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\v 15 शुद्व मणु तांईं सब चीजा शुद्व हिन्न पर अशुद्व अतै अविस्वासी मणु तांईं कुछ भी शुद्व ना हा वल्कि तिआंरी अक्कल अतै ज्ञान दोनो अशुद्व हिन्न। \v 16 सो बल्दै हिन्न‍ कि असै प्रमात्मैं जो मन्दै हिन्न‍ पर अप्पु कम ईन्हैं करदै हिन्न कि प्रमात्मैं रा इन्कार करदै हिन्न क्जोकि सो घृणित अतै आज्ञा जो ना मनणै बाळै हिन्न अतै कसी खरै कम्मां जोगी ना हिन्न।