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"1": "चूँकि बहुतों ने इस पर कमर बाँधी है कि जो बातें हमारे दरमियान वाक़े हुईं उनको सिलसिलावार बयान करें ",
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"2": "जैसा कि उन्होंने जो शुरू से ख़ुद देखने वाले और कलाम के ख़ादिम थे उनको हम तक पहुँचाया",
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"3": "इसलिए ऐ मुअज़्ज़िज़ थियुफ़िलूस मैंने भी मुनासिब जाना कि सब बातों का सिलसिला शुरू से ठीकठीक मालूम करके उनको तेरे लिए तरतीब से लिखूँ",
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"4": "ताकि जिन बातों की तूने तालीम पाई है उनकी पुख़्तगी तुझे मालूम हो जाए",
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"5": "यहूदिया के बादशाह हेरोदेस के ज़माने में अबिय्याह के फ़रीक़ में से ज़करियाह नाम एक काहिन था और उसकी बीवी हारून की औलाद में से थी और उसका नाम इलीशिबा था",
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"6": "और वो दोनों ख़ुदा के सामने रास्तबाज़ और ख़ुदावन्द के सब अहकामओक़वानीन पर बे ऐब चलने वाले थे",
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"7": "और उनके औलाद न थी क्यूँकि इलीशिबा बाँझ थी और दोनों उम्र रसीदा थे ",
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"8": "जब वो ख़ुदा के हुज़ूर अपने फ़रीक़ की बारी पर इमामत का काम अन्जाम देता था तो ऐसा हुआ ",
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"9": "कि इमामत के दस्तूर के मुवाफिक उसके नाम की पर्ची निकली कि ख़ुदावन्द के हुज़ूरी में जाकर ख़ुशबू जलाए",
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"10": "और लोगों की सारी जमा अत ख़ुशबू जलाते वक़्त बाहर दुआ कर रही थी ",
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"11": "अचानक ख़ुदा का एक फ़रिश्ता ज़ाहिर हुआ जो ख़ुशबू जलाने की क़ुर्बानगाह के दहनी तरफ़ खड़ा हुआ उसको दिखाई दिया",
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"12": "उसे देख कर ज़करियाह घबराया और बहुत डर गया ",
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"13": "लेकिन फ़रिश्ते ने उस से कहा ज़करियाह मत डर ख़ुदा ने तेरी दुआ सुन ली है तेरी बीवी इलीशिबा के बेटा होगा उस का नाम युहन्ना रखना",
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"14": "वह न सिर्फ़ तेरे लिए ख़ुशी और मुसर्रत का बाइस होगा बल्कि बहुत से लोग उस की पैदाइश पर ख़ुशी मनाएँगे",
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"15": "क्यूँकि वह ख़ुदा के नज़्दीक अज़ीम होगा ज़रूरी है कि वह मय और शराब से परहेज़ करे वह पैदा होने से पहले ही रूहउलक़ुद्दूस से भरपूर होगा ",
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"16": "और इस्राईली क़ौम में से बहुतों को ख़ुदा उन के ख़ुदा के पास वापस लाएगा",
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"17": "वह एलियाह की रूह और क़ुव्वत से ख़ुदावन्द के आगे आगे चलेगा उस की ख़िदमत से वालिदों के दिल अपने बच्चों की तरफ़ माइल हो जाएँगे और नाफ़रमान लोग रास्तबाज़ों की अक़्लमंदी की तरफ़ फिरेंगे यूँ वह इस क़ौम को ख़ुदा के लिए तय्यार करेगा",
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"18": "ज़करियाह ने फ़रिश्ते से पूछा मैं किस तरह जानूँ कि यह बात सच् है मैं ख़ुद बूढ़ा हूँ और मेरी बीवी भी उम्र रसीदा है",
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"19": "फ़रिश्ते ने जवाब दिया मैं जिब्राईल हूँ जो ख़ुदावंद के सामने खड़ा रहता हूँ मुझे इसी मक़्सद के लिए भेजा गया है कि तुझे यह ख़ुशख़बरी सुनाऊँ",
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"20": "लेकिन तूने मेरी बात का यक़ीन नहीं किया इस लिए तू ख़ामोश रहेगा और उस वक़्त तक बोल नहीं सकेगा जब तक तेरे बेटा पैदा न हो मेरी यह बातें अपने वक़्त पर ही पूरी होंगी",
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"21": "इस दौरान बाहर के लोग ज़करियाह के इन्तिज़ार में थे वह हैरान होते जा रहे थे कि उसे वापस आने में क्यूँ इतनी देर हो रही है",
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"22": "आख़िरकार वह बाहर आया लेकिन वह उन से बात न कर सका तब उन्हों ने जान लिया कि उस ने ख़ुदा के घर में ख़्वाब देखा है उस ने हाथों से इशारे तो किए लेकिन ख़ामोश रहा ",
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"23": "ज़करियाह अपने वक़्त तक ख़ुदा के घर में अपनी ख़िदमत अन्जाम देता रहा फिर अपने घर वापस चला गया ",
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"24": "थोड़े दिनों के बाद उस की बीवी इलीशिबा हामिला हो गई और वह पाँच माह तक घर में छुपी रही",
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"25": "उस ने कहा ख़ुदावन्द ने मेरे लिए कितना बड़ा काम किया है क्यूँकि अब उस ने मेरी फ़िक्र की और लोगों के सामने से मेरी रुस्वाई दूर कर दी",
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"26": "इलीशिबा छः माह से हामिला थी जब ख़ुदा ने जिब्राईल फ़रिश्ते को एक कुंवारी के पास भेजा जो नासरत में रहती थी नासरत गलील का एक शहर है और कुंवारी का नाम मरियम था",
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"27": "उस की मंगनी एक मर्द के साथ हो चुकी थी जो दाऊद बादशाह की नसल से था और जिस का नाम यूसुफ़ था",
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"28": "फ़रिश्ते ने उस के पास आ कर कहा ऐ ख़ातून जिस पर ख़ुदा का ख़ास फ़ज़्ल हुआ है सलाम ख़ुदा तेरे साथ है",
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"29": "मरियम यह सुन कर घबरा गई और सोचा यह किस तरह का सलाम है ",
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"30": "लेकिन फ़रिश्ते ने अपनी बात जारी रखी और कहा ऐ मरियम मत डर क्यूँकि तुझ पर ख़ुदा का फ़ज़ल हुआ है",
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"31": "तू हमिला हो कर एक बेटे को पैदा करेगी तू उस का नाम ईसा नजात देने वाला रखना ",
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"32": "वह बड़ा होगा और ख़ुदावंद का बेटा कहलाएगा ख़ुदा हमारा ख़ुदा उसे उस के बाप दाऊद के तख़्त पर बिठाएगा",
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"33": "और वह हमेशा तक इस्राईल पर हुकूमत करेगा उस की सल्तनत कभी ख़त्म न होगी ",
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"34": "मरियम ने फ़रिश्ते से कहा यह क्यूँकर हो सकता है अभी तो मैं कुंवारी हूँ",
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"35": "फ़रिश्ते ने जवाब दिया रूहउलक़ुद्दूस तुझ पर नाज़िल होगा ख़ुदावंद की क़ुदरत का साया तुझ पर छा जाएगा इस लिए यह बच्चा क़ुद्दूस होगा और ख़ुदा का बेटा कहलाएगा ",
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"36": "और देख तेरी रिश्तेदार इलीशिबा के भी बेटा होगा हालाँकि वह उम्ररसीदा है गरचे उसे बाँझ क़रार दिया गया था लेकिन वह छः माह से हामिला है ",
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"37": "क्यूँकि ख़ुदा के नज़्दीक कोई काम नामुम्किन नहीं है",
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"38": "मरियम ने जवाब दिया मैं ख़ुदा की ख़िदमत के लिए हाज़िर हूँ मेरे साथ वैसा ही हो जैसा आप ने कहा है इस पर फ़रिश्ता चला गया ",
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"39": "उन दिनों में मरियम यहूदिया के पहाड़ी इलाक़े के एक शहर के लिए रवाना हुई उस ने जल्दी जल्दी सफ़र किया",
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"40": "वहाँ पहुँच कर वह ज़करियाह के घर में दाख़िल हुई और इलीशिबा को सलाम किया",
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"41": "मरियम का यह सलाम सुन कर इलीशिबा का बच्चा उस के पेट में उछल पड़ा और इलीशिबा ख़ुद रूहउलक़ुद्दूस से भर गई ",
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"42": "उस ने बुलन्द आवाज़ से कहा तू तमाम औरतों में मुबारक है और मुबारक है तेरा बच्चा",
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"43": "मैं कौन हूँ कि मेरे ख़ुदावन्द की माँ मेरे पास आई ",
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"44": "जैसे ही मैं ने तेरा सलाम सुना बच्चा मेरे पेट में ख़ुशी से उछल पड़ा ",
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"45": "तू कितनी मुबारक है क्यूँकि तू ईमान लाई कि जो कुछ ख़ुदा ने फ़रमाया है वह पूरा होगा ",
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"46": "इस पर मरियम ने कहा मेरी जान ख़ुदा की बड़ाई करती है",
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"47": "और मेरी रूह मेरे मुन्जी ख़ुदावंद से बहुत ख़ुश है",
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"48": "क्यूँकि उस ने अपनी ख़ादिमा की पस्ती पर नज़र की है हाँ अब से तमाम नसलें मुझे मुबारक कहेंगी ",
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"49": "क्यूँकि उस क़ादिर ने मेरे लिए बड़ेबड़े काम किए हैं और उसका नाम पाक है",
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"50": "और ख़ौफ़ रहम उन पर जो उससे डरते हैं पुश्तदरपुश्त रहता है",
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"51": "उसने अपने बाज़ू से ज़ोर दिखाया और जो अपने आपको बड़ा समझते थे उनको तितर बितर किया",
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"52": "उसने इख़्तियार वालों को तख़्त से गिरा दिया और पस्तहालों को बुलंद किया",
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"53": "उसने भूखों को अच्छी चीज़ों से सेर कर दिया और दौलतमंदों को ख़ाली हाथ लौटा दिया",
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"54": "उसने अपने ख़ादिम इस्राईल को संभाल लिया ताकि अपनी उस रहमत को याद फ़रमाए",
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"55": "जो अब्राहम और उसकी नस्ल पर हमेशा तक रहेगी जैसा उसने हमारे बापदादा से कहा था",
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"56": "और मरियम तीन महीने के क़रीब उसके साथ रहकर अपने घर को लौट गई",
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"57": "और इलीशिबा के वज़ए हम्ल का वक़्त आ पहुँचा और उसके बेटा हुआ",
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"58": "उसके पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने ये सुनकर कि ख़ुदावन्द ने उस पर बड़ी रहमत की उसके साथ ख़ुशी मनाई ",
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"59": "और आठवें दिन ऐसा हुआ कि वो लड़के का ख़तना करने आए और उसका नाम उसके बाप के नाम पर ज़करियाह रखने लगे",
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"60": "मगर उसकी माँ ने कहा नहीं बल्कि उसका नाम युहन्ना रखा जाए",
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"61": "उन्होंने कहा तेरे ख़ानदान में किसी का ये नाम नहीं",
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"62": "और उन्होंने उसके बाप को इशारा किया कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है",
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"63": "उसने तख़्ती माँग कर ये लिखा उसका नाम युहन्ना है और सब ने ताज्जुब किया",
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"64": "उसी दम उसका मुँह और ज़बान खुल गई और वो बोलने और ख़ुदा की हम्द करने लगा",
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"65": "और उनके आसपास के सब रहने वालों पर दहशत छा गई और यहूदिया के तमाम पहाड़ी मुल्क में इन सब बातों की चर्चा फैल गई",
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"66": "और उनके सब सुनने वालों ने उनको सोच कर दिलों में कहा तो ये लड़का कैसा होने वाला है क्यूँकि ख़ुदावन्द का हाथ उस पर था ",
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"67": "और उस का बाप ज़किरयाह रुहउलक़ुद्दूस से भर गया और नबुव्वत की राह से कहने लगा कि",
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"68": "ख़ुदावन्द इस्राईल के ख़ुदा की हम्द हो क्यूँकि उसने अपनी उम्मत पर तवज्जो करके उसे छुटकारा दिया",
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"69": "और अपने ख़ादिम दाऊद के घराने में हमारे लिए नजात का सींग निकाला ",
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"70": "जैसा उसने अपने पाक नबियों की ज़बानी कहा था जो कि दुनिया के शुरू से होते आए है",
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"71": "यानी हम को हमारे दुश्मनों से और सब बुग़्ज़ रखने वालों के हाथ से नजात बख्शी",
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"72": "ताकि हमारे बापदादा पर रहम करे और अपने पाक अहद को याद फ़रमाए",
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"73": "यानी उस कसम को जो उसने हमारे बाप अब्राहम से खाई थी",
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"74": "कि वो हमें ये बख़्शिश देगा कि अपने दुश्मनों के हाथ से छूटकर ",
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"75": "उसके सामने पाकीज़गी और रास्तबाज़ी से उम्र भर बेख़ौफ़ उसकी इबादत करें",
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"76": "और ऐ लड़के तू ख़ुदा ताला का नबी कहलाएगा क्यूँकि तू ख़ुदावन्द की राहें तैयार करने को उसके आगे आगे चलेगा",
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"77": "ताकि उसकी उम्मत को नजात का इल्म बख़्शे जो उनको गुनाहों की मुआफ़ी से हासिल हो",
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"78": "ये हमारे ख़ुदा की ऐन रहमत से होगा जिसकी वजह से आलमएबाला का सूरज हम पर निकलेगा ",
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"79": "ताकि उनको जो अन्धेरे और मौत के साये में बैठे हैं रोशनी बख़्शे और हमारे क़दमों को सलामती की राह पर डाले",
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"80": "और वो लड़का बढ़ता और रूह में क़ुव्वत पाता गया और इस्राईल पर ज़ाहिर होने के दिन तक जंगलों में रहा"
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"1": "इन बातों के बाद ख़ुदावन्द ने सत्तर आदमी और मुक़र्रर किए और जिस जिस शहर और जगह को ख़ुद जाने वाला था वहाँ उन्हें दो दो करके अपने आगे भेजा ",
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"2": "और वो उनसे कहने लगा फ़सल तो बहुत है लेकिन मज़दूर थोड़े हैं इसलिए फ़सल के मालिक की मिन्नत करो कि अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूर भेजे ",
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"3": "जाओ देखो मैं तुम को गोया बर्रों को भेड़ियों के बीच मैं भेजता हूँ",
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"4": "न बटुवा ले जाओ न झोली न जूतियाँ और न राह में किसी को सलाम करो",
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"5": "और जिस घर में दाखिल हो पहले कहोइस घर की सलामती हो ",
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"6": "अगर वहाँ कोई सलामती का फ़र्ज़न्द होगा तो तुम्हारा सलाम उस पर ठहरेगा नहीं तो तुम पर लौट आएगा ",
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"7": "उसी घर में रहो और जो कुछ उनसे मिले खाओपीओ क्यूँकि मज़दूर अपनी मज़दूरी का हक़दार है घर घर न फिरो ",
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"8": "जिस शहर में दाख़िल हो वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल करें तो जो कुछ तुम्हारे सामने रखा जाए खाओ ",
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"9": "और वहाँ के बीमारों को अच्छा करो और उनसे कहो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे नज़दीक आ पहुँची है",
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"10": "लेकिन जिस शहर में तुम दाख़िल हो और वहाँ के लोग तुम्हें क़ुबूल न करें तो उनके बाज़ारों में जाकर कहो कि ",
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"11": "हम इस गर्द को भी जो तुम्हारे शहर से हमारे पैरों में लगी है तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं मगर ये जान लो कि ख़ुदा की बादशाही नज़दीक आ पहुँची है",
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"12": "मैं तुम से कहता हूँ कि उस दिन सदोम का हाल उस शहर के हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा ",
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"13": "ऐ ख़ुराज़ीन शहर तुझ पर अफ़सोस ऐ बैतसैदा शहर तुझ पर अफ़सोस क्यूँकि जो मोजिज़े तुम में ज़ाहिर हुए अगर सूर और सैदा शहर में ज़ाहिर होते तो वो टाट ओढ़कर और ख़ाक में बैठकर कब के तौबा कर लेते",
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"14": "मगर अदालत में सूर और सैदा शहर का हाल तुम्हारे हाल से ज़्यादा बर्दाश्त के लायक़ होगा ",
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"15": "और तू ऐ कफ़र्नहूम क्या तू आसमान तक बुलन्द किया जाएगा नहीं बल्कि तू आलमएअर्वाह में उतारा जाएगा",
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"16": "जो तुम्हारी सुनता है वो मेरी सुनता है और जो तुम्हें नहीं मानता वो मुझे नहीं मानता और जो मुझे नहीं मानता वो मेरे भेजनेवाले को नहीं मानता",
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"17": "वो सत्तर ख़ुश होकर फिर आए और कहने लगे ऐ ख़ुदावन्द तेरे नाम से बदरूहें भी हमारे ताबे हैं ",
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"18": "उसने उनसे कहा मैं शैतान को बिजली की तरह आसमान से गिरा हुआ देख रहा था",
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"19": "देखो मैंने तुम को इख़्तियार दिया कि साँपों और बिच्छुओं को कुचलो और दुश्मन की सारी क़ुदरत पर ग़ालिब आओ और तुम को हरगिज़ किसी चीज़ से नुक़सान न पहुंचेगा",
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"20": "तोभी इससे ख़ुश न हो कि रूहें तुम्हारे ताबे हैं बल्कि इससे ख़ुश हो कि तुम्हारे नाम आसमान पर लिखे हुए है",
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"21": "उसी घड़ी वो रुउलक़ुद्दूस से ख़ुशी में भर गया और कहने लगा ऐ बाप आसमान और ज़मीन के ख़ुदावन्द में तेरी हम्द करता हूँ कि तूने ये बातें होशियारों और अक़्लमन्दों से छिपाई और बच्चों पर ज़ाहिर कीं हाँ ऐ बाप क्यूँकि ऐसा ही तुझे पसंद आया",
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"22": "मेरे बाप की तरफ़ से सब कुछ मुझे सौंपा गया और कोई नहीं जानता कि बेटा कौन है सिवा बाप के और कोई नहीं जानता कि बाप कौन है सिवा बेटे के और उस शख़्स के जिस पर बेटा उसे ज़ाहिर करना चाहे ",
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"23": "और शागिर्दों की तरफ़ मूख़ातिब होकर ख़ास उन्हीं से कहा मुबारक है वो आँखें जो ये बातें देखती हैं जिन्हें तुम देखते हो",
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"24": "क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से नबियों और बादशाहों ने चाहा कि जो बातें तुम देखते हो देखें मगर न देखी और जो बातें तुम सुनते हो सुनें मगर न सुनीं ",
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"25": "और देखो एक शरा का आलिम उठा और ये कहकर उसकी आज़माइश करने लगा ऐ उस्ताद मैं क्या करूँ कि हमेशा की ज़िन्दगी का बारिस बनूँ ",
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"26": "उसने उससे कहा तौरेत में क्या लिखा है तू किस तरह पढ़ता है",
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"27": "उसने जवाब में कहा ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा से अपने सारे दिल और अपनी सारी जान और अपनी सारी ताक़त और अपनी सारी अक़्ल से मुहब्बत रख और अपने पड़ोसी से अपने बराबर मुहब्बत रख",
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"28": "उसने उससे कहा तूने ठीक जवाब दिया यही कर तो तू जिएगा ",
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"29": "मगर उसने अपने आप को रास्तबाज़ ठहराने की ग़रज़ से ईसा से पूछा फिर मेरा पड़ोसी कौन है ",
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"30": "ईसा ने जवाब में कहा एक आदमी यरूशलीम से यरीहू की तरफ़ जा रहा था कि डाकुओं में घिर गया उन्होंने उसके कपड़े उतार लिए और मारा भी और अधमरा छोड़कर चले गए ",
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"31": "इत्तफ़ाक़न एक काहिन उसी राह से जा रहा था और उसे देखकर कतरा कर चला चला गया",
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"32": "इसी तरह एक लावी उस जगह आया वो भी उसे देखकर कतरा कर चला गया",
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"33": "लेकिन एक सामरी सफ़र करते करते वहाँ आ निकला और उसे देखकर उसने तरस खाया",
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"34": "और उसके पास आकर उसके ज़ख़्मों को तेल और मय लगा कर बाँधा और अपने जानवर पर सवार करके सराय में ले गया और उसकी देखरेख की",
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"35": "दूसरे दिन दो दीनार निकालकर भटयारे को दिए और कहा इसकी देख भाल करना और जो कुछ इससे ज़्यादा ख़र्च होगा मैं फिर आकर तुझे अदा कर दूँगा",
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"36": "इन तीनों में से उस शख़्स का जो डाकुओं में घिर गया था तेरी नज़र में कौन पड़ोसी ठहरा",
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"37": "उसने कहा वो जिसने उस पर रहम किया ईसा ने उससे कहा जा तू भी ऐसा ही कर ",
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"38": "फिर जब जा रहे थे तो वो एक गाँव में दाख़िल हुआ और मर्था नाम औरत ने उसे अपने घर में उतारा ",
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"39": "और मरियम नाम उसकी एक बहन थी वो ईसा के पाँव के पास बैठकर उसका कलाम सुन रही थी",
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||||
"40": "लेकिन मर्था ख़िदमत करते करते घबरा गई पस उसके पास आकर कहने लगी ऐ ख़ुदावन्द क्या तुझे ख़याल नहीं कि मेरी बहन ने ख़िदमत करने को मुझे अकेला छोड़ दिया है पस उसे कह कि मेरी मदद करे",
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||||
"41": "ख़ुदावन्द ने जवाब में उससे कहा मर्था मर्था तू बहुत सी चीज़ों की फ़िक्रओतरद्दुद में है",
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||||
"42": "लेकिन एक चीज़ ज़रूर है और मरियम ने वो अच्छा हिस्सा चुन लिया है जो उससे छीना न जाएगा"
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"1": "फिर ऐसा हुआ कि वो किसी जगह दुआ कर रहा था जब कर चुका तो उसके शागिर्दों में से एक ने उससे कहा ऐ ख़ुदावन्द जैसा युहन्ना ने अपने शागिर्दों को दुआ करना सिखाया तू भी हमें सिखा ",
|
||||
"2": "उसने उनसे कहा जब तुम दुआ करो तो कहो ऐ बाप तेरा नाम नाम पाक माना जाए तेरी बादशाही आए ",
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"3": "हमारी रोज़ की रोटी हर रोज़ हमें दिया कर ",
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||||
"4": "और हमारे गुनाह मुआफ़ कर क्यूंकि हम भी अपने हर क़र्ज़दार को मुआफ़ करतें हैं और हमें आज़माइश में न ला",
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||||
"5": "फिर उसने उनसे कहा तुम में से कौन है जिसका एक दोस्त हो और वो आधी रात को उसके पास जाकर उससे कहे ऐ दोस्त मुझे तीन रोटियाँ दे ",
|
||||
"6": "क्यूँकि मेरा एक दोस्त सफ़र करके मेरे पास आया है और मेरे पास कुछ नहीं कि उसके आगे रख्खूँ",
|
||||
"7": "और वो अन्दर से जवाब में कहे मुझे तक्लीफ़ न दे अब दरवाज़ा बंद है और मेरे लड़के मेरे पास बिछोने पर हैं मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता",
|
||||
"8": "मैं तुम से कहता हूँ कि अगरचे वो इस वजह से कि उसका दोस्त है उठकर उसे न दे तोभी उसकी बेशर्मी की वजह से उठकर जितनी दरकार है उसे देगा ",
|
||||
"9": "पस मैं तुम से कहता हूँ माँगो तो तुम्हें दिया जाएगा ढूँढो तो पाओगे दरवाज़ा खटखटाओ तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा",
|
||||
"10": "क्यूँकि जो कोई माँगता है उसे मिलता है और जो ढूँढता है वो पाता है और जो खटखटाता है उसके लिए खोला जाएगा",
|
||||
"11": "तुम में से ऐसा कौन सा बाप है कि जब उसका बेटा रोटी माँगे तो उसे पत्थर दे या मछली माँगे तो मछली के बदले उसे साँप दे",
|
||||
"12": "या अंडा माँगे तो उसे बिच्छू दे ",
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||||
"13": "पस जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें देना जानते हो तो आसमानी बाप अपने माँगने वालों को रूहउलकुद्दूस क्यूँ न देगा",
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"14": "फिर वो एक गूँगी बदरुह को निकाल रहा था और जब वो बदरूह निकल गई तो ऐसा हुआ कि गूँगा बोला और लोगों ने ताज्जुब किया ",
|
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"15": "लेकिन उनमें से कुछ ने कहा ये तो बदरूहों के सरदार बालज़बूल की मदद से बदरूहों को निकालता है",
|
||||
"16": "कुछ और लोग आज़माइश के लिए उससे एक आसमानी निशान तलब करने लगे",
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||||
"17": "मगर उसने उनके ख़यालात को जानकर उनसे कहा जिस सल्तनत में फूट पड़े वो वीरान हो जाती है और जिस घर में फूट पड़े वो बर्बाद हो जाता है",
|
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"18": "और अगर शैतान भी अपना मुख़ालिफ़ हो जाए तो उसकी सल्तनत किस तरह क़ायम रहेगी क्यूँकि तुम मेरे बारे मे कहते हो कि ये बदरूहों को बालज़बूल की मदद से निकालता है",
|
||||
