, अर्थात् उन दिनों के याजकों और न्यायियों के सामने खड़े किए जाएँ;
|
||
\v 18 तब न्यायी भली भाँति पूछताछ करें, और यदि इस निर्णय पर पहुँचें कि वह झूठा साक्षी है, और अपने भाई के विरुद्ध झूठी साक्षी दी है
|
||
\v 19 तो अपने भाई की जैसी भी हानि करवाने की युक्ति उसने की हो वैसी ही तुम भी उसकी करना; इसी रीति से अपने बीच में से ऐसी बुराई को दूर करना।
|
||
\v 20 तब दूसरे लोग सुनकर डरेंगे, और आगे को तेरे बीच फिर ऐसा बुरा काम नहीं करेंगे।
|
||
\v 21 और तू बिल्कुल तरस न खाना; प्राण के बदले प्राण का, आँख के बदले आँख का, दाँत के बदले दाँत का, हाथ के बदले हाथ का, पाँव के बदले पाँव का दण्ड देना। \bdit (मत्ती 5:38) \bdit*
|
||
\c 20
|
||
\s युद्ध पर जाने के नियम
|
||
\p
|
||
\v 1 “जब तू अपने शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और \it घोड़े, रथ\f + \fr 20:1 \fq घोड़े, रथ: \ft कनानियों के पास ऐसी भयानक सेना शक्ति थी। इस्राएली अपनी सेना के साथ इनका सामना नहीं कर सकते थे परन्तु उनके पक्ष में सेनाओं का यहोवा था। अत: उन्हें उनसे डरने की आवश्यकता नहीं थी। \f*\it*, और अपने से अधिक सेना को देखे, तब उनसे न डरना; तेरा परमेश्वर यहोवा जो तुझको मिस्र देश से निकाल ले आया है वह तेरे संग है।
|
||
\v 2 और जब तुम युद्ध करने को शत्रुओं के निकट जाओ, तब याजक सेना के पास आकर कहे,
|
||
\v 3 ‘हे इस्राएलियों सुनो, आज तुम अपने शत्रुओं से युद्ध करने को निकट आए हो; तुम्हारा मन कच्चा न हो; तुम मत डरो, और न थरथराओ, और न उनके सामने भय खाओ;
|
||
\v 4 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करने और तुम्हें बचाने के लिये तुम्हारे संग-संग चलता है।’
|
||
\v 5 फिर सरदार सिपाहियों से यह कहें, ‘तुम में से कौन है जिसने नया घर बनाया हो और उसका समर्पण न किया हो? तो वह अपने घर को लौट जाए, कहीं ऐसा न हो कि वह युद्ध में मर जाए और दूसरा मनुष्य उसका समर्पण करे।
|
||
\v 6 और कौन है जिसने दाख की बारी लगाई हो, परन्तु उसके फल न खाए हों? वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह संग्राम में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उसके फल खाए।
|
||
\v 7 फिर कौन है जिसने किसी स्त्री से विवाह की बात लगाई हो, परन्तु उसको विवाह करके न लाया हो? वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह युद्ध में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उससे विवाह कर ले।’
|
||
\v 8 इसके अलावा सरदार सिपाहियों से यह भी कहें, ‘कौन-कौन मनुष्य है जो डरपोक और कच्चे मन का है, वह भी अपने घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसको देखकर उसके भाइयों का भी हियाव टूट जाए।’
|
||
\v 9 और जब प्रधान सिपाहियों से यह कह चुकें, तब उन पर प्रधानता करने के लिये सेनापतियों को नियुक्त करें।
|
||
\p
|
||
\v 10 “जब तू किसी नगर से युद्ध करने को उसके निकट जाए, तब पहले उससे \it संधि करने का समाचार\f + \fr 20:10 \fq संधि करने का समाचार: \ft जान और माल की हानि से बचने के अभिप्राय से ये निर्देश दिए गए थे।\f*\it* दे।
|
||
\v 11 और यदि वह संधि करना स्वीकार करे और तेरे लिये अपने फाटक खोल दे, तब जितने उसमें हों वे सब तेरे अधीन होकर तेरे लिये बेगार करनेवाले ठहरें।
|
||
\v 12 परन्तु यदि वे तुझ से संधि न करें, परन्तु तुझ से लड़ना चाहें, तो तू उस नगर को घेर लेना;
|
||
\v 13 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा उसे तेरे हाथ में सौंप दे तब उसमें के सब पुरुषों को तलवार से मार डालना।
|
||
\v 14 परन्तु स्त्रियाँ और बाल-बच्चे, और पशु आदि जितनी लूट उस नगर में हो उसे अपने लिये रख लेना; और तेरे शत्रुओं की लूट जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे उसे काम में लाना।
|
||
\v 15 इस प्रकार उन नगरों से करना जो तुझ से बहुत दूर हैं, और जो यहाँ की जातियों के नगर नहीं हैं।
|
||
\v 16 परन्तु जो नगर इन लोगों के हैं, जिनका अधिकारी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको ठहराने पर है, उनमें से \it किसी प्राणी को जीवित न रख छोड़ना\f + \fr 20:16 \fq किसी प्राणी को जीवित न रख छोड़ना: \ft कनानियों पर तो किसी भी प्रकार की दया नहीं दर्शाना, उनका पूरा सफाया करना।\f*\it*,
|
||
\v 17 परन्तु उनका अवश्य सत्यानाश करना, अर्थात् हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिब्बियों, और यबूसियों को, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है;
|
||
\v 18 ऐसा न हो कि जितने घिनौने काम वे अपने देवताओं की सेवा में करते आए हैं वैसा ही करना तुम्हें भी सिखाएँ, और तुम अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध पाप करने लगो।
|
||
\p
|
||
\v 19 “जब तू युद्ध करते हुए किसी नगर को जीतने के लिये उसे बहुत दिनों तक घेरे रहे, तब उसके वृक्षों पर कुल्हाड़ी चलाकर उन्हें नाश न करना, क्योंकि उनके फल तेरे खाने के काम आएँगे, इसलिए उन्हें न काटना। क्या मैदान के वृक्ष भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे?
|
||
\v 20 परन्तु जिन वृक्षों के विषय में तू यह जान ले कि इनके फल खाने के नहीं हैं, तो उनको काटकर नाश करना, और उस नगर के विरुद्ध उस समय तक घेराबन्दी किए रहना जब तक वह तेरे वश में न आ जाए।
|
||
\c 21
|
||
\s अनसुलझे हत्या के सम्बंध में नियम
|
||
\p
|
||
\v 1 “यदि उस देश के मैदान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है किसी मारे हुए का शव पड़ा हुआ मिले, और उसको किसने मार डाला है यह पता न चले,
|
||
\v 2 तो तेरे पुरनिये और न्यायी निकलकर उस शव के चारों ओर के एक-एक नगर की दूरी को नापें;
|
||
\v 3 तब जो नगर उस शव के सबसे निकट ठहरे, उसके पुरनिये एक ऐसी बछिया ले ले, जिससे कुछ काम न लिया गया हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो।
|
||
\v 4 तब उस नगर के पुरनिये उस बछिया को एक बारहमासी नदी की ऐसी तराई में जो न जोती और न बोई गई हो ले जाएँ, और उसी तराई में उस बछिया का गला तोड़ दें।
|
||
\v 5 और लेवीय याजक भी निकट आएँ, क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उनको चुन लिया है कि उसकी सेवा टहल करें और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, और उनके कहने के अनुसार हर एक झगड़े और मारपीट के मुकद्दमे का निर्णय हो।
|
||
\v 6 फिर जो नगर उस शव के सबसे निकट ठहरे, उसके सब पुरनिए उस बछिया के ऊपर जिसका गला तराई में तोड़ा गया हो अपने-अपने हाथ धोकर कहें, \bdit (मत्ती 27:24) \bdit*
|
||
\v 7 ‘यह खून हमने नहीं किया, और न यह काम हमारी आँखों के सामने हुआ है।
|
||
\v 8 इसलिए, हे यहोवा, अपनी छुड़ाई हुई इस्राएली प्रजा का पाप ढाँपकर निर्दोष खून का पाप अपनी इस्राएली प्रजा के सिर पर से उतार।’ तब उस खून के दोष से उनको क्षमा कर दिया जाएगा।
|
||
\v 9 इस प्रकार वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है तू निर्दोष के खून का दोष अपने मध्य में से दूर करना।
|
||
\s महिला बन्दी
|
||
\p
|
||
\v 10 “जब तू अपने शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे हाथ में कर दे, और तू उन्हें बन्दी बना ले,
|
||
\v 11 तब यदि तू बन्दियों में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाए, और उससे ब्याह कर लेना चाहे,
|
||
\v 12 तो उसे अपने घर के भीतर ले आना, और वह अपना सिर मुँड़ाए, नाखून कटाए,
|
||
\v 13 और अपने बन्धन के वस्त्र उतारकर तेरे घर में महीने भर रहकर \it अपने माता पिता के लिये विलाप करती रहे\f + \fr 21:13 \fq अपने माता पिता के लिये विलाप करती रहे: \ft मानवता के उद्देश्य से दिया गया निर्देश कि स्त्री अपने सांसारिक बन्धनों से मुक्त होकर नए बंधन के लिये तैयार हो जाए। \f*\it*; उसके बाद तू उसके पास जाना, और तू उसका पति और वह तेरी पत्नी बने।
|
||
\v 14 फिर यदि वह तुझको अच्छी न लगे, तो जहाँ वह जाना चाहे वहाँ उसे जाने देना; उसको रुपया लेकर कहीं न बेचना, और तेरा उससे शारीरिक सम्बंध था, इस कारण उससे दासी के समान व्यवहार न करना।
|
||
\s पहलौठे का अधिकार
|
||
\p
|
||
\v 15 “यदि किसी पुरुष की दो पत्नियाँ हों, और उसे एक प्रिय और दूसरी अप्रिय हो, और प्रिया और अप्रिय दोनों स्त्रियाँ बेटे जनें, परन्तु जेठा अप्रिय का हो,
|
||
\v 16 तो जब वह अपने पुत्रों को अपनी सम्पत्ति का बँटवारा करे, तब यदि अप्रिय का बेटा जो सचमुच जेठा है यदि जीवित हो, तो वह प्रिया के बेटे को जेठांस न दे सकेगा;
|
||
\v 17 वह यह जानकर कि अप्रिय का बेटा मेरे पौरूष का पहला फल है, और जेठे का अधिकार उसी का है, उसी को अपनी सारी सम्पत्ति में से दो भाग देकर जेठांसी माने।
|
||
\s हठीला पुत्र
|
||
\p
|
||
\v 18 “यदि किसी का हठीला और विद्रोही बेटा हो, जो अपने माता-पिता की बात न माने, किन्तु ताड़ना देने पर भी उनकी न सुने,
|
||
\v 19 तो उसके माता-पिता उसे पकड़कर अपने नगर से बाहर फाटक के निकट नगर के पुरनियों के पास ले जाएँ,
|
||
\v 20 और वे नगर के पुरनियों से कहें, ‘हमारा यह बेटा हठीला और दंगैत है, यह हमारी नहीं सुनता; यह उड़ाऊ और पियक्कड़ है।’
|
||
\v 21 तब उस नगर के सब पुरुष उसको पथराव करके मार डालें, इस रीति से तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना, तब सारे इस्राएली सुनकर भय खाएँगे।
|
||
\s पेड़ पर लटकाए जानेवाला श्रापित
|
||
\p
|
||
\v 22 “फिर यदि किसी से प्राणदण्ड के योग्य कोई पाप हुआ हो जिससे वह मार डाला जाए, और तू उसके शव को वृक्ष पर लटका दे,
|
||
\v 23 तो \it वह शव रात को वृक्ष पर टँगा न रहे\f + \fr 21:23 \fq वह शव रात को वृक्ष पर टँगा न रहे: \ft उसको अपराध का दण्ड मिल गया और जनता के उदाहरण स्वरूप वह लटका रहा। उस पवित्र भूमि को उसकी उपस्थिति से तुरन्त एवं पूर्णतः मुक्त किया जाना था।\f*\it*, अवश्य उसी दिन उसे मिट्टी देना, क्योंकि जो लटकाया गया हो वह परमेश्वर की ओर से श्रापित ठहरता है; इसलिए जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके देता है उस भूमि को अशुद्ध न करना। \bdit (मत्ती 27:57,58, प्रेरि. 5:30) \bdit*
|
||
\c 22
|
||
\s विभिन्न नियम
|
||
\p
|
||
\v 1 “तू अपने भाई के गाय-बैल या भेड़-बकरी को भटकी हुई देखकर अनदेखी न करना, उसको अवश्य उसके पास पहुँचा देना।
|
||
\v 2 परन्तु यदि तेरा वह भाई निकट न रहता हो, या तू उसे न जानता हो, तो उस पशु को अपने घर के भीतर ले आना, और जब तक तेरा वह भाई उसको न ढूँढ़े तब तक वह तेरे पास रहे; और जब वह उसे ढूँढ़े तब उसको दे देना।
|
||
\v 3 और उसके गदहे या वस्त्र के विषय, वरन् उसकी कोई वस्तु क्यों न हो, जो उससे खो गई हो और तुझको मिले, उसके विषय में भी ऐसा ही करना; तू देखी-अनदेखी न करना।
|
||
\p
|
||
\v 4 “तू अपने भाई के गदहे या बैल को मार्ग पर गिरा हुआ देखकर अनदेखी न करना; उसके उठाने में अवश्य उसकी सहायता करना।
|
||
\p
|
||
\v 5 “कोई स्त्री पुरुष का पहरावा न पहने, और न कोई पुरुष स्त्री का पहरावा पहने; क्योंकि ऐसे कामों के सब करनेवाले तेरे \it परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं\f + \fr 22:5 \fq परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं: \ft लिंग भेद प्राकृतिक है और परमेश्वर की ओर से है। इसे मर्यादा हीनता और पवित्रता के परिणामित विनाश के बिना अनदेखा नहीं किया जा सकता है। \f*\it*।
|
||
\p
|
||
