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"content": "1 पौलूस रसूल इस ख़त का मुसन्निफ़ है, यह इब्तिदाई कलीसिया की एक ज़बान रखने वाली कलीसिया थी। पौलूस ने जुनूबी गलतिया की कलीसिया को तब लिखा जब उन्होंने उस के पहले मिश्नरी सफ़र में जो एशिया माइनर की तरफ़ तै की थी उस का साथ दिया था। गलतिया, रोम या कुरिन्थ की तरह एक शहर नहीं था बल्कि एक रोमी रियासत था जिस के कई एक शहर थे और कसीर ता‘दाद में कलीसियाएं थीं। गलतिया के लोग जिन्हें पौलूस ने ख़त लिखे थे वह पौलूस ही के ज़रिए मसीह में आये थे।"
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"content": "इस ख़त को लिखने का मक़सूद था, यहूदियत बरतने वालों की झूटी इन्जील को ग़लत ठहराना, एक इन्जील जिसको पढ़ने के बाद यहूदी मसीहियों ने महसूस किया था कि नजात के लिए ख़तना कराना ज़रूरी है। और मक़्सद यह भी था कि गलतियों को उनके नजात की हकीक़त को याद दिलाना था। पौलूस ने अपनी रिसालत के इख़्तियार को क़ायम करने के ज़रिए साफ़ तौर से उन के हर सवाल का जवाब दिया जिस की बदौलत दलील पेश करते हुए उसने इन्जील की मनादी की थी। ईमान के वसीले से सिर्फ़ फ़ज़ल के ज़रिए लोग रास्तबाज़ ठहराए जाते हैं। और यह सिर्फ़ ईमान के ज़रिए ही रूह की आज़ादी में उन्हें नई ज़िन्दगी जीने की ज़रूरत है।"
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