"19": "और अगर में बदरूहों को बालज़बूल की मदद से निकलता हूँ तो तुम्हारे बेटे किसकी मदद से निकालते हैं पस वही तुम्हारा फ़ैसला करेंगे ",
|
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"20": "लेकिन अगर मैं बदरूहों को ख़ुदा की क़ुदरत से निकालता हूँ तो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे पास आ पहुँची",
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"21": "जब ताक़तवर आदमी हथियार बाँधे हुए अपनी हवेली की रखवाली करता है तो उसका माल महफ़ूज़ रहता है",
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"22": "लेकिन जब उससे कोई ताक़तवर हमला करके उस पर ग़ालिब आता है तो उसके सब हथियार जिन पर उसका भरोसा था छीन लेता और उसका माल लूट कर बाँट देता है",
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"23": "जो मेरी तरफ़ नहीं वो मेरे ख़िलाफ़ है और जो मेरे साथ जमा नहीं करता वो बिखेरता है",
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"24": "जब नापाक रूह आदमी में से निकलती है तो सूखे मुक़ामों में आराम ढूँढती फिरती है और जब नहीं पाती तो कहती है मैं अपने उसी घर में लौट जाऊँगी जिससे निकली हूँ ",
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"25": "और आकर उसे झड़ा हुआ और आरास्ता पाती है",
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"26": "फिर जाकर और सात रूहें अपने से बुरी अपने साथ ले आती है और वो उसमें दाख़िल होकर वहाँ बसती हैं और उस आदमी का पिछला हाल पहले से भी ख़राब हो जाता है",
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"27": "जब वो ये बातें कह रहा था तो ऐसा हुआ कि भीड़ में से एक औरत ने पुकार कर उससे कहा मुबारक है वो पेट जिसमें तू रहा और वो आंचल जो तू ने पिये ",
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"28": "उसने कहा हाँ मगर ज़्यादा मुबारक वो है जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर अमल करते हैं",
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"29": "जब बड़ी भीड़ जमा होती जाती थी तो वो कहने लगा इस ज़माने के लोग बुरे हैं वो निशान तलब करते हैं मगर युनाह के निशान के सिवा कोई और निशान उनको न दिया जाएगा ",
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"30": "क्यूँकि जिस तरह युनाह नीनवे के लोगों के लिए निशान ठहरा उसी तरह इब्नएआदम भी इस ज़माने के लोगों के लिए ठहरेगा",
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"31": "दक्खिन की मलिका इस ज़माने के आदमियों के साथ अदालत के दिन उठकर उनको मुजरिम ठहराएगी क्यूँकि वो दुनिया के किनारे से सुलेमान की हिकमत सुनने को आई और देखो यहाँ वो है जो सुलेमान से भी बड़ा है",
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"32": "नीनवे के लोग इस ज़माने के लोगों के साथ अदालत के दिन खड़े होकर उनको मुजरिम ठहराएँगे क्यूँकि उन्होंने युनाह के एलान पर तौबा कर ली और देखो यहाँ वो है जो युनाह से भी बड़ा है",
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"33": "कोई शख़्स चराग़ जला कर तहखाने में या पैमाने के नीचे नहीं रखता बल्कि चराग़दान पर रखता है ताकि अन्दर जाने वालों को रोशनी दिखाई दे ",
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"34": "तेरे बदन का चराग़ तेरी आँख है जब तेरी आँख दुरुस्त है तो तेरा सारा बदन भी रोशन है और जब ख़राब है तो तेरा बदन भी तारीक है",
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"35": "पस देख जो रोशनी तुझ में है तारीकी तो नहीं ",
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"36": "पस अगर तेरा सारा बदन रोशन हो और कोई हिस्सा तारीक न रहे तो वो तमाम ऐसा रोशन होगा जैसा उस वक़्त होता है जब चराग़ अपने चमक से रोशन करता है",
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"37": "जो वो बात कर रहा था तो किसी फ़रीसी ने उसकी दावत की पस वो अन्दर जाकर खाना खाने बैठा ",
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"38": "फ़रीसी ने ये देखकर ताअज्जुब किया कि उसने खाने से पहले ग़ुस्ल नहीं किया",
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"39": "ख़ुदावन्द ने उससे कहा ऐ फ़रीसियों तुम प्याले और तश्तरी को ऊपर से तो साफ़ करते हो लेकिन तुम्हारे अन्दर लूट और बदी भरी है",
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"40": "ऐ नादानों जिसने बाहर को बनाया क्या उसने अन्दर को नहीं बनाया",
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"41": "हाँ अन्दर की चीज़ें ख़ैरात कर दो तो देखो सब कुछ तुम्हारे लिए पाक होगा ",
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"42": "लेकिन ऐ फ़रीसियों तुम पर अफ़सोस कि पुदीने और सुदाब और हर एक तरकारी पर दसवां हिस्सा देते हो और इन्साफ़ और ख़ुदा की मुहब्बत से ग़ाफ़िल रहते हो लाज़िम था कि ये भी करते और वो भी न छोड़ते ",
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"43": "ऐ फ़रीसियों तुम पर अफ़सोस कि तुम इबादतख़ानों में आला दर्जे की कुर्सियाँ और और बाज़ारों में सलाम चाहते हो",
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"44": "तुम पर अफ़सोस क्यूँकि तुम उन छिपी हुई क़ब्रों की तरह हो जिन पर आदमी चलते है और उनको इस बात की ख़बर नहीं ",
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"45": "फिर शरा के आलिमों में से एक ने जवाब में उससे कहा ऐ उस्ताद इन बातों के कहने से तू हमें भी बेइज़्ज़त करता है",
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"46": "उसने कहा ऐ शरा के आलिमो तुम पर भी अफ़सोस कि तुम ऐसे बोझ जिनको उठाना मुश्किल हैआदमियों पर लादते हो और तुम एक उंगली भी उन बोझों को नहीं लगाते ",
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"47": "तुम पर अफ़सोस कि तुम तो नबियों की क़ब्रों को बनाते हो और तुम्हारे बापदादा ने उनको क़त्ल किया था ",
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"48": "पस तुम गवाह हो और अपने बापदादा के कामों को पसन्द करते हो क्यूँकि उन्होंने तो उनको क़त्ल किया था और तुम उनकी क़ब्रें बनाते हो ",
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"49": "इसी लिए ख़ुदा की हिक्मत ने कहा है मैं नबियों और रसूलों को उनके पास भेजूँगी वो उनमें से कुछ को क़त्ल करेंगे और कुछ को सताएँगे ",
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"50": "ताकि सब नबियों के ख़ून का जो बिनाएआलम से बहाया गया इस ज़माने के लोगों से हिसाब किताब लिया जाए",
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"51": "हाबिल के ख़ून से लेकर उस ज़करियाह के ख़ून तक जो क़ुर्बानगाह और मक़्दिस के बीच में हलाक हुआ मैं तुम से सच कहता हूँ कि इसी ज़माने के लोगों से सब का हिसाब किताब लिया जाएगा",
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"52": "ऐ शरा के आलिमो तुम पर अफ़सोस कि तुम ने मारिफ़त की कुंजी छीन ली तुम ख़ुद भी दाख़िल न हुए और दाख़िल होने वालों को भी रोका",
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"53": "जब वो वहाँ से निकला तो आलिम और फ़रीसी उसे बेतरह चिपटने और छेड़ने लगे ताकि वो बहुत से बातों का ज़िक्र करे",
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"54": "और उसकी घात में रहे ताकि उसके मुँह की कोई बात पकड़े"
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"1": "इतने में जब हज़ारों आदमियों की भीड़ लग गई यहाँ तक कि एक दूसरे पर गिरा पड़ता था तो उसने सबसे पहले अपने शागिर्दों से ये कहना शुरू किया उस ख़मीर से होशियार रहना जो फ़रीसियों की रियाकारी है ",
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"2": "क्यूँकि कोई चीज़ ढकी नहीं जो खोली न जाएगी और न कोई चीज़ छिपी है जो जानी न जाएगी",
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"3": "इसलिए जो कुछ तुम ने अंधेरे में कहा है वो उजाले में सुना जाएगा और जो कुछ तुम ने कोठरियों के अन्दर कान में कहा है छतों पर उसका एलान किया जाएगा",
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"4": "मगर तुम दोस्तों से मैं कहता हूँ कि उनसे न डरो जो बदन को क़त्ल करते हैं और उसके बाद और कुछ नहीं कर सकते ",
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"5": "लेकिन मैं तुम्हें जताता हूँ कि किससे डरना चाहिए उससे डरो जिसे इख़्तियार है कि क़त्ल करने के बाद जहन्नुम में डाले हाँ मैं तुम से कहता हूँ कि उसी से डरो ",
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"6": "क्या दो पैसे की पाँच चिड़िया नहीं बिकती तो भी ख़ुदा के सामने उनमें से एक भी फ़रामोश नहीं होती",
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"7": "बल्कि तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए है डरो मत तुम्हारी क़द्र तो बहुत सी चिड़ियों से ज़्यादा है",
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"8": "और मैं तुम से कहता हूँ कि जो कोई आदमियों के सामने मेरा इक़रार करे इब्नएआदम भी ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इक़रार करेगा ",
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"9": "मगर जो आदमियों के सामने मेरा इन्कार करे ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने उसका इन्कार किया जाएगा",
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"10": "और जो कोई इब्नएआदम के ख़िलाफ़ कोई बात कहे उसको मुआफ़ किया जाएगा लेकिन जो रूहउलकुद्दूसके हक में कुफ़्र बके उसको मुआफ़ न किया जाएगा ",
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"11": "और जब वो तुम को इबादतख़ानों में और हाकिमों और इख़्तियार वालों के पास ले जाएँ तो फ़िक्र न करना कि हम किस तरह या क्या जवाब दें या क्या कहें ",
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"12": "क्यूँकि रूहउलकुद्दूस उसी वक़्त तुम्हें सिखा देगा कि क्या कहना चाहिए",
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"13": "फिर भीड़ में से एक ने उससे कहा ऐ उस्ताद मेरे भाई से कह कि मेरे बाप की जायदाद का मेरा हिस्सा मुझे दे",
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"14": "उसने उससे कहा मियाँ किसने मुझे तुम्हारा मुन्सिफ़ या बाँटने वाला मुक़र्रर किया है",
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||||
"15": "और उसने उनसे कहा ख़बरदार अपने आप को हर तरह के लालच से बचाए रख्खो क्यूँकि किसी की ज़िन्दगी उसके माल की ज़्यादती पर मौक़ूफ़ नहीं ",
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"16": "और उसने उनसे एक मिसाल कही किसी दौलतमन्द की ज़मीन में बड़ी फ़सल हुई",
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"17": "पस वो अपने दिल में सोचकर कहने लगा मैं क्या करूँक्यूँकि मेरे यहाँ जगह नहीं जहाँ अपनी पैदावार भर रख्खूँ",
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"18": "उसने कहा मैं यूँ करूँगा कि अपनी कोठियाँ ढा कर उनसे बड़ी बनाऊँगा ",
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"19": "और उनमें अपना सारा अनाज और माल भर दूंगा और अपनी जान से कहूँगा कि ऐ जान तेरे पास बहुत बरसों के लिए बहुत सा माल जमा है चैन कर खा पी ख़ुश रह",
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"20": "मगर ख़ुदा ने उससे कहा ऐ नादान इसी रात तेरी जान तुझ से तलब कर ली जाएगी पस जो कुछ तू ने तैयार किया है वो किसका होगा",
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"21": "ऐसा ही वो शख़्स है जो अपने लिए ख़ज़ाना जमा करता है और ख़ुदा के नज़दीक दौलतमन्द नहीं ",
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"22": "फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा इसलिए मैं तुम से कहता हूँ कि अपनी जान की फ़िक्र न करो कि हम क्या खाएँगे और न अपने बदन की कि क्या पहनेंगे",
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||||
"23": "क्यूँकि जान ख़ुराक से बढ़ कर है और बदन पोशाक से ",
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||||
"24": "परिंदों पर ग़ौर करो कि न बोते हैं और न काटते न उनके खत्ता होता है न कोठी तोभी ख़ुदा उन्हें खिलाता है तुम्हारी क़द्र तो परिन्दों से कहीं ज़्यादा है",
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||||
"25": "तुम में ऐसा कोन है जो फ़िक्र करके अपनी उम्र में एक घड़ी बढ़ा सके ",
|
||||
"26": "पस जब सबसे छोटी बात भी नहीं कर सकते तो बाक़ी चीज़ों की फ़िक्र क्यूँ करते हो",
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||||
"27": "सोसन के दरख़्तों पर ग़ौर करो कि किस तरह बढ़ते है वो न मेहनत करते हैं न कातते हैं तोभी मैं तुम से कहता हूँ कि सुलेमान भी बावजूद अपनी सारी शानओशौकत के उनमें से किसी की तरह मुलब्बस न था",
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||||
"28": "पस जब ख़ुदा मैदान की घास को जो आज है कल तन्दूर में झोंकी जाएगी ऐसी पोशाक पहनाता है तो ऐ कम ईमान वालो तुम को क्यूँ न पहनाएगा",
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||||
"29": "और तुम इसकी तलाश में न रहो कि क्या खाएँगे या क्या पीएँगे और न शक्की बनो",
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||||
"30": "क्यूँकि इन सब चीज़ों की तलाश में दुनिया की क़ौमें रहती हैं लेकिन तुम्हारा आसमानी बाप जानता है कि तुम इन चीज़ों के मुहताज हो",
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||||
"31": "हाँ उसकी बादशाही की तलाश में रहो तो ये चीज़ें भी तुम्हें मिल जाएँगी",
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||||
"32": "ऐ छोटे गल्ले न डर क्यूँकि तुम्हारे आसमानी बाप को पसन्द आया कि तुम्हें बादशाही दे ",
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||||
"33": "अपना माल अस्बाब बेचकर ख़ैरात कर दो और अपने लिए ऐसे बटवे बनाओ जो पुराने नहीं होते यानि आसमान पर ऐसा ख़ज़ाना जो ख़ाली नही होता जहाँ चोर नज़दीक नहीं जाता और कीड़ा ख़राब नहीं करता",
|
||||
"34": "क्यूँकि जहाँ तुम्हारा ख़ज़ाना है वहीं तुम्हारा दिल भी रहेगा ",
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||||
"35": "तुम्हारी कमरें बँधी रहें और तुम्हारे चराग़ जलते रहें ",
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||||
"36": "और तुम उन आदमियों की तरह बनो जो अपने मालिक की राह देखते हों कि वो शादी में से कब लौटेगा ताकि जब वो आकर दरवाज़ा खटखटाए तो फ़ौरन उसके लिए खोल दें",
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||||
"37": "मुबारक है वो नौकर जिनका मालिक आकर उन्हें जागता पाए मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो कमर बाँध कर उन्हें खाना खाने को बिठाएगा और पास आकर उनकी ख़िदमत करेगा",
|
||||
"38": "अगर वो रात के दूसरे पहर में या तीसरे पहर में आकर उनको ऐसे हाल में पाए तो वो नौकर मुबारक हैं ",
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"39": "लेकिन ये जान रखो कि अगर घर के मालिक को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आएगा तो जागता रहता और अपने घर में नक़ब लगने न देता ",
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"40": "तुम भी तैयार रहो क्यूँकि जिस घड़ी तुम को गुमान भी न होगा इब्नेएआदम आ जाएगा",
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"41": "पतरस ने कहा ऐ ख़ुदावन्द तू ये मिसाल हम ही से कहता है या सबसे ",
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||||
"42": "ख़ुदावन्द ने कहा कौन है वो ईमानदार और अक़्लमन्द जिसका मालिक उसे अपने नौकर चाकरों पर मुक़र्रर करे हर एक की ख़ुराक वक़्त पर बाँट दिया करे",
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||||
"43": "मुबारक है वो नौकर जिसका मालिक आकर उसको ऐसा ही करते पाए ",
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||||
"44": "मैं तुम से सच कहता हूँ कि वो उसे अपने सारे माल पर मुख़्तार कर देगा",
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||||
"45": "लेकिन अगर वो नौकर अपने दिल में ये कहकर मेरे मालिक के आने में देर है ग़ुलामों और लौंडियों को मारना और खा पी कर मतवाला होना शुरू करे",
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||||
"46": "तो उस नौकर का मालिक ऐसे दिन कि वो उसकी राह न देखता हो आ मौजूद होगा और ख़ूब कोड़े लगाकर उसे बेईमानों में शामिल करेगा",
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||||
"47": "और वो नौकर जिसने अपने मालिक की मर्ज़ी जान ली और तैयारी न की और न उसकी मर्ज़ी के मुताबिक़ अमल किया बहुत मार खाएगा ",
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||||
"48": "मगर जिसने न जानकर मार खाने के काम किए वो थोड़ी मार खाएगा और जिसे बहुत दिया गया उससे बहुत तलब किया जाएगा और जिसे बहुत सौंपा गया उससे ज़्यादा तलब करेंगे",
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"49": "मैं ज़मीन पर आग भड़काने आया हूँ और अगर लग चुकी होती तो मैं क्या ही ख़ुश होता",
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||||
"50": "लेकिन मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वो हो न ले मैं बहुत ही तंग रहूँगा",
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"51": "क्या तुम गुमान करते हो कि मैं ज़मीन पर सुलह कराने आया हूँ मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं बल्कि जुदाई कराने",
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||||
"52": "क्यूँकि अब से एक घर के पाँच आदमी आपस में दुश्मनी रख्खेंगे दो से तीन और तीन से दो ",
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"53": "बाप बेटे से दुश्मनी रख्खेगा और बेटा बाप से सास बहु से और बहु सास से ",
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||||
"54": "फिर उसने लोगों से भी कहा जब बादल को पच्छिम से उठते देखते हो तो फ़ौरन कहते हो कि पानी बरसेगा और ऐसा ही होता है",
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"55": "और जब तुम मालूम करते हो कि दख्खिना चल रही है तो कहते हो कि लू चलेगी और ऐसा ही होता है",
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||||
"56": "ऐ रियाकारो ज़मीन और आसमान की सूरत में फ़र्क़ करना तुम्हें आता है लेकिन इस ज़माने के बारे मे फ़र्क़ करना क्यूँ नहीं आता",
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||||
"57": "और तुम अपने आप ही क्यूँ फ़ैसला नहीं कर लेते कि ठीक क्या है",
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||||
"58": "जब तू अपने दुशमन के साथ हाकिम के पास जा रहा है तो रास्ते में कोशिस करके उससे छूट जाए ऐसा न हो कि वो तुझको फैसला करने वाले के पास खींच ले जाए और फ़ैसला करने वाला तुझे सिपाही के हवाले करे और सिपाही तुझे क़ैद में डाले ",
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||||
"59": "मैं तुझ से कहता हूँ कि जब तक तू दमड़ीदमड़ी अदा न कर देगा वहाँ से हरगिज़ न छूटेगा"
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"1": "उस वक़्त कुछ लोग हाज़िर थे जिन्होंने उसे उन गलीलियों की ख़बर दी जिनका ख़ून पिलातुस ने उनके ज़बीहों के साथ मिलाया था",
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"2": "उसने जवाब में उनसे कहा इन गलीलियों ने ऐसा दुख पाया क्या वो इसलिए तुम्हारी समझ में और सब गलीलियों से ज़्यादा गुनहगार थे",
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||||
"3": "मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे तो सब इसी तरह हलाक होंगे",
|
||||
"4": "या क्या वो अठारह आदमी जिन पर शेलोख़ का गुम्बद गिरा और दब कर मर गए तुम्हारी समझ में यरूशलीम के और सब रहनेवालों से ज़्यादा क़ुसूरवार थे",
|
||||
"5": "मैं तुम से कहता हूँ कि नहीं बल्कि अगर तुम तौबा न करोगे तो सब इसी तरह हलाक होगे",
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||||
"6": "फिर उसने ये मिसाल कही किसी ने अपने बाग़ में एक अंजीर का दरख़्त लगाया था वो उसमें फल ढूँढने आया और न पाया ",
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||||
"7": "इस पर उसने बाग़बान से कहा देख तीन बरस से मैं इस अंजीर के दरख़्त में फल ढूँढने आता हूँ और नहीं पाता इसे काट डाल ये ज़मीन को भी क्यूँ रोके रहे",
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||||
"8": "उसने जवाब में उससे कहा ऐ ख़ुदावन्द इस साल तू और भी उसे रहने दे ताकि मैं उसके चारों तरफ़ थाला खोदूँ और खाद डालूँ ",
|
||||
"9": "अगर आगे फला तो ख़ैर नहीं तो उसके बाद काट डालना ",
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||||
"10": "फिर वो सबत के दिन किसी इबादतख़ाने में तालीम देता था ",
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||||
"11": "और देखो एक औरत थी जिसको अठारह बरस से किसी बदरूह की वजह से कमज़ोरी थी वो झुक गई थी और किसी तरह सीधी न हो सकती थी",
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"12": "ईसा ने उसे देखकर पास बुलाया और उससे कहा ऐ औरत तू अपनी कमज़ोरी से छूट गयी",
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||||
"13": "और उसने उस पर हाथ रख्खे उसी दम वो सीधी हो गई और ख़ुदा की बड़ाई करने लगी",
|
||||
"14": "इबादतख़ाने का सरदार इसलिए कि ईसा ने सबत के दिन शिफ़ा बख़्शी ख़फ़ा होकर लोगों से कहने लगा छ दिन हैं जिनमें काम करना चाहिए पस उन्हीं में आकर शिफ़ा पाओ न कि सबत के दिन ",
|
||||
"15": "ख़ुदावन्द ने उसके जवाब में कहा ऐ रियाकारो क्या हर एक तुम में से सबत के दिन अपने बैल या गधे को खूंटे से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता",
|
||||
"16": "पस क्या वाजिब न था कि ये जो अब्राहम की बेटी है जिसको शैतान ने अठारह बरस से बाँध कर रख्खा था सबत के दिन इस क़ैद से छुड़ाई जाती",
|
||||
"17": "जब उसने ये बातें कहीं तो उसके सब मुख़ालिफ़ शर्मिन्दा हुए और सारी भीड़ उन आलीशान कामों से जो उससे होते थे ख़ुश हुई",
|
||||
"18": "पस वो कहने लगा ख़ुदा की बादशाही किसकी तरह है मैं उसको किससे मिसाल दूँ",
|
||||
"19": "वो राई के दाने की तरह है जिसको एक आदमी ने लेकर अपने बाग़ में डाल दिया वो उगकर बड़ा दरख़्त हो गया और हवा के परिन्दों ने उसकी डालियों पर बसेरा किया",
|
||||
"20": "उसने फिर कहा मैं ख़ुदा की बादशाही को किससे मिसाल दूँ",
|
||||
"21": "वो ख़मीर की तरह है जिसे एक औरत ने तीन पैमाने आटे में मिलाया और होते होते सब ख़मीर हो गया",
|
||||
"22": "वो शहरशहर और गाँवगाँव तालीम देता हुआ यरूशलीम का सफ़र कर रहा था",
|
||||
"23": "किसी शख़्स ने उससे पुछा ऐ ख़ुदावन्द क्या नजात पाने वाले थोड़े हैं ",
|
||||
"24": "उसने उनसे कहा मेहनत करो कि तंग दरवाज़े से दाख़िल हो क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि बहुत से दाख़िल होने की कोशिश करेंगे और न हो सकेंगे ",
|
||||
"25": "जब घर का मालिक उठ कर दरावाज़ा बन्द कर चुका हो और तुम बाहर खड़े दरवाज़ा खटखटाकर ये कहना शुरू करो ऐ ख़ुदावन्द हमारे लिए खोल दे और वो जवाब दे मैं तुम को नहीं जानता कि कहाँ के हो ",
|
||||
"26": "उस वक़्त तुम कहना शुरू करोगे हम ने तो तेरे रुबरु खायापिया और तू ने हमारे बाज़ारों में तालीम दी ",
|
||||
"27": "मगर वो कहेगा मैं तुम से कहता हूँ कि मैं नहीं जानता तुम कहाँ के हो ऐ बदकारो तुम सब मुझ से दूर हो",
|
||||
"28": "वहाँ रोना और दांत पीसना होगा तुम अब्राहम और इज़्हाक़ और याक़ूब और सब नबियों को ख़ुदा की बादशाही में शामिल और अपने आपको बाहर निकाला हुआ देखोगे ",
|
||||
"29": "और पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन से लोग आकर ख़ुदा की बादशाही की ज़ियाफ़त में शरीक होंगे",
|
||||
"30": "और देखो कुछ आख़िर ऐसे हैं जो अव्वल होंगे और कुछ अव्वल हैं जो आख़िर होंगे",
|
||||
"31": "उसी वक़्त कुछ फ़रीसियों ने आकर उससे कहा निकल कर यहाँ से चल दे क्यूँकि हेरोदेस तुझे क़त्ल करना चाहता है",
|
||||
"32": "उसने उनसे कहा जाकर उस लोमड़ी से कह दो कि देख मैं आज और कल बदरूहों को निकालता और शिफ़ा का काम अन्जाम देता रहूँगा और तीसरे दिन पूरा करूँगा",
|
||||
"33": "मगर मुझे आज और कल और परसों अपनी राह पर चलना ज़रूर है क्यूँकि मुमकिन नहीं कि नबी यरूशलीम से बाहर हलाक हो",
|
||||
"34": "ऐ यरूशलीम ऐ यरूशलीम तू जो नबियों को क़त्ल करती है और जो तेरे पास भेजे गए उन पर पथराव करती है कितनी ही बार मैंने चाहा कि जिस तरह मुर्ग़ी अपने बच्चों को परों तले जमा कर लेती है उसी तरह मैं भी तेरे बच्चों को जमा कर लूँ मगर तुम ने न चाहा",
|
||||
"35": "देखो तुम्हारा घर तुम्हारे ही लिए छोड़ा जाता है और मैं तुम से कहता हूँ कि मुझ को उस वक़्त तक हरगिज़ न देखोगे जब तक न कहोगे मुबारक है वो जो ख़ुदावन्द के नाम से आता है"
|
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}
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@ -0,0 +1,37 @@
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{
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||||
"1": "फिर ऐसा हुआ कि वो सबत के दिन फ़रीसियों के सरदारों में से किसी के घर खाना खाने को गया और वो उसकी ताक में रहे",
|
||||
"2": "और देखो एक शख़्स उसके सामने था जिसे जलन्दर था",
|
||||
"3": "ईसा ने शरा के आलिमों और फ़रीसियों से कहा सबत के दिन शिफ़ा बख़्शना जायज़ है या नहीं ",
|
||||
"4": "वो चुप रह गए उसने उसे हाथ लगा कर शिफ़ा बख़्शी और रुख़्सत किया",
|
||||
"5": "और उनसे कहा तुम में ऐसा कौन है जिसका गधा या बैल कूएँ में गिर पड़े और वो सबत के दिन उसको फ़ौरन न निकाल ले",
|
||||
"6": "वो इन बातों का जवाब न दे सके",
|
||||
"7": "जब उसने देखा कि मेहमान सद्र जगह किस तरह पसन्द करते हैं तो उनसे एक मिसाल कही ",
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||||