\v 6 “यदि वृक्ष या भूमि पर तेरे सामने मार्ग में किसी चिड़िया का घोंसला मिले, चाहे उसमें बच्चे हों चाहे अण्डे, और उन बच्चों या अण्डों पर उनकी माँ बैठी हुई हो, तो बच्चों समेत माँ को न लेना;
|
||
\v 7 बच्चों को अपने लिये ले तो ले, परन्तु माँ को अवश्य छोड़ देना; इसलिए कि तेरा भला हो, और तेरी आयु के दिन बहुत हों।
|
||
\p
|
||
\v 8 “जब तू नया घर बनाए तब उसकी \it छत पर आड़ के लिये मुण्डेर बनाना\f + \fr 22:8 \fq छत पर आड़ के लिये मुण्डेर बनाना: \ft कनान में छतें समतल होती थी और विभिन्न कामों में ली जाती थी।\f*\it*, ऐसा न हो कि कोई छत पर से गिर पड़े, और तू अपने घराने पर खून का दोष लगाए।
|
||
\p
|
||
\v 9 “अपनी दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि उसकी सारी उपज, अर्थात् तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनों अपवित्र ठहरें।
|
||
\v 10 बैल और गदहा दोनों संग जोतकर हल न चलाना।
|
||
\v 11 ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहनना।
|
||
\p
|
||
\v 12 “अपने ओढ़ने के चारों ओर की कोर पर झालर लगाया करना।
|
||
\s विवाह सम्बंधित नियम
|
||
\p
|
||
\v 13 “यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याहे, और उसके पास जाने के समय वह उसको अप्रिय लगे,
|
||
\v 14 और वह उस स्त्री की नामधराई करे, और यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाए, ‘इस स्त्री को मैंने ब्याहा, और जब उससे संगति की तब उसमें कुँवारी अवस्था के लक्षण न पाए,’
|
||
\v 15 तो उस कन्या के माता-पिता उसके कुँवारीपन के चिन्ह लेकर नगर के वृद्ध लोगों के पास फाटक के बाहर जाएँ;
|
||
\v 16 और उस कन्या का पिता वृद्ध लोगों से कहे, ‘मैंने अपनी बेटी इस पुरुष को ब्याह दी, और वह उसको अप्रिय लगती है;
|
||
\v 17 और वह तो यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाता है, कि मैंने तेरी बेटी में कुँवारीपन के लक्षण नहीं पाए। परन्तु मेरी बेटी के कुँवारीपन के चिन्ह ये हैं।’ तब उसके माता-पिता नगर के वृद्ध लोगों के सामने उस चद्दर को फैलाएँ।
|
||
\v 18 तब नगर के पुरनिये उस पुरुष को पकड़कर ताड़ना दें;
|
||
\v 19 और उस पर सौ शेकेल चाँदी का दण्ड भी लगाकर \it उस कन्या के पिता को दें\f + \fr 22:19 \fq उस कन्या के पिता को दें: \ft पत्नी के माइके का मुखिया होने के कारण वह बुराई मुख्यतः पिता के विरुद्ध ही थी।\f*\it*, इसलिए कि उसने एक इस्राएली कन्या की नामधराई की है; और वह उसी की पत्नी बनी रहे, और वह जीवन भर उस स्त्री को त्यागने न पाए।
|
||
\v 20 परन्तु यदि उस कन्या के कुँवारीपन के चिन्ह पाए न जाएँ, और उस पुरुष की बात सच ठहरे,
|
||
\v 21 तो वे उस कन्या को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाएँ, और उस नगर के पुरुष उसको पथराव करके मार डालें; उसने तो अपने पिता के घर में वेश्या का काम करके बुराई की है; इस प्रकार तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना। \bdit (1 कुरि. 5:13) \bdit*
|
||
\s व्यभिचार का दण्ड
|
||
\p
|
||
\v 22 “यदि कोई पुरुष दूसरे पुरुष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरुष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनों मार डाले जाएँ; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इस्राएल में से दूर करना। \bdit (यूह. 8:5) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 23 “यदि किसी कुँवारी कन्या के ब्याह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरुष उसे नगर में पाकर उससे कुकर्म करे,
|
||
\v 24 तो तुम उन दोनों को उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उन पर पथराव करके मार डालना, उस कन्या को तो इसलिए कि वह नगर में रहते हुए भी नहीं चिल्लाई, और उस पुरुष को इस कारण कि उसने पड़ोसी की स्त्री का अपमान किया है; इस प्रकार तू अपने मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना। \bdit (1 कुरि. 5:13) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 25 “परन्तु यदि कोई पुरुष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात लगी हो मैदान में पाकर बरबस उससे कुकर्म करे, तो केवल वह पुरुष मार डाला जाए, जिसने उससे कुकर्म किया हो।
|
||
\v 26 और उस कन्या से कुछ न करना; उस कन्या का पाप प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि जैसे कोई अपने पड़ोसी पर चढ़ाई करके उसे मार डाले, वैसी ही यह बात भी ठहरेगी;
|
||
\v 27 कि उस पुरुष ने उस कन्या को मैदान में पाया, और वह चिल्लाई तो सही, परन्तु उसको कोई बचानेवाला न मिला।
|
||
\p
|
||
\v 28 “यदि किसी पुरुष को कोई कुँवारी कन्या मिले जिसके ब्याह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साथ कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएँ,
|
||
\v 29 तो जिस पुरुष ने उससे कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल चाँदी दे, और वह उसी की पत्नी हो, उसने उसका अपमान किया, इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।
|
||
\p
|
||
\v 30 “कोई अपनी सौतेली माता को अपनी स्त्री न बनाए, वह अपने पिता का ओढ़ना न उघाड़े। \bdit (1 कुरि. 5:1) \bdit*
|
||
\c 23
|
||
\s यहोवा की सभा में प्रवेश निषेध
|
||
\p
|
||
\v 1 “जिसके अण्ड कुचले गए या लिंग काट डाला गया हो वह यहोवा की सभा में न आने पाए।
|
||
\p
|
||
\v 2 “कोई कुकर्म से जन्मा हुआ यहोवा की सभा में न आने पाए; किन्तु दस पीढ़ी तक उसके वंश का कोई यहोवा की सभा में न आने पाए।
|
||
\p
|
||
\v 3 “कोई अम्मोनी या मोआबी यहोवा की सभा में न आने पाए; उनकी दसवीं पीढ़ी तक का कोई यहोवा की सभा में कभी न आने पाए;
|
||
\v 4 इस कारण से कि जब तुम मिस्र से निकलकर आते थे तब उन्होंने अन्न जल लेकर मार्ग में तुम से भेंट नहीं की, और यह भी कि उन्होंने अरम्नहरैम देश के पतोर नगरवाले बोर के पुत्र बिलाम को तुझे श्राप देने के लिये दक्षिणा दी।
|
||
\v 5 परन्तु तेरे परमेश्वर यहोवा ने बिलाम की न सुनी; किन्तु तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे निमित्त उसके श्राप को आशीष में बदल दिया, इसलिए कि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रेम रखता था।
|
||
\v 6 तू जीवन भर उनका कुशल और भलाई कभी न चाहना।
|
||
\p
|
||
\v 7 “किसी एदोमी से घृणा न करना, क्योंकि वह तेरा भाई है; किसी मिस्री से भी घृणा न करना, क्योंकि उसके देश में तू परदेशी होकर रहा था।
|
||
\v 8 उनके \it जो परपोते उत्पन्न हों\f + \fr 23:8 \fq जो परपोते उत्पन्न हों: \ft एदोमी और मिस्रियों के परपोते।\f*\it* वे यहोवा की सभा में आने पाएँ।
|
||
\s छावनी की साफ-सफाई
|
||
\p
|
||
\v 9 “जब तू शत्रुओं से लड़ने को जाकर छावनी डाले, तब सब प्रकार की बुरी बातों से बचे रहना।
|
||
\v 10 यदि तेरे बीच कोई पुरुष उस अशुद्धता से जो रात्रि को आप से आप हुआ करती है अशुद्ध हुआ हो, तो वह छावनी से बाहर जाए, और छावनी के भीतर न आए;
|
||
\v 11 परन्तु संध्या से कुछ पहले वह स्नान करे, और जब सूर्य डूब जाए तब छावनी में आए।
|
||
\p
|
||
\v 12 “छावनी के बाहर शौच-स्थान बनाना, और शौच के लिए वहीं जाया करना;
|
||
\v 13 और तेरे पास के हथियारों में एक खनती भी रहे; और जब तू दिशा फिरने को बैठे, तब उससे खोदकर अपने मल को ढाँप देना।
|
||
\v 14 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको बचाने और तेरे शत्रुओं को तुझ से हरवाने को तेरी छावनी के मध्य घूमता रहेगा, इसलिए तेरी छावनी पवित्र रहनी चाहिये, ऐसा न हो कि वह तेरे मध्य में कोई अशुद्ध वस्तु देखकर तुझ से फिर जाए।
|
||
\s भगोड़ा दास
|
||
\p
|
||
\v 15 “\it जो दास अपने स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले\f + \fr 23:15 \fq जो दास अपने स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले: \ft अन्यजाति स्वामी के पास से भागकर उनके देश में आ जाए। निश्चय ही वह शरणार्थी दण्ड से भागकर नहीं परन्तु अपने स्वामी के अत्याचार से बचकर भागा है। \f*\it* उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना;
|
||
\v 16 वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए; और तू उस पर अत्याचार न करना।
|
||
\s वेश्यावृत्ति वर्जित
|
||
\p
|
||
\v 17 “इस्राएली स्त्रियों में से \it कोई देवदासी न हो\f + \fr 23:17 \fq कोई देवदासी न हो: \ft मूर्तिपूजक जातियों में वैश्यावृति धार्मिक अनुष्ठान थी विशेष करके अश्तारोत की उपासना में।\f*\it*, और न इस्राएलियों में से कोई पुरुष ऐसा बुरा काम करनेवाला हो।
|
||
\v 18 तू वेश्यापन की कमाई या कुत्ते की कमाई किसी मन्नत को पूरी करने के लिये अपने परमेश्वर यहोवा के घर में न लाना; क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप ये दोनों की दोनों कमाई घृणित कर्म है।
|
||
\s ऋणों पर ब्याज
|
||
\p
|
||
\v 19 “अपने किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रुपया हो, चाहे भोजनवस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाती है, उसे ब्याज पर न देना।
|
||
\v 20 तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपने किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिकारी होने को तू जा रहा है, वहाँ जिस-जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभी में तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे।
|
||
\s मन्नत
|
||
\p
|
||
\v 21 “जब तू अपने परमेश्वर यहोवा के लिये मन्नत माने, तो उसे पूरी करने में विलम्ब न करना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा उसे निश्चय तुझ से ले लेगा, और विलम्ब करने से तू पापी ठहरेगा। \bdit (मत्ती 5:33) \bdit*
|
||
\v 22 परन्तु यदि तू मन्नत न माने, तो तेरा कोई पाप नहीं।
|
||
\v 23 जो कुछ तेरे मुँह से निकले उसके पूरा करने में चौकसी करना; तू अपने मुँह से वचन देकर अपनी इच्छा से अपने परमेश्वर यहोवा की जैसी मन्नत माने, वैसा ही स्वतंत्रता पूर्वक उसे पूरा करना।
|
||
\s पड़ोसी की फसलें
|
||
\p
|
||
\v 24 “जब तू किसी दूसरे की दाख की बारी में जाए, तब पेट भर मनमाने दाख खा तो खा, परन्तु अपने पात्र में कुछ न रखना।
|
||
\v 25 और जब तू किसी दूसरे के खड़े खेत में जाए, तब तू हाथ से बालें तोड़ सकता है, परन्तु किसी दूसरे के खड़े खेत पर हँसुआ न लगाना। \bdit (मत्ती 12:1) \bdit*
|
||
\c 24
|
||
\s तलाक और पुनर्विवाह
|
||
\p
|
||
\v 1 “यदि कोई पुरुष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उससे अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपने घर से निकाल दे। \bdit (मत्ती 5:31) \bdit*
|
||
\v 2 और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरुष की हो सकती है।
|
||
\v 3 परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरुष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिये त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपने घर से निकाल दे, या वह दूसरा पुरुष जिसने उसको अपनी स्त्री कर लिया हो मर जाए,
|
||
\v 4 तो उसका पहला पति, जिसने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपनी पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना।
|
||
\s विभिन्न नियम
|
||
\p
|
||
\v 5 “जिस पुरुष का हाल ही में विवाह हुआ हो, वह सेना के साथ न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपने घर में स्वतंत्रता से रहकर अपनी ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे।
