giriraj1722_myi_2co_text_udb/01/08.txt

4 lines
1.1 KiB
Plaintext

8 हे भाइयों , म्हे कोनी चाहवां कि थे माखा ऊ क्लेश सुँ अनजान रहो , जो आसिया म म्हा प पड्यो ; म्हे अस्यो भारी बोझ सुँ दब गा छा , जो माखी सामर्थ सुँ बाहर छो , यहाँ तक कि म्हे जीवन सुँ भी हाथ धो बैठ्या छा |
9 वरन म्हे तो आपणा मन म समझ लिया छा कि म्हा प मरत्यु की आज्ञा हो चुकी छ , ताकि म्हे अपणो भरोसो न रखां वरन परमेसर को जो मरया हुआ न भी जीला दे व छ |
10 वाही म्हा न मरत्यु का अस्या बड़ा संकट सुँ बचायो और बचावगो ; और ऊ प माखी या आशा छ कि वा आ ग भी बचातो रह्वगो |