"8": "जब कोई तुझे शादी में बुलाए तो सद्र जगह पर न बैठ कि शायद उसने तुझ से भी किसी ज़्यादा इज़्ज़तदार को बुलाया हो ",
|
||||
"9": "और जिसने तुझे और उसे दोनों को बुलाया है आकर तुझ से कहे इसको जगह दे फिर तुझे शर्मिन्दा होकर सबसे नीचे बैठना पड़े",
|
||||
"10": "बल्कि जब तू बुलाया जाए तो सबसे नीची जगह जा बैठ ताकि जब तेरा बुलाने वाला आए तो तुझ देखे ऐ दोस्त आगे बढ़कर बैठ तब उन सब की नज़र में जो तेरे साथ खाने बैठे हैं तेरी इज़्ज़त होगी ",
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"11": "क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वो छोटा किया जाएगा और जो अपने आप को छोटा बनाएगावो बड़ा किया जाएगा",
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"12": "फिर उसने अपने बुलानेवाले से कहा जब तू दिन का या रात का खाना तैयार करे तो अपने दोस्तों या भाइयों या रिश्तेदारों या दौलतमन्द पड़ोसियों को न बुला ताकि ऐसा न हो कि वो भी तुझे बुलाएँ और तेरा बदला हो जाए",
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||||
"13": "बल्कि जब तू दावत करे तो ग़रीबों लुन्जों लंगड़ोंअन्धों को बुला ",
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"14": "और तुझ पर बरकत होगी क्यूँकि उनके पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं और तुझे रास्त्बाज़ों की क़यामत में बदला मिलेगा",
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"15": "जो उसके साथ खाना खाने बैठे थे उनमें से एक ने ये बातें सुनकर उससे कहा मुबारक है वो जो ख़ुदा की बादशाही में खाना खाए ",
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"16": "उसने उसे कहा एक शख़्स ने बड़ी दावत की और बहुत से लोगों को बुलाया ",
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"17": "और खाने के वक़्त अपने नौकर को भेजा कि बुलाए हुओं से कहे आओ अब खाना तैयार है",
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"18": "इस पर सब ने मिलकर मुआफ़ी मांगना शुरू किया पहले ने उससे कहा मैंने खेत ख़रीदा है मुझे ज़रूर है कि जाकर उसे देखूँ मैं तेरी ख़ुशामद करता हूँ मुझे मुआफ़ कर ",
|
||||
"19": "दूसरे ने कहा मैंने पाँच जोड़ी बैल ख़रीदे हैं और उन्हें आज़माने जाता हूँ मैं तुझसे ख़ुशामद करता हूँ मुझे मुआफ़ कर ",
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"20": "एक और ने कहा मैंने शादी की है इस वजह से नहीं आ सकता ",
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||||
"21": "पस उस नौकर ने आकर अपने मालिक को इन बातों की ख़बर दी इस पर घर के मालिक ने ग़ुस्सा होकर अपने नौकर से कहा जल्द शहर के बाज़ारों और कूचों में जाकर ग़रीबों लुन्जों और लंगड़ों को यहाँ ले आओ",
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||||
"22": "नौकर ने कहा ऐ ख़ुदावन्द जैसा तूने फ़रमाया था वैसा ही हुआ और अब भी जगह है ",
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"23": "मालिक ने उस नौकर से कहा सड़कों और खेत की बाड़ी की तरफ़ जा और लोगों को मजबूर करके ला ताकि मेरा घर भर जाए",
|
||||
"24": "क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि जो बुलाए गए थे उनमें से कोई शख़्स मेरा खाना चखने न पाएगा",
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"25": "जब बहुत से लोग उसके साथ जा रहे थे तो उसने पीछे मुड़कर उनसे कहा ",
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"26": "अगर कोई मेरे पास आए और बच्चों और भाइयों और बहनों बल्कि अपनी जान से भी दुश्मनी न करे तो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता ",
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||||
"27": "जो कोई अपनी सलीब उठाकर मेरे पीछे न आए वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता ",
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"28": "क्यूँकि तुम में ऐसा कौन है कि जब वो एक गुम्बद बनाना चाहे तो पहले बैठकर लागत का हिसाब न कर ले कि आया मेरे पास उसके तैयार करने का सामान है या नहीं",
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"29": "ऐसा न हो कि जब नीव डालकर तैयार न कर सके तो सब देखने वाले ये कहकर उस पर हँसना शुरू करें कि",
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"30": "इस शख़्स ने इमारत शुरू तो की मगर मुकम्मल न कर सका ",
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"31": "या कौन सा बादशाह है जो दूसरे बादशाह से लड़ने जाता हो और पहले बैठकर मशवरा न कर ले कि आया मैं दस हज़ार से उसका मुक़ाबला कर सकता हूँ या नहीं जो बीस हज़ार लेकर मुझ पर चढ़ आता है",
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||||
"32": "नहीं तो उसके दूर रहते ही एल्ची भेजकर सुलह की गुज़ारिश करेगा",
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||||
"33": "पस इसी तरह तुम में से जो कोई अपना सब कुछ छोड़ न दे वो मेरा शागिर्द नहीं हो सकता ",
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||||
"34": "नमक अच्छा तो है लेकिन अगर नमक का मज़ा जाता रहे तो वो किस चीज़ से मज़ेदार किया जाएगा",
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"35": "न वो ज़मीन के काम का रहा न खाद के लोग उसे बाहर फेंक देते हैं जिसके कान सुनने के हों वो सुन ले"
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}
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@ -0,0 +1,34 @@
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"1": "सब महसूल लेनेवाले और गुनहगार उसके पास आते थे ताकि उसकी बातें सुनें",
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"2": "और उलमा और फ़रीसी बुदबुदाकर कहने लगे ये आदमी गुनाहगारों से मिलता और उनके साथ खाना खाता है",
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||||
"3": "उसने उनसे ये मिसाल कही ",
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||||
"4": "तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों और उनमें से एक गुम हो जाये तो निन्नानवे को जंगल मे छोड़कर उस खोई हुई को जब तक मिल न जाये ढूंढता न रहेगा",
|
||||
"5": "फिर मिल जाती है तो वो ख़ुश होकर उसे कन्धे पर उठा लेता है",
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||||
"6": "और घर पहुँचकर दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाता और कहता है मेरे साथ ख़ुशी करो क्यूँकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई",
|
||||
"7": "मैं तुम से कहता हूँ कि इसी तरह निन्नानवे रास्तबाज़ों की निस्बत जो तौबा की हाजत नहीं रखते एक तौबा करने वाले गुनहगार के बाइस आसमान पर ज़्यादा ख़ुशी होगी",
|
||||
"8": "या कौन ऐसी औरत है जिसके पास दस दिरहम हों और एक खो जाए तो वो चराग़ जलाकर घर में झाडू न दे और जब तक मिल न जाए कोशिश से ढूंडती न रहे",
|
||||
"9": "और जब मिल जाए तो अपनी दोस्तों और पड़ोसियों को बुलाकर न कहे मेरे साथ ख़ुशी करो क्यूँकि मेरा खोया हुआ दिरहम मिल गया",
|
||||
"10": "मैं तुम से कहता हूँ कि इसी तरह एक तौबा करनेवाला गुनाहगार के बारे में ख़ुदा के फ़रिश्तों के सामने ख़ुशी होती है",
|
||||
"11": "फिर उसने कहा किसी शख़्स के दो बेटे थे",
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"12": "उनमें से छोटे ने बाप से कहा ऐ बाप माल का जो हिस्सा मुझ को पहुँचता है मुझे दे दे उसने अपना मालओअस्बाब उन्हें बाँट दिया ",
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||||
"13": "और बहुत दिन न गुज़रे कि छोटा बेटा अपना सब कुछ जमा करके दूर दराज़ मुल्क को रवाना हुआ और वहाँ अपना माल बदचलनी में उड़ा दिया",
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||||
"14": "जब सब ख़र्च कर चुका तो उस मुल्क में सख़्त काल पड़ा और वो मुहताज होने लगा ",
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||||
"15": "फिर उस मुल्क के एक बाशिन्दे के वहां जा पड़ा उसने उसको अपने खेत में खिंजीर चराने भेजा",
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||||
"16": "और उसे आरज़ू थी कि जो फलियाँ खिंजीर खाते थे उन्हीं से अपना पेट भरे मगर कोई उसे न देता था",
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"17": "फिर उसने होश में आकर कहा मेरे बाप के बहुत से मज़दूरों को इफ़रात से रोटी मिलती है और मैं यहाँ भूखा मर रहा हूँ",
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||||
"18": "मैं उठकर अपने बाप के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा ऐ बाप मैं आसमान का और तेरी नज़र में गुनहगार हुआ",
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||||
"19": "अब इस लायक़ नहीं रहा कि फिर तेरा बेटा कहलाऊँ मुझे अपने मज़दूरों जैसा कर ले",
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||||
"20": "पस वो उठकर अपने बाप के पास चला वो अभी दूर ही था कि उसे देखकर उसके बाप को तरस आया और दौड़कर उसको गले लगा लिया और चूमा ",
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"21": "बेटे ने उससे कहा ऐ बाप मैं आसमान का और तेरी नज़र मैं गुनहगार हुआ अब इस लायक़ नहीं रहा कि फिर तेरा बेटा कहलाऊँ ",
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"22": "बाप ने अपने नौकरों से कहा अच्छे से अच्छा लिबास जल्द निकाल कर उसे पहनाओ और उसके हाथ में अँगूठी और पैरों में जूती पहनाओ ",
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"23": "और तैयार किए हुए जानवर को लाकर ज़बह करो ताकि हम खाकर ख़ुशी मनाएँ ",
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||||
"24": "क्यूँकि मेरा ये बेटा मुर्दा था अब ज़िन्दा हुआ खो गया था अब मिला है पस वो ख़ुशी मनाने लगे",
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||||
"25": "लेकिन उसका बड़ा बेटा खेत में था जब वो आकर घर के नज़दीक पहुँचा तो गाने बजाने और नाचने की आवाज़ सुनी",
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||||
"26": "और एक नौकर को बुलाकर मालूम करने लगा ये क्या हो रहा है",
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"27": "उसने उससे कहा तेरा भाई आ गया है और तेरे बाप ने तैयार किया हुआ जानवर ज़बह कराया है क्यूँकि उसे भला चंगा पाया ",
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"28": "वो ग़ुस्सा हुआ और अन्दर जाना न चाहा मगर उसका बाप बाहर जाकर उसे मनाने लगा",
|
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"29": "उसने अपने बाप से जवाब में कहा देख इतने बरसों से मैं तेरी ख़िदमत करता हूँ और कभी तेरी नाफ़रमानी नहीं की मगर मुझे तूने कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया कि अपने दोस्तों के साथ ख़ुशी मनाता ",
|
||||
"30": "लेकिन जब तेरा ये बेटा आया जिसने तेरा मालओअस्बाब कस्बियों में उड़ा दिया तो उसके लिए तूने तैयार किया हुआ जानवर ज़बह कराया है",
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||||
"31": "उसने उससे कहा बेटा तू तो हमेशा मेरे पास है और जो कुछ मेरा है वो तेरा ही है ",
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||||
"32": "लेकिन ख़ुशी मनाना और शादमान होना मुनासिब था क्यूँकि तेरा ये भाई मुर्दा था अब ज़िन्दा हुआ खोया था अब मिला है"
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}
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"1": "फिर उसने शागिर्दों से भी कहा किसी दौलतमन्द का एक मुख़्तार था उसकी लोगों ने उससे शिकायत की कि ये तेरा माल उड़ाता है ",
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||||
"2": "पस उसने उसको बुलाकर कहा ये क्या है जो मैं तेरे हक़ में सुनता हूँ अपनी मुख़्तारी का हिसाब दे क्यूँकि आगे को तू मुख़्तार नही रह सकता",
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||||
"3": "उस मुख़्तार ने अपने जी में कहा क्या करूँ क्यूँकि मेरा मालिक मुझ से ज़िम्मेदारी छीन लेता है मिट्टी तो मुझ से खोदी नहीं जाती और भीख माँगने से शर्म आती है",
|
||||
"4": "मैं समझ गया कि क्या करूँ ताकि जब ज़िम्मेदारी से निकाला जाऊँ तो लोग मुझे अपने घरों में जगह दें",
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||||
"5": "पस उसने अपने मालिक के एक एक क़र्ज़दार को बुलाकर पहले से पूछा तुझ पर मेरे मालिक का क्या आता है",
|
||||
"6": "उसने कहा सौ मन तेल उसने उससे कहा अपनी दस्तावेज़ ले और जल्द बैठकर पचास लिख दे",
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"7": "फिर दूसरे से कहा तुझ पर क्या आता है उसने कहा सौ मन गेहुँ उसने उससे कहा अपनी दस्तावेज़ लेकर अस्सी लिख दे",
|
||||
"8": "और मालिक ने बेईमान मुख़्तार की तारीफ़ की इसलिए कि उसने होशियारी की थी क्यूँकि इस जहान के फ़र्ज़न्द अपने हमवक़्तों के साथ मुआमिलात में नूर के फ़र्ज़न्द से ज़्यादा होशियार हैं ",
|
||||
"9": "और मैं तुम से कहता हूँ कि नारास्ती की दौलत से अपने लिए दोस्त पैदा करो ताकि जब वो जाती रहे तो ये तुम को हमेशा के मुक़ामों में जगह दें",
|
||||
"10": "जो थोड़े में ईमानदार है वो बहुत में भी ईमानदार है और जो थोड़े में बेईमान है वो बहुत में भी बेईमान है ",
|
||||
"11": "पस जब तुम नारास्त दौलत में ईमानदार न ठहरे तो हक़ीक़ी दौलत कौन तुम्हारे ज़िम्मे करेगा",
|
||||
"12": "और अगर तुम बेगाना माल में ईमानदार न ठहरे तो जो तुम्हारा अपना है उसे कौन तुम्हें देगा ",
|
||||
"13": "कोई नौकर दो मालिकों की ख़िदमत नहीं कर सकता क्यूंकि या तो एक से दुश्मनी रख्खेगा और दूसरे से मुहब्बत या एक से मिला रहेगा और दूसरे को नाचीज़ जानेगा तुम ख़ुदा और दौलत दोनों की ख़िदमत नहीं कर सकते",
|
||||
"14": "फ़रीसी जो दौलत दोस्त थे इन सब बातों को सुनकर उसे ठट्ठे में उड़ाने लगे",
|
||||
"15": "उसने उनसे कहा तुम वो हो कि आदमियों के सामने अपने आपको रास्तबाज़ ठहराते हो लेकिन ख़ुदा तुम्हारे दिलों को जानता है क्यूँकि जो चीज़ आदमियों की नज़र में आला कद्र है वो ख़ुदा के नज़दीक मकरूह है",
|
||||
"16": "शरीअत और अम्बिया युहन्ना तक रहे उस वक़्त से ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी दी जाती है और हर एक ज़ोर मारकर उसमें दाख़िल होता है",
|
||||
"17": "लेकिन आसमान और ज़मीन का टल जाना शरीअत के एक नुक्ते के मिट जाने से आसान है",
|
||||
"18": "जो कोई अपनी बीवी को छोड़कर दूसरी से शादी करे वो ज़िना करता है और जो शख़्स शौहर की छोड़ी हुई औरत से शादी करे वो भी ज़िना करता है",
|
||||
"19": "एक दौलतमन्द था जो इर्ग़वानी और महीन कपड़े पहनता और हर रोज़ ख़ुशी मनाता और शानओशौकत से रहता था",
|
||||
"20": "और लाज़र नाम एक ग़रीब नासूरों से भरा हुआ उसके दरवाज़े पर डाला गया था ",
|
||||
"21": "उसे आरज़ू थी कि दौलतमन्द की मेज़ से गिरे हुए टुकड़ों से अपना पेट भरे बल्कि कुत्ते भी आकर उसके नासूर को चाटते थे",
|
||||
"22": "और ऐसा हुआ कि वो ग़रीब मर गया और फ़रिश्तों ने उसे ले जाकर अब्राहाम की गोद में पहुँचा दिया और दौलतमन्द भी मरा और दफ्न हुआ",
|
||||
"23": "उसने आलमएअर्वाह के दरमियान अज़ाब में मुब्तिला होकर अपनी आँखें उठाई और अब्राहम को दूर से देखा और उसकी गोद में लाज़र को ",
|
||||
"24": "और उसने पुकार कर कहा ऐ बाप अब्राहम मुझ पर रहम करके लाज़र को भेज कि अपनी ऊँगली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी ज़बान तर करे क्यूँकि मैं इस आग में तड़पता हूँ",
|
||||
"25": "अब्राहम ने कहा बेटा याद कर ले तू अपनी ज़िन्दगी में अपनी अच्छी चीज़ें ले चुका और उसी तरह लाज़र बुरी चीज़ें ले चुका लेकिन अब वो यहाँ तसल्ली पाता है और तू तड़पता है",
|
||||
"26": "और इन सब बातों के सिवा हमारे तुम्हारे दरमियान एक बड़ा गड्ढा बनाया गया है कि जो यहाँ से तुम्हारी तरफ़ पार जाना चाहें न जा सकें और न कोई उधर से हमारी तरफ़ आ सके",
|
||||
"27": "उसने कहा पस ऐ बाप मैं तेरी गुज़ारिश करता हूँ कि तू उसे मेरे बाप के घर भेज",
|
||||
"28": "क्यूँकि मेरे पाँच भाई हैं ताकि वो उनके सामने इन बातों की गवाही दे ऐसा न हो कि वो भी इस अज़ाब की जगह में आएँ ",
|
||||
"29": "अब्राहम ने उससे कहा उनके पास मूसा और अम्बिया तो हैं उनकी सुनें ",
|
||||
"30": "उसने कहा नहीं ऐ बाप अब्राहम अगर कोई मुर्दों में से उनके पास जाए तो वो तौबा करेंगे",
|
||||
"31": "उसने उससे कहा जब वो मूसा और नबियों ही की नहीं सुनते तो अगर मुर्दों में से कोई जी उठे तो उसकी भी न सुनेंगे"
|
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}
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"1": "फिर उसने अपने शागिर्दों से कहा ये नहीं हो सकता कि ठोकरें न लगें लेकिन उस पर अफ़सोस है कि जिसकी वजह से लगें",
|
||||
"2": "इन छोटों में से एक को ठोकर खिलाने की बनिस्बत उस शख़्स के लिए ये बेहतर होता है कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता और वो समुन्द्र में फेंका जाता",
|
||||
"3": "ख़बरदार रहो अगर तेरा भाई गुनाह करे तो उसे डांट दे अगर वो तौबा करे तो उसे मुआफ़ कर ",
|
||||
"4": "और वो एक दिन में सात दफ़ा तेरा गुनाह करे और सातों दफ़ा तेरे पास फिर आकर कहे कि तौबा करता हूँ तो उसे मुआफ़ कर ",
|
||||
"5": "इस पर रसूलों ने ख़ुदावन्द से कहा हमारे ईमान को बढ़ा",
|
||||
"6": "ख़ुदावन्द ने कहा अगर तुम में राई के दाने के बराबर भी ईमान होता और तुम इस तूत के दरख़्त से कहते कि जड़ से उखड़ कर समुन्द्र में जा लग तो तुम्हारी मानता ",
|
||||
"7": "मगर तुम में ऐसा कौन है जिसका नौकर हल जोतता या भेड़ें चराता हो और जब वो खेत से आए तो उससे कहे जल्द आकर खाना खाने बैठ",
|
||||
"8": "और ये न कहे मेरा खाना तैयार कर और जब तक मैं खाऊँपियूँ कमर बाँध कर मेरी ख़िदमत कर उसके बाद तू भी खा पी लेना",
|
||||
"9": "क्या वो इसलिए उस नौकर का एहसान मानेगा कि उसने उन बातों को जिनका हुक्म हुआ तामील की",
|
||||
"10": "इसी तरह तुम भी जब उन सब बातों की जिनका तुम को हुक्म हुआ तामील कर चुको तो कहो हम निकम्मे नौकर हैं जो हम पर करना फ़र्ज़ था वही किया है",
|
||||
"11": "और अगर ऐसा कि यरूशलीम को जाते हुए वो सामरिया और गलील के बीच से होकर जा रहा था",
|
||||
"12": "और एक गाँव में दाख़िल होते वक़्त दस कोढ़ी उसको मिले",
|
||||
"13": "उन्होंने दूर खड़े होकर बुलन्द आवाज़ से कहा ऐ ईसा ऐ ख़ुदावंद हम पर रहम कर",
|
||||
"14": "उसने उन्हें देखकर कहा जाओ अपने आपको काहिनों को दिखाओ और ऐसा हुआ कि वो जातेजाते पाक साफ़ हो गए",
|
||||
"15": "फिर उनमें से एक ये देखकर कि मैं शिफ़ा पा गया हूँ बुलन्द आवाज़ से ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ लौटा ",
|
||||
"16": "और मुँह के बल ईसा के पाँव पर गिरकर उसका शुक्र करने लगा और वो सामरी था ",
|
||||
"17": "ईसा ने जवाब मे कहा क्या दसों पाक साफ़ न हुए फिर वो नौ कहाँ है",
|
||||
"18": "क्या इस परदेसी के सिवा और न निकले जो लौटकर ख़ुदा की बड़ाई करते",
|
||||
"19": "फिर उससे कहा उठ कर चला जा तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है ",
|
||||
"20": "जब फ़रीसियों ने उससे पूछा कि ख़ुदा की बादशाही कब आएगी तो उसने जवाब में उनसे कहा ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिरी तौर पर न आएगी ",
|
||||
"21": "और लोग ये न कहेंगे देखो यहाँ है या वहाँ है क्यूँकि देखो ख़ुदा की बादशाही तुम्हारे बीच है ",
|
||||
"22": "उसने शागिर्दों से कहा वो दिन आएँगे कि तुम इब्नएआदम के दिनों में से एक दिन को देखने की आरज़ू होगी और न देखोगे ",
|
||||
"23": "और लोग तुम से कहेंगे देखो वहाँ है या देखो यहाँ है मगर तुम चले न जाना न उनके पीछे हो लेना",
|
||||
"24": "क्यूँकि जैसे बिजली आसमान में एक तरफ़ से कौंध कर आसमान कि दूसरी तरफ़ चमकती हैवैसे ही इब्नेएआदम अपने दिन मे ज़ाहिर होगा",
|
||||
"25": "लेकिन पहले ज़रूर है कि वो बहुत दुख उठाए और इस ज़माने के लोग उसे रद्द करें",
|
||||
"26": "और जैसा नूह के दिनों में हुआ था उसी तरह इब्नएआदम के दिनों में होगा",
|
||||
"27": "कि लोग खाते पीते थे और उनमें ब्याह शादी होती थीं उस दिन तक जब नूह नाव में दाख़िल हुआ और तूफ़ान ने आकर सबको हलाक़ किया",
|
||||
"28": "और जैसा लूत के दिनों में हुआ था कि लोग खातेपीते और खरीदओफ़रोख्त करते और दरख़्त लगाते और घर बनाते थे",
|
||||
"29": "लेकिन जिस दिन लूत सदूम से निकला आग और गन्धक ने आसमान से बरस कर सबको हलाक किया",
|
||||
"30": "इब्नएआदम के ज़ाहिर होने के दिन भी ऐसा ही होगा ",
|
||||
"31": "इस दिन जो छत पर हो और उसका अस्बाब घर में हो वो उसे लेने को न उतरे और इसी तरह जो खेत में हो वो पीछे को न लौटे",
|
||||
"32": "लूत की बीवी को याद रख्खो",
|
||||
"33": "जो कोई अपनी जान बचाने की कोशिश करे वो उसको खोएगा और जो कोई उसे खोए वो उसको ज़िंदा रख्खेगा ",
|
||||
"34": "मैं तुम से कहता हूँ कि उस रात दो आदमी एक चारपाई पर सोते होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा",
|
||||
"35": "दो औरतें एक साथ चक्की पीसती होंगी एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी",
|
||||
"36": "[दो आदमी जो खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा|\"] ",
|
||||
"37": "उन्होंने जवाब में उससे कहा ऐ ख़ुदावन्द ये कहाँ होगा उसने उनसे कहा जहाँ मुरदार हैं वहाँ गिद्ध भी जमा होंगे"
|
||||
}
|
|
@ -0,0 +1,45 @@
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|||
{
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||||
"1": "फिर उसने इस ग़रज़ से कि हर वक़्त दुआ करते रहना और हिम्मत न हारना चाहिए उसने ये मिसाल कही",
|
||||
"2": "किसी शहर में एक क़ाज़ी था न वो ख़ुदा से डरता न आदमी की कुछ परवा करता था",
|
||||
"3": "और उसी शहर में एक बेवा थी जो उसके पास आकर ये कहा करती थी मेरा इन्साफ़ करके मुझे मुद्दई से बचा",
|
||||
"4": "उसने कुछ अरसे तक तो न चाहा लेकिन आख़िर उसने अपने जी में कहा गरचे मैं न ख़ुदा से डरता और न आदमियों की कुछ परवा करता हूँ",
|
||||
"5": "तोभी इसलिए कि ये बेवा मुझे सताती है मैं इसका इन्साफ़ करूँगा ऐसा न हो कि ये बारबार आकर आख़िर को मेरी नाक में दम करे",
|
||||
"6": "ख़ुदावन्द ने कहा सुनो ये बेइन्साफ़ क़ाज़ी क्या कहता है",
|
||||
"7": "पस क्या ख़ुदा अपने चुने हुए का इन्साफ़ न करेगा जो रात दिन उससे फ़रियाद करते हैं",
|
||||
"8": "मैं तुम से कहता हूँ कि वो जल्द उनका इन्साफ़ करेगा तोभी जब इब्नएआदम आएगा तो क्या ज़मीन पर ईमान पाएगा ",
|
||||
"9": "फिर उसने कुछ लोगों से जो अपने पर भरोसा रखते थे कि हम रास्तबाज़ हैं और बाक़ी आदमियों को नाचीज़ जानते थे ये मिसाल कही",
|
||||
"10": "दो शख़्स हैकल में दूआ करने गए एक फ़रीसी दूसरा महसूल लेनेवाला ",
|
||||
"11": "फ़रीसी खड़ा होकर अपने जी में यूँ दुआ करने लगा ऐ ख़ुदा मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि बाक़ी आदमियों की तरह ज़ालिम बेइन्साफ़ ज़िनाकार या इस महसूल लेनेवाले की तरह नहीं हूँ",
|
||||
"12": "मैं हफ़्ते में दो बार रोज़ा रखता और अपनी सारी आमदनी पर दसवां हिस्सा देता हूँ",
|
||||
"13": "लेकिन महसूल लेने वाले ने दूर खड़े होकर इतना भी न चाहा कि आसमान की तरफ़ आँख उठाए बल्कि छाती पीट पीट कर कहा ऐ ख़ुदामुझ गुनहगार पर रहम कर",
|
||||
"14": "मैं तुम से कहता हूँ कि ये शख़्स दूसरे की निस्बत रास्तबाज़ ठहरकर अपने घर गया क्यूँकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा वो छोटा किया जाएगा और जो अपने आपको छोटा बनाएगा वो बड़ा किया जाएगा",
|
||||
"15": "फिर लोग अपने छोटे बच्चों को भी उसके पास लाने लगे ताकि वो उनको छूए और शागिर्दों ने देखकर उनको झिड़का ",
|
||||
"16": "मगर ईसा ने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा बच्चों को मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही ऐंसों ही की है",
|
||||
"17": "मैं तुम से सच कहता हूँ कि जो कोई ख़ुदा की बादशाही को बच्चे की तरह क़ुबूल न करे वो उसमें हरगिज़ दाख़िल न होगा",
|
||||
"18": "फिर किसी सरदार ने उससे ये सवाल किया ऐ उस्ताद मैं क्या करूँ ताकि हमेशा की ज़िन्दगी का वारिस बनूँ",
|
||||
"19": "ईसा ने उससे कहा तू मुझे क्यूँ नेक कहता है कोई नेक नहीं मगर एक यानी ख़ुदा ",
|
||||
"20": "तू हुक्मों को जानता है ज़िना न कर ख़ून न कर चोरी न कर झूटी गवाही न दे अपने बाप और माँ की इज़्ज़त कर",
|
||||
"21": "उसने कहा मैंने लड़कपन से इन सब पर अमल किया है",
|
||||
"22": "ईसा ने ये सुनकर उससे कहा अभी तक तुझ में एक बात की कमी है अपना सब कुछ बेचकर ग़रीबों को बाँट दे तुझे आसमान पर ख़ज़ाना मिलेगा और आकर मेरे पीछे हो ले",
|
||||
"23": "ये सुन कर वो बहुत ग़मगीन हुआ क्यूँकि बड़ा दौलतमन्द था ",
|
||||
"24": "ईसा ने उसको देखकर कहा दौलतमन्द का ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल होना कैसा मुश्किल है ",
|
||||
"25": "क्यूँकि ऊँट का सूई के नाके में से निकल जाना इससे आसान है कि दौलतमन्द ख़ुदा की बादशाही में दाख़िल हो ",
|
||||
"26": "सुनने वालो ने कहा तो फिर कौन नजात पा सकता है",
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||||
"27": "उसने कहा जो इन्सान से नहीं हो सकता वो ख़ुदा से हो सकता है ",
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"28": "पतरस ने कहा देख हम तो अपना घरबार छोड़कर तेरे पीछे हो लिए हैं",
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"29": "उसने उनसे कहा मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने घर या बीवी या भाइयों या माँ बाप या बच्चों को ख़ुदा की बादशाही की ख़ातिर छोड़ दिया हो ",
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"30": "और इस ज़माने में कई गुना ज़्यादा न पाए और आने वाले आलम में हमेशा की ज़िन्दगी ",
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"31": "फिर उसने उन बारह को साथ लेकर उनसे कहा देखो हम यरूशलीम को जाते हैं और जितनी बातें नबियों के ज़रिये लिखी गईं हैं इब्नएआदम के हक़ में पूरी होंगी",