|
||
\p
|
||
\v 6 “कोई मनुष्य चक्की को या उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानो प्राण ही को बन्धक रखना है।
|
||
\s अपहरण
|
||
\p
|
||
\v 7 “यदि कोई अपने किसी इस्राएली भाई को दास बनाने या बेच डालने के विचार से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपने मध्य में से दूर करना। \bdit (1 कुरि. 5:13) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 8 “कोढ़ की व्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएँ उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैंने उनको दी है वैसा करने में चौकसी करना।
|
||
\v 9 स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मिर्याम से क्या किया।
|
||
\p
|
||
\v 10 “जब तू अपने किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिये उसके घर के भीतर न घुसना।
|
||
\v 11 तू बाहर खड़ा रहना, और जिसको तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए।
|
||
\v 12 और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपने पास रखे हुए न सोना;
|
||
\v 13 सूर्य अस्त होते-होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिए कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धार्मिकता का काम ठहरेगा।
|
||
\p
|
||
\v 14 “कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयों में से हो चाहे तेरे देश के फाटकों के भीतर रहनेवाले परदेशियों में से हो, उस पर अंधेर न करना;
|
||
\v 15 यह जानकर कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दुहाई दे, और तू पापी ठहरे। \bdit (मत्ती 20:8) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 16 “पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; \it जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए\f + \fr 24:16 \fq जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए: \ft सांसारिक न्यायाधीशों के लिये सावधानी का निर्देश। अन्य पूर्वी देशों में अपराधी के दण्ड में उसके परिवार को भी भागीदार बनाया जाता था। इस्राएल में ऐसा नहीं होना था।\f*\it*।
|
||
\p
|
||
\v 17 “किसी परदेशी मनुष्य या अनाथ बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपड़े को बन्धक रखना;
|
||
\v 18 और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र में दास था, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहाँ से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ।
|
||
\p
|
||
\v 19 “जब तू अपने पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये पड़ा रहे; इसलिए कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में तुझको आशीष दे।
|
||
\v 20 जब तू अपने जैतून के वृक्ष को झाड़े, तब डालियों को दूसरी बार न झाड़ना; वह परदेशी, अनाथ, और विधवा के लिये रह जाए।
|
||
\v 21 जब तू अपनी दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना-दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाथ और विधवा के लिये रह जाए।
|
||
\v 22 और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास था; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूँ।
|
||
\c 25
|
||
\s निष्पक्षता और दया
|
||
\p
|
||
\v 1 “यदि मनुष्यों के बीच कोई झगड़ा हो, और वे न्याय करवाने के लिये न्यायियों के पास जाएँ, और वे उनका न्याय करें, तो निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी ठहराएँ।
|
||
\v 2 और यदि दोषी मार खाने के योग्य ठहरे, तो न्यायी उसको गिरवाकर अपने सामने जैसा उसका दोष हो उसके अनुसार कोड़े गिनकर लगवाए।
|
||
\v 3 वह उसे \it चालीस कोड़े\f + \fr 25:3 \fq चालीस कोड़े: \ft चालीस दण्ड की पूर्ति मानी जाती थी।\f*\it* तक लगवा सकता है, इससे अधिक नहीं लगवा सकता; ऐसा न हो कि इससे अधिक बहुत मार खिलवाने से तेरा भाई तेरी दृष्टि में तुच्छ ठहरे।
|
||
\p
|
||
\v 4 “दाँवते समय चलते हुए बैल का मुँह न बाँधना। \bdit (1 कुरि. 9:9) \bdit*
|
||
\s मृत भाई के प्रति उत्तरदायित्व
|
||
\p
|
||
\v 5 “जब कई भाई संग रहते हों, और उनमें से एक निपुत्र मर जाए, तो उसकी स्त्री का ब्याह परगोत्री से न किया जाए; उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी पत्नी कर ले, और उससे पति के भाई का धर्म पालन करे। \bdit (मत्ती 22: 24) \bdit*
|
||
\v 6 और जो पहला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह उस मरे हुए भाई के नाम का ठहरे, जिससे कि उसका नाम इस्राएल में से मिट न जाए।
|
||
\v 7 यदि उस स्त्री के पति के भाई को उससे विवाह करना न भाए, तो वह स्त्री नगर के फाटक पर वृद्ध लोगों के पास जाकर कहे, ‘मेरे पति के भाई ने अपने भाई का नाम इस्राएल में बनाए रखने से मना कर दिया है, और मुझसे पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता।’
|
||
\v 8 तब उस नगर के वृद्ध लोग उस पुरुष को बुलवाकर उसको समझाएँ; और यदि वह अपनी बात पर अड़ा रहे, और कहे, ‘मुझे इससे विवाह करना नहीं भावता,’
|
||
\v 9 तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगों के सामने उसके पास जाकर \it उसके पाँव से जूती उतारे\f + \fr 25:9 \fq उसके पाँव से जूती उतारे: \ft मृतक की पत्नी और समादा का सम्पूर्ण अधिकार उस असहमत भाई से छीनने के लिये।\f*\it*, और उसके मुँह पर थूक दे; और कहे, ‘जो पुरुष अपने भाई के वंश को चलाना न चाहे उससे इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा।’
|
||
\v 10 तब इस्राएल में उस पुरुष का यह नाम पड़ेगा, अर्थात् जूती उतारे हुए पुरुष का घराना।
|
||
\s विभिन्न नियम
|
||
\p
|
||
\v 11 “यदि दो पुरुष आपस में मारपीट करते हों, और उनमें से एक की पत्नी अपने पति को मारनेवाले के हाथ से छुड़ाने के लिये पास जाए, और अपना हाथ बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को पकड़े,
|
||
\v 12 तो उस स्त्री का हाथ काट डालना; उस पर तरस न खाना।
|
||
\p
|
||
\v 13 “अपनी थैली में भाँति-भाँति के अर्थात् घटती-बढ़ती बटखरे न रखना।
|
||
\v 14 अपने घर में भाँति-भाँति के, अर्थात् घटती-बढ़ती नपुए न रखना।
|
||
\v 15 तेरे बटखरे और नपुए पूरे-पूरे और धर्म के हों; इसलिए कि जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसमें तेरी आयु बहुत हो।
|
||
\v 16 क्योंकि ऐसे कामों में जितने कुटिलता करते हैं वे सब तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।
|
||
\s अमालेकियों से बदला
|
||
\p
|
||
\v 17 “स्मरण रख कि जब तू मिस्र से निकलकर आ रहा था तब अमालेक ने तुझ से मार्ग में क्या किया,
|
||
\v 18 अर्थात् उनको परमेश्वर का भय न था; इस कारण उसने जब तू मार्ग में थका-माँदा था, तब तुझ पर चढ़ाई करके जितने निर्बल होने के कारण सबसे पीछे थे उन सभी को मारा।
|
||
\v 19 इसलिए जब तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में, जो वह तेरा भाग करके तेरे अधिकार में कर देता है, तुझे चारों ओर के सब शत्रुओं से विश्राम दे, तब अमालेक का नाम धरती पर से मिटा डालना; और तुम इस बात को न भूलना।
|
||
\c 26
|
||
\s प्रथम फसल के बारे में नियम
|
||
\p
|
||
\v 1 “फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुँचे, और उसका अधिकारी होकर उसमें बस जाए,
|
||
\v 2 तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भाँति-भाँति की जो \it पहली उपज\f + \fr 26:2 \fq पहली उपज: \ft सम्पूर्ण पहली उपज कार्यकारी पुरोहित की होती थी। \f*\it* तू अपने घर लाएगा, उसमें से कुछ टोकरी में लेकर उस स्थान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपने नाम का निवास करने को चुन ले।
|
||
\v 3 और उन दिनों के याजक के पास जाकर यह कहना, ‘मैं आज हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने स्वीकार करता हूँ, कि यहोवा ने हम लोगों को जिस देश के देने की हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी उसमें मैं आ गया हूँ।’
|
||
\v 4 तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी लेकर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के सामने रख दे।
|
||
\v 5 तब तू अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, ‘\it मेरा मूलपुरुष एक अरामी मनुष्य था\f + \fr 26:5 \fq मेरा मूलपुरुष एक अरामी मनुष्य था: \ft संदर्भ प्रसंग के द्वारा याकूब से है कि वह मूलपुरुष था क्योंकि उसमें अब्राहम का परिवार एक जाति में विकसित होने लगा था।\f*\it* जो मरने पर था; और वह अपने छोटे से परिवार समेत मिस्र को गया, और वहाँ परदेशी होकर रहा; और वहाँ उससे एक बड़ी, और सामर्थी, और बहुत मनुष्यों से भरी हुई जाति उत्पन्न हुई।
|
||
\v 6 और मिस्रियों ने हम लोगों से बुरा बर्ताव किया, और हमें दुःख दिया, और हम से कठिन सेवा ली।
|
||
\v 7 परन्तु हमने अपने पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा की दुहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुःख-श्रम और अत्याचार पर दृष्टि की;
|
||
\v 8 और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हमको मिस्र से निकाल लाया;
|
||
\v 9 और हमें इस स्थान पर पहुँचाकर यह देश जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं हमें दे दिया है।
|
||
\v 10 अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तूने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूँ।’ तब तू उसे अपने परमेश्वर यहोवा के सामने रखना; और यहोवा को दण्डवत् करना;
|
||
\v 11 और जितने अच्छे पदार्थ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवियों और अपने मध्य में रहनेवाले परदेशियों सहित आनन्द करना।
|
||
\p
|
||
\v 12 “तीसरे वर्ष जो दशमांश देने का वर्ष ठहरा है, जब तू अपनी सब भाँति की बढ़ती के दशमांश को निकाल चुके, तब उसे लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को देना, कि वे तेरे फाटकों के भीतर खाकर तृप्त हों;
|
||
\v 13 और तू अपने परमेश्वर यहोवा से कहना, ‘मैंने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्र ठहराई हुई वस्तुओं को अपने घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाथ, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैंने न तो टाला है, और न भूला है।
|
||
\v 14 उन वस्तुओं में से मैंने शोक के समय नहीं खाया, और न उनमें से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और \it न कुछ शोक करनेवालों को दिया\f + \fr 26:14 \fq न कुछ शोक करनेवालों को दिया: \ft समर्पित वस्तुओं को आनन्द और पवित्र उत्सव में काम में लेना था, न कि मृतकों के भोज में क्योंकि मृत्यु और मृत्यु से सम्बंधित सब बातें अशुद्ध मानी जाती थी। \f*\it*; मैंने अपने परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैंने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है।
|
||
\v 15 तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्र धाम है दृष्टि करके अपनी प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तूने हमारे पूर्वजों से खाई हुई शपथ के अनुसार हमें दिया है।’
|
||
\s परमेश्वर की निज प्रजा
|
||
\p
|
||
\v 16 “आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको इन्हीं विधियों और नियमों के मानने की आज्ञा देता है; इसलिए अपने सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना।
|
||