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"32": "क्यूँकि वो ग़ैर क़ौम वालों के हवाले किया जाएगा और लोग उसको ठटठों में उड़ाएँगे और बेइज़्ज़त करेंगे और उस पर थूकेगे ",
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"33": "और उसको कोड़े मारेंगे और क़त्ल करेंगे और वो तीसरे दिन जी उठेगा ",
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"34": "लेकिन उन्होंने इनमें से कोई बात न समझी और ये कलाम उन पर छिपा रहा और इन बातों का मतलब उनकी समझ में न आया",
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"35": "जो वो चलतेचलते यरीहू के नज़दीक पहुँचा तो ऐसा हुआ कि एक अन्धा रास्ते के किनारे बैठा हुआ भीख माँग रहा था",
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"36": "वो भीड़ के जाने की आवाज़ सुनकर पूछने लगा ये क्या हो रहा है",
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"37": "उन्होंने उसे ख़बर दी ईसा नासरी जा रहा है",
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"38": "उसने चिल्लाकर कहा ऐ ईसा इब्नएदाऊद मुझ पर रहम कर",
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"39": "जो आगे जाते थे वो उसको डाँटने लगे कि चुप रह मगर वो और भी चिल्लाया ऐ इब्नएदाऊद मुझ पर रहम कर",
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"40": "ईसा ने खड़े होकर हुक्म दिया कि उसको मेरे पास ले आओजब वो नज़दीक आया तो उसने उससे ये पूंछा ",
|
||||
"41": "तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ उसने कहा ऐ ख़ुदावन्द मैं देखने लगूं ",
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||||
"42": "ईसा ने उससे कहा बीना हो जा तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया",
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"43": "वो उसी वक़्त देखने लगा और ख़ुदा की बड़ाई करता हुआ उसके पीछे हो लिया और सब लोगों ने देखकर ख़ुदा की तारीफ़ की"
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}
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@ -0,0 +1,50 @@
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"1": "फिर ईसा यरीहू में दाख़िल हुआ और उस में से होकर गुज़रने लगा",
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"2": "उस शहर में एक अमीर आदमी ज़क्काई नाम का रहता था जो महसूल लेने वालों का अफ़्सर था",
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||||
"3": "वह जानना चाहता था कि यह ईसा कौन है लेकिन पूरी कोशिश करने के बावुजूद उसे देख न सका क्यूँकि ईसा के आस पास बड़ा हुजूम था और ज़क्काई का क़द छोटा था",
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"4": "इस लिए वह दौड़ कर आगे निकला और उसे देखने के लिए गूलर के दरख़्त पर चढ़ गया जो रास्ते में था ",
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"5": "जब ईसा वहाँ पहुँचा तो उस ने नज़र उठा कर कहा ज़क्काई जल्दी से उतर आ क्यूँकि आज मुझे तेरे घर में ठहरना है",
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"6": "ज़क्काई फ़ौरन उतर आया और ख़ुशी से उस की मेहमाननवाज़ी की",
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"7": "जब लोगों ने ये देखा तो सब बुदबुदाने लगे कि वह एक गुनाहगार के यहाँ मेहमान बन गया है",
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"8": "लेकिन ज़क्काई ने ख़ुदावन्द के सामने खड़े हो कर कहा ख़ुदावन्द मैं अपने माल का आधा हिस्सा ग़रीबों को दे देता हूँ और जिससे मैं ने नाजायज़ तौर से कुछ लिया है उसे चार गुना वापस करता हूँ ",
|
||||
"9": "ईसा ने उस से कहा आज इस घराने को नजात मिल गई है इस लिए कि यह भी इब्राहम का बेटा है ",
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"10": "क्यूँकि इब्नएआदम खोये हुए को ढूँडने और नजात देने के लिए आया है",
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||||
"11": "अब ईसा यरूशलम के क़रीब आ चुका था इस लिए लोग अन्दाज़ा लगाने लगे कि ख़ुदा की बादशाही ज़ाहिर होने वाली है इस के पेशएनज़र ईसा ने अपनी यह बातें सुनने वालों को एक मिसाल सुनाई",
|
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"12": "उस ने कहा एक जागीरदार किसी दूरदराज़ मुल्क को चला गया ताकि उसे बादशाह मुक़र्रर किया जाए फिर उसे वापस आना था",
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"13": "रवाना होने से पहले उस ने अपने नौकरों में से दस को बुला कर उन्हें सोने का एक एक सिक्का दिया साथ साथ उस ने कहा यह पैसे ले कर उस वक़्त तक कारोबार में लगाओ जब तक मैं वापस न आऊँ",
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||||
"14": "लेकिन उस की रिआया उस से नफ़रत रखती थी इस लिए उस ने उस के पीछे एलची भेज कर इत्तिला दी हम नहीं चाहते कि यह आदमी हमारा बादशाह बने ",
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||||
"15": "तो भी उसे बादशाह मुक़र्रर किया गया इस के बाद जब वापस आया तो उस ने उन नौकरों को बुलाया जिन्हें उस ने पैसे दिए थे ताकि मालूम करे कि उन्हों ने यह पैसे कारोबार में लगा कर कितना मुनाफ़ा किया है",
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||||
"16": "पहला नौकर आया उस ने कहा जनाब आप के एक सिक्के से दस हो गए हैं",
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"17": "मालिक ने कहा शाबाश अच्छे नौकर तू थोड़े में वफ़ादार रहा इस लिए अब तुझे दस शहरों पर इख़तियार दिया",
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"18": "फिर दूसरा नौकर आया उस ने कहा जनाब आप के एक सिक्के से पाँच हो गए हैं",
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||||
"19": "मालिक ने उस से कहा तुझे पाँच शहरों पर इख़तियार दिया ",
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"20": "फिर एक और नौकर आ कर कहने लगा जनाब यह आप का सिक्का है मैं ने इसे कपड़े में लपेट कर मह्फ़ूज़ रखा",
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||||
"21": "क्यूँकि मैं आप से डरता था इस लिए कि आप सख़्त आदमी हैं जो पैसे आप ने नहीं लगाए उन्हें ले लेते हैं और जो बीज आप ने नहीं बोया उस की फ़सल काटते हैं",
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||||
"22": "मालिक ने कहा शरीर नौकर मैं तेरे अपने अल्फ़ाज़ के मुताबिक़ तेरा फ़ैसला करूँगा जब तू जानता था कि मैं सख़्त आदमी हूँ कि वह पैसे ले लेता हूँ जो ख़ुद नहीं लगाए और वह फ़सल काटता हूँ जिस का बीज नहीं बोया ",
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"23": "तो फिर तूने मेरे पैसे साहूकार के यहाँ क्यों न जमा कराए अगर तू ऐसा करता तो वापसी पर मुझे कम अज़ कम वह पैसे सूद समेत मिल जाते",
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"24": "और उसने उनसे कहा यह सिक्का इससे ले कर उस नौकर को दे दो जिस के पास दस सिक्के हैं",
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"25": "उन्होंने उससे कहा ऐ ख़ुदावंद उस के पास तो पहले ही दस सिक्के हैं",
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"26": "उस ने जवाब दिया मैं तुम्हें बताता हूँ कि हर शख़्स जिस के पास कुछ है उसे और दिया जाएगा लेकिन जिस के पास कुछ नहीं है उस से वह भी छीन लिया जाएगा जो उस के पास है",
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"27": "अब उन दुश्मनों को ले आओ जो नहीं चाहते थे कि मैं उन का बादशाह बनूँ उन्हें मेरे सामने फाँसी दे दो",
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"28": "इन बातों के बाद ईसा दूसरों के आगे आगे यरूशलीम की तरफ़ बढ़ने लगा",
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||||
"29": "जब वह बैतफ़गे और बैतअनियाह गाँव के क़रीब पहुँचा जो ज़ैतून के पहाड़ पर आबाद थे तो उस ने दो शागिर्दों को अपने आगे भेज कर कहा ",
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"30": "सामने वाले गाँव में जाओ वहाँ तुम एक जवान गधा देखोगे वह बंधा हुआ होगा और अब तक कोई भी उस पर सवार नहीं हुआ है उसे खोल कर ले आओ ",
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"31": "अगर कोई पूछे कि गधे को क्यूँ खोल रहे हो तो उसे बता देना कि ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है ",
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"32": "दोनों शागिर्द गए तो देखा कि सब कुछ वैसा ही है जैसा ईसा ने उन्हें बताया था",
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"33": "जब वह जवान गधे को खोलने लगे तो उस के मालिकों ने पूछा तुम गधे को क्यूँ खोल रहे हो",
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"34": "उन्हों ने जवाब दिया ख़ुदावन्द को इस की ज़रूरत है ",
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"35": "वह उसे ईसा के पास ले आए और अपने कपड़े गधे पर रख कर उसको उस पर सवार किया",
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||||
"36": "जब वह चल पड़ा तो लोगों ने उस के आगे आगे रास्ते में अपने कपड़े बिछा दिए",
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||||
"37": "चलते चलते वह उस जगह के क़रीब पहुँचा जहाँ रास्ता ज़ैतून के पहाड़ पर से उतरने लगता है इस पर शागिर्दों का पूरा हुजूम ख़ुशी के मारे ऊँची आवाज़ से उन मोजिज़ों के लिए ख़ुदा की बड़ाई करने लगा जो उन्होंने देखे थे",
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"38": "मुबारक है वह बादशाह जो ख़ुदावंद के नाम से आता है आस्मान पर सलामती हो और बुलन्दियों पर इज़्ज़तओजलाल",
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"39": "कुछ फ़रीसी भीड़ में थे उन्होंने ईसा से कहा उस्ताद अपने शागिर्दों को समझा दें",
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||||
"40": "उस ने जवाब दिया मैं तुम्हें बताता हूँ अगर यह चुप हो जाएँ तो पत्थर पुकार उठेंगे",
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"41": "जब वह यरूशलीम के क़रीब पहुँचा तो शहर को देख कर रो पड़ा",
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"42": "और कहा काश तू भी उस दिन पहचान लेती कि तेरी सलामती किस में है लेकिन अब यह बात तेरी आँखों से छुपी हुई है",
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||||
"43": "क्यूँकि तुझ पर ऐसा वक़्त आएगा कि तेरे दुश्मन तेरे चारों तरफ बन्द बाँध कर तेरा घेरा करेंगे और यूँ तुझे तंग करेंगे",
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"44": "वह तुझे तेरे बच्चों समेत ज़मीन पर पटकेंगे और तेरे अन्दर एक भी पत्थर दूसरे पर नहीं छोड़ेंगे और वजह यही होगी कि तू ने वह वक़्त नहीं पहचाना जब ख़ुदावंद ने तेरी नजात के लिए तुझ पर नज़र की",
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"45": "फिर ईसा बैतउलमुक़द्दस में जा कर बेचने वालों को निकालने लगा ",
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"46": "और उसने कहा लिखा है मेरा घर दुआ का घर होगा मगर तुम ने उसे डाकुओं के अड्डे में बदल दिया है",
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"47": "और वह रोज़ाना बैतउलमुक़द्दस में तालीम देता रहा लेकिन बैतउलमुक़द्दस के रहनुमा इमाम शरीअत के आलिम और अवामी रहनुमा उसे क़त्ल करने की कोशिश में थे",
|
||||
"48": "अलबत्ता उन्हें कोई मौक़ा न मिला क्यूँकि तमाम लोग ईसा की हर बात सुन सुन कर उस से लिपटे रहते थे"
|
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}
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{
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"1": "उन दिनों में ऐसा हुआ कि क़ैसर औगुस्तुस की तरफ़ से ये हुक्म जारी हुआ कि सारी दुनियाँ के लोगों के नाम लिखे जाएँ",
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"2": "ये पहली इस्म नवीसी सूरिया के हाकिम कोरिन्युस के अहद में हुई",
|
||||
"3": "और सब लोग नाम लिखवाने के लिए अपनेअपने शहर को गए ",
|
||||
"4": "पस यूसुफ भी गलील के शहर नासरत से दाऊद के शहर बैतलहम को गया जो यहूदिया में है इसलिए कि वो दाऊद के घराने और औलाद से था",
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||||
"5": "ताकि अपनी होने वाली बीवी मरियम के साथ जो हामिला थी नाम लिखवाए",
|
||||
"6": "जब वो वहाँ थे तो ऐसा हुआ कि उसके वज़ाएहम्ल का वक़्त आ पहुँचा",
|
||||
"7": "और उसका पहलौठा बेटा पैदा हुआ और उसने उसको कपड़े में लपेट कर चरनी में रख्खा क्यूँकि उनके लिए सराय में जगह न थी ",
|
||||
"8": "उसी इलाक़े में चरवाहे थे जो रात को मैदान में रहकर अपने गल्ले की निगहबानी कर रहे थे",
|
||||
"9": "और ख़ुदावन्द का फ़रिश्ता उनके पास आ खड़ा हुआ और ख़ुदावन्द का जलाल उनके चारोंतरफ़ चमका और वो बहुत डर गए",
|
||||
"10": "मगर फ़रिश्ते ने उनसे कहा डरो मत क्यूँकि देखो मैं तुम्हें बड़ी ख़ुशी की बशारत देता हूँ जो सारी उम्मत के वास्ते होगी ",
|
||||
"11": "कि आज दाऊद के शहर में तुम्हारे लिए एक मुन्जी पैदा हुआ है यानी मसीह ख़ुदावन्द",
|
||||
"12": "इसका तुम्हारे लिए ये निशान है कि तुम एक बच्चे को कपड़े में लिपटा और चरनी में पड़ा हुआ पाओगे",
|
||||
"13": "और यकायक उस फ़रिश्ते के साथ आसमानी लश्कर की एक गिरोह ख़ुदा की हम्द करती और ये कहती ज़ाहिर हुई कि",
|
||||
"14": "आलमएबाला पर ख़ुदा की तम्जीद हो और ज़मीन पर आदमियों में जिनसे वो राज़ी है सुलह ",
|
||||
"15": "जब फ़रिश्ते उनके पास से आसमान पर चले गए तो ऐसा हुआ कि चरवाहों ने आपस में कहा आओ बैतलहम तक चलें और ये बात जो हुई है और जिसकी ख़ुदावन्द ने हम को ख़बर दी है देखें",
|
||||
"16": "पस उन्होंने जल्दी से जाकर मरियम और यूसुफ़ को देखा और इस बच्चे को चरनी में पड़ा पाया",
|
||||
"17": "उन्हें देखकर वो बात जो उस लड़के के हक़ में उनसे कही गई थी मशहूर की",
|
||||
"18": "और सब सुनने वालों ने इन बातों पर जो चरवाहों ने उनसे कहीं ताज्जुब किया",
|
||||
"19": "मगर मरियम इन सब बातों को अपने दिल में रखकर ग़ौर करती रही",
|
||||
"20": "और चरवाहे जैसा उनसे कहा गया था वैसा ही सब कुछ सुन कर और देखकर ख़ुदा की तम्जीद और हम्द करते हुए लौट गए",
|
||||
"21": "जब आठ दिन पुरे हुए और उसके ख़तने का वक़्त आया तो उसका नाम ईसा रख्खा गया जो फ़रिश्ते ने उसके रहम में पड़ने से पहले रख्खा था",
|
||||
"22": "फिर जब मूसा की शरिअत के मुवाफ़िक़ उनके पाक होने के दिन पुरे हो गए तो वो उसको यरूशलीम में लाए ताकि ख़ुदावन्द के आगे हाज़िर करें",
|
||||
"23": "जैसा कि ख़ुदावन्द की शरीअत में लिखा है कि हर एक पहलौठा ख़ुदावन्द के लिए मुक़द्दस ठहरेगा",
|
||||
"24": "और ख़ुदावन्द की शरीअत के इस क़ौल के मुवाफ़िक़ क़ुर्बानी करें कि फ़ाख़्ता का एक जोड़ा या कबूतर के दो बच्चे लाओ",
|
||||
"25": "और देखो यरूशलीम में शमाऊन नाम एक आदमी था और वो आदमी रास्तबाज़ और ख़ुदातरस और इस्राईल की तसल्ली का मुन्तिज़र था और रूहउलक़ुद्दूस उस पर था ",
|
||||
"26": "और उसको रूहउलक़ुद्दूस से आगाही हुई थी कि जब तक तू ख़ुदावन्द के मसीह को देख न ले मौत को न देखेगा ",
|
||||
"27": "वो रूह की हिदायत से हैकल में आया और जिस वक़्त माँबाप उस लड़के ईसा को अन्दर लाए ताकि उसके शरीअत के दस्तूर पर अमल करें ",
|
||||
"28": "तो उसने उसे अपनी गोद में लिया और ख़ुदा की हम्द करके कहा ",
|
||||
"29": "ऐ मालिक अब तू अपने ख़ादिम को अपने क़ौल के मुवाफ़िक़ सलामती से रुख़्सत करता है",
|
||||
"30": "क्यूँकि मेरी आँखों ने तेरी नजात देख ली है",
|
||||
"31": "जो तूने सब उम्मतों के रुबरु तैयार की है",
|
||||
"32": "ताकि ग़ैर कौमों को रौशनी देने वाला नूर और तेरी उम्मत इस्राईल का जलाल बने",
|
||||
"33": "और उसका बाप और उसकी माँ इन बातों पर जो उसके हक़ में कही जाती थीं ताज्जुब करते थे",
|
||||
"34": "और शमाऊन ने उनके लिए दुआएख़ैर की और उसकी माँ मरियम से कहा देख ये इस्राईल में बहुतों के गिरने और उठने के लिए मुक़र्रर हुआ है जिसकी मुख़ालिफ़त की जाएगी ",
|
||||
"35": "बल्कि तेरी जान भी तलवार से छिद जाएगी ताकि बहुत लोगों के दिली ख़याल खुल जाएँ ",
|
||||
"36": "और आशर के क़बीले में से हन्ना नाम फ़नूएल की बेटी एक नबीया थी वो बहुत बूढी थी और उसने अपने कूँवारेपन के बाद सात बरस एक शौहर के साथ गुज़ारे थे",
|
||||
"37": "वो चौरासी बरस से बेवा थी और हैकल से जुदा न होती थी बल्कि रात दिन रोज़ों और दुआओं के साथ इबादत किया करती थी",
|
||||
"38": "और वो उसी घड़ी वहाँ आकर ख़ुदा का शुक्र करने लगी और उन सब से जो यरूशलीम के छुटकारे के मुन्तज़िर थे उसके बारे मे बातें करने लगी",
|
||||
"39": "और जब वो ख़ुदावन्द की शरीअत के मुवाफ़िक़ सब कुछ कर चुके तो गलील में अपने शहर नासरत को लौट गए",
|
||||
"40": "और वो लड़का बढ़ता और ताक़त पाता गया और हिकमत से मामूर होता गया और ख़ुदा का फ़ज़ल उस पर था",
|
||||
"41": "उसके माँबाप हर बरस ईदएफ़सह पर यरूशलीम को जाया करते थे ",
|
||||
"42": "और जब वो बारह बरस का हुआ तो वो ईद के दस्तूर के मुवाफ़िक़ यरूशलीम को गए",
|
||||
"43": "जब वो उन दिनों को पूरा करके लौटे तो वो लड़का ईसा यरूशलीम में रह गया और उसके माँबाप को ख़बर न हुई",
|
||||
"44": "मगर ये समझ कर कि वो क़ाफ़िले में है एक मंज़िल निकल गए और उसके रिश्तेदारों और उसके जान पहचानों मे ढूँढने लगे",
|
||||
"45": "जब न मिला तो उसे ढूँदते हुए यरूशलीम तक वापस गए",
|
||||
"46": "और तीन रोज़ के बाद ऐसा हुआ कि उन्होंने उसे हैकल में उस्तादों के बीच में बैठा उनकी सुनते और उनसे सवाल करते हुए पाया ",
|
||||
"47": "जितने उसकी सुन रहे थे उसकी समझ और उसके जवाबों से दंग थे",
|
||||
"48": "और वो उसे देखकर हैरान हुए उसकी माँ ने उससे कहा बेटा तू ने क्यूँ हम से ऐसा किया देख तेरा बाप और मैं घबराते हुए तुझे ढूँढ़ते थे",
|
||||
"49": "उसने उनसे कहा तुम मुझे क्यूँ ढूँढ़ते थे क्या तुम को मालूम न था कि मुझे अपने बाप के यहाँ होना ज़रूर है",
|
||||
"50": "मगर जो बात उसने उनसे कही उसे वो न समझे ",
|
||||
"51": "और वो उनके साथ रवाना होकर नासरत में आया और उनके साथ रहा और उसकी माँ ने ये सब बातें अपने दिल में रख्खीं",
|
||||
"52": "और ईसा हिकमत और क़दओक़ामत में और ख़ुदा की और इंसान की मक़बूलियत में तरक़्क़ी करता गया"
|
||||
}
|
|
@ -0,0 +1,49 @@
|
|||
{
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||||
"1": "एक दिन जब वह बैतउलमुक़द्दस में लोगों को तालीम दे रहा और ख़ुदावंद की ख़ुशख़बरी सुना रहा था तो रहनुमा इमाम शरीअत के उलमा और बुज़ुर्ग उस के पास आए ",
|
||||
"2": "उन्हों ने कहा हमें बताएँ आप यह किस इख़्तियार से कर रहे हैं किस ने आप को यह इख़्तियार दिया है ",
|
||||
"3": "ईसा ने जवाब दिया मेरा भी तुम से एक सवाल है तुम मुझे बताओ ",
|
||||
"4": "कि क्या युहन्ना का बपतिस्मा आस्मानी था या इन्सानी ",
|
||||
"5": "वह आपस में बह्स करने लगे अगर हम कहें आस्मानी तो वह पूछेगा तो फिर तुम उस पर ईमान क्यूँ न लाए",
|
||||
"6": "लेकिन अगर हम कहें इन्सानी तो तमाम लोग हम पर पत्थर मारेंगे क्यूँकि वह तो यक़ीन रखते हैं कि युहन्ना नबी था ",
|
||||
"7": "इस लिए उन्हों ने जवाब दिया हम नहीं जानते कि वह कहाँ से था",
|
||||
"8": "ईसा ने कहा तो फिर मैं भी तुम को नहीं बताता कि मैं यह सब कुछ किस इख़्तियार से कर रहा हूँ",
|
||||
"9": "फिर ईसा लोगों को यह मिसाल सुनाने लगा किसी आदमी ने अंगूर का एक बाग़ लगाया फिर वह उसे बाग़बानों को ठेके पर देकर बहुत दिनों के लिए बाहरी मुल्क चला गया",
|
||||
"10": "जब अंगूर पक गए तो उस ने अपने नौकर को उन के पास भेज दिया ताकि वह मालिक का हिस्सा वसूल करे लेकिन बाग़बानों ने उस की पिटाई करके उसे ख़ाली हाथ लौटा दिया",
|
||||
"11": "इस पर मालिक ने एक और नौकर को उन के पास भेजा लेकिन बागबानों ने उसे भी मार मार कर उस की बेइज़्ज़ती की और ख़ाली हाथ निकाल दिया",
|
||||
"12": "फिर मालिक ने तीसरे नौकर को भेज दिया उसे भी उन्होंने मार कर ज़ख़्मी कर दिया और निकाल दिया",
|
||||
"13": "बाग़ के मालिक ने कहा अब मैं क्या करूँ मैं अपने प्यारे बेटे को भेजूँगा शायद वह उस का लिहाज़ करें",
|
||||
"14": "लेकिन मालिक के बेटे को देख कर बाग़बानों ने आपस में मशवरा किया और कहा यह ज़मीन का वारिस है आओ हम इसे मार डालें फिर इस की मीरास हमारी ही होगी",
|
||||
"15": "उन्होंने उसे बाग़ से बाहर फैंक कर क़त्ल किया ईसा ने पूछा अब बताओ बाग़ का मालिक क्या करेगा ",
|
||||
"16": "वह वहाँ जा कर बाग़बानों को हलाक करेगा और बाग़ को दूसरों के हवाले कर देगा यह सुन कर लोगों ने कहा ख़ुदा ऐसा कभी न करे",
|
||||
"17": "ईसा ने उन पर नज़र डाल कर पूछा तो फिर कलामएमुक़द्दस के इस हवाले का क्या मतलब है कि जिस पत्थर को राजगीरों ने रद्द किया वह कोने का बुन्यादी पत्थर बन गया",
|
||||
"18": "जो इस पत्थर पर गिरेगा वह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा जबकि जिस पर वह ख़ुद गिरेगा उसे पीस डालेगा",
|
||||
"19": "शरीअत के उलमा और राहनुमा इमामों ने उसी वक़्त उसे पकड़ने की कोशिश की क्यूँकि वह समझ गए थे कि मिसाल में बयान होने वाले हम ही हैं लेकिन वह अवाम से डरते थे",
|
||||
"20": "चुनाँचे वह उसे पकड़ने का मौक़ा ढूँडते रहे इस मक़्सद के तहत उन्होंने उस के पास जासूस भेज दिए यह लोग अपने आप को ईमानदार ज़ाहिर करके ईसा के पास आए ताकि उस की कोई बात पकड़ कर उसे रोमी हाकिम के हवाले कर सकें",
|
||||
"21": "इन जासूसों ने उस से पूछा उस्ताद हम जानते हैं कि आप वही कुछ बयान करते और सिखाते हैं जो सहीह है आप तरफ़दारी नहीं करते बल्कि दियानतदारी से ख़ुदा की राह की तालीम देते हैं",
|
||||
"22": "अब हमें बताएँ कि क्या रोमी हाकिम को महसूल देना जायज़ है या नाजायज़ ",
|
||||
"23": "लेकिन ईसा ने उन की चालाकी भाँप ली और कहा ",
|
||||
"24": "मुझे चाँदी का एक रोमी सिक्का दिखाओ किस की सूरत और नाम इस पर बना है उन्हों ने जवाब दिया क़ैसर का",
|
||||
"25": "उस ने कहा तो जो क़ैसर का है क़ैसर को दो और जो ख़ुदा का है ख़ुदा को",
|
||||
"26": "यूँ वह अवाम के सामने उस की कोई बात पकड़ने में नाकाम रहे उस का जवाब सुन कर वह हक्काबक्का रह गए और मज़ीद कोई बात न कर सके",
|
||||
"27": "फिर कुछ सदूक़ी उस के पास आए सदूक़ी नहीं मानते थे कि रोज़एक़यामत में मुर्दे जी उठेंगे उन्हों ने ईसा से एक सवाल किया",
|
||||
"28": "उस्ताद मूसा ने हमें हुक्म दिया कि अगर कोई शादीशुदा आदमी बेऔलाद मर जाए और उस का भाई हो तो भाई का फ़र्ज़ है कि वह बेवा से शादी करके अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे",
|
||||
"29": "अब फ़र्ज़ करें कि सात भाई थे पहले ने शादी की लेकिन बेऔलाद मर गया",
|
||||
"30": "इस पर दूसरे ने उस से शादी की लेकिन वह भी बेऔलाद मर गया",
|
||||
"31": "फिर तीसरे ने उस से शादी की यह सिलसिला सातवें भाई तक जारी रहा इसके बाद हर भाई बेवा से शादी करने के बाद मर गया ",
|
||||
"32": "आख़िर में बेवा की भी मौत हो गई",
|
||||
"33": "अब बताएँ कि क़यामत के दिन वह किस की बीवी होगी क्यूँकि सात के सात भाइयों ने उस से शादी की थी",
|
||||
"34": "ईसा ने जवाब दिया इस ज़माने में लोग ब्याहशादी करते और कराते हैं",
|
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"35": "लेकिन जिन्हें ख़ुदा आने वाले ज़माने में शरीक होने और मुर्दों में से जी उठने के लायक़ समझता है वह उस वक़्त शादी नहीं करेंगे न उन की शादी किसी से कराई जाएगी",
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"36": "वह मर भी नहीं सकेंगे क्यूँकि वह फ़रिश्तों की तरह होंगे और क़यामत के फ़र्ज़न्द होने के बाइस ख़ुदा के फ़र्ज़न्द होंगे ",
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"37": "और यह बात कि मुर्दे जी उठेंगे मूसा से भी ज़ाहिर की गई है क्यूँकि जब वह काँटेदार झाड़ी के पास आया तो उस ने ख़ुदा को यह नाम दिया अब्राहम का ख़ुदा इस्हाक़ का ख़ुदा और याक़ूब का ख़ुदा हालाँकि उस वक़्त तीनों बहुत पहले मर चुके थे इस का मतलब है कि यह हक़ीक़त में ज़िन्दा हैं",
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"38": "क्यूँकि ख़ुदा मुर्दों का नहीं बल्कि ज़िन्दों का ख़ुदा है उस के नज़्दीक यह सब ज़िन्दा हैं",
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"39": "यह सुन कर शरीअत के कुछ उलमा ने कहा शाबाश उस्ताद आप ने अच्छा कहा है",
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"40": "इस के बाद उन्हों ने उस से कोई भी सवाल करने की हिम्मत न की",
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"41": "फिर ईसा ने उन से पूछा मसीह के बारे में क्यूँ कहा जाता है कि वह दाऊद का बेटा है",
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"42": "क्यूँकि दाऊद ख़ुद ज़बूर की किताब में फ़रमाता है ख़ुदा ने मेरे ख़ुदा से कहा मेरे दाहिने हाथ बैठ",
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"43": "जब तक मैं तेरे दुश्मनों को तेरे पैरों की चौकी न बना दूँ",
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"44": "दाऊद तो ख़ुद मसीह को ख़ुदा कहता है तो फिर वह किस तरह दाऊद का बेटा हो सकता है",
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"45": "जब लोग सुन रहे थे तो उस ने अपने शागिर्दों से कहा",
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"46": "शरीअत के उलमा से ख़बरदार रहो क्यूँकि वह शानदार चोग़े पहन कर इधर उधर फिरना पसन्द करते हैं जब लोग बाज़ारों में सलाम करके उन की इज़्ज़त करते हैं तो फिर वह ख़ुश हो जाते हैं उन की बस एक ही ख़्वाहिश होती है कि इबादतख़ानों और दावतों में इज़्ज़त की कुर्सियों पर बैठ जाएँ",
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||||
"47": "यह लोग बेवाओं के घर हड़प कर जाते और साथ साथ दिखावे के लिए लम्बी लम्बी दुआएँ माँगते हैं ऐसे लोगों को निहायत सख़्त सज़ा मिलेगी"
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"1": "ईसा ने नज़र उठा कर देखा कि अमीर लोग अपने हदिए बैतउलमुक़द्दस के चन्दे के बक्से में डाल रहे हैं",