\v 17 तूने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बताए हुए मार्गों पर चलूँगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमों को माना करूँगा, और तेरी सुना करूँगा।
|
||
\v 18 और यहोवा ने भी आज तुझको अपने वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन-सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे,
|
||
\v 19 और कि वह अपनी बनाई हुई सब जातियों से अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझको प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपने परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।”
|
||
\c 27
|
||
\s व्यवस्था को पत्थरों पर लिखने की आज्ञा
|
||
\p
|
||
\v 1 फिर इस्राएल के वृद्ध लोगों समेत मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी, “जितनी आज्ञाएँ मैं आज तुम्हें सुनाता हूँ उन सब को मानना।
|
||
\v 2 और जब तुम यरदन पार होकर उस देश में पहुँचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब \it बड़े-बड़े पत्थर खड़े कर लेना\f + \fr 27:2 \fq बड़े-बड़े पत्थर खड़े कर लेना: \ft पत्थर एक पृथक स्मारक थे जो उस तथ्य के गवाह थे कि उन पर उत्कीर्ण विधान और उसकी अनिवार्यताओं के पालन के आधार पर उन्होंने उस देश पर अधिकार किया।\f*\it*, और उन पर चूना पोतना;
|
||
\v 3 और पार होने के बाद उन पर इस \it व्यवस्था के सारे वचनों को\f + \fr 27:3 \fq व्यवस्था के सारे वचनों को: \ft मूसा के माध्यम से परमेश्वर ने उनको जितने भी नियम दिए थे।\f*\it* लिखना, इसलिए कि जो देश तेरे पूर्वजों का परमेश्वर यहोवा अपने वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए।
|
||
\v 4 फिर जिन पत्थरों के विषय में मैंने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार होकर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना।
|
||
\v 5 और वहीं अपने परमेश्वर यहोवा के लिये पत्थरों की एक वेदी बनाना, उन पर कोई औज़ार न चलाना।
|
||
\v 6 अपने परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्थरों की बनाकर उस पर उसके लिये होमबलि चढ़ाना;
|
||
\v 7 और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपने परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना।
|
||
\v 8 और उन पत्थरों पर इस व्यवस्था के सब वचनों को स्पष्ट रीति से लिख देना।”
|
||
\p
|
||
\v 9 फिर मूसा और लेवीय याजकों ने सब इस्राएलियों से यह भी कहा, “हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपने परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है।
|
||
\v 10 इसलिए अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो-जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूँ उनका पालन करना।”
|
||
\s अभिशाप वचन
|
||
\p
|
||
\v 11 फिर उसी दिन मूसा ने प्रजा के लोगों को यह आज्ञा दी,
|
||
\v 12 “जब तुम यरदन पार हो जाओ तब शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, यूसुफ, और बिन्यामीन, ये गिरिज्जीम पहाड़ पर खड़े होकर आशीर्वाद सुनाएँ।
|
||
\v 13 और रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान, और नप्ताली, ये एबाल पहाड़ पर खड़े होकर श्राप सुनाएँ।
|
||
\v 14 तब लेवीय लोग सब इस्राएली पुरुषों से पुकारके कहें:
|
||
\p
|
||
\v 15 ‘श्रापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्ति कारीगर से खुदवाकर या ढलवा कर निराले स्थान में स्थापन करे, क्योंकि इससे यहोवा घृणा करता है।’ तब सब लोग कहें, ‘\it आमीन\f + \fr 27:15 \fq आमीन: \ft आमीन शब्द बोलनेवालों के अंगीकार की पुष्टि करता है कि जिन वाक्यों के प्रति उन्होंने प्रतिक्रिया दिखाई सच, न्याय सम्भव और अचूक है। \f*\it*।’
|
||
\p
|
||
\v 16 ‘श्रापित हो वह जो अपने पिता या माता को तुच्छ जाने।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 17 ‘श्रापित हो वह जो किसी दूसरे की सीमा को हटाए।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 18 ‘श्रापित हो वह जो अंधे को मार्ग से भटका दे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 19 ‘श्रापित हो वह जो परदेशी, अनाथ, या विधवा का न्याय बिगाड़े।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 20 ‘श्रापित हो वह जो अपनी सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योंकि वह अपने पिता का ओढ़ना उघाड़ता है।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 21 ‘श्रापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 22 ‘श्रापित हो वह जो अपनी बहन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, से कुकर्म करे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 23 ‘श्रापित हो वह जो अपनी सास के संग कुकर्म करे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 24 ‘श्रापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 25 ‘श्रापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिये घूस ले।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\p
|
||
\v 26 ‘श्रापित हो वह जो इस व्यवस्था के वचनों को मानकर पूरा न करे।’ तब सब लोग कहें, ‘आमीन।’
|
||
\c 28
|
||
\s आज्ञाकारिता के लिये आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 1 “यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएँ, जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ, चौकसी से पूरी करने को चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करेगा।
|
||
\v 2 फिर अपने परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण ये सब आशीर्वाद तुझ पर पूरे होंगे।
|
||
\v 3 धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में।
|
||
\v 4 धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़-बकरी आदि पशुओं के बच्चे। \bdit (लूका 1:42) \bdit*
|
||
\v 5 धन्य हो तेरी \it टोकरी\f + \fr 28:5 \fq टोकरी: \ft पूर्व के देशों में टोकरी या थैला व्यक्तिगत आवश्यकता थी वस्तुओं को लेकर उठाने का एक पारम्परिक साधन था।\f*\it* और तेरा आटा गूँधने का पात्र।
|
||
\v 6 धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय।
|
||
\p
|
||
\v 7 “यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएँगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे सामने से सात मार्ग से होकर भाग जाएँगे।
|
||
\v 8 तेरे खत्तों पर और जितने कामों में तू हाथ लगाएगा उन सभी पर यहोवा आशीष देगा; इसलिए जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसमें वह तुझे आशीष देगा।
|
||
\v 9 यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते हुए उसके मार्गों पर चले, तो वह अपनी शपथ के अनुसार तुझे अपनी पवित्र प्रजा करके स्थिर रखेगा।
|
||
\v 10 और पृथ्वी के देश-देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है, तुझ से डर जाएँगे।
|
||
\v 11 और जिस देश के विषय यहोवा ने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर तुझे देने को कहा था, उसमें वह तेरी सन्तान की, और भूमि की उपज की, और पशुओं की बढ़ती करके तेरी भलाई करेगा।
|
||
\v 12 यहोवा तेरे लिए अपने आकाशरूपी उत्तम भण्डार को खोलकर तेरी भूमि पर समय पर मेंह बरसाया करेगा, और तेरे सारे कामों पर आशीष देगा; और तू बहुतेरी जातियों को उधार देगा, परन्तु किसी से तुझे उधार लेना न पड़ेगा।
|
||
\v 13 और यहोवा तुझको पूँछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा, और तू नीचे नहीं, परन्तु ऊपर ही रहेगा; यदि परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएँ जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ, तू उनके मानने में मन लगाकर चौकसी करे;
|
||
\v 14 और जिन वचनों की मैं आज तुझे आज्ञा देता हूँ उनमें से किसी से दाएँ या बाएँ मुड़कर पराए देवताओं के पीछे न हो ले, और न उनकी सेवा करे।
|
||
\s अनाज्ञाकारिता के लिये अभिशाप
|
||
\p
|
||
\v 15 “परन्तु यदि तू अपने परमेश्वर यहोवा की बात न सुने, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियों के पालन करने में जो मैं आज सुनाता हूँ चौकसी नहीं करेगा, तो ये सब श्राप तुझ पर आ पड़ेंगे।
|
||
\v 16 श्रापित हो तू नगर में, श्रापित हो तू खेत में।
|
||
\v 17 श्रापित हो तेरी टोकरी और तेरा आटा गूँधने का पात्र।
|
||
\v 18 श्रापित हो तेरी सन्तान, और भूमि की उपज, और गायों और भेड़-बकरियों के बच्चे।
|
||
\v 19 श्रापित हो तू भीतर आते समय, और श्रापित हो तू बाहर जाते समय।
|
||
\p
|
||
\v 20 “फिर जिस-जिस काम में तू हाथ लगाए, उसमें यहोवा तब तक तुझको श्राप देता, और भयातुर करता, और धमकी देता रहेगा, जब तक तू मिट न जाए, और शीघ्र नष्ट न हो जाए; यह इस कारण होगा कि तू यहोवा को त्याग कर दुष्ट काम करेगा।
|
||
\v 21 और यहोवा ऐसा करेगा कि मरी तुझ में फैलकर उस समय तक लगी रहेगी, जब तक जिस भूमि के अधिकारी होने के लिये तू जा रहा है उस पर से तेरा अन्त न हो जाए।
|
||
\v 22 यहोवा तुझको क्षयरोग से, और ज्वर, और दाह, और बड़ी जलन से, और तलवार, और झुलस, और गेरूई से मारेगा; और ये उस समय तक तेरा पीछा किए रहेंगे, जब तक तेरा सत्यानाश न हो जाए।
|
||
\v 23 और तेरे सिर के ऊपर आकाश पीतल का, और तेरे पाँव के तले भूमि लोहे की हो जाएगी।
|
||
\v 24 यहोवा तेरे देश में पानी के बदले रेत और धूलि बरसाएगा; वह आकाश से तुझ पर यहाँ तक बरसेगी कि तेरा सत्यानाश हो जाएगा।
|
||
\p
|
||
\v 25 “यहोवा तुझको शत्रुओं से हरवाएगा; और तू एक मार्ग से उनका सामना करने को जाएगा, परन्तु सात मार्ग से होकर उनके सामने से भाग जाएगा; और पृथ्वी के सब राज्यों में मारा-मारा फिरेगा।
|
||
\v 26 और तेरा शव आकाश के भाँति-भाँति के पक्षियों, और धरती के पशुओं का आहार होगा; और उनको कोई भगानेवाला न होगा।
|
||
\v 27 यहोवा तुझको मिस्र के से फोड़े, और बवासीर, और दाद, और खुजली से ऐसा पीड़ित करेगा, कि तू चंगा न हो सकेगा।
|
||
\v 28 यहोवा तुझे पागल और अंधा कर देगा, और तेरे मन को अत्यन्त घबरा देगा;
|
||
\v 29 और जैसे अंधा अंधियारे में टटोलता है वैसे ही तू दिन दुपहरी में टटोलता फिरेगा, और तेरे काम-काज सफल न होंगे; और तू सदैव केवल अत्याचार सहता और लुटता ही रहेगा, और तेरा कोई छुड़ानेवाला न होगा।
|
||
\v 30 तू स्त्री से ब्याह की बात लगाएगा, परन्तु दूसरा पुरुष उसको भ्रष्ट करेगा; घर तू बनाएगा, परन्तु उसमें बसने न पाएगा; दाख की बारी तू लगाएगा, परन्तु उसके फल खाने न पाएगा।
|
||
\v 31 तेरा बैल तेरी आँखों के सामने मारा जाएगा, और तू उसका माँस खाने न पाएगा; तेरा गदहा तेरी आँख के सामने लूट में चला जाएगा, और तुझे फिर न मिलेगा; तेरी भेड़-बकरियाँ तेरे शत्रुओं के हाथ लग जाएँगी, और तेरी ओर से उनका कोई छुड़ानेवाला न होगा।
|
||
\v 32 तेरे बेटे-बेटियाँ दूसरे देश के लोगों के हाथ लग जाएँगे, और उनके लिये चाव से देखते-देखते तेरी आँखें रह जाएँगी; और तेरा कुछ बस न चलेगा।
|
||
\v 33 तेरी भूमि की उपज और तेरी सारी कमाई एक अनजाने देश के लोग खा जाएँगे; और सर्वदा तू केवल अत्याचार सहता और पिसता रहेगा;
|
||
\v 34 यहाँ तक कि तू उन बातों के कारण जो अपनी आँखों से देखेगा पागल हो जाएगा।
|
||
\v 35 यहोवा तेरे घुटनों और टाँगों में, वरन् नख से शीर्ष तक भी असाध्य फोड़े निकालकर तुझको पीड़ित करेगा। \bdit (प्रका. 16:2) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 36 “यहोवा तुझको उस राजा समेत, जिसको तू अपने ऊपर ठहराएगा, तेरे और तेरे पूर्वजों के लिए अनजानी एक जाति के बीच पहुँचाएगा; और उसके मध्य में रहकर तू काठ और पत्थर के दूसरे देवताओं की उपासना और पूजा करेगा।
|
||
\v 37 और उन सब जातियों में जिनके मध्य में यहोवा तुझको पहुँचाएगा, वहाँ के लोगों के लिये तू चकित होने का, और दृष्टान्त और श्राप का कारण समझा जाएगा।
|
||
\v 38 तू खेत में बीज तो बहुत सा ले जाएगा, परन्तु उपज थोड़ी ही बटोरेगा; क्योंकि टिड्डियाँ उसे खा जाएँगी।
|
||
\v 39 तू दाख की बारियाँ लगाकर उनमें काम तो करेगा, परन्तु उनकी दाख का मधु पीने न पाएगा, वरन् फल भी तोड़ने न पाएगा; क्योंकि कीड़े उनको खा जाएँगे।
|
||
\v 40 तेरे सारे देश में जैतून के वृक्ष तो होंगे, परन्तु उनका तेल तू अपने शरीर में लगाने न पाएगा; क्योंकि वे झड़ जाएँगे।
|
||
\v 41 तेरे बेटे-बेटियाँ तो उत्पन्न होंगे, परन्तु तेरे रहेंगे नहीं; क्योंकि वे बन्धुवाई में चले जाएँगे।
|
||
\v 42 तेरे सब वृक्ष और तेरी भूमि की उपज टिड्डियाँ खा जाएँगी।
|
||
\v 43 जो परदेशी तेरे मध्य में रहेगा वह तुझ से बढ़ता जाएगा; और तू आप घटता चला जाएगा।
|
||
\p
|
||
\v 44 “वह तुझको उधार देगा, परन्तु तू उसको उधार न दे सकेगा; वह तो सिर और तू पूँछ ठहरेगा।
|
||
\v 45 तू जो अपने परमेश्वर यहोवा की दी हुई आज्ञाओं और विधियों के मानने को उसकी न सुनेगा, इस कारण ये सब श्राप तुझ पर आ पड़ेंगे, और तेरे पीछे पड़े रहेंगे, और तुझको पकड़ेंगे, और अन्त में तू नष्ट हो जाएगा।
|
||
\v 46 और वे तुझ पर और तेरे वंश पर सदा के लिये बने रहकर चिन्ह और चमत्कार ठहरेंगे;
|
||
\p
|
||
\v 47 “तू जो सब पदार्थ की बहुतायत होने पर भी आनन्द और प्रसन्नता के साथ अपने परमेश्वर यहोवा की सेवा नहीं करेगा,
|
||
\v 48 इस कारण तुझको भूखा, प्यासा, नंगा, और सब पदार्थों से रहित होकर अपने उन शत्रुओं की सेवा करनी पड़ेगी जिन्हें यहोवा तेरे विरुद्ध भेजेगा; और जब तक तू नष्ट न हो जाए तब तक वह तेरी गर्दन पर लोहे का जूआ डाल रखेगा।
|
||
\v 49 यहोवा तेरे विरुद्ध दूर से, वरन् पृथ्वी के छोर से वेग से उड़नेवाले उकाब सी एक जाति को चढ़ा लाएगा जिसकी भाषा को तू न समझेगा;
|
||
\v 50 उस जाति के लोगों का व्यवहार क्रूर होगा, वे न तो बूढ़ों का मुँह देखकर आदर करेंगे, और न बालकों पर दया करेंगे;
|
||
\v 51 और वे तेरे पशुओं के बच्चे और भूमि की उपज यहाँ तक खा जाएँगे कि तू नष्ट हो जाएगा; और वे तेरे लिये न अन्न, और न नया दाखमधु, और न टटका तेल, और न बछड़े, न मेम्ने छोड़ेंगे, यहाँ तक कि तू नाश हो जाएगा।
|
||
\v 52 और वे तेरे परमेश्वर यहोवा के दिये हुए सारे देश के सब फाटकों के भीतर तुझे घेर रखेंगे; वे तेरे सब फाटकों के भीतर तुझे उस समय तक घेरेंगे, जब तक तेरे सारे देश में तेरी ऊँची-ऊँची और दृढ़ शहरपनाहें जिन पर तू भरोसा करेगा गिर न जाएँ।
|
||
\v 53 तब घिर जाने और उस संकट के समय जिसमें तेरे शत्रु तुझको डालेंगे, तू अपने निज जन्माए बेटे-बेटियों का माँस जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको देगा खाएगा।
|
||
\v 54 और तुझ में जो पुरुष कोमल और अति सुकुमार हो वह भी अपने भाई, और अपनी प्राणप्रिय, और अपने बचे हुए बालकों को क्रूर दृष्टि से देखेगा;
|
||
\v 55 और वह उनमें से किसी को भी अपने बालकों के माँस में से जो वह आप खाएगा कुछ न देगा, क्योंकि घिर जाने और उस संकट में, जिसमें तेरे शत्रु तेरे सारे फाटकों के भीतर तुझे घेर डालेंगे, उसके पास कुछ न रहेगा।
|
||
\v 56 और तुझ में जो स्त्री यहाँ तक कोमल और सुकुमार हो कि सुकुमारपन के और कोमलता के मारे भूमि पर पाँव धरते भी डरती हो, वह भी अपने प्राणप्रिय पति, और बेटे, और बेटी को,
|
||
\v 57 अपनी खेरी, वरन् अपने जने हुए बच्चों को क्रूर दृष्टि से देखेगी, क्योंकि घिर जाने और उस संकट के समय जिसमें तेरे शत्रु तुझे तेरे फाटकों के भीतर घेरकर रखेंगे, वह सब वस्तुओं की घटी के मारे उन्हें छिपके खाएगी।
|
||
\p
|
||
\v 58 “यदि तू इन व्यवस्था के सारे वचनों का पालन करने में, जो इस पुस्तक में लिखे हैं, चौकसी करके उस आदरणीय और भययोग्य नाम का, जो यहोवा तेरे परमेश्वर का है भय न माने,
|
||
\v 59 तो यहोवा तुझको और तेरे वंश को भयानक-भयानक दण्ड देगा, वे दुष्ट और बहुत दिन रहनेवाले रोग और भारी-भारी दण्ड होंगे।
|
||
\v 60 और वह मिस्र के उन सब रोगों को फिर तेरे ऊपर लगा देगा, जिनसे तू भय खाता था; और वे तुझ में लगे रहेंगे।
|
||
\v 61 और जितने रोग आदि दण्ड इस व्यवस्था की पुस्तक में नहीं लिखे हैं, उन सभी को भी यहोवा तुझको यहाँ तक लगा देगा, कि तेरा सत्यानाश हो जाएगा।
|
||
\v 62 और तू जो अपने परमेश्वर यहोवा की न मानेगा, इस कारण आकाश के तारों के समान अनगिनत होने के बदले तुझ में से थोड़े ही मनुष्य रह जाएँगे।
|
||
\v 63 और जैसे अब यहोवा को तुम्हारी भलाई और बढ़ती करने से हर्ष होता है, वैसे ही तब उसको तुम्हारा नाश वरन् सत्यानाश करने से हर्ष होगा; और जिस भूमि के अधिकारी होने को तुम जा रहे हो उस पर से तुम उखाड़े जाओगे।
|
||
\v 64 और यहोवा तुझको पृथ्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक के सब देशों के लोगों में तितर-बितर करेगा; और वहाँ रहकर तू अपने और अपने पुरखाओं के अनजाने काठ और पत्थर के दूसरे देवताओं की उपासना करेगा।
|
||
\v 65 और उन जातियों में तू कभी चैन न पाएगा, और न तेरे पाँव को ठिकाना मिलेगा; क्योंकि वहाँ यहोवा ऐसा करेगा कि तेरा हृदय काँपता रहेगा, और तेरी आँखें धुँधली पड़ जाएँगी, और तेरा मन व्याकुल रहेगा;
|
||
\v 66 और तुझको जीवन का नित्य सन्देह रहेगा; और तू दिन-रात थरथराता रहेगा, और तेरे जीवन का कुछ भरोसा न रहेगा।
|
||
\v 67 तेरे मन में जो भय बना रहेगा, और तेरी आँखों को जो कुछ दिखता रहेगा, उसके कारण तू भोर को आह मारकर कहेगा, ‘साँझ कब होगी!’ और साँझ को आह मारकर कहेगा, ‘भोर कब होगा!’
|
||
\v 68 और यहोवा तुझको नावों पर चढ़ाकर मिस्र में उस मार्ग से लौटा देगा, जिसके विषय में मैंने तुझ से कहा था, कि वह फिर तेरे देखने में न आएगा; और वहाँ तुम अपने शत्रुओं के हाथ दास-दासी होने के लिये बिकाऊ तो रहोगे, परन्तु \it तुम्हारा कोई ग्राहक न होगा\f + \fr 28:68 \fq तुम्हारा कोई ग्राहक न होगा: \ft कोई उन्हें दास बनाने का विचार नहीं करेगा। यह सोचकर कि वे परमेश्वर के श्रापित हैं और हर एक बात में त्यागे हुए हैं। \f*\it*।”
|
||
\c 29
|
||
\s मोआब में परमेश्वर की वाचा
|
||
\p
|
||
\v 1 इस्राएलियों से जो वाचा के बाँधने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके ये ही वचन हैं, और जो वाचा उसने उनसे होरेब पहाड़ पर बाँधी थी यह उससे अलग है।
|
||
\p
|
||
\v 2 फिर मूसा ने सब इस्राएलियों को बुलाकर कहा, “जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फ़िरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है;
|
||
\v 3 वे बड़े-बड़े परीक्षा के काम, और चिन्ह, और बड़े-बड़े चमत्कार तेरी आँखों के सामने हुए;
|
||
\v 4 परन्तु \it यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आँखें, और न सुनने के कान दिए हैं\f + \fr 29:4 \fq यहोवा ने .... तुम को .... बुद्धि, .... आँखें, .... न .... कान दिए हैं: \ft परमेश्वर की बातें समझने की क्षमता परमेश्वर का वरदान है परन्तु मनुष्य में इसकी कमी हो तौभी वह निर्दोष नहीं है। मनुष्यों को यह वरदान प्राप्त नहीं था क्योंकि उन्हें इसकी कमी का बोध नहीं हुआ, न ही उन्होंने इसके लिये प्रार्थना की।\f*\it*। \bdit (रोम. 11:8) \bdit*
|
||
\v 5 मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियाँ तेरे पैरों में पुरानी हुईं;
|
||
\v 6 रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिए हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ।
|
||
\v 7 और जब तुम इस स्थान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, ये दोनों युद्ध के लिये हमारा सामना करने को निकल आए, और हमने उनको जीतकर उनका देश ले लिया;
|
||
\v 8 और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगों को निज भाग करके दे दिया।
|
||
\v 9 इसलिए इस वाचा की बातों का पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सफल हो।
|
||
\p
|
||
\v 10 “आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य-मुख्य पुरुष, क्या गोत्र-गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरुष,
|
||
\v 11 क्या तुम्हारे बाल-बच्चे और स्त्रियाँ, क्या लकड़हारे, क्या पानी भरनेवाले, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपने परमेश्वर यहोवा के सामने इसलिए खड़े हुए हो,
|
||
\v 12 कि जो वाचा तेरा परमेश्वर यहोवा आज तुझ से बाँधता है, और जो शपथ वह आज तुझको खिलाता है, उसमें तू सहभागी हो जाए;
|
||
\v 13 इसलिए कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझको दिया, और उस शपथ के अनुसार जो उसने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजों से खाई थी, वह आज तुझको अपनी प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्वर ठहरे।
|
||
\v 14 फिर मैं इस वाचा और इस शपथ में केवल तुम को नहीं,
|
||
\v 15 परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहाँ हमारे परमेश्वर यहोवा के सामने खड़े हैं, और जो आज यहाँ हमारे संग नहीं हैं, सहभागी करता हूँ।
|
||
\v 16 तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियों के बीचों बीच होकर आ रहे थे,
|
||
\v 17 तब तुम ने उनकी कैसी-कैसी घिनौनी वस्तुएँ, और काठ, पत्थर, चाँदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं।
|
||
\v 18 इसलिए ऐसा न हो, कि तुम लोगों में ऐसा कोई पुरुष, या स्त्री, या कुल, या गोत्र के लोग हों जिनका मन आज हमारे परमेश्वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियों के देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिससे विष या कड़वा फल निकले, \bdit (प्रेरि. 8:23) \bdit*
|
||
\v 19 और ऐसा मनुष्य इस श्राप के वचन सुनकर अपने को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपने मन के हठ पर चलूँ, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूँ, तो भी मेरा कुशल होगा।
|
||
\v 20 यहोवा उसका पाप क्षमा नहीं करेगा, वरन् यहोवा के कोप और जलन का धुआँ उसको छा लेगा, और जितने श्राप इस पुस्तक में लिखे हैं वे सब उस पर आ पड़ेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। \bdit (प्रका. 22:18) \bdit*
|
||
\v 21 और व्यवस्था की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब श्रापों के अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रों में से हानि के लिये अलग करेगा।
|
||
\v 22 और आनेवाली पीढ़ियों में तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्पन्न होंगे, और परदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएँगे, वे उस देश की विपत्तियाँ और उसमें यहोवा के फैलाए हुए रोग को देखकर,
|
||
\v 23 और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहाँ तक जल गई है कि इसमें न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन् सदोम और गमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपने कोप और जलजलाहट में उलट दिया था;
|
||
\v 24 और सब जातियों के लोग पूछेंगे, ‘यहोवा ने इस देश से ऐसा क्यों किया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है?’