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"2": "एक ग़रीब बेवा भी वहाँ से गुज़री जिस ने उस में ताँबे के दो मामूली से सिक्के डाल दिए",
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"3": "ईसा ने कहा मैं तुम को सच बताता हूँ कि इस ग़रीब बेवा ने तमाम लोगों की निस्बत ज़्यादा डाला है",
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"4": "क्यूँकि इन सब ने तो अपनी दौलत की कसरत से कुछ डाला जबकि इस ने ज़रूरत मन्द होने के बावजूद भी अपने गुज़ारे के सारे पैसे दे दिए हैं ",
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"5": "उस वक़्त कुछ लोग हैकल की तारीफ़ में कहने लगे कि वह कितने ख़ूबसूरत पत्थरों और मिन्नत के तोह्फ़ों से सजा हुआ है यह सुन कर ईसा ने कहा",
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"6": "जो कुछ तुम को यहाँ नज़र आता है उस का पत्थर पर पत्थर नहीं रहेगा आने वाले दिनों में सब कुछ ढा दिया जाएगा ",
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"7": "उन्हों ने पूछा उस्ताद यह कब होगा क्या क्या नज़र आएगा जिस से मालूम हो कि यह अब होने को है",
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"8": "ईसा ने जवाब दिया ख़बरदार रहो कि कोई तुम्हें गुमराह न कर दे क्यूँकि बहुत से लोग मेरा नाम ले कर आएँगे और कहेंगे मैं ही मसीह हूँ और कि वक़्त क़रीब आ चुका है लेकिन उन के पीछे न लगना",
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"9": "और जब जंगों और फ़ितनों की ख़बरें तुम तक पहुँचेंगी तो मत घबराना क्यूँकि ज़रूरी है कि यह सब कुछ पहले पेश आए तो भी अभी आख़िरत न होगी",
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"10": "उस ने अपनी बात जारी रखी एक क़ौम दूसरी के ख़िलाफ़ उठ खड़ी होगी और एक बादशाही दूसरी के ख़िलाफ़ ",
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"11": "बहुत ज़ल्ज़ले आएँगे जगह जगह काल पड़ेंगे और वबाई बीमारियाँ फैल जाएँगी हैबतनाक वाक़िआत और आस्मान पर बड़े निशान देखने में आएँगे ",
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"12": "लेकिन इन तमाम वाक़िआत से पहले लोग तुम को पकड़ कर सताएँगे वह तुम को यहूदी इबादतख़ानों के हवाले करेंगे क़ैदख़ानों में डलवाएँगे और बादशाहों और हुक्मरानों के सामने पेश करेंगे और यह इस लिए होगा कि तुम मेरे पैरोकार हो",
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"13": "नतीजे में तुम्हें मेरी गवाही देने का मौक़ा मिलेगा",
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"14": "लेकिन ठान लो कि तुम पहले से अपनी फ़िक्र करने की तैय्यारी न करो",
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"15": "क्यूँकि मैं तुम को ऐसे अल्फ़ाज़ और हिक्मत अता करूँगा कि तुम्हारे तमाम मुख़ालिफ़ न उस का मुक़ाबला और न उस का जवाब दे सकेंगे",
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"16": "तुम्हारे वालिदैन भाई रिश्तेदार और दोस्त भी तुम को दुश्मन के हवाले कर देंगे बल्कि तुम में से कुछ को क़त्ल किया जाएगा",
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"17": "सब तुम से नफ़रत करेंगे इस लिए कि तुम मेरे मानने वाले हो",
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"18": "तो भी तुम्हारा एक बाल भी बीका नहीं होगा",
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"19": "साबितक़दम रहने से ही तुम अपनी जान बचा लोगे",
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"20": "जब तुम यरूशलीम को फ़ौजों से घिरा हुआ देखो तो जान लो कि उस की तबाही क़रीब आ चुकी है",
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"21": "उस वक़्त यहूदिया के रहनेवाले भाग कर पहाड़ी इलाक़े में पनाह लें शहर के रहने वाले उस से निकल जाएँ और दिहात में आबाद लोग शहर में दाख़िल न हों",
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"22": "क्यूँकि यह इलाही ग़ज़ब के दिन होंगे जिन में वह सब कुछ पूरा हो जाएगा जो कलामएमुक़द्दस में लिखा है",
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"23": "उन औरतों पर अफ़्सोस जो उन दिनों में हामिला हों या अपने बच्चों को दूध पिलाती हों क्यूँकि मुल्क में बहुत मुसीबत होगी और इस क़ौम पर ख़ुदा का ग़ज़ब नाज़िल होगा",
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"24": "लोग उन्हें तल्वार से क़त्ल करेंगे और क़ैद करके तमाम ग़ैरयहूदी ममालिक में ले जाएँगे ग़ैरयहूदी यरूशलीम को पाँवों तले कुचल डालेंगे यह सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहेगा जब तक ग़ैरयहूदियों का दौर पूरा न हो जाए ",
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"25": "सूरज चाँद और तारों में अजीबओग़रीब निशान ज़ाहिर होंगे क़ौमें समुन्दर के शोर और ठाठें मारने से हैरानओपरेशान होंगी ",
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"26": "लोग इस अन्देशे से कि क्या क्या मुसीबत दुनिया पर आएगी इस क़दर ख़ौफ़ खाएँगे कि उन की जान में जान न रहेगी क्यूँकि आस्मान की ताक़तें हिलाई जाएँगी",
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"27": "और फिर वह इब्नएआदम को बड़ी क़ुद्रत और जलाल के साथ बादल में आते हुए देखेंगे ",
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"28": "चुनाँचे जब यह कुछ पेश आने लगे तो सीधे खड़े हो कर अपनी नज़र उठाओ क्यूँकि तुम्हारी नजात नज़्दीक होगी",
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"29": "इस सिलसिले में ईसा ने उन्हें एक मिसाल सुनाई अन्जीर के दरख़्त और बाक़ी दरख़्तों पर ग़ौर करो",
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"30": "जैसे ही कोंपलें निकलने लगती हैं तुम जान लेते हो कि गर्मियों का मौसम नज़्दीक है ",
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"31": "इसी तरह जब तुम यह वाक़िआत देखोगे तो जान लोगे कि ख़ुदा की बादशाही क़रीब ही है ",
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"32": "मैं तुम को सच बताता हूँ कि इस नस्ल के ख़त्म होने से पहले पहले यह सब कुछ वाक़े होगा",
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"33": "आस्मानओज़मीन तो जाते रहेंगे लेकिन मेरी बातें हमेशा तक क़ायम रहेंगी",
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"34": "ख़बरदार रहो ताकि तुम्हारे दिल अय्याशी नशाबाज़ी और रोज़ाना की फ़िक़्रों तले दब न जाएँ वर्ना यह दिन अचानक तुम पर आन पड़ेगा",
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"35": "और फंदे की तरह तुम्हें जकड़ लेगा क्यूँकि वह दुनिया के तमाम रहनेवालों पर आएगा",
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"36": "हर वक़्त चौकस रहो और दुआ करते रहो कि तुम को आने वाली इन सब बातों से बच निकलने की तौफ़ीक़ मिल जाए और तुम इब्नएआदम के सामने खड़े हो सको",
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"37": "हर रोज़ ईसा बैतउलमुक़द्दस में तालीम देता रहा और हर शाम वह निकल कर उस पहाड़ पर रात गुज़ारता था जिस का नाम ज़ैतून का पहाड़ है",
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"38": "और सुबह सवेरे सब लोग उस की बातें सुनने को हैकल में उस के पास आया करते थे"
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"1": "बेख़मीरी रोटी की ईद यानी फ़सह की ईद क़रीब आ गई थी",
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"2": "रेहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा ईसा को क़त्ल करने का कोई मौज़ूँ मौक़ा ढूँड रहे थे क्यूँकि वह अवाम के रद्दएअमल से डरते थे",
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"3": "उस वक़्त इब्लीस यहूदाह इस्करियोती में समा गया जो बारह रसूलों में से था ",
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"4": "अब वह रेहनुमा इमामों और बैतउलमुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़्सरों से मिला और उन से बात करने लगा कि वह ईसा को किस तरह उन के हवाले कर सकेगा",
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"5": "वह ख़ुश हुए और उसे पैसे देने पर मुत्तफ़िक़ हुए",
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"6": "यहूदाह रज़ामन्द हुआ अब से वह इस तलाश में रहा कि ईसा को ऐसे मौक़े पर उन के हवाले करे जब मजमा उस के पास न हो",
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"7": "बेख़मीरी रोटी की ईद आई जब फ़सह के मेमने को क़ुर्बान करना था",
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"8": "ईसा ने पतरस और यूहन्ना को आगे भेज कर हिदायत की जाओ हमारे लिए फ़सह का खाना तैय्यार करो ताकि हम जा कर उसे खा सकें",
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"9": "उन्हों ने पूछा हम उसे कहाँ तैय्यार करें",
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"10": "उस ने जवाब दिया जब तुम शहर में दाख़िल होगे तो तुम्हारी मुलाक़ात एक आदमी से होगी जो पानी का घड़ा उठाए चल रहा होगा उस के पीछे चल कर उस घर में दाख़िल हो जाओ जिस में वह जाएगा",
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"11": "वहाँ के मालिक से कहना उस्ताद आप से पूछते हैं कि वह कमरा कहाँ है जहाँ मैं अपने शागिर्दों के साथ फ़सह का खाना खाऊँ",
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"12": "वह तुम को दूसरी मन्ज़िल पर एक बड़ा और सजा हुआ कमरा दिखाएगा फ़सह का खाना वहीं तैय्यार करना",
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"13": "दोनों चले गए तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसा ईसा ने उन्हें बताया था फिर उन्हों ने फ़सह का खाना तैयार किया",
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"14": "मुक़र्ररा वक़्त पर ईसा अपने शागिर्दों के साथ खाने के लिए बैठ गया ",
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"15": "उस ने उन से कहा मेरी बहुत आरजू थी कि दुख उठाने से पहले तुम्हारे साथ मिल कर फ़सह का यह खाना खाऊँ",
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"16": "क्यूँकि मैं तुम को बताता हूँ कि उस वक़्त तक इस खाने में शरीक नहीं हूँगा जब तक इस का मक़्सद ख़ुदा की बादशाही में पूरा न हो गया हो",
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"17": "फिर उस ने मय का प्याला ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और कहा इस को ले कर आपस में बाँट लो",
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"18": "मैं तुम को बताता हूँ कि अब से मैं अंगूर का रस नहीं पियूँगा क्यूँकि अगली दफ़ा इसे ख़ुदा की बादशाही के आने पर पियूँगा",
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||||
"19": "फिर उस ने रोटी ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उसे टुकड़े करके उन्हें दे दिया उस ने कहा यह मेरा बदन है जो तुम्हारे लिए दिया जाता है मुझे याद करने के लिए यही किया करो",
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||||
"20": "इसी तरह उस ने खाने के बाद प्याला ले कर कहा मय का यह प्याला वह नया अह्द है जो मेरे ख़ून के ज़रिए क़ाइम किया जाता है वह ख़ून जो तुम्हारे लिए बहाया जाता है",
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"21": "लेकिन जिस शख़्स का हाथ मेरे साथ खाना खाने में शरीक है वह मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा",
|
||||
"22": "इब्नएआदम तो ख़ुदा की मर्ज़ी के मुताबिक़ कूच कर जाएगा लेकिन उस शख़्स पर अफ़्सोस जिस के वसीले से उसे दुश्मन के हवाले कर दिया जाएगा",
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"23": "यह सुन कर शागिर्द एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से यह कौन हो सकता है जो इस क़िस्म की हरकत करेगा",
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"24": "फिर एक और बात भी छिड़ गई वह एक दूसरे से बह्स करने लगे कि हम में से कौन सब से बड़ा समझा जाए",
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"25": "लेकिन ईसा ने उन से कहा ग़ैरयहूदी क़ौमों में बादशाह वही हैं जो दूसरों पर हुकूमत करते हैं और इख़्तियार वाले वही हैं जिन्हें मोहसिन का लक़ब दिया जाता है",
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"26": "लेकिन तुम को ऐसा नहीं होना चाहिए इस के बजाय जो सब से बड़ा है वह सब से छोटे लड़के की तरह हो और जो रेहनुमाई करता है वह नौकर जैसा हो",
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||||
"27": "क्यूँकि आम तौर पर कौन ज़्यादा बड़ा होता है वह जो खाने के लिए बैठा है या वह जो लोगों की ख़िदमत के लिए हाज़िर होता है क्या वह नहीं जो खाने के लिए बैठा है बेशक लेकिन मैं ख़िदमत करने वाले की हैसियत से ही तुम्हारे बीच हूँ ",
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"28": "देखो तुम वही हो जो मेरी तमाम आज़्माइशों के दौरान मेरे साथ रहे हो",
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"29": "चुनाँचे मैं तुम को बादशाही अता करता हूँ जिस तरह बाप ने मुझे बादशाही अता की है ",
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||||
"30": "तुम मेरी बादशाही में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ खाओ और पियोगे, और तख़्तों पर बैठ कर इस्राईल के बारह क़बीलों का इन्साफ़ करोगे। ",
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||||
"31": "शमाऊन, शमाऊन! इब्लीस ने तुम लोगों को गन्दुम की तरह फटकने का मुतालबा किया है। ",
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||||
"32": "लेकिन मैंने तेरे लिए दुआ की है ताकि तेरा ईमान जाता न रहे। और जब तू मुड़ कर वापस आए तो उस वक़्त अपने भाइयों को मज़्बूत करना।” ",
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||||
"33": "पतरस ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द, मैं तो आप के साथ जेल में भी जाने बल्कि मरने को तय्यार हूँ।” ",
|
||||
"34": "ईसा' ने कहा, “पतरस, मैं तुझे बताता हूँ कि कल सुबह मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।” ",
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||||
"35": "फिर उसने उनसे कहा जब मैंने तुम्हे बटुए और झोली और जूती के बिना भेजा था तो क्या तुम किसी चीज़ में मोहताज रहे थे , उन्होंने कहा किसी चीज़ के नहीं | ",
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||||
"36": "उस ने कहा, “लेकिन अब जिस के पास बटूवा या थैला हो वह उसे साथ ले जाए, बल्कि जिस के पास तलवार न हो वह अपनी चादर बेच कर तलवार ख़रीद ले। ",
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||||
"37": "कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, ‘उसे मुल्ज़िमों में शुमार किया गया’ और मैं तुम को बताता हूँ, ज़रूरी है कि यह बात मुझ में पूरी हो जाए। क्यूँकि जो कुछ मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा ही होना है।” ",
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||||
"38": "उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, यहाँ दो तलवारें हैं।” उस ने कहा, “बस! काफ़ी है!” ",
|
||||
"39": "फिर वह शहर से निकल कर रोज़ के मुताबिक़ ज़ैतून के पहाड़ की तरफ़ चल दिया। उस के शागिर्द उस के पीछे हो लिए। ",
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||||
"40": "वहाँ पहुँच कर उस ने उन से कहा, “दुआ करो ताकि आज़्माइश में न पड़ो।” ",
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||||
"41": "फिर वह उन्हें छोड़ कर कुछ आगे निकला, तक़रीबन इतने फ़ासिले पर जितनी दूर तक पत्थर फैंका जा सकता है। वहाँ वह झुक कर दुआ करने लगा, ",
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||||
"42": "“ऐ बाप, अगर तू चाहे तो यह प्याला मुझ से हटा ले। लेकिन मेरी नहीं बल्कि तेरी मर्ज़ी पूरी हो।” ",
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||||
"43": "उस वक़्त एक फ़रिश्ते ने आस्मान पर से उस पर ज़ाहिर हो कर उस को ताक़त दी। ",
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||||
"44": "वह सख़्त परेशान हो कर ज़्यादा दिलसोज़ी से दुआ करने लगा। साथ साथ उस का पसीना ख़ून की बूँदों की तरह ज़मीन पर टपकने लगा। ",
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||||
"45": "जब वह दुआ से फ़ारिग़ हो कर खड़ा हुआ और शागिर्दों के पास वापस आया तो देखा कि वह ग़म के मारे सो गए हैं। ",
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||||
"46": "उस ने उन से कहा, “तुम क्यूँ सो रहे हो? उठ कर दुआ करते रहो ताकि आज़्माइश में न पड़ो।” ",
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||||
"47": "वह अभी यह बात कर ही रहा था कि एक हुजूम आ पहुँचा जिस के आगे आगे यहूदाह चल रहा था। वह ईसा' को बोसा देने के लिए उस के पास आया। ",
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||||
"48": "लेकिन उस ने कहा, “यहूदाह, क्या तू इब्न-ए-आदम को बोसा दे कर दुश्मन के हवाले कर रहा है?” ",
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||||
"49": "जब उस के साथियों ने भाँप लिया कि अब क्या होने वाला है तो उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, क्या हम तलवार चलाएँ?” ",
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||||
"50": "और उनमें से एक ने अपनी तलवार से इमाम-ए-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया। ",
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||||
"51": "लेकिन ईसा' ने कहा, “बस कर!” उस ने ग़ुलाम का कान छू कर उसे शिफ़ा दी। ",
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||||
"52": "फिर वह उन रेहनुमा इमामों, बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों के अफ़्सरों और बुज़ुर्गों से मुख़ातिब हुआ जो उस के पास आए थे, “क्या मैं डाकू हूँ कि तुम तलवारें और लाठियाँ लिए मेरे ख़िलाफ़ निकले हो? ",
|
||||
"53": "मैं तो रोज़ाना बैत-उल-मुक़द्दस में तुम्हारे पास था, मगर तुम ने वहाँ मुझे हाथ नहीं लगाया। लेकिन अब यह तुम्हारा वक़्त है, वह वक़्त जब तारीकी हुकूमत करती है।” ",
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||||
"54": "फिर वह उसे गिरिफ़्तार करके इमाम-ए-आज़म के घर ले गए। पतरस कुछ फ़ासिले पर उन के पीछे पीछे वहाँ पहुँच गया। ",
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||||
"55": "लोग सहन में आग जला कर उस के इर्दगिर्द बैठ गए। पतरस भी उन के बीच बैठ गया। ",
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||||
"56": "किसी नौकरानी ने उसे वहाँ आग के पास बैठे हुए देखा। उस ने उसे घूर कर कहा, “यह भी उस के साथ था।” ",
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||||
"57": "लेकिन उस ने इन्कार किया, “ख़ातून, मैं उसे नहीं जानता।” ",
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||||
"58": "थोड़ी देर के बाद किसी आदमी ने उसे देखा और कहा, “तुम भी उन में से हो।” लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “नहीं भाई! मैं नहीं हूँ।” ",
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||||
"59": "तक़रीबन एक घंटा गुज़र गया तो किसी और ने इस्रार करके कहा, “यह आदमी यक़ीनन उस के साथ था, क्यूँकि यह भी गलील का रहने वाला है।” ",
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||||
"60": "लेकिन पतरस ने जवाब दिया, “यार, मैं नहीं जानता कि तुम क्या कह रहे हो!” वह अभी बात कर ही रहा था कि अचानक मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी। ",
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||||
"61": "ख़ुदावन्द ने मुड़ कर पतरस पर नज़र डाली। फिर पतरस को ख़ुदावन्द की वह बात याद आई जो उस ने उस से कही थी कि “कल सुबह मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन बार मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।” ",
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||||
"62": "पतरस वहाँ से निकल कर टूटे दिल से ख़ूब रोया। ",
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||||
"63": "पहरेदार ईसा' का मज़ाक़ उड़ाने और उस की पिटाई करने लगे। ",
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"64": "उन्होंने उस की आँखों पर पट्टी बाँध कर पूछा, “नबुव्वत कर कि किस ने तुझे मारा?” ",
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"65": "इस तरह की और बहुत सी बातों से वह उस की बेइज़्ज़ती करते रहे। ",
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"66": "जब दिन चढ़ा तो रेहनुमा इमामों और शरीअत के आलिमों पर मुश्तमिल क़ौम के मजमा ने जमा हो कर उसे यहूदी अदालत-ए-आलिया में पेश किया। ",
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||||
"67": "उन्हों ने कहा, “अगर तू मसीह है तो हमें बता!” ईसा' ने जवाब दिया, “अगर मैं तुम को बताऊँ तो तुम मेरी बात नहीं मानोगे, ",
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"68": "और अगर तुम से पूछूँ तो तुम जवाब नहीं दोगे। ",
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"69": "लेकिन अब से इब्न-ए-आदम ख़ुदा तआला के दहने हाथ बैठा होगा।” ",
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"70": "सब ने पूछा, “तो फिर क्या तू ख़ुदा का फ़र्ज़न्द है?” उस ने जवाब दिया, “जी, तुम ख़ुद कहते हो।” ",
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"71": "इस पर उन्हों ने कहा, “अब हमें किसी और गवाही की क्या ज़रूरत रही? क्यूँकि हम ने यह बात उस के अपने मुँह से सुन ली है।”"
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"1": "फिर पूरी मज्लिस उठी और 'ईसा को पीलातुस के पास ले आई। ",
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"2": "और उन्होंने उस पर इल्ज़ाम लगा कर कहने लगे, “हम ने मालूम किया है कि यह आदमी हमारी क़ौम को गुमराह कर रहा है। यह क़ैसर को ख़िराज देने से मना करता और दा'वा करता है कि मैं मसीह और बादशाह हूँ।” ",
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||||
"3": "पीलातुस ने उस से पूछा, “अच्छा, तुम यहूदियों के बादशाह हो?” ईसा' ने जवाब दिया, “जी, आप ख़ुद कहते हैं।” ",
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||||
"4": "फिर पीलातुस ने रहनुमा इमामों और हुजूम से कहा, “मुझे इस आदमी पर इल्ज़ाम लगाने की कोई वजह नज़र नहीं आती।” ",
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"5": "मगर वो और भी ज़ोर देकर कहने लगे कि ये तमाम यहूदिया में बल्कि गलील से लेकर यहाँ तक लोगो को सिखा सिखा कर उभारता है ",
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"6": "यह सुन कर पीलातुस ने पूछा, “क्या यह शख़्स गलील का है?” ",
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"7": "जब उसे मालूम हुआ कि ईसा' गलील यानी उस इलाक़े से है, जिस पर हेरोदेस अनतिपास की हुकूमत है तो उस ने उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्यूँकि वह भी उस वक़्त यरूशलीम में था। ",
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"8": "हेरोदेस ईसा' को देख कर बहुत ख़ुश हुआ, क्यूँकि उस ने उस के बारे में बहुत कुछ सुना था, और इस लिए काफ़ी दिनों से उस से मिलना चाहता था। अब उस की बड़ी ख़्वाहिश थी, कि ईसा' को कोई मोजिज़ा करते हुए देख सके। ",
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"9": "उस ने उस से बहुत सारे सवाल किए, लेकिन ईसा' ने एक का भी जवाब न दिया। ",
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"10": "रहनुमा इमाम और शरीअत के उलमा साथ खड़े बड़े जोश से उस पर इल्ज़ाम लगाते रहे। ",
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||||
"11": "फिर हेरोदेस और उस के फ़ौजियों ने उसको ज़लील करते हुए उस का मज़ाक़ उड़ाया और उसे चमकदार लिबास पहना कर पीलातुस के पास वापस भेज दिया। ",
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"12": "उसी दिन हेरोदेस और पीलातुस दोस्त बन गए, क्यूँकि इस से पहले उन की दुश्मनी चल रही थी। ",
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"13": "फिर पीलातुस ने रहनुमा इमामों, सरदारों और अवाम को जमा करके; ",
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"14": "उन से कहा, “तुम ने इस शख़्स को मेरे पास ला कर इस पर इल्ज़ाम लगाया है कि यह क़ौम को उकसा रहा है। मैं ने तुम्हारी मौजूदगी में इस का जायज़ा ले कर ऐसा कुछ नहीं पाया जो तुम्हारे इल्ज़ामात की तस्दीक़ करे। ",
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"15": "हेरोदेस भी कुछ नहीं मालूम कर सका, इस लिए उस ने इसे हमारे पास वापस भेज दिया है। इस आदमी से कोई भी ऐसा गुनाह नहीं हुआ कि यह सज़ा-ए-मौत के लायक़ है। ",
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"16": "इस लिए मैं इसे कोड़ों की सज़ा दे कर रिहा कर देता हूँ।” ",
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"17": "[अस्ल में यह उस का फ़र्ज़ था कि वह ईद के मौक़े पर उन की ख़ातिर एक क़ैदी को रिहा कर दे।] ",
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"18": "लेकिन सब मिल कर शोर मचा कर कहने लगे, “इसे ले जाएँ! इसे नहीं बल्कि बर-अब्बा को रिहा करके हमें दें।” ",
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"19": "(बर-अब्बा को इस लिए जेल में डाला गया था कि वह क़ातिल था और उस ने शहर में हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।) ",
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"20": "पीलातुस ईसा' को रिहा करना चाहता था, इस लिए वह दुबारा उन से मुख़ातिब हुआ। ",
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"21": "लेकिन वह चिल्लाते रहे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें।” ",