|
||
\v 25 तब लोग यह उत्तर देंगे, ‘उनके पूर्वजों के परमेश्वर यहोवा ने जो वाचा उनके साथ मिस्र देश से निकालने के समय बाँधी थी उसको उन्होंने तोड़ा है।
|
||
\v 26 और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया था;
|
||
\v 27 इसलिए यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक में लिखे हुए सब श्राप इस पर आ पड़ें;
|
||
\v 28 और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।’
|
||
\p
|
||
\v 29 “\it गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं\f + \fr 29:29 \fq गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं: \ft भविष्य में ये अच्छी और बुरी बातें अपना प्रभाव प्रगट करेंगी तो वह परमेश्वर के हाथ में है कि वह निर्णय ले। यह मनुष्य के क्षेत्र एवं दायित्व का नहीं हैं। हमें जो करना है वह परमेश्वर की प्रगट इच्छा है। \f*\it*; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिये हमारे और हमारे वंश के वश में रहेंगी, इसलिए कि इस व्यवस्था की सब बातें पूरी की जाएँ।
|
||
\c 30
|
||
\s इस्राएलियों की वापसी का वचन
|
||
\p
|
||
\v 1 “फिर जब आशीष और श्राप की ये सब बातें जो मैंने तुझको कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियों के मध्य में रहकर, जहाँ तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको बरबस पहुँचाएगा, इन बातों को स्मरण करे,
|
||
\v 2 और अपनी सन्तान सहित अपने सारे मन और सारे प्राण से अपने परमेश्वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूँ उसकी बातें माने;
|
||
\v 3 तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको बँधुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशों के लोगों में से जिनके मध्य में वह तुझको तितर-बितर कर देगा \it फिर इकट्ठा करेगा\f + \fr 30:3 \fq फिर इकट्ठा करेगा: \ft तुम्हारे दासत्व और कष्ट की अवस्था को परमेश्वर बदल देगा या उसका अन्त कर देगा। \f*\it*।
|
||
\v 4 चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुँचाया जाना हो, तो भी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझको वहाँ से ले आकर इकट्ठा करेगा। \bdit (मत्ती 24:31) \bdit*
|
||
\v 5 और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुँचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिकारी हुए थे, और तू फिर उसका अधिकारी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझको तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा।
|
||
\v 6 और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन और सारे प्राण के साथ प्रेम करे, जिससे तू जीवित रहे। \bdit (रोम. 2:29) \bdit*
|
||
\v 7 और तेरा परमेश्वर यहोवा ये सब श्राप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पड़ेंगे भेजेगा।
|
||
\v 8 और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझको सुनाता हूँ।
|
||
\v 9 और यहोवा तेरी भलाई के लिये तेरे सब कामों में, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिये वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उसने तेरे पूर्वजों के ऊपर किया था;
|
||
\v 10 क्योंकि तू अपने परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियों को जो इस व्यवस्था की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपने परमेश्वर यहोवा की ओर अपने सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।
|
||
\s जीवन या मरण
|
||
\p
|
||
\v 11 “देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूँ, वह न तो तेरे लिये कठिन, और न दूर है। \bdit (1 यूह. 5:3) \bdit*
|
||
\v 12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, ‘कौन हमारे लिये आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हमको सुनाए कि हम उसे मानें?’
|
||
\v 13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, ‘कौन हमारे लिये समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हमको सुनाए कि हम उसे मानें?’
|
||
\v 14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन् तेरे मुँह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले। \bdit (रोम. 10:6) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 15 “सुन, आज मैंने तुझको जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है।
|
||
\v 16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूँ, कि अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मार्गों पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमों को मानना, जिससे तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिकारी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे।
|
||
\v 17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत् करे और उनकी उपासना करने लगे,
|
||
\v 18 तो मैं तुम्हें आज यह चेतावनी देता हूँ कि तुम निःसन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिकारी होने के लिये तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनों के लिये रहने न पाओगे।
|
||
\v 19 मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे सामने इस बात की साक्षी बनाता हूँ, कि मैंने जीवन और मरण, आशीष और श्राप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिए तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें;
|
||
\v 20 इसलिए अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उससे लिपटे रहो; क्योंकि \it तेरा जीवन और दीर्घ आयु यही है\f + \fr 30:20 \fq तेरा जीवन और दीर्घ आयु यही है: \ft प्रतिज्ञा के देश में उनके जीवन और दीर्घायु परमेश्वर के हाथ में है। \f*\it*, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने अब्राहम, इसहाक, और याकूब, अर्थात् तेरे पूर्वजों को देने की शपथ खाई थी उस देश में तू बसा रहेगा।”
|
||
\c 31
|
||
\s यहोशू का चुना जाना
|
||
\p
|
||
\v 1 और मूसा ने जाकर ये बातें सब इस्राएलियों को सुनाईं।
|
||
\v 2 और उसने उनसे यह भी कहा, “आज मैं एक सौ बीस वर्ष का हूँ; और अब \it मैं चल फिर नहीं सकता\f + \fr 31:2 \fq मैं चल फिर नहीं सकता: \ft अर्थात् मैं अब आने-जाने में सक्षम नहीं और तुम्हारे लिये दायित्व बोझ उठाने योग्य नहीं। \f*\it*; क्योंकि यहोवा ने मुझसे कहा है, कि तू इस यरदन पार नहीं जाने पाएगा।
|
||
\v 3 तेरे आगे पार जानेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा ही है; वह उन जातियों को तेरे सामने से नष्ट करेगा, और तू उनके देश का अधिकारी होगा; और यहोवा के वचन के अनुसार यहोशू तेरे आगे-आगे पार जाएगा।
|
||
\v 4 और जिस प्रकार यहोवा ने एमोरियों के राजा सीहोन और ओग और उनके देश को नष्ट किया है, उसी प्रकार वह उन सब जातियों से भी करेगा।
|
||
\v 5 और जब यहोवा उनको तुम से हरवा देगा, तब तुम उन सारी आज्ञाओं के अनुसार उनसे करना जो मैंने तुम को सुनाई हैं।
|
||
\v 6 तू हियाव बाँध और दृढ़ हो, उनसे न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझको धोखा न देगा और न छोड़ेगा।” \bdit (इब्रा. 13:5) \bdit*
|
||
\p
|
||
\v 7 तब \it मूसा ने यहोशू को बुलाकर\f + \fr 31:7 \fq मूसा ने यहोशू को बुलाकर: \ft मूसा यहोशू के हाथों में अगुआई सौंपता है जिसके लिये वह पहले ही से नियुक्त कर दिया गया था।\f*\it* सब इस्राएलियों के सम्मुख कहा, “तू हियाव बाँध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगों के संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों से शपथ खाकर देने को कहा था तू जाएगा; और तू इनको उसका अधिकारी कर देगा। \bdit (इब्रा. 4:8) \bdit*
|
||
\v 8 और तेरे आगे-आगे चलनेवाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिए मत डर और तेरा मन कच्चा न हो।” \bdit (इब्रा. 13:5) \bdit*
|
||
\s हर सातवें वर्ष व्यवस्था का पढ़ा जाना
|
||
\p
|
||
\v 9 फिर मूसा ने यही व्यवस्था लिखकर लेवीय याजकों को, जो यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले थे, और इस्राएल के सब वृद्ध लोगों को सौंप दी।
|
||
\v 10 तब मूसा ने उनको आज्ञा दी, “सात-सात वर्ष के बीतने पर, अर्थात् छुटकारे के वर्ष में झोपड़ीवाले पर्व पर,
|
||
\v 11 जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्थान पर जिसे वह चुन लेगा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्था सब इस्राएलियों को पढ़कर सुनाना।
|
||
\v 12 क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकों के भीतर के परदेशी, सब लोगों को इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्था के सारे वचनों के पालन करने में चौकसी करें,
|
||
\v 13 और उनके बच्चे जिन्होंने ये बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सीखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।”
|
||
\s यहोशू की नियुक्ति
|
||
\p
|
||
\v 14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तेरे मरने का दिन निकट है; तू यहोशू को बुलवा, और तुम दोनों मिलापवाले तम्बू में आकर उपस्थित हो कि मैं उसको आज्ञा दूँ।” तब मूसा और यहोशू जाकर मिलापवाले तम्बू में उपस्थित हुए।
|
||
\v 15 तब यहोवा ने उस तम्बू में बादल के खम्भे में होकर दर्शन दिया; और बादल का खम्भा तम्बू के द्वार पर ठहर गया।
|
||
\p
|
||
\v 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू तो अपने पुरखाओं के संग सो जाने पर है; और ये लोग उठकर उस देश के पराए देवताओं के पीछे जिनके मध्य वे जाकर रहेंगे व्यभिचारी हो जाएँगे, और मुझे त्याग कर उस वाचा को जो मैंने उनसे बाँधी है तोड़ेंगे।
|
||
\v 17 उस समय मेरा कोप इन पर भड़केगा, और मैं भी इन्हें त्याग कर इनसे अपना मुँह छिपा लूँगा, और ये आहार हो जाएँगे; और बहुत सी विपत्तियाँ और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, यहाँ तक कि ये उस समय कहेंगे, ‘क्या ये विपत्तियाँ हम पर इस कारण तो नहीं आ पड़ीं, क्योंकि हमारा परमेश्वर हमारे मध्य में नहीं रहा?’
|
||
\v 18 उस समय मैं उन सब बुराइयों के कारण जो ये पराए देवताओं की ओर फिरकर करेंगे निःसन्देह उनसे अपना मुँह छिपा लूँगा।
|
||
\v 19 इसलिए अब तुम यह गीत लिख लो, और तू इसे इस्राएलियों को सिखाकर कंठस्थ करा देना, इसलिए कि यह गीत उनके विरुद्ध मेरा साक्षी ठहरे।
|
||
\v 20 जब मैं इनको उस देश में पहुँचाऊँगा जिसे देने की मैंने इनके पूर्वजों से शपथ खाई थी, और जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, और खाते-खाते इनका पेट भर जाए, और ये हष्ट-पुष्ट हो जाएँगे; तब ये पराए देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे।
|
||
\v 21 वरन् अभी भी जब मैं इन्हें उस देश में जिसके विषय मैंने शपथ खाई है पहुँचा नहीं चुका, मुझे मालूम है, कि ये क्या-क्या कल्पना कर रहे हैं; इसलिए जब बहुत सी विपत्तियाँ और क्लेश इन पर आ पड़ेंगे, तब यह गीत इन पर साक्षी देगा, क्योंकि इनकी सन्तान इसको कभी भी नहीं भूलेगी।”
|
||
\v 22 तब मूसा ने उसी दिन यह गीत लिखकर इस्राएलियों को सिखाया।
|
||
\p
|
||
\v 23 और यहोवा ने नून के पुत्र यहोशू को यह आज्ञा दी, “हियाव बाँध और दृढ़ हो; क्योंकि इस्राएलियों को उस देश में जिसे उन्हें देने को मैंने उनसे शपथ खाई है तू पहुँचाएगा; और मैं आप तेरे संग रहूँगा।”
|
||
\s मूसा द्वारा लोगों को चेतावनी
|
||
\p
|
||
\v 24 जब मूसा इस व्यवस्था के वचन को आदि से अन्त तक पुस्तक में लिख चुका,
|
||
\v 25 \it तब उसने यहोवा का सन्दूक उठानेवाले लेवियों को आज्ञा दी\f + \fr 31:25 \fq तब उसने यहोवा का सन्दूक उठानेवाले लेवियों को आज्ञा दी: \ft लेवी के पुत्र जो याजक थे। जो लेवी याजक नहीं थे वे न तो पवित्रस्थान में प्रवेश कर सकते थे और न ही वाचा के सन्दूक को छू सकते थे। \f*\it*,
|
||
\v 26 “व्यवस्था की इस पुस्तक को लेकर अपने परमेश्वर यहोवा की \it वाचा के सन्दूक के पास रख दो\f + \fr 31:26 \fq वाचा के सन्दूक के पास रख दो: \ft विधान की पुस्तक को परमपवित्र स्थान में वाचा के सन्दूक के पास रखना था। \f*\it*, कि यह वहाँ तुझ पर साक्षी देती रहे। \bdit (यूह. 5:45) \bdit*
|
||
\v 27 क्योंकि तेरा बलवा और हठ मुझे मालूम है; देखो, मेरे जीवित और संग रहते हुए भी तुम यहोवा से बलवा करते आए हो; फिर मेरे मरने के बाद भी क्यों न करोगे!
|
||
\v 28 तुम अपने गोत्रों के सब वृद्ध लोगों को और अपने सरदारों को मेरे पास इकट्ठा करो, कि मैं उनको ये वचन सुनाकर उनके विरुद्ध आकाश और पृथ्वी दोनों को साक्षी बनाऊँ।
|
||
\v 29 क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम बिल्कुल बिगड़ जाओगे, और जिस मार्ग में चलने की आज्ञा मैंने तुम को सुनाई है उसको भी तुम छोड़ दोगे; और अन्त के दिनों में जब तुम वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपनी बनाई हुई वस्तुओं की पूजा करके उसको रिस दिलाओगे, तब तुम पर विपत्ति आ पड़ेगी।”
|
||
\p
|
||
\v 30 तब मूसा ने इस्राएल की सारी सभा को इस गीत के वचन आदि से अन्त तक कह सुनाए
|
||
\c 32
|
||
\s मूसा का प्रसिद्ध गीत
|
||
\q
|
||
\v 1 “हे आकाश कान लगा, कि मैं बोलूँ;
|
||
\q और हे पृथ्वी, मेरे मुँह की बातें सुन।
|
||
\q
|
||
\v 2 मेरा उपदेश मेंह के समान बरसेगा
|
||
\q और मेरी बातें ओस के समान टपकेंगी,
|
||
\q जैसे कि हरी घास पर झींसी, और पौधों पर झड़ियाँ।
|
||
\q
|
||
\v 3 मैं तो यहोवा के नाम का प्रचार करूँगा।
|
||
\q तुम अपने परमेश्वर की महिमा को मानो!