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"22": "फिर पीलातुस ने तीसरी दफ़ा उन से कहा, “क्यूँ? उस ने क्या जुर्म किया है? मुझे इसे सज़ा-ए-मौत देने की कोई वजह नज़र नहीं आती। इस लिए मैं इसे कोड़े लगवा कर रिहा कर देता हूँ।” ",
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"23": "लेकिन वह बड़ा शोर मचा कर उसे मस्लूब करने का तक़ाज़ा करते रहे, और आख़िरकार उन की आवाज़ें ग़ालिब आ गईं। ",
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"24": "फिर पीलातुस ने फ़ैसला किया कि उन का मुतालबा पूरा किया जाए। ",
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"25": "उस ने उस आदमी को रिहा कर दिया जो अपनी हुकूमत के ख़िलाफ़ हरकतों और क़त्ल की वजह से जेल में डाल दिया गया था जबकि ईसा' को उस ने उन की मर्ज़ी के मुताबिक़ उन के हवाले कर दिया। ",
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"26": "जब फ़ौजी ईसा को ले जा रहे थे तो उन्हों ने एक आदमी को पकड़ लिया जो लिबिया के शहर कुरेन का रहने वाला था। उस का नाम शमाऊन था। उस वक़्त वह देहात से शहर में दाख़िल हो रहा था। उन्हों ने सलीब को उस के कंधों पर रख कर उसे ईसा' के पीछे चलने का हुक्म दिया। ",
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"27": "एक बड़ा हुजूम उस के पीछे हो लिया जिस में कुछ ऐसी औरतें भी शामिल थीं जो सीना पीट पीट कर उस का मातम कर रही थीं। ",
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"28": "ईसा' ने मुड़ कर उन से कहा, “यरूशलम की बेटियो! मेरे वास्ते न रोओ बल्कि अपने और अपने बच्चों के वास्ते रोओ। ",
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"29": "क्यूँकि ऐसे दिन आएँगे जब लोग कहेंगे, ‘मुबारक हैं वह जो बाँझ हैं, जिन्हों ने न तो बच्चों को जन्म दिया, न दूध पिलाया।’ ",
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"30": "फिर लोग पहाड़ों से कहने लगेंगे, ‘हम पर गिर पड़ो,’ और पहाड़ियों से कि ‘हमें छुपा लो।’ ",
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"31": "क्यूँकि अगर हरे दरख़्त से ऐसा सुलूक किया जाता है तो फिर सूखे के साथ क्या कुछ न किया जायेगा?” ",
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"32": "दो और मर्दों को भी मस्लूब करने के लिए बाहर ले जाया जा रहा था। दोनों मुजरिम थे। ",
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"33": "चलते चलते वह उस जगह पहुँचे जिस का नाम खोपड़ी था। वहाँ उन्हों ने ईसा' को दोनों मुजरिमों समेत मस्लूब किया। एक मुजरिम को उस के दाएँ हाथ और दूसरे को उस के बाएँ हाथ लटका दिया गया। ",
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"34": "ईसा' ने कहा, “ऐ बाप, इन्हें मुआफ़ कर, क्यूँकि यह जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं।” उन्हों ने पर्ची डाल कर उस के कपड़े आपस में बाँट लिए। ",
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"35": "हुजूम वहाँ खड़ा तमाशा देखता रहा जबकि क़ौम के सरदारों ने उस का मज़ाक़ भी उड़ाया। उन्हों ने कहा, “उस ने औरों को बचाया है। अगर यह ख़ुदा का चुना हुआ और मसीह है तो अपने आप को बचाए।” ",
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"36": "फ़ौजियों ने भी उसे लान-तान की। उस के पास आ कर उन्हों ने उसे मय का सिरका पेश किया ",
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"37": "और कहा, “अगर तू यहूदियों का बादशाह है तो अपने आप को बचा ले।” ",
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"38": "उस के सर के ऊपर एक तख़्ती लगाई गई थी जिस पर लिखा था, “यह यहूदियों का बादशाह है।” ",
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"39": "जो मुजरिम उस के साथ मस्लूब हुए थे उन में से एक ने कुफ़्र बकते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं है? तो फिर अपने आप को और हमें भी बचा ले।” ",
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"40": "लेकिन दूसरे ने यह सुन कर उसे डाँटा, “क्या तू ख़ुदा से भी नहीं डरता? जो सज़ा उसे दी गई है वह तुझे भी मिली है। ",
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"41": "हमारी सज़ा तो वाजिबी है, क्यूँकि हमें अपने कामों का बदला मिल रहा है, लेकिन इस ने कोई बुरा काम नहीं किया।” ",
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"42": "फिर उस ने ईसा' से कहा, “जब आप अपनी बादशाही में आएँ तो मुझे याद करें।” ",
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"43": "ईसा' ने उस से कहा, “मैं तुझे सच बताता हूँ कि तू आज ही मेरे साथ फ़िर्दौस में होगा।” ",
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"44": "बारह बजे से दोपहर तीन बजे तक पूरा मुल्क अंधेरे में डूब गया। ",
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"45": "सूरज तारीक हो गया और बैत-उल-मुक़द्दस के पाकतरीन कमरे के सामने लटका हुआ पर्दा दो हिस्सों में फट गया। ",
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"46": "ईसा' ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “ऐ बाप, मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ।” यह कह कर उस ने दम तोड़ दिया। ",
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"47": "यह देख कर वहाँ खड़े फ़ौजी अफ़्सर ने ख़ुदा की बड़ाई करके कहा, “यह आदमी वाक़ई रास्तबाज़ था।” ",
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"48": "और हुजूम के तमाम लोग जो यह तमाशा देखने के लिए जमा हुए थे यह सब कुछ देख कर छाती पीटने लगे और शहर में वापस चले गए। ",
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"49": "लेकिन ईसा\" के जानने वाले कुछ फ़ासिले पर खड़े देखते रहे। उन में वह औरतें भी शामिल थीं जो गलील में उस के पीछे चल कर यहाँ तक उस के साथ आई थीं। ",
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"50": "वहाँ एक नेक और रास्तबाज़ आदमी बनाम यूसुफ़ था। वह यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था",
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"51": "लेकिन दूसरों के फ़ैसले और हरकतो पर रज़ामन्द नहीं हुआ था। यह आदमी यहूदिया के शहर अरिमतियाह का रहने वाला था और इस इन्तिज़ार में था कि ख़ुदा की बादशाही आए। ",
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"52": "अब उस ने पिलातुस के पास जा कर उस से ईसा' की लाश ले जाने की इजाज़त माँगी। ",
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"53": "फिर लाश को उतार कर उस ने उसे कतान के कफ़न में लपेट कर चटान में तराशी हुई एक क़ब्र में रख दिया जिस में अब तक किसी को दफ़नाया नहीं गया था। ",
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"54": "यह तैयारी का दिन यानी जुमआ था, लेकिन सबत का दिन शुरू होने को था। ",
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"55": "जो औरतें ईसा' के साथ गलील से आई थीं वह यूसुफ़ के पीछे हो लीं। उन्हों ने क़ब्र को देखा और यह भी कि ईसा' की लाश किस तरह उस में रखी गई है। ",
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"56": "फिर वह शहर में वापस चली गईं और उस की लाश के लिए ख़ुश्बूदार मसाले तैयार करने लगीं।"
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"1": "सबत का दिन शुरू हुआ, इस लिए उन्हों ने शरीअत के मुताबिक़ आराम किया। इतवार के दिन यह औरतें अपने तैयारशुदा मसाले ले कर सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं। ",
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"2": "वहाँ पहुँच कर उन्हों ने देखा कि क़ब्र पर का पत्थर एक तरफ़ लुढ़का हुआ है। ",
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"3": "लेकिन जब वह क़ब्र में गईं तो वहाँ ख़ुदावन्द ईसा' की लाश न पाई। ",
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"4": "वह अभी उलझन में वहाँ खड़ी थीं कि अचानक दो मर्द उन के पास आ खड़े हुए जिन के लिबास बिजली की तरह चमक रहे थे। ",
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"5": "औरतें ख़ौफ़ खा कर मुँह के बल झुक गईं, लेकिन उन मर्दों ने कहा, “तुम क्यूँ ज़िन्दा को मुर्दों में ढूँड रही हो? ",
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"6": "वह यहाँ नहीं है, वह तो जी उठा है। वह बात याद करो जो उस ने तुम से उस वक़्त कही जब वह गलील में था। ",
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"7": "‘जरूरी है कि इब्न-ए-आदम को गुनाहगारों के हवाले कर के, मस्लूब किया जाए और कि वह तीसरे दिन जी उठे’।” ",
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"8": "फिर उन्हें यह बात याद आई। ",
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"9": "और क़ब्र से वापस आ कर उन्हों ने यह सब कुछ ग्यारह रसूलों और बाक़ी शागिर्दों को सुना दिया। ",
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"10": "मरियम मग्दलीनी, यूना, याक़ूब की माँ मरियम और चन्द एक और औरतें उन में शामिल थीं जिन्हों ने यह बातें रसूलों को बताईं। ",
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"11": "लेकिन उन को यह बातें बेतुकी सी लग रही थीं, इस लिए उन्हें यक़ीन न आया। ",
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"12": "तो भी पतरस उठा और भाग कर क़ब्र के पास आया। जब पहुँचा तो झुक कर अन्दर झाँका, लेकिन सिर्फ़ कफ़न ही नज़र आया। यह हालात देख कर वह हैरान हुआ और चला गया। ",
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"13": "उसी दिन ईसा' के दो पैरोकार एक गांव बनाम इम्माउस की तरफ़ चल रहे थे। यह गाँव यरूशलीम से तक़रीबन दस किलोमीटर दूर था। ",
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"14": "चलते चलते वह आपस में उन वाक़ेआत का ज़िक्र कर रहे थे जो हुए थे। ",
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"15": "और ऐसा हुआ कि जब वह बातें और एक दूसरे के साथ बह्स-ओ-मुबाहसा कर रहे थे तो ईसा' ख़ुद क़रीब आ कर उन के साथ चलने लगा। ",
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"16": "लेकिन उन की आँखों पर पर्दा डाला गया था, इस लिए वह उसे पहचान न सके। ",
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"17": "ईसा' ने कहा, “यह कैसी बातें हैं जिन के बारे में तुम चलते चलते तबादला-ए-ख़याल कर रहे हो?” यह सुन कर वह ग़मगीन से खड़े हो गए। ",
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"18": "उन में से एक बनाम क्लियुपास ने उस से पूछा, “क्या आप यरूशलीम में वाहिद शख़्स हैं जिसे मालूम नहीं कि इन दिनों में क्या कुछ हुआ है?” ",
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"19": "उस ने कहा, “क्या हुआ है?” उन्हों ने जवाब दिया, “वह जो ईसा' नासरी के साथ हुआ है। वह नबी था जिसे कलाम और काम में ख़ुदा और तमाम क़ौम के सामने ज़बरदस्त ताक़त हासिल थी। ",
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||||
"20": "लेकिन हमारे रहनुमा इमामों और सरदारों ने उसे हुक्मरानों के हवाले कर दिया ताकि उसे सज़ा-ए-मौत दी जाए, और उन्हों ने उसे मस्लूब किया। ",
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"21": "लेकिन हमें तो उम्मीद थी कि वही इस्राईल को नजात देगा। इन वाक़ेआत को तीन दिन हो गए हैं। ",
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"22": "लेकिन हम में से कुछ औरतों ने भी हमें हैरान कर दिया है। वह आज सुबह-सवेरे क़ब्र पर गईं थीं| ",
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"23": "तो देखा कि लाश वहाँ नहीं है। उन्हों ने लौट कर हमें बताया कि हम पर फ़रिश्ते ज़ाहिर हुए जिन्हों ने कहा कि ईसा\" ज़िन्दा है। ",
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"24": "हम में से कुछ क़ब्र पर गए और उसे वैसा ही पाया जिस तरह उन औरतों ने कहा था। लेकिन उसे ख़ुद उन्हों ने नहीं देखा।” ",
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"25": "फिर ईसा' ने उन से कहा, “अरे नादानो! तुम कितने कुन्दज़हन हो कि तुम्हें उन तमाम बातों पर यक़ीन नहीं आया जो नबियों ने फ़रमाई हैं। ",
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"26": "क्या ज़रूरी नहीं था कि मसीह यह सब कुछ झेल कर अपने जलाल में दाख़िल हो जाए?” ",
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"27": "फिर मूसा और तमाम नबियों से शुरू करके ईसा' ने कलाम-ए-मुक़द्दस की हर बात की तशरीह की जहाँ जहाँ उस का ज़िक्र है। ",
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"28": "चलते चलते वह उस गाँव के क़रीब पहुँचे जहाँ उन्हें जाना था। ईसा' ने ऐसा किया गोया कि वह आगे बढ़ना चाहता है, ",
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"29": "लेकिन उन्हों ने उसे मज्बूर करके कहा, “हमारे पास ठहरें, क्यूँकि शाम होने को है और दिन ढल गया है।” चुनाँचे वह उन के साथ ठहरने के लिए अन्दर गया। ",
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"30": "और ऐसा हुआ कि जब वह खाने के लिए बैठ गए तो उस ने रोटी ले कर उस के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ की। फिर उस ने उसे टुकड़े करके उन्हें दिया। ",
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"31": "अचानक उन की आँखें खुल गईं और उन्हों ने उसे पहचान लिया। लेकिन उसी लम्हे वह ओझल हो गया। ",
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"32": "फिर वह एक दूसरे से कहने लगे, “क्या हमारे दिल जोश से न भर गए थे जब वह रास्ते में हम से बातें करते करते हमें सहीफ़ों का मतलब समझा रहा था?” ",
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"33": "और वह उसी वक़्त उठ कर यरूशलीम वापस चले गए। जब वह वहाँ पहुँचे तो ग्यारह रसूल अपने साथियों समेत पहले से जमा थे",
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"34": "और यह कह रहे थे, “ख़ुदावन्द वाक़ई जी उठा है! वह शमाऊन पर ज़ाहिर हुआ है।” ",
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"35": "फिर इम्माउस के दो शागिर्दों ने उन्हें बताया कि गाँवों की तरफ़ जाते हुए क्या हुआ था और कि ईसा' के रोटी तोड़ते वक़्त उन्हों ने उसे कैसे पहचाना। ",
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"36": "वह अभी यह बातें सुना रहे थे कि ईसा' ख़ुद उन के दर्मियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो।” ",
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"37": "वह घबरा कर बहुत डर गए, क्यूँकि उन का ख़याल था कि कोई भूत-प्रेत देख रहे हैं। ",
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"38": "उस ने उन से कहा, “तुम क्यूँ परेशान हो गए हो? क्या वजह है कि तुम्हारे दिलों में शक उभर आया है? ",
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||||
"39": "मेरे हाथों और पैरों को देखो कि मैं ही हूँ। मुझे टटोल कर देखो, क्यूँकि भूत के गोश्त और हड्डियाँ नहीं होतीं जबकि तुम देख रहे हो कि मेरा जिस्म है।” ",
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||||
"40": "यह कह कर उस ने उन्हें अपने हाथ और पैर दिखाए। ",
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"41": "जब उन्हें ख़ुशी के मारे यक़ीन नहीं आ रहा था और ता'अज्जुब कर रहे थे तो ईसा' ने पूछा, “क्या यहाँ तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है?” ",
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||||
"42": "उन्हों ने उसे भुनी हुई मछली का एक टुकड़ा दिया ",
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||||
"43": "उस ने उसे ले कर उन के सामने ही खा लिया। ",
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||||
"44": "फिर उस ने उन से कहा, “यही है जो मैं ने तुम को उस वक़्त बताया था जब तुम्हारे साथ था कि जो कुछ भी मूसा की शरीअत, नबियों के सहीफ़ों और ज़बूर की किताब में मेरे बारे में लिखा है उसे पूरा होना है।” ",
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"45": "फिर उस ने उन के ज़हन को खोल दिया ताकि वह ख़ुदा का कलाम समझ सकें। ",
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||||
"46": "उस ने उन से कहा, “कलाम-ए-मुक़द्दस में यूँ लिखा है, मसीह दुख उठा कर तीसरे दिन मुर्दों में से जी उठेगा। ",
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||||
"47": "फिर यरूशलम से शुरू करके उस के नाम में यह पैग़ाम तमाम क़ौमों को सुनाया जाएगा कि वह तौबा करके गुनाहों की मुआफ़ी पाएँ। ",
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"48": "तुम इन बातों के गवाह हो। ",
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||||
"49": "और मैं तुम्हारे पास उसे भेज दूँगा जिस का वादा मेरे बाप ने किया है। फिर तुम को आस्मान की ताक़त से भर दिया जाएगा। उस वक़्त तक शहर से बाहर न निकलना।” ",
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"50": "फिर वह शहर से निकल कर उन्हें बैत-अनियाह तक ले गया। वहाँ उस ने अपने हाथ उठा कर उन्हें बर्कत दी। ",
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"51": "और ऐसा हुआ कि बर्कत देते हुए वह उन से जुदा हो कर आस्मान पर उठा लिया गया। ",
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"52": "उन्हों ने उसे सिज्दा किया और फिर बड़ी ख़ुशी से यरूशलम वापस चले गए। ",
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"53": "वहाँ वह अपना पूरा वक़्त बैत-उल-मुक़द्दस में गुज़ार कर ख़ुदा की बड़ाई करते रहे।"
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"1": "तिब्रियुस क़ैसर की हुकूमत के पंद्रहवें बरस पुनित्युस पिलातुस यहूदिया का हाकिम था हेरोदेस गलील का और उसका भाई फिलिप्पुस इतुरिय्या और त्र्खोनीतिस का और लिसानियास अबलेने का हाकिम था ",
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||||
"2": "और हन्ना और काइफ़ा सरदार काहिन थे उस वक़्त ख़ुदा का कलाम वीराने में ज़क्ररियाह के बेटे युहन्ना पर नाज़िल हुआ",
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||||
"3": "और वो यरदन के आस पास में जाकर गुनाहों की मुआफ़ी के लिए तौबा के बपतिस्मे का एलान करने लगा",
|
||||
"4": "जैसा यसायाह नबी के कलाम की किताब में लिखा है वीराने में पुकारने वाले की आवाज़ आती है ख़ुदावन्द की राह तैयार करो उसके रास्ते सीधे बनाओ",
|
||||
"5": "हर एक घाटी भर दी जाएगी और हर एक पहाड़ और टीला नीचा किया जाएगा और जो टेढ़ा है सीधा और जो ऊँचा नीचा है बराबर रास्ता बनेगा",
|
||||
"6": "और हर बशर ख़ुदा की नजात देखेगा ",
|
||||
"7": "पस जो लोग उससे बपतिस्मा लेने को निकलकर आते थे वो उनसे कहता था ऐ साँप के बच्चो तुम्हें किसने जताया कि आने वाले ग़ज़ब से भागो",
|
||||
"8": "पस तौबा के मुवाफ़िक़ फल लाओ और अपने दिलों में ये कहना शुरू न करो कि अब्राहाम हमारा बाप है क्यूँकि मैं तुम से कहता हूँ कि ख़ुदा इन पत्थरों से अब्राहाम के लिए औलाद पैदा कर सकता है",
|
||||
"9": "और अब तो दरख़्तों की जड़ पर कुल्हाड़ा रख्खा है पस जो दरख़्त अच्छा फल नहीं लाता वो काटा और आग में डाला जाता है",
|
||||
"10": "लोगों ने उस से पूछा हम क्या करें",
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||||
"11": "उसने जवाब में उनसे कहा जिसके पास दो कुर्ते हों वो उसको जिसके पास न हो बाँट दे और जिसके पास खाना हो वो भी ऐसा ही करे",
|
||||
"12": "और महसूल लेने वाले भी बपतिस्मा लेने को आए और उससे पुछा ऐ उस्ताद हम क्या करें",
|
||||
"13": "उसने उनसे कहा जो तुम्हारे लिए मुक़र्रर है उससे ज़्यादा न लेना ",
|
||||
"14": "और सिपाहियों ने भी उससे पूछा हम क्या करें उसने उनसे कहा न किसी पर तुम ज़ुल्म करो और न किसी से नाहक़ कुछ लो और अपनी तनख़्वाह पर किफ़ायत करो",
|
||||
"15": "जब लोग इन्तिज़ार मे थे और सब अपने अपने दिल में युहन्ना के बारे में सोच रहे थे कि आया वो मसीह है या नहीं",
|
||||
"16": "तो युहन्ना ने उन से जवाब में कहा मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्मा देता हूँ मगर जो मुझ से ताक़तवर है वो आनेवाला है मैं उसकी जूती का फ़ीता खोलने के लायक़ नहीं वो तुम्हें रूहउलक़ुद्दूस और आग से बपतिस्मा देगा ",
|
||||
"17": "उसका सूप उसके हाथ में है ताकि वो अपने खलिहान को ख़ूब साफ़ करे और गेहूँ को अपने खत्ते में जमा करे मगर भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं",
|
||||
"18": "पस वो और बहुत सी नसीहत करके लोगों को ख़ुशख़बरी सूनाता रहा",
|
||||
"19": "लेकिन चौथाई मुल्क के हाकिम हेरोदेस ने अपने भाई फिलिप्पुस की बीवी हेरोदियास की वजह से और उन सब बुराईयों के बाइस जो हेरोदेस ने की थी युहन्ना से मलामत उठाकर",
|
||||
"20": "इन सब से बढ़कर ये भी किया कि उसको क़ैद में डाला ",
|
||||
"21": "जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया और ईसा भी बपतिस्मा पाकर दुआ कर रहा था तो ऐसा हुआ कि आसमान खुल गया ",
|
||||
"22": "और रूहउलक़ुद्दूस जिस्मानी सूरत में कबूतर की तरह उस पर नाज़िल हुआ और आसमान से ये आवाज़ आई तू मेरा प्यारा बेटा है तुझ से मैं ख़ुश हूँ ",
|
||||
"23": "जब ईसा ख़ुद तालीम देने लगा क़रीबन तीस बरस का था और जैसा कि समझा जाता था यूसुफ़ का बेटा था और वो एली का",
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||||
"24": "और वो मत्तात का और वो लावी का और वो मलकी का और वो यन्ना का और वो यूसुफ़ का ",
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||||
"25": "और वो मत्तितियाह का और वो आमूस का और नाहूम का और वो असलियाह का और वो नोगा का",
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||||
"26": "और वो मअत का और मतितियाह का और वो शिमई का और वो योसेख़ का और वो यहुदाह का",
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"27": "और वो युह्न्ना का और वो रोसा का और वो ज़रुब्बाबूल का और वो सियालतीएल का और वो नेरी का",
|
||||
"28": "और वो मलकि का और वो अद्दी का और वो क़ोसाम का और वो इल्मोदाम का और वो एर का",
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||||
"29": "और वो यशुअ का और वो इलीअज़र का और वो योरीम का और वो मतात का और वो लावी का ",
|
||||
"30": "और वो शमाऊन का और वो यहूदाह का और वो यूसुफ़ का और वो योनाम का और वो इलियाक़ीम का",
|
||||
"31": "और वो मलेआह का और वो मिन्नाह का और वो मत्तितियाह का और वो नातन का और वो दाऊद का ",
|
||||
"32": "और वो यस्सी का और वो ओबेद का और वो बोअज़ का और वो सल्मोन का और वो नह्सोन का",
|
||||
"33": "और वो अम्मीनदाब का और वो अदमीन का और वो अरनी का और वो हस्रोन का और वो फ़ारस का और वो यहूदाह का ",
|
||||
"34": "और वो याक़ूब का और वो इस्हाक़ का और वो इब्राहीम का और वो तारह का और वो नहूर का",
|
||||
"35": "और वो सरूज का और वो रऊ का और वो फ़लज का और वो इबर का और वो सिलह का",
|
||||
"36": "और वो क़ीनान का और वो अर्फ़क्सद का और वो सिम का और वो नूह का और वो लमक का",
|
||||
"37": "और वो मतूसिलह का और वो हनूक का और वो यारिद का और वो महललएल का और वो क़ीनान का ",
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||||
"38": "और वो अनूस का और वो सेत का और आदम ख़ुदा से था"
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}
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@ -0,0 +1,46 @@
|
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{
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"1": "फिर ईसा रूहउलकुद्दूस से भरा हुआ यरदन से लौटा और चालीस दिन तक रूह की हिदायत से वीराने में फिरता रहा",
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||||
"2": "और शैतान उसे आज़माता रहा उन दिनों में उसने कुछ न खाया जब वो दिन पुरे हो गए तो उसे भूख लगी",
|
||||
"3": "और शैतान ने उससे कहा अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो इस पत्थर से कह कि रोटी बन जाए",
|
||||
"4": "ईसा ने उसको जवाब दिया कलाम में लिखा है कि आदमी सिर्फ़ रोटी ही से जीता न रहेगा",
|
||||
"5": "और शैतान ने उसे ऊँचे पर ले जाकर दुनिया की सब सल्तनतें पल भर में दिखाईं ",
|
||||
"6": "और उससे कहा ये सारा इख़्तियार और उनकी शानओशौकत मैं तुझे दे दूँगा क्यूँकि ये मेरे सुपुर्द है और जिसको चाहता हूँ देता हूँ",
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||||
"7": "पस अगर तू मेरे आगे सज्दा करे तो ये सब तेरा होगा ",
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||||
"8": "ईसा ने जवाब में उससे कहा लिखा है कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा को सिज्दा कर और सिर्फ़ उसकी इबादत कर ",
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"9": "और वो उसे यरूशलीम में ले गया और हैकल के कंगूरे पर खड़ा करके उससे कहा अगर तू ख़ुदा का बेटा है तो अपने आपको यहाँ से नीचे गिरा दे",
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||||
"10": "क्यूँकि लिखा है कि वो तेरे बारे मे अपने फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि तेरी हिफाज़त करें",
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"11": "और ये भी कि वो तुझे हाथों पर उठा लेंगे काश की तेरे पाँव को पत्थर से ठेस लगे",
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"12": "ईसा ने जवाब में उससे कहा फ़रमाया गया है कि तू ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा की आज़माइश न कर",
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"13": "जब इब्लीस तमाम आज़माइशें कर चूका तो कुछ अर्से के लिए उससे जुदा हुआ",
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"14": "फिर ईसा पाक रूह की क़ुव्वत से भरा हुआ गलील को लौटा और आसपास में उसकी शोहरत फ़ैल गई",
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"15": "और वो उनके इबादतख़ानों में तालीम देता रहा और सब उसकी बड़ाई करते रहे ",