|
||
\q
|
||
\v 4 “\it वह चट्टान है, उसका काम खरा है\f + \fr 32:4 \fq वह चट्टान है, उसका काम खरा है: \ft परमेश्वर के वे गुण जिन्हें लागू करने का प्रयास मूसा कर रहा था अपरिवर्तनीयता एवं अभेद्यता।\f*\it*;
|
||
\q और उसकी सारी गति न्याय की है।
|
||
\q वह सच्चा परमेश्वर है, उसमें कुटिलता नहीं,
|
||
\q वह धर्मी और सीधा है। \bdit (रोम. 9:14) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 5 परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिरछे हैं;
|
||
\q ये बिगड़ गए, ये \it उसके पुत्र नहीं\f + \fr 32:5 \fq उसके पुत्र नहीं: \ft बुराई करनेवाली पीढ़ी परमेश्वर की सन्तान नहीं हो सकते, वे तो परमेश्वर की सन्तान के लिये लज्जा कलंक है।\f*\it*;
|
||
\q यह उनका कलंक है। \bdit (मत्ती 17:17) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 6 हे मूर्ख और निर्बुद्धि लोगों,
|
||
\q क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो?
|
||
\q क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिसने तुम को मोल लिया है?
|
||
\q उसने तुझको बनाया और स्थिर भी किया है।
|
||
\q
|
||
\v 7 प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो,
|
||
\q पीढ़ी-पीढ़ी के वर्षों को विचारों;
|
||
\q अपने बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा;
|
||
\q अपने वृद्ध लोगों से प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।
|
||
\q
|
||
\v 8 जब परमप्रधान ने एक-एक जाति को निज-निज भाग बाँट दिया,
|
||
\q और आदमियों को अलग-अलग बसाया,
|
||
\q तब उसने देश-देश के लोगों की सीमाएँ इस्राएलियों की गिनती के अनुसार ठहराई। \bdit (प्रेरि. 17:26) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 9 क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है;
|
||
\q याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है।
|
||
\q
|
||
\v 10 “उसने उसको जंगल में,
|
||
\q और सुनसान और गरजनेवालों से भरी हुई मरूभूमि में पाया;
|
||
\q उसने उसके चारों ओर रहकर उसकी रक्षा की,
|
||
\q और अपनी आँख की पुतली के समान उसकी सुधि रखी।
|
||
\q
|
||
\v 11 जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला-हिलाकर
|
||
\q अपने बच्चों के ऊपर-ऊपर मण्डराता है,
|
||
\q वैसे ही उसने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया।
|
||
\q
|
||
\v 12 यहोवा अकेला ही उसकी अगुआई करता रहा,
|
||
\q और उसके संग कोई पराया देवता न था।
|
||
\q
|
||
\v 13 उसने उसको पृथ्वी के ऊँचे-ऊँचे स्थानों पर सवार कराया,
|
||
\q और उसको खेतों की उपज खिलाई;
|
||
\q उसने उसे चट्टान में से मधु
|
||
\q और चकमक की चट्टान में से तेल चुसाया।
|
||
\q
|
||
\v 14 गायों का दही, और भेड़-बकरियों का दूध, मेम्नों की चर्बी,
|
||
\q बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े,
|
||
\q और गेहूँ का उत्तम से उत्तम आटा भी खाया;
|
||
\q और तू दाखरस का मधु पिया करता था।
|
||
\q
|
||
\v 15 “परन्तु यशूरून मोटा होकर लात मारने लगा;
|
||
\q तू मोटा और हष्ट-पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है;
|
||
\q तब उसने अपने सृजनहार परमेश्वर को तज दिया,
|
||
\q और अपने उद्धार की चट्टान को तुच्छ जाना।
|
||
\q
|
||
\v 16 उन्होंने पराए देवताओं को मानकर \it उसमें जलन उपजाई\f + \fr 32:16 \fq उसमें जलन उपजाई: \ft यह भाषा विवाहित सम्बंध से ली गई है।\f*\it*;
|
||
\q और घृणित कर्म करके उसको रिस दिलाई।
|
||
\q
|
||
\v 17 उन्होंने पिशाचों के लिये जो परमेश्वर न थे बलि चढ़ाए,
|
||
\q और उनके लिये वे अनजाने देवता थे,
|
||
\q वे तो नये-नये देवता थे जो थोड़े ही दिन से प्रगट हुए थे,
|
||
\q और जिनसे उनके पुरखा कभी डरे नहीं। \bdit (1 कुरि. 10:20) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 18 जिस चट्टान से तू उत्पन्न हुआ उसको तू भूल गया,
|
||
\q और परमेश्वर जिससे तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है। \bdit (इब्रा. 1:2) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 19 “इन बातों को देखकर यहोवा ने उन्हें तुच्छ जाना,
|
||
\q क्योंकि उसके बेटे-बेटियों ने उसे रिस दिलाई थी।
|
||
\q
|
||
\v 20 तब उसने कहा, ‘मैं उनसे अपना मुख छिपा लूँगा,
|
||
\q और देखूँगा कि उनका अन्त कैसा होगा,
|
||
\q क्योंकि इस जाति के लोग बहुत टेढ़े हैं और धोखा देनेवाले पुत्र हैं। \bdit (मत्ती 17:17) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 21 उन्होंने ऐसी वस्तु को जो परमेश्वर नहीं है मानकर,
|
||
\q मुझ में जलन उत्पन्न की;
|
||
\q और अपनी व्यर्थ वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई।
|
||
\q इसलिए मैं भी उनके द्वारा जो मेरी प्रजा नहीं हैं उनके मन में जलन उत्पन्न करूँगा;
|
||
\q और एक मूर्ख जाति के द्वारा उन्हें रिस दिलाऊँगा। \bdit (रोम. 11:11) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 22 क्योंकि मेरे कोप की आग भड़क उठी है,
|
||
\q जो पाताल की तह तक जलती जाएगी,
|
||
\q और पृथ्वी अपनी उपज समेत भस्म हो जाएगी,
|
||
\q और पहाड़ों की नींवों में भी आग लगा देगी।
|
||
\q
|
||
\v 23 “मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति भेजूँगा;
|
||
\q और उन पर मैं अपने सब तीरों को छोड़ूँगा।
|
||
\q
|
||
\v 24 वे भूख से दुबले हो जाएँगे, और अंगारों से
|
||
\q और कठिन महारोगों से ग्रसित हो जाएँगे;
|
||
\q और मैं उन पर पशुओं के दाँत लगवाऊँगा,
|
||
\q और धूलि पर रेंगनेवाले सर्पों का विष छोड़ दूँगा।
|
||
\q
|
||
\v 25 बाहर वे तलवार से मरेंगे,
|
||
\q और कोठरियों के भीतर भय से;
|
||
\q क्या कुँवारे और कुँवारियाँ, क्या दूध पीता हुआ बच्चा
|
||
\q क्या पक्के बाल वाले, सब इसी प्रकार बर्बाद होंगे।
|
||
\q
|
||
\v 26 मैंने कहा था, कि मैं उनको दूर-दूर तक तितर-बितर करूँगा,
|
||
\q और मनुष्यों में से उनका स्मरण तक मिटा डालूँगा;
|
||
\q
|
||
\v 27 परन्तु मुझे शत्रुओं की छेड़-छाड़ का डर था,
|
||
\q ऐसा न हो कि द्रोही इसको उलटा समझकर यह कहने लगें,
|
||
\q ‘हम अपने ही बाहुबल से प्रबल हुए,
|
||
\q और यह सब यहोवा से नहीं हुआ।’
|
||
\q
|
||
\v 28 “क्योंकि इस्राएल जाति युक्तिहीन है,
|
||
\q और इनमें समझ है ही नहीं।
|
||
\q
|
||
\v 29 भला होता कि ये बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते,
|
||
\q और अपने अन्त का विचार करते! \bdit (लूका 19:42) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 30 यदि उनकी चट्टान ही उनको न बेच देती,
|
||
\q और यहोवा उनको दूसरों के हाथ में न कर देता;
|
||
\q तो यह कैसे हो सकता कि उनके हजार का पीछा एक मनुष्य करता,
|
||
\q और उनके दस हजार को दो मनुष्य भगा देते?
|
||
\q
|
||
\v 31 क्योंकि जैसी हमारी चट्टान है वैसी उनकी चट्टान नहीं है,
|
||
\q चाहे हमारे शत्रु ही क्यों न न्यायी हों।
|
||
\q
|
||
\v 32 क्योंकि उनकी दाखलता सदोम की दाखलता से निकली,
|
||
\q और गमोरा की दाख की बारियों में की है;
|
||
\q उनकी दाख विषभरी और उनके गुच्छे कड़वे हैं;
|
||
\q
|
||
\v 33 उनका दाखमधु साँपों का सा विष
|
||
\q और काले नागों का सा हलाहल है।
|
||
\q
|
||
\v 34 “क्या यह बात मेरे मन में संचित,
|
||
\q और मेरे भण्डारों में मुहरबन्द नहीं है?
|
||
\q
|
||
\v 35 पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है,
|
||
\q यह उनके पाँव फिसलने के समय प्रगट होगा;
|
||
\q क्योंकि उनकी विपत्ति का दिन निकट है,
|
||
\q और जो दुःख उन पर पड़नेवाले हैं वे शीघ्र आ रहे हैं। \bdit (लूका 21:22, रोम. 12:19) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 36 क्योंकि जब यहोवा देखेगा कि मेरी प्रजा की शक्ति जाती रही,
|
||
\q और क्या बन्धुआ और क्या स्वाधीन, उनमें कोई बचा नहीं रहा,
|
||
\q तब यहोवा अपने लोगों का न्याय करेगा,
|
||
\q और अपने दासों के विषय में तरस खाएगा।
|
||
\q
|
||
\v 37 तब वह कहेगा, उनके देवता कहाँ हैं,
|
||
\q अर्थात् वह चट्टान कहाँ जिस पर उनका भरोसा था,
|
||
\q
|
||
\v 38 जो उनके बलिदानों की चर्बी खाते,
|
||
\q और उनके तपावनों का दाखमधु पीते थे?
|
||
\q वे ही उठकर तुम्हारी सहायता करें,
|
||
\q और तुम्हारी आड़ हों!
|
||
\q
|
||
\v 39 “इसलिए अब तुम देख लो कि मैं ही वह हूँ,
|
||
\q और मेरे संग कोई देवता नहीं;
|
||
\q मैं ही मार डालता, और मैं जिलाता भी हूँ;
|
||
\q मैं ही घायल करता, और मैं ही चंगा भी करता हूँ;
|
||
\q और मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।
|
||
\q
|
||
\v 40 क्योंकि \it मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर\f + \fr 32:40 \fq मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर: \ft हाथ उठाना शपथ खाने का संकेत है।\f*\it* कहता हूँ,
|
||
\q क्योंकि मैं अनन्तकाल के लिये जीवित हूँ,
|
||
\q
|
||
\v 41 इसलिए यदि मैं बिजली की तलवार पर सान धरकर झलकाऊँ,
|
||
\q और न्याय अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने द्रोहियों से बदला लूँगा,
|
||
\q और अपने बैरियों को बदला दूँगा।
|
||
\q
|
||
\v 42 मैं अपने तीरों को लहू से मतवाला करूँगा,
|
||
\q और मेरी तलवार माँस खाएगी—वह लहू,
|
||
\q मारे हुओं और बन्दियों का,
|
||
\q और वह माँस, शत्रुओं के लम्बे बाल वाले प्रधानों का होगा।
|
||
\q
|
||
\v 43 “हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साथ आनन्द मनाओ;
|
||
\q क्योंकि वह अपने दासों के लहू का पलटा लेगा,
|
||
\q और अपने द्रोहियों को बदला देगा,
|
||
\q और अपने देश और अपनी प्रजा के पाप के लिये प्रायश्चित देगा।”
|
||
\s मूसा के अन्तिम निर्देश
|
||
\p
|
||
\v 44 इस गीत के सब वचन मूसा ने नून के पुत्र यहोशू समेत आकर लोगों को सुनाए।
|
||
\p
|
||
\v 45 जब मूसा ये सब वचन सब इस्राएलियों से कह चुका,
|
||
\v 46 तब उसने उनसे कहा, “जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूँ उन सब पर अपना-अपना मन लगाओ, और उनके अर्थात् इस व्यवस्था की सारी बातों के मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपने बच्चों को दो।
|
||
\v 47 क्योंकि यह तुम्हारे लिये व्यर्थ काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिकारी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।”
|
||
\s नबो नामक चोटी पर मूसा
|
||
\p
|
||
\v 48 फिर उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा,
|
||
\v 49 “उस अबारीम पहाड़ की नबो नामक चोटी पर, जो मोआब देश में यरीहो के सामने है, चढ़कर कनान देश, जिसे मैं इस्राएलियों की निज भूमि कर देता हूँ, उसको देख ले।
|
||
\v 50 तब जैसा तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपने लोगों में मिल गया, वैसा ही तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपने लोगों में मिल जाएगा।
|
||
\v 51 इसका कारण यह है, कि सीन जंगल में, कादेश के मरीबा नाम सोते पर, तुम दोनों ने मेरा अपराध किया, क्योंकि तुम ने इस्राएलियों के मध्य में मुझे पवित्र न ठहराया।
|
||
\v 52 इसलिए वह देश जो मैं इस्राएलियों को देता हूँ, तू अपने सामने देख लेगा, परन्तु वहाँ जाने न पाएगा।”
|
||
\c 33
|
||
\s मूसा का इस्राएलियों को दिया हुआ आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 1 जो आशीर्वाद \it परमेश्वर के जन\f + \fr 33:1 \fq परमेश्वर के जन: \ft परमेश्वर का जन पुराने नियम में उस मनुष्य को कहा जाता था जिसे अपरोक्ष प्रकाशन प्राप्त होता था। आवश्यक नहीं कि वह भविष्यद्वक्ता हो। \f*\it* मूसा ने अपनी मृत्यु से पहले इस्राएलियों को दिया वह यह है।
|
||
\v 2 उसने कहा,
|
||
\q “यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिये उदय हुआ;
|
||
\q उसने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया,
|
||
\q और लाखों पवित्रों के मध्य में से आया,
|
||
\q उसके दाहिने हाथ से उनके लिये ज्वालामय विधियाँ निकलीं। \bdit (यूह. 1:4) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 3 वह निश्चय लोगों से प्रेम करता है;
|
||
\q उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं;
|
||
\q वे तेरे पाँवों के पास बैठे रहते हैं,
|
||
\q एक-एक तेरे वचनों से लाभ उठाता है। \bdit (इफि. 1:8) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 4 मूसा ने हमें व्यवस्था दी, और वह याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।
|
||
\q
|
||
\v 5 जब प्रजा के मुख्य-मुख्य पुरुष, और इस्राएल के सभी गोत्र एक संग होकर एकत्रित हुए,
|
||
\q तब वह यशूरून में राजा ठहरा।
|
||
\s रूबेन को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 6 “रूबेन न मरे, वरन् जीवित रहे, तो भी उसके यहाँ के मनुष्य थोड़े हों।”
|
||
\s यहूदा को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 7 और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा,
|
||
\q “हे यहोवा तू यहूदा की सुन,
|
||
\q और उसे उसके \it लोगों के पास पहुँचा\f + \fr 33:7 \fq लोगों के पास पहुँचा: \ft याकूब की प्रतिज्ञा को ध्यान में रखकर मूसा प्रार्थना करता है कि यहूदा जो सब गोत्रों से आगे चलता था, वह सदैव विजयी होकर सुरक्षित घर लौटे। हाथ का अर्थ है कि इस काम को पूरा करने में परमेश्वर सहायता करें। \f*\it*।
|
||
\q वह अपने लिये आप अपने हाथों से लड़ा,
|
||
\q और तू ही उसके द्रोहियों के विरुद्ध उसका सहायक हो।”
|
||
\s लेवी को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 8 फिर लेवी के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तूने मस्सा में परख लिया,
|
||
\q और जिसके साथ मरीबा नामक सोते पर तेरा वाद-विवाद हुआ;
|
||
\q
|
||
\v 9 उसने तो अपने माता-पिता के विषय में कहा, ‘मैं उनको नहीं जानता;’
|
||
\q और न तो उसने अपने भाइयों को अपना माना, और न अपने पुत्रों को पहचाना।
|
||
\q क्योंकि उन्होंने तेरी बातें मानीं, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं। \bdit (मत्ती 10:37) \bdit*
|
||
\q
|
||
\v 10 वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्था सिखाएँगे;
|
||
\q और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे।
|
||
\q
|
||
\v 11 हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथों की सेवा को ग्रहण कर;
|
||
\q उसके विरोधियों और बैरियों की कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सकें।”
|
||
\s बिन्यामीन को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 12 फिर उसने बिन्यामीन के विषय में कहा,
|
||
\q “यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा;
|
||
\q और वह दिन भर उस पर छाया करेगा,
|
||
\q और \it वह उसके कंधों के बीच रहा करता है\f + \fr 33:12 \fq वह उसके कंधों के बीच रहा करता है: \ft परमेश्वर से ऐसा सहयोग पाएगा जैसे एक पुत्र पिता के कंधों पर उठाया जाता है।\f*\it*।” \bdit (2 थिस्स. 2:13) \bdit*
|
||
\s यूसुफ को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 13 फिर यूसुफ के विषय में उसने कहा;
|
||
\q “इसका देश यहोवा से आशीष पाए
|
||
\q अर्थात् आकाश के अनमोल पदार्थ और ओस,
|
||
\q और वह गहरा जल जो नीचे है,
|
||
\q
|
||
\v 14 और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल,
|
||
\q और जो अनमोल पदार्थ मौसम के उगाए उगते हैं,
|
||
\q
|
||
\v 15 और प्राचीन पहाड़ों के उत्तम पदार्थ,
|
||
\q और सनातन पहाड़ियों के अनमोल पदार्थ,
|
||
\q
|
||
\v 16 और पृथ्वी और जो अनमोल पदार्थ उसमें भरें हैं,
|
||
\q और जो झाड़ी में रहता था उसकी प्रसन्नता।
|
||
\q इन सभी के विषय में यूसुफ के सिर पर,
|
||
\q अर्थात् उसी के सिर के चाँद पर जो अपने भाइयों से अलग हुआ था आशीष ही आशीष फले।
|
||
\q
|
||
\v 17 वह प्रतापी है, मानो गाय का पहलौठा है, और उसके सींग जंगली बैल के से हैं;
|
||
\q उनसे वह देश-देश के लोगों को, वरन् पृथ्वी के छोर तक के सब मनुष्यों को ढकेलेगा;
|
||
\q वे एप्रैम के लाखों-लाख, और मनश्शे के हजारों-हजार हैं।”
|
||
\s जबूलून और इस्साकार को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 18 फिर जबूलून के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय,
|
||
\q और हे इस्साकार, तू अपने डेरों में आनन्द करे।
|
||
\q
|
||
\v 19 वे देश-देश के लोगों को पहाड़ पर बुलाएँगे;
|
||
\q वे वहाँ धर्मयज्ञ करेंगे;
|
||
\q क्योंकि वे समुद्र का धन,
|
||
\q और रेत में छिपे हुए अनमोल पदार्थ से लाभ उठाएँगे।”
|
||
\s गाद को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 20 फिर गाद के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है!
|
||
\q गाद तो सिंहनी के समान रहता है,
|
||
\q और बाँह को, वरन् सिर के चाँद तक को फाड़ डालता है।
|
||
\q
|
||
\v 21 और उसने पहला अंश तो अपने लिये चुन लिया,
|
||
\q क्योंकि वहाँ सरदार के योग्य भाग रखा हुआ था;
|
||
\q तब उसने प्रजा के मुख्य-मुख्य पुरुषों के संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म,
|
||
\q और इस्राएल के साथ होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।”
|
||
\s दान को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 22 फिर दान के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।”
|
||
\s नप्ताली को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 23 फिर नप्ताली के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त,
|
||
\q और उसकी आशीष से भरपूर है,
|
||
\q तू पश्चिम और दक्षिण के देश का अधिकारी हो।”
|
||
\s आशेर को आशीर्वाद
|
||
\p
|
||
\v 24 फिर आशेर के विषय में उसने कहा,
|
||
\q “आशेर पुत्रों के विषय में आशीष पाए;
|
||
\q वह अपने भाइयों में प्रिय रहे,
|
||
\q और अपना पाँव तेल में डुबोए।
|
||
\q
|
||
\v 25 तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे,
|
||
\q और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो।
|
||
\s मूसा द्वारा परमेश्वर की स्तुति
|
||
\q
|
||
\v 26 “हे यशूरून, परमेश्वर के तुल्य और कोई नहीं है,
|
||
\q वह तेरी सहायता करने को आकाश पर,
|
||
\q और अपना प्रताप दिखाता हुआ
|
||
\q आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।
|
||
\q
|
||
\v 27 अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है,
|
||
\q और नीचे सनातन भुजाएँ हैं।
|
||
\q वह शत्रुओं को तेरे सामने से निकाल देता,
|
||
\q और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।
|
||
\q
|
||
\v 28 और इस्राएल निडर बसा रहता है,
|
||
\q अन्न और नये दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है;
|
||
\q और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है।
|
||
\q
|
||
\v 29 हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है!
|
||
\q हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है?
|
||
\q वह तो तेरी सहायता के लिये ढाल,
|
||
\q और तेरे प्रताप के लिये तलवार है;
|
||
\q तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे,
|
||
\q और तू उनके ऊँचे स्थानों को रौंदेगा।”
|
||
\c 34
|
||
\s मूसा की मृत्यु
|
||
\p
|
||
\v 1 फिर मूसा मोआब के अराबा से नबो पहाड़ पर, जो पिसगा की एक चोटी और यरीहो के सामने है, चढ़ गया; और यहोवा ने उसको दान तक का गिलाद नामक सारा देश,
|
||
\v 2 और नप्ताली का सारा देश, और एप्रैम और मनश्शे का देश, और पश्चिम के समुद्र तक का यहूदा का सारा देश,
|
||
\v 3 और दक्षिण देश, और सोअर तक की यरीहो नामक खजूरवाले नगर की तराई, यह सब दिखाया।
|
||
\v 4 तब यहोवा ने उससे कहा, “जिस देश के विषय में मैंने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से शपथ खाकर कहा था, कि मैं इसे तेरे वंश को दूँगा वह यही है। मैंने इसको तुझे साक्षात् दिखा दिया है, परन्तु तू पार होकर वहाँ जाने न पाएगा।”
|
||
\v 5 तब \it यहोवा के कहने के अनुसार\f + \fr 34:5 \fq यहोवा के कहने के अनुसार: \ft मूसा मर गया, शारीरिक अशक्ति के कारण नहीं परन्तु परमेश्वर के कथनानुसार। \f*\it* उसका दास मूसा वहीं मोआब देश में मर गया,
|
||
\v 6 और यहोवा ने उसे मोआब के देश में बेतपोर के सामने एक तराई में मिट्टी दी; और आज के दिन तक \it कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहाँ है\f + \fr 34:6 \fq कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहाँ है: \ft अन्यथा मूसा की कब्र एक अंधविश्वास आधारित सम्मान का स्थान हो जाती।\f*\it*।
|
||
\v 7 मूसा अपनी मृत्यु के समय एक सौ बीस वर्ष का था; परन्तु न तो उसकी आँखें धुँधली पड़ीं, और न उसका पौरूष घटा था।
|
||
\v 8 और इस्राएली मोआब के अराबा में मूसा के लिये तीस दिन तक रोते रहे; तब मूसा के लिये रोने और विलाप करने के दिन पूरे हुए।
|
||
\s मूसा के स्थान पर यहोशू
|
||
\p
|
||
\v 9 और नून का पुत्र यहोशू बुद्धिमानी की आत्मा से परिपूर्ण था, क्योंकि मूसा ने अपने हाथ उस पर रखे थे; और इस्राएली उस आज्ञा के अनुसार जो यहोवा ने मूसा को दी थी उसकी मानते रहे।
|
||
\v 10 और मूसा के तुल्य \it इस्राएल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा\f + \fr 34:10 \fq इस्राएल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा: \ft इसका संदर्भ विशेष करके मूसा द्वारा किए गए चमत्कारों से है जो उसने निर्गमन एवं जंगल में किए थे।\f*\it*, जिससे यहोवा ने आमने-सामने बातें की,
|
||
\v 11 और उसको यहोवा ने फ़िरौन और उसके सब कर्मचारियों के सामने, और उसके सारे देश में, सब चिन्ह और चमत्कार करने को भेजा था,
|
||
\v 12 और उसने सारे इस्राएलियों की दृष्टि में बलवन्त हाथ और बड़े भय के काम कर दिखाए।
|