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"16": "और वो नासरत में आया जहाँ उसने परवरिश पाई थी और अपने दस्तूर के मुवाफ़िक़ सबत के दिन इबादतख़ाने में गया और पढ़ने को खड़ा हुआ",
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"17": "और यसाया नबी की किताब उसको दी गई और किताब खोलकर उसने वो वर्क़ खोला जहाँ ये लिखा था",
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"18": "ख़ुदावन्द का रूह मुझ पर है इसलिए कि उसने मुझे ग़रीबों को ख़ुशख़बरी देने के लिए मसह किया उसने मुझे भेजा है क़ैदियों को रिहाई और अन्धों को बीनाई पाने की ख़बर सूनाऊँ कुचले हुओं को आज़ाद करूँ",
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||||
"19": "और ख़ुदावन्द के सालएमक़बूल का ऐलान करूँ",
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"20": "फिर वो किताब बन्द करके और ख़ादिम को वापस देकर बैठ गया जितने इबादतख़ाने में थे सबकी आँखें उस पर लगी थीं",
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||||
"21": "वो उनसे कहने लगा आज ये लिखा हुआ तुम्हारे सामने पूरा हुआ",
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"22": "और सबने उस पर गवाही दी और उन पुर फ़ज़ल बातों पर जो उसके मुँह से निकली थी ताज्जुब करके कहने लगे क्या ये यूसुफ़ का बेटा नहीं ",
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"23": "उसने उनसे कहा तुम अलबता ये मसल मुझ पर कहोगे कि ऐ हकीम अपने आप को तो अच्छा कर जो कुछ हम ने सुना है कि कफ़रनहुम में किया गया यहाँ अपने वतन में भी कर ",
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"24": "और उसने कहा मैं तुम से सच कहता हूँ कि कोई नबी अपने वतन में मक़बूल नहीं होत्ता",
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"25": "और मैं तुम से कहता हूँ कि एलियाह के दिनों में जब साढ़े तीन बरस आसमान बन्द रहा यहाँ तक कि सारे मुल्क में सख़्त काल पड़ा बहुत सी बेवायें इस्राईल में थीं",
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||||
"26": "लेकिन एलियाह उनमें से किसी के पास न भेजा गया मगर मुल्कएसैदा के शहर सारपत में एक बेवा के पास ",
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"27": "और इलिशा नबी के वक़्त में इस्राईल के बीच बहुत से कोढ़ी थे लेकिन उनमे से कोई पाक साफ़ न किया गया मगर नामान सूरयानी ",
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||||
"28": "जितने इबादतख़ाने में थे इन बातों को सुनते ही ग़ुस्से से भर गए",
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"29": "और उठकर उस को बाहर निकाले और उस पहाड़ की चोटी पर ले गए जिस पर उनका शहर आबाद था ताकि उसको सिर के बल गिरा दें",
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"30": "मगर वो उनके बीच में से निकलकर चला गया ",
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"31": "फिर वो गलील के शहर कफ़रनहूम को गया और सबत के दिन उन्हें तालीम दे रहा था",
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||||
"32": "और लोग उसकी तालीम से हैरान थे क्यूँकि उसका कलाम इख़्तियार के साथ था ",
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||||
"33": "इबादतख़ाने में एक आदमी था जिसमें बदरूह थी वो बड़ी आवाज़ से चिल्ला उठा कि",
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||||
"34": "ऐ ईसा नासरी हमें तुझ से क्या काम क्या तू हमें हलाक करने आया है मैं तुझे जानता हूँ कि तू कौन है ख़ुदा का क़ुद्दूस है",
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||||
"35": "ईसा ने उसे झिड़क कर कहा चुप रह और उसमें से निकल जा इस पर बदरुह उसे बीच में पटक कर बग़ैर नुक़सान पहूँचाए उसमें से निकल गई",
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||||
"36": "और सब हैरान होकर आपस में कहने लगे ये कैसा कलाम है क्यूँकि वो इख़्तियार और क़ुदरत से नापाक रूहों को हुक्म देता है और वो निकल जाती हैं",
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||||
"37": "और आस पास में हर जगह उसकी धूम मच गई",
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||||
"38": "फिर वो इबादतख़ाने से उठकर शमाऊन के घर में दाख़िल हुआ और शमाऊन की सास जो बुख़ार मे पड़ी हुई थी और उन्होंने उस के लिए उससे अर्ज़ की",
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"39": "वो खड़ा होकर उसकी तरफ़ झुका और बुख़ार को झिड़का तो वो उतर गया वो उसी दम उठकर उनकी ख़िदमत करने लगी",
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||||
"40": "और सूरज के डूबते वक़्त वो सब लोग जिनके यहाँ तरहतरह की बीमारियों के मरीज़ थे उन्हें उसके पास लाए और उसने उनमें से हर एक पर हाथ रख कर उन्हें अच्छा किया",
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||||
"41": "और बदरूहें भी चिल्लाकर और ये कहकर कि तू ख़ुदा का बेटा है बहुतों में से निकल गई और वो उन्हें झिड़कता और बोलने न देता था क्यूँकि वो जानती थीं के ये मसीह है ",
|
||||
"42": "जब दिन हुआ तो वो निकल कर एक वीरान जगह में गया और भीड़ की भीड़ उसको ढूँढती हुई उसके पास आई और उसको रोकने लगी कि हमारे पास से न जा ",
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||||
"43": "उसने उनसे कहा मुझे और शहरों में भी ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाना ज़रूर है क्यूँकि मैं इसी लिए भेजा गया हूँ ",
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||||
"44": "और वो गलील के इबाद्तखानों में एलान करता रहा"
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}
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{
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"1": "जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती थी और ख़ुदा का कलाम सुनती थी और वो गनेसरत की झील के किनारे खड़ा था तो ऐसा हुआ कि",
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"2": "उसने झील के किनारे दो नाव लगी देखीं लेकिन मछली पकड़ने वाले उन पर से उतर कर जाल धो रहे थे",
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||||
"3": "और उसने उस नावों में से एक पर चढ़कर जो शमाऊन की थी उससे दरख़्वास्त की कि किनारे से ज़रा हटा ले चल और वो बैठकर लोगों को नाव पर से तालीम देने लगा",
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"4": "जब कलाम कर चुका तो शमाऊन से कहा गहरे में ले चल और तुम शिकार के लिए अपने जाल डालो ",
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"5": "शमाऊन ने जवाब में कहा ऐ ख़ुदावन्द हम ने रात भर मेहनत की और कुछ हाथ न आया मगर तेरे कहने से जाल डालता हूँ",
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"6": "ये किया और वो मछलियों का बड़ा घेर लाए और उनके जाल फ़टने लगे",
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"7": "और उन्होंने अपने साथियों को जो दूसरी नाव पर थे इशारा किया कि आओ हमारी मदद करो पस उन्होंने आकर दोनों नावे यहाँ तक भर दीं कि डूबने लगीं ",
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"8": "शमाऊन पतरस ये देखकर ईसा के पांव में गिरा और कहा ऐ ख़ुदावन्द मेरे पास से चला जा क्यूँकि मैं गुनहगार आदमी हूँ",
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"9": "क्यूँकि मछलियों के इस शिकार से जो उन्होंने किया वो और उसके सब साथी बहुत हैरान हुए",
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||||
"10": "और वैसे ही ज़ब्दी के बेटे याक़ूब और युहन्ना भी जो शमाऊन के साथी थे हैरान हुए ईसा ने शमाऊन से कहा ख़ौफ़ न कर अब से तू आदमियों का शिकार करेगा",
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||||
"11": "वो नावों को किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए",
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"12": "जब वो एक शहर में था तो देखो कोढ़ से भरा हुआ एक आदमी ईसा को देखकर मुँह के बल गिरा और उसकी मिन्नत करके कहने लगा ऐ ख़ुदावन्द अगर तू चाहे तो मुझे पाक साफ़ कर सकता है",
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||||
"13": "उसने हाथ बढ़ा कर उसे छुआ और कहा मैं चाहता हूँ तू पाक साफ़ हो जा और फ़ौरन उसका कोढ़ जाता रहा",
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||||
"14": "और उसने उसे ताकीद की किसी से न कहना बल्कि जाकर अपने आपको काहिन को दिखा और जैसा मूसा ने मुक़र्रर किया है अपने पाक साफ़ हो जाने के बारे मे गुज़रान ताकि उनके लिए गवाही हो",
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||||
"15": "लेकिन उसकी चर्चा ज़्यादा फ़ैली और बहुत से लोग जमा हुए कि उसकी सुनें और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाएँ",
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"16": "मगर वो जंगलों में अलग जाकर दुआ किया करता था ",
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"17": "और एक दिन ऐसा हुआ कि वो तालीम दे रहा था और फ़रीसी और शरा के मुअल्लिम वहाँ बैठे हुए थे जो गलील के हर गावँ और यहूदिया और यरूशलीम से आए थे और ख़ुदावन्द की क़ुदरत शिफ़ा बख़्शने को उसके साथ थी",
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||||
"18": "और देखो कोई मर्द एक आदमी को जो फ़ालिज का मारा था चारपाई पर लाए और कोशिश की कि उसे अन्दर लाकर उसके आगे रख्खें ",
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||||
"19": "और जब भीड़ की वजह से उसको अन्दर ले जाने की राह न पाई तो छत पर चढ़ कर खपरैल में से उसको खटोले समेत बीच में ईसा के सामने उतार दिया",
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||||
"20": "उसने उनका ईमान देखकर कहा ऐ आदमी तेरे गुनाह मुआफ़ हुए ",
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||||
"21": "इस पर फ़क़ीह और फ़रीसी सोचने लगे ये कौन है जो कुफ्र बकता है ख़ुदा के सिवा और कौन गुनाह मुआफ़ कर सकता है",
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||||
"22": "ईसा ने उनके ख़यालों को मालूम करके जवाब में उनसे कहा तुम अपने दिलों में क्या सोचते हो",
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"23": "आसान क्या है ये कहना कि तेरे गुनाह मुआफ़ हुए या ये कहना कि उठ और चल फिर",
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||||
"24": "लेकिन इसलिए कि तुम जानो कि इब्नएआदम को ज़मीन पर गुनाह मुआफ़ करने का इख़्तियार है उसने मफ़्लूज से कहा मैं तुझ से कहता हूँ उठ और अपनी चारपाई उठाकर अपने घर जा ",
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||||
"25": "वो उसी दम उनके सामने उठा और जिस पर पड़ा था उसे उठाकर ख़ुदा की तम्जीद करता हुआ अपने घर चला गया ",
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||||
"26": "वो सब के सब बहुत हैरान हुए और ख़ुदा की तम्जीद करने लगे और बहुत डर गए और कहने लगे आज हम ने अजीब बातें देखीं",
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||||
"27": "इन बातों के बाद वो बाहर गया और लावी नाम के एक महसूल लेनेवाले को महसूल की चौकी पर बैठे देखा और उससे कहा मेरे पीछे हो ले",
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||||
"28": "वो सब कुछ छोड़कर उठा और उसके पीछे हो लिया ",
|
||||
"29": "फिर लावी ने अपने घर में उसकी बड़ी ज़ियाफ़त की और महसूल लेनेवालों और औरों की जो उनके साथ खाना खाने बैठे थे बड़ी भीड़ थी",
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||||
"30": "और फ़रीसी और उनके आलिम उसके शागिर्दों से ये कहकर बुदबुदाने लगे तुम क्यूँ महसूल लेनेवालों और गुनाहगारों के साथ खातेपीते हो",
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||||
"31": "ईसा ने जवाब में उनसे कहा तन्दुरुस्तों को हकीम की ज़रूरत नहीं है बल्कि बीमारों को",
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||||
"32": "मैं रास्तबाज़ों को नहीं बल्कि गुनाहगारों को तौबा के लिए बुलाने आया हूँ",
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||||
"33": "और उन्होंने उससे कहा युहन्ना के शागिर्द अक्सर रोज़ा रखते और दुआएँ किया करते हैं और इसी तरह फ़रीसियों के भी मगर तेरे शागिर्द खाते पीते है",
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||||
"34": "ईसा ने उनसे कहा क्या तुम बरातियों से जब तक दूल्हा उनके साथ है रोज़ा रखवा सकते हो",
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"35": "मगर वो दिन आएँगे और जब दूल्हा उनसे जुदा किया जाएगा तब उन दिनों में वो रोज़ा रख्खेंगे ",
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||||
"36": "और उसने उनसे एक मिसाल भी कही कोई आदमी नई पोशाक में से फाड़कर पुरानी में पैवन्द नहीं लगातावरना नई भी फटेगी और उसका पैवन्द पुरानी में मेल भी न खाएगा",
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||||
"37": "और कोई शख़्स नई मय पूरानी मशकों में नहीं भरता नहीं तो नई मय मशकों को फाड़ कर ख़ुद भी बह जाएगी और मशकें भी बर्बाद हो जाएँगी",
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||||
"38": "बल्कि नई मय नयी मशकों में भरना चाहिए",
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"39": "और कोई आदमी पुरानी मय पीकर नई की ख़्वाहिश नहीं करता क्यूँकि कहता है कि पुरानी ही अच्छी है"
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}
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"1": "फिर सबत के दिन यूँ हुआ कि वो खेतों में से होकर जा रहा था और उसके शागिर्द बालें तोड़तोड़ कर और हाथों से मलमलकर खाते जाते थे",
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"2": "और फ़रीसियों में से कुछ लोग कहने लगे तुम वो काम क्यूँ करते हो जो सबत के दिन करना ठीक नहीं ",
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"3": "ईसा ने जवाब में उनसे कहा क्या तुम ने ये भी नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उसके साथी भूखे थे तो उसने क्या किया ",
|
||||
"4": "वो क्यूँकर ख़ुदा के घर में गया और नज्र की रोटियाँ लेकर खाई जिनको खाना कहिनों के सिवा और किसी को ठीक नहीं और अपने साथियों को भी दीं ",
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||||
"5": "फिर उसने उनसे कहा इब्नएआदम सबत का मालिक है ",
|
||||
"6": "और यूँ हुआ कि किसी और सबत को वो इबादतख़ाने में दाख़िल होकर तालीम देने लगा वहाँ एक आदमी था जिसका दाहिना हाथ सूख गया था ",
|
||||
"7": "और आलिम और फ़रीसी उसकी ताक में थे कि आया सबत के दिन अच्छा करता है या नहीं ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने का मौक़ा पाएँ",
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"8": "मगर उसको उनके ख़याल मालूम थे पस उसने उस आदमी से जिसका हाथ सूखा था कहा उठ और बीच में खड़ा हो",
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||||
"9": "ईसा ने उनसे कहा मैं तुम से ये पूछता हूँ कि आया सबत के दिन नेकी करना ठीक है या बदी करना जान बचाना या हलाक करना",
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||||
"10": "और उन सब पर नज़र करके उससे कहा अपना हाथ बढ़ा उसने बढ़ाया और उसका हाथ दुरुस्त हो गया",
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||||
"11": "वो आपे से बाहर होकर एक दूसरे से कहने लगे कि हम ईसा के साथ क्या करें",
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||||
"12": "और उन दिनों में ऐसा हुआ कि वो पहाड़ पर दुआ करने को निकला और ख़ुदा से दुआ करने में सारी रात गुज़ारी",
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||||
"13": "जब दिन हुआ तो उसने अपने शागिर्दों को पास बुलाकर उनमे से बारह चुन लिए और उनको रसूल का लक़ब दिया",
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||||
"14": "यानी शमाऊन जिसका नाम उसने पतरस भी रख्खा और अन्द्रियास और याक़ूब और युहन्ना और फ़िलिप्पुस और बरतुल्माई ",
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||||
"15": "और मत्ती और तोमा और हलफ़ई का बेटा याक़ूब और शमाऊन जो ज़ेलोतेस कहलाता था",
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||||
"16": "और याक़ूब का बेटा यहुदाह और यहुदाह इस्करियोती जो उसका पकड़वाने वाला हुआ",
|
||||
"17": "और वो उनके साथ उतर कर हमवार जगह पर खड़ा हुआ और उसके शागिर्दों की बड़ी जमाअत और लोगों की बड़ी भीड़ वहाँ थी जो सारे यहुदिया और यरूशलीम और सूर और सैदा के बहरी किनारे से उसकी सुनने और अपनी बीमारियों से शिफ़ा पाने के लिए उसके पास आई थी",
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||||
"18": "और जो बदरूहों से दुख पाते थे वो अच्छे किए गए ",
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||||
"19": "और सब लोग उसे छूने की कोशिश करते थे क्यूँकि क़ूव्वत उससे निकलती और सब को शिफ़ा बख़्शती थी",
|
||||
"20": "फिर उसने अपने शागिर्दों की तरफ़ नज़र करके कहा मुबारक हो तुम जो ग़रीब हो क्यूँकि ख़ुदा की बादशाही तुम्हारी है ",
|
||||
"21": "मुबारक हो तुम जो अब भूखे हो क्यूँकि आसूदा होगे मुबारक हो तुम जो अब रोते हो क्यूँकि हँसोगे ",
|
||||
"22": "जब इब्नएआदम की वजह से लोग तुम से दुश्मनी रख्खेंगे और तुम्हें निकाल देंगे और लानतान करेंगे ",
|
||||
"23": "उस दिन ख़ुश होना और ख़ुशी के मारे उछलना इसलिए कि देखो आसमान पर तुम्हारा अज्र बड़ा है क्यूँकि उनके बापदादा नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे",
|
||||
"24": "मगर अफ़सोस तुम पर जो दौलतमन्द हो क्यूँकि तुम अपनी तसल्ली पा चुके",
|
||||
"25": "अफ़सोस तुम पर जो अब सेर हो क्यूँकि भूखे होगे अफ़सोस तुम पर जो अब हँसते हो क्यूँकि मातम करोगे और रोओगे ",
|
||||
"26": "अफ़सोस तुम पर जब सब लोग तुम्हें अच्छा कहें क्यूँकि उनके बापदादा झूटे नबियों के साथ भी ऐसा ही किया करते थे",
|
||||
"27": "लेकिन मैं सुनने वालों से कहता हूँ कि अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो जो तुम से दुश्मनी रख्खें उसके साथ नेकी करो ",
|
||||
"28": "जो तुम पर लानत करें उनके लिए बरकत चाहो जो तुमसे नफरत करें उनके लिए दुआ करो",
|
||||
"29": "जो तेरे एक गाल पर तमाँचा मारे दूसरा भी उसकी तरफ़ फेर दे और जो तेरा चोग़ा ले उसको कुर्ता लेने से भी मना न कर",
|
||||
"30": "जो कोई तुझ से माँगे उसे दे और जो तेरा माल ले ले उससे तलब न कर",
|
||||
"31": "और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें तुम भी उनके साथ वैसा ही करो ",
|
||||
"32": "अगर तुम अपने मुहब्बत रखनेवालों ही से मुहब्बत रख्खो तो तुम्हारा क्या अहसान है क्यूँकि गुनाहगार भी अपने मुहब्बत रखनेवालों से मुहब्बत रखते हैं",
|
||||
"33": "और अगर तुम उन ही का भला करो जो तुम्हारा भला करें तो तुम्हारा क्या अहसान है क्यूँकि गुनहगार भी ऐसा ही करते हैं",
|
||||
"34": "और अगर तुम उन्हीं को क़र्ज़ दो जिनसे वसूल होने की उम्मीद रखते हो तो तुम्हारा क्या अहसान है गुनहगार भी गुनहगारों को क़र्ज़ देते हैं ताकि पूरा वसूल कर लें",
|
||||
"35": "मगर तुम अपने दुश्मनों से मुहब्बत रख्खो और नेकी करो और बग़ैर न उम्मीद हुए क़र्ज़ दो तो तुम्हारा अज्र बड़ा होगा और तुम ख़ुदा के बेटे ठहरोगे क्यूँकि वो नशुक्रों और बदों पर भी महरबान है",
|
||||
"36": "जैसा तुम्हारा आसमानी बाप रहीम है तुम भी रहम दिल हो",
|
||||
"37": "ऐबजोई ना करो तुम्हारी भी ऐबजोई न की जाएगी मुजरिम न ठहराओतुम भी मुजरिम ना ठहराये जाओगे इज्ज़त दो तुम भी इज्ज़त पाओगे",
|
||||
"38": "दिया करो तुम्हें भी दिया जाएगा अच्छा पैमाना दाबदाब कर और हिलाहिला कर और लबरेज़ करके तुम्हारे पल्ले में डालेंगे क्यूँकि जिस पैमाने से तुम नापते हो उसी से तुम्हारे लिए नापा जाएगा",
|
||||
"39": "और उसने उनसे एक मिसाल भी दी क्या अंधे को अँधा राह दिखा सकता है क्या दोनों गड्ढे में न गिरेंगे",
|
||||
"40": "शागिर्द अपने उस्ताद से बड़ा नहीं बल्कि हर एक जब कामिल हुआ तो अपने उस्ताद जैसा होगा ",
|
||||
"41": "तू क्यूँ अपने भाई की आँख के तिनके को देखता है और अपनी आँख के शहतीर पर ग़ौर नहीं करता ",
|
||||
"42": "और जब तू अपनी आँख के शहतीर को नहीं देखता तो अपने भाई से क्यूँकर कह सकता है कि भाई ला उस तिनके को जो तेरी आँख में है निकाल दूँ ऐ रियाकार पहले अपनी आँख में से तो शहतीर निकाल फिर उस तिनके को जो तेरे भाई की आँख में है अच्छी तरह देखकर निकाल सकेगा",
|
||||
"43": "क्यूँकि कोई अच्छा दरख्त नहीं जो बुरा फल लाए और न कोई बुरा दरख़्त है जो अच्छा फल लाए ",
|
||||
"44": "हर दरख़्त अपने फल से पहचाना जाता है क्यूँकि झाड़ियों से अंजीर नहीं तोड़ते और न झड़बेरी से अंगूर ",
|
||||
"45": "अच्छा आदमी अपने दिल के अच्छे ख़ज़ाने से अच्छी चीज़ें निकालता है और बुरा आदमी बुरे ख़ज़ाने से बुरी चीज़ें निकालता है क्यूँकि जो दिल में भरा है वही उसके मुँह पर आता है",
|
||||
"46": "जब तुम मेरे कहने पर अमल नहीं करते तो क्यूँ मुझे ख़ुदावन्द ख़ुदावन्द कहते हो",
|
||||
"47": "जो कोई मेरे पास आता और मेरी बातें सुनकर उन पर अमल करता है मैं तुम्हें बताता हूँ कि वो किसकी तरह है",
|
||||
"48": "वो उस आदमी की तरह है जिसने घर बनाते वक़्त ज़मीन गहरी खोदकर चट्टान पर बुनियाद डाली जब तूफ़ान आया और सैलाब उस घर से टकराया तो उसे हिला न सका क्यूँकि वो मज़बूत बना हुआ था ",
|
||||
"49": "लेकिन जो सुनकर अमल में नहीं लाता वो उस आदमी की तरह है जिसने ज़मीन पर घर को बेबुनियाद बनाया जब सैलाब उस पर ज़ोर से आया तो वो फ़ौरन गिर पड़ा और वो घर बिलकुल बर्बाद हुआ"
|
||||
}
|
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@ -0,0 +1,52 @@
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{
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||||
"1": "जब वो लोगों को अपनी सब बातें सुना चुका तो कफ़रनहूम में आया",
|
||||
"2": "और किसी सूबेदार का नौकर जो उसको प्यारा था बीमारी से मरने को था",
|
||||
"3": "उसने ईसा की ख़बर सुनकर यहूदियों के कई बुज़ुर्गों को उसके पास भेजा और उससे दरखास्त की कि आकर मेरे नौकर को अच्छा कर",
|
||||
"4": "वो ईसा के पास आए और उसकी बड़ी ख़ुशामद कर के कहने लगे वो इस लायक़ है कि तू उसकी ख़ातिर ये करे",
|
||||
"5": "क्यूँकि वो हमारी क़ौम से मुहब्बत रखता है और हमारे इबादतख़ाने को उसी ने बनवाया ",
|
||||
"6": "ईसा उनके साथ चला मगर जब वो घर के क़रीब पहुँचा तो सूबेदार ने कुछ दोस्तों के ज़रिये उसे ये कहला भेजा ऐ ख़ुदावन्द तक्लीफ़ न कर क्यूँकि मैं इस लायक़ नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए",
|
||||
"7": "इसी वजह से मैंने अपने आप को भी तेरे पास आने के लायक़ न समझा बलकि ज़बान से कह दे तो मेरा ख़ादिम शिफ़ा पाएगा",
|
||||
"8": "क्यूँकि मैं भी दूसरे के ताबे में हूँ और सिपाही मेरे मातहत हैं जब एक से कहता हूँ कि जा वो जाता है और दूसरे से कहता हूं आ तो वो आता है और अपने नौकर से कि ये कर तो वो करता है",
|
||||
"9": "ईसा ने ये सुनकर उस पर ताज्जुब किया और मुड़ कर उस भीड़ से जो उसके पीछे आती थी कहा मैं तुम से कहता हूँ कि मैंने ऐसा ईमान इस्राईल में भी नहीं पाया ",
|
||||
"10": "और भेजे हुए लोगों ने घर में वापस आकर उस नौकर को तन्दुरुस्त पाया ",
|
||||
"11": "थोड़े अरसे के बाद ऐसा हुआ कि वो नाईंन नाम एक शहर को गया उसके शागिर्द और बहुत से लोग उसके हमराह थे",
|
||||
"12": "जब वो शहर के फाटक के नज़दीक पहुँचा तो देखो एक मुर्दे को बाहर लिए जाते थे वो अपनी माँ का इकलौता बेटा था और वो बेवा थी और शहर के बहुतरे लोग उसके साथ थे ",
|
||||
"13": "उसे देखकर ख़ुदावन्द को तरस आया और उससे कहा मत रो ",
|
||||
"14": "फिर उसने पास आकर जनाज़े को छुआ और उठाने वाले खड़े हो गए और उसने कहा ऐ जवान मैं तुझ से कहता हूँ उठ ",
|
||||
"15": "वो मुर्दा उठ बैठा और बोलने लगा और उसने उसे उसकी माँ को सुपुर्द किया",
|
||||
"16": "और सब पर ख़ौफ़ छा गया और वो ख़ुदा की तम्जीद करके कहने लगे एक बड़ा नबी हम में आया हुआ है ख़ुदा ने अपनी उम्मत पर तवज्जुह की है",
|
||||
"17": "और उसकी निस्बत ये ख़बर सारे यहूदिया और तमाम आस पास में फैल गई",
|
||||
"18": "और युहन्ना को उसके शागिर्दों ने इन सब बातों की ख़बर दी",
|
||||
"19": "इस पर युहन्ना ने अपने शागिर्दों में से दो को बुला कर ख़ुदावन्द के पास ये पूछने को भेजाकि आने वाला तू ही है या हम किसी दूसरे की राह देखें",
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||||
"20": "उन्होंने उसके पास आकर कहा युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने हमें तेरे पास ये पूछने को भेजा है कि आने वाला तू ही है या हम दूसरे की राह देखें",
|
||||
"21": "उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों और आफ़तों और बदरूहों से नजात बख़्शी और बहुत से अन्धों को बीनाई अता की",
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"22": "उसने जवाब में उनसे कहा जो कुछ तुम ने देखा और सुना है जाकर युहन्ना से बयान कर दो कि अन्धे देखते लंगड़े चलते फिरते हैं कोढ़ी पाक साफ़ किए जाते हैं बहरे सुनते हैं मुर्दे ज़िन्दा किए जाते हैं ग़रीबों को ख़ुशख़बरी सुनाई जाती है",
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"23": "मुबारक है वो जो मेरी वजह से ठोकर न खाए ",
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"24": "जब युहन्ना के क़ासिद चले गए तो ईसा युहन्ना के हक़ में कहने लगा तुम वीराने में क्या देखने गए थे क्या हवा से हिलते हुए सरकंडे को",
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"25": "तो फिर क्या देखने गए थे क्या महीन कपड़े पहने हुए शख़्स को देखो जो चमकदार पोशाक पहनते और ऐशओइशरत में रहते हैं वो बादशाही महलों में होते हैं",
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"26": "तो फिर तुम क्या देखने गए थे क्या एक नबी हाँ मैं तुम से कहता हूँ बल्कि नबी से बड़े को",
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"27": "ये वही है जिसके बारे मे लिखा है देख मैं अपना पैग़म्बर तेरे आगे भेजता हूँ जो तेरी राह तेरे आगे तैयार करेगा",
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"28": "मैं तुम से कहता हूँ कि जो औरतों से पैदा हुए है उनमें युहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं लेकिन जो ख़ुदा की बादशाही में छोटा है वो उससे बड़ा है ",
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"29": "और सब आम लोगों ने जब सुना तो उन्होंने और महसूल लेने वालों ने भी युहन्ना का बपतिस्मा लेकर ख़ुदा को रास्तबाज़ मान लिया",
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"30": "मगर फरीसियों और शरा के आलिमों ने उससे बपतिस्मा न लेकर ख़ुदा के इरादे को अपनी निस्बत बातिल कर दिया",
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"31": "पस इस ज़माने के आदमियों को मैं किससे मिसाल दूँ वो किसकी तरह हैं",
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"32": "उन लड़कों की तरह हैं जो बाज़ार में बैठे हुए एक दूसरे को पुकार कर कहते हैं कि हम ने तुम्हारे लिए बांसली बजाई और तुम न नाचे हम ने मातम किया और तुम न रोए",
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"33": "क्यूँकि युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला न तो रोटी खाता हुआ आया न मय पीता हुआ और तुम कहते हो कि उसमें बदरूह है",
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"34": "इब्नएआदम खाता पीता आया और तुम कहते हो कि देखो खाऊ और शराबी आदमी महसूल लेने वालों और गुनाहगारों का यार ",
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"35": "लेकिन हिक्मत अपने सब लड़कों की तरफ़ से रास्त साबित हुई",
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"36": "फिर किसी फ़रीसी ने उससे दरख़्वास्त की कि मेरे साथ खाना खा पस वो उस फ़रीसी के घर जाकर खाना खाने बैठा ",
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"37": "तो देखो एक बदचलन औरत जो उस शहर की थी ये जानकर कि वो उस फ़रीसी के घर में खाना खाने बैठा है संगएमरमर के इत्रदान में इत्र लाई ",
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"38": "और उसके पाँव के पास रोती हुई पीछे खड़े होकर उसके पाँव आँसुओं से भिगोने लगी और अपने सिर के बालों से उनको पोंछा और उसके पाँव बहुत चूमे और उन पर इत्र डाला ",
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"39": "उसकी दावत करने वाला फ़रीसी ये देख कर अपने जी में कहने लगा अगर ये शख़्स नबी होता तो जानता कि जो उसे छूती है वो कौन और कैसी औरत है क्यूँकि बदचलन है ",
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"40": "ईसाने जवाब में उससे कहा ऐ शमाऊन मुझे तुझ से कुछ कहना है उसने कहा ऐ उस्ताद कह ",
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"41": "किसी साहूकार के दो क़र्ज़दार थे एक पाँच सौ दीनार का दूसरा पचास का",
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"42": "जब उनके पास अदा करने को कुछ न रहा तो उसने दोनों को बख़्श दिया पस उनमें से कौन उससे ज़्यादा मुहब्बत रख्खेगा",
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"43": "शमाऊन ने जवाब में कहा मेरी समझ में वो जिसे उसने ज़्यादा बख़्शा उसने उससे कहा तू ने ठीक फ़ैसला किया है",
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"44": "और उस औरत की तरफ़ फिर कर उसने शमाऊन से कहा क्या तू इस औरत को देखता है मैं तेरे घर में आया तू ने मेरे पाँव धोने को पानी न दिया मगर इसने मेरे पावँ आँसुओं से भिगो दिए और अपने बालों से पोंछे",
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"45": "तू ने मुझ को बोसा न दिया मगर इसने जब से मैं आया हूँ मेरे पावँ चूमना न छोड़ा",
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"46": "तू ने मेरे सिर में तेल न डाला मगर इसने मेरे पाँव पर इत्र डाला है",
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"47": "इसी लिए मैं तुझ से कहता हूँ कि इसके गुनाह जो बहुत थे मुआफ़ हुए क्यूँकि इसने बहुत मुहब्बत की मगर जिसके थोड़े गुनाह मुआफ़ हुए वो थोड़ी मुहब्बत करता है",
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||||
"48": "और उस औरत से कहा तेरे गुनाह मुआफ़ हुए ",
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"49": "इसी पर वो जो उसके साथ खाना खाने बैठे थे अपने जी में कहने लगे ये कौन है जो गुनाह भी मुआफ़ करता है",
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"50": "मगर उसने औरत से कहा तेरे ईमान ने तुझे बचा लिया सलामत चली जा"
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}
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"1": "थोड़े अरसे के बाद यूँ हुआ कि वो ऐलान करता और ख़ुदा की बादशाही की ख़ुशख़बरी सुनाता हुआ शहरशहर और गावँगावँ फिरने लगा और वो बारह उसके साथ थे",
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"2": "और कुछ औरतें जिन्होंने बुरी रूहों और बिमारियों से शिफ़ा पाई थी यानी मरियम जो मगद्लीनी कहलाती थी जिसमें से सात बदरुहें निकली थीं",
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"3": "और युहन्ना हेरोदेस के दीवान ख़ूज़ा की बीवी और सूसन्ना और बहुत सी और औरतें भी थीं जो अपने माल से उनकी ख़िदमत करती थी",
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"4": "फिर जब बड़ी भीड़ उसके पास जमा हुई और शहर के लोग उसके पास चले आते थे उसने मिसाल में कहा ",
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"5": "एक बोने वाला अपने बीज बोने निकला और बोते वक़्त कुछ राह के किनारे गिरा और रौंदा गया और हवा के परिन्दों ने उसे चुग लिया",
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"6": "और कुछ चट्टान पर गिरा और उग कर सूख गया इसलिए कि उसको नमी न पहुँची",
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"7": "और कुछ झाड़ियों में गिरा और झाड़ियों ने साथसाथ बढ़कर उसे दबा लिया",
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"8": "और कुछ अच्छी ज़मीन में गिरा और उग कर सौ गुना फल लाया ये कह कर उसने पुकारा जिसके सुनने के कान हों वो सुन ले",
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"9": "उसके शागिर्दों ने उससे पूछा कि ये मिसाल क्या है ",
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"10": "उसने कहा तुम को ख़ुदा की बादशाही के राज़ों की समझ दी गई है मगर औरों को मिसाल में सुनाया जाता है ताकि देखते हुए न देखें और सुनते हुए न समझें ",
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"11": "वो मिसाल ये है कि बीज ख़ुदा का कलाम है ",
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"12": "राह के किनारे के वो हैं जिन्होंने सुना फिर शैतान आकर कलाम को उनके दिल से छीन ले जाता है ऐसा न हो कि वो ईमान लाकर नजात पाएँ",
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"13": "और चट्टान पर वो हैं जो सुनकर कलाम को ख़ुशी से क़ुबूल कर लेते हैं लेकिन जड़ नहीं पकड़ते मगर कुछ अरसे तक ईमान रख कर आज़माइश के वक़्त मुड़ जाते हैं",
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||||
"14": "और जो झाड़ियों में पड़ा उससे वो लोग मुराद हैं जिन्होंने सुना लेकिन होते होते इस ज़िन्दगी की फ़िक्रों और दौलत और ऐशओइशरत में फँस जाते हैं और उनका फल पकता नहीं",
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||||
"15": "मगर अच्छी ज़मीन के वो हैं जो कलाम को सुनकर उम्दा और नेक दिल में सम्भाले रहते है और सब्र से फल लाते हैं",
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"16": "कोई शख़्स चराग़ जला कर बर्तन से नहीं छिपाता न पलंग के नीचे रखता है बल्कि चिराग़दान पर रखता है ताकि अन्दर आने वालों को रौशनी दिखाई दे ",
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"17": "क्यूँकि कोई चीज़ छिपी नहीं जो ज़ाहिर न हो जाएगी और न कोई ऐसी छिपी बात है जो माँलूम न होगी और सामने न आए",
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"18": "पस ख़बरदार रहो कि तुम किस तरह सुनते हो क्यूँकि जिसके पास नहीं है वो भी ले लिया जाएगा जो अपना समझता है ",
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"19": "फिर उसकी माँ और उसके भाई उसके पास आए मगर भीड़ की वजह से उस तक न पहुँच सके ",
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"20": "और उसे ख़बर दी गई तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझ से मिलना चाहते हैं",
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"21": "उसने जवाब में उनसे कहा मेरी माँ और मेरे भाई तो ये हैं जो ख़ुदा का कलाम सुनते और उस पर अमल करते हैं",
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"22": "फिर एक दिन ऐसा हुआ कि वो और उसके शागिर्द नाव में सवार हुए उसने उनसे कहा आओ झील के पार चलें वो सब रवाना हुए",
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"23": "मगर जब नाव चली जाती थी तो वो सो गया और झील पर बड़ी आँधी आई और नाव पानी से भरी जाती थी और वो ख़तरे में थे",
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||||
"24": "उन्होंने पास आकर उसे जगाया और कहा साहेब साहेब हम हलाक हुए जाते हैं उसने उठकर हवा को और पानी के ज़ोरशोर को झिड़का और दोनों थम गए और अम्न हो गया ",
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||||
"25": "उसने उनसे कहा तुम्हारा ईमान कहाँ गया वो डर गए और ताअज्जुब करके आपस में कहने लगे ये कौन है ये तो हवा और पानी को हुक्म देता है और वो उसकी मानते हैं",
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"26": "फिर वो गिरासीनियों के इलाक़े में जा पहुँचे जो उस पार गलील के सामने है ",
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"27": "जब वो किनारे पर उतरा तो शहर का एक मर्द उसे मिला जिसमें बदरूहें थीं और उसने बड़ी मुद्दत से कपड़े न पहने थे और वो घर में नहीं बल्कि क़ब्रों में रहा करता था ",
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"28": "वो ईसा को देख कर चिल्लाया और उसके आगे गिर कर बुलन्द आवाज़ से कहने लगा ऐ ईसा ख़ुदा के बेटे मुझे तुझ से क्या काम मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मुझे अजाब में न डाल",
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||||
"29": "क्यूँकि वो उस बदरूह को हुक्म देता था कि इस आदमी में से निकल जा इसलिए कि उसने उसको अक्सर पकड़ा था और हर चन्द लोग उसे ज़ंजीरो और बेड़ियों से जकड़ कर क़ाबू में रखते थे तो भी वो जंजीरों को तोड़ डालता था और बदरुह उसको वीरानों में भगाए फिरती थी",
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||||
"30": "ईसा ने उससे पूछा तेरा क्या नाम है उसने कहा लश्कर क्यूँकि उसमें बहुत सी बदरुहें थीं",
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||||
"31": "और वो उसकी मिन्नत करने लगीं कि हमें गहरे गड्ढे में जाने का हुक्म न दे",
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||||
"32": "वहाँ पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा ग़ोल चर रहा था उन्होंने उसकी मिन्नत की कि हमें उनके अन्दर जाने दे उसने उन्हें जाने दिया",
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||||
"33": "और बदरुहें उस आदमी में से निकल कर सूअरों के अन्दर गईं और ग़ोल किनारे पर से झपट कर झील में जा पड़ा और डूब मरा",
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||||
"34": "ये माजरा देख कर चराने वाले भागे और जाकर शहर और गांव में ख़बर दी",
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||||
"35": "लोग उस माजरे को देखने को निकले और ईसा के पास आकर उस आदमी को जिसमें से बदरुहें निकली थीं कपड़े पहने और होश में ईसा के पाँव के पास बैठे पाया और डर गए",
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||||
"36": "और देखने वालों ने उनको ख़बर दी कि जिसमें बदरुहें थीं वो किस तरह अच्छा हुआ",
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||||
"37": "गिरासीनियों के आस पास के सब लोगों ने उससे दरख़्वास्त की कि हमारे पास से चला जा क्यूँकि उन पर बड़ी दहशत छा गई थी पस वो नाव में बैठकर वापस गया",
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"38": "लेकिन जिस शख़्स में से बदरुहें निकल गई थीं वो उसकी मिन्नत करके कहने लगा कि मुझे अपने साथ रहने दे मगर ईसा ने उसे रुख़्सत करके कहा",
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||||
"39": "अपने घर को लौट कर लोगों से बयान कर कि ख़ुदा ने तेरे लिए कैसे बड़े काम किए हैं वो रवाना होकर तमाम शहर में चर्चा करने लगा कि ईसा ने मेरे लिए कैसे बड़े काम किए ",
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||||
"40": "जब ईसा वापस आ रहा था तो लोग उससे ख़ुशी के साथ मिले क्यूँकि सब उसकी राह देखते थे ",
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||||
"41": "और देखो याईर नाम एक शख़्स जो इबादतख़ाने का सरदार था आया और ईसा के क़दमों पे गिरकर उससे मिन्नत की कि मेरे घर चल ",
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||||
"42": "क्यूँकि उसकी इकलौती बेटी जो तक़रीबन बारह बरस की थी मरने को थी और जब वो जा रहा था तो लोग उस पर गिरे पड़ते थे",
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||||
"43": "और एक औरत ने जिसके बारह बरस से ख़ून जारी था और अपना सारा माल हकीमों पर ख़र्च कर चुकी थी और किसी के हाथ से अच्छी न हो सकी थी",
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"44": "उसके पीछे आकर उसकी पोशाक का किनारा हुआ और उसी दम उसका ख़ून बहना बन्द हो गया",
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||||
"45": "इस पर ईसा ने कहा वो कौन है जिसने मुझे छुआ जब सब इन्कार करने लगे तो पतरस और उसके साथियों ने कहा ऐ साहेब लोग तुझे दबाते और तुझ पर गिरे पड़ते हैं",
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||||
"46": "मगर ईसा ने कहा किसी ने मुझे छुआ तो है क्यूँकि मैंने मालूम किया कि क़ुव्वत मुझ से निकली है",
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||||
"47": "जब उस औरत ने देखा कि मैं छिप नहीं सकती तो वो काँपती हुई आई और उसके आगे गिरकर सब लोगों के सामने बयान किया कि मैंने किस वजह से तुझे छुआ और किस तरह उसी दम शिफ़ा पा गई",
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"48": "उसने उससे कहा बेटी तेरे ईमान ने तुझे अच्छा किया है सलामत चली जा ",
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||||
"49": "वो ये कह ही रहा था कि इबादतख़ाने के सरदार के यहाँ से किसी ने आकर कहा तेरी बेटी मर गई उस्ताद को तकलीफ़ न दे",
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||||
"50": "ईसा ने सुनकर जवाब दिया ख़ौफ़ न कर फ़क़त ऐतिक़ाद रख वो बच जाएगी",
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"51": "और घर में पहुँचकर पतरस युहन्ना और याक़ूब और लड़की के माँ बाप के सिवा किसी को अपने साथ अन्दर न जाने दिया",
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"52": "और सब उसके लिए रो पीट रहे थे मगर उसने कहा मातम न करो वो मर नहीं गई बल्कि सोती है",
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"53": "वो उस पर हँसने लगे क्यूँकि जानते थे कि वो मर गई है",
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"54": "मगर उसने उसका हाथ पकड़ा और पुकार कर कहा ऐ लड़की उठ ",
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||||
"55": "उसकी रूह वापस आई और वो उसी दम उठी फिर ईसा ने हुक्म दिया लड़की को कुछ खाने को दिया जाए ",
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"56": "माँ बाप हैरान हुए उसने उन्हें ताकीद की कि ये माजरा किसी से न कहना"
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"1": "फिर उसने उन बारह को बुलाकर उन्हें सब बदरुहों पर इख़्तियार बख़्शा और बीमारियों को दूर करने की क़ुदरत दी",
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||||
"2": "और उन्हें ख़ुदा की बादशाही का ऐलान करने और बीमारों को अच्छा करने के लिए भेजा ",
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||||
"3": "और उनसे कहा राह के लिए कुछ न लेना न लाठी न झोली न रोटी न रूपये न दो दो कुरते रखना ",
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||||
"4": "और जिस घर में दाख़िल हो वहीं रहना और वहीं से रवाना होना",
|
||||
"5": "और जिस शहर के लोग तुम्हे क़ुबूल ना करें उस शहर से निकलते वक़्त अपने पावोँ की धूल झाड़ देना ताकि उन पर गवाही हो",
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||||
"6": "पस वो रवाना होकर गाँव गाँव ख़ुशख़बरी सुनाते और हर जगह शिफ़ा देते फिरे ",
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||||
"7": "चौथाई मुल्क का हाकिम हेरोदेस सब अहवाल सुन कर घबरा गया इसलिए कि कुछ ये कहते थे कि युहन्ना मुर्दों मे से जी उठा है",
|
||||
"8": "और कुछ ये कि एलियाह ज़ाहिर हुआ और कुछ ये कि क़दीम नबियों मे से कोई जी उठा है",
|
||||
"9": "मगर हेरोदेस ने कहा युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवा दिया अब ये कौन जिसके बारे मे ऐसी बातें सुनता हूँ पस उसे देखने की कोशिश में रहा ",
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||||
"10": "फिर रसूलों ने जो कुछ किया था लौटकर उससे बयान किया और वो उनको अलग लेकर बैतसैदा नाम एक शहर को चला गया",
|
||||
"11": "ये जानकर भीड़ उसके पीछे गई और वो ख़ुशी के साथ उनसे मिला और उनसे ख़ुदा की बादशाही की बातें करने लगा और जो शिफ़ा पाने के मुहताज थे उन्हें शिफ़ा बख़्शी",
|
||||
"12": "जब दिन ढलने लगा तो उन बारह ने आकर उससे कहा भीड़ को रुख़्सत कर के चारों तरफ़ के गावँ और बस्तियों में जा टिकें और खाने का इन्तिज़ाम करें क्यूँकि हम यहाँ वीरान जगह में हैं",
|
||||
"13": "उसने उनसे कहा तुम ही उन्हें खाने को दो उन्होंने कहा हमारे पास सिर्फ़ पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ है मगर हाँ हम जा जाकर इन सब लोगों के लिए खाना मोल ले आएँ",
|
||||
"14": "क्यूँकि वो पाँच हज़ार मर्द के क़रीब थे उसने अपने शागिर्दों से कहा उनको तक़रीबन पचासपचास की क़तारों में बिठाओ",
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||||
"15": "उन्होंने उसी तरह किया और सब को बिठाया ",
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||||
"16": "फिर उसने वो पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ लीं और आसमान की तरफ़ देख कर उन पर बरकत बख़्शी और तोड़कर अपने शागिर्दों को देता गया कि लोगों के आगे रख्खें",
|
||||
"17": "उन्होंने खाया और सब सेर हो गए और उनके बचे हुए बे इस्तेमाल खाने की बारह टोकरियाँ उठाई गईं",
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||||
"18": "जब वो तन्हाई में दुआ कर रहा था और शागिर्द उसके पास थे तो ऐसा हुआ कि उसने उनसे पूछा लोग मुझे क्या कहते हैं ",
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||||
"19": "उन्होंने जवाब में कहा युहन्ना बपतिस्मा देनेवाला और कुछ एलियाह कहते हैं और कुछ ये कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है",
|
||||
"20": "उसने उनसे कहा लेकिन तुम मुझे क्या कहते हो पतरस ने जवाब में कहा ख़ुदावन्द का मसीह ",
|
||||
"21": "उसने उनको हिदायत करके हुक्म दिया कि ये किसी से न कहना",
|
||||
"22": "और कहा ज़रूर है इब्नएआदम बहुत दुख उठाए और बुज़ुर्ग और सरदार काहिन और आलिम उसे रद्द करें और वो क़त्ल किया जाए और तीसरे दिन जी उठे",
|
||||
"23": "और उसने सब से कहा अगर कोई मेरे पीछे आना चाहे तो अपने आप से इनकार करे और हर रोज़ अपनी सलीब उठाए और मेरे पीछे हो ले",
|
||||
"24": "क्यूँकि जो कोई अपनी जान बचाना चाहे वो उसे खोएगा और जो कोई मेरी ख़ातिर अपनी जान खोए वही उसे बचाएगा ",
|
||||
"25": "और आदमी अगर सारी दुनिया को हासिल करे और अपनी जान को खो दे या नुक़सान उठाए तो उसे क्या फ़ायदा होगा",
|
||||
"26": "क्यूँकि जो कोई मुझ से और मेरी बातों से शरमाएगा इब्नएआदम भी जब अपने और अपने बाप के और पाक फ़रिश्तों के जलाल में आएगा तो उस से शरमाएगा ",
|
||||
"27": "लेकिन मैं तुम से सच कहता हूँ कि उनमें से जो यहाँ खड़े हैं कुछ ऐसे हैं कि जब तक ख़ुदा की बादशाही को देख न लें मौत का मज़ा हरगिज़ न चखेंगें",
|
||||
"28": "फिर इन बातों के कोई आठ रोज़ बाद ऐसा हुआ कि वो पतरस और युहन्ना और याक़ूब को साथ लेकर पहाड़ पर दुआ करने गया ",
|
||||
"29": "जब वो दुआ कर रहा था तो ऐसा हुआ कि उसके चेहरे की सूरत बदल गई और उसकी पोशाक सफ़ेद बर्राक़ हो गई",
|
||||
"30": "और देखो दो शख़्स यानी मूसा और एलियाह उससे बातें कर रहे थे ",
|
||||
"31": "ये जलाल में दिखाई दिए और उसके इन्तक़ाल का ज़िक्र करते थे जो यरूशीलम में वाक़े होने को था",
|
||||
"32": "मगर पतरस और उसके साथी नींद में पड़े थे और जब अच्छी तरह जागे तो उसके जलाल को और उन दो शख़्शों को देखा जो उसके साथ खड़े थे",
|
||||
"33": "जब वो उससे जुदा होने लगे तो ऐसा हुआ कि पतरस ने ईसा से कहा ऐ उस्ताद हमारा यहाँ रहना अच्छा है पस हम तीन डेरे बनाएँ एक तेरे लिए एक मूसा के लिए और एक एलियाह के लिए लेकिन वो जानता न था कि क्या कहता है",
|
||||
"34": "वो ये कहता ही था कि बादल ने आकर उन पर साया कर लिया और जब वो बादल में घिरने लगे तो डर गए",
|
||||
"35": "और बादल में से एक आवाज़ आई ये मेरा चुना हुआ बेटा है इसकी सुनो ",
|
||||
"36": "ये आवाज़ आते ही ईसा अकेला दिखाई दिया और वो चुप रहे और जो बातें देखी थीं उन दिनों में किसी को उनकी कुछ ख़बर न दी",
|
||||
"37": "दूसरे दिन जब वो पहाड़ से उतरे थे तो ऐसा हुआ कि एक बड़ी भीड़ उससे आ मिली",
|
||||
"38": "और देखो एक आदमी ने भीड़ में से चिल्लाकर कहा ऐ उस्ताद मैं तेरी मिन्नत करता हूँ कि मेरे बेटे पर नज़र करक्यूँकि वो मेरा इकलौता है",
|
||||
"39": "और देखो एक रूह उसे पकड़ लेती है और वो यकायक चीख़ उठता है और उसको ऐसा मरोड़ती है कि क़फ भर लाता है और उसको कुचल कर मुश्किल से छोड़ती है",
|
||||
"40": "मैंने तेरे शागिर्दों की मिन्नत की कि उसे निकाल दें लेकिन वो न निकाल सके",
|
||||
"41": "ईसा ने जवाब में कहा ऐ कम ईमान वालों मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम्हारी बर्दाश्त करूँगा अपने बेटे को ले आ",
|
||||
"42": "वो आता ही था कि बदरूह ने उसे पटक कर मरोड़ा और ईसा ने उस नापाक रूह को झिड़का और लड़के को अच्छा करके उसके बाप को दे दिया",
|
||||
"43": "और सब लोग ख़ुदा की शान देखकर हैरान हुए लेकिन जिस वक़्त सब लोग उन सब कामों पर जो वो करता था ताज्जुब कर रहे थे उसने अपने शागिर्दों से कहा",
|
||||
"44": "तुम्हारे कानों में ये बातें पड़ी रहें क्यूँकि इब्नएआदम आदमियों के हवाले किए जाने को है",
|
||||
"45": "लेकिन वो इस बात को समझते न थे बल्कि ये उनसे छिपाई गई ताकि उसे मालूम न करें और इस बात के बारे मे उससे पूछते हुए डरते थे ",
|
||||
"46": "फिर उनमें ये बहस शुरू हुई कि हम में से बड़ा कौन है ",
|
||||
"47": "लेकिन ईसा ने उनके दिलों का ख़याल मालूम करके एक बच्चे को लिया और अपने पास खड़ा करके उनसे कहा",
|
||||
"48": "जो कोई इस बच्चे को मेरे नाम से क़ुबूल करता है वो मुझे क़ुबूल करता है और जो मुझे क़ुबूल करता है वो मेरे भेजनेवाले को क़ुबूल करता है क्यूँकि जो तुम में सब से छोटा है वही बड़ा है ",
|
||||
"49": "युहन्ना ने जवाब में कहा ऐ उस्ताद हम ने एक शख़्स को तेरे नाम से बदरूह निकालते देखा और उसको मना करने लगे क्यूँकि वो हमारे साथ तेरी पैरवी नही करता",
|
||||
"50": "लेकिन ईसा ने उससे कहा उसे मना न करना क्यूँकि जो तुम्हारे खिलाफ़ नहीं वो तुम्हारी तरफ़ है ",
|
||||
"51": "जब वो दिन नज़दीक आए कि वो ऊपर उठाया जाए तो ऐसा हुआ कि उसने यरूशलीम जाने को कमर बाँधी",
|
||||
"52": "और आगे क़ासिद भेजे वो जाकर सामरियों के एक गावँ में दाख़िल हुए ताकि उसके लिए तैयारी करें",
|
||||
"53": "लेकिन उन्होंने उसको टिकने न दिया क्यूँकि उसका रुख यरूशलीम की तरफ़ था ",
|
||||
"54": "ये देखकर उसके शागिर्द याक़ूब और युहन्ना ने कहा ऐ ख़ुदावन्द क्या तू चाहता है कि हम हुक्म दें कि आसमान से आग नाज़िल होकर उन्हें भस्म कर दे जैसा एलियाह ने किया",
|
||||
"55": "मगर उसने फिरकर उन्हें झिड़का और कहा तुम नहीं जानते कि तुम कैसी रूह के हो क्यूँकि इब्नएआदम लोगों की जान बर्बाद करने नहीं बल्कि बचाने आया है",
|
||||
"56": "फिर वो किसी और गावँ में चले गए",
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||||
"57": "जब वो राह में चले जाते थे तो किसी ने उससे कहा जहाँ कहीं तू जाए मैं तेरे पीछे चलूँगा",
|
||||
"58": "ईसा ने उससे कहा लोमड़ियों के भट्ट होते हैं और हवा के परिन्दों के घोंसले मगर इब्नएआदम के लिए सिर रखने की भी जगह नहीं",
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||||
"59": "फिर उसने दूसरे से कहा ऐ ख़ुदावन्द मुझे इजाज़त दे कि पहले जाकर अपने बाप को दफ़्न करूँ",
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"60": "उसने उससे कहा मुर्दों को अपने मुर्दे दफ्न करने दे लेकिन तू जाकर ख़ुदा की बादशाही की ख़बर फैला ",
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"61": "एक और ने भी कहाऐ ख़ुदावन्द मैं तेरे पीछे चलूँगा लेकिन पहले मुझे इजाज़त दे कि अपने घर वालों से रुख़्सत हो आऊँ",
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"62": "ईसा ने उससे कहा जो कोई अपना हाथ हल पर रख कर पीछे देखता है वो ख़ुदा की बादशाही के लायक़ नहीं